Class 12 Hindi Chapter 7 Ped Hone Ka Arth Question Answer Maharashtra Board

Std 12 Hindi Chapter 7 Ped Hone Ka Arth Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 7 पेड़ होने का अर्थ Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 7 पेड़ होने का अर्थ Questions And Answers

12th Hindi Guide Chapter 7 पेड़ होने का अर्थ Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.
(अ) लिखिए : पेड़ का बुलंद हौसला सूचित करने वाली दो पंक्तियाँ :
(a) ……………………………………………..
(b) ……………………………………………..
उत्तर :
(a) भेड़िया, बाघ, शेर की दहाड़ पेड़ किसी से नहीं डरता है।
(b) पेड़ रात भर तूफान से लड़ा है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 7 पेड़ होने का अर्थ

(आ) कृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 7 पेड़ होने का अर्थ 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 7 पेड़ होने का अर्थ 8

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों का अर्थपूर्ण वाक्य में प्रयोग कीजिए :
(१) साँस – सास
……………………………………………
……………………………………………
(२) ग्रह – गृह
……………………………………………
……………………………………………
(३) आँचल-अंचल
……………………………………………
……………………………………………
(४) कुल-कूल
……………………………………………
……………………………………………
उत्तर :
(1) साँस – सच कहा गया है कि जब तक साँस है, तब तक आशा नहीं छोड़नी चाहिए।
सास – अपने गुणों के कारण रुचि सास की बहुत लाड़ली है।

(2) ग्रह – संपूर्ण सौर मंडल में शनि सबसे सुंदर ग्रह है।
गृह – आलोक ने गृह-प्रवेश के अवसर पर बड़ी शानदार पार्टी दी।

(3) आँचल – अनन्या सात साल की हो गई है पर अभी भी माँ का आँचल पकड़े उसके पीछे-पीछे घूमती रहती है।
अंचल – भाई की पोस्टिंग चंबल अँचल में होने पर घर के सभी लोग बहुत चिंतित हुए।

(4) कुल – रामचंद्र जी सूर्य कुल के सूर्य थे।
कूल – नदी के कूल पर ठंडी हवा मन को मोह रही थी।

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.

(अ) ‘पेड़ मनुष्य का परम हितैषी’, इस विषय पर अपना मंतव्य लिखिए।
उत्तर :
पेड़ मनुष्य का परम हितैषी है। प्रकृति की ओर से धरती को दिया गया अनमोल उपहार है पेड़। सभी प्रकार की वनस्पतियाँ, फल, फूल, अनाज, लकड़ी, खनिज सभी हमें पेड़ों से ही मिलते हैं। पेड़ हमें इमारती लकड़ी, ईंधन, पशुओं के लिए चारा, औषधि, लाख, गोंद, पत्ते आदि देते हैं।

हम जो विषैली वायु बाहर छोड़ते हैं, वृक्ष उसे ग्रहण करके स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक वायु हमें प्रदान करते हैं और हमें जीवन देते हैं। पेड़ वर्षा कराने में भी सहायक होते हैं। हमें अपने जीवन में वृक्षों के महत्त्व को समझना चाहिए।

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(आ) ‘भारतीय संस्कृति में पेड़ का महत्त्व’, इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
भारतीय संस्कृति में आदि काल से पेड़ों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। पेड़ों को देवताओं का स्थान दिया गया है। पेड़ों की पूजा की जाती थी। उनके साथ मनुष्यों के समान आत्मीयता बरती जाती थी। पीपल के पेड़ की पूजा-अर्चना की जाती थी।

स्त्रियाँ उपवास करके उसकी परिक्रमा करती थी और जल अर्पण करती थी। इसी प्रकार केले के पेड़ के पूजन की भी प्रथा थी। तुलसी का पौधा तो आज भी अत्यंत पवित्र माना जाता है। बेल के पेड़ के पत्ते भगवान शंकर के मस्तक पर चढ़ाए जाते हैं।

वातावरण की शुद्धता के लिए पेड़ अत्यंत आवश्यक हैं क्योंकि हम जो विषैली वायु बाहर छोड़ते हैं, पेड़ उसे ग्रहण करके स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक वायु हमें प्रदान करते हैं और हमें जीवन देते हैं।

रसास्वादन

प्रश्न 4.
‘पेड़ हौसला है, पेड़ दाता है’, इस कथन के आधार पर संपूर्ण कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
पेड़ होने का अर्थ कविता में कवि डॉ. मुकेश गौतम पेड़ के माध्यम से मनुष्य को मानवता, परोपकार आदि मानवोचित गुणों की प्रेरणा दे रहा है। मनुष्य जरा-सी प्रतिकूल परिस्थिति आने पर या किसी कार्य में मनचाही सफलता न मिलने पर हौसला खो बैठता है। पेड़ भयंकर आँधी-तूफान का सामना करता है, घायल होकर टेढ़ा हो जाता है, परंतु वह अपना हौसला नहीं छोड़ता।

पेड़ के हौसले के कारण शाखों में स्थित घोंसले में चिड़िया के चहचहाते छोटे-छोटे बच्चे सारी रात भयंकर तूफान चलते रहने के बाद भी सुरक्षित रहते हैं। सचमुच पेड़ का हौसला बहुत बड़ा है। पेड़ बहुत बड़ा दाता है। पेड़ की जड़, तना, शाखाएँ, पत्ते, फूल, फल और बीज अर्थात पेड़ का कोई भी भाग अनुपयोगी नहीं होता। अपने स्वार्थ के लिए पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाने वालों, उसे काटने वालों के किसी भी दुर्व्यवहार व अत्याचार का पेड़ कभी बदला लेने का नहीं सोचता। वह तो जीवन भर देता ही रहता है।

हम श्वासोच्छ्वास के माध्यम से जो विषैली वायु बाहर छोड़ते हैं, पेड़ उसे स्वच्छ करके हमें स्वास्थ्यवर्धक वायु प्रदान करता है। पेड़ रोगों के लिए विभिन्न प्रकार की औषधियाँ देता है। मनुष्य समाज में किसी की शवयात्रा हो या कोई शुभ कार्य, या फिर किसी की बारात, पेड़ सभी को पुष्पों की सौगात देता है।

पेड़ कवि को कागज, कलम तथा स्याही, पेड़ वैद्य और हकीम को विभिन्न रोगों के लिए दवाएँ तथा शासन और प्रशासन के लोगों को कुरसी, मेज और आसन देता है। वास्तव में देखा जाए तो पेड़ की ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है, जो मनुष्य के काम न आती हो।

पेड़ संत के समान है, जो दूसरों को देते ही हैं, किसी से कुछ भी अपेक्षा नहीं रखते। वास्तविकता तो यह है कि पेड़ दधीचि है। जिस प्रकार दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए वज्रास्त्र बनाने के लिए जीते-जी अपनी अस्थियाँ भी दान कर दी थीं, उसी प्रकार पेड़ बिना किसी स्वार्थ के जीवन भर देता ही रहता है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
(अ) नयी कविता का परिचय – ……………………………………………..
उत्तर :
नयी कविता में काव्य क्षेत्र में नए भाव बोध को व्यक्त करने के लिए शिल्प पक्ष और भाव पक्ष के स्तर पर नए प्रयोग किए गए। नए प्रतीकों, उपमानों और प्रतिमानों को ढूँढ़ा गया। परिणामस्वरूप नयी कविता आज के मनुष्य के व्यस्त जीवन का दर्पण और आस-पास की सच्चाई की तस्वीर बनकर उभरी।

(आ) डॉ. मुकेश गौतम जी की रचनाएँ – ……………………………………………..
उत्तर :

  • अपनों के बीच
  • सतह और शिखर
  • सच्चाइयों के रू-ब-रू
  • वृक्षों के हक में
  • लगातार कविता
  • प्रेम समर्थक हैं पेड़
  • इसकी क्या जरूरत थी (कविता संग्रह)

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अलंकार

उत्प्रेक्षा : जहाँ पर उपमेय में उपमान की संभावना प्रकट की जाए या उपमेय को ही उपमान मान लिया जाए; वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उत् – + प्र + ईक्षा – अर्थात् प्रकट रूप से देखना।
इस अलंकार में मानो, जनु – जानहुँ, मनु – मानहुँ जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

  1. सोहत ओढ़े पीत पट श्याम सलोने गात।
    मनों नीलमनि शैल पर, आतप पर्यो प्रभात।।
  2. उस क्रोध के मारे तनु उसका काँपने लगा।
    मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।।
  3. लता भवन ते प्रगट भए तेहि अवसर दोउ भाइ।
    निकसे जनु जुग विमल बिंधु, जलद पटल बिलगाइ।।
  4. जान पड़ता है नेत्र देख बड़े-बड़े।
    हीरकों में गोल नीलम हैं जड़े।।
  5. झूठे जानि न संग्रही, मन मुँह निकसै बैन।
    याहि ते मानहुँ किए, बातनु को बिधि नैन।।

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कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (अ) तथा प्रश्न 2 (आ) के लिए)
पद्यांश क्र. 1 प्रश्न. निम्नलिखितपद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
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उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 7 पेड़ होने का अर्थ 6

प्रश्न 2.
वाक्य पूर्ण कीजिए :
(1) पेड़ किसी के पाँव
(2) आदमी एक पेड़ जितना
उत्तर :
(1) पेड़ किसी के पाँव नहीं पड़ता है।
(2) आदमी एक पेड़ जितना बड़ा कभी नहीं हो सकता।

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कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्द के वचन बदलकर लिखिए :
(1) साँस – …………………………….
(2) कमरे – …………………………….
(3) हौसला – …………………………….
(4) आँधी – …………………………….
उत्तर :
(1) साँस – साँसें
(2) अर्थ – आर्थिक
(3) हौसला – हौसले
(4) तूफान – तूफानी।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में प्रत्यय लगाकर नए शब्द बनाइए :
(1) आदमी – …………………………….
(2) अर्थ – …………………………….
(3) बड़ा – …………………………….
(4) तूफान – …………………………….
उत्तर :
(1) आदमी – आदमियत
(3) बड़ा – बड़प्पन
(2) कमरे – कमरा
(4) आँधी – आँधियाँ।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘हालात से भागने की बजाय उसका सामना करना ही बेहतर है’ इस विषय पर अपना मत स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कहा जाता है कि मनुष्य परिस्थितियों के हाथ में एक कठपुतली के समान होता है। यह भी कहा जाता है कि जब रेतीला तूफान आता है तो शुतुरमुर्ग अपनी गरदन रेत में गड़ा लेता है और समझता है कि खतरा टल गया। परंतु खतरा टलता नहीं है। ऐसा ही स्वभाव अनेक व्यक्तियों का भी होता है।

जब भी प्रतिकूल परिस्थितियाँ सामने आ जाती हैं, ऐसे लोग उनका सामना करने की बजाय अपना उद्देश्य ही बदल लेते हैं। ऐसा करना उचित नहीं है। स्थिति से भागने के बजाय डटकर उसका सामना करना चाहिए।

आज नहीं तो कल सफलता अवश्य मिलेगी। हमें पेड़ से सीख लेनी चाहिए। कैसा ही भयंकर आँधी-तूफान हो, पेड़ हार नहीं मानता, डटा रहता है।

पद्यांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
(1) पेड़ करता है – [ ]
(2) पेड़ देता है – [ ]
उत्तर :
(1) पेड़ करता है – सभी का स्वागत
(2) पेड़ देता है – सभी को विदाई

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कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का लिंग बदलकर लिखिए :
(1) चिड़िया – …………………………………….
(2) शेर – …………………………………….
(3) पहाड़ – …………………………………….
(4) बाघ – …………………………………….
उत्तर :
(1) चिड़िया – चिड़ा
(2) शेर – शेरनी
(3) पहाड़ – पहाड़ी
(4) बाघ – बाघिन।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) पेड़ = …………………………………….
(2) हवा = …………………………………….
(3) पहाड़ = …………………………………….
(4) राहगीर = …………………………………….
उत्तर :
(1) पेड़ = तरु
(2) हवा = अनिल
(3) पहाड़ = पर्वत
(4) राहगीर = यात्री।

पद्यांश क्र. 3
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कविता की पंक्तियों को उचित क्रमानुसार लिखकर प्रवाह तख्ता पूर्ण कीजिए:
(1) वृक्ष के पास ऐसी एक भी चीज नहीं है
(2) हमेशा देता आया है मनुष्य का साथ
(3) हमारे लिए ही तो है पेड़ की हर एक चीज
(4) सभी के लिए देता है पुष्पों की सौगात
उत्तर :
(1) हमारे लिए ही तो है पेड़ की हर एक चीज
(2) सभी के लिए देता है पुष्पों की सौगात
(3) हमेशा देता आया है मनुष्य का साथ
(4) वृक्ष के पास ऐसी एक भी चीज नहीं है

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कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के भिन्न अर्थों को वाक्यों द्वारा स्पष्ट कीजिए :
(1) जड़
(2) तना
(3) फल।
उत्तर :
(1) जड़ :

  • अर्थ : वृक्ष का मूल।
    वाक्य : वृक्ष अपनी जड़ के द्वारा धरती से पोषक तत्त्व ग्रहण करता है।
  • अर्थ : मूर्ख।
    वाक्य : मनीश को दर्शन की बातें क्या समझ आएँगी, वह है तो बिलकुल जड़ है।

(2) तना :

  • अर्थ : पेड़ का जमीन से ऊपर का मोटा भाग।
    वाक्य : तने के कारण ही पेड़ खड़ा रहता है।
  • अर्थ : अकड़ा हुआ।
    वाक्य : धीरज जाने अपने आपको क्या समझता है, हर समय तना रहता है।

(3) फल :

  • अर्थ : खाने का फल।
    वाक्य : हमें अपने भोजन में मौसमी फलों का समावेश अवश्य करना चाहिए।
  • अर्थ : परिणाम।
    वाक्य : परीक्षा-फल के दिन मंदिरों में छात्र-छात्राओं की भीड़ लग जाती है।

प्रश्न 2.
पद्यांश में प्रयुक्त विलोम शब्दों की जोड़ियों को वाक्य में प्रयोग कीजिए :
(1) ……………………………… वाक्य :
(2) ……………………………… वाक्य :
उत्तर :

  1. सुबह-शाम।
    वाक्य : मेरी माँ सुबह-शाम नियमपूर्वक मंदिर जाती है।
  2. दिन-रात।
    वाक्य : नेहा ने मेडिकल की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए दिन-रात एक कर दिया।

रसास्वादन मुद्दों के आधार पर
कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (इ) के लिए

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुद्दो के आधार पर पेड़ होने का अर्थ’ कविता का रसास्वादन कीजिए :
उत्तर :
(1) रचना का शीर्षक : पेड़ होने का अर्थ।
(2) रचनाकार : डॉ. मुकेश गौतम।

(3) कविता की केंद्रीय कल्पना : सब कुछ दूसरों को देकर जीवन की सार्थकता सिद्ध करना। पेड़ मनुष्य का बहुत बड़ा शिक्षक है। पेड़ मनुष्य का हौसला बढ़ाता है। वह उसे समाज के प्रति जिम्मेदारी का निर्वाह करना सिखाता है। पेड़ ने भारतीय संस्कृति को जीवित रखा है और उसने मानव को संस्कारशील बनाया है।

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(4) रस-अलंकार :

(5) प्रतीक विधान : कवि ने पेड़ को परोपकार के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करते हुए दर्शाया है। कवि ने इस तरह के महान त्यागी के लिए महर्षि दधीचि जैसे महान दाता तथा संत का प्रतीक के रूप में सटीक उपयोग किया है।

(6) कल्पना : पेड़ आदि काल से मनुष्य का सबसे बड़ा शिक्षक, उसका हौसला बढ़ाने वाला तथा समाज के प्रति उसको अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने का बोध कराने वाला रहा है। उसने भारतीय संस्कृति को जीवित रखने और मनुष्य को संस्कारशील बनाने का काम किया है।

(7) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
राह में गिरा देता है फूल,
और करता है इशारा उसे आगे बढ़ने का।

(8) कविता पसंद आने का कारण : प्रस्तुत कविता में कवि ने पेड़ के माध्यम से मनुष्य को मानवता, परोपकार जैसे मानवोचित गुणों की प्रेरणा दी है।

अलंकार

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में निहित अलंकार पहचानकर उसका नाम लिखिए :
(1) चरन-कमल बंदी हरिराई।
(2) पीपर पात सरिस मन डोला।
(3) हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग।
लंका सगरी जल गई, गए निसाचर भाग।
उत्तर :
(1) रूपक अलंकार।
(2) उपमा अलंकार।
(3) अतिशयोक्ति अलंकार।

रस

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में निहित रस पहचानकर उसका नाम लिखिए :
(1) अखिल भुवन चर, अचर सब, हरि मुख में लख मातु।
चकित भई, गद्गद वचन, विकसित दृग पुलकातु।
(2) सुनहूँ राम जेहि शिवधनु तोरा।
सहसबाहु सम सो रिपु मोरा।
(3) मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
उत्तर :
(1) अद्भुत रस
(2) रौद्र रस
(3) शांत रस।

मुहावरे

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
(1) आसमान पर थूकना
अर्थ : अशोभनीय कार्य करना।
वाक्य : जिनके माता-पिता अपने बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं देते, उनके बच्चे आसमान पर थूकने वाले हों, तो ताज्जुब नहीं।

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(2) उल्टी गंगा बहाना
अर्थ : उल्टा काम करना।
वाक्य : जब देखो तब ये सज्जन उल्टी गंगा ही बहाते हैं।

(3) एक लाठी से हाँकना
अर्थ : सबके साथ समान व्यवहार करना।
वाक्य : कुछ लोग अच्छे-बुरे सबको एक ही लाठी से हाँकने की कोशिश करते हैं।

(4) चार चाँद लगाना
अर्थ : शोभा बढ़ाना।
वाक्य : उस विद्वान की शालीनता उनके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा रही थी।

(5) कोल्हू का बैल
अर्थ : बहुत परिश्रम करने वाला।
वाक्य : मुनीम जी की बात और है, वे तो कोल्हू के बैल

(6) कौड़ी-कौड़ी का मोहताज
अर्थ : अत्यंत निर्धन होना।
वाक्य : गनेश शेठ अपने जमाने में इस बाजार के सबसे बड़े सेठ थे, पर उनके बेटे ऐसे नालायक निकले कि आज वे कौड़ी-कौड़ी के मोहताज हो गए हैं।

काल परिवर्तन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों को कोष्ठक में सूचित काल में परिवर्तन कीजिए :
(1) कवि पेड़ को देख रहा था। (सामान्य भूतकाल)
(2) पेड़ सभी का स्वागत करता है। (अपूर्ण वर्तमानकाल)
(3) किशोरी का पत्र पाकर खुशी हुई। (सामान्य भविष्यकाल)
उत्तर :
(1) कवि ने पेड़ को देखा।
(2) पेड़ सभी का स्वागत कर रहा है।
(3) किशोरी का पत्र पाकर खुशी होगी।

वाक्य शुद्धिकरण

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके लिखिए :
(1) मनुश्य पेड़ जितना बड़ा कबी नहीं हो सकता।
(2) पेड़ पर चहचाते हुए चिड़िया के बच्चों की घोंसला है।
(3) ओझोन गैस मानव स्वास्थ के लिए हानिकारक होती है।
उत्तर :
(1) मनुष्य पेड़ जितना बड़ा कभी नहीं हो सकता।
(2) पेड़ पर चहचहाते हुए चिड़िया के बच्चों का घोंसला है।
(3) ओजोन गैस मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है।

पेड़ होने का अर्थ Summary in Hindi

पेड़ होने का अर्थ कवि का परिचय

कवि का नाम : डॉ. मुकेश गौतम। (जन्म 1 जुलाई, 1970.)

पेड़ होने का अर्थ कवि परिचय : डॉ. मुकेश गौतम ने आधुनिक कवियों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। आज के मनुष्य की समस्याएँ और प्रकृति के साथ होने वाला क्रूर अत्याचार आपकी कविता में प्रखरता से उभरता है। सामाजिक सरोकार की भावना आपके काव्य का मुख्य स्वर है।

प्रमुख कृतियाँ : अपनों के बीच, सतह और शिखर, सच्चाइयों के रू-ब-रू, वृक्षों के हक में, लगातार कविता, प्रेम समर्थक हैं पेड़, इसकी क्या जरूरत थी (कविता संग्रह) आदि।

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विशेषता : आधुनिक भावबोध की सहज-सीधे रूप में अभिव्यक्ति। हास्य-व्यंग्य का सफल मंचन। भावों और विचारों का प्रभावशाली ढंग से संप्रेषण।

विधा : नई कविता

पेड़ होने का अर्थ टिप्पणियाँ

दधीचि : दधीचि एक महान ऋषि थे। कहा जाता है कि एक बार वृत्रासुर नामक राक्षस देवलोक पर अधिकार करने के लिए सभी देवताओं को तरह-तरह से परेशान कर रहा था। उसके अत्याचार बढ़ते ही जाते थे। ब्रह्मा जी ने देवताओं को बताया कि वृत्रासुर को मारने का एक ही उपाय है। वह है पृथ्वीवासी आत्म-त्यागी महर्षि दधीचि की अस्थियों से बना वज्र। देवराज इंद्र के कहने पर महर्षि ने बिना किसी हिचकिचाहट के उसी समय समाधि लगाई और अपनी देह त्याग दी।

विषय प्रवेश : पेड़ और मनुष्य का नाता आदि काल से रहा है। पेड़ मनुष्ये का बहुत बड़ा शिक्षक है। पेड़ मनुष्य का हौसला बढ़ाता है, समाज के प्रति जिम्मेदारी का निर्वाह करना सिखाता है। पेड़ ने भारतीय संस्कृति को जीवित रखा है और मानव को संस्कारशील बनाया है।

पेड़ होने का अर्थ कविता का सरल अर्थ

(1) आदमी पेड़ नहीं हो सकता ………………………………………….. हालात से लड़ता है।

प्रस्तुत कविता में कवि पेड़ के माध्यम से मनुष्य को मानवता, परोपकार आदि मानवोचित गुणों की प्रेरणा दे रहा है। कवि अपने कमरे में खिड़की के पास बैठा है। वह बाहर खड़े पेड़ को देखता है तो पेड़ का हौसला, उसकी दान की प्रवृत्ति कवि को सोचने पर विवश कर देती है। अनगिनत विचार उसके मस्तिष्क में उठने लगते हैं। कवि कहते हैं, मनुष्य कितना भी बड़ा क्यों हो जाए, वह पेड़ जैसा कभी नहीं बन सकता।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 7 पेड़ होने का अर्थ 2

पेड़ के हौसले से मनुष्य को सीख लेनी चाहिए। पेड़ जबसे जन्म लेता है अर्थात जब वह कोमल-सा अंकुर होता है, तब से जीवनपर्यंत किसी का आश्रय वह नहीं लेता। कैसा भी आँधी-तूफान आए या सामने कोई कैसा भी बड़े-से-बड़ा, प्रतापी राजा आ जाए, पेड़ कभी किसी के सामने नहीं झुकता।

जब तक पेड़ जीवित रहता है, जैसी भी परिस्थिति हो, एक ही स्थान पर खड़े-खड़े उसका डटकर सामना करता है। जबकि मनुष्य का स्वभाव है कि शक्तिशाली व्यक्ति या स्वार्थपूर्ति करने वाले के पैरों में नाक रगड़ने से भी वह नहीं कतराता। साथ ही जरा-सी प्रतिकूल परिस्थिति आने पर या किसी कार्य में मनचाही सफलता न मिलने पर हौसला खो बैठता है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 7 पेड़ होने का अर्थ

(2) जहाँ भी खड़ा है ………………………………………….. पेड़ बहुत बड़ा हौसला है।

कवि कहते हैं, पेड़ जहाँ भी खड़ा हो, चाहे सड़क पर हो, किसी झील के किनारे हो या फिर पहाड़ के ऊपर हो, उसकी मनोस्थिति एक जैसी रहती है। पेड़ के सामने भेड़िया, बाघ जैसे हिंसक पशु आ जाएँ या शेर दहाड़ने लगे, पेड़ किसी से नहीं डरता। जबकि मनुष्य हिंसक पशु के सामने आने पर डर से ही मर जाता है। पेड़ मनुष्य के समान न कभी किसी की हत्या करता है, न ही आत्महत्या।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 7 पेड़ होने का अर्थ 3

इसके विपरीत पेड़ थके हुए यात्रियों को ठंडी हवा देता है, शीतल छाया देता है। यही नहीं पेड़, राहगीरों के समक्ष पुष्प वर्षा करके मानो उन्हें अपनी राह पर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देता है। पेड़ के समीप जो भी आता है, पेड़ सभी का स्वागत करता है। यात्री जब थकान उतरने के बाद पेड़ के नीचे से उठकर चल देते हैं, तो पेड़ सभी को विदा भी करता है। कवि कहते हैं कि गाँव के रास्ते में मुस्कुराता पेड़ जाने कबसे टेढ़ा खड़ा है।

पहले वह पेड़ टेढ़ा नहीं था। वह पूरी रात तेज तूफान का सामना करता रहा। पेड़ घायल हो गया, इसी के कारण टेढ़ा भी हो गया, परंतु उसने अपना हौसला नहीं छोड़ा। पेड़ की शाखों में एक घोंसले में चिड़िया के चहचहाते छोटे-छोटे बच्चे थे। सारी रात भयंकर तूफान चलते रहने के बाद भी पेड़ के हौसले के कारण वह छोटा-सा घोंसला सुरक्षित है। सचमुच पेड़ का हौसला बहुत बड़ा है।

(3) दाता है पेड़ ………………………………………….. पेड़ संत है, दधीचि है।

पेड़ बहुत बड़ा दाता है। पेड़ के फलों के गुणों से तो सभी परिचित हैं, परंतु इसके साथ ही पेड़ की जड़, तना, शाखाएँ हों या पत्ते, फूल और बीज, पेड़ का कोई भी भाग अनुपयोगी नहीं होता। मानव समाज में ऐसे भी लोग हैं, जो पेड़ को पूजते हैं। दूसरी ओर अपने स्वार्थ के लिए पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाने वाले, उसे काटने वालों की भी कमी नहीं है। लेकिन पेड़ मनुष्य के किसी भी दुर्व्यवहार पर कभी भी आँसू नहीं गिराता।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 7 पेड़ होने का अर्थ

मानव पेड़ पर कैसा भी अत्याचार क्यों न करे, पेड़ उससे कभी बदला लेने का नहीं सोचता। वह तो जीवन भर देता ही रहता है। हम श्वासोच्छ्वास के माध्यम से जो विषैली वायु बाहर छोड़ते हैं, पेड़ उसे स्वच्छ करके हमें स्वास्थ्यवर्धक वायु प्रदान करता है। पेड़ रोगों के लिए विभिन्न प्रकार की औषधियाँ देता है।

मनुष्य समाज में किसी की शवयात्रा हो या कोई शुभ कार्य, या फिर किसी की बारात, पेड़ सभी को सजावट के लिए पुष्पों की सौगात देता है। जब से सृष्टि का आरंभ हुआ है, अनादि काल से पेड़ हमेशा मनुष्य को देता ही आया है। पेड़ कवि को कागज, कलम तथा स्याही प्रदान करता है।

पेड़ वैद्य और हकीम को विभिन्न रोगों के लिए दवाएँ देता है। पेड़ शासन और प्रशासन के लोगों को कुरसी, मेज और आसन देता है। वास्तव में देखा जाए तो पेड़ की ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है, जो मनुष्य के काम न आती हो। पेड़ संत के समान है, जो दूसरों को देते ही हैं, किसी से कुछ भी अपेक्षा नहीं रखते।

वास्तविकता तो यह है कि पेड़ दधीचि है। जिस प्रकार दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए वज्रास्त्र बनाने के लिए जीते-जी अपनी अस्थियाँ भी दान कर दी थीं, उसी प्रकार पेड़ बिना किसी स्वार्थ के जीवन भर देता ही रहता है।

पेड़ होने का अर्थ शब्दार्थ

  • ढूँठ = फूल-पत्ते विहीन सूखा पेड़
  • सौगात = भेंट, उपहार

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 7 पेड़ होने का अर्थ

पेड़ होने का अर्थ टिप्पणी

  • दधीचि : एक ऋषि जिन्होंने वृत्रासुर का वध करने हेतु अस्त्र बनाने के लिए इंद्र को अपनी हड्डियाँ दी थीं।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Maharashtra Board

Class 12 Hindi Chapter 6 Paap Ke Chaar Hathiyaar Question Answer Maharashtra Board

Std 12 Hindi Chapter 6 Paap Ke Chaar Hathiyaar Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 6 पाप के चार हथियार Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 6 पाप के चार हथियार Questions And Answers

12th Hindi Guide Chapter 6 पाप के चार हथियार Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.
(अ) कृति पूर्ण कीजिए:

(1) पाप के चार हथियार ये हैं –
(a) …………………………………………………..
(b) …………………………………………………..
(c) …………………………………………………..
(d) …………………………………………………..
उत्तर :
पाप के चार हथियार ये हैं –
उपेक्षा
निंदा
हत्या
श्रद्धा

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(2) जॉर्ज बर्नार्ड शॉ का कथन – ………………………………………………………
………………………………………………………………………………
………………………………………………………………………………
उत्तर :
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ का कथन – जॉर्ज बर्नार्ड शॉ कहते हैं कि लोग उनकी बातों को दिल्लगी समझकर उड़ा देते हैं। लोग उनकी उपेक्षा करते हैं और उनकी बातों पर गौर नहीं करते।

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
शब्दसमूह के लिए एक शब्द लिखिए :

(a) जिसे व्यवस्थित न गढ़ा गया हो – ………………………………….
(b) निंदा करने वाला – ………………………………….
(c) देश के लिए प्राणों का बलिदान देने वाला – ………………………………….
(d) जो जीता नहीं जाता – ………………………………….
उत्तर
(1) जिसे व्यवस्थित न गढ़ा गया हो – अनगढ़
(2) निंदा करने वाला – निंदक
(3) देश के लिए प्राणों का बलिदान देने वाला – शहीद
(4) जो जीता नहीं जाता – अजेय

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) ‘समाज सुधारक समाज में व्याप्त बुराइयों को पूर्णत: समाप्त करने में विफल रहे’, इस कथन पर अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर :
संसार में अनेक महान समाज सुधारक हुए हैं। वे अपने समाजसुधार के कार्यों से अपना नाम अमर कर गए हैं। हर युग में अनेक समाज सुधारक समाज को सुधारने का कार्य करते रहे हैं, पर समाज में व्याप्त बुराइयों की तुलना में उनकी संख्या नगण्य है। इसके अलावा समाज सुधारकों को जनता का पर्याप्त सहयोग भी नहीं मिल पाता। इसलिए वे अपने कार्य में पूर्णतः सफल नहीं हो पाते।

इतना ही नहीं, भिन्न-भिन्न कारणों से समाज विरोधी तत्त्व भी अपने स्वार्थ के कारण समाज सुधारकों के दुश्मन बन जाते हैं। इससे समाज सुधारकों के कार्य में केवल अड़चनें ही नहीं आतीं, बल्कि उनकी जान पर भी बन आती है।

इसलिए समाज सुधारकों के लिए समाज में व्याप्त बुराइयों को पूरी तरह समाप्त करना संभव नहीं हो पाया। आए दिन लोगों के प्रति होने वाले अन्याय और अत्याचार की घटनाएँ इस बात का सबूत हैं कि समाजसुधारक समाज में व्याप्त बुराइयों को पूर्णतः समाप्त करने में विफल रहे हैं।

(आ) ‘लोगों के सक्रिय सहभाग से ही समाज सुधारक का कार्य सफल हो सकता हैं’, इस विषय पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
समाज सुधार कोई छोटा-मोटा काम नहीं है। इसका दायरा विशाल है। इस कार्य को करने का बीड़ा उठाने वाले को इस कार्य में निरंतर रत रहना पड़ता है। किसी भी अकेले व्यक्ति के वश का यह काम नहीं है। इस कार्य को सुचारु रूप से संपन्न करने के लिए समाज सुधारक को समाज के प्रतिनिधियों एवं निष्ठावान कार्यकर्ताओं का सहयोग लेना आवश्यक होता है। समाज में तरहतरह की विकृतियाँ होती हैं।

उनके बारे में जानकारी करने और उन्हें १ दूर करने के लिए समाज के लोगों का सहयोग प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक होता है। इसके अतिरिक्त किसी भी सामाजिक बुराई के पीछे विभिन्न कारणों से कुछ लोगों का स्वार्थ भी होता है। ऐसे लोगों से निपटे बिना उसे दूर नहीं किया जा सकता।

बिना लोगों के सक्रिय सहयोग से ऐसे समाज विरोधी तत्त्वों से पार पाना संभव, नहीं हो पाता। इसलिए इन सभी बातों को ध्यान में रखकर समाज ३ सुधारक को लोगों का सक्रिय सहयोग लेना आवश्यक है। लोगों ३ के सक्रिय सहयोग से ही वह अपने कार्य में सफल हो सकता है।

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पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न –

प्रश्न 4.
(अ) ‘पाप के चार हथियार पाठ का संदेश लिखिए।
उत्तर :
‘पाप के चार हथियार’ पाठ में लेखक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ ने एक ज्वलंत समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया है। संसार में चारों ओर पाप, अन्याय और अत्याचार व्याप्त है, फिर भी कोई संत, महात्मा, अवतार, पैगंबर या सुधारक इससे मुक्ति का मार्ग बताता है, तो लोग उसकी बातों पर ध्यान नहीं देते और उसकी अवहेलना करते हैं। उसकी निंदा करते हैं। इतना ही नहीं, इस प्रकार के कई सुधारकों को तो अपनी जान तक गँवा देनी पड़ी है।

लेकिन यही लोग सुधारकों, महात्माओं की मृत्यु के पश्चात उनके स्मारक और मंदिर बनाते हैं और उनके विचारों और कार्यों का गुणगान करते नहीं थकते। जो लोग सुधारक के जीवित रहते उसकी बातों को अनसुना करते रहे, उसकी निंदा करते रहे और उसकी जान के दुश्मन बने रहे, उसकी मृत्यु के पश्चात उन्हीं लोगों के मन में उसके लिए श्रद्धा की भावना उमड़ पड़ती है और वे उसके स्मारक और मंदिर बनाने लगते हैं।

इस प्रकार लेखक ने ‘पाप के चार हथियार’ के द्वारा यह संदेश दिया है कि सुधारकों और महात्माओं के जीते जी उनके विचारों पर ध्यान देने और उन पर अमल करने से ही समस्याओं का समाधान होता है, न कि स्मारक और मंदिर बनाने से।

(आ) ‘पाप के चार हथियार निबंध का उददेश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
संसार में पाप, अत्याचार और अन्याय का बोलबाला रहा है और आज भी वह वैसा ही है। इससे लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए अनेक महापुरुषों, सुधारकों, समाज सेवकों एवं संतमहात्माओं ने अथक प्रयास किया, पर वे अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाए। उल्टे उन्हें समाज के लोगों की उपेक्षा तथा निंदा आदि का शिकार होना पड़ा और कुछ लोगों को अपनी जान भी गँवानी पड़ी।

पर देखा यह गया है कि जीते जी जिन सुधारकों और महापुरुषों को समाज का सहयोग नहीं मिला और उनकी अवहेलना होती रही, मरने के बाद उनके स्मारक और मंदिर भी बने और लोगों ने उन्हें भगवान-सुधारक कह कर वंदनीय भी बताया। यहाँ लेखक यह कहना चाहते हैं कि मरणोपरांत सुधारक का स्मारक-मंदिर बनना सुधारक और उसके प्रयासों दोनों की पराजय है।

अच्छा तो तब होता, जब लोग सुधारक के जीते जी उसके विचारों को अपनाते और पाप, अत्याचार और अन्याय जैसी बुराइयों के खिलाफ संघर्ष में उसका सहयोग करते और समाज से इन बुराइयों के दूर होने में सहायक बनते। इससे सुधारक समाज को पाप, अन्याय, भ्रष्टाचार और अत्याचार जैसी बुराइयों से मुक्ति दिलाने में सफल हो सकता था। लोगों को सुधारक की उपेक्षा, निंदा अथवा उनके खिलाफ षड्यंत्र रचने के बजाय उनके अभियान में अपना पूरा सहयोग देना चाहिए। तभी समाज से ये बुराइयाँ दूर हो सकती हैं। यही इस पाठ का उद्देश्य है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
(अ) कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ जी के निबंध संग्रहों के नाम लिखिए –
उत्तर :
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’जी के निबंध संग्रहों के नाम हैं –
(1) जिंदगी मुस्कुराई
(2) बाजे पायलिया के घूघरू
(3) जिंदगी लहलहाई
(4) महके आँगन – चहके द्वार।

(आ) लेखक कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ जी की भाषाशैली –
उत्तर :
कन्हैयालाल मिश्रजी कथाकार, निबंधकार एवं पत्रकार थे। आपकी भाषा मँजी हुई, सहज-सरल और मुहावरेदार है, जो कथ्य को दृश्यमान और सजीव बना देती है। आपके लेखन में तत्सम शब्दों का प्रयोग भारतीय चिंतन-मनन को अधिक प्रभावशाली बना देता है। आप एक सफल निबंधकार थे। आप में अपने विषय को प्रखरता से प्रस्तुत करने की सामर्थ्य है।

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प्रश्न 6.
रचना के आधार पर निम्न वाक्यों के भेद पहचानिए :
(1) संयोग से तभी उन्हें कहीं से तीन सौ रुपये मिल गए।
(2) यह वह समय था, जब भारत में अकबर की तूती बोलती थी।
(3) सुधारक होता है करुणाशील और उसका सत्य सरल विश्वासी।
(4) फिर भी सावधानी तो अपेक्षित है ही।
(5) यह तस्वीर निःसंदेह भयावह है लेकिन इसे किसी भी तरह अतिरंजित नहीं कहा जाना चाहिए।
(6) आप यहीं प्रतीक्षा कीजिए।
(7) निराला जी हमें उस कक्ष में ले गए, जो उनकी कठोर साधना का मूक साक्षी रहा है।
(8) लोगों ने देखा और हैरान रह गए।
(9) सामने एक बोर्ड लगा था, जिस पर अंग्रेजी में लिखा था।
(10) ओजोन एक गैस है, जो ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनी होती है।
उत्तर :
(1) सरल वाक्य
(2) मिश्र वाक्य
(3) संयुक्त वाक्य
(4) सरल वाक्य
(5) मिश्र वाक्य
(6) सरल वाक्य
(7) मिश्र वाक्य
(8) संयुक्त वाक्य
(9) मिश्र वाक्य
(10) मिश्र वाक्य।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 6 पाप के चार हथियार Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका के प्रश्न 1 (अ) तथा प्रश्न 1 (आ) के लिए
गद्यांश क्र. 1
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
शब्दों को उचित वर्ग में लिखिए :
पीड़ित वर्ग – पीड़क वर्ग

जीवन में दोष  संसार में पाप
व्यवस्था में अन्याय  व्यवहार में अत्याचार

उत्तर :

जीवन में दोष व्यवस्था में अन्याय
संसार में पाप  व्यवहार में अत्याचार

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार 2

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कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए :
(1) नैतिक x …………………………..
(2) पाप x …………………………..
(3) सत्य x …………………………..
(4) असफल x …………………………..
उत्तर :
(1) नैतिक x अनैतिक
(3) सत्य x असत्य
(2) पाप x पुण्य
(4) असफल x सफल।

गद्यांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार 6

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए : गद्यांश में आए पाप के दो नारे –
(1) …………………………
(2) …………………………
उत्तर :
(1) अजी बेवकूफ है, लोगों को बेवकूफ बनाना चाहता है।
(2) ओह, मैं तुम्हें खिलौना समझता रहा और तुम साँप निकले। पर मैं साँप को जीता नहीं छोडूंगा – पीस डालूँगा।

प्रश्न 3.
आकृति पूर्ण कीजिए :
(1) सुधारक के सत्य की स्थिति –
(i) उपेक्षा की रगड़ से – कुछ तेज हो जाता है।
(i) निंदा की रगड़ से –
(iii) हत्या के घर्षण से –
उत्तर :
(i) उपेक्षा की रगड़ से – कुछ तेज हो जाता है।
(ii) निंदा की रगड़ से – और भी प्रखर हो जाता है।
(iii) हत्या के घर्षण से – प्रचंड हो उठता है।

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प्रश्न 4.
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार 4
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार 7

प्रश्न 5.
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार 5
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार 8

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कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
गद्यांश में प्रयुक्त उपसर्गयुक्त शब्द ढूँढ़कर लिखिए :
(1) …………………………………
(2) …………………………………
(3) …………………………………
(4) …………………………………
उत्तर :
(1) विद्रोह
(2) प्रतिनिधि
(3) असह्य
(4) प्रलाप।

गद्यांश क्र. 3
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए :
(1) पाप सत्य पर यह फेंकता है – [ ]
(2) पाप का ब्रह्मास्त्र – [ ]
(3) अब पाप का नारा यह होता है – [ ]
(4) अब पाप सुधारक की यह लगता है – [ ]
उत्तर :
ब्रह्मास्त्र
श्रद्धा
सत्य की जय! सुधारक की जय
चरण वंदना

प्रश्न 2.
कृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार 9
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार 12

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Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार 10
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार 13

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार 11
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार 14

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कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
पद्यांश से ढूँढ़कर प्रत्यययुक्त शब्द लिखिए और शब्द और प्रत्यय अलग करके लिखिए :
(1) ………………………………
(2) ………………………………
(3) ………………………………
(4) ………………………………
उत्तर :
(1) तोलकर – तोल + कर
(2) विश्वासी – विश्वास + ई
(3) वंदनीय – वंदन + ईय
(4) अजेयता – अजेय + ता।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के लिंग पहचानकर लिखिए :
(1) चरण – ………………………………
(2) सुधारक – ………………………………
(3) वाणी – ………………………………
(4) पराजय – ………………………………
उत्तर :
(1) चरण – पुल्लिंग
(2) सुधारक – पुल्लिंग
(3) वाणी – स्त्रीलिंग
(4) पराजय – स्त्रीलिंग।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘स्मारकों और समाधियों का उद्देश्य’ विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
स्मारक और समाधियाँ महापुरुषों, मनीषियों, विचारकों, समाज सुधारकों, राजनेताओं तथा शहीदों के अद्भुत कार्यों को ध्यान में रखकर उन्हें सम्मान देने, याद रखने तथा उनके कार्यों से प्रेरणा लेने के उद्देश्य से बनाए जाते हैं। इससे आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें याद रखती हैं और उनके कार्यों से प्रेरणा लेती हैं।

पर ऐसा बहुत कम देखा जाता है। अकसर इनके प्रति लोगों में श्रद्धा की भावना होती है। वे इनके दर्शन कर इन्हें श्रद्धांजलि भी देते हैं, पर इनके कार्यों से प्रेरणा लेने की बात उनके मन में कम ही आती है। इन महापुरुषों, मनीषियों, विचारकों, समाज सुधारकों, राजनेताओं तथा शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि उनके कार्यों से प्रेरणा लेकर समाज और देश के विकास के लिए कार्य करना है।

स्मारकों एवं समाधियों की स्थापना के पीछे यही भावना छिपी होती है और लोगों के मन में भी यही भावना होनी चाहिए।

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मुहावरे

निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
(1) दाल न गलना।
अर्थ : चतुराई काम न आना।
वाक्य : आफिस के कई लोगों ने उस ईमानदार कर्मचारी को निकलवाने की बड़ी कोशिश की, पर उनकी दाल न गली।

(2) गड़े मुरदे उखाड़ना।
अर्थ : पुरानी कटु बातों को याद करना।
वाक्य : बुढ़िया अकसर अपने बेटों से गड़े मुरदे उखाड़ने की भाषा में ही बोला करती थी।

(3) फूंक फूंक कर पाँव रखना।
अर्थ : अति सावधानी बरतना।
वाक्य : सेठ मटरूमल को जब से धंधे में भारी घाटा उठाना पड़ा है, तब से वे लेन-देन में फूंक फूंक कर पाँव रखते हैं।

(4) आठ-आठ आँसू रोना।
अर्थ : बहुत अधिक रोना।
वाक्य : बुढ़िया का इकलौता बेटा जब से विदेश में नौकरी करने गया है, तब से वह उसकी याद में आठ-आठ आँसू रोती रहती है।

(5) रंग में भंग होना।
अर्थ : प्रसन्नता के वातावरण में विघ्न पड़ना।
वाक्य : कोरोना के लॉक डाउन के कारण मेरे दोस्त नलिन के विवाह समारोह के उत्सव में रंग में भंग हो गया।

काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का काल परिवर्तन कर के वाक्य फिर से लिखिए :
(1) इसमें संसार का एक बहुत बड़ा सत्य कह दिया गया है। (पूर्ण भूतकाल)
(2) शॉ के इन शब्दों में अहंकार की पैनी धार है। (सामान्य भविष्यकाल)
(3) इसे वे क्यों नहीं बदल पाए? (सामान्य वर्तमानकाल)
(4) सुधारक का सत्य निंदा की रगड़ से और भी प्रखर हो जाता है। (अपूर्ण भूतकाल)
(5) इस वेग में वह पिस जाएगा। (पूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
(1) इसमें संसार का एक बहुत बड़ा सत्य कह दिया गया था।
(2) शॉ के इन शब्दों में अहंकार की पैनी धार होगी।
(3) इसे वे क्यों नहीं बदल पाते?
(4) सुधारक का सत्य निंदा की रगड़ से और भी प्रखर हो रहा था।
(5) इस वेग में वह पिस गया था।

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वाक्य शुद्धिकरण

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए :
(1) वह स्वरग का अमरित है।
(2) समाज की पाप विवश हो जाती है।
(3) पाप के पास चार शस्त्रे है।
(4) वे मुझे बर्दास्त नई कर सकते।
(5) ये नारा ऊँचे उठता रहता है।
उत्तर :
(1) वह स्वर्ग का अमृत है।
(2) समाज का पाप विवश हो जाता है।
(3) पाप के पास चार शस्त्र हैं।
(4) वे मुझे बर्दाश्त नहीं कर सकते।
(5) यह नारा ऊँचा उठता रहता है।

पाप के चार हथियार Summary in Hindi

पाप के चार हथियार लेखक का परिचय

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पाप के चार हथियार
लेखक का नाम :
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’। (जन्म : 26 सितंबर, 1906; निधन : 1995.)

प्रमुख कृतियाँ : ‘धरती के फूल’ (कहानी संग्रह)। ‘जिंदगी मुस्कुराई’, ‘बाजे पायलिया के घूघरू’, ‘जिंदगी लहलहाई’, ‘महके आँगन – चहके द्वार’ (निबंध संग्रह), ‘दीप जले शंख बजे’, ‘माटी हो गई सोना’ (संस्मरण एवं रेखाचित्र) आदि।

पाप के चार हथियार विशेषता : कथाकार, निबंधकार, पत्रकार तथा स्वतंत्रता सेनानी। आपने पत्रकारिता में स्वतंत्रता के स्वर को ऊँचा उठाया। आपका संपूर्ण साहित्य मूलतः सामाजिक सरोकारों का शब्दांकन है। आप पद्मश्री सम्मान से विभूषित हैं।

पाप के चार हथियार विधा : निबंध। निबंध का अर्थ है विचारों को भाषा में व्यवस्थित रूप से बाँधना। इसमें वैचारिकता का अधिक महत्त्व होता है तथा विषय को सहजता से रखने का सामर्थ्य होता है।

पाप के चार हथियार विषय प्रवेश : संसार भर के अनेक संतों, महात्माओं, महापुरुषों, विचारकों, दार्शनिकों तथा समाज सुधारकों ने मनुष्य जाति को पाप, अपराध तथा दुष्कर्मों से मुक्त कराने के लिए अथक प्रयास किया है, पर आज तक संसार में अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार, पाप और दुष्कर्मों का अंत नहीं हो पाया है। इसका कारण यह है कि लोगों को इन संतों, महात्माओं और समाज सुधारकों के प्रति श्रद्धा तो होती है, पर वे उनके द्वारा व्यक्त विचारों को अपने आचरण में गंभीरतापूर्वक नहीं उतारते। ऐसा क्यों होता है? लेखक ने प्रस्तुत निबंध में यही बताने का प्रयास किया है।

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पाप के चार हथियार पाठ का सार

संसार में सदा से पाप, अपराध, अन्याय, अत्याचार, दुष्कर्म एवं भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा है। संसार के कई महापुरुषों, विचारकों, सुधारकों एवं संतों ने मानव जाति को इनसे मुक्ति दिलाने के लिए अथक प्रयास किए हैं, पर यह समस्या आज भी पहले जैसे सर्वत्र व्याप्त है। इसका मुख्य कारण रहा है विचारकों तथा सुधारकों को लोगों का सहयोग न मिलना। इनकी कही गई बातों पर ध्यान न देना। उनके विचारों को आचरण में न उतारना। यही कारण है कि सुधारक अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाते।

लेखक कहते हैं कि बुराइयों के विरुद्ध सुधारक की बातें लोगों को किसी पागल व्यक्ति की बकवास लगती हैं, जिन्हें वे सुनना ही नहीं चाहते। यदि कभी एकाध बात सुन लेते हैं, तो उसकी निंदा करते नहीं थकते और उस पर लोगों को बेवकूफ बनाने का आरोप लगाने लगते हैं। लेखक कहते हैं कि जब सुधारक का स्वर कुछ प्रखर हो जाता है, तो सामाजिक बुराइयों के लिए यह स्थिति कठिन हो जाती है और ऐसे में सुधारक की हत्या भी हो जाती है। वे कहते हैं कि सुकरात, ईसा और दयानंद की हत्या इसी तरह हुई थी।

लेकिन इसके बाद स्थिति में एकदम बदलाव आ जाता है। सुधारक के विचारों का विरोध करने वाले लोगों के मन में उसके प्रति श्रद्धा उमड़ पड़ती है। इसके बाद उसे भगवान, तीर्थकर, अवतार, पैगंबर और संत, महाप्रभु की संज्ञा दी जाने लगती है। अब वह लोगों के लिए सामान्य सुधारक न रहकर विशिष्ट व्यक्ति हो जाता है। उसके स्मारक और मंदिर बनने लगते हैं।

उसकी प्रशंसा होने लगती है। लेखक कहते हैं कि यहीं सुधारक और उसके सिद्धांत की पराजय हो जाती है। यही कारण है कि अनेक महापुरुषों, विचारकों, सुधारकों एवं संतों द्वारा इन सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए किए गए प्रयास सफल न हो पाए।

पाप के चार हथियार मुहावरे : अर्थ और वाक्य प्रयोग

(1) ढाँचा डगमगा उठना।
अर्थ : आधार हिल उठना।
वाक्य : कभी-कभी किसी व्यक्ति द्वारा कोई गलत निर्णय ले लेने के कारण किसी परिवार अथवा पूरे समाज का ढाँचा डगमगा उठता है।

(2) लहर को ऊपर से उतार देना।
अर्थ : सिर झुका कर संकट को गुजरने देना।
वाक्य : कोरोना संकट देश की अर्थव्यवस्था को डगमगा देने वाला है, पर हमारी सरकार इस लहर को ऊपर से उतार देने का सफल प्रयास कर रही है।

(3) गले के नीचे उतरना।
अर्थ : स्वीकार करना।
वाक्य : महाराष्ट्र और कर्नाटक के सीमा विवाद का फैसला ऐसा होना चाहिए, जो दोनों राज्यों की सरकारों और जनता के गले उतरने वाला हो।

(4) विवश होना।
अर्थ : लाचार होना।
वाक्य : कोरोना के प्रकोप से बचने के लिए हर आदमी लॉक डाउन के समय अपने घर में रहने के लिए विवश है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार

टिप्पणियाँ

  • जॉर्ज बर्नार्ड शॉ : आपका जन्म 26 जुलाई, 1856 को आयलैंड में हुआ। आपको साहित्य का नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ है। शॉ महान नाटककार, कुशल राजनीतिज्ञ तथा समीक्षक रह चुके हैं। पिग्मॅलियन, डॉक्टर्स डायलेमा, मॅन ऐंड सुपरमॅन, सीझर ऐंड क्लिओपॅट्रा आपके प्रसिद्ध नाटक हैं।
  • तीर्थंकर : जैन धर्मियों के 24 उपास्य मुनि।
  • सुकरात (सॉक्रेटिस) : युनानी दार्शनिक सुकरात का जन्म ढाई हजार वर्ष पहले एथेन्स में हुआ। वे युवकों से संवाद स्थापित कर उन्हें सोचने की दिशा में प्रवृत्त करते थे। आप प्रसिद्ध विचारक प्लेटो के गुरु थे।
  • दयानंद : आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती समाजसुधारक के रूप में जाने जाते हैं। आपको योगशास्त्र तथा वैद्यकशास्त्र का भी ज्ञान था।
  • ब्रह्मास्त्र : पुराणों के अनुसार एक प्रकार का अस्त्र जो मंत्र द्वारा चलाया जाता था।

पाप के चार हथियार शब्दार्थ

  • खूबियों का पुंज = विशेषताओं का गुच्छा
  • पीड़क = पीड़ा पहुँचाने वाला
  • एकांगी = एक पक्षीय
  • पैने = तीखे/धारदार
  • बखान = वर्णन
  • लोकोत्तर = सामान्य लोगों से ऊपर/विशिष्ट
  • अजेय = जिसे जीता न जा सके
  • अंबार = ढेर
  • विडंबना = उपहास
  • प्रलाप = निरर्थक बात, बकवास
  • शहादत = बलिदान
  • उपसंहार = सार, निष्कर्ष
  • फलितार्थ = सारांश/निचोड़/तात्पर्य
  • खंडित = भग्न, टूटा हुआ

पाप के चार हथियार मुहावरे

  • ढाँचा डगमगा उठना = आधार हिल उठना
  • लहर को ऊपर से उतार देना = सिर झुकाकर संकट को गुजरने देना
  • गले के नीचे उतरना = स्वीकार होना
  • विवश होना = लाचार होना

(टिप्पणियाँ)

  • जॉर्ज बर्नार्ड शॉ : आपका जन्म २६ जुलाई १८५६ को आयर्लंड में हुआ। आपको साहित्य का नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ है। शॉ महान नाटककार, कुशल राजनीतिज्ञ तथा समीक्षक रह चुके हैं। पिग्मैलियन, डॉक्टर्स डाइलेमा, मॅन एंड सुपरमैन, सीझर अँड क्लियोपैट्रा आपके प्रसिद्ध नाटक हैं।
  • तीर्थंकर : जैन धर्मियों के २४ उपास्य मुनि।
  • सुकरात (सॉक्रेटिस) : यूनानी दार्शनिक सुकरात का जन्म ढाई हजार वर्ष पहले एथेन्स में हुआ। युवकों से संवाद स्थापित कर उन्हें सोचने की दिशा में प्रवृत्त करते थे। आप प्रसिद्ध विचारक प्लेटो के गुरु थे।
  • दयानंद : आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती समाजसुधारक के रूप में जाने जाते हैं। आपको योगशास्त्र तथा वैद्यकशास्त्र का भी ज्ञान था। Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 6 पाप के चार हथियार
  • ब्रह्मास्त्र : पुराणों के अनुसार एक प्रकार का अमोध अस्त्र जो मंत्र द्वारा चलाया जाता था।

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Class 12 Hindi Chapter 5.2 Vrind Ke Dohe Question Answer Maharashtra Board

Std 12 Hindi Chapter 5.2 Vrind Ke Dohe Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 5.2 वृंद के दोहे Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 5.2 वृंद के दोहे Questions And Answers

12th Hindi Guide Chapter 5.2 वृंद के दोहे Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.
(अ) कारण लिखिए :
(a) सरस्वती के भंडार को अपूर्व कहा गया है :- ………………………………………..
(b) व्यापार में दूसरी बार छल-कपट करना असंभव होता है :- ………………………………………..
उत्तर :
(a) सरस्वती के भंडार को जैसे-जैसे खर्च किया जाता रहता है, वैसे-वैसे वह अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचता रहता है अर्थात उसमें वृद्धि होती रहती है। इसलिए सरस्वती के भंडार को अपूर्व कहा गया है।
(b) व्यापार में पहली बार किया गया छल-कपट सामने वाले पक्ष को समझते देर नहीं लगती। दूसरी बार वह सतर्क हो जाता है। इसलिए व्यापार में दूसरी बार छल-कपट करना असंभव होता है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 वृंद के दोहे

(आ) सहसंबंध जोड़िए :
(a) काग निबौरी लेत गुन बिन बड़पन कोइ – (b) ऊँचे बैठे ना लहैं,
(b) कोकिल अंबहि लेत है। – (b) बैठो देवल सिखर पर, वायस गरुड़ न होइ।
उत्तर :
(a) ऊँचे बैठे ना लहैं, गुन बिन बड़पन कोइ। – (b) बैठो देवल सिखर पर वायस गरुड़ न होइ।।
(b) कोकिल अंबहि लेत है, – (b) काग निबौरी लेत।

शब्दसंपदा

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के लिए विलोम शब्द लिखिए :
(१) आदर – ………………………………………..
(२) अस्त – ………………………………………..
(३) कपूत – ………………………………………..
(४) पतन – ………………………………………..
उत्तर :
(1) आदर x अनादर
(2) अस्त x उदय
(3) कपूत x सपूत
(4) पतन x उत्थान।

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) चादर देखकर पैर फैलाना बुद्धिमानी कहलाती है’, इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
चादर देखकर पैर फैलाने का अर्थ है, जितनी अपनी क्षमता हो उतने में ही काम चलाना। यह अर्थशास्त्र का साधारण नियम है। सामान्य व्यक्तियों से लेकर बड़ी-बड़ी कंपनियाँ भी इस नियम का पालन करती हैं। जो लोग इस नियम के आधार पर अपना कार्य करते हैं, उनके काम सुचारु रूप से चलते हैं।

जो लोग बिना सोचे-विचारे किसी काम की शुरुआत कर देते हैं और अपनी क्षमता का ध्यान नहीं रखते, उनके सामने आगे चलकर आर्थिक संकट उपस्थित हो जाता है। इसके कारण काम ठप हो जाता है। इसलिए समझदारी इसी में है कि अपनी क्षमता का अंदाज लगाकर ही कोई कार्य शुरू किया जाए। इससे कार्य आसानी से पूरा हो जाता है। चादर देखकर पैर फैलाने में ही बुद्धिमानी होती है।

(आ) ‘ज्ञान की पूँजी बढ़ानी चाहिए’, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
ज्ञान मनुष्य की अमूल्य पूँजी है। बचपन से मृत्यु तक मनुष्य विभिन्न स्रोतों से ज्ञान की प्राप्ति करता रहता है। बचपन में उसे अपने माता-पिता, अपने शिक्षकों, गुरुजनों तथा मिलने-जुलने वालों से ज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञान का भंडार अथाह है। कुछ ज्ञान हमें स्वाभाविक रूप से मिल जाता है, पर कुछ के लिए हमें स्वयं प्रयास करना पड़ता है। ज्ञान किसी एक की धरोहर नहीं है। ज्ञान हमारे चारों तरफ बिखरा पड़ा है।

उसे देखने की दृष्टि की जरूरत होती है। संतों, महात्माओं तथा मनीषियों के व्याख्यानों, हितोपदेशों, नीतिकथाओं, बोधकथाओं तथा विभिन्न धर्मों के महान ग्रंथों में ज्ञान का भंडार है। हर मनुष्य अपनी क्षमता और आवश्यकता के अनुसार अपने ज्ञान की पूँजी में वृद्धि करता रहता है। भगवान महावीर, बुद्ध तथा महात्मा गांधी जैसे महापुरुष अपनी ज्ञान की पूँजी तथा अपने कार्यों के बल पर जनसामान्य के पूज्य बन गए हैं। इसलिए मनुष्य को सदा अपने ज्ञान की पूँजी बढ़ाते रहना चाहिए।

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रसास्वादन

प्रश्न 4.
जीवन के अनुभवों और वास्तविकता से परिचित कराने वाले वृंद जी के दोहों का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
कवि वृंद ने अपने लोकप्रिय छंद दोहों के माध्यम से सीधे-सादे ढंग से जीवन के अनुभवों से परिचित कराया है तथा। जीवन का वास्तविक मार्ग दिखाया है।

कवि व्यावहारिक ज्ञान देते हुए कहते हैं कि मनुष्य को अपनी आर्थिक क्षमता को ध्यान में रखकर किसी काम की शुरुआत करनी चाहिए। तभी सफलता मिल सकती है। इसी तरह व्यापार करने वालों को सचेत करते हुए उन्होंने कहा है कि वे व्यापार में छल-कपट का सहारा न लें। इससे वे अपना ही नुकसान करेंगे। वे कहते हैं कि।

किसी का सहारा मिलने के भरोसे मनुष्य को हाथ पर हाथ धरकर निष्क्रिय नहीं बैठ जाना चाहिए। मनुष्य को अपना काम तो करते ही रहना चाहिए। इसी तरह से वे कुटिल व्यक्तियों के मुँह न लगने की उपयोगी सलाह देते हैं, वह उस समय आपको कुछ ऐसा भला-बुरा सुना सकता है, जो आपको प्रिय न लगे।

अपने आप को बड़ा बताने से कोई बड़ा नहीं हो जाता। जिसमें बड़प्पन के गुण होते हैं उसी को लोग बड़ा मनुष्य मानते हैं। गुणों के बारे में उनका कहना है कि जिसके अंदर जैसा गुण होता है, उसे वैसा ही लाभ मिलता है। कोयल को मधुर आम मिलता है और कौवे को कड़वी निबौली। बिना सोचे विचार किया गया कोई काम अपने लिए ही नुकसानदेह होता है। वे कहते हैं कि बच्चे के अच्छे-बुरे होने के लक्षण पालने में ही दिखाई दे जाते हैं, ठीक उसी तरह जैसे किसी पौधे के पत्तों को देखकर उसकी प्रगति का पता चल जाता है।

कवि एक अनूठी बात बताते हुए कहते हैं कि संसार की किसी भी चीज को खर्च करने पर उसमें कमी आती है, पर ज्ञान एक ऐसी चीज है, जिसके भंडार को जितना खर्च किया जाए वह उतना ही बढ़ता जाता है। उसकी एक विशेषता यह भी है कि यदि उसे खर्च न किया जाए तो वह नष्ट होता जाता है।

कवि ने विविध प्रतीकों की उपमाओं के द्वारा अपनी बात को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है। दोहों का प्रसाद गुण उनकी बात को स्पष्ट करने में सहायक होता है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
(अ) वृंद जी की प्रमुख रचनाएँ – ………………………………………..
उत्तर :
वृंद जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं : वृंद सतसई, समेत शिखर छंद, भाव पंचाशिका, पवन पचीसी, हितोपदेश, यमक सतसई, वचनिका तथा सत्यस्वरूप आदि।

(आ) दोहा छंद की विशेषता – ………………………………………..
उत्तर :
दोहा अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसके चार चरण होते हैं। दोहे के प्रथम और तृतीय (विषम) चरण में 13 – 13 मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय और चतुर्थ (सम) चरणों में 11 – 11 मात्राएँ होती हैं। दोहे के प्रत्येक चरण के अंत में लघु वर्ण आता है।
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अलंकार

जिस प्रकार स्वर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढ़ती है उसी प्रकार जिन साधनों से काव्य की सुंदरता में वृद्धि होती है; वहाँ अलंकार की उत्पत्ति होती है।

मुख्य रूप से अलंकार के तीन भेद हैं –

  • शब्दालंकार,
  • अर्थालंकार,
  • उभयालंकार

ग्यारहवीं कक्षा की युवकभारती पाठ्यपुस्तक में हमने ‘शब्दालंकार’ का अध्ययन किया है। यहाँ हम अर्थालंकार का अध्ययन करेंगे।

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रूपक : जहाँ प्रस्तुत अथवा उपमेय पर उपमान अर्थात अप्रस्तुत का आरोप होता है अथवा उपमेय या उपमान को एकरूप मान लिया जाता है; वहाँ रूपक अलंकार होता है अर्थात एक वस्तु के साथ दूसरी वस्तु को इस प्रकार रखना कि दोनों अभिन्न मालूम हों, दोनों में अंतर दिखाई न पड़े।

उदा. –
(१) उधो, मेरा हृदयतल था एक उद्यान न्यारा।
शोभा देतीं अमित उसमें कल्पना-क्यारियाँ भी।।
(२) पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
(३) चरण-सरोज पखारन लागा।
(४) सिंधु-सेज पर धरा-वधू।
अब तनिक संकुचित बैठी-सी।।

उपमा : जहाँ पर किसी एक वस्तु की तुलना दूसरी लोक प्रसिद्ध वस्तु से रूप, रंग, गुण, धर्म या आकार के आधार पर की जाती हो; वहाँ उपमा अलंकार होता है अर्थात जहाँ उपमेय की तुलना उपमान से की जाए; वहाँ उपमा अलंकार उत्पन्न होता है।
उदा. –
(१) चरण-कमल-सम कोमल।
(२) राधा-वदन चंद सो सुंदर।
(३) जियु बिनु देह, नदी बिनु वारी।
तैसे हि अनाथ, पुरुष बिनु नारी।।
(४) ऊँची-नीची सड़क, बुढ़िया के कूबड़-सी।
नंदनवन-सी फूल उठी, छोटी-सी कुटिया मेरी।
(५) मोती की लड़ियों से सुंदर, झरते हैं झाग भरे निर्झर।
(६) पीपर पात सरस मन डोला।

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Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 5.2 वृंद के दोहे Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (अ) तथा प्रश्न 2 (आ) के लिए।
पद्यांश क्र.1
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांशपढ़करदी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए :
(1) आँखों की तुलना की गई है इससे – ……………………………………
(2) काम शुरू करने से पहले इसके बारे में सोचना बहुत जरूरी होता है – ……………………………………
(3) दूसरे की आशा के भरोसे यह बंद नहीं करना चाहिए – ……………………………………
(4) पद्यांश में प्रयुक्त पानी रखने के काम आने वाला मिट्टी का बरतन – ……………………………………
उत्तर :
(1) आरसी (आईने) से।
(2) अपनी पहुँच (क्षमता)।
(3) कोशिश करना।
(4) गगरी।

प्रश्न 2.
पद्यांश में प्रयुक्त दो कहावतें :
(1) …………………………………………….
(2) …………………………………………….
उत्तर :
(1) तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर। (अर्थ : जितना सामर्थ्य हो उतना ही खर्च करना चाहिए।)
(2) काठ की हँड़िया बार-बार नही चढ़ती। (अर्थ : धोखा बार-बार नहीं दिया जा सकता।)

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों को शुद्ध रूप में लिखिए :
(1) सुरसति – ……………………………….
(2) अपूरब – ……………………………….
(3) गुन – ……………………………….
(4) सिखर – ……………………………….
उत्तर :
(1) सुरसति – सरस्वती
(2) अपूरब – अपूर्व
(3) गुन – गुण
(4) सिखर – शिखर।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के लिंग पहचानकर लिखिए :
(1) आरसी – ……………………………….
(2) सौर – ……………………………….
(3) काठ – ……………………………….
(4) वायस – ……………………………….
उत्तर :
(1) आरसी – स्त्रीलिंग
(2) सौर – स्त्रीलिंग
(3) काठ – पुल्लिंग
(4) वायस – पुल्लिंग।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :
(1) बढ़ना x ……………………………….
(2) कपट x ……………………………….
(3) गन x ……………………………….
(4) आशा x ……………………………….
उत्तर :
(1) बढ़ना x घटना
(2) कपट x निष्कपट
(3) गुन x अवगुन
(4) आशा x निराशा।

पद्यांश क्र.2
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कारण लिखिए :
(1) नीच को छेड़ना नहीं चाहिए – ………………………………………………
(2) उच्च पद पर आसीन का पतन निश्चित है – ………………………………………………
उत्तर :
(1) नीच को छेड़ना नहीं चाहिए – क्योंकि नीच को छेड़ना कीचड़ है में पत्थर डालने के समान है, जिससे कीचड़ उछलकर अपने ऊपर ही आता है।
(2) उच्च पद पर आसीन का पतन निश्चित है – कोई कितने ही उच्च पद पर क्यों न हो, किसी न किसी दिन किसी कारण से अथवा सेवा निवृत्त होने पर उसे अपने पद से नीचे उतरना ही पड़ता है।

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प्रश्न 2.
सहसंबंध जोड़िए:
(1) होनहार बिरवान के, (1) काग निबौरी लेत।
(2) अपनी पहुँच बिचारि कै, करतब करिए दौर। (2) बैठो देवल सिखर पर वायस गरुड़ न होइ।।
उत्तर :
(1) होनहार बिरवान के, (1) होत चीकने पात।
(1) अपनी पहुँच बिचारि कै, करतब करिए दौर। (2) तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर।।

प्रश्न 3.
उत्तर लिखिए :
(1) सूर्य इस समय तपता है – ………………………………………………
(2) नबौरियों का आदर करने वाला – ………………………………………………
(3) यह कार्य अपने लिए हानिकारक होता है – ………………………………………………
(4) चिकने पात इनके होते हैं – ………………………………………………
उत्तर :
(1) मध्याह्न में।
(2) काग।
(3) अविवेक के साथ किया गया कार्य।
(4) होनहार पौधों के।

प्रश्न 4.
लिखिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 वृंद के दोहे 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 वृंद के दोहे 3

कृति 2 : (शब्द संपदा)

(2) निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) पाथर (पत्थर) = ………………………………………………
(2) भान (भानु) = ………………………………………………
(3) कोकिल = ………………………………………………
(4) मात = ………………………………………………
उत्तर :
(1) पाथर (पत्थर) = पाषाण
(2) भान (भानु) = सूर्य
(3) कोकिल = कोयल
(4) मात = शरीर।

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रसास्वादन मुद्दों के आधार पर
(कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (इ) के लिए

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर वृंद के दोहे’ का रसास्वादन कीजिए :
उत्तर :
(1) रचना का शीर्षक : वृंद के दोहे।
(2) रचनाकार : वृंद। (पूरा नाम : वृंदावनदास)
(3) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तूत दोहों में कई नीतिपरक बातों की सीख दी गई है। इस तरह कविता की केंद्रीय कल्पना नीतिपरक बातें हैं।
(4) रस-अलंकार :

(5) प्रतीक विधान : कवि वृंद के दोहों मे समझाने के लिए कई प्रतीकों का सुंदर उपयोग किया है। कविता में प्रयुक्त इन प्रतीकों में नयना, सौर (चादर), काठ की हाँड़ी, वायस, गरुड़, गागरि, पाथर, कोकिल, अंबा, निबौली, कुल्हाड़ी तथा बिरवान आदि प्रतीकों का समावेश है।

(6) कल्पना : अनेक नीति-परक उपयोगी बातें दोहों का विषय।

(7) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
सुरसति के भंडार की, बड़ी अपूरब बात।
ज्यौं खरचै त्यौं-त्यौं बढ़े, बिन खरचे घटि जात।
इन पंक्तियों से ज्ञान के भंडार की विपुलता तथा उसके विशेष गुण की महत्ता की जानकारी होती है।

(8) कविता पसंद आने का कारण : संसार में कोई वस्तु ऐसी नहीं है, जो किसी को देने से कम न होती हो। लेकिन ज्ञान का भंडार निराला है। इस ज्ञान को जितना खर्च किया जाए, उतना ही अधिक बढ़ता है। इतना ही नहीं, यदि इसे दूसरों को न दिया जाए और अपने ही पास जमा करके रहने दिया जाए, तो यह नष्ट हो जाता है।

व्याकरण

अलंकार :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर उनके नाम लिखिए :

(1) जान पड़ता है नेत्र देख बड़े-बड़े
हीरकों में गोल नीलम है जड़े

(2) करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात से, सिल पर पड़त निसान।

(3) पत्रा ही तिरर्थ पाइयो, वाँ घर के चहुँ पास।
नितप्रति पूनो ही रह्यो आनन ओप उजास।

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(4) ओ अकूल की उज्जवल हास।
अरी अतल की पुलकित श्वास।
महानंद की मधुर उमंग।
चिर शाश्वत की अस्थिर लास।

(5) सठ सुधरहि सत संगति पाई।
पारस परसि कुधातु सुहाई।
उत्तर :
(1) उत्प्रेक्षा अलंकार
(2) दृष्टांत अलंकार
(3) अतिशयोक्ति अलंकार
(4) रूपक अलंकार
(5) दृष्टांत अलंकार।

रस

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त रस पहचानकर लिखिए :
(1) कहा कैकेयी ने सक्रोध
दूर हट! दूर हट! निर्बोध!
द्विजिव्हे रस में विष मत घोल।

(2) कबहूँ ससि माँगत आरि करें, कबहूँ प्रतिबिंब निहारि डरै।
कबहूँ करताल बजाइ कै नाचत, मातु सबै मन मोद मरे।।
कबहूँ रिसिआइ कहैं हठि कै, पुनि लेत सोई जेहि लागि रैं।
अवेधेस के बालक, चारि सदा, तुलसी मन मंदिर में बिहरै।।

(3) दूलह श्री रघुनाथ बने, दुलही सिय सुंदर मंदिर माहीं।
गावति गीत सबै मिलि सुंदर, वेद जुवा जुरि विप्र पढ़ाहीं।
राम को रूप निहारति जानकी, कंकन के नग की परछाहीं।
यातै सबै सुधि भूल गई कर टेकि रही पल, टारति नाहीं।। (तुलसीदास-कवितावली)

(4) मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
साधुन संग बैठि-बैठि, लोक लाज खोई।
अब तो बात फैलि गई जानत सब कोई।
अँसुवन जल सींचिं-सींचि प्रेम बेलि बोई।
मीरा को लगन लागी होनी होइ सो होई।

(5) लीन्हौं उखारि पहार विसाल, चल्यो तेहि काल बिलंब न लायो।
मारुत नंदन मारुत को, मन को, खगराज को वेग लजायो।
तीखी तुरा तुलसी कहती पै हिए उपमा को समाउ न आयौ।
मानो प्रत्यच्छ परब्बत की नभ लीक लसी कपि यों धुकि धायौ।
उत्तर :
(1) रौद्र रस
(2) वात्सल्य रस
(3) शृंगार रस
(4) भक्ति रस
(5) अद्भुत रस।

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मुहावरे

निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :

(1) ओखली में सिर देना।
अर्थ : जानबूझ कर जोखिम उठाना।
वाक्य : आदिवासियों का वह नेता अपने भाइयों के हित की लड़ाई लड़ने के लिए ओखली में सिर देने के लिए हमेशा तैयार रहता था।

(2) डूबती नैया पार लगाना।
अर्थ : कष्टों से छुटकारा देना।
वाक्य : सेठ जी ने अपने कर्मचारी को कर्ज से छुटकारा दिलाकर उसकी डूबती नैया पार करा दी

(3) तलवे चाटना।
अर्थ : खुशामद करना।
वाक्य : अपना काम करवाने के लिए बड़े-बड़े लोगों को भी अधिकारियों के तलवे चाटने पड़ते हैं

(4) पेट काटना।
अर्थ : भूखा रहना।
वाक्य : रमेश को अपनी सीमित आय में अपने दोनों बच्चों को पेट काटकर पढ़ाना पड़ा था

(5) हाथ खींचना।
अर्थ : साथ न देना।
वाक्य : बेटे के हाथ खींच लेने के बाद रघु को गृहस्थी चलाना भारी पड़ रहा है।

काल परिवर्तन

प्रश्न 1.
सूचना के अनुसार काल परिवर्तन कर वाक्य फिर से लिखिए :
(1) होनहार पौधों के पत्ते चिकने होते हैं। (सामान्य भविष्यकाल)
(2) कोयल आम का स्वाद लेती है। (अपूर्ण भूतकाल)
(3) आईना भला-बुरा बता देता है। (पूर्ण वर्तमानकाल)
(4) काठ की हाँडी दुबारा नहीं चढ़ेगी। (सामान्य वर्तमानकाल)
(5) मंदिर के शिखर पर कौआ बैठा है। (पूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
(1) होनहार पौधों के पत्ते चिकने होंगे
(2) कोयल आम का स्वाद ले रही थी
(3) आईने ने भला-बुरा बता दिया है
(4) काठ की हाँडी दुबारा नहीं चढ़ती
(5) मंदिर के शिखर पर कौआ बैठा था

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वाक्य शुद्धिकरण

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए :
(1) मैं मेरा काम दूसरे से करवाता है।
(2) सारे विद्यालय के विद्यार्थी पढ़ने में तेज है।
(3) पशु का झुंड देखकर मैं डर गए।
(4) वह अपनी पाँव पर खुद कुल्हाड़ी मारता हैं।
(5) मध्याह्न के सूर्य तपते है।
उत्तर :
(1) मैं अपना काम दूसरे से करवाता हूँ।
(2) विद्यालय के सारे विद्यार्थी पढ़ने में तेज हैं
(3) पशुओं का झुंड देखकर मैं डर गया
(4) वह अपने पाँव पर खुद कुल्हाड़ी मारता है
(5) मध्याह्न का सूर्य तपता है।

वृंद के दोहे Summary in Hindi

वृंद के दोहे कवि का परिचय

वृंद के दोहे कवि का नाम : वृंद। पूरा नाम : वृंदावनदास। (जन्म 1643; निधन 1723.)

वृंद के दोहे प्रमुख कृतियाँ : वृंद सतसई, समेत शिखर छंद, भाव पंचाशिका, पवन पचीसी, हितोपदेश संधि, यमक सतसई, वचनिका, सत्यस्वरूप, बारहमासा आदि।

वृंद के दोहे विशेषता : रीतिकालीन परंपरा के अंतर्गत आपका नाम आदर के साथ लिया जाता है। आपकी रचनाएँ रीतिबद्ध परंपरा में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। आपने काव्य के विविध प्रकारों में रचनाएँ रची हैं। आपके नीतिपरक दोहे जनसाधारण में बहुत प्रसिद्ध हैं। विधा दोहा छंद। रीतिकालीन काव्य परंपरा में दोहा छंद का विशेष स्थान रहा है। दोहा अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण के अंत में लघुवर्ण आता है। इसके चार चरण होते हैं, प्रथम और तृतीय चरण में 13 – 13 मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11 – 11 मात्राएँ होती हैं।

वृंद के दोहे विषय प्रवेश : कवि वृंद अपने दोहों के माध्यम से अपनी सरल-सुबोध भाषा में अत्यंत उपयोगी एवं व्यावहारिक बातों से परिचित करते हैं। प्रस्तुत दोहों में उन्होंने विद्या की विशेषता, आँखों की पहचानने की शक्ति, अपनी क्षमता के अनुरूप काम करने, व्यापार करने के सही ढंग, गुण के अनुसार आदर पाने, नीच को न छेड़ने तथा पालने में ही बच्चे के लक्षण दिख जाने आदि नीतिपरक बातें बताई हैं।

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वृंद के दोहे दोहों का सरल अर्थ

  1. कवि वृंद कहते हैं कि माँ सरस्वती के ज्ञान की बात बहुत अनूठी और अपूर्व है। इस ज्ञान के भंडार को जितना खर्च किया जाए अर्थात जितना बाँटा जाए उतना ही बढ़ता है। यदि ज्ञान को बाँटा न जाए, तो इसमें कमी आती जाती है। कवि वृंद कहते हैं कि आँखें हित और अहित की सारी बातें उसी तरह बता देती हैं, जैसे निर्मल आईने से अच्छी और बुरी दोनों तरह की बातों का पता चल जाता है।
  2. कवि कहते हैं कि हमारी जितनी क्षमता हो, उसी के अनुसार हमें अपने कार्य का फैलाव करना चाहिए। कवि उदाहरण देते हुए कहते हैं कि हमारी चादर की लंबाई जितनी हो, हमें उतने ही पाँव फैलाने चाहिए। यदि हम ऐसा नहीं करते, तो हम अपना कार्य पूरा नहीं कर सकते।
  3. कवि कहते हैं कि व्यापार यानी लेन-देन में हमें छल-कपट का सहारा नहीं लेना चाहिए। यदि हम एक बार छल-कपट से काम लेते हैं, तो दूसरी बार हम व्यापारी अथवा ग्राहक से लेन-देन नहीं कर सकते। कवि काठ की हाँडी का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार काठ की हाँडी एक बार ही आग पर चढ़ाई जा सकती है, दूसरी बार वह काम में नहीं आ सकती, उसी प्रकार छल-कपट से व्यापार में एक ही बार किसी को धोखा दिया जा सकता है, दूसरी बार यह तरीका काम में नहीं लाया जा सकता।
  4. कवि कहते हैं कि बिना गुण के किसी व्यक्ति को उच्च स्थान पर बैठने मात्र से बड़प्पन नहीं मिलता। वे कहते हैं कि जिस प्रकार मंदिर के ऊँचे शिखर पर बैठने मात्र से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता, उसी प्रकार गुणों से रहित कोई व्यक्ति बड़प्पन का अधिकारी नहीं हो सकता।
  5. कवि कहते हैं कि मनुष्य को किसी के सहारे की आशा में खुद प्रयत्न करना छोड़ नहीं देना चाहिए। क्या बादल घिर जाने पर उससे मिलने वाले विपुल जल की उम्मीद में कोई पानी रखने का अपना जलपात्र यानी गगरी फोड़कर फेंक देता है?
  6. कवि कहते हैं कि नीच अर्थात बुरे आदमी को कभी कुछ (बुरा भला) कहकर छेड़ना नहीं चाहिए। क्योंकि जैसे कीचड़ में पत्थर फेंकने पर कीचड़ की गंदगी अपने ही ऊपर आती है, उसी तरह बुरे आदमी को कही गई बातों के बदले उसके द्वारा कहे गए अपशब्द हमें सुनने पड़ते हैं।
  7. जिस व्यक्ति को उच्च पद प्राप्त होता है, उसका भी एक-नएक दिन पतन होना निश्चित है। जिस प्रकार मध्याह्न का सूर्य उस समय बहुत तपता है, पर उसे भी एक समय अस्त हो जाना पड़ता है।
  8. जिस व्यक्ति को जिस चीज के गुणों के बारे में जानकारी होती है वह उसे ही सम्मान देता है। जैसे कोयल आम का स्वाद लेती है और कौआ निबौरियाँ ही खाता है। Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.2 वृंद के दोहे
  9. कवि कहते हैं कि अविवेक के साथ किया गया कार्य स्वयं के लिए हानिकारक सिद्ध होता है। ठीक उसी तरह जैसे कोई मूर्ख अपनी अविवेकता से कोई कार्य कर अपने पाँव पर अपने हाथ से कुल्हाड़ी मार लेता है।
  10. कवि कहते हैं कि पालने में बच्चे के शरीर के लक्षण देखकर उसके अच्छे-बुरे होने का पता चल जाता है। जैसे किसी पौधे के चिकने और स्वस्थ पत्ते देखकर उसके होनहार होने के लक्षण दिखाई देते हैं।

वृंद के दोहे शब्दार्थ

  • सरसुति = सरस्वती, विद्या की देवी
  • सौर = चादर
  • लहैं = लेना
  • उद्यम = प्रयत्न
  • पाथर = पत्थर
  • अंबहि = आम
  • करतब = कार्य
  • काठ = लकड़ी
  • वायस = कौआ
  • पयोद = बादल
  • तिहि = उसे
  • निबौरी = नीम का फल

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Maharashtra Board

Class 12 Hindi Chapter 5.1 Gurubani Question Answer Maharashtra Board

Std 12 Hindi Chapter 5.1 Gurubani Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 5.1 गुरुबानी Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 5.1 गुरुबानी Questions And Answers

12th Hindi Guide Chapter 5.1 गुरुबानी Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.
(अ) संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 5

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

(आ) कृति पूर्ण कीजिए :
(a) आकाश के दीप
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 12

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
लिखिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 3
उत्तर:
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 15

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) ‘गुरु बिन ज्ञान न होई उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार के ज्ञान की आवश्यकता होती है। यह ज्ञान हमें किसी-नकिसी व्यक्ति से मिलता है। जिस व्यक्ति से हमें यह ज्ञान मिलता है, वही हमारे लिए गुरु होता है। बचपन में बच्चे का पालन-पोषण कर उसे बड़ा करके बोलने-चालने और बोली-भाषा सिखाने का काम माता करती है। उस समय वह बच्चे की गुरु होती है। बड़े होने पर बच्चे को विद्यालय में शिक्षकों से ज्ञान प्राप्त होता है।

पढ़-लिखकर। जीवन में पदार्पण करने पर हर व्यक्ति को किसी-न-किसी से अपने काम-काज करने का ढंग सीखना पड़ता है। इस तरह के लोग हमारे लिए गुरु के समान होते हैं। मनुष्य गुरुओं से ही सीखकर विभिन्न कलाओं में पारंगत होता है। बड़े-बड़े विद्वान, विचारक, राजनेता,। समाजशास्त्री, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री अपने-अपने गुरुओं से ज्ञान। प्राप्त करके ही महान हुए हैं। अच्छी शिक्षा देने वाला गुरु होता है। गुरु की महिमा अपरंपार है।

गुरु ही हमें गलत या सही में भेद करना सिखाते हैं। वे अपने मार्ग से भटके हुए लोगों को सही मार्ग दिखाते हैं। यह सच है कि गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

(आ) ‘ईश्वर भक्ति में नामस्मरण का महत्त्व होता है’, इस विषय पर अपना मंतव्य लिखिए।
उत्तर :
ईश्वरभक्ति के अनेक मार्ग बताए गए हैं। उनमें सबसे सरल मार्ग ईश्वर का नाम स्मरण करना है। नाम स्मरण करने का कोई नियम नहीं है। भक्त जहाँ भी हो, चाहे जिस हालत में हो, ईश्वर का नाम स्मरण कर सकता है। अधिकांश लोग ईश्वर भक्ति का यही मार्ग अपनाते हैं।

उठते-बैठते, आते-जाते तथा काम करते हुए नाम स्मरण किया जा सकता है। भजन-कीर्तन भी ईश्वर के नाम स्मरण का ही एक रूप है। ईश्वर भक्ति के इस मार्ग में प्रभु के गुणों का वर्णन किया जाता है। इसमें धार्मिक पूजा-स्थलों में जाने की जरूरत नहीं होती।

गृहस्थ अपने घर में ईश्वर का नाम स्मरण कर उनके गुणों का बखान कर सकता है। इससे नाम स्मरण करने वालों को मानसिक शांति मिलती हैं और मन प्रसन्न होता है। कहा गया है – ‘कलियुग केवल नाम अधारा, सुमिरि-सुमिर नर उतरें पारा।’ इसमें ईश्वर भक्ति में नाम स्मरण का ही महत्त्व बताया गया है।

रसास्वादन

प्रश्न 4.
‘गुरुनिष्ठा और भक्तिभाव से ही मानव श्रेष्ठ बनता है’ इस कथन के आधार पर कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
गुरु नानक का कहना है कि बिना गुरु के मनुष्य को ज्ञान नहीं मिलता। मनुष्य के अंतःकरण में अनेक प्रकार के मनोविकार होते हैं, जिनके वशीभूत होने के कारण उसे वास्तविकता के दर्शन नहीं होते। वह अहंकार में डूबा रहता है और उसमें गलत-सही का विवेक नहीं रह जाता।

ये मनोविकार दूर होता है गुरु से ज्ञान प्राप्त होने पर। यदि गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा और उनमें पूरा विश्वास हो तो मनुष्य के अंतःकरण के इन विकारों को दूर होने में समय नहीं लगता। मन के विकार दूर हो जाने पर मनुष्य में सबको समान दृष्टि से देखने की भावना उत्पन्न हो जाती है।

उसके लिए कोई बड़ा या छोटा अथवा ऊँच-नीच नहीं रह जाता। उसे मनुष्य में ईश्वर के दर्शन होने लगते हैं। उसके लिए ईश्वर की भक्ति भी सुगम हो जाती है। गुरु नानक ने अपने पदों में इस बात को सरल ढंग से कहा है। … इस तरह गुरु के प्रति सच्ची निष्ठा और भक्ति-भावना से मनुष्य श्रेष्ठ मानव बन जाता है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
(अ) गुरु नानक जी की रचनाओं के नाम :
…………………………………………………………
उत्तर :
गुरुग्रंथसाहिब आदि।

(आ) गुरु नानक जी की भाषाशैली की विशेषताएं:
…………………………………………………………
…………………………………………………………
उत्तर :
गुरु नानक जी सहज-सरल भाषा में अपनी बात कहने में माहिर हैं। आपकी काव्य भाषा में फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली और अरबी भाषा के शब्द समाए हए हैं। आपने पद शैली में रचना की है। ‘पद’ काव्य रचना की गेय शैली है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्यों में अधोरेखांकित शब्दों का वचन परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :

(1) सत्य का मार्ग सरल है।
उत्तर :
सत्य के मार्ग सरल हैं

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

(2) हथकड़ियाँ लगाकर बादशाह अकबर के दरबार को ले चले।
उत्तर :
हथकड़ी लगाकर बादशाह अकबर के दरबार को ले चले

(3) चप्पे-चप्पे पर काटों की झाड़ियाँ हैं।
उत्तर :
चप्पे-चप्पे पर काँटे की झाड़ी है।

(4) सुकरात के लिए यह जहर का प्याला है।
उत्तर :
सुकरात के लिए ये जहर के प्याले हैं।

(5) रूढ़ि स्थिर है, परंपरा निरंतर गतिशील है।
उत्तर :
रूढ़ियाँ स्थिर हैं, परंपराएँ निरंतर गतिशील हैं।

(6) उनकी समस्त खूबियों-खामियों के साथ स्वीकार कर अपना लें।
उत्तर :
उनकी समस्त खूबी-कमी के साथ स्वीकार कर अपना लें।

(7) वे तो रुपये सहेजने में व्यस्त थे।
उत्तर :
वह तो रुपया सहेजने में व्यस्त था।

(8) ओजोन विघटन के खतरे क्या-क्या हैं?
उत्तर :
ओजोन विघटन का खतरा क्या है?

(9) शब्द में अर्थ छिपा होता है
उत्तर :
शब्दों में अर्थ छिपे होते हैं।

(10) अभी से उसे ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए।
उत्तर :
अभी से उसे ऐसे कोई कदम नहीं उठाने चाहिए।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 5.1 गुरुबानी Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (अ) तथा प्रश्न 2 (आ) के लिए)
पदयाश क्र. 1
प्रश्न. निम्नलिखितपद्यांशपढ़करदी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए : गुरु को महत्त्व न देने वाले ऐसे होते हैं –
(1) ……………………………………..
(2) ……………………………………..
(3) ……………………………………..
(4) ……………………………………..
उत्तर :
(1) व्यर्थ ही उगने वाले तिल की झाड़ियों के समान।
(2) केवल ऊपर से फलते-फूलते दिखाई देते हैं।
(3) उनके अंदर गंदगी और मैल भरा होता है।
(4) लोग उनसे किनारा कर लेते हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :
(1) मन के लिए यह कहा गया है – ……………………………………..
(2) संसार में ऐसे लोग विरले होते हैं – ……………………………………..
(3) साधक को अपना ध्यान इसमें लगाना है – ……………………………………..
(4) प्रभु के दर्शन के लिए आवश्यक है – ……………………………………..
उत्तर :
(1) दिन-रात भगवान के गुणों का स्मरण करना।
(2) जो एक क्षण भी भगवान का नाम नहीं भूलते।
(3) भगवान में।
(4) साधक को अहंभाव का त्याग करना।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) तन = …………………………….
(2) मसि = …………………………….
(3) मति = …………………………….
(4) विरले = …………………………….
उत्तर :
(1) (1) तन = शरीर।
(2) मसि = स्याही।
(3) मति = बुद्धि।
(4) बिसरे = भूले।

पद्यांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए :
(a)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 6
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 10

(b)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 7
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 11

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

(2) संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 9
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 13

रसास्वादन। मुद्दों के आधार पर
कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (इ) के लिए

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर दोहो-पदों का रसास्वादन कीजिए:
उत्तर :
(1) रचना का शीर्षक : गुरुवाणी।
(2) रचनाकार : गुरु नानक
(3) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत दोहों-पदों में गुरु के .. महत्त्व, ईश्वर की महिमा तथा प्रभु का नाम स्मरण करने से ईश्वर प्राप्ति की बात कही गई है।

(4) रस-अलंकार :
गगन में थाल, रवि-चंद्र दीपक बने।
तारका मंडल जनक मोती।
धूप मलयानिल, पवनु चैवरो करे।
सकल वनराइ कुलंत जोति।।

यहाँ कहा गया है कि गगन ही थाल है; सूर्य-चंद्रमा ही दीपक हैं; तारका मंडल ही मोती है; मलयानिल ही धूप-गंध है; जंगल की समस्त वनस्पतियाँ फूल हैं। इसलिए रूपक अलंकार है।

(5) प्रतीक विधान : प्रस्तुत कविता में कवि ने गुरु का चिंतन न करने वालों तथा अपने आप को ही ज्ञानी समझने वालों को बिना संरक्षक वाले व्यक्ति कहा गया है। इसके लिए कवि ने निर्जन स्थान पर उगी हुई तिल्ली के पौधे का प्रतीक के रूप में उपयोग किया है।

(6) कल्पना : जीवन में गुरु का महत्त्व, कर्म की महानता तथा प्रभु के नाम का स्मरण ही प्रभु प्राप्ति का मार्ग है।

(7) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
नानक गुरु न चेतनी मनि आपणे सुचेत।
छूते तिल बुआड़ जिऊ सुएं अंदर खेत।
खेते अंदर छुट्टया कहु नानक सऊ नाह।
फली अहि फूली अहि बपुड़े भी तन विच स्वाह।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

इन पंक्तियों में कवि ने गुरु का महत्त्व न समझने और अपने को ज्ञानी मानने वालों को मरुस्थल में पाई जानेवाली तिल्ली की फली में मिलने वाली राख कहा है, जो बहुत ही सटीक है।

(8) कविता पसंद आने का कारण : गुरु नानक ने इन पंक्तियों में यह बताया है कि कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो गुरु को महत्त्व नहीं देते और अपने आप को ही ज्ञानी मान बैठते हैं। गुरु नानक जी ऐसे लोगों की तुलना उस तिल के पौधे से करते हैं, जो किसी निर्जन स्थान पर अपने आप उग आता है और उसको खाद-पानी देने वाला कोई भी नहीं होता। इसलिए उस पौधे का विकास नहीं हो पाता। ऐसे पौधे में फूल भी लगते हैं और फली भी लगती है, पर फली के अंदर दाने नहीं पड़ते, उसमें गंदगी और राख ही होती है। वैसी ही हालत बिना गुरु के मनुष्य की होती है। ऐसे लोगों का मानसिक विकास नहीं हो पाता।

1. अलंकार :

निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर लिखिए :
(1) तरुवर की छायानुवाद सी,
उपमा-सी-भावुकता-सी,
अविदित भावाकुल भाषा-सी,
कटी-छूटी नव कविता-सी।

(2) उदित उदय गिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत सरोज सब हरषे लोचन भंग।

(3) जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सो बीति बहार।
अब अलि रही गुलाब में, अपत कँटीली डार।

(4) छिप्यो छबीली मुँह लसै नीले अंचल चीर।
मनो कलानिधि झलमले, कालिंदी के तीर।

(5) छाले परिबे के डरनि, सकै न हाथ छुवाय।
झिझकत हिये गुलाब के सँवा सँवावत पाय।
उत्तर :
(1) उपमा अलंकार
(2) रूपक अलंकार
(3) अन्योक्ति अलंकार
(4) उत्प्रेक्षा अलंकार
(5) अतिशयोक्ति अलंकार।

2. रस :

निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त रस पहचानकर लिखिए :
(1) भूषन बसन बिलोकत सिय के।
प्रेम-बिबस मन, कंप पुलक तनु
नीरज नयन नीर भरे पिय के।
सकुचत, कहत, सुमिरि उर उमगत
सील, सनेह सुगुन गुन तिय के।

(2) लीन्हों उखारि पहार बिसाल
चल्यौ तेहि काल, बिलंब न लायौ।
मारुत नंदन मारुत को, मन को
खगराज को बेगि लजायो।।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

(3) रामहि बाम समेत पठै बन,
शोक के भार में भुंजौ भरत्थहि।
जो धनु हाथ धरै रघुनाथ तो
आज अनाथ करौं दशरत्थहि।
उत्तर :
(1) शृंगार रस
(2) अद्भुत रस
(3) रौद्र रस।

3. मुहावरे :

निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :

(1) सिर खपाना।
अर्थ : कठिन परिश्रम करना।
वाक्य : कई साल तक सिर खपाने के बाद आखिरकार उस युवक को सी.ए. की डिग्री मिल ही गई।

(2) उगल देना।
अर्थ : भेद बता देना।
वाक्य : पुलिस का डंडा पड़ते ही चोर ने चुराई गई संपत्ति को छिपाकर रखे जाने के स्थान की बात उगल दी।

(3) कब्र में पैर लटकना।
अर्थ : मरने के समीप होना।
वाक्य : कोरोना के प्रसार से अनेक मरीजों के पैर कब्र में लटक गए हैं।

(4) पापड़ बेलना।
अर्थ : कड़ी मेहनत करना।
वाक्य : आज जो लड़का जिलाधीश के पद पर आसीन है, इस पद तक पहुँचने में इसने बहुत पापड़ बेले हैं।

(5) मरने की फुरसत न होना।
अर्थ : कामों में बहुत व्यस्त होना।
वाक्य : मुनीम जी तो अपने काम में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें मरने की भी फुरसत नहीं है।

4. काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों को कोष्ठक में सूचित काल में परिवर्तन कीजिए :
(1) वे सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखते थे। (सामान्य वर्तमानकाल)
(2) दिन रात महान आरती होती है। (अपूर्ण भूतकाल)
(3) अनहद नाद का वाद्य बज रहा है। (सामान्य भविष्यकाल)
(4) श्रद्धा भक्त की सबसे बड़ी भेंट होगी। (पूर्ण भूतकाल)
(5) तुम्हारे अनेक रंग हैं। (भविष्यकाल)
उत्तर :
(1) वे सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखते हैं।
(2) दिन-रात महान आरती हो रही थी।
(3) अनहद नाद का वाद्य बजेगा।
(4) श्रद्धा भक्त की सबसे बड़ी भेंट थी।
(5) तुम्हारे अनेक रंग होंगे।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

5. वाक्य शुद्धिकरण :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके लिखिए :
(1) गुरू के बिना ग्यान नहीं होता।
(2) उसने भगवान की नाम का माला पहन ली है।
(3) सभी जंगल की वनस्पतियाँ फूल चढ़ा रही है।
(4) श्रद्धा ही भक्त का सबसे बड़ा भेट है।
(5) तू दीन-रात भगवान के गुणों का स्मरण कर।
उत्तर :
(1) गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता।
(2) उसने भगवान के नाम की माला पहन ली है।
(3) जंगल की सभी वनस्पतियाँ फूल चढ़ा रही हैं।
(4) श्रद्धा ही भक्त की सबसे बड़ी भेंट है।
(5) तू दिन-रात भगवान के गुणों का स्मरण कर।

गुरुबानी Summary in Hindi

गुरुबानी कवि का परिचय

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी 16
कवि का नाम :
गुरु नानक। (जन्म 15 अप्रैल, 1469; निधन 1539.)

प्रमुख कृतियाँ : गुरुग्रंथसाहिब आदि।

विशेषता : आप सर्वेश्वरवादी हैं और सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखते हैं। आपके भावुक व कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर अनूठी अभिव्यक्ति की है। आप सहज-सरल भाषा द्वारा अपनी बात कहने में सिद्धहस्त हैं।

विधा : दोहे, पद। पदकाव्य रचना की एक गेय शैली है। इसके विकास का मूल स्रोत लोकगीतों की परंपरा रही है। हिंदी साहित्य में ‘पद शैली’ की दो परंपराएँ मिलती हैं – एक संतों की ‘शबद’ और दूसरी ‘कृष्ण भक्तों की परंपरा’।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

विषय प्रवेश : मनुष्य के जीवन को उत्तम और सदाचार से परिपूर्ण बनाने के लिए गुरु का मार्गदर्शन अत्यंत आवश्यक होता है। इसी से शिक्षा प्राप्त कर मनुष्य उत्तम कार्य करता है। प्रस्तुत दोहों और पदों में गुरु नानक ने गुरु की महिमा, कर्म की महानता तथा सच्ची शिक्षा आदि के बारे में अपने अमूल्य विचारों से परिचित कराया है। वे गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान को शिष्य की सबसे बड़ी पूँजी मानते हैं। उन्होंने प्रभु की महिमा का वर्णन करते हुए नाम स्मरण को प्रभु प्राप्ति का मार्ग बताया है और कर्मकांड और बाह्याडंबर का घोर विरोध किया है।

गुरुबानी कविता (पदों) का सरल अर्थ

(1) नानक गुरु न चेतनी …………………………………….. तन बिच स्वाह।

गुरु नानक कहते हैं कि जो लोग गुरु का चिंतन नहीं करते, गुरु से लापरवाही बरतते हैं और अपने आप को ही ज्ञानी समझते हैं, वे व्यर्थ ही उगने वाली तिल की उन झाड़ियों के समान होते हैं, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता। वे ऊपर से फलतीफूलती दिखाई देती है, पर उन फलियों के अंदर गंदगी और मैल भरा होता है। लोग ऐसे लोगों से किनारा कर लेते हैं।

(2) जलि मोह धसि …………………………………….. अंत न पारावार।

गुरु नानक कहते हैं कि मोह को जलाकर और घिसकर स्याही बनाओ। अपनी बुद्धि को श्रेष्ठ कागज समझो। प्रेम-भाव की कलम बनाओ। चित को लेखक समझो और गुरु से पूछकर लिखो – नाम की स्तुति। साथ ही यह सच्चाई भी लिखो कि प्रभु का न कोई आदि है और न कोई अंत।

(3) मन रे अहिनिसि …………………………………….. मेले गरु संजोग।

हे मन! तू दिन-रात भगवान के गुणों का स्मरण कर। जिन्हें एक क्षण के लिए भी ईश्वर का नाम नहीं भूलता, संसार में ऐसे लोग विरले ही होते हैं। अपना ध्यान उसी ईश्वर में लगाओ और उसकी ज्योति से तुम भी प्रकाशित हो जाओ। जब तक तुझमें अहंभाव रहेगा, तब तक तुझे प्रभु के दर्शन नहीं हो सकते। जिसने अपने हृदय में भगवान के नाम की माला पहन ली है, उसे ही प्रभु के दर्शन होते हैं।

(4) तेरी गति मिति …………………………………….. दजा और न कोई।

हे प्रभो! अपनी शक्ति के सब रहस्यों को केवल तुम्हीं जानते हो। उनकी व्याख्या कोई दूसरा नहीं कर सकता है। तुम ही अप्रकट रूप भी हो और तुम ही प्रकट रूप भी हो। तुम्हारे अनेक रंग हैं। अनगिनत भक्त, सिद्ध, गुरु और शिष्य तुम्हें ढूँढ़ते फिरते हैं। हे प्रभु! जिन्होंने नाम स्मरण किया उन्हें प्रसाद (भिक्षा) में तुम्हारे दर्शन की प्राप्ति हुई है। प्रभु! तुम्हारे इस संसार के खेल को केवल कोई गुरुमुख ही समझ सकता है। प्रभु! अपने इस संसार में युग-युग से तुम्हीं बिराजमान रहते हो, कोई दूसरा नहीं।।

(5) गगन में थाल …………………………………….. शबद बाजत भेरी। (संसार में दिन-रात महान आरती हो रही है।)

आकाश की थाल में सूर्य और चंद्रमा के दीपक जल रहे हैं। हजारों तारे-सितारे – मोती बने हैं। मलय की खुशबूदार हवा वाला धूप (गुग्गुल) महक रहा है। वायु हवा से चँवर कर रही है। जंगल की सभी वनस्पतियाँ फूल चढ़ा रही हैं। हृदय में अनहद नाद का वाद्य बज रहा है। हे मनुष्य! इस महान आरती के होते हुए तेरी आरती का क्या महत्त्व है। अर्थात भगवान की असली आरती तो मन में उतारी जाती है। श्रद्धा ही भक्त की सबसे बड़ी भेंट है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 5.1 गुरुबानी

गुरुबानी शब्दार्थ

  • बूआड़ = बुआई करना
  • सउ = ईश्वर
  • चितु = चित्त
  • गुपता = अप्रकट, गुप्त
  • सगल = संपूर्ण
  • सुंजे = सूने
  • मसु = स्याही
  • अहिनिसि = दिन-रात
  • जुग = युग
  • भेरी = बड़ा ढोल

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Maharashtra Board

Class 12 Hindi Chapter 4 Adarsh Badla Question Answer Maharashtra Board

Std 12 Hindi Chapter 4 Adarsh Badla Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 4 आदर्श बदला Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 4 आदर्श बदला Questions And Answers

12th Hindi Guide Chapter 4 आदर्श बदला Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.

(अ) कृति पूर्ण कीजिए :
साधुओं की एक स्वाभाविक विशेषता – ………………………………
उत्तर :
एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहना और भजन तथा भक्तिगीत गाते-बजाते रहना।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

(आ) लिखिए :

(a) आगरा शहर का प्रभातकालीन वातावरण –
………………………………………………………………
………………………………………………………………
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 3

(b) साधुओं की मंडली आगरा शहर में यह गीत गा रही थी –
………………………………………………………………
………………………………………………………………
उत्तर :
सुमर-सुमर भगवान को,
मूरख मत खाली छोड़ इस मन को।

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
लिंग बदलिए:

(1) साधु
(2) नवयुवक
(3) महाराज
(4) दास
उत्तर :
(1) साधु – साध्वी
(2) नवयुवक – नवयुवती
(3) महाराज – महारानी
(4) दास – दासी।

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.

(अ) ‘मनुष्य जीवन में अहिंसा का महत्त्व’, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
हिंसा क्रूरता और निर्दयता की निशानी है। इससे किसी.। का भला नहीं हो सकता। इस संसार के सभी जीव ईश्वर की संतान हैं और समान हैं। सृष्टि में सबको जीने का अधिकार है। कोई कितना भी शक्तिमान क्यों न हो, किसी को उससे उसका जीवन छीनने का अधिकार नहीं है। जब कोई किसी को जीवन दे नहीं सकता तब वह किसी का जीवन ले भी नहीं सकता। बड़े-बड़े मनीषियों और महापुरुषों ने अहिंसा को ही धर्म कहा है – अहिंसा परमोधर्मः।

अहिंसा का अस्त्र सबसे बड़ा माना जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अहिंसा के बल पर शक्तिशाली अंग्रेज सरकार को झुका दिया था और अंग्रेज सरकार देश को आजाद करने पर विवश हो गई थी। जीवन का मूलमंत्र ‘जियो और जीने दो’ है। किसी के प्रति ईर्ष्या की भावना रखना या किसी का नुकसान करना भी एक प्रकार की हिंसा है। इससे हमें बचना चाहिए।

(आ) ‘सच्चा कलाकार वह होता है जो दूसरों की कला का सम्मान करता हैं, इस कथन पर अपना मत व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
कलाकार को कोई कला सीखने के लिए गुरु के सान्निध्य में रह कर वर्षों तक तपस्या करनी पड़ती है। कला की छोटीछोटी बारीक बातों की जानकारी करनी पड़ती है। इसके साथ ही निरंतर रियाज करना पड़ता है। गुरु से कला की जानकारियाँ प्राप्त करते-करते अपनी कला में वह प्रवीण होता है।

सच्चा कलाकार किसी कला को सीखने की प्रक्रिया में होने वाली कठिनाइयों से परिचित होता है। इसलिए उसके दिल में अन्य कलाकारों के लिए सदा सम्मान की भावना होती है। वह छोटे-बड़े हर कलाकार को समान समझता है और उनकी कला का सम्मान करता है। सच्चे कलाकार का यही धर्म है। इससे कला को प्रोत्साहन मिलता है और वह फूलती-फलती है।

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पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न –

प्रश्न 4.

(अ) ‘आदर्श बदला’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अपने पिता को मृत्युदंड दिए जाने पर बैजू विक्षिप्त हो गया था। और अपनी कुटिया में विलाप कर रहा था। उस समय बाबा हरिदास ने उसकी कुटिया में आकर उसे ढाढ़स बंधाया था। तब बालक बैजू ने बाबा को बताया था कि उसे अब बदले की भूख है। वे उसकी इस भूख को मिटा दें। बाबा हरिदास ने उसे वचन दिया था कि वे उसे ऐसा हथियार देंगे, जिससे वह अपने पिता की मौत का बदला ले सकेगा।

बाबा हरिदास ने बारह वर्षों तक बैजू को संगीत की हर प्रकार की बारीकियाँ सिखाकर उसे पूर्ण गंधर्व के रूप में तैयार कर दिया। मगर इसके साथ ही उन्होंने उससे यह वचन भी ले लिया कि वह इस राग विद्या से किसी को हानि न पहुँचाएगा।

इसके बाद वह दिन भी आया जब बैजू आगरा की सड़कों पर गाता हुआ निकला और उसके पीछे उसकी कला के प्रशंसकों की अपार भीड़ थी। आगरा में गाने के नियम के अनुसार उसे बादशाह के समक्ष पेश किया गया और शर्त के अनुसार तानसेन से उसकी संगीत प्रतियोगिता हुई, जिसमें उसने तानसेन को बुरी तरह परास्त कर दिया। तानसेन बैजू बावरा के पैरों पर गिरकर अपनी जान की भीख माँगने लगा। इस मौके पर बैजू बावरा उससे अपने पिता की मौत का बदला लेकर उसे प्राणदंड दिलवा सकता था। पर उसने ऐसा नहीं किया। बैजू ने तानसेन की जान बख्श दी।

उसने उससे केवल इस निष्ठुर नियम को उड़वा देने के लिए कहा, जिसके अनुसार किसी को आगरे की सीमाओं में गाने और तानसेन की जोड़ का न होने पर मरवा दिया जाता था। इस तरह बैजू बावरा ने तानसेन का गर्व नष्ट कर उसे मुँह की खिलाकर उससे अनोखा बदला लेकर उसे श्रीहीन कर दिया था। यह अपनी तरह का आदर्श बदला था। समूची कहानी इस बदले के आसपास घूमती है। इसलिए ‘आदर्श बदला’ शीर्षक इस कहानी के उपयुक्त है।

(आ) ‘बैजू बावरा संगीत का सच्चा पुजारी है’, इस विचार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सच्चा कलाकार उसे कहते हैं, जिसे अपनी कला से सच्चा लगाव हो। वह अपने गुरु की कही हुई बातों पर अमल करे तथा गुरु से विवाद न करे। इसके अलावा उसे अपनी कला पर अहंकार न हो। बैजू बावरा ने बारह वर्ष तक बाबा हरिदास से संगीत सीखने की कठिन तपस्या की थी।

वह उनका एक आज्ञाकारी शिष्य था। उसकी संगीत शिक्षा पूरी हो जाने के बाद बाबा हरिदास ने जब उससे यह प्रतिज्ञा करवाई कि वह इस राग विद्या से किसी को हानि नहीं पहुँचाएगा, तो भी उसने रक्त का यूंट पी कर इस गुरु आदेश को स्वीकार कर लिया था, जबकि उसे मालूम था कि इससे उसके हाथ में आई हुई प्रतिहिंसा की छुरी कुंद कर दी गई थी। फिर भी गुरु के सामने उसके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला।

बैजू बावरा की संगीत कला की धाक दूर-दूर तक फैल गई थी। है उसके संगीत में जादू का असर था। बैजू बावरा को संगीत ज्ञान है पर तानसेन की तरह कोई अहंकार नही था। बल्कि इसके विपरीत उसके हृदय में दया की भावना थी। गानयुद्ध में तानसेन को पराजित करने पर भी वह अपनी जीत और संगीत का प्रदर्शन नहीं करता।

बल्कि वह तानसेन को जीवनदान दे देता है। वह उससे केवल यह माँग करता है कि वह इस नियम को खत्म करवा दे कि जो कोई आगरा की सीमा के अंदर गाए, वह अगर तानसेन की जोड़ का न हो, तो मरवा दिया जाए। उसकी इस माँग में भी गीत-संगीत की ५ रक्षा करने की भावना निहित है।

इस प्रकार इसमें कोई संदेह नहीं है कि बैजू बावरा संगीत का सच्चा पुजारी था।

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साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.

(अ) सुदर्शन जी का मूल नाम : ……………………………………
उत्तर :
सुदर्शन जी का मूल नाम बदरीनाथ है।

(आ) सुदर्शन ने इस लेखक की लेखन परंपरा को आगे बढ़ाया है : ……………………………………
उत्तर :
सुदर्शन ने मुंशी प्रेमचंद की लेखन परंपरा को आगे बढ़ाया है।

रस

अद्भुत रस : जहाँ किसी के अलौकिक क्रियाकलाप, अद्भुत, आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर हृदय में विस्मय अथवा आश्चर्य का भाव जाग्रत होता है; वहाँ अद्भुत रस की व्यंजना होती है।

उदा. –

(१) एक अचंभा देखा रे भाई।
ठाढ़ा सिंह चरावै गाई।
पहले पूत पाछे माई।
चेला के गुरु लागे पाई।।

(२) बिनु-पग चलै, सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म कर, विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु वाणी वक्ता, बड़ जोगी।।

शृंगार रस : जहाँ नायक और नायिका अथवा स्त्री-पुरुष की प्रेमपूर्ण चेष्टाओं, क्रियाकलापों का शृंगारिक वर्णन हो; वहाँ शृंगार रस की व्यंजना होती है।

उदा. –
(१) राम के रूप निहारति जानकी, कंकन के नग की परछाही,
यातै सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाही।

(२) कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन में करत हैं, नैननु ही सौं बात।।

शांत रस : (निर्वेद) जहाँ भक्ति, नीति, ज्ञान, वैराग्य, धर्म, दर्शन, तत्त्वज्ञान अथवा सांसारिक नश्वरता संबंधी प्रसंगों का वर्णन हो; वहाँ शांत रस उत्पन्न होता है।

उदा. –
(१) माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर।
कर का मनका डारि कै, मन का मनका फेर।।

(२) माटी कहै कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहे।।

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भक्ति रस : जहाँ ईश्वर अथवा अपने इष्ट देवता के प्रति श्रद्धा, अलौकिकता, स्नेह, विनयशीलता का भाव हृदय में उत्पन्न होता है; वहाँ भक्ति रस की व्यंजना होती है।

उदा. –
(१) तू दयालु दीन हौं, तू दानि हौं भिखारि।
हौं प्रसिद्ध पातकी, तू पाप पुंजहारि।

(२) समदरसी है नाम तिहारो, सोई पार करो,
एक नदिया इक नार कहावत, मैलो नीर भरो,
एक लोहा पूजा में राखत, एक घर बधिक परो,
सो दुविधा पारस नहीं जानत, कंचन करत खरो।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 4 आदर्श बदला Additional Important Questions and Answers

गद्यांश क्र. 1
कृतिपत्रिका के प्रश्न 1 (अ) तथा प्रश्न 1 (आ) के लिए।

प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 4

प्रश्न 2.
साधु इस तरह गाते थे गीत –
(1) ……………………………………..
(2) ……………………………………..
(3) ……………………………………..
(4) ……………………………………..
उत्तर :
(1) कोई ऊँचे स्वर में गाता था।
(2) कोई मुँह में गुनगुनाता था।
(3) सब अपने राग में मगन थे।
(4) उन्हें सुर-ताल की परवाह नहीं थी।

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प्रश्न 3.
तानसेन द्वारा बनवाया गया कानून –
(1) ……………………………………..
(2) ……………………………………..
उत्तर :
(1)जो आदमी राग-विद्या में तानसेन की बराबरी न कर सके, है वह आगरे की सीमा में गीत न गाए।
(2) ऐसा आदमी जो आगरे की सीमा में गीत गाए, उसे मौत की सजा दी जाए।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के लिंग बदलकर लिखिए :
(1) पत्ते – …………………………………..
(2) स्वामी – …………………………………..
(3) राग – …………………………………..
(4) आदमी – …………………………………..
उत्तर :
(1) पत्ते – पत्तियाँ
(2) स्वामी – स्वामिनी
(3) राग – रागिनी (4) आदमी – औरत

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
साधु-संतों को राग विद्या की जानकारी न होने के कारण मौत की सजा दिया जाना क्या उचित है? इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
साधु-संत दीन-दुनिया से विरक्त ईश्वर आराधना में लीन रहने वाले लोग होते हैं। वे अपने साथी साधु-संतों से सुने-सुनाए भजन-कीर्तन अपने ढंग से गाते हैं। उन्हें राग, छंद और संगीत का समुचित ज्ञान नहीं होता। भजन भी वे अपनी आत्म-संतुष्टि और ईश्वर आराधना के लिए गाते हैं।

उनका उद्देश्य उसे राग में गा कर किसी को प्रसन्न करना नहीं होता। आगरा शहर में बिना सुर-ताल की परवाह किए हुए और बादशाह के कानून से अनभिज्ञ ये साधु गाते हुए जा रहे थे। इन्हें इस जुर्म में पकड़ लिया गया था कि वे आगरा की सीमा में गाते हुए जा रहे हैं। अकबर के मशहूर रागी तानसेन ने यह नियम बनवा दिया था कि जो आदमी राग विद्या में उसकी बराबरी न कर सके वह आगरा की सीमा में न गाए। यदि गाए तो उसे मौत की सजा दी जाए।

अतः इन्हें मौत की सजा दे दी गई। इस तरह साधुओं को मौत की सजा देना उनके साथ बिलकुल अन्याय है। इस तरह के कानून से तानसेन के अभिमान की बू आती है।

गद्यांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 5
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 10

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 6
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 11

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :

(1) बैजू ने हरिदास के चरणों में और ज्यादा लिपट कर यह कहा –
(i) ……………………………………
(ii) ……………………………………
(iii) ……………………………………
(iv) ……………………………………
उत्तर :
(i) महाराज (मेरी) शांति जा चुकी है।
(ii) अब मुझे बदले की भूख है।
(iii) अब मुझे प्रतिकार की प्यास है।
(iv) आप मेरी प्यास बुझाइए।

(2)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 7
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 12

(3)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 8
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 13

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

प्रश्न 3.
आकृति पूर्ण कीजिए:
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 9
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 14

प्रश्न 4.
बैजू ने दिया बाबा हरिदास को यह वचन –
(i) ……………………………………
(ii) ……………………………………
(iii) ……………………………………
(iv) ……………………………………
उत्तर :
(i) मैं बारह जीवन देने को तैयार हूँ।
(ii) मैं तपस्या करूँगा।
(iii) मैं दुख झेलूँगा, मैं मुसीबतें उठाऊँगा।
(iv) मैं अपने जीवन का एक-एक क्षण आपको भेंट कर दूंगा।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के लिंग बदल कर लिखिए :
(1) बेटा – ……………………………………
(2) बच्चा – ……………………………………
(3) सेवक – ……………………………………
(4) सूना – ……………………………………
उत्तर :
(1) बेटा – बेटी
(2) बच्चा – बच्ची
(3) सेवक – सेविका
(4) आखिरी = अंतिम।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) संसार = ……………………………………
(2) तबाह = ……………………………………
(3) चरण = ……………………………………
(4) आखिरी = ……………………………………
उत्तर :
(1) संसार = दुनिया
(2) तबाह = बर्बाद
(3) चरण = पाँव
(4) सूना – सूनी।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘बिनु गुरु होय न ज्ञान’ इस कथन के बारे में 40 से 50 शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य को बचपन से लेकर अंतिम समय तक विभिन्न . कार्यों को पूर्ण करने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। यह ज्ञान विभिन्न रूपों में हमें किसी-न-किसी गुरु से मिलता है। बचपन में बच्चे का पालन-पोषण कर उसे बड़ा करके बोलने-चालने और बोली-भाषा सिखाने का काम माता करती है।

उस समय वह उसकी गुरु होती है। बड़े होने पर विद्यालय में शिक्षकों से बच्चे को ज्ञान की प्राप्ति होती है। तरह-तरह की कलाओं को सीखने के लिए गुरु से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। गुरु से ज्ञान प्राप्त करके ही कलाकार नाम कमाते हैं।

प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट के क्षेत्र में महारत हासिल करने में उनके क्रिकेट गुरु रमाकांत आचरेकर का विशेष योगदान रहा है।

इसी तरह छत्रपति शिवाजी महाराज की सफलता में उनके गुरु का काफी योगदान रहा है। गुरु ही हमें सही या गलत में भेद करना सिखाते हैं। वे ही भूले-भटके हओं को सही राह दिखाते हैं। इस तरह गुरु की महिमा अपरंपार है।

गद्यांश क्र. 3
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 15
उत्तर :
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प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए : जवान बैजू के संगीत की विशेषताएँ –
(1) …………………………
(2) …………………………
(3) …………………………
(4) …………………………
उत्तर :
(1) उसके स्वर में जादू था और तान में आश्चर्यमयी मोहिनी थी।
(2) गाता था तो पत्थर तक पिघल जाते थे।
(3) पशु-पंछी तक मुग्ध हो जाते थे।
(4) लोग सुनते थे और झूमते थे तथा वाह-वाह करते थे।

प्रश्न 3.
बैजू की राग विद्या की शिक्षा पूरी होने पर हरिदासजी ने यह कहा –
(1) …………………………
(2) …………………………
उत्तर :
(1) वत्स! मेरे पास जो कुछ था, वह मैंने तुझे दे डाला।
(2) अब तू पूर्ण गंधर्व हो गया है।

प्रश्न 4.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 16
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 18

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कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :
(1) उजड़ना x ……………………………..
(2) बूढ़े x ……………………………..
(3) कृतज्ञता x ……………………………..
(4) उपकार x ……………………………..
उत्तर :
(1) उजड़ना – बसना
(3) कृतज्ञता – कृतघ्नता
(2) बूढ़े x जवान
(4) उपकार x अपकार।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘कृतज्ञता मनुष्य का उत्तम गुण है’ इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपना मत लिखिए।
उत्तर :
कृतज्ञता का अर्थ है अपने साथ किसी के द्वारा किए गए किसी अच्छे कार्य के लिए व्यक्ति का एहसान मानना। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कभी-न-कभी ऐसा समय आता है, जब उसे किसी रूप में किसी व्यक्ति से छोटी-बड़ी मदद लेनी पड़ती है अथवा किसी का एहसान लेना पड़ता है। उस समय इस प्रकार की मदद अथवा उपकार करने वाला व्यक्ति हमें किसी फरिश्ते से कम नहीं लगता।

ऐसे समय हमारे मन में उसके प्रति श्रद्धा और सम्मान की भावना जाग उठती है। इसे हम एहसान करने वाले के पैर छू करः अथवा उसे धन्यवाद दे कर प्रदर्शित करते हैं। इतना ही नहीं हम सदा उसके एहसान को याद रखते हैं। कृतज्ञता व्यक्त करने से एहसान करने वाले व्यक्ति को भी प्रसन्नता होती है।

गद्यांश क्र. 4
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए :

(1) सिपाहियों ने साधु को इस रूप में देखा –
(i) ………………………………..
(ii) ………………………………..
(iii) ………………………………..
(iv) ………………………………..
उत्तर :
(i) साधु के मुँह से तेज की किरणें फूट रही थीं। .
(ii) उन किरणों में जादू था, मोहिनी थी और मुग्ध करने की शक्ति थी।
(iii) उसके मुँह पर सरस्वती का वास था।
(iv) उसके मुँह से संगीत की मधुर ध्वनि की धारा बह रही थी।

(2)
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उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 22

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

प्रश्न 2.
कृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 20
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 23

प्रश्न 3.
लिखिए : तानसेन ने नवयुवक (साधु) से यह कहा –
(1) ………………………………..
(2) ………………………………..
(3) ………………………………..
(4) ………………………………..
उत्तर :
(1) शायद आपके सिर पर मौत सवार है।
(2) आप नियम जानते हैं न?
(3) नियम कड़ा है और मेरे दिल में दया नहीं है।
(4) मेरी आँखें दूसरों की मौत को देखने के लिए हर समय तैयार हैं।

प्रश्न 4.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 21
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 24

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के वचन बदल कर लिखिए :
(1) हथकड़ियाँ – ………………………………………
(2) आँखें – ………………………………………
(3) बाजारों – ………………………………………
(4) श्रोता – ………………………………………
उत्तर :
(1) हथकड़ियाँ – हथकड़ी
(2) आँखें – आँख
(3) बाजारों – बाजार
(4) श्रोताँ – श्रोतागण।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘घमंड मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है’ इस विषय पर अपने विचार 40 से 50 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य के अंदर सद् और असद् दो प्रवृत्तियाँ होती हैं। सद् का अर्थ है अच्छा और असद् का अर्थ है जो अच्छा न हो यानी बुरा। घमंड मनुष्य की बुरी वृत्ति है। घमंडी व्यक्ति को अच्छे और बुरे का विवेक नहीं होता। वह अपने घमंड के नशे में चूर रहता है और अपना भला-बुरा भी भूल जाता है।

घमंडी व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास तब होता है, जब उसकी की गई गलतियों का परिणाम उसके सामने आता है। घमंड का परिणाम बहुत बुरा होता है। इसके कारण बड़े-बड़े ज्ञानी पुरुषों को भी मुँह की खानी पड़ती है।

रावण जैसा महाज्ञानी पंडित भी अपने घमंड के कारण अपने कुल परिवार सहित नष्ट हो गया। घमंड मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उसकी मंजिल है दारुण दुख। इसलिए मनुष्य को घमंड का मार्ग त्याग कर प्रेम और सद्गुण का मार्ग अपनाना चाहिए।

गद्यांश क्र. 5
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
(a)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 25
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 27

(b)
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उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 28

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :
(1) बैजू बावरा ने अपने सितार के पदों को हिलाया, तो यह हुआ –
(i) …………………………….
(ii) …………………………….
(iii) …………………………….
(iv) …………………………….
उत्तर :
(i) जनता ब्रह्मानंद में लीन हो गई।
(ii) पेड़ों के पत्ते तक निःशब्द हो गए।
(iii) वायु रुक गई।
(iv) सुनने वाले मंत्रमुग्धवत सुधिहीन हुए सिर हिलाने लगे।

प्रश्न 3.
बैजू बावरा की उँगलियाँ जब सितार पर दौड़ी, तब –
(i) …………………………….
(ii) …………………………….
(iii) …………………………….
(iv) …………………………….
उत्तर :
(i) तारों पर राग विद्या निछावर हो रही थी।
(ii) लोगों के मन उछल रहे थे।
(iii) लोग झूम रहे थे, थिरक रहे थे।
(iv) जैसे सारे विश्व की मस्ती वहीं आ गई थी।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्द समूहों के लिए गद्यांश में से ढूँढकर एकएक शब्द लिखिए :
(1) ब्रह्म स्वरूप के साक्षात्कार का दर्शन।
(2) जहाँ किसी प्रकार का शब्द न होता हो।
(3) जो होश से रहित हो।
(4) किसी से भी न डरने की भावना।
उत्तर :
(1) ब्रह्मानंद
(2) निःशब्द
(3) सुधिहीन
(4) निर्भयता

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

गद्यांश क्र. 6
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए : गानयुद्ध-स्थल पर दर्शक यह देखकर हैरान रह गए –
(1) …………………………………………
(2) …………………………………………
(3) …………………………………………
(4) …………………………………………
उत्तर :
(1) कुछ हरिण छलाँगें मारते हुए आए और बैजू बावरा के पास खड़े हो गए।
(2) हरिण संगीत सुनते रहे, सुनते रहे।
(3) हरिण मस्त और बेसुध थे।
(4) बैजू ने सितार रखकर उनके गले में फूलमालाएँ पहनाईं तब उन्हें सुध आई और भाग खड़े हुए।

प्रश्न 2.
कृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 29
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 31

प्रश्न 3.
लिखिए : तानसेन ने इस तरह बजाया सितार –
(1) …………………………………………
(2) …………………………………………
(3) …………………………………………
(4) …………………………………………
उत्तर :
(1) पूर्ण प्रवीणता के साथ।
(2) पूर्ण एकाग्रता के साथ।
(3) वह बजाया, जो कभी न बजाया था।
(4) वह बजाया, जो कभी न बजा सकता था।

प्रश्न 4.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 30
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 32

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कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित उपसर्ग जोड़कर शब्द बनाकर लिखिए :
(1) अ – …………………………….
(2) बे – …………………………….
(3) निर् – …………………………….
(4) परा – …………………………….
उत्तर
(1) अ – असाधारण
(2) बे – बेसुध
(3) निर् – निरादर
(4) परा – पराजय

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘संगीत का प्रभाव’ विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
संगीत ऐसी कला है, जो श्रोताओं को अपनी स्वर लहरियों से आह्लादित कर देती है। संगीत एक गूढ़ विद्या है। संगीत-साधक इसमें जितनी गहराई तक जाता है, उसे उतने ही मोती मिलते हैं। संगीत का आनंद संगीत विशेषज्ञ तो उठाते ही हैं, जिन लोगों में संगीत कला की समझ नहीं होती, वे भी संगीत की स्वर लहरियों को सुन कर झूमने लगते हैं। संगीत की मधुर ध्वनि से लोग अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। संगीत सुनने से मन प्रसन्न होता है।

संगीत तनाव कम करने में सहायक होता है और उससे मानसिक शांति मिलती है।

संगीत का प्रभाव अद्भुत होता है। उससे केवल मनुष्य ही नहीं, वातावरण, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे सभी प्रभावित होते हैं। संगीत से पौधों की वृद्धि और दुधारू पशुओं के अधिक दूध देने तक की बातें कही जाती रही हैं। गुणी संगीतकार के संगीत-वादन से वर्षा होने लगती है।

मधुर संगीत से प्रभावित होकर लोगों के मन उछलने लगते हैं, उनके मन थिरकने लगते हैं। लोग मस्ती में डूब जाते हैं। संगीत में जादू-सा प्रभाव होता है। संसार में शायद ही ऐसा कोई प्राणी होगा, जो संगीत की मधुर ध्वनि की धारा में न बह जाता हो।

गद्यांश क्र. 7
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
लिखिए : हरिण बुला पाने में असमर्थ तानसेन की बौखलाहट –
(1) ………………………………..
(2) ………………………………..
(3) ………………………………..
(4) ………………………………..
उत्तर :
(1) उसकी आँखों के सामने मौत नाचने लगी।
(2) उसकी देह पसीना-पसीना हो गई।
(3) लज्जा से उसका मुँह लाल हो गया।
(4) वह खिसिया गया।

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प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :

(a) दुबारा बैजू बावरा ने सितार पकड़ा, तो यह हुआ –
(i) …………………………………
(ii) …………………………………
(iii) …………………………………
(iv) …………………………………
उत्तर :
(i) एक बार फिर संगीतलहरी वायुमंडल में लहराने लगी।
(ii) फिर सुनने वाले संगीत-सागर की तरंगों में डूबने लगे।
(iii) हरिण बैजू बावरा के पास फिर आए।
(iv) बैजू ने (उनके गले से) मालाएँ उतार लीं और हरिण छलाँग लगाते चले गए।

(b) अकबर का निर्णय सुन कर तानसेन ने यह किया –
(i) …………………………………
(ii) …………………………………
(iii) …………………………………
(iv) …………………………………
उत्तर :
(i) काँपता हुआ उठा।
(ii) काँपता हुआ आगे बढ़ा।
(iii) काँपता हुआ बैजू बावरा के पाँव में गिर पड़ा।
(iv) उससे गिड़गिड़ाया, ‘मेरे प्राण न लो।’

(c) बैजू बावरा ने तानसेन को यह जवाब दिया –
(i) …………………………………
(ii) …………………………………
उत्तर :
(i) मुझे तुम्हारे प्राण लेने की चाह नहीं।
(ii) तुम इस नियम को उड़वा दो कि यदि आगरे की सीमा में गाने वाला तानसेन की जोड़ का न हो, तो उसे मरवा दिया जाए।

(d) बैजू बावरा ने तानसेन को यह पुरानी बात बताई –
(i) …………………………………
(ii) …………………………………
उत्तर :
(i) बारह साल पहले आपने एक बच्चे की जान बचाई (बख्शी ) थी।
(ii) आज उस बच्चे ने आपकी जान बख्शी है।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
गद्यांश में प्रयुक्त प्रत्यययुक्त शब्द ढूँढ़कर लिखिए : .
(1) ………………………………
(2) ………………………………
(3) ………………………………
(4) ………………………………
उत्तर :
(1) संगीतलहरी – संगीतलहर + ई।
(2) मालाएँ – माला + एँ।
(3) होकर – हो + कर।
(4) दीनता – दीन + ता।

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1. मुहावरे :

निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए :

(1) अगर-मगर करना।
अर्थ : टाल-मटोल करना।
वाक्य : सिपाही ने आरोपी से कहा, अगर-मगर मत करो, सीधे-सीधे मेरे साथ थाने चलो।

(2) अपना राग अलापना।
अर्थ : अपनी ही बातें करते रहना।
वाक्य : श्यामसुंदर की तो आदत है, दूसरे की बात न सुनना और अपना ही राग अलापते रहना।

(3) चाँदी काटना।
अर्थ : बहुत लाभ कमाना।
वाक्य : आजकल जब लोग कोरोना के डर से घरों में दुबके हैं, कुछ सब्जी बेचने वाले चाँदी काट रहे हैं।

(4) कान भरना।
अर्थ : चुगली करना।
वाक्य : मुनीमजी का चपरासी आफिस के अन्य लोगों के बारे में उनके कान भरता रहता है।

(5) जली-कटी सुनाना।
अर्थ : कटु बात करना।
वाक्य : रघु की माँ अकारण अपनी बहू को जली-कटी सुनाती रहती है।

2. काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :
(1) प्रकाश की किरणें संसार पर नवीन जीवन की वर्षा कर रही थीं। (सामान्य वर्तमानकाल)
(2) जो जवान थे उनके बाल सफेद हो गए। (सामान्य भविष्यकाल)
(3) मेरी आँखें दूसरों की मौत को देखने के लिए हर समय तैयार हैं। (पूर्ण भूतकाल)
(4) बैजू बावरा की उँगलियाँ सितार पर दौड़ रही थीं। (अपूर्ण वर्तमानकाल)
(5) बहुत अच्छा! दोबारा बुलाकर दिखा देता हूँ। (सामान्य भविष्यकाल)
उत्तर :
(1) प्रकाश की किरणें संसार पर नवीन जीवन की वर्षा करती हैं।
(2) जो जवान होंगे उनके बाल सफेद हो जाएंगे।
(3) मेरी आँखें दूसरों की मौत को देखने के लिए हर समय तैयार थीं।
(4) बैजू बावरा की उँगलियाँ सितार पर दौड़ रही हैं।
(5) बहुत अच्छा! दोबारा बुलाकर दिखा दूंगा।

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3. वाक्य शुद्धिकरण :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए :
(1) मैं तेरे को वह हथियार दूँगा, जिससे तू तेरे पिता की मौत का बदला ले सकेगा।
(2) हरिदास की धीरज की दीवार आँसुओं के बौछार न सह सकी।
(3) बैजू हाथों बाँधकर खड़े हो गया।
(4) अब मेरी पास और कुछ नहीं, जो तुजे दूँ।
(5) साधु की प्रार्थना में सर्वसाधारण को भी उसकी जीवन और मृत्यु का तमाशा देखने की आज्ञा दे दी गई थी।
उत्तर :
(1) मैं तुझे वह हथियार दूँगा, जिससे तू अपने पिता की मौत का बदला ले सकेगा।
(2) हरिदास के धीरज की दीवार आँसुओं की बौछार न सह सकी।
(3) बैजू हाथ बाँधकर खड़ा हो गया।
(4) अब मेरे पास और कुछ नहीं जो तुझे दूँ।
(5) साधु की प्रार्थना पर सर्वसाधारण को भी उसके जीवन और मृत्यु का तमाशा देखने की आज्ञा दे दी गई थी।

आदर्श बदला Summary in Hindi

आदर्श बदला लेखक का परिचय

आदर्श बदला लेखक का नाम : सुदर्शन। (मूल नाम : बदरीनाथ) (जन्म 29 मई, 1895, सियालकोट ; निधन 9 मार्च, 1967.)

प्रमुख कृतियाँ : पुष्पलता, सुदर्शन सुधा, तीर्थयात्रा, पनघट (कहानी संग्रह)। सिकंदर, भाग्यचक्र (नाटक)। भागवती (उपन्यास)। आनररी मजिस्ट्रेट (प्रहसन)।

विशेषता : आपने प्रेमचंद की लेखन-परंपरा को आगे बढ़ाया है। आपकी रचनाएँ आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को रेखांकित करती हैं। साहित्य को लेकर आपका दृष्टिकोण सुधारवादी रहा है। आपने हिंदी फिल्मों की पटकथाएँ और गीत भी लिखे हैं। आपकी प्रथम कहानी ‘हार की जीत’ हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान रखती है।

विधा : कहानी। कहानी भारतीय साहित्य की प्राचीन विद्या है। आपकी कहानियों की भाषा सरल, पात्रानुकूल तथा प्रभावोत्पादक हैं। मुहावरों का सटीक प्रयोग, प्रवाहमान शैली कहानी की प्रभावोत्पादकता में वृद्धि करती है।

विषय प्रवेश : बदला लेने वाले व्यक्ति के मन में अकसर क्रोध अथवा हिंसा की भावना प्रमुख होती है। इतना ही नहीं, मौत का बदला मौत से लेने की अनेक घटनाएँ प्रसिद्ध हैं। पर प्रस्तुत कहानी में लेखक ने बदला लेने का अनूठा आदर्श प्रस्तुत किया है। ‘बचपन में बैजू अपने पिता को भजन गाने के अपराध में तानसेन की क्रूरता का शिकार होता हुआ देखता है। परंतु वही बैजू बावरा तानसेन को संगीत-प्रतियोगिता में हरा कर उसे जीवन-दान दे देता है। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से बैजू बावरा को आदर्श बदला लेते हुए दर्शाया है।

आदर्श बदला पाठ का सार

आगरा शहर में सुबह-सुबह साधुओं की एक मंडली अपने ढंग से भजन गाते-गुनगुनाते प्रवेश कर रही थी। इस मंडली में एक छोटा बच्चा भी था। साधु अपने राग में मगन थे, तभी राज्य के सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन्हें बादशाह अकबर के सामने पेश कर दिया गया।

अकबर के मशहूर संगीतकार तानसेन ने यह कानून बनवा दिया था कि जो आदमी राग विद्या में उसकी बराबरी न कर सके, वह आगरा की सीमा में गीत न गाए और जो गाए तो उसे मौत की सजा दी जाए। बेचारे साधुओं को इसकी जानकारी नहीं थी। साधु संगीत विद्या से अनभिज्ञ थे। अतः उन्हें मृत्युदंड की सजा हुई। पर उस बच्चे पर दया करके उसे छोड़ दिया गया।

वह बच्चा रोता-तड़पता आगरा की बाजारों से निकल कर जंगल में अपनी कुटिया में पहुँचा और विलाप करता रहा। तभी खड़ाऊँ पहने, हाथ में माला लिए हुए, राम नाम का जप करते हुए बाबा हरिदास कुटिया के अंदर आए और उन्होंने उसे शांत रहने के लिए कहा। पर उस बच्चे के मन में शांति कहाँ थी! उसका तो संसार उजड़ चुका था। तानसेन ने उसे तबाह कर दिया था।

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यह बच्चा बैजू बावरा था। उसने अपने साथ हुई सारी दुर्घटना बाबा हरिदास को बताई और अपने बदले की भूख और प्रतिकार की प्यास मिटाने की उनसे प्रार्थना की। E अंत में हरिदास ने उसे आश्वस्त किया कि वे उसे ऐसा हथियार देंगे, जिससे वह अपने पिता का बदला ले सके।

इसके लिए उन्होंने बैजू से बारह वर्ष तक (संगीत की) तपस्या E करने का वचन लिया। बाबा ने बारह वर्ष में बैजू बावरा को वह सब कुछ सिखा दिया, जो उनके पास था। अब बैजू पूर्ण गंधर्व हो गया था। उसके स्वर में जादू था।

लेकिन संगीत-तपस्या पूरी होने के साथ ही बैजू बावरा को बाबा हरिदास के सामने यह प्रतिज्ञा भी करनी पड़ी कि वह इस राग विद्या से किसी को हानि नहीं पहुँचाएगा। इस प्रतिज्ञा से उसे लगा कि प्रतिहिंसा की छुरी हाथ में आई भी तो गुरु ने प्रतिज्ञा लेकर उसे कुंद कर दी।

कुछ दिनों बाद यही सुंदर युवक साधु आगरा के बाजारों में गाता हुआ जा रहा था। लोगों ने सोचा कि इसकी भी मौत आ गई है। वे उसे नगर की रीति की सूचना देने निकले। पर उसके निकट पहुँचने के पहले ही वे उससे मुग्ध होकर अपनी सुधबुध खो बैठे। सिपाही उसे पकड़ने दौड़े तो उसका गीत सुन कर उन्हें अपनी हथकड़ियों की भी सुध न रही। लोग नवयुवक के गीत पर मुग्ध थे। चलते-चलते यह जन-समूह मौत के द्वार यानी तानसेन के महल के सामने था।

तानसेन बाहर निकला और उसने फब्ती कसी, ‘तो शायद आपके सिर पर मौत सवार है।’ यह सुन कर बैजू के होठों पर मुस्कराहट आ गई। उसने कहा, “मैं आपके साथ गान-विद्या पर चर्चा करना चाहता हूँ।” तानसेन ने कहा, “जानते हैं नियम कड़ा है। मेरे दिल में दया नहीं है। मेरी आँखें दूसरों की मौत देखने के लिए हर समय तैयार हैं।” इस पर बैजू बावरा ने कहा, “और मेरे दिल में जीवन का मोह नहीं है। मैं मरने के लिए हर समय तैयार हूँ।”

दरबार की ओर से शर्ते सुनाई गई। राग-युद्ध नगर के बाहर वन में आयोजित किया गया था। लगता था वन में नगर बस गया है। बैजू ने सितार उठाया। उसने पदों को हिलाया तो जनता ब्रह्मानंद में लीन हो गई। उसकी उँगलियाँ सितार पर दौड़ने लगीं। लगा, सारे विश्व की मस्ती वहीं आ गई हो। तभी संगीत से प्रभावित होकर कुंछ हरिण छलांगें मारते हुए वहाँ आ पहुँचे। वे संगीत सुनते रहे।

बैजू ने सितार बजाना बंद किया और अपने गले से फूलमालाएँ उतार कर हरिणों को पहना दीं। हरिण चौकड़ी भरते हुए गायब हो गए। बैजू ने तानसेन से कहा, “ तानसेन, मेरी फूलमालाएँ यहाँ मँगवा दें, तब जानूँ कि आप राग-विद्या जानते हैं।”

तानसेन सितार हाथ में लेकर बजाने लगा। इतनी एकाग्रता के साथ उसने अपने जीवन में कभी सितार नहीं बजाया था। आज वह अपनी पूरी कला दिखा देना चाहता था। आज वह किसी तरह जीतना चाहता था। आज वह किसी भी तरह जिंदा रहना चाहता था। सितार बजता रहा, पर आज लोगों ने उसे पसंद नहीं किया। तानसेन का शरीर पसीना-पसीना हो गया, पर हरिण न आए। वह खिसिया गया। बोला, “वे हरिण राग की तासीर से नहीं आए थे। हिम्मत है तो दुबारा बुला कर दिखाओ।”

यह सुन कर बैजू ने फिर सितार पकड़ लिया। सितार बजने लगा। वे हरिण फिर बैजू बावरा के पास आ गए। बैजू ने उनके गले से मालाएँ उतार लीं। अकबर ने अपना निर्णय सुना दिया, “बैजू बावरा जीत गया, तानसेन हार गया।’ यह सुन कर तानसेन बैजू बावरा के पाँव में गिर पड़ा और उससे अपने प्राणों की भीख माँगने लगा। बैजू बावरा ने कहा, “मुझे तुम्हारे प्राण लेने की चाह नहीं है। तुम इस निष्ठुर नियम को खत्म करवा दो कि यदि आगरा की सीमा में गाने वाला व्यक्ति तानसेन की जोड़ का न हो, तो उसे मरवा दिया जाए।”

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यह सुन कर अकबर ने उसी समय उस नियम को खत्म कर दिया। तानसेन ने बैजू बावरा के चरणों में गिर कर कहा, “मैं यह उपकार जीवन भर नहीं भूलूँगा।’ बैजू बावरा ने उसे याद दिलाया, ‘बारह बरस पहले उसने एक बच्चे की जान बख्शी थी। आज उस बच्चे ने उसकी जान बख्शी है।’

मुहावरे : अर्थ और वाक्य प्रयोग

(1) तूती बोलना।
अर्थ : अधिक प्रभाव होना।
वाक्य : आज उद्योग के क्षेत्र में देश के कुछ घरानों की ही तूती बोलती है।

(2) वाह वाह करना।
अर्थ : प्रशंसा करना।
वाक्य : सितारवादक रविशंकर का सितार वादन सुन कर। श्रोता वाह वाह कर उठते थे।

(3) लहू सूखना।
अर्थ : भयभीत हो जाना।
वाक्य : कोरोना वायरस का नाम सुनते ही लहू सूखने लगता है।

(4) कंठ भर आना।
अर्थ : भावुक हो जाना।
वाक्य : बेटी की बिदाई के समय पिता का कंठ भर आया।

(5) बिलख-बिलख कर रोना।
अर्थ : विलाप करना, जोर-जोर से रोना।
वाक्य : दुर्घटना में घायल पिता की मृत्यु का समाचार सुन कर बेटा बिलख-बिलख कर रोने लगा।

(6) समाँ बँधना।
अर्थ : रंग जमना, वातावरण निर्माण होना।
वाक्य : मदारी ने बंदरों से ऐसा नृत्य करवाया कि समाँ बँध गया।

(7) ब्रह्मानंद में लीन होना।
अर्थ : अलौकिक आनंद का अनुभव करना।
वाक्य : तबलावादक सामताप्रसाद का तबला वादन सुन कर श्रोता ब्रह्मानंद में लीन हो जाते थे।

(8) जान बख्शना।
अर्थ : जीवन दान देना।
वाक्य : डाकुओं ने सेठ की संपत्ति लूट ली, पर उनकी जान बख्श दी।

(9) संसार उजड़ जाना।
अर्थ : सब कुछ व्यर्थ हो जाना।
वाक्य : पति के असामयिक निधन से बेचारी राधा का संसार उजड़ गया।

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(10) खरीद लेना।
अर्थ : गुलाम बना लेना।
वाक्य : गाँवों में पहले कुछ लोग मजदूरों को थोड़ा-बहुत कर्ज देकर जैसे उन्हें खरीद ही लेते थे।

(11) रक्त का चूँट पी कर रह जाना।
अर्थ : अपना क्रोध या दुःख प्रकट न होने देना।
वाक्य : मुनीमजी ने बार-बार चपरासी को बुरा-भला कहा, पर वह रक्त का चूंट पी कर रह गया।

(12) पसीना-पसीना होना।
अर्थ : बहुत अधिक परेशान होना।
वाक्य : जंगल से जाते हुए किसान ने हिरन पर झपट्टा मारते हुए चीते को देखा तो वह पसीना-पसीना हो गया।

आदर्श बदला शब्दार्थ

  • सुमर = स्मरण करना
  • प्रतिकार = बदला, प्रतिशोध
  • अवहेलना = अनादर
  • चाँदनिया = शामियाना
  • नि:शब्द = मौन, चुप
  • तासीर = प्रभाव, परिणाम
  • खड़ाऊँ = लकड़ी की बनी खूटीदार पादुका
  • कुंद = भोथरा, बिना धार का
  • कनात = मोटे कपड़े की दीवार या परदा
  • उद्विग्नता = घबराहट, आकुलता
  • सुधिहीन = बेहोश
  • अगाध = अपार, अथाह

आदर्श बदला मुहावरे

  • तूती बोलना = अधिक प्रभाव होना
  • वाह-वाह करना = प्रशंसा करना
  • लहू सूखना = भयभीत हो जाना
  • कंठ भर आना = भावुक हो जाना
  • बिलख-बिलखकर रोना = विलाप करना/जोर-जोर से रोना
  • समाँ बँधना = रंग जमना, वातावरण निर्माण होना Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला
  • ब्रह्मानंद में लीन होना = अलौकिक आनंद का अनुभव करना
  • जान बख्शना = जीवन दान देना

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Maharashtra Board

Class 12 Hindi Chapter 3 Sach Ham Nahin ; Sach Tum Nahin Question Answer Maharashtra Board

Std 12 Hindi Chapter 3 Sach Ham Nahin ; Sach Tum Nahin Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं Questions And Answers

12th Hindi Guide Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.
(अ) कविता की पंक्ति पूर्ण कीजिए :
(1) अपने हृदय का सत्य, – ……………………….
(2) आदर्श हो सकती नहीं, – ……………………….
(3) बेकार है मुस्कान से ढकना, – ……………………….
(4) अपने नयन का नीर, – ……………………….
उत्तर :
(1) अपने हृदय का सत्य, अपने-आप हमको खोजना।
(2) आदर्श हो सकती नहीं, तन और मन की भिन्नता।
(3) बेकार है मुस्कान से ढकना, हृदय की खिन्नता।
(4) अपने नयन का नीर, अपने-आप हमको पोंछना।

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(आ) लिखिए :

(a) जीवन यही है
(1) जीवन यही है –
(i) …………………………….
(ii) …………………………….
(iii) …………………………….
(iv) …………………………….
उत्तर :
जीवन यही है –
(i) नत न होना।
(ii) पंथ भूलने पर भी न रुकना।
(iii) हार देखकर भी न झुकना।
(iv) मृत्यु को भी जीत लेना।

(b) मिलना वही है –
(1) मिलना वही है – ……………………….
(2) यह जिंदगी जिंदगी नहीं है – ……………………….
(3) हर राही को इससे दिशा मिलती है – ……………………….
(4) कवि तब तक इस राह को सही नहीं मानेगा – ……………………….
उत्तर :
(1) जो मँझधार को मोड़ दे।
(2) जो सिर्फ पानी-सी बहती रहे।
(3) भटकने के बाद।
(4) जब तक जीवन बँधा होगा और जब तक प्यार पर दुख की गहरी छाया होगी।

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
प्रत्येक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए :
(1) पंथ – [ ] [ ]
(2) काँटा – [ ] [ ]
(3) कुसुम – [ ] [ ]
(4) हार – [ ] [ ]
उत्तर :
(1) पंथ – [ रास्ता ] [ डगर ]
(2) काँटा – [ शूल ] [ कंटक ]
(3) कुसुम – [ पुष्प ] [ प्रसून ]
(4) हार – [ पराजय ] [ पराभव ]

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) ‘जीवन निरंतर चलते रहने का नाम है’, इस विचार की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जीवन का उद्देश्य निरंतर आगे-ही-आगे बढ़ते रहना है। जीवन में ठहराव आने को मृत्यु की संज्ञा दी जाती है। अनेक महापुरुषों ने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए जीवनभर संघर्ष किया है और उनका नाम अमर हो गया है। जीवन का मार्ग आसान नहीं ३ है। उस पर पग-पग पर कठिनाइयाँ आती रहती हैं। इन कठिनाइयों 1 से उसे जूझना पड़ता है। उसमें हार भी होती है और जीत भी होती ३ है। असफलताओं से मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए।

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बल्कि उनका ३ दृढ़तापूर्वक सामना करके उसमें से अपना मार्ग प्रशस्त करना और ३ निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। एक दिन मंजिल अवश्य मिलेगी। जीवन संघर्ष कभी न खत्म होने वाला संग्राम है। इसका सामना करने का एकमात्र मार्ग है निरंतर चलते रहना और हर स्थिति में संघर्ष जारी रखना।

(आ) ‘संघर्ष करने वाला ही जीवन का लक्ष्य प्राप्त करता है, इस विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
दुनिया में दो प्रकार के मनुष्य होते हैं। एक वे जो सामान्य रूप से चलनेवाली जिंदगी जीना पसंद करते हैं और आगे बढ़ने के लिए किए जानेवाले उठा-पटक को पसंद नहीं करते। दूसरे तरह के वे लोग होते हैं, जो अपना लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं और उसे प्राप्त करने के लिए संघर्ष का रास्ता चुनते हैं। ऐसे लोगों का जीवन आसान नहीं होता। इन्हें पग-पग पर विभिन्न रुकावटों का सामना करना पड़ता है।

पर ऐसे लोग इन रुकावटों से डरते नहीं, बल्कि हँसते-हँसते इनका सामना करते हैं। सामना करने में अनेक बार असफलता भी इनके हाथ लगती है। पर ये इससे हताश नहीं होते। ये फिर अपनी गलतियों को सुधारते हैं और नए सिरे से संघर्ष करने में जुट जाते हैं। परिस्थितियाँ कैसी भी हों, वे न झुकते हैं और न हताश होते हैं। उनके सामने सदा उनका लक्ष्य होता है। उसे प्राप्त करने के लिए वे निरंतर संघर्ष करते रहते हैं।

ऐसे लोग अपनी निष्ठा और लगन के बल पर एक-न-एक दिन अवश्य सफल हो जाते हैं। वे संघर्ष के बल पर अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त करके रहते हैं।

रसास्वादन

प्रश्न 4.
‘आँसुओं को पोंछकर अपनी क्षमताओं को पहचानना ही जीवन है’, इस सच्चाई को समझाते हुए कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
डॉ. जगदीश गुप्त द्वारा लिखित कविता ‘सच हम नहीं, सच तुम नहीं’ में जीवन में निरंतर संघर्ष करते रहने का आह्वान किया गया है।

कवि पानी-सी बहने वाली सीधी-सादी जिंदगी का विरोध करते हुए संघर्षपूर्ण जीवन जीने की बात करते हैं। वे कहते हैं, जो जहाँ भी हो, उसे संघर्ष करते रहना चाहिए।

संघर्ष में मिली असफलता से निराश होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी हालत में हमें किसी के सहयोग की आशा नहीं करनी। हमें अपने आप में खुद हिम्मत लानी होगी और अपनी क्षमता को पहचानकर नए सिरे से संघर्ष करना होगा। मन में यह विश्वास रखकर काम करना होगा कि हर राही को भटकने के बाद दिशा मिलती ही है और उसका प्रयास व्यर्थ नहीं जाएगा। उसे भी दिशा मिलकर रहेगी।

कवि ने सीधे-सादे शब्दों में प्रभावशाली ढंग से अपनी बात कही है। अपनी बात कहने के लिए उन्होंने ‘अपने नयन का नीर पोंछने’ शब्द समूह के द्वारा हताशा से अपने आपको उबार कर स्वयं में नई शक्ति पैदा करने तथा ‘आकाश सुख देगा नहीं, धरती पसीजी है नहीं’ से यह कहने का प्रयास किया है कि भगवान तुम्हारी सहायता के लिए नहीं आने वाले हैं और धरती के लोग तुम्हारे दुख से द्रवित नहीं होने वाले हैं। इसलिए तुम स्वयं अपने आप को सांत्वना दो और नए जोश के साथ आगे बढ़ो। तुम अपने लक्ष्य पर पहुँचने में अवश्य कामयाब होंगे।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
जानकारी दीजिए :
(अ) ‘नई कविता’ के अन्य कवियों के नाम –
(आ) कवि डॉक्टर जगदीश गुप्त की प्रमुख साहित्यिक कृतियों के नाम –
उत्तर :
(अ) ‘नई कविता’ के अन्य कवियों के नाम – [रामस्वरूप चतुर्वेदी, विजयदेव साही]
(आ) कवि डॉक्टर जगदीश गुप्त की प्रमुख साहित्यिक कृतियों के नाम – [‘नाँव के पाँव, शब्द दंश, हिम विद्ध, गोपा-गौतम’] (काव्य संग्रह), ‘शंबूक’ (खंडकाव्य), ‘भारतीय कला के पदचिहन, नयी कविता : स्वरूप और समस्याएँ, केशवदास’ (आलोचनाएँ) तथा ‘नयी कविता’ (पत्रिका)।]

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्यों में अधोरेखांकित शब्दों का लिंग परिवर्तन कर वाक्य फिर से लिखिए :

(1) बहुत चेष्टा करने पर भी हरिण न आया।
उत्तर :
बहुत चेष्टा करने पर भी हरिणी न आई।

(2) सिद्धहस्त लेखिका बनना ही उनका एकमात्र सपना था।
उत्तर :
सिद्धहस्त लेखक बनना ही उनका एकमात्र सपना था।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

(3) तुम एक समझदार लड़की हो।
उत्तर :
तुम एक समझदार लड़के हो।

(4) मैं पहली बार वृद्धाश्रम में मौसी से मिलने आया था।
उत्तर :
मैं पहली बार वृद्धाश्रम में मौसा से मिलने आया था।

(5) तुम्हारे जैसा पुत्र भगवान सब को दे।
उत्तर :
तुम्हारी जैसी पुत्री भगवान सब को दे।

(6) साधु की विद्वत्ता की धाक दूर-दूर तक फैल गई थी।
उत्तर :
साध्वी की विद्वत्ता की धाक दूर-दूर तक फैल गई थी।

(7) बूढ़े मर गए।
उत्तर :
बुढ़ियाँ मर गईं।

(8) वह एक दस वर्ष का बच्चा छोड़ा गया।
उत्तर :
वह एक दस वर्ष की बच्ची छोड़ी गई।

(9) तुम्हारा मौसेरा भाई माफी माँगने पहुंचा था।
उत्तर :
तुम्हारी मौसेरी बहन माफी माँगने पहुंची थी।

(10) एक अच्छी सहेली के नाते तुम उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करो।
उत्तर :
एक अच्छे मित्र के नाते तुम उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करो।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (अ) तथा प्रश्न 2 (आ) के लिए
पद्यांश क्र. 1

प्रश्न. निम्नलिखितपद्यांशपढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं 2

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

प्रश्न 2.
जीवन का संदेश
(i) …………………………….
(ii) …………………………….
(iii) …………………………….
(iv) …………………………….
उत्तर :
जीवन का संदेश –
(i) जीवन में कहीं जड़ता नहीं होनी चाहिए।
(ii) अपनी-अपनी जगह पर खुद से लड़ाई जारी रखनी चाहिए।
(iii) हर तरह की परिस्थिति का सामना करने की तैयारी होनी चाहिए।
(iv) इन्सान को कभी टूटना-हारना नहीं चाहिए।

प्रश्न 3.
उत्तर लिखिए :
(1) नत होने से मृत जैसा होने की तुलना की गई है इससे – …………………………….
(2) काँटे चुभे, कलियाँ खिलें का अर्थ – …………………………….
उत्तर :
(1) नत होने से मृत जैसा होने की तुलना की गई है इससे – [डंठल से झरे फूल से।]
(2) काँटे चुभे, कलियाँ खिलें का अर्थ – [स्थिति चाहे प्रतिकूल हो अथवा अनुकूल।]

पदयांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखितपद्यांशपढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
पद्यांश पर आधारित दो ऐसे प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर निम्नलिखित शब्द हों :
(1) आकाश
(2) धरती
उत्तर :
(1) कौन सुख नहीं देगा?
(2) कौन नहीं पसीजती है?

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
प्रत्येक शब्द के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए :
(1) फूल – [ ] [ ]
(2) नीर – [ ] [ ]
(3) नयन – [ ] [ ]
(4) धरती – [ ] [ ]
उत्तर :
(1) फूल – [ पुष्प ] [ कुसुम ]
(2) नीर – [ अंबु ] [ जल ]
(3) नयन – [ चक्षु ] [ आँख ]
(4) धरती – [ पथ्वी ] [ अवनि ]

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

(2) निम्नलिखित शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :
(1) तोड़ना x …………………………
(2) सच x …………………………
(3) दुख x …………………………
(4) बेकार x …………………………
उत्तर :
(1) तोड़ना x जोड़ना
(3) दुख x सुख
(2) सच x झूठ
(4) बेकार x साकार।

रसास्वादन मुद्दों के आधार पर
कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (इ) के लिए

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर सच हम नहीं; सच तुम नहीं’ कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(1) रचना का शीर्षक : सच हम नहीं; सच तुम नहीं।
(2) रचनाकार : डॉ. जगदीश गुप्त।
(3) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में निरंतर आगे बढ़ते रहने, संघर्ष करते रहने और मार्ग में आनेवाली रुकावटों की परवाह न करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा दी गई है। यही इस कविता की केंद्रीय कल्पना है।
(4) रस-अलंकार : –
(5) प्रतीक विधान : इस कविता में संघर्ष का मार्ग त्याग कर नत हो जाने यानी किसी की अधीनता स्वीकार कर लेने वाले को मृतक के समान हो जाना कहा गया है। कवि ने इस तरह के मृत व्यक्ति के लिए ‘डाल से झड़े हुए फूल’ का प्रतीक के रूप में उपयोग किया है।
(6) कल्पना : जीवन में दृढ़तापूर्वक संघर्ष का मार्ग अपनाना और निराश हुए बिना उस पर अडिग रहना ही जीवन की एकमात्र सच्चाई है।
(7) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
अपने हृदय का सत्य,
अपने आप हम को खोजना।
अपने नयन का नीर,
अपने आप हम को पोंछना।.

इन पंक्तियों में अपनी समस्याओं को पहचानने और उनका समाधान ढूँढ़ने के लिए बिना किसी की सहायता की उम्मीद किए स्वयं कमर कस कर तैयार होने की प्रेरणा मिलती है।

(8) कविता पसंद आने का कारण : कवि ने इस पंक्ति में यह बताया है कि संघर्ष में असफलता हाथ लगे, तो भी निराश होने की जरूरत नहीं है। हमें अपने आप अपनी आँखों के आँसू पौंछकर फिर से हिम्मत के साथ संघर्ष में जुट जाना है।

व्याकरण

अलंकार :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर उनके नाम लिखिए :
(1) हरि पद कोमल कमल से।
(2) झूठे जानि न संग्रही मन मुँह निकसे बैन। यहि ते मानहुँ किए, बातनु को बिघि नैन।
(3) पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
(4) हनूमान की पूँछ में लग न पाई आग। लंका सिगरी जल गई, गए निशाचर भाग।
(5) एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकतीं। किसी और पर प्रेम पति का नारियाँ नहीं सह सकी।
उत्तर :
(1) उपमा अलंकार
(2) उत्प्रेक्षा अलंकार
(3) रूपक अलंकार
(4) अतिशयोक्ति अलंकार
(5) दृष्टांत अलंकार।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

रस:

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त रस पहचान कर लिखिए :
(1) काहु न तखा सो चरित विसेरना। सो सरूप नृप कन्या देखा।
मर्कट वदन भयंकर देही। देखत हृदय क्रोध मा तेही।
जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि तेहि न विलोकी भूली।
पुनि-पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं। देखि दसा हर गन मुसुकाहीं।

(2) जो हौं तव अनुशासन पावौं
तौ चंद्रमहिं निचोरि चैल ज्यों आनि सुधा सिर नावौं।
कै पाताल दलौं व्यालावलि अमृत कुंड महि लावौ।
भेदि भुवन, करि भानु बाहियें तुरत राहु दै ताबौ।।
विबुध बैद बरबस आनौं धरि, तौ प्रभु अनुग कहावौं।
पटकौं मीच नीच मूषक ज्यों सबहिं को पाप कहावौं।

(3) कहुँ सुलगत कोउ चिता, कहुँ कोउ जात लगाई।
एक लगाई जात, एक की राख बुझाई।
विविध रंग की उठति ज्वाल दुर्गन्धिति महकति,
कहु चरबी सी चटचटाति कहुँ दह-दह दहकति।
उत्तर :
(1) हास्य रस
(2) वीर रस
(3) वीभत्स रस।

मुहावरे :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
(1) गुड़ गोबर करना।
अर्थ : बने काम को बिगाड़ देना।
वाक्य : चित्रकार का चित्र तैयार था तभी एक छोटे बच्चे ने आकर उस पर ऐसी कूँची फिराई की सारा गुड़ गोबर हो गया।

(2) जहर का चूंट पीना।
अर्थ : अपमान को चुपचाप सह लेना।
वाक्य : मुंशीजी अपने चपरासी से कभी-कभी जब पैर दबा देने की बात करते थे तब वह जहर का यूंट पीकर रह जाता था।

(3) तिल का ताड़ बनाना।
अर्थ : छोटी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहना।
वाक्य : रमेश की बात विश्वास करने लायक नहीं होती, उसकी तो तिल का ताड़ बनाने की आदत है।

(4) मुट्ठी गर्म करना।
अर्थ : रिश्वत देना।
वाक्य : गाँवों में छोटा-मोटा काम करवाने के लिए भी अधिकारियों की मुट्ठी गर्म करनी पड़ती है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

(5) पत्थर की लकीर।
अर्थ : पक्की बात।
वाक्य : गाँव के लोग वकील साहब की बात को पत्थर की लकीर मानते थे।

काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
सूचनाओं के अनुसार काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :
(1) वह पंथ भूल कर नहीं रुकता है। (पूर्ण भूतकाल)
(2) वह हार देख कर नहीं झुका। (सामान्य भविष्यकाल)
(3) आकाश सुख नहीं देगा। (अपूर्ण वर्तमानकाल)
(4) धरती नहीं पसीजती है। (पूर्ण वर्तमानकाल)
(5) हर एक राही को भटक कर दिशा मिलती है। (अपूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
(1) वह पंथ भूल कर नहीं रुका था।
(2) वह हार देख कर नहीं झुकेगा।
(3) आकाश सुख नहीं दे रहा है।
(4) धरती नहीं पसीजी है।
(5) हर एक राही को भटक कर दिशा मिल रही थी।

वाक्य शुद्धिकरण :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके लिखिए :
(1) वह उसका काम कर रहा हैं।
(2) उस बगीचे में अनेकों फूले खिले हैं।
(3) पुस्तक की ढेर देख मैं दंग रह गया।
(4) उसे मात्र केवल दो दिन की छुट्टी चाहिएँ।
(5) मैं तुमको धन्यवाद करता हूँ।
उत्तर :
(1) वह अपना काम कर रहा है।
(2) उस बगीचे में अनेक फूल खिले हैं।
(3) पुस्तकों का ढेर देख में दंग रह गया।
(4) उसे केवल दो दिन की छुट्टी चाहिए।
(5) मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूँ।

सच हम नहीं; सच तुम नहीं Summary in Hindi

सच हम नहीं; सच तुम नहीं कवि का परिचय

सच हम नहीं; सच तुम नहीं कवि का नाम : डॉ. जगदीश गुप्त। (जन्म 1924; निधन 2001.)
प्रमुख कृतियाँ : नाँव के पाँव, शब्द दंश, हिम विद्ध, गोपा-गौतम (काव्य संग्रह), ‘शंबूक’ (खंडकाव्य), भारतीय कला के पदचिह्न,
नयी कविता : स्वरूप और समस्याएँ, केशवदास (आलोचनाएँ) तथा ‘नयी कविता’ (पत्रिका) आदि।
विशेषता : प्रयोगवाद के बाद जिस नयी कविता का प्रारंभ हुआ, उसके प्रवर्तकों में जगदीश गुप्त का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है।
विधा : नई कविता। नए भावबोधों की अभिव्यक्ति के साथ नए मूल्यों और नए शिल्प विधान का अन्वेषण नई कविता की विशेषता है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

विषय प्रवेश : प्रस्तुत नई कविता में कवि ने संघर्ष करने की प्रेरणा दी है। संघर्ष ही जीवन की सच्चाई है। जो मनुष्य कठिनाइयों और मुसीबतों का सामना करते हुए बिना झुके या रुके आगे बढ़ता रहता है, वही सच्चा मनुष्य है। जिंदगी लीक से हटकर चलने का नाम है। लीक से भटककर भी मंजिल अवश्य मिलती है। कवि का कहना है कि हमें अपनी समस्याएँ खुद सुलझानी होंगी। हमारी लड़ाई – कोई दूसरा लड़ने नहीं आएगा। हमें खुद योद्धा बनकर अपनी लड़ाई लड़नी है।

सच हम नहीं; सच तुम नहीं कविता का सरल अर्थ

सच हम नहीं …………………………………………….. है जीवन वही।
कवि कहते हैं कि न मेरी बात सच है और न तुम्हारी बात सच है। सच है तो निरंतर संघर्ष करना। संघर्ष ही जीवन है। हमें संघर्ष का रास्ता अपनाना चाहिए। कवि के अनुसार संघर्ष से हटकर जीने की बात ही नहीं करनी चाहिए। बिना संघर्ष का जीवन भी भला कोई जीवन है!

कवि कहते हैं कि जिसने अधीनता स्वीकार ली, वह मृतक के समान हो गया। उसकी हालत डाल से झड़े हुए फूल जैसी होती है। जो व्यक्ति संघर्ष के मार्ग पर चलता हआ भटक जाने पर भी अपनी मंजिल पर बढ़ने से नहीं रुका अथवा अपने प्रयास में असफल हो जाने पर भी जिसने हार नहीं मानी अथवा जिसने मृत्यु से भी मोर्चा लिया हो और उसको परास्त कर दिया हो, उसी का जीवन जीवन कहलाने के योग्य है। यही सच्चाई है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं 3

ऐसा करो जिससे …………………………………………….. यौवन का यही।
कवि कहते हैं कि मनुष्य में कहीं भी कोई ठहराव नहीं आना चाहिए। जो जहाँ है उसे वहीं चुपचाप अपना संघर्ष जारी रखना चाहिए। वे कहते हैं कि परिस्थितियाँ कैसी भी हों चाहे प्रतिकूल स्थिति हो अथवा अनुकूल स्थिति, मनुष्य को हताश होकर अपना संघर्ष कभी भी त्यागना नहीं चाहिए। जीवन का यही संदेश है।

हमने रचा जाओ …………………………………………….. पानी-सी बही।
कवि कहते हैं कि यथास्थिति में जीने का हमने जो नियम बनाया था, आओ, अब हम उसे तोड़ दें। यह भी कोई जीवन है। जीवन तो वह है, जो मँझधार को भी मोड़ने की शक्ति रखता हो। जिसने संघर्ष किया ही नहीं और यथास्थिति को ही सुखमय मानकर जीवन जीता आ रहा हो और दूसरों के इशारों पर चलता आ रहा हो, उसकी भला कोई जिंदगी है? वह जिंदगी तो यथास्थिति को स्वीकार लेने और लीक पर चलनेवाला जीवन है। (इसमें संघर्ष का नामोनिशान नहीं है।)

अपने हृदय का …………………………………………….. दिशा मिलती रही।

कवि कहते हैं कि हमें अपने दुखों को पहचानना होगा। उन्हें दूर करने के लिए हमें स्वयं प्रयास करना होगा। अपनी आँखों के आँसू हमें खुद पोंछने होंगे। हमें अपनी सहायता के लिए किसी अन्य से आशा नहीं करनी है। किसी अन्य की कृपा का भरोसा करना व्यर्थ है। हमें खुद योद्धा बनना होगा। हर संघर्ष करने वाले को कोई-नकोई मार्ग अवश्य मिलता है। मनुष्य मार्ग भटकने के बाद अपने लक्ष्य पर अवश्य पहुँचता है, इस बात को हमें गाँठ बाँध लेनी चाहिए।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

बेकार है मुस्कान से …………………………………………….. राह को ही मैं सही।
कवि कहते हैं कि हृदय के कष्ट को बाह्य मुस्कान से दबाया नहीं जा सकता। इस तरह के प्रयास का कोई लाभ नहीं होता। इसे आदर्श नहीं माना जा सकता है। मनुष्य को भीतर और बाहर दोनों से एक-सा ही रहना चाहिए, यही आदर्श है। कवि कहते हैं कि जब तक विचारों पर अंकुश लगा रहेगा और जब तक प्यार पर दुख की गहरी छाया बनी रहेगी, तब तक इस मार्ग को किसी भी कीमत पर उचित नहीं माना जा सकता।

सच हम नहीं; सच तुम नहीं शब्दार्थ

  • नत = झुका हुआ
  • जड़ता = अचलता, ठहराव
  • पसीजना = मन में दया भाव आना
  • वृंत = डंठल
  • मँझधार = नदी की बीच की धारा
  • चेतना = जागृत अवस्था

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Class 12 Hindi Chapter 2 Nirala Bhai Question Answer Maharashtra Board

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Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 2 निराला भाई Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

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12th Hindi Guide Chapter 2 निराला भाई Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.
लिखिए :

(अ) लेखिका के पास रखे तीन सौ रुपये इस प्रकार समाप्त हो गए :
(1) ……………………………………………
(2) …………………………………………..
(3) ……………………………………………
(4) ……………………………………………
उत्तर :
लेखिका के पास रखे तीन सौ रुपए इस प्रकार समाप्त हो गए –
(1) किसी विद्यार्थी का परीक्षा शुल्क देने के लिए 50 रुपए लिए।
(2) किसी साहित्यिक मित्र को देने के लिए 60 रुपए लिए।
(3) तांगेवाले की माँ को मनीआर्डर करने के लिए 40 रुपए लिए।
(4) दिवंगत मित्र की भतीजी के विवाह के लिए 100 रुपए लिए। तीसरे दिन जमा पैसे समाप्त।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

(आ) अतिथि की सुविधा हेतु निराला जी ये चीजें ले आए :
(1) ……………………………………………
(2) ……………………………………………
(3) ……………………………………………
(4) ……………………………………………
उत्तर :
अतिथि की सुविधा हेतु निराला जी ये चीजें ले आए –
(1) नया घड़ा खरीदकर लाए।
(2) उसमें गंगाजल भर लाए।
(3) धोती।
(4) चादर।

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
निम्न शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) प्रहरी – ……………………………………………
(2) अतिथि – ……………………………………………
(3) प्रयास – ……………………………………………
(4) स्मृति – ……………………………………………
उत्तर :
(1) प्रहरी = द्वारपाल
(2) अतिथि = मेहमान
(3) प्रयास = प्रयत्न
(4) स्मृति = याद

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) ‘भाई-बहन का रिश्ता अनूठा होता है, इस विषय पर अपना मत लिखिए।
उत्तर :
एक माता से उत्पन्न भाइयों अथवा भाई-बहनों का रिश्ता निराला होता है। यह रिश्ता अटूट होता है। बचपन में वे साथ-साथ खेलते, बढ़ते और पढ़ते हैं। जीवन में घटने वाली अनेक अच्छी बुरी घटनाओं के साक्षी होते हैं। बड़े होने पर बहन की शादी हो जाने पर उसका नया घर बस जाता है। फिर भी उसका लगाव अपने मायके के परिवार के साथ बना रहता है। जब भी पीहर आने का कोई मौका आता है, वह उसे कभी गँवाना नहीं चाहती।

पीहर में आकर उसे जो खुशी मिलती है, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। रक्षाबंधन के त्योहार पर वह कहीं भी हो, अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधने और उसकी आरती उतारने जरूर पहुँचती है। भाई-बहन का यह मिलन अनूठा होता है। भाई भी इस अवसर पर उसे अपनी क्षमता के अनुसार अच्छे-से-अच्छा उपहार देने से नहीं चूकता। यह उनके अटूट प्यार और अनूठे रिश्ते का ही प्रमाण है।

(आ) ‘सभी का आदरपात्र बनने के लिए व्यक्ति का सहृदयी और संस्कारशील होना आवश्यक है’, इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अपने परिवार और समाज में सबके साथ हिल-मिल कर रहना चाहता है। उसे सबके दुख-सुख में शामिल होना अच्छा लगता है। जीवों पर दया करना और मन में करुणा के भाव उत्पन्न होना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। ऐसे व्यक्ति संस्कारशील कहलाते हैं।

ऐसे व्यक्ति का सभी लोग आदर करते हैं और उसे अपना प्यार देते हैं। मगर सब लोग ऐसे नहीं होते। कुछ लोग विभिन्न कारणों से समाज से कटे-कटे रहते हैं और ‘अपनी डफली अपना राग’ विचार वाले होते हैं। वे अपने घमंड में चूर रहते हैं और किसी अन्य की परवाह नहीं करते।

ऐसे लोगों को समाज तो क्या कोई भी पसंद नहीं करता। ऐसे लोगों को समाज में सम्मान नहीं मिलता। इसलिए मनुष्य को सहृदयी और संस्कारशील होना जरूरी है।

पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न –

प्रश्न 4.
(अ) निराला जी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
निराला जी मानवता के पुजारी थे। उनमें मानवीय गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे। उन्हें स्वयं से अधिक दूसरों की अधिक चिंता होती थी। खुद निर्धनता में जीवन बिताते रहे, पर दूसरों के आर्थिक दुखों का भार उठाने के लिए सदा तत्पर रहते थे। आतिथ्य करने में उनका जवाब नहीं था।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

अतिथियों को सदा हाथ पर लिये रहते थे। उनके लिए खुद भोजन बनाने और बर्तन माँजने में उन्हें हर्ष होता था। घर में सामान न होने पर अतिथियों के लिए मित्रों से कुछ चीजें माँग लाने में शर्म नहीं करते थे। उदार इतने थे कि अपने उपयोग की वस्तुएँ भी दूसरों को दे देते थे और खुद कष्ट उठाते थे।

साथी साहित्यकारों के लिए उनके मन में बहुत लगाव था। एक बार कवि सुमित्रानंदन पंत के स्वर्गवास की झूठी खबर सुनकर वे व्यथित हो गए थे और उन्होंने पूरी रात जाग कर बिता दी थी।

निराला जी पुरस्कार में मिले धन का भी अपने लिए उपयोग नहीं करते थे। अपनी अपरिग्रही वृत्ति के कारण उन्हें मधुकरी खाने ३ तक की नौबत भी आई थी। इस बात को वे बड़े निश्छल भाव से बताते थे।

उनका विशाल डील-डौल देखने वालों के हृदय में आतंक पैदा कर देता था, पर उनके मुख की सरल आत्मीयता इसे दूर कर देती थी।

निराला जी से अन्याय सहन नहीं होता था। इसके विरोध में उनका हाथ और उनकी लेखनी दोनों चल जाते थे। निराला जी आचरण से क्रांतिकारी थे। वे किसी चीज का विरोध करते हुए कठिन चोट करते थे। पर उसमें द्वेष की भावना नहीं होती थी। निराला जी के प्रशंसक तथा आलोचक दोनों थे। कुछ लोग जहाँ उनकी नम्र उदारता की प्रशंसा करते थे, वहीं कुछ लोग उनके उद्धत व्यवहार की निंदा करते नहीं थकते थे।

निराला जी अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा रहे हैं। उनके सामने अनेक प्रतिकूल परिस्थितियाँ आईं पर वे कभी हार नहीं माने।

(आ) निराला जी का आतिथ्य भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निराला जी में आतिथ्य सत्कार का पुराना संस्कार था। वे अतिथि को देवता के समान मानते थे। अपने अतिथि की सुविधा में कोई कसर बाकी नहीं रखते थे। वे अतिथि को अपने कक्ष में ठहराते थे। उसके लिए स्वयं भोजन तैयार करते थे। बर्तन भी वे खुद माँजते थे। अतिथि सत्कार के लिए आवश्यक सामान घर में न होता तो वे अपने हित-मित्रों से माँगकर ले आते थे, पर अतिथि सेवा में कोई कमी नहीं रखते थे। कई बार तो वे कवयित्री महादेवी वर्मा के यहाँ से भोजन बनाने के लिए लकड़ियाँ तथा घी आदि माँगकर ले आए थे।

निराला जी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनका कक्ष भी सुविधाओं से रहित था, पर अतिथि के लिए उनके दिल में अपार श्रद्धा थी। एक बार प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त निराला जी का आतिथ्य ग्रहण करने आए थे। उस समय उन्होंने उनका जो सत्कार किया था वह देखते ही बनता था। निराला जी गुप्त जी के बिछौने का बंडल खुद बगल में दबाकर और दियासलाई की तीली के प्रकाश में तंग सीढ़ियों का मार्ग दिखाते हुए उन्हें अपने कक्ष में ले गए थे।

कक्ष प्रकाश और सुख सुविधा से रहित था, पर निराला जी की विशाल आत्मीयता से भरा हुआ था। वे गुप्त जी की सुविधा के लिए नया घड़ा खरीदकर उसमें गंगाजल ले आए। घर में धोती-चादर जो कुछ मिल सका सब तख्त पर बिछा कर गुप्त जी को प्रतिष्ठित किया था। निराला जी का आतिथ्य भाव अपनी किस्म का निराला था।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
(अ) ‘निराला’ जी का मूल नाम – [ ]
(आ) हिंदी के कुछ आलोचकों द्वारा महादेवी वर्मा को दी गई उपाधि – [ ]
उत्तर :
(अ) निराला जी का मूल नाम – सूर्यकांत त्रिपाठी।
(आ) कुछ हिंदी आलोचकों द्वारा महादेवी वर्मा को दी गई उपाधि – [आधुनिक मीरा]

रस

काव्यशास्त्र में आचार्यों ने रस को काव्य की आत्मा माना है। विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी (संचारी) भाव और स्थायी भाव रस के अंग हैं और इन अंगों अर्थात तत्त्वों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।

साहित्यशास्त्र में नौ प्रकार के रस माने गए हैं। कालांतर में अन्य दो रसों को सम्मिलित किया गया है।
रस – स्थायी भाव – रस – स्थायी भाव

  • शृंगार – प्रेम
  • शांत – शांति
  • करुण – शोक
  • हास्य – हास
  • भयानक – भय
  • रौद्र – क्रोध
  • बीभत्स – घृणा
  • वीर – उत्साह
  • अद्भुत – आश्चर्य
  • वात्सल्य – ममत्व
  • भक्ति – भक्ति

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

ग्यारहवीं कक्षा की युवकभारती पाठ्यपुस्तक में हमने करुण, हास्य, वीर, भयानक और वात्सल्य रस के लक्षण एवं उदाहरणों का अध्ययन किया है। इस वर्ष हम शेष रसों – रौद्र, बीभत्स, अद्भुत, शृंगार, शांत और भक्ति रस का अध्ययन करेंगे।

रौद्र रस : जहाँ पर किसी के असह्य वचन, अपमानजनक व्यवहार के फलस्वरूप हृदय में क्रोध का भाव उत्पन्न होता है; वहाँ रौद्र रस उत्पन्न होता है। इस रस की अभिव्यंजना अपने किसी प्रिय अथवा श्रद्धेय व्यक्ति के प्रति अपमानजनक, असह्य व्यवहार के प्रतिशोध के रूप में होती है।

उदा. –
(१) श्रीकृष्ण के वचन सुन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
सब शोक अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगे।

(२) कहा – कैकयी ने सक्रोध
दूर हट! दूर हट! निर्बोध!
द्विजिव्हे रस में, विष मत घोल।

बीभत्स रस : जहाँ किसी अप्रिय, अरुचिकर, घृणास्पद वस्तुओं, पदार्थों के प्रसंगों का वर्णन हो, वहाँ बीभत्स रस उत्पन्न होता है।

उदा. –
(१) सिर पर बैठो काग, आँखि दोऊ खात
खींचहि जीभहि सियार अतिहि आनंद उर धारत।
गिद्ध जाँघ के माँस खोदि-खोदि खात, उचारत हैं।
(२) सुडुक, सुडुक घाव से पिल्लू (मवाद) निकाल रहा है,
नासिका से श्वेत पदार्थ निकाल रहा है।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 2 निराला भाई Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका के प्रश्न 1 (अ) तथा प्रश्न 1 (आ) के लिए)
गद्यांश क्र. 1
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :

(1)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 3

(2)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 4

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए : निराला जी ने
(1) यह रचा – ………………………………..
(2) यह किया – ………………………………..
उत्तर :
निराला जी ने
(1) यह रचा – दिव्य वर्ण-गंधवाले मधुर गीत।
(2) यह किया – बर्तन मांजने, पानी भरने जैसे कठिन काम।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :
(1) कच्चे x ………………………………..
(2) प्रश्न x ………………………………..
(3) कठिन x ………………………………..
(4) जीवन x ………………………………..
उत्तर :
(1) कच्चे x पक्के
(2) प्रश्न – उत्तर
(3) कठिन x सरल
(4) जीवन x मरण।

प्रश्न 2.
गद्यांश में प्रयुक्त शब्द-युग्म ढूँढकर लिखिए :
(1) ………………………………..
(2) ………………………………..
उत्तर :
(1) वर्ण-गंध
(2) दिन-रात।

गद्यांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 5
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 6

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

प्रश्न 2.
किसी अन्य का कष्ट दूर करने के लिए लुप्त हो गई वस्तुएँ –
(1) …………………………..
(2) …………………………..
उत्तर :
किसी अन्य का कष्ट दूर करने के लिए लुप्त हो गई वस्तुएँ –
(1) रजाई
(2) कोट।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) आदेश = ……………………………….
(2) दुष्कर = ……………………………….
(3) अंतर्धान = ……………………………….
(4) दिवंगत = ……………………………….
उत्तर :
(1) आदेश = हुकम
(3) अंतर्धान = अदृश्य
(2) दुष्कर = कठिन
(4) दिवंगत = मृत।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘निर्बंध उदारता’ के बारे में अपना मत 40 से 50 शब्दों में व्यक्त किजिए।
उत्तर :
मनुष्य ही मनुष्य के काम आता है। किसी के दुखदर्द से सहानुभूति रखना अथवा उसकी आर्थिक मदद करना मनुष्य का धर्म है। इससे जरूरतमंद व्यक्ति को राहत और नैतिक सहयोग मिलता है। अनेक संपन्न व्यक्ति एवं बड़ी-बड़ी संस्थाएँ इस प्रकार का सहयोग देने का कार्य करती हैं। कई साधारण व्यक्ति भी अपनी क्षमता के अनुसार अपने जान-पहचान वाले लोगों की मदद करते हैं।

पर सामान्य लोगों के लिए किसी की आर्थिक सहायता करने की एक सीमा होती है। उसे सबसे पहले अपना घर-बार देखना पड़ता है। अगर कोई व्यक्ति अपनी क्षमता से अधिक उदारता बरतने लगता है, तो उसकी आर्थिक स्थिति अस्त-व्यस्त हो जाती है। ‘अति’ किसी की अच्छी नहीं होती। हर काम अपनी सीमा में ही फबता है। इसलिए निबंध उदारता अनुचित ही नहीं है, यह किसी की भी आर्थिक स्थिति को डाँवाडोल कर सकती है।

गद्यांश क्र. 3
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
लिखिए : निराला जी का कक्ष ऐसा था –
(1) ………………………….
(2) ………………………….
(3) सुख-सुविधाहीन।
(4) ………………………….
उत्तर :
(1) निराला जी का कक्ष ऐसा था –
(2) कक्ष में जाने का मार्ग तंग सीढ़ियों से होकर था।
(3) प्रकाश रहित था।
(4) सुख-सुविधाहीन।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

प्रश्न 2.
अतिथि के लिए निराला जी माँग लिया करते थे –
(1) ………………………….
(2) ………………………….
उत्तर :
अतिथि के लिए निराला जी माँग लिया करते थे
(1) लकड़ियाँ
(2) थोड़ा घी।

प्रश्न 3.
अतिथि देवता के लिए निराला जी शौक से ये करते थे-
(1) ………………………….
(2) ………………………….
उत्तर :
अतिथि देवता के लिए निराला जी शौक से ये करते थे –
(1) अतिथि के लिए भोजन बनाने का काम।
(2) उनके जूठे बर्तन माँजना।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘अतिथि देवो भव’ के बारे में अपने विचार 40 से 50 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
अतिथियों का स्वागत-सत्कार करना हमारे देश के लोगों के संस्कार का एक अंग रहा है। अतिथि के स्वागत में लोग कोई कसर बाकी नहीं रखते। घर में कोई सामान न हो, तो किसी के यहाँ से माँग-जाँच कर ले आने में भी लोग नहीं हिचकते। पर अतिथि की सेवा करने में कोई कसर नहीं रखते।

सुशील अतिथि मेजबान की क्षमता को ध्यान में रखते हैं और उसके साथ पूरा सहयोग करते हैं। मेजबान की तरफ से कहीं कोई कमी भी रह जाती है तो भी उसके साथ सहयोग करते हैं। ऐसे अतिथि मेजबान के लिए देव स्वरूप होते हैं। पर कुछ अतिथि ऐसे होते हैं, जो मेजबान की तरफ से आवभगत में कहीं कोई कमी रह जाने पर उसकी निंदा करने से भी नहीं चूकते।

कुछ अतिथि ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ की तरह मेजबान के घर आ धमकते हैं और जाने का नाम ही नहीं लेते। ऐसे अतिथि मेजबान के लिए भार स्वरूप होते हैं। जो अतिथि मेजबान की सुविधा-असुविधा का ध्यान रखते हैं, वही अतिथि देव स्वरूप होते हैं।

गद्यांश क्र. 4
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
(a)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 7
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 9

(b)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 8
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 10

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

प्रश्न 2.
चौखट पूर्ण कीजिए :
(1) गेरू में रंगे हुए वस्त्र।
(2) शरीर पर इस वस्त्र का अभाव था। –
(3) गद्यांश में प्रयुक्त दो वृक्ष।
(4) कवि का गैरिक शरीर ऐसा लगता था। –
उत्तर :
(1) गेरू में रंगे हुए वस्त्र। – [दोनों अधोवस्त्र और उत्तरीय]
(2) शरीर पर इस वस्त्र का अभाव था। – [अंगोछा]
(3) गद्यांश में प्रयुक्त दो वृक्ष। – [नीम-पीपल]
(4) कवि का गैरिक शरीर ऐसा लगता था – [किसी शिखर जैसा।]

प्रश्न 3.
उत्तर लिखिए : कवि के संन्यास से लेखिका को –
(1) लाभ – ………………………….
(2) हानि – ………………………….
उत्तर :
कवि के संन्यास से लेखिका को
(1) लाभ – साबुन के पैसे बचेंगे।
(2) हानि – जाने कहाँ-कहाँ छप्पर डलवाने पड़ेंगे।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के वचन बदल कर लिखिए :
(1) निधियाँ – ………………………..
(2) वस्त्रों – ………………………..
(3) रोटियाँ – ………………………..
(4) पुत्रौं – ………………………..
उत्तर :
(1) निधियाँ – निधि
(3) रोटियाँ – रोटी
(2) वस्त्रों – वस्त्र
(4) पुत्रौं – पुत्र

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘साधु-संन्यासियों से जनता का मोहभंग’ इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपना मत व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
एक समय था जब लोग साधु-संतों और संन्यासियों का बड़ा सम्मान करते थे। वे समाज में बड़े सम्मान की दष्टि से देखे जाते थे। वे समाज-सुधार और जनता के हित के कार्य किया करते थे और बदले में जनता से कोई अपेक्षा नहीं करते थे। लेकिन हाल में जब से साधु-संन्यासियों के वेष में कुछ ढोंगी लोगों ने साधुसंन्यासियों की जमात को अपने समाज-विरोधी कार्यों से बदनाम कर दिया है, तब से लोगों को इनसे घृणा हो गई है।

ऐसा नहीं है कि सच्चे साधु-संन्यासी हैं ही नहीं। हैं, लेकिन इन ढोंगी साधु संन्यासियों ने उनकी छबि-धूमिल कर दी है। ढोंगी साधु-संन्यासियों के बीच सच्चे साधु-संन्यासियों को पहचानना मुश्किल हो गया है। साधु-संन्यासियों से जनता का मोहभंग ढोंगी साधु-संन्यासियों की जमात के कारण हुआ है। सच्चे साधु-संन्यासियों की जनता आज भी मुरीद है।

गद्यांश क्र. 5
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई। सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
लिखिए : निराला जी इस दृष्टि से निराले थे –
(1) ………………………..
(2) जीवन में ………………………..
(3) ………………………..
उत्तर :
निराला जी इस दृष्टि से निराले थे –
(1) अपने शरीर की दृष्टि से।
(2) जीवन में।
(3) अपने साहित्य की दृष्टि से।

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प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :
(1) देखने वालों के हृदय में इससे आतंक उत्पन्न होता था –
(2) सत्य दृष्टा ऐसे होते हैं –
(3) अन्याय के प्रतिकार का निराला जी का तरीका –
(4) निराला जी की लेखनी की विशेषता –
उत्तर :
(1) देखने वालों के हृदय में इससे आतंक उत्पन्न होता था – [निराला जी का विशाल डील-डौल देखकर।]
(2) सत्यदृष्टा ऐसे होते हैं – [बालकों जैसे सरल और विश्वासी।]
(3) अन्याय के प्रतिकार का निराला जी का तरीका – [लेखनी के पहले हाथ उठाना।]
(4) निराला जी की लेखनी की विशेषता – [उनकी लेखनी हाथ से अधिक कठोर प्रहार करती थी।]

प्रश्न 3.
संबंध निरूपित कीजिए :
(1) क्रूरता – ………………………..
(2) कायरता – ………………………..
उत्तर :
(1) क्रूरता – वृक्ष की जड़ के अव्यक्त रस में
(2) कायरता – वृक्ष के फल के व्यक्त स्वाद में।

प्रश्न 4.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 11
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 12

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) शरीर = ………………………………………
(2) सत्य = ………………………………………
(3) प्रतिकार = ………………………………………
(3) कठोर = ………………………………………
उत्तर :
(1) शरीर = तन
(2) सत्य = सच्चाई
(3) प्रतिकार = विरोध
(4) कठोर = कड़ा

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कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘अन्याय सहन करना भी अन्याय है।’ इस विषय पर 40 से 50 . शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
सभी मनुष्य समान हैं। किसी को भी किसी के साथ अन्याय करने का अधिकार नहीं है। इसके बावजूद कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपने से कमजोर व्यक्तियों पर अत्याचार करने से नहीं चूकते। कभी किन्हीं कारणों से जिनके साथ अन्याय होता है, वे उसका विरोध भी नहीं कर पाते।

वे समझते हैं कि विरोध करने का परिणाम उल्टा होगा और अत्याचारी उसे और सताने की कोशिश करेगा। लेकिन यह सोच उचित नहीं है। अन्याय का विरोध न करने से अत्याचारी का मन और बढ़ जाता है। वह समझ जाता है कि उसके अत्याचार का विरोध करने की संबंधित व्यक्ति में शक्ति नहीं है।

इसलिए ऐसे लोगों पर अत्याचार करना अपना अधिकार मान लेता है और वह निडर होकर उन पर अत्याचार करता रहता है। इस तरह अत्याचार सहन करना अपने आप पर अन्याय हो जाता मुक्ति मिल सकती है।

गद्यांश क्र. 6 प्रश्न.
निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए : निराला जी के व्यवहार के बारे में जन-मत –
(1) – …………………………………..
(2) – …………………………………..
उत्तर :
(1) कोई उनकी उदारता की भूरि-भूरि प्रशंसा करता था।
(2) कोई उनके उद्धत व्यवहार की निंदा करते नहीं हारता था।

प्रश्न 2.
संजाल पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 13
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 15

प्रश्न 3.
कृति पूर्ण कीजिए :
(1) निराला अपने युग की यह हैं – …………………………………..
(2) उनके जीवन के चारों ओर यह नहीं है – …………………………………..
(3) उनके लिए परिवार के कोंपल यह बन गए – …………………………………..
(4) आर्थिक कारणों से उन्हें यह नहीं मिली – …………………………………..
उत्तर :
(1) विशिष्ट प्रतिमा
(2) परिवार का लौहसार घेरा।
(3) पत्नी वियोग के पतझड़।
(4) अपनी संतान के प्रति कर्तव्य-निर्वाह की सुविधा।

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प्रश्न 4.
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 14
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 16

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
गद्यांश में प्रयुक्त उपसर्गयुक्त शब्द ढूँढ़ कर लिखिए :
(1) …………………………………….
(2) …………………………………….
(3) …………………………………….
(4) …………………………………….
उत्तर :
(1) असफलता
(2) निष्फल
(3) सजातीय
(4) अभिशाप।

व्याकरण

1. मुहावरे :

• निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
(1) आँखों में धूल झोंकना।
अर्थ : धोखा देना।
वाक्य : साइबर क्राइम से अच्छे-अच्छे लोगों की आँखों में धूल झोंककर लाखों रुपए ऐंठ लिए जाते हैं।

(2) आँखें बिछाना।
अर्थ : अति उत्साह से स्वागत करना।
वाक्य : स्वामी जी के दर्शन के लिए श्रद्धालु आँखें बिछाए हुए थे।

(3) कान में कौड़ी डालना।
अर्थ : गुलाम बनाना।
वाक्य : अंग्रेजों ने भारी संख्या में भारतीय मजदूरों के कान में कौड़ी डाल रखा था।

2. काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :
(1) कौन बहिन हम जैसे भुक्खड़ को भाई बनाएगी। (सामान्य वर्तमानकाल)
(2) उनके अस्त-व्यस्त जीवन को व्यवस्थित करने के असफल प्रयासों का स्मरण कर मुझे आज भी हँसी आ जाती है। (अपूर्ण भूतकाल)
(3) उनकी व्यथा की सघनता जानने का मुझे एक अवसर मिला था। (पूर्ण वर्तमानकाल)
(4) पंत के साथ तो रास्ता कम अखरता था, पर अब सोचकर ही थकावट होती है। (सामान्य भविष्यकाल)
(5) निराला जी अपने शरीर, जीवन और साहित्य सभी में असाधारण हैं। (पूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
(1) कौन बहिन हम जैसे भुक्खड़ को भाई बनाती है।
(2) उनके अस्त-व्यस्त जीवन को व्यवस्थित करने के असफल प्रयासों का स्मरण कर मुझे आज भी हँसी आ रही थी।
(3) उनकी व्यथा की सघनता जानने का मुझे एक अवसर मिला है।
(4) पंत के साथ तो रास्ता कम अखरता था, पर अब सोचकर ही थकावट होगी।
(5) निराला जी अपने शरीर, जीवन और साहित्य सभी में असाधारण थे।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

3. वाक्य शुद्धिकरण :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके लिखिए :
(1) निराला जी अपनी युग के विशिष्ट प्रतिभा हैं।
(2) सत्य की मार्ग सरल हैं।
(3) मनुष्य जाती की नासमझी की इतिहास क्रूर और लंबा है।
(4) निराला जी अपना शरीर, जीवन और साहित्य सभी में असाधारण है।
(5) उनके जीवन पर संघर्श के जो आघात हैं, वे उनकी हार के नहीं शक्ती के प्रमाणपत्र हैं।
उत्तर :
(1) निराला जी अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा हैं।
(2) सत्य का मार्ग सरल है।
(3) मनुष्य जाति की नासमझी का इतिहास क्रूर और लंबा है।
(4) निराला जी अपने शरीर, जीवन और साहित्य सभी में असाधारण हैं।
(5) उनके जीवन पर संघर्ष के जो आघात हैं, वे उनकी हार के नहीं शक्ति के प्रमाणपत्र हैं।

निराला भाई Summary in Hindi

निराला भाई लेखक का परिचय

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 17

निराला भाई लेखक का नाम : श्रीमती महादेवी वर्मा। (जन्म 26 मार्च, 1907; निधन 1987.)

प्रमुख कृतियाँ : नीहार, रश्मि, नीरजा, दीपशिखा, सांध्यगीत, यामा (कविता संग्रह), अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार (रेखाचित्र), श्रृंखला की कड़ियाँ तथा साहित्यकार की आस्था (निबंध)।

विधा : संस्मरण।

विषय प्रवेश : प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला’ की गणना हिंदी के श्रेष्ठ कवियों में की जाती है। वे हिंदी साहित्य में छायावादी कवि एवं क्रांतिकारी व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं। प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा एवं निराला जी दोनों का कार्यक्षेत्र प्रयागराज रहा है। इसलिए भी कवयित्री निराला जी को नजदीक से जानती-समझती और उनके व्यक्तित्व से गहराई से परिचित रही हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

प्रस्तुत संस्मरण में उन्होंने निराला जी को जिन विभिन्न रूपों में देखा और परखा है, उसे उन्होंने बेबाकी से शब्दांकित किया है। – इस संस्मरण से हमें निराला जी के फक्कड़पन, उनके व्यक्तित्व, उनकी निर्धनता, उदारता, संवेदनशीलता, आतिथ्य सत्कार की भावना तथा पारिवारिक दशा आदि के बारे में अनेक अनछुई बातों की जानकारी मिलती है।

निराला भाई पाठ का सार

कवयित्री महादेवी वर्मा प्रसिद्ध कवि निराला जी के साथ घटित कई घटनाओं की साक्षी रही हैं। उन्होंने उन्हें नजदीक से देखा-समझा है। उन्होंने इस संस्मरण में उनके साथ घटी हुई अनेक घटनाओं और उनके स्वभाव एवं व्यवहार का चित्रण किया है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 18

निराला जी संवेदनशील उदार, आतिथ्यप्रेमी, सहृदय, फक्कड़ किस्म के और सदा निर्धनता में जीवन बिताने वाले कवि रहे हैं। वे स्पष्टवादी व्यक्ति थे और अपने बारे में सही बात कहने से नहीं चूकते थे। एक बार रक्षाबंधन त्योहार के अवसर पर कवयित्री ने उनकी सूनी कलाइयाँ देखकर इसके बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, “कौन बहन मुझ भुक्खड़ को भाई बनाएगी।”

कवि अपनी उदारता और दूसरों का दुख दूर करने की प्रवृत्ति के कारण सदा तंगी में रहे। वे खुद कष्ट सह लेते थे पर दूसरों का कष्ट दूर करके रहते थे। एक बार तो उन्होंने अपने लिए बनवाई गई रजाई और कोट भी किसी ठिठुरते हुए को दे दिया और खुद काँपते हुए मजे से सर्दियाँ काट दीं।

आर्थिक संकट सदा उनका साथी रहा। इसके कारण वे अपनी मातृविहीन संतान की भी उचित देखभाल न कर पाए। पुत्री के अंतिम क्षणों में असहाय बने रहे और पुत्र को उचित शिक्षा न दे पाए।

एक बार तो उन्होंने कवयित्री को 300 रुपए देकर अपने खर्च का बजट बनाने के लिए कहा था। पर बजट बनते-बनते तक सारे पैसे लेकर जरूरतमंद लोगों को दे डाले।

एक बार प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त ने उनका आतिथ्य ग्रहण किया था। जब वे आए तो वे दियासलाई के प्रकाश में उन्हें लेकर तंग सीढ़ियों से होकर अपने सुविधा रहित कक्ष में पहुँचे तो वहाँ ढंग का बिस्तर भी नहीं था। फिर उन्होंने घर में धोती, चादर जो कुछ मिला उसे तख्त पर बिछाकर बड़े प्यार से उन्हें प्रतिष्ठित किया था। अतिथि का सत्कार करने के लिए उन्होंने कवयित्री से एक बार जलावन लकड़ी और घी तक माँग लिया था।

समकालीन साहित्यकारों की व्यथा के बारे में सुनकर वे विचलित हो जाते थे। एक बार सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु की झूठी खबर पढ़कर वे बेचैन हो गए थे और सच्चाई जानने के लिए सारी रात जागते हुए इंतजार करते रहे।

एक बार तो उन्होंने अपने दोनों अधोवस्त्र और उत्तरीय गेरू में रंग डाले थे। कवयित्री उनका रूप देखती रह गई थीं। कहने लगे, “अब ठीक है। जहाँ पहुँचे, किसी नीम या पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए। दो रोटियाँ माँग कर खा लीं और गीत लिखने लगे।”

निराला जी के विशाल डील-डौल से देखने वाले के हृदय में आतंक उत्पन्न हो जाता था, पर उनकी आत्मीयता से यह भय तिरोहित हो जाता था।

निराला ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके बारे में अलग-अलग व्यक्तियों की अलग-अलग धारणाएँ थीं। कोई उनकी उदारता की प्रशंसा करते नहीं थकता तो कोई उनके उद्धत व्यवहार की निंदा करते नहीं हारता। पर उन्हें समझ पाना हर किसी के वश की बात नहीं थी।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

निराला जी अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा थे। वे एक विद्रोही साहित्यकार थे। कवयित्री का मानना है कि निराला जी किसी दुर्लभ सीप में ढले सुडौल मोती नहीं थे, वे तो अनगढ़ पारस के भारी शिलाखंड थे। पारस की अमूल्यता दूसरों का मूल्य बढ़ाने में होती है। उसके मूल्य में तो न कोई कुछ जोड़ सकता है, न कुछ घटा सकता है।

निराला भाई शब्दार्थ

  • भुक्खड़ = जिसके पास कुछ न हो, कंगाल
  • औढरदानी = अत्यंत उदारतापूर्वक दान करने वाला
  • अक्षुण्ण = अखंडित
  • लौहसार = लोहे का कठघरा
  • अछोर = ओर-छोर रहित, असीम
  • महाघ = बहुमूल्य
  • कुहेलिका = कोहरा, धुंध
  • नापित = नाई
  • मधुकरी = भोजन की भिक्षा
  • डीलडौल = कदकाठी
  • कोंपल = नई पत्ती
  • अकूल = बिना किनारेवाला
  • अनगढ़ = जिसे व्यवस्थित गढ़ा न गया हो
  • संसृति = संसार, सृष्टि

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कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

प्रश्न 1.
(अ) कृति पूर्ण कीजिए :

बल इसके लिए होता है ↓
(a) …………………………………….
(b) …………………………………….
उत्तर :
(a)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 11
(b)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 12

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण

(आ) जिसे मंजिल का पता रहता है वह :

(a) …………………………………….
(b) …………………………………….
उत्तर :
(a) सब के बल बनना – सब की मदद करना।
(b) पथ के संकट सहना – मंजिल पर पहुँचने की कोशिश में होने वाला कष्ट सहन करना।

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों से उपसर्गयुक्त शब्द तैयार कर उनका अर्थपूर्ण वाक्य में प्रयोग कीजिए :

(a) नीति – …………………………………….
(b) बल – …………………………………….
उत्तर :
(a) उपसर्गयुक्त शब्द – अनीति।
वाक्य : अनीति के मार्ग पर नहीं चलना चाहिए।

(b) उपसर्गयुक्त शब्द – आजीवन।
वाक्य : कुछ पाठक पुस्तकालयों के आजीवन सदस्य होते हैं।

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) ‘धरती से जुड़ा रहकर ही मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है’, इस विषय पर अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर :
लक्ष्य का अर्थ है निर्धारित उद्देश्य, जिसे प्राप्त करने के लिए गंभीरता पूर्वक नजर रखी जाए और उसे अर्जित करने के लिए यथासंभव प्रयास किया जाए। हर व्यक्ति का अपने-अपने है ढंग से लक्ष्य निर्धारण करने और उसे अर्जित करने का अपना तरीका होता है। कोई इसे हल्के-फुल्के ढंग से लेता है और बड़े से बड़ा लक्ष्य निर्धारित कर लेता है। ऐसे लक्ष्य क्षमता की कमी है और अपर्याप्त साधन के अभाव में कभी पूरे नहीं हो पाते। जो व्यक्ति अपनी क्षमता और अपने पास उपलब्ध साधनों के अनुसार लक्ष्य का निर्धारण और उसकी पूर्ति के लिए तन-मन-धन से प्रयास करता है, वह व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में अवश्य सफल होता है। ऐसे दूरदर्शी व्यक्ति जमीन से जुड़े हुए होते हैं और समझ-बूझ कर अपना लक्ष्य निर्धारित करते तथा उसके निरंतर प्रयासरत रहते हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण

(आ) ‘समाज का नवनिर्माण और विकास नर-नारी के सहयोग से ही संभव है’, इसपर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
हमारा समाज विभिन्न प्रकार की कुरीतियों और समस्याओं से भरा हुआ है। अनेक समाज सुधारकों के कठिन परिश्रम के बावजूद आज भी हमारे समाज में अनेक प्रकार की विषमताएँ व्याप्त हैं। असमानता, जातीयता, सांप्रदायिकता, प्रांतीयता, अस्पृश्यता आदि समस्याओं के कारण समाज के नर-नारी दोनों समान रूप से व्यथित हैं। जब तक हमारे समाज से ये बुराइयाँ दूर नहीं होती, तब तक समाज का नव निर्माण और विकास होना असंभव है। नर-नारी दोनों रथ के दो पहियों के समान हैं। बिना दोनों के सहयोग से आगे बढ़ना मुश्किल है। समाज की अनेक समस्याएँ ऐसी हैं, जिनके बारे में नारी को नर से अधिक जानकारियाँ होती हैं। नर-नारी दोनों कंधे से कंधा मिलाकर समाज उत्थान के कार्य में जुटेंगे, तभी समाज का . नव निर्माण और विकास संभव हो सकता है।

रसास्वादन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर चतुष्पादियों का रसास्वादन कीजिए :
(1) रचनाकार का नाम – …………………………………….
(2) पसंद की पंक्तियाँ – …………………………………….
(3) पसंद आने के कारण – …………………………………….
(4) कविता का केंद्रीय भाव – …………………………………….
उत्तर :
(1) रचना का शीर्षक : नव निर्माण।
(2) रचनाकार : त्रिलोचन (मूलनाम – वासुदेव सिंह)
(3) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में संघर्ष करने, अत्याचार, विषमता तथा निर्बलता पर विजय पाने का आवाहन किया गया है तथा समाज में समानता, स्वतंत्रता एवं मानवता की स्थापना की बात कही गई है।
(4) रस-अलंकार :
(5) प्रतीक विधान : कविता में विश्वास और प्रेरणा की मात्रा दर्शाने के लिए ‘आकाश’ तथा नर-नारी द्वारा नए समाज की रचना करने का कठिन कार्य करने के लिए ‘काँटों के ताज’ लेने जैसे प्रतीकों का सुंदर प्रयोग किया गया है।
(6) कल्पना : दबे-कुचले लोगों के प्रति आशावाद एवं उत्थान के स्वर बुलंद करना।

(7) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की । पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
जिसको मंजिल का पता रहता है,
पथ के संकट को वही सहता है,
एक दिन सिद्धि के शिखर पर बैठ
अपना इतिहास वही कहता है।

(8) कविता पसंद आने का कारण : प्रस्तुत पंक्तियों में यह बात कही गई है कि एक बार अपने लक्ष्य का निर्धारण कर लेने के बाद मनुष्य को हर समय उसको पूरा करने के काम में जी-जान से लग जाना चाहिए। फिर मार्ग में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, उन्हें सहते हुए निरंतर आगे ही बढ़ते रहना चाहिए। एक दिन ऐसे व्यक्ति को सफलता मिलकर ही रहती है। ऐसे ही व्यक्ति लोगों के आदर्श बन जाते हैं। लोग उनका गुणगान करते है और उनसे प्रेरणा लेते हैं।

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साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
(अ) चतुष्पदी के लक्षण लिखिए।
……………………………………………
……………………………………………
उत्तर :
चतुष्पदी चौपाई की भाँति चार चरणों वाला छंद होता है। इसके प्रथम, द्वितीय तथा चतुर्थ चरण में पंक्तियों के तुक मिलते हैं। तीसरे चरण का तुक नहीं मिलता। प्रत्येक चतुष्पदी भाव और विचार की दृष्टि से अपने आप में पूर्ण होती है और कोई चतुष्पदी किसी दूसरी से संबंधित नहीं होती।

(आ) त्रिलोचन जी के दो काव्य संग्रहों के नाम
……………………………………………
उत्तर :
त्रिलोचन जी के कुल पाँच काव्य संग्रह हैं –

  • धरती
  • दिगंत
  • गुलाब और बुलबुल
  • उस जनपद का कवि हूँ
  • सब का अपना आकाश।

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निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए :

  1. अतिथि आए है, घर में सामान नहीं है।
    ……………………………………………
  2. परंतु अम्यान भी अपराध है।
    ……………………………………………
  3. उसके सत्य का पराजय हो जाता है।
    ……………………………………………
  4. प्रेरणा और ताकद बनकर परस्पर विकास मे सहभागी बनें।
    ……………………………………………
  5. दिलीप अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थी।
    ……………………………………………
  6. आप इस शेष लिफाफे को खोलकर पढ़ लीजिए।
    ……………………………………………
  7. उसमें फुल बिछा दें।
    ……………………………………………
  8. कहाँ खो गई है आप।
    ……………………………………………
  9. एक मैं सफल सूत्र संचालक के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
    ……………………………………………
  10. चलते-चलते हमारे बीच का अंतर कम हो गया था।
    ……………………………………………

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उत्तर :

  1. अतिथि आए हैं, घर में सामान नहीं है।
  2. परंतु अज्ञान भी अपराध है।
  3. उसका सत्य पराजित हो जाता है।
  4. प्रेरणा और ताकत बनकर परस्पर विकास में सहभागी बनें।
  5. दिलीप अपने माता-पिता की इकलौती संतान था।
  6. शेष आप इस लिफाफे को खोल कर पढ़ लीजिए।
  7. उसमें फूल बिछा दें।
  8. कहाँ खो गई हैं आप?
  9. मैं एक सफल सूत्र संचालक के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
  10. हमारे बीच का अंतर चलते-चलते कम हो गया था।

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कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर
पद्यांश क्र. 1
कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (अ) तथा प्रश्न 2 (आ) के लिए
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़करदी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए :
(a)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 4

(b)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 5

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प्रश्न 2.
ऐसे दो प्रश्न बनाकर लिखिए जिनके उत्तर निम्नलिखित शब्द हों :

(a) उत्तर लिखिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 6

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्द के अर्थ वाले दो शब्द पद्यांश से ढूँढ कर लिखिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 7
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 8

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के शब्द-युग्म बना कर लिखिए :
(1) तोड़ – ……………………………..
(2) काम – ……………………………..
(3) जाना – ……………………………..
(4) आकाश – ……………………………..
उत्तर :
(1) तोड़ – जोड़
(2) काम – काज
(3) जाना – आना
(4) आकाश – पाताल।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए :
(1) विश्वास x ……………………………..
(2) अँधेरा x ……………………………..
(3) सत्य x ……………………………..
(4) सामने x ……………………………..
उत्तर :
(1) विश्वास – अविश्वास
(2) अँधेरा x उजाला
(3) सत्य x असत्य
(4) सामने x पीछे।

पद्यांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़करदी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के उपसर्गयुक्त शब्द तैयार कर उनका अर्थपूर्ण वाक्यों में प्रयोग कीजिए :
*(1) बल
(2) न्याय।
उत्तर :
(1) शब्द : निर् + बल = निर्बल।
वाक्य : निर्बल को सताना नहीं चाहिए।

(2)शब्द : अ + न्याय = अन्याय।
वाक्य : किसी व्यक्ति का अपनी बात कहने का अधिकार छीनना उसके साथ अन्याय करना है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के लिंग पहचानकर लिखिए :
(1) सिद्धि – …………………….
(2) इतिहास – …………………….
(3) मंजिल – …………………….
(4) पथ – …………………….
उत्तर :
(1) सिद्धि – स्त्रीलिंग।
(2) इतिहास – पुल्लिंग।
(3) मंजिल – स्त्रीलिंग।
(4) पथ – पुल्लिंग।

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कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘मानव सेवा ही सच्ची सेवा है’ इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
सेवा करने का अर्थ है किसी को प्रसन्न करने का प्रयत्न करना। दूसरों का दुख दूर करना सेवा का उद्देश्य है। दीनदुखी हमारे समाज के अंग हैं। अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए वे समाज से ही अपेक्षा रखते हैं। उनकी सेवा-सहायता करना समाज का कर्तव्य है। मानव सेवा विविध रूपों में की जा सकती है। पीड़ित व्यक्ति को बचाया जा सकता है। जिसके साथ अन्याय हो रहा है उसे न्याय दिलाया जा सकता है। निर्धन रोगियों को उनके इलाज का खर्च दिया जा सकता है। गरीब परिवार की कन्याओं के विवाह के लिए आर्थिक मदद की जा सकती है। अनेक संतों और समाज सेवियों ने अपना जीवन ही मानव सेवा को अर्पित कर दिया। दीनदुखियों की सेवा कर हम उनके चेहरों पर खुशी ला सकते हैं। इस तरह मानव सेवा ही सच्ची सेवा है।

पद्यांश क्र. 3
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
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उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 14

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :
(1) आज नर-नारी –
(i) इस तरह निकलेंगे – ………………………..
(ii) यह लेंगे – ………………………..
(iii) दोनों की विशेषताएँ – ………………………..
(iv) दोनों रचना करेंगे – ………………………..
उत्तर :
(i) इस तरह निकलेंगे – साथ-साथ।
(ii) यह लेंगे – काँटों का ताज।
(iii) दोनों की विशेषताएँ – संगी हैं, सहचर हैं।
(iv) दोनों रचना करेंगे – समाज की।

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प्रश्न 3.
लिखिए –
(i) काँटों का ताज लेंगे, यानी क्या?
(ii) ‘गीत मेरा भविष्य गाएगा’ से कवि का तात्पर्य?
उत्तर :
(i) महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सँभालेंगे।
(ii) भविष्य में (जब वर्तमान अतीत हो जाएगा तब) लोग वर्तमान की प्रशंसा करेंगे।

प्रश्न 4.
वर्तमान का कथन –
(i) ………………………..
(ii) ………………………..
(iii) ………………………..
(iv) ………………………..
उत्तर :
(i) अतीत अच्छा था।
(ii) प्राण के पथ का गीत अच्छा था।
(iii) मेरा गीत भविष्य गाएगा।
(iv) अतीत का भी गीत अच्छा था।

प्रश्न 5.
दो ऐसे प्रश्न बनाकर लिखिए जिनके उत्तर निम्नलिखित शब्द हों :
(1) समाज की
(2) भविष्य।
उत्तर :
(1) नर-नारी किसकी रचना करेंगे?
(2) वर्तमान के गीत कौन गाएगा?

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के युग्म-शब्द बना कर लिखिए :
(1) ……………………………… मीत
(2) साथ – ………………………………
(3) संगी – ………………………………
(4) अच्छा – ………………………………
उत्तर :
(1) हित – मीत
(2) साथ – साथ
(3) संगी – साथी
(4) अच्छा – बुरा।

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रसास्वादन मुद्दों के आधार पर

कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (इ) के लिए

निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर ‘नव निर्माण’ कविता का रसास्वादन कीजिए।

रसास्वादन अर्थ के आधार पर

प्रश्न 1.
अन्याय, अत्याचार से दीन-दुखियों को मुक्ति दिलाने के लिए उनका बल बन जाना ही बलवान व्यक्तियों के बल का सही उपयोग हैं। इस कथन के आधार पर ‘नव निर्माण’ कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
कवि त्रिलोचन द्वारा चतुष्पदी छंद में रचित कविता ‘नव निर्माण’ का मूलतत्त्व जीवन में संघर्ष करना बताया गया है। हमारे समाज में व्याप्त अन्याय, अत्याचार, विषमता आदि का बोलबाला है। कवि इन बुराइयों पर काबू पाने के लिए लोगों को बल और साहस एकत्र करने का आवाहन करते हैं। यह सर्व विदित है कि ये सारी बुराइयाँ कुछ लोगों द्वारा अपने शारीरिक एवं आर्थिक बल का दुरुपयोग करने के कारण पनपती हैं। इसलिए इन पर विजय पाने का मार्ग भी बल का प्रयोग ही है। यहाँ बल प्रयोग से कवि का आशय किसी के विरुद्ध बल का अनावश्यक प्रयोग करने से न होकर सताए हुए, दबाए हुए बलहीन लोगों का बल बन कर दिखाने से है। बलहीन निरीह व्यक्तियों पर होने वाला अन्याय और अत्याचार तभी रुक सकता है और तभी उन्हें समाज में समानता का दर्जा मिल सकता है और वे निर्बलता पर विजय प्राप्त कर सकेंगे। इसी बात को कवि अपनी कविता में बिना किसी लाग-लपेट के सीधे-सादे सरल शब्दों में इस प्रकार कहते हैं –

बल नहीं होता सताने के लिए,
वह है पीड़ित को बचाने के लिए।
बल मिला है, तो बल बनो सबके,
उठ पड़ो न्याय दिलाने के लिए।

कवि ने इस कविता में अपनी बात कहने के लिए न कहीं रसअलंकार वाली शृंगारिक भाषा का प्रयोग किया है और न ही उन्हें अपनी बात कहने के लिए दुरुहता के मायाजाल में ही फँसना पड़ा है। कविता के शाब्दिक शरीर के रूप में सरल शब्दों की अमिघा शक्ति तथा कविता का प्रसाद गुण कविता में व्यक्त भावों को सरलतापूर्वक आत्मसात करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

व्याकरण

1. अलंकार :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में उद्धृत अलंकार पहचानकर उसका नाम लिखिए :
(1) हाय फूल-सी कोमल बच्ची। हुई राख की थी ढेरी।
(2) मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों।
(3) इस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा। मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।
उत्तर :
(1) उपमा अलंकार।
(2) रूपक अलंकार।
(3) उत्प्रेक्षा अलंकार।

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2. रस :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में उद्धृत रस पहचानकर उसका नाम लिखिए :
(1) उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।
उत्तर :
रौद्र रस

प्रश्न 2.
काहु न लखा सो चरित बिसेरवा। सो स्वरूप नृपकन्या देखा। मर्कट बदन भयंकर देही। देखत हृदय क्रोध भा तेही। जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि तेहिन विलोकी भूली। पुनि पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं। देखि दशा हर गान मुसुकाहीं।
उत्तर :
हास्य रस।

3. मुहावरे :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
(1) अपना उल्लू सीधा करना।
अर्थ : अपना स्वार्थ सिद्ध करना।
वाक्य : रमेश से समाज के हित की उम्मीद करना व्यर्थ है, वह हमेशा अपना उल्लू सीधा करने में लगा रहता है।

(2) दिन दूना रात चौगुना बढ़ना।
अर्थ : दिन प्रतिदिन अधिक उन्नति करना।
वाक्य : जब से मुनीम जी की सलाह से सेठ करोड़ीमल ने काम-काज शुरू किया है, तब से उनका धंधा दिन दूना रात चौगुना बढ़ता जा रहा है।

4. काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों के साथ दी गई सूचना के अनुसार काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :
(1) तुमने मुझे विश्वास दिया है। (अपूर्ण वर्तमानकाल)
(2) राह में अँधेरा है। (सामान्य भविष्यकाल)
(3) नर-नारी साथ निकलेंगे। (पूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
(1) तुम मुझे विश्वास दे रहे हो।
(2) राह में अँधेरा होगा।
(3) नर-नारी साथ निकले थे।

नवनिर्माण Summary in Hindi

नवनिर्माण कवि का परिचय

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नवनिर्माण कवि का नाम : त्रिलोचन। वास्तविक नाम वासुदेव सिंह। (जन्म 20 अगस्त, 1917; निधन 2007.)

प्रमुख कृतियाँ : धरती, दिगंत, गुलाब और बुलबुल, उस जनपद का कवि हूँ, सब का अपना आकाश (कविता संग्रह); देशकाल (कहानी संग्रह) तथा दैनंदिनी (डायरी) आदि।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण

विशेषता : काव्यक्षेत्र में प्रयोग धर्मिता के समर्थक। समाज के दबे-कुचले वर्ग को संबोधित करने वाले साहित्य के रचयिता।

विधा : चतुष्पदी। इस विधा में चार चरणों वाला छंद होता है। यह चौपाई की तरह होता है। इसके प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ चरण में तुकबंदी होती है। भाव और विचार की दृष्टि से प्रत्येक चतुष्पदी अपने आप में पूर्ण होती है।

विषय प्रवेश : प्रस्तुत पद्य पाठ में कुल आठ चतुष्पदियाँ दी गई हैं। ये सभी चतुष्पदियाँ भाव एवं विचार की दृष्टि से अपने आप में पूर्ण है। इन चतुष्पदियों में आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। कवि ने इनके माध्यम से संघर्ष करने तथा अन्याय, अत्याचार, विषमता और निर्बलता पर विजय पाने का आवाहन किया है।

नवनिर्माण चतुष्पदियों का सरल अर्थ

(1) तुमने विश्वास ……………………………….. आकाश दिया है मुझको।
मनुष्य के जीवन में किसी का विश्वास प्राप्त करने तथा किसी से प्रोत्साहन पाने का बड़ा महत्त्व होता है। इनके बल पर मनुष्य बड़े-बड़े काम कर डालता है।

कवि कहते हैं कि, तुमने मुझे जो विश्वास और प्रेरणा दी है वह मेरे लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इन्हें देकर तुमने मुझे असीम संसार दे दिया है। पर मैं इन्हें इस तरह सँभाल कर अपने पास रखूगा कि मैं आकाश में न उहूँ और मेरे पाँव हमेशा जमीन पर रहें। अर्थात मुझे अपनी मर्यादा का हमेशा ध्यान रहे।

(2) सूत्र यह तोड़ ……………………………….. छोड़ नहीं सकते।

कवि मनुष्य के बारे में कहते हैं कि वह चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए, आकाश में उड़ानें भरता हो या अन्य कहीं उड़ कर चला जाए, पर अंत में उसे अपनों के बीच यानी धरती पर तो आना ही पड़ता है। कवि कहते हैं कि, यह बात शाश्वत सत्य है। इस सच्चाई को कोई नियम तोड़-मरोड़ कर झूठा साबित नहीं कर सकता। अर्थात मनुष्य कितना भी आडंबर क्यों न कर ले, पर वह अपनी वास्तविकता को छोड़ नहीं सकता।

(3) सत्य है ……………………………….. सामने अँधेरा है।
कवि संघर्ष करने का आवाहन करते हुए कहते हैं कि आपकी राह अँधेरों से भरी हुई है; भले यह बात सच हो या आपकी प्रगति के द्वार को अवरुद्ध करने के लिए तरह-तरह की कठिनाइयाँ रास्ते में आ रही हों, तब भी आपको संघर्ष के मार्ग पर रुकना नहीं है।

अँधेरे में भी आगे ही आगे बढ़ते जाना है, क्योंकि इसके अलावा आपके सामने और कोई चारा भी तो नहीं है। कवि का कहने का तात्पर्य यह है कि संघर्ष करना जारी रखना चाहिए। संघर्ष से ही सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

(4) बल नहीं होता ……………………………….. “दिलाने के लिए।

कवि कहते हैं कि मनुष्य को निरर्थक कार्यों के लिए अपने बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उसका प्रयोग सार्थक कार्यों के लिए होना चाहिए। वे कहते हैं कि मनुष्य के पास बल किसी असहाय, पीड़ित व्यक्ति को सताने के लिए नहीं होता। बल्कि वह किसी असहाय या पीड़ित व्यक्ति की रक्षा करने के लिए होता है। कवि बलवान व्यक्तियों को संबोधित करते हुए कहते हैं, यदि ईश्वर ने तुम्हें शक्ति प्रदान की है, तो तुम सभी कमजोर लोगों के बल बन ३ कर उनको न्याय दिलाने के काम में लग जाओ। तभी तुम्हारे बल की सार्थकता है।

(5) जिसको मंजिल ……………………………….. वही कहता है।

कवि कहते हैं कि जिस व्यक्ति को अपनी सफलता की मंजिल की जानकारी हो जाती है, वह व्यक्ति अपने मार्ग में आने वाली परेशानियों से नहीं डरता। वह हँसते-हँसते इन परेशानियों को झेल लेता है। ऐसे व्यक्तियों को ही जीवन में सफलता मिलती है। इस तरह सफलता के शिखर पर पहुँचने वाले व्यक्ति समाज के लिए इतिहास बन जाते हैं और लोग उससे प्रेरणा लेते हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण

(6) प्रीति की राह ……………………………….. चले आओ।
कवि प्यार-मोहब्बत और अच्छे आचार-व्यवहार को अपनाने की बात करते हुए लोगों का आवाहन करते हैं कि वे सब के साथ प्यार-मोहब्बत से रहें और सब के साथ अच्छा व्यवहार करें। यही सब के लिए अपनाने वाला सही मार्ग है। वे कहते हैं कि सब को हँसते-गाते जीवन जीने का मार्ग अपनाना चाहिए।

(7) साथ निकलेंगे ……………………………….. “समाज नर-नारी।
कवि स्त्री-पुरुष समानता की बात करते हुए कहते हैं कि स्त्री पुरुष दोनों एक साथ मिल कर विकट समस्याओं को सुलझाने का कार्य करेंगे। दोनों इस दिशा में कंधे से कंधा मिलाकर काम करेंगे और नए समाज की रचना करेंगे, जिसमें सब को समानता का अधिकार मिले।

(8) वर्तमान बोला……………………………….. गीत अच्छा था।

कवि वर्तमान और अतीत की बात करते हुए कहते हैं कि वर्तमान के अनुसार बीता हुआ समय अच्छा था। उस समय जीवन पथ में साथ निभाने वाले अच्छे मित्र थे। वर्तमान कहता है कि भविष्य में (जब हम अतीत हो जाएँगे और) लोग हमारा भी गुणगान करेंगे। वैसे अतीत भी गुणगान करने लायक था।

नवनिर्माण शब्दार्थ

  • व्योम = आकाश
  • सहचर = साथ-साथ चलने वाला, मित्र
  • सिद्धि = सफलता
  • मीत = मित्र, दोस्त

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Maharashtra Board

Vruttalekh Class 12 Marathi Bhag 4.4 Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 12th Digest Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग) Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

12th Marathi Bhag 4.4 Exercise Question Answer Maharashtra Board

वृत्तलेख (फिचर रायटिंग) 12 वी मराठी स्वाध्याय प्रश्नांची उत्तरे

12th Marathi Guide Chapter 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग) Textbook Questions and Answers

कृती

1. वृत्तलेख म्हणजे काय ते स्पष्ट करा.
उत्तर :
मानवी जीवन बातम्यांनी वेढलेले आहे. बातमी वाचली वा सांगितली, तरी वाचकांच्या मनातील उत्सुकता संपत नाही. बातमीत वस्तुनिष्ठ माहिती असते. घडलेली घटना जशीच्या तशी सांगितली जाते. परंतु घटनेच्या भोवताली असलेल्या अनेकविध कंगोऱ्यांचा वेध ज्या लेखनातून घेतला जातो, त्याला वृत्तलेख असे संबोधले जाते. बातमीत ज्या बाबी निदर्शनास येत नाहीत, त्या शोधून रंजक, नावीन्यपूर्ण पद्धतीने वृत्तलेखात मांडल्या जातात. वृत्तलेखाला इंग्रजीत फिचर असे म्हणतात. फिचर या शब्दाचा ऑक्सफर्डच्या शब्दकोशातील अर्थ आहे, ‘बातमीपलीकडचे खास असे काही, आकर्षक असे काही.’

म्हणजेच बातमी ज्या घटनेविषयी आहे, त्याचे तपशील वाचकांपर्यंत पोहोचवण्याचे काम वृत्तलेख करीत असतात. वाचकांच्या मनात बातमीविषयी उत्कंठा वाढवणे, माहिती देणे, ज्ञान देणे, वृत्तलेखाचे महत्त्वाचे कार्य असते. वृत्तलेखाचा आशय, विषय, मांडणी, शैली वाचकांच्या अभिरुचीला साजेशी असते. वृत्तलेख बातमीचे आस्वादनीय रूप असते.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)

2. बातमी आणि वृत्तलेख यातील फरक स्पष्ट करा.
उत्तर :
‘जे जे आपणासी ठावे, ते ते इतरांसी सांगावे’ या उक्तीनुसार मनुष्य जीवन जगत असतो. माहिती मिळवणे आणि ती इतरांना सांगणे मनुष्य स्वभावाचे महत्त्वाचे वैशिष्ट्य म्हणता येते. बातमी हा आपल्या आयुष्यातला अपरिहार्य घटक बनला आहे. बातमीत घडलेली घटना जशीच्या तशी सांगण्यावर विशेष लक्ष असते. वस्तुनिष्ठता हा बातमीचा विशेष मानला जातो. लोकजागृती, लोकशिक्षण हे बातमीत महत्त्वाचे असते. बातमीत ‘मी’ असत नाहीत. घटनेचे वास्तवदर्शी रूप बातमी दाखवत असते. बातमी एखादया घटना/प्रसंगाचे दर्शनी रूप नजरेसमोर उभे करू शकते.

वृत्तलेख बातमीच्या पलीकडे असणारी बातमी मांडण्याचा प्रयत्न करीत असतो. बातमीत न आलेली नावीन्यपूर्ण, रंजक माहिती वृत्तलेखात वाचावयास मिळते. बातमीतील घटनेमागे असणारे सूक्ष्म धागेदोरे शोधण्याचा प्रयत्न वृत्तलेखात केला जातो. वृत्तलेख बातमीच्या पायावर उभा असला, तरी वृत्तलेखाचे रूप लालित्यपूर्ण असते. काल्पनिकता नसली तरी बातमीतील अस्पर्शित नोंदी विस्तृतपणे चित्रित केल्या जातात.

3. वृत्तलेखाचे प्रकार लिहून, कोणत्याही एका प्रकाराविषयी सविस्तर माहिती लिहा.
उत्तर :
वृत्तलेखाचा विषय, मांडणी यानुसार वृत्तलेखाचे काही प्रकार पाहायला मिळतात. ते असे :
(१) बातमीवर आधारित वृत्तलेख (२) व्यक्तिचित्रणात्मक वृत्तलेख (३) मुलाखतीवर आधारित वृत्तलेख (४) ऐतिहासिक स्थळांविषयी वृत्तलेख (५) नवल, गूढ, विस्मय यांवर आधारित वृत्तलेख. या सर्व प्रकारांमधील व्यक्तिचित्रणात्मक वृत्तलेख हा एक महत्त्वाचा प्रकार आहे. या प्रकारात एखादया विशिष्ट क्षेत्रातील नामवंत, उल्लेखनीय कामगिरी केलेल्या व्यक्तीच्या कार्यप्रवासावर लिहिले जाते. एखादया क्षेत्रात काम करीत असताना त्या व्यक्तीच्या जीवनात आलेले अनुभव, यश, अडचणींचा केलेला सामना, संघर्ष, उपक्रम, विक्रम इत्यादींसंदर्भात विस्ताराने लिहिले जाते.

या प्रकारचे वृत्तलेख औचित्य साधून लिहिले जातात. पुरस्कार, जयंती, पुण्यतिथी, जन्मशताब्दी यांसारख्या प्रसंगी व्यक्तिचित्रणात्मक वृत्तलेख लिहिले जातात. काही वेळा त्या व्यक्तिसंबंधाने झालेले पूर्वीचे लेखन, त्या व्यक्तीने अन्य लोकांबद्दल केलेले लेखन, त्या व्यक्तीसोबत काम केलेल्या अन्य व्यक्तींचे अनुभव, त्या व्यक्तीच्या सहकाऱ्यांकडून मिळवलेली वैशिष्ट्यपूर्ण माहिती इत्यादींचाही वृत्तलेख लिहिताना उपयोग होतो. केवळ आकडेवारी, सनावळ्या यांना या लेखात फारसे महत्त्व नसते. त्या व्यक्तीची जीवनशैली, वेगळेपण, सवयी अशा व्यक्तिगत जीवनाला स्पर्श करणाऱ्या बाबी महत्त्वाच्या ठरतात.

या प्रकारच्या लेखात व्यक्तीच्या जीवनातील भावनिक गोष्टींना अधिक महत्त्व असते.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)

4. ‘वृत्तलेख लिहिताना विचारात घ्यावयाच्या बाबी लिहा.
उत्तर :
वृत्तलेख वाचकांच्या जिज्ञासापूर्तीसाठी महत्त्वाची भूमिका बजावत असतो. बातमीत जे अस्पर्शित आहे, ते शोधून त्याचा सविस्तर आढावा वृत्तलेख घेत असतो. वाचक नेहमीच वर्तमानपत्रीय लेखनात मूलभूत घटक ठरला आहे. वृत्तलेखात वाचकाची अभिरुची प्राधान्याने लक्षात घेतली जाते. वृत्तलेखात तात्कालिकता हा मुद्दाही लक्षात घेतला जातो. वृत्तलेख नैमित्तिक असतो. वृत्तलेखाचे कारण लक्षात घेऊन वाचक वृत्तलेख वाचत असतो. वृत्तलेखाच्या आराखड्यातून वृत्तलेखाचे वेगळेपण अधोरेखित करता येते. यासाठी वृत्तलेखाची मांडणी करताना वेगळेपणाचा विचार करणे गरजेचे असते.

वृत्तलेखाच्या आरंभापासून ते शेवटच्या वाक्यापर्यंत वृत्तलेखाने वाचकाची उत्सुकता टिकवून ठेवणे आवश्यक असते. यासाठी वृत्तलेखाचा विषय, मध्यवर्ती कल्पना, शीर्षक, तक्ते, नकाशा, छायाचित्र या सर्वांचा विचार करावा लागतो. वृत्तलेखाचा मजकूर जेवढा उत्तम हवा असतो, त्यासोबतच समर्पक छायाचित्रांची यथोचित मांडणी महत्त्वाची असते. वाचकांचे लक्ष वेधण्यासाठी मांडणीचा वाटा महत्त्वाचा असतो.

वृत्तलेखात शैली या घटकावरही लक्ष दयावे लागते. वृत्तलेखाचा आरंभ, मध्य आणि समारोप यांतून वृत्तलेखनातून अपेक्षित हेतू साध्य होणे आवश्यक असते. वृत्तलेखाच्या भाषेचा विचारही अपेक्षित असतो. सरळ, साधी, मनाला भिडणारी भाषा असणे आवश्यक असते. उत्तम वृत्तलेखासाठी या महत्त्वपूर्ण बाबी विचारात घेणे आवश्यक असते.

5. थोडक्यात उत्तरे लिहा.

प्रश्न अ.
वृत्तलेखाची गरज
उत्तर :
बातमी वाचली तरी वाचकांच्या मनातील बातमीविषयीची उत्सुकता संपत नाही. बातमी घडलेल्या घटनेचे वास्तव चित्रण करीत असते. घटना समजून घ्यायची असेल, तर बातमीत न आलेल्या बाबींचा शोध घेणे आवश्यक असते. वृत्तलेख बातमीच्या आतील बातमी उलगडून दाखवण्याचे काम करीत असते. वृत्तलेखातून बातमीच्या मुळापर्यंत पोहोचणे शक्य होते. घडून गेलेल्या वा घडू पाहणाऱ्या घटनेशी वृत्तलेखाचा संबंध असतो. वृत्तलेख वाचकांना आनंद देणारा, माहिती देणारा असतो. वाचकांच्या विचारांना धक्का देण्याची ताकद वृत्तलेखात असते. बातमीचा आनंद घेण्यासाठी वृत्तलेखाची मदत होत असते. वृत्तलेख वाचकांच्या भावनांची दखल घेत असतो. वाचकांचे समाधानही वृत्तलेख वाचनातून होत असते.

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प्रश्न आ.
वृत्तलेखाचे स्रोत
उत्तर :
प्रसारमाध्यमांवर प्रकाशित, प्रसारित होणाऱ्या बातम्या पाहिल्यानंतर लेखकाच्या मनात वृत्तलेखाचे बीज तयार होत असते. बातमीच्या अनुषंगाने असणारे संदर्भ, गोष्टी, मुलाखती या बाबींचा पाठपुरावा केला की वृत्तलेखाला आवश्यक वातावरण निर्माण होत असते. बातमी हा वृत्तलेखाचा महत्त्वाचा स्रोत आहे. बातमीतल्या घटनेचे स्वरूप आणि परिणाम समजून घेण्यासाठी वृत्तलेख दिशादर्शक ठरू शकतो. पत्रकारितेच्या क्षेत्रात अनेक व्यक्तींशी संपर्क होत असतो. त्यांच्याशी होणाऱ्या संवादातून वृत्तलेखाचे विषय मिळू शकतात. पत्रकारितेत नेहमी बातमी सहज उपलब्ध होतेच असे नाही. बऱ्याचदा बातमी शोधावी लागते, त्यातील छुपे कंगोरे शोधावे लागतात. त्यासाठी बातमीशी निगडित अनेक लोकांशी संभाषण करावे लागते. यातून वृत्तलेखाला बीज सहज मिळू शकते. वृत्तलेखासाठी बारकाईने निरीक्षण अपेक्षित असते. सभोवताली घडणाऱ्या घटनांचे निरीक्षण करता येणे, त्यातील बातमी शोधून वृत्तलेखाचा विषय निर्माण करता येऊ शकतो.

प्रश्न इ.
वृत्तलेखाची भाषा
उत्तर :
वृत्तलेख बातमीवर आधारित असला, तरी बातमीपेक्षा अधिक सांगण्याचा प्रयत्न करीत असतो. वृत्तलेख लिहिताना वाचकांच्या अभिरुचीचा विचार वृत्तलेखात प्राधान्याने केला जातो. सर्वसाधारण वाचक वर्ग नजरेसमोर ठेवून वृत्तलेखाच्या विषयांची निवड केली जाते. वृत्तलेखाची भाषा देखील सहज, सोपी चटकन ५ विषय लक्षात येईल अशी असणे अपेक्षित असते. भाषेचे स्वरूप सरळ असले, तरी परिणामकारकता असणे गरजेचे असते. वृत्तलेख वाचकांची उत्सुकता वाढवत असल्याने भाषा मनाला भिडणारी असावी. वृत्तलेखातील मजकुरातील शब्दबंबाळपणा टाळणे आवश्यक असते. लहान लहान वाक्यरचना, बोलीभाषेतील शब्द असतील, तर विषय समजण्यास सोपे होते. विषयाचा हेतू लक्षात घेऊन वाचकांची जिज्ञासा शमली जावी, अशा भाषेत वृत्तलेखाची मांडणी असणे अभिप्रेत असते.

प्रश्न ई.
वृत्तलेखाची वैशिष्ट्ये
उत्तर :
अनेकदा एखादया बातमीच्या वाचनानंतर वाचकाच्या मनात त्या बातमीविषयी कुतूहल निर्माण होते. बातमीच्या स्वरूपानुसार घटनेमागील घटना बातमीत सांगितली जात नाही. अशा वेळी वाचकांच्या उत्सुकतेसाठी वृत्तलेख लिहिले जातात. वृत्तलेख तात्कालिक असतात. घटनेचे निमित्त वृत्तलेखाच्या पाठीशी असते. वृत्तलेख घडून गेलेल्या घटनेबद्दल बोलत असते. बातमीत घटनेचा तपशील देता येत नाही. वृत्तलेखात बातमीतील अदृश्य दुवे प्रकाशझोतात आणण्याचा प्रयत्न केला जातो. वृत्तलेखाचा विषय नेहमी ताजा असतो. वृत्तलेखाला ‘धावपळीतले साहित्य’ असेही म्हणतात. वाचकांना बातमीचा आस्वाद घेण्यासाठी वृत्तलेखाची निर्मिती होत असते.

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6. वर्तमानपत्रातील एखादा वृत्तलेख मिळवा आणि त्यात आढळलेली वैशिष्ट्ये लिहा.
उत्तर :
दि. ४ फेब्रुवारी २०१२ रोजी लोकसत्ता या वर्तमानपत्रातील चतुरंग पुरवणीत प्रकाशित झालेला वृत्तलेख वाचला. मीना वैशंपायन यांनी लेखिका दुर्गा भागवत यांच्या आठवणींना उजाळा देण्यासाठी सदर वृत्तलेख लिहिला आहे. दहा फेब्रुवारी हा दुर्गाबाई भागवतांचा जन्मदिवस. या निमित्ताने ‘मुक्ता’ या शीर्षकाने हा वृत्तलेख लिहिला आहे. दुर्गाबाई भागवतांची वैचारिक भूमिका, स्त्री सक्षमीकरणाचे विचार आणि दुर्गाबाई भागवत यांच्यातील स्त्री जाणिवांचा वेध घेणे हा वृत्तलेखाचा मध्यवर्ती विषय आहे. वृत्तलेखाचा आरंभ १९७५ च्या काळातील आणीबाणीचा संदर्भ आणि दुर्गाबाई भागवतांची परखड भूमिका या संदर्भांनी केला आहे.

१९७५ ची आणीबाणी, त्याच वर्षी दुर्गाबाई भागवत यांचे अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलनाचे अध्यक्षपद आणि १९७५ ला घोषित झालेले जागतिक महिला वर्ष यांचे संदर्भ वृत्तलेखाच्या पहिल्या टप्प्यात लेखिकेने नमूद केले आहेत. हे वाचत असताना वाचक म्हणून उत्सुकता हळूहळू वाढत जाते. स्त्रीस्वातंत्र्य, सबलीकरण, स्त्री-पुरुष समानता याबद्दल दुर्गाबाई भागवतांच्या विचारांचे विश्लेषण लेखिकेने विस्तृतपणे केले आहे. स्त्री मूलतः सक्षम आहे हे सांगताना दुर्गाबाई भागवत यांनी लिहिलेल्या ‘विदयेच्या वाटेवर’ या लेखाचा संदर्भ वृत्तलेखिकेने वृत्तलेखात सोदाहरण सांगितला आहे.

सदर लेखाचा व्यक्तिचित्रणात्मक या वृत्तलेख प्रकारात समावेश करता येतो. दुर्गाबाई भागवत यांच्यातील ‘मुक्त स्त्रीत्वाचा दृश्य आविष्कार’ संपूर्ण वृत्तलेखात लेखिकेने समर्थपणे शब्दरूपात उभा केला आहे. वृत्तलेखाचा आरंभ, मध्य आणि समारोप या तीन पातळ्यांवर वृत्तलेख यशस्वी होतो. वृत्तलेखाची भाषा प्रवाही आणि परिणामकारक आहे. दुर्गाबाई भागवतांचे संयत व्यक्तिमत्त्व वाचकांसमोर उलगडून दाखवण्यासाठी तेवढ्याच संयतपणे भाषेचा अवलंब केला आहे.

7. बातमीवर आधारित वृत्तलेख लिहिताना करावयाची तयारी तुमच्या शब्दांत लिहा.
उत्तर :
वृत्तलेखाची प्रकृती बातमीवर आधारलेली असते. बातमी वस्तुनिष्ठपणे घटना सांगते. परंतु घटनेपलीकडचे दृश्य वृत्तलेखात चित्रित करायचे कौशल्यपूर्ण काम वृत्तलेखकाचे असते. एखादया घटनेत वेगळेपण असले तरच बातमी बनत असते. अशा बातमीवर आधारित वृत्तलेख लिहिताना सर्वप्रथम बातमीचा विषय समजून घेणे अपेक्षित असते. बातमीतली घटना, तिचे अदृश्य दवे शोधण्यासाठी बातमीतील घटनेचा सूक्ष्मपातळीवर विचार करावा लागेल.

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घटनेमागचे कारण आणि परिणाम यांची यथोचित सांगड घालून तटस्थपणे घटनेचा वेध घ्यावा लागेल. बातमीत छुप्या असणाऱ्या घटकांचा शोध घेऊन त्यावर प्रकाश टाकणे, पूरक मुद्दे अधोरेखित करणे अशा बाबींवर प्राधान्याने काम करावे लागेल. बातमीतील मुद्दयांचे सुस्पष्ट भाषेत विश्लेषण करण्याचा प्रयत्न करणे आवश्यक असल्याने बातमीच्या परिघात येणाऱ्या महत्त्वाच्या घडामोडींसंदर्भात तज्ज्ञांशी सल्लामसलत करणे उचित ठरेल. बातमीतील तळ गाठून माहिती कागदावर आणली तर वाचकांची उत्सुकता शमवता येईल.

वृत्तलेख (फिचर रायटिंग) प्रस्तावना

‘जे जे आपणासी ठावे, ते ते इतरांसी सांगावे’ या उक्तीनुसार माणूस जीवन जगत असतो. माहिती मिळवणे आणि ती इतरांना सांगणे हे मानवी स्वभावाचं महत्त्वाचं वैशिष्ट्य म्हणता येते. जे ‘सांगणे’ केवळ स्व-रक्षणासाठी होते, त्याचा प्रवास हळूहळू व्यक्त होण्यापर्यंत येऊन पोहोचला. अभिव्यक्तीचे प्रभावी माध्यम म्हणून वृत्तपत्रांचा स्वीकार मोठ्या प्रमाणावर केला जाऊ लागला. मानवी जीवन बातम्यांनी व्यापले गेले. वर्तमानपत्र, आकाशवाणी, दूरदर्शन यांसारख्या प्रसारमाध्यमांसोबत नव्याने स्थिर झालेल्या समाजमाध्यमांत आपण बातम्या ऐकत आणि पाहत असतो.

बातमी औत्सुक्य निर्माण करते. बातमी वाचली तरी वाचकांच्या मनात बातमीतल्या घटनेबद्दल अधिकाधिक जिज्ञासा निर्माण होत असते. बातमीत वस्तुनिष्ठता महत्त्वाची असल्याने जे घडले तसेच बातमीत सांगितले जाते. बातमीत न सांगितली गेलेली नावीन्यपूर्ण, रंजक माहिती आणि सूक्ष्म धागेदोरे वाचण्यासाठी वाचकांना वृत्तलेखाचा (फिचर रायटिंगचा) उपयोग होतो.

वृत्तलेख (फिचर रायटिंग) वृत्तपत्र अर्थ आणि स्वरूप :

  • बातमीपत्रात जसे घडले तसे सांगितले जाते. बातमीपलीकडे असलेला तपशील वाचकांना देणे आवश्यक असते.
  • इंग्रजीत याला ‘फिचर’ असे म्हणतात. बातमी ज्या घटनेशी निगडित आहे तिचे तपशील वाचकांपर्यंत पोहोचवणे गरजेचे असते.
  • या गरजेतूनच वृत्तलेख या लेखनप्रकाराचा जन्म झाला आहे.
  • फिचर म्हणजे नॉन न्यूज असे रूढ असले, तरी वृत्तलेखाचा संबंध बातमीशी असतो.
  • घडून गेलेल्या घटनेशी अथवा घडू पाहणाऱ्या घटनेशी वृत्तलेखाचा घनिष्ठ संबंध असतो.
  • वृत्तलेखाला बातमीचा आधार असावा लागतो. निमित्त असावे लागते.
  • वृत्तलेखाला ‘धावपळीचे साहित्य’ असेही म्हणतात. वृत्तलेख तातडीचा असतो.
  • वृत्तलेख बातमीमागची बातमी सांगत असतो. वृत्तलेखात रंजकता असली, तरी कल्पकतेला फारसा वाव नसतो.
  • अचूकता वृत्तलेखात महत्त्वाची असते. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)
  • वृत्तलेख बातमीवर आधारित असला, तरी लेखनकृतीत स्वतंत्र असतो. मजकूर आकर्षक आणि वैशिष्ट्यपूर्ण असणे हे वृत्तलेखाचे वैशिष्ट्य असते.
  • बातमीचा आस्वाद घेण्यासाठी वृत्तलेखाचा उपयोग होतो. वृत्तलेखात वाचकांच्या भावनांचा विचार करून लेखन केलेले असते.
  • वृत्तलेखात वाचकांचे समाधान हा घटकही महत्त्वाचा मानला जातो.
  • वृत्तलेखाची भाषा सोपी, ओघवती असावी.
  • वाचकांना सहज समजणारी, आपलीशी वाटणारी, वाचकांना खिळवून ठेवणारी, परिणाम साधणारी भाषाशैली असावी.
  • वृत्तलेखाचा विषय, आशय, शैली वाचकांना आकृष्ट करणारी असते.
  • वाचकांच्या विचारांना धक्का देणारी ताकद वृत्तलेखात असते.
  • वृत्तलेखातील माहिती विश्वसनीय असते. मुद्द्यांच्या समर्थनार्थ वृत्तलेखात नकाशे, छायाचित्रे, व्यंगचित्रे, आकडेवारीचा तक्ता वापरला जाऊ शकतो.
  • वृत्तपत्रलेखन हे कौशल्यपूर्ण काम आहे. वृत्तलेखन करणास लेखक आपले अनुभव आणि विषयाच्या संदर्भाने असलेली तज्ज्ञता वापरत असतो.
  • वृत्तलेखक वाचकांना आनंद देणारा, माहिती, ज्ञान देणारा आणि सर्वांत महत्त्वाचे म्हणजे बातमीपलीकडची बातमी जिवंत करणारा असतो.
वर्तमानपत्रांचा जन्म पाश्चात्त्य देशात झाल्याने तेथील काही संकल्पना भारतात देखील रुजल्या. त्यापैकी एक म्हणजे फिचर, म्हणजेच वृत्तलेख. ऑक्सफर्डच्या शब्दकोशात ‘फिचर’चा अर्थ ‘It is a non news article in a news paper’ असा देण्यात आला आहे. म्हणजे ‘बातमीपलीकडचे खास असे काही, आकर्षक असे काही.’

वृत्तलेखांचे प्रकार :

बातम्यांचा विषय आणि लेखनप्रकारानुसार वृत्तपत्र लेखनाचे पुढील प्रकार –
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1. बातमीवर आधारित वृत्तलेख :

  • या वृत्तलेखाच्या नावावरूनच त्याचे स्वरूप लक्षात येते. एखादया बातमीच्या संदर्भाने हा वृत्तलेख लिहिलेला असतो.
  • वर्तमानपत्रात छापून आलेल्या बातमीचा या प्रकारात नव्याने विचार करणे प्रस्तुत ठरते.
  • वर्तमानपत्रातील घटनेत असणारी सर्व माहिती वृत्तलेखात नसते; परंतु बातमीमागची बातमी वाचकांना या प्रकारच्या वृत्तलेखात वाचायला मिळते.
  • बातमीवर आधारित वृत्तलेखन करताना बातमीतील घटनेचा सविस्तर आढावा घेणे अपेक्षित असते.
  • वर्तमानपत्रातील बातमीत ज्या नोंदी आल्या नसतील, अशा नोंदींवर प्रकाश टाकण्याचे काम या प्रकारच्या वृत्तलेखनात होणे आवश्यक असते. या
  • प्रकारच्या वृत्तलेखात बातमीतील मुद्द्यांचे विश्लेषण करणे गरजेचे असते. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)
  • कधी कधी वृत्तलेखकाला बातमी संदर्भातील विशेष तज्ज्ञ व्यक्तींशी बोलून घटनेचा तळ गाठावा लागतो.
  • वृत्तलेखकाकडे लेखनासाठी असणारी माहिती स्वतंत्र आणि विश्वसनीय असणे आवश्यक असते.
  • या प्रकारच्या वृत्तलेखासाठी विषयाच्या मर्यादा नसतात.
  • स्थानिक पातळीपासून ते आंतरराष्ट्रीय पातळीपर्यंत कोणत्याही बातमीवर या प्रकारचे वृत्तलेखन करता येऊ शकते.
  • बातमीपेक्षा अधिक काही मिळाल्याचा आनंद वृत्तलेख वाचकांना मिळणे हेही वृत्तलेखकाला ध्यानात घेणे आवश्यक असते.
  • उदा., पेट्रोल-डीझेलचा वाढत जाणारा तुटवडा – स्वरूप आणि कारणे, लोकल ट्रेनमधील वाढती गर्दी – कारणे आणि उपाय, ग्रामीण भागातील पशुधनाची घटलेली संख्या व त्याचा समाजजीवनावर होणारा परिणाम इत्यादी.

2. व्यक्तिचित्रणात्मक वृत्तलेख :

  • या प्रकारच्या वृत्तलेखात एखादया क्षेत्रात देदीप्यमान कार्य केलेल्या व्यक्तीच्या जीवनाचा आढावा घेतला जातो.
  • सामान्य असो की असामान्य कुठल्याही व्यक्तीच्या संघर्षाची दखल या वृत्तलेखात घेतली जाते.
  • एखादया क्षेत्रातील यश, त्यासाठी करावा लागलेला संघर्ष, प्रयत्नांची पराकाष्ठा, अडचणींचा केलेला सामना, महत्त्वपूर्ण कृती, उपक्रम, विक्रम या संदर्भातील लेखन या वृत्तलेखात करणे आवश्यक असते.
  • व्यक्तिचित्रणात्मक वृत्तलेख बहुतकरून औचित्य साधून लिहिलेले असतात.
  • पुरस्कार, गौरव, वाढदिवस, जयंती, पुण्यतिथी, अमृत महोत्सव इत्यादी प्रसंगी या प्रकारचे वृत्तलेख लिहिले जातात.
  • व्यक्तिचित्रणात्मक वृत्तलेखात वाचकांपुढे विशिष्ट व्यक्तीचा केवळ जीवनपट उभा करणे अपेक्षित नसते.
  • व्यक्तीच्या जीवनाचे अनेक पैलू उलगडून दाखवणे आवश्यक असते.
  • अशा वेळी त्या व्यक्तीसंबंधी पूर्वी झालेले लेखन, चरित्र, आत्मचरित्र, सोबत काम केलेल्या व्यक्ती, स्नेहीजन यांच्या मुलाखती अशी विस्तृत माहिती मिळवणे उपयुक्त ठरते. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)
  • या प्रकारच्या लेखनात व्यक्तीच्या आयुष्यातील महत्त्वाच्या तारखा, सनावळ्या, आकडेवारी एवढ्याचीच नोंद करून, परिचयात्मक माहिती लिहून चालत नाही. त्यासाठी त्या व्यक्तीचे विचार, भूमिका, दृष्टिकोन, खास शैली, सवयी इत्यादी बाबींचा सखोल परामर्श घेणे महत्त्वपूर्ण ठरते.
  • माहितीतील तांत्रिक बाबींत अधिक न अडकता व्यक्ती जीवनातील भावनिक स्पर्श हे या वृत्तलेखाचे वैशिष्ट्य म्हणता येते. उदा., सिंधुताई सकपाळ, बीजमाता राहीबाई पोपरे, डॉ. श्रीराम लागू इत्यादी.

3. मुलाखतीवर आधारित वृत्तलेख :

  1. वेगवेगळ्या क्षेत्रातील लोकांच्या प्रसार माध्यमांवर होणाऱ्या मुलाखती लेख स्वरूपात वृत्तपत्रात प्रकाशित केला जातो. त्याला मुलाखतीवर आधारित वृत्तलेख असे संबोधले जाते.
  2. या प्रकारच्या वृत्तलेखातून विशिष्ट क्षेत्रात कार्याने आपली नाममुद्रा उमटवणाऱ्या व्यक्ती, त्यांचा कार्यप्रवास, महत्त्वपूर्ण संशोधन, मतप्रणाली, त्यांचे कार्यक्षेत्र, यश, अडचणी, अनुभव यांसारख्या ५ मुद्दयांची गुंफण करणे आवश्यक असते.
  3. कार्यसिध्द व्यक्तींची स्वतःची भूमिका मांडण्याचा प्रयत्न या प्रकारच्या वृत्तलेखात करणे महत्त्वाचे असते. सर्वसामान्य लोक व्यक्तिजीवनातील ज्या गोष्टींपासून अनभिज्ञ आहेत, अशा गोष्टींचा परिचय करून देणे वृत्तलेखाचे प्रधान कार्य असते.
  4. विशिष्ट व्यक्तीच्या कर्तृत्वाची उंची आणि संबंधित क्षेत्रातील योगदान अधोरेखित करण्याचा प्रयत्न या वृत्तलेखात करणे गरजेचे ठरते. उदा., नामवंत लेखक, गिर्यारोहक, संशोधक इत्यादींच्या मुलाखतीवर आधारित लेख.

4. ऐतिहासिक स्थळांविषयी वृत्तलेख :

  • या प्रकारच्या वृत्तलेखात संशोधनात्मक लेखन असते. प्राचीन मंदिरे, लेण्या, स्थळे, गावे इत्यादी संदर्भातील उपलब्ध माहितीच्या आधारे नव्याने माहिती देणारा ऐतिहासिक स्वरूपाचा वृत्तलेख लिहिणे अपेक्षित असते.
  • गावे, स्थळे, प्राचीन मंदिरे, वस्तू यांना ऐतिहासिक संदर्भ असतात.
  • या वृत्तलेखात अशा ऐतिहासिक संदर्भांना केंद्रस्थानी ठेवून लेखन करणे आवश्यक असते.
  • शिलालेख, नाणी, भूर्जपत्रे, ताम्रपट यांच्या इतिहासकालीन रूपाचा बदलत्या काळात नव्याने अर्थ शोधला जात आहे. नवनवीन माहिती समोर येत आहे.
  • संशोधक जुन्या माहितीच्या संदर्भात संशोधनात्मक अभ्यासातून एखादया वस्तू किंवा स्थळावर प्रकाशझोत टाकत असतात. या नव्या माहितीच्या संदर्भात वृत्तलेख करणे महत्त्वाचे ठरते.
  • लोकसाहित्य, लोककला, लोकसंस्कृती यासंदर्भात वृत्तलेखक विविध क्षेत्रभेटीतून जे जे अनुभवास आले, त्याला अनुलक्षून वृत्तलेखन करू शकतो. ऐतिहासिक स्थळांविषयी वृत्तलेख लिहित असताना इतिहास तज्ज्ञ, त्यांच्याशी विषयानुरूप केलेल्या चर्चा, व्याख्यान, मुलाखती इत्यादीचे साहाय्य घेणे उपयुक्त ठरते.
  • या प्रकारच्या वृत्तलेखात आवश्यकतेनुसार नकाशा, चित्रे, छायाचित्रे यांचा वापर करता येऊ शकतो. उदा., शनिवारवाडा, हेमाडपंथीय मंदिराचे शिल्पकाम, अंबरनाथ येथील प्राचीन शिवमंदिर इत्यादी.

5. नवल, गूढ इत्यादींवर आधारित वृत्तलेख :

  • एखादी विस्मयकारक घटना, निसर्गातील नवलाई यासंबंधीच्या अनुभवांवर आधारित लेखन या प्रकारच्या वृत्तलेखात केले जाते.
  • एखादया परिसरातील निसर्गाच्या आश्चर्यजनक किमया, गूढ, अनाकलनीय गोष्ट, निसर्गातील एखादी लक्षवेधी परंतु चमत्कारिक गोष्टदेखील वृत्तलेखाचा विषय होऊ शकतो. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)
  • या प्रकारच्या वृत्तलेखात माहितीची विश्वासार्हता तपासणे फार महत्त्वाचे असते. उपलब्ध माहितीची शहानिशा करणे, माहितीची पारख करणे, चिकित्सा करणे यांसारख्या बाबी प्राधान्याने विचारात घेणे गरजेचे असते.
  • निसर्गातील अनाकलनीय गोष्टी सत्यतेच्या चाचणीतून लेखात मांडणे अतिशय कौशल्यपूर्ण काम असते. वृत्तलेखकाला जबाबदारीने या प्रकारच्या वृत्तलेखाचे लेखन करणे आवश्यक असते.
  • कोणत्याही प्रकारची चुकीची अथवा अफवा पसरवणारी माहिती, नोंदी, नकारात्मकता वृत्तलेखातून प्रकट होणार नाही याची काळजी कटाक्षाने या प्रकारच्या वृत्तलेखात घ्यावी लागते.
  • उदा., सांगलीत नदीच्या पाण्याची पातळी ५८ फूट, रांजणखळगे, गरम पाण्याचे कुंड इत्यादी. वृत्तलेखांच्या वरील प्रकारांशिवाय सांस्कृतिक कार्यक्रम, लोकरुचीचे कार्यक्रम, खादयसंस्कृती इत्यादी विषयांवरही वृत्तलेख लिहिले जाऊ शकतात.

वृत्तलेखाच्या विषयांचे स्रोत :

प्रसारमाध्यमातील व्यक्तींना सध्या घटनेतही बातमी दिसत असते. वर्तमानपत्रात काम करणाऱ्या व्यक्तींना येणारे अनुभव, प्रवास, भेटणाऱ्या व्यक्ती विविध वर्तमानपत्रातील बातम्या, पुस्तके, नियतकालिके, संकेतस्थळ यांसारख्या विविध साधनांच्या आधारे वृत्तलेखाचे विविध विषय मिळत असतात. वृत्तलेखाच्या विषयांचे काही महत्त्वाचे स्रोत पुढीलप्रमाणे –

1 बातमी :

  •  वृत्तलेखात बातमीपलीकडची बातमी चित्रित केलेली असते. वर्तमानपत्रात, नियतकालिकात छापील स्वरूपात आलेल्या बातम्या वृत्तलेखाला विषय पुरवत असतात.
  • दूरचित्रवाणीवर दाखवली जाणारी एखादी घटना लेखकाच्या मनात वृत्तलेखाचे बीज रुजवत असते.
  • बातमीपेक्षा अधिक काही जे बातमीत दडलेले असते, त्याचा शोध वृत्तलेखात घेणे आवश्यक असते.
  • बातमीसोबत जोडले असलेले संदर्भ, दुवे, महत्त्वाच्या गोष्टी, मुलाखती यांच्या साहाय्याने बातमीच्या आधारावर वृत्तलेखनाचा मजकूर फुलवता येऊ शकतो.
  • कुठल्याही बातमीकडे सूक्ष्मपणे पाहिले, त्यातील बारकावे लक्षात घेतले, तर वृत्तलेखासाठी भूमी तयार होऊ शकते.
  • बातमी, बातमीभोवती असणारे विविध कंगोरे, बातमीचे परिणाम यांचा सखोल अभ्यास केला, तर वृत्तलेखासाठी अनेक विषय मिळू शकतात.
  • उदा., ‘अभिनेते अमिताभ बच्चन यांना दादासाहेब फाळके हा सन्मानाचा पुरस्कार प्राप्त’ या बातमीच्या आधारे, दादासाहेब फाळके पुरस्काराचे महत्त्व, अभिनेते अमिताभ बच्चन यांचा ५ अभिनयाचा प्रवास, महत्त्वाचे चित्रपट, कौटुंबिक पार्श्वभूमी, अमिताभ बच्चन यांचा जीवनप्रवास इत्यादी मुद्द्यांच्या आधारे व्यक्तिचित्रणात्मक वृत्तलेख लिहिला जाऊ शकतो. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)

2. व्यक्तिगत अनुभव :

  • पत्रकारितेचे क्षेत्र म्हणजे नित्यनवा जिवंत अनुभव असणारे क्षेत्र मानले जाते.
  • पत्रकारितेच्या क्षेत्रात वावरणाऱ्या लोकांना रोज नव्या आव्हानात्मक घटना/प्रसंगांना सामोरे जावे लागते.
  • बातमी बघताना अनेक अनुभव मिळत असतात. या अनुभवांपैकी काही मूळ बातमीस पूरक ठरतात, तर काही अनुभव लेखकाच्या मनात साठवले जातात. या अनुभवांची शिदोरी लेखकाला वृत्तलेखात उपयोगी पडते.
  • या अनुभवांचा पुनरुच्चार एखादया वृत्तलेखात करता येऊ शकतो. गतकाळातील अनुभवात भविष्यातील एखादया वृत्तलेखाची बीजे रुजलेली असतात.
  • उदा., ‘आश्रमातील मुलांना शैक्षणिक वस्तूंचे वाटप’ अशा बातमीच्या भोवताली लहान मुलांचे भावविश्व, मुलांचे आश्रमातील जीवन, कुटुंबापासून दूर असल्याची भावना, लहान मुलांची शैक्षणिक, वैचारिक जडणघडण असे कितीतरी बातमीमागचे पैलू लेखकाला दिसू शकतात.
  • यासंदर्भाच्या आधारे ‘एकटेपणात अडकलेले बालविश्व’ अशा प्रकारचा वृत्तलेख निश्चितच आकाराला येऊ शकतो.

3. भेटीगाठी/संभाषण :

  • पत्रकारिता करणाऱ्या व्यक्तींना नेहमी लोकसंपर्कात राहणे गरजेचे असते. यासाठी व्यवसायाची गरज म्हणून संवादकौशल्य हवे असते. पत्रकारिता करणाऱ्या व्यक्तीला भाषेचे उत्तम ज्ञान असणे आवश्यक असते. लेखनकौशल्यावर प्रभुत्व असावे लागते.
  • पत्रकारितेत अनेकदा विविध क्षेत्रातील उच्चपदस्थ अधिकारी ते सामान्य व्यक्ती अशा प्रत्येक घटकातील व्यक्तींशी संवाद साधावा लागतो.
  • प्रशासकीय सेवेतील अधिकारी, लोकप्रतिनिधी, विविध कंपन्यांचे व्यवस्थापक, खेळाडू यांच्याशी संभाषण करीत असताना कितीतरी स्थानिक पातळीवरील विषयांपासून ते राष्ट्रीय, आंतरराष्ट्रीय पातळीवरील कितीतरी महत्त्वपूर्ण विषयांवर चर्चा करावी लागते.
  • कधी कधी व्यक्ती बोलत नाहीत; अशा वेळी बातमी जाणून घेण्यासाठी व्यक्तींना बोलते करण्याचे काम पत्रकारांना करावे लागते.
  • या गप्पांमधून वृत्तलेखासाठी आवश्यक बरेच विषय मिळू शकतात. व्यक्ती ते घटना/प्रसंग यामागील अनेक पैलूंचा वेध घेण्याचे काम वृत्तलेखक करीत असतो. या सर्वांतून वृत्तलेखाचा विषय सहज मिळू शकतो.

4 निरीक्षण :

  • पत्रकारिता क्षेत्रात वावरणाऱ्या व्यक्तीला सदैव चौकस राहावे लागते. बातमीचे धागेदोरे शोधावे लागतात.
  • अवतीभवती घडणाऱ्या घटनांचे निरीक्षण करून त्यातून बातमी शोधता येणे पत्रकारितेत आवश्यक असते.
  • अशा सजगतेतून वृत्तलेखाचे विषय मिळत असतात. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)
  • वृत्तलेखासाठी निरीक्षण आणि अनुभवातून विवेचन, संदर्भ, कारणमीमांसा, परिणाम यांसारख्या गोष्टी समोर आणल्या जातात.
  • उदा., ‘खानावळ चालवून मुलाला केले जिल्हाधिकारी’, ‘शेतीसाठी बैलांऐवजी माणसांचा वापर’ अशा कितीतरी गोष्टी भोवती घडत असतात.
  • यातूनच वृत्तलेखाचे विषय मिळू शकतात.

वृत्तलेखासाठी निरीक्षण आणि पडदयामागे घडणाऱ्या घडामोडींचा वेध घेणे महत्त्वाचे असते. तर्कबुद्धी या लेखनात गरजेची असते.

वृत्तलेख लिहिताना विचारात घ्यायच्या बाबी :

वर्तमानपत्रे सतत वाचकांची गरज शोधत असतात. वाचकांची बौद्धिक भूक कशी भागवली जाईल, याचा विचार वर्तमानपत्राच्या व्यवस्थापनाला करावा लागतो. वाचकांच्या संख्येवर वर्तमानपत्रांच्या विक्रीची आर्थिक गणिते अवलंबून असतात. त्यादृष्टीने वृत्तलेखासाठी देखील वाचकांची गरज आणि विषयांची निवड यांचा विचार करावा लागतो.

वृत्तलेखात पुढील बाबी महत्त्वपूर्ण भूमिका बजावत असतात –

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग) 2

(१) वाचकांची अभिरुची : वर्तमानपत्राला बातमीसोबत वाचक वर्ग कोणता आहे, याचा विचारही प्राधान्याने करावा लागतो. वाचकांची अभिरुची वर्तमानपत्रीय गणितात महत्त्वाची मानली जाते. वाचकांची गरज आणि आवड बघून वृत्तलेखाच्या विषय, आशय, भाषा यांची निवड करावी लागते. वाचकांना आवडतील, उत्सुकता निर्माण करतील, अशा वृत्तलेखांची मांडणी केली तर लोकांच्या पसंतीस पडू शकतात. वाचकांच्या अभिरुचीचा विचार करून लिहिलेले वृत्तलेख वाचकांच्या मनावर अधिराज्य करू शकतात. वृत्तलेखात वाचकांच्या अभिरुचीचा विचार प्राधान्याने करणे आवश्यक असते.

(२) तात्कालिकता : वृत्तलेख नैमित्तिक असतात. वृत्तलेखाचे नियोजन करताना तात्कालिकतेचा विचार करावा लागतो. तात्कालिक कारण असेल तर वाचक तो लेख वाचतात. त्यासाठी त्याचे ताजेपण, समयोचितता साधली जाणे महत्त्वाचे असते.

(३) वेगळेपण : वाचकांची उत्सुकता, जिज्ञासा, समजून घेऊन वृत्तलेखाचे वेगळेपण जपणे महत्त्वाचे असते. वृत्तलेखाच्या आराखड्याचा विचार करताना त्यामधील वेगळेपण लक्षात येण्याची गरज असते.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)

(४) वाचकांचे लक्ष वेधणे : वृत्तलेखात विषयाच्या आरंभापासून ते शेवटपर्यंत वाचकांची उत्सुकता टिकली पाहिजे. वृत्तलेखाचा आराखडा ठरवणे आवश्यक असते. वृत्तलेखाचा विषय, संदर्भ, शीर्षक, उपशीर्षके, चित्रे, तक्ता, नकाशा, छायाचित्र इत्यादी बाबींचा विचारही वृत्तलेखाच्या मांडणीत करणे गरजेचे असते. मजकुराला समर्पक चित्र/छायाचित्र कुठे उपलब्ध होईल, तसेच त्याचा नेमकेपणाने उपयोग मजकुराच्या कोणत्या भागात करता येईल, याचा विचार करावा लागतो. वृत्तलेखाच्या उत्तम मांडणीसाठी या सर्व बाबींचा सविस्तर विचार लेखकाला करावा लागतो. यासंबंधीचे नियोजन केले, टिपण काढले, चित्रांची मांडणी ठरवली, तर वृत्तलेख लिहिणे सोपे होते.

(५) वृत्तलेखाची शैली : वृत्तलेखात बातमीच्या पलीकडे असणारे कंगोरे शोधावे लागतात. साधारणपणे वृत्तलेखाच्या मांडणीत तीन टप्पे मानले जातात. पहिल्या टप्प्यात वृत्तलेखातील बातमीचा उलगडा केला जातो. बातमीतील ‘का’ या संदर्भातील वाचकांच्या जिज्ञासेची पूर्ती वृत्तलेखाच्या आरंभीच्या भागात होणे आवश्यक असते. वृत्तलेखाच्या मध्य भागात बातमीचे विवेचन अपेक्षित असते. वृत्तलेखाच्या समारोपात वृत्तलेखातून काय अपेक्षित आहे, काय बदल घडावा असे वाटते, याचा विचार मांडणे गरजेचे असते.

वृत्तलेख सर्वसामान्यांच्या पसंतीस उतरणे आवश्यक असेल, तर त्याची साधी, सोपी सहज आकलन करता येण्याजोगी असावी. बोजड शब्द, गुंतागुंतीची वाक्यरचना, शब्दबंबाळपणा वृत्तलेखात टाळावा. वृत्तलेखातील वाक्यरचना लहान वाक्यांची असल्यास वाचकांना विषय समजून घेणे सुलभ होते. मनावर पकड घेण्यास परिणामकारक भाषा असावी. ज्या विषयासंबंधी वृत्तलेखाचे औचित्य आहे, तो विषय लोकांच्या जिज्ञासेची पूर्तता करण्यात सफल झाला आहे, याचा विचार करणे आवश्यक असते.

वृत्तलेखातील व्यावसायिक संधी :

  • आज वेगवान माध्यमांच्या काळात लोकांपर्यंत बातमी पोहोचण्याचा वेग प्रचंड आहे. ब्रेकिंग न्यूजचा हा काळ आहे, असे म्हणता येते.
  • बातमीच्या मुळापर्यंत जाऊन समग्र घटना लोकांना वाचनास उपलब्ध करून देणे हे आव्हानात्मक आणि कौशल्याचे काम आहे.
  • अभ्यासू आणि लेखन क्षमता असणाऱ्या व्यक्ती वर्तमानपत्राला वृत्तलेख लिहिण्यासाठी आवश्यक असतात.
  • चौकस दृष्टी, लेखनकौशल्य बातमीचा शोध घेण्याची जिज्ञासा असणाऱ्या व्यक्तींना वर्तमानपत्रात नोकरीच्या संधी उपलब्ध असतात.
  • वृत्तपत्रांसाठी वृत्तलेखन करणाऱ्या लेखकांना विशिष्ट रकमेचे मानधनदेखील दिले जाते.
  • वृत्तलेखन बदलत्या माध्यमांच्या काळात युवावर्गाला आकर्षित करणारे क्षेत्र बनत आहे.

नोंद : वृत्तलेख समजून घेण्यासाठी पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र.११० व १११ वर दिलेला वृत्तलेख नमुना अभ्यासा.

12 वी मराठी पुस्तक युवकभारती भाग-४ उपयोजित मराठी

Ahwal Class 12 Marathi Bhag 4.3 Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 12th Digest Bhag 4.3 अहवाल Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

12th Marathi Bhag 4.3 Exercise Question Answer Maharashtra Board

अहवाल 12 वी मराठी स्वाध्याय प्रश्नांची उत्तरे

12th Marathi Guide Chapter 4.3 अहवाल Textbook Questions and Answers

कृती

1. अहवालाचे स्वरूप स्पष्ट करा.
उत्तर :
कोणत्याही संस्थेच्या कार्यक्रम/सभांची योग्य पद्धतीने सविस्तर नोंद करून ठेवणे म्हणजे अहवाललेखन होय. कार्यक्रम/ समारंभाच्या प्रत्यक्ष सुरुवातीपासून ते अखेरपर्यंत सर्व बाबींच्या नोंदी अहवालात केलेल्या असतात. अहवालात कार्यक्रमाचा हेतू, तारीख, वेळ, सहभागी व्यक्ती, विचार मांडणी, प्रतिसाद इत्यादी मुद्द्यांचा समावेश केलेला असतो. कोणत्याही संस्थेसाठी अहवाललेखन दस्तऐवज मानले जाते. संस्थेच्या भविष्यकालीन नोंदींसाठी अहवाललेखन महत्त्वाची भूमिका पार पाडत असते.

संस्थेचे कार्यक्षेत्र, विषय इत्यादींनुसार अहवाललेखनाचे स्वरूप वेगवेगळे असू शकते. तसेच संस्थेच्या कार्यक्षेत्रानुसार अहवाललेखनाचा आराखडा भिन्न असू शकतो. अहवालातील नोंदी अचूक आणि वस्तुनिष्ठ स्वरूपाच्या असतात. अहवालाचे महत्त्वाचे वैशिष्ट्य म्हणजे अहवालाची विश्वसनीयता होय. अनेक गुंतागुंतीच्या समस्येत अहवालाचा पुरावा म्हणूनही वापर करता येतो. अहवाल निःपक्षपातीपणे लिहिला जातो. वास्तवदर्शी वर्णन हा अहवालाचा आत्मा असतो.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अहवाल

2. अहवालाची आवश्यकता लिहा.
उत्तर :
अहवाल हा कोणत्याही कार्यक्रमाचा आरसा असतो. कार्यक्रमातील बारीकसारीक गोष्टींची नोंद अहवाललेखनात घेतली जाते. संस्थेच्या कामकाजात अहवाल विश्वसनीय घटक मानला जातो. संस्थेच्या कार्यक्रमाच्या/सभेच्या नोंदी ठेवणे आवश्यक असते. संस्थेच्या भविष्यकालीन योजना, उपक्रम यासाठी निश्चितच याचा उपयोग केला जातो. अहवालाच्या साहाय्याने भविष्यकाळात संस्थेचा विकास, परंपरा इत्यादींची माहिती मिळवणे शक्य होते. भविष्यातील नियोजनासाठी अहवालाचा उपयोग होऊ शकतो. विविध संस्था, लघुउदयोग ते मोठमोठे उदयोगधंदे आणि ग्रामपंचायत ते महानगरपालिका अशा सर्व ठिकाणी होणाऱ्या घडामोडींना अधिकृतता प्राप्त व्हावी यासाठी अहवालाची गरज असते. एखादया क्षेत्रात महत्त्वाकांक्षी उपक्रम सुरू करायचा असेल, तर आरंभी त्यासंदर्भात योग्य ती माहिती घेऊन अहवाल तयार करणे गरजेचे असते.

3. वास्तवदर्शी लेखन हा अहवालाचा आत्मा आहे, हे विधान स्पष्ट करा.
उत्तर :
अहवालात कार्यक्रमातील घटनांची विश्वसनीय नोंद असते. संस्थेच्या सभा/कार्यक्रमांचा हेतू, तारीख, वेळ, सहभागी मान्यवरांचे विवेचन, प्रतिसाद, समारोप इत्यादींचा तपशील क्रमाक्रमाने अहवालात सांगितलेला असतो. ‘जसे घडले तसे सांगितले’ असे अहवालाचे स्वरूप असते. काल्पनिक गोष्टी, लेखकाच्या मनातील विचार या बाबींचा अहवालात समावेश नसतो. वस्तुनिष्ठपणे घटनेचे वर्णन अहवालात केलेले असते. अहवाल कुठल्याही संस्थेचा असो वा कुठल्याही कार्यक्रमाचा सर्वांमध्ये एकसामायिक वैशिष्ट्य असते ते म्हणजे, निःपक्षपातीपणा.

अहवाललेखकाला स्वतःच्या मर्जीनुसार लेखन करता येत नाही. त्या त्या सभेमध्ये, संशोधनामध्ये अहवाल लेखकाने काय अनुभवले, पाहिले, ऐकले यांविषयीचे खरेखुरे लेखन अहवालात करणे आवश्यक असते. अहवालावर संस्थेच्या भविष्यातील नियोजनाचा आराखडा निश्चित होत असतो. सदय:स्थिती जाणून घेण्यासाठी अहवालाचा उपयोग होत असतो. वास्तवदर्शी लेखन हा अहवालाचा आत्मा आहे असे म्हटले तर अतिशयोक्ती होणार नाही.

4. अहवाल लेखनाची वैशिष्ट्ये खालील मुद्द्यांना अनुसरून स्पष्ट करा.

प्रश्न 1.
वस्तुनिष्ठता आणि सुस्पष्टता
उत्तर :
एखादया घटना/प्रसंगाची योग्य पद्धतीने नोंद करून ठेवणे म्हणजे अहवाल होय. अहवाललेखनात संस्थेच्या कामकाजाचे प्रतिबिंब उमटत असते. भविष्यातील निरनिराळ्या योजनांच्या नियोजनासाठी अहवाल आवश्यक असतो. अहवालाचे महत्त्वाचे वैशिष्ट्य वस्तुनिष्ठता आणि सुस्पष्टता आहे. अहवालाच्या स्वरूपानुसार कार्यक्रमाचा विषय, तारीख, वेळ, ठिकाण, सहभागी मान्यवर, लोकांचा सहभाग, प्रतिसाद, निष्कर्ष, सांख्यिकीय माहिती इत्यादी अनेक बाबींच्या नोंदी केलेल्या असतात. त्या नोंदी वस्तुनिष्ठ असणे आवश्यक असते. अहवालात नोंदवलेल्या माहितीच्या बाबतीत संदिग्धता असून चालत नाही. अहवालातील वाक्यरचना स्पष्ट असणे आवश्यक असते. सहज अर्थबोध होणे अभिप्रेत असते. माहितीचे स्वरूप सुस्पष्ट असावे. अहवाललेखकाला स्वतःच्या विचारांचा परामर्श अहवालात घेता येत नाही. कार्यक्रम प्रसंगी जे जे घडले आणि जे जे पाहिले, ऐकले त्याचे खरे रूप अहवालात येणे प्रधान असते.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अहवाल

प्रश्न 2.
शब्दमर्यादा
उत्तर :
अहवालाच्या विषयावर अहवालाची शब्दमर्यादा अवलंबून असते. स्थानिक पातळीवरील अहवाल आकाराने लहान असतात, शब्दमर्यादा आटोपशीर असते. सहकारी संस्था, वार्षिक सर्वसाधारण सभा यांचे अहवाल तुलनेने विस्तृत असतात. साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमांचे अहवालाची शब्दमर्यादा कमी असते. कार्यक्रमाचा संपूर्ण गाभा अहवालात मांडायचा असल्याने शब्दमर्यादा हा घटक महत्त्वाचा मानला जातो. अहवालात कार्यक्रमातील घटनांचे वर्णन पाल्हाळीक असू नये. एकाच मुद्द्याची पुनरावृत्ती असू नये.

एखादया समस्येच्या संदर्भात संशोधनात्मक अहवाल, सार्वजनिक क्षेत्रातील उदयोगव्यवसाय यांच्या संदर्भातील अहवाल खूपच विस्ताराने लिहिले जातात. अशा अहवालात भरपूर माहिती, आकडेवारी, निरीक्षणे, तपशील, निष्कर्ष नोंदवलेले असतात. एखादया समारंभाचा अहवाल तीन-चार पृष्ठांचा असू शकतो, तर एखादया आयोगाचा अहवाल सुमारे १००० किंवा अधिक पृष्ठांचा असू शकतो.

प्रश्न 3.
नि:पक्षपातीपणा
उत्तर :
कोणत्याही अहवालाचे महत्त्वाचे वैशिष्ट्य म्हणजे नि:पक्षपातीपणा होय. अहवाललेखन कुठल्याही एककल्ली विचारांचा अवलंब करीत नसते. अवास्तव व्यक्ती/घटना यांच्या वर्णनाला अहवालात स्थान नसते. अहवाल घडलेल्या कार्यक्रमाचा आरसा असतो. त्यामुळे अहवालात कुठल्याही अतार्किक, कल्पनारम्य गोष्टींना स्थान नसते. अहवाललेखकाला स्वतःच्या विचारांचे रोपण अहवालात करता येत नाही. वास्तवदर्शी लेखन हे अहवालाचे प्रमुख वैशिष्ट्य मानले जाते. निःपक्षपातीपणा अहवालात केंद्रस्थानी असतो.

5. अहवाल लेखन करताना लक्षात घ्यावयाच्या दोन बाबी सोदाहरण स्पष्ट करा.
उत्तर :
अहवाललेखन ही एक कला आहे. अहवाललेखन तांत्रिकपणे करणे आवश्यक असले, तरी अहवालाच्या भाषेत लालित्यपूर्णता आणता येऊ शकते. अहवाललेखनात दोन महत्त्वपूर्ण बाबींचा विचार विस्तृतपणे करता येऊ शकतो.

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(१) अहवाललेखकाचे भाषेवरील प्रभुत्व : अहवाललेखकाचे भाषेवर प्रभुत्व असणे महत्त्वाचे असते. अहवालात घडून गेलेल्या घटनेचे शब्दरूपात सजीव आणि बोलके चित्र उभे करण्याची कला अहवाललेखकाकडे असणे आवश्यक असते. अहवाल सादर केला जातो; त्यामुळे वाचन करणाऱ्या व्यक्तीलाही तेवढेच महत्त्व आहे. वाचक लक्षात घेऊन अहवालाची भाषा सहज, सोपी चटकन आशय लक्षात येईल अशी असावी. अतिशयोक्तीपूर्ण वर्णन नसावे. अहवाललेखकाला विशिष्ट पारिभाषिक शब्द, संज्ञा इत्यादींची माहिती असली पाहिजे व योग्य ठिकाणी तिचा उपयोग करता आला पाहिजे.

उदा., अहवाललेखनात भाषेतील शब्दांचे संदर्भानुसार उपयोजन माहीत नसेल, तर मजकुराचा अर्थभेद होऊ शकतो. एखादया कार्यक्रमाच्या अहवालात ‘प्रमुख पाहुण्यांनी उपस्थित राहून शोभा वाढवली’ या वाक्यरचनेऐवजी ‘प्रमुख पाहुण्यांनी उपस्थित राहून शोभा केली’ अशी वाक्यरचना जर लिहिली गेली, तर अर्थाचा अनर्थ होऊ शकतो.

(२) सारांश रूप : अहवाल हा कार्यक्रमाचा गाभा असतो. कार्यक्रम झाल्यानंतर संपूर्ण कार्यक्रम संक्षिप्तपणे कागदावर अहवालाच्या माध्यमातून चित्रित केला जात असतो. सर्व घटना/प्रसंग शब्दांत मांडणे शक्य नसते. कार्यक्रम प्रसंगी घडलेल्या घटनांचा क्रमबद्धरीतीने सारांश रूपाने आढावा घेण्याचे काम अहवाल करीत असतो. अहवाललेखनात पाल्हाळ असता कामा नये. मोजक्या परंतु नेमक्या घटनांची समर्पक शब्दांत मांडणी करता येणे अपेक्षित असते.

उदा., महाविदयालयातील वक्तृत्व स्पर्धेच्या अहवाललेखनात पारितोषिक प्राप्त विदयार्थ्यांच्या भाषणातील काही महत्त्वाचे मुद्दे नावासहित उद्धृत करणे अपेक्षित असते. सर्व विदयार्थ्यांचे संपूर्ण भाषण नमूद करणे योग्य नाही. सारांश रूपाने विषय मांडणी करणे अभिप्रेत असते.

6. खालील विषयांवर अहवालाचे लेखन करा.

प्रश्न अ.
तुमच्या कनिष्ठ महाविदयालयातील स्नेहसंमेलन.
उत्तर :
चेतना कला आणि वाणिज्य कनिष्ठ महाविदयालय
नागपूर

वार्षिक स्नेहसंमेलन २०१९ – २०२०
अहवाल

शनिवार, दिनांक ४ जानेवारी २०२० रोजी सायंकाळी ५ वाजता महाविदयालयाच्या भव्य प्रांगणात सन २०१९ – २०२० या शैक्षणिक वर्षाचे वार्षिक स्नेहसंमेलन विदयार्थ्यांच्या उपस्थितीत मोठ्या जल्लोषात संपन्न झाले.

समारंभाचे अध्यक्षस्थान संस्थेचे अध्यक्ष आणि सामाजिक कार्यकर्ते मा. श्री. गणेश दिघे यांनी भूषवले होते. सुप्रसिद्ध डबिंग कलाकार श्रीमती कार्तिकी दाते या प्रमुख पाहुण्या म्हणून उपस्थित होत्या. स्नेहसंमेलनास शिक्षण संस्थेचे अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कार्याध्यक्ष व इतर सर्व पदाधिकारी उपस्थित होते. कनिष्ठ महाविदयालयाचे सर्व अध्यापक, विदयार्थी मोठ्या संख्येने उपस्थित होते.

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कार्यक्रमाचा आरंभ ‘तू बुद्धी दे, तू तेज दे’ या प्रार्थनेने करण्यात आला. कनिष्ठ महाविदयालयाच्या बारावी विज्ञान शाखेतील मोहिनी काळे या विदयार्थिनीच्या सुमधुर गीताने सर्वांची मने जिंकली. उपस्थित मान्यवरांच्या हस्ते दीपप्रज्वलन करण्यात आले. त्यानंतर प्रा. कुमार दाढे यांनी कार्यक्रमाचे प्रास्ताविक केले. समारंभात सादर होणाऱ्या कार्यक्रमाची रूपरेषा त्यांनी सांगितली. प्रा. दीप्ती राणे यांनी उपस्थित मान्यवरांचे शाल आणि सन्मानचिन्ह देऊन स्वागत केले.

सर्वांच्या सत्कारानंतर कनिष्ठ महाविदयालयाचे प्राचार्य डॉ. महेश देशपांडे यांनी सन २०१९ – २०२० या शैक्षणिक वर्षातील कनिष्ठ महाविदयालयात झालेल्या शैक्षणिक, सांस्कृतिक, कला क्रीडाविषयक घडामोडींचा थोडक्यात आढावा घेतला. सर्व अध्यापकांच्या कामाचे आणि विदयार्थ्यांच्या उत्साहाचे कौतुक केले.

कनिष्ठ महाविद्यालयाच्या अकरावी (अ) मधील विदयार्थांनी नृत्य सादर केले. कनिष्ठ महाविदयालयाच्या सर्व शाखांमधील निवडक विदयार्थ्यांनी मिळून राष्ट्रीय एकात्मतेवर आधारित नाटिका सादर केली. लागोपाठ समूह नृत्य आणि एकल गीत गायन मिळून चार सांस्कृतिक कार्यक्रम सादर करण्यात आले होते.

कार्यक्रमाच्या प्रमुख पाहुण्या सुप्रसिद्ध डबिंग कलाकार श्रीमती कार्तिकी दाते यांनी विदयार्थ्यांशी संवाद साधला. डबिंग क्षेत्रातील संधी समजावून सांगितल्या. संभाषण कौशल्यासोबत वाचनाचे महत्त्वही सांगितले. प्रात्यक्षिकांच्या साहाय्याने आवाजातील वैविध्य विदयार्थ्यांना दाखवले.

यानंतर उच्च माध्यमिक परीक्षेत सर्वांत अधिक गुण मिळवून यशस्वी होणाऱ्या विदयार्थ्यांचा प्रमुख पाहुण्यांच्या हस्ते सत्कार करण्यात आला. आंतरमहाविदयालयीन स्पर्धांमध्ये महाविदयालयाची नाममुद्रा उमटवणाऱ्या विदयार्थ्यांचे महाविदयालयाच्या वतीने सन्मान चिन्ह देऊन कौतुक करण्यात आले होते. वादविवाद, कवितावाचन, वक्तृत्व, निबंध, टी-शर्ट पेंटिंग या स्पर्धांची पारितोषिके अनुक्रमे वितरीत करण्यात आली. दरवर्षी स्नेहसंमेलनात सर्वांच्या उत्सुकतेचा विषय म्हणजे कनिष्ठ महाविदयालयाचा ‘आदर्श विद्यार्थी पुरस्कार’. बारावी (अ) कला शाखेच्या कपिल बोरसे या विदयार्थ्याने २०१९ – २०२० या वर्षातील ‘आदर्श विदयार्थी पुरस्कार’ देण्यात आला. सर्वांनी टाळ्यांच्या गजरात अभिनंदन केले.

अध्यक्षीय भाषणात मा. श्री. गणेश दिघे यांनी अध्यक्षीय भाषणात आपल्या महाविदयालयीन जीवनातील विविध प्रसंगांना उजाळा दिला. शिक्षकांची विदयार्थ्यांप्रती असणारी मायेची भावना सांगितली. सामाजिक कार्यातील अनेक उदाहरणे सांगून विदयार्थ्यांना सदय सामाजिक प्रश्नांची जाणीव करून दिली. पारितोषिक प्राप्त करणाऱ्या सर्व विदयार्थांचे अभिनंदन केले.

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कार्यक्रमाचे सूत्रसंचालन व पारितोषिक प्राप्त विदयार्थ्यांच्या यादीचे वाचन विदयार्थी प्रतिनिधी मंदार भावे आणि अश्विनी भोसले यांनी केले. प्रा. माणिक कढे यांनी सर्वांचे आभार मानले. तीन तास रंगलेल्या कार्यक्रमाची सांगता राष्ट्रगीताने झाली.

प्रा. दीप्ती राणे
अर्थशास्त्र विभागप्रमुख

दि. ……………                                                 सचिव                                                 अध्यक्ष

प्रश्न आ.
तुमच्या कनिष्ठ महाविद्यालयातील वृक्षारोपण कार्यक्रम.
उत्तर :
नालंदा शिक्षण संस्थेचे, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर माध्यमिक विद्यालय आणि कला, विज्ञान उच्च माध्यमिक विद्यालय
नांदेड

जागतिक पर्यावरण दिन : वृक्षारोपण कार्यक्रम
अहवाल

दरवर्षीप्रमाणे यंदाही ‘जागतिक पर्यावरण दिन’ बुधवार दि. ५ जून २०२० रोजी सकाळी आठ वाजता महाविदयालयात साजरा करण्यात आला. यावर्षी जागतिक पर्यावरण दिनाच्या निमित्ताने कनिष्ठ महाविदयालयात वृक्षारोपण कार्यक्रमाचे आयोजन करण्यात आले होते. महाविदयालयाच्या मागच्या बाजूस असणाऱ्या पटांगणात वृक्षारोपणाचा कार्यक्रम संपन्न झाला.

वृक्षारोपण कार्यक्रमास महाविदयालयाच्या प्राचार्या डॉ. शीतल देवस्थळी यांनी अध्यक्षस्थान भूषवले. शहरातील पर्यावरण प्रेमी आणि निवृत्त प्रशासकीय अधिकारी मा. श्री. अर्जुन नवले प्रमुख पाहुणे म्हणून उपस्थित होते. कनिष्ठ महाविदयालयातील अध्यापक, शहरातील निमंत्रित नागरिक आणि विदयार्थी मोठ्या संख्येने उपस्थित होते.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अहवाल

महाविदयालयाच्या प्रांगणात असलेल्या ‘गुलाब’ फुलाच्या रोपाला पाणी देऊन कार्यक्रमाला आरंभ करण्यात आला. महाविदयालयाचे जीवशास्त्र विभागाचे प्रा. डॉ. अनिल राऊत यांनी कार्यक्रमाचे प्रास्ताविक केले. जागतिक पर्यावरण दिनाचे महत्त्व प्रास्ताविकात नमूद केले. महाविदयालयाचे उपप्राचार्य डॉ. आकाश परांजपे यांनी प्रमुख पाहुण्यांना शाल आणि तुळसीचे रोप देऊन स्वागत केले. बारावी कला शाखेची विदयार्थिनी मृण्मयी बडे हीने प्रमुख पाहुण्यांचा परिचय करून दिला.

यानंतर प्रमुख पाहुणे मा. श्री. अर्जुन नवले यांनी विदयार्थ्यांशी संवाद साधला. सर्वप्रथम त्यांनी उपस्थितांना पर्यावरण दिनाची माहिती सांगितली. वेगवेगळ्या वृक्षांची नावे, उपयोग सांगितले. वृक्षांचे पर्यावरणातील महत्त्व ऐकताना उपस्थित श्रोते भारावून गेले होते. अर्जुन नवले यांनी गोष्टीच्या माध्यमातून वृक्षांची उपयुक्तता अधोरेखित केली. औषधी वनस्पतींची महत्त्वाची माहिती त्यांनी भाषणातून सांगितली.

महाविदयालयाच्या प्राचार्या डॉ. शीतल देवस्थळी यांनी अध्यक्षीय भाषणात पर्यावरणाविषयी तज्ज्ञ व्यक्तींचे विचार सांगितले.

यानंतर उपस्थित सर्वजण वृक्षारोपणात सहभागी झाले. प्रथमतः प्रमुख पाहुण्यांच्या हस्ते आंबा आणि चिंच यांचे रोपण करण्यात आले. प्राचार्यांच्या हस्ते निलगिरीच्या रोपाचे रोपण करण्यात आले. यावर्षीच्या वृक्षारोपण सोहळ्यात कनिष्ठ महाविदयालयातील वर्ग प्रतिनिधींनी देखील वृक्षारोपण केले. गुलाब, मोगरा, तुळस, जास्वंदी अशा फुलांच्या रोपांचे रोपण चार वर्ग प्रतिनिधींनी अनुक्रमे केले.

वृक्षारोपण कार्यक्रमाचे सूत्रसंचालन राहुल गोखले या बारावीतील विदयार्थ्याने केले होते. भूगोल विभागातील प्रा. गीता नाईक यांनी उपस्थित सर्वांचे ऋण व्यक्त केले.

दोन तास सुरू असणाऱ्या कार्यक्रमाची सांगता ‘वृक्षवल्ली आम्हा सोयरी वनचरे’ या संत तुकाराम महाराजांच्या अभंग गायनाने करण्यात आली.

डॉ. अनिल राऊत
जीवशास्त्र विभाग

दि. ……………                                                 सचिव                                                 अध्यक्ष

अहवाल प्रस्तावना

सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षणिक क्षेत्रांमध्ये लोकोपयोगी नवनवीन उपक्रम राबवले जात असतात. या उपक्रमांच्या कार्यवाहीसाठी शासकीय/खाजगी संस्थेला समिती स्थापन करावी लागते. या समितीच्या माध्यमातून वेळोवेळी राबवल्या गेलेल्या कार्यक्रमाचा लेखी स्वरूपात सविस्तर आढावा तयार केला जातो. हा आढावा म्हणजे अहवाल होय. कोणत्याही संस्था कार्यकारिणीतील सदस्यांसाठी अहवाल महत्त्वाचा घटक मानला जातो.

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शाळामहाविदयालयांमध्ये आयोजित केल्या जाणाऱ्या विविध स्पर्धा, स्नेहसंमेलने यांचे अहवाल आवर्जून लिहिले जातात. संस्थात्मक पातळीवर अहवाललेखन अपरिहार्य असते. कार्यक्रम/समारंभाची तपशील माहिती अहवालातून मिळत असते.

अहवाललेखनाचे स्वरूप :

  • एखादया कार्यालयात, संस्थेत कार्यक्रमांची, समारंभांची योग्य पद्धतीने नोंद ठेवणे म्हणजे ‘अहवाललेखन’ होय.
  • अहवालाचे स्वरूप लेखी असते. अहवाललेखन संस्थेच्या कामकाजात महत्त्वाची भूमिका बजावत असते.
  • संस्थेच्या कार्यक्रमाच्या आरंभापासून ते संपन्नतेपर्यंत कार्यक्रमाची सविस्तर परंतु मुद्देसूद नोंद अहवालात केली जाते.
  • संस्थात्मक कामांच्या निर्णय प्रक्रियेतील लहानात लहान घटकापासून ते संचालकांपर्यंत अहवालाचे महत्त्व अनन्यसाधारण असते.
  • अहवाललेखनात सत्यता आणि वस्तुनिष्ठपणा फार महत्त्वाचा असतो.
  • अहवाल मुद्देसूद आणि नेमका असणे आवश्यक असते.
  • कार्यक्रमाच्या अहवालाच्या आधारे संस्थेच्या पुढील योजनांचे नियोजन करणे, प्रगती साधणे शक्य होते. प्रगती अहवाल, तपासणी अहवाल, चौकशी अहवाल, आढावा अहवाल, मासिक अहवाल, वार्षिक अहवाल अशा स्वरूपाचे अनेकविध अहवाल असतात.

अहवाललेखनाची उपयुक्तता :

  • कार्यक्रम/समारंभाच्या नोंदी ठेवण्यासाठी अहवाललेखनाचा उपयोग होतो.
  • संस्थेचा विकास, गती, उणिवा अहवालाद्वारे संस्थाचालकांपर्यंत पोहोचण्यास साहाय्य होते.
  • संस्थेच्या कामकाजातील, कार्यक्रमातील विविध अडचणी जाणून घेण्यासाठी तसेच त्यावर उपाययोजना करण्यासाठी अहवाल महत्त्वाचा धागा मानला जातो.
  • विविध संस्था, लघुउद्योग ते मोठमोठे उद्योग आणि ग्रामपंचायत ते महानगरपालिका अशा सर्व ठिकाणी होणाऱ्या घडामोडींना अधिकृतता प्राप्त व्हावी यासाठी अहवालाची गरज असते.
  • संस्था, शासकीय कार्यालयांतील कामकाजाचा दस्तऐवज म्हणून अहवाललेखनाकडे पाहिले जाते. वर्षानुवर्षे संस्था अहवालाचे जतन करीत असतात.
  • कार्यक्रमाचा हेतू, तारीख, वेळ, सहभागी व्यक्ती, मांडलेले विचार, प्रतिसाद, समारोप अशा विविध मुद्द्यांचा अहवालात समावेश केलेला असतो.
  • अहवालात माहितीची सत्यता, सविस्तर परंतु नेमक्या नोंदी, वस्तुनिष्ठता इत्यादी बाबींचा अवलंब करताना लेखनकौशल्यावरील प्रभुत्व सिद्ध होत असते. सरावाने अहवाललेखनात मुद्देसूदपणा प्राप्त करता येतो.
  • अहवालाच्या साहाय्याने संस्थेला भविष्यकालीन योजनांचा कृतिआराखडा ठरवणे शक्य होते.

अहवालाचा आराखडा :

  • कार्यक्रमाच्या स्वरूपावर अहवालाचे स्वरूप अवलंबून असते.
  • संस्थेच्या कार्यक्षेत्र विषयानुसार अहवालाच्या आराखड्यांचे मुद्दे बदलत असतात.
  • एकाच महाविदयालयातील वक्तृत्व स्पर्धा, स्नेहसंमेलन आणि क्रीडास्पर्धा यांच्या अहवालाचे स्वरूप भिन्न असू शकते.
  • स्पर्धेचे, कार्यक्रमाचे स्वरूप बदलले की अहवाललेखनातील मुद्दे बदलतात.
  • विषयाच्या स्वरूपानुसार अहवाललेखन, त्यांची रचना, घटक, मुद्दे, क्रम म्हणजे एकूणच आराखडा काही प्रमाणात वेगळा असतो.

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अहवाललेखनाची वैशिष्ट्ये :

  • कोणत्याही संस्थेच्या कार्यालयीन कामात अहवाललेखन अत्यंत विश्वासार्ह दस्तऐवज मानले जाते. कार्यक्रमाची संपूर्ण माहिती अहवालातून मिळत असते. अहवाललेखनाची काही वैशिष्ट्ये समजून घेऊ.

वस्तुनिष्ठता आणि सुस्पष्टता :

  • अहवाललेखनात कार्यक्रमाचा हेतू, तारीख, वार, वेळ, स्थळ, सहभागी व्यक्ती, पदे, विवेचन, महत्त्वपूर्ण घटना, संख्यात्मक माहिती, निष्कर्ष इत्यादी अनेक महत्त्वाच्या बाबींची नोंद असते. यात वस्तुनिष्ठता असणे गरजेचे असते.
  • अहवाललेखनात घटना-प्रसंग वर्णनात संदिग्धता असता कामा नये. अहवाललेखनातील नोंदी अचूक आणि सुस्पष्ट असाव्यात.
  • अहवाललेखनातील सर्व मुद्दे पारदर्शी असणे आवश्यक असते.
  • अहवालातील मांडणी तार्किक असावी. अहवालाच्या शेवटी आवश्यक संदर्भ तसेच शिफारसी जोडाव्यात.

विश्वसनीयता :

  • संस्थेच्या प्रमुख दस्तऐवजांमध्ये अहवालाचा समावेश केला जातो. अहवाललेखनात विश्वसनीयता महत्त्वाची मानली जाते.
  • अहवाललेखनातील घटक सत्य असावे.
  • अहवाललेखनात लेखनकर्त्याचे मत अथवा निष्कर्ष असू नये.
  • कार्यक्रमातील नोंदी, माहितीस्रोत, संदर्भ, शिफारसी यांचा अहवालात समावेश केल्याने अहवालाची विश्वसनीयता निश्चितच वाढते.
  • संस्थात्मक कामात कधी गुंतागुंतीची, संभ्रमाची परिस्थिती उद्भवली तर पुरावा म्हणूनही अहवालाचा वापर केला जाऊ शकतो.

भाषेचा सोपेपणा :

  • अहवालाची भाषा सहज, सोपी असावी. सर्वसामान्य व्यक्तीलाही अहवालाचा आशय कळेल असा सोपेपणा अहवालात असावा.
  • वस्तुनिष्ठता हे अहवालाचे एक वैशिष्ट्य असल्याने अहवालात अतिशयोक्ती, आलंकारिकता टाळली जाते.
  • तांत्रिकता, बोजड शब्दप्रयोग, व्याकरणदृष्ट्या सदोष भाषा अहवालात असणार नाही, याची काळजी घेणे अपरिहार्य असते.
  • अहवालातील मजकूर सविस्तर मांडत असताना आशयाचा नेमकेपणा कायम ठेवणे हे आव्हानात्मक काम असते.
  • प्रत्येक क्षेत्राशी निगडित संज्ञा, प्रक्रिया, पारिभाषिक शब्द यांचा यथोचित वापर करणे अहवाललेखनात गरजेचे असते.

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शब्दमर्यादा :

  • संस्थेच्या कार्यस्वरूपावर अहवालाची शब्दमर्यादा किंवा पृष्ठसंख्या अवलंबून असते.
  • सर्वसाधारणपणे अहवाल संक्षिप्त स्वरूपात असणे आवश्यक असते; परंतु यासाठी अहवाल अर्धवट राहणार नाही याची काळजी घेणे गरजेचे असते.
  • सांस्कृतिक, साहित्यिक, क्रीडाविषयक यांसारखे अहवाल आटोपशीर असतात. सहकारी संस्था, वार्षिक सर्वसाधारण सभा इत्यादींचे अहवाल विस्तृत असतात. अशा अहवालांचे स्वरूप निश्चित असते.
  • एखादया समस्येच्या संदर्भात संशोधनात्मक अहवाल, सार्वजनिक क्षेत्रातील उदयोगव्यवसाय, सार्वजनिक सेवा (बस वाहतूक) यांसारख्या विषयाशी संबंधित अहवाल आकाराने मोठे असतात. विस्तृतपणे लिहिले जातात.
  • निरीक्षणे, तपशील, आकडेवारी, संख्यात्मक आलेख, निष्कर्ष अशा माहितीचा समावेश अहवालात असल्याने संशोधनात्मक, चौकशी अहवालांची शब्दमर्यादा अधिक असल्याचे दिसते.
  • एखादया समारंभाचा अहवाल तीन-चार पृष्ठांचा असतो, तर एखादया आयोगाचा अहवाल सुमारे १००० किंवा अधिक पृष्ठांचा असू शकतो.

नि:पक्षपातीपणा :

  • अहवाललेखन दस्तऐवजाच्या स्वरूपात असल्याने त्याचे सर्वांत महत्त्वाचे वैशिष्ट्य म्हणजे पारदर्शीपणा.
  • प्रकार आणि स्वरूप कुठलेही असो, अहवालाचा नि:पक्षपातीपणा हे त्याचे महत्त्वाचे वैशिष्ट्य होय.
  • अहवाललेखनात व्यक्तिसापेक्षता असू नये.
  • अहवाललेखकाच्या विचारांचे प्रतिबिंब अहवालात असू नये. उलट संबंधित विषयाला बाधा आणणारी स्वतःची एकांगी मते, एककल्ली विचार अहवालात उमटणार नाहीत, याची काळजी घेणे आवश्यक असते.
  • अहवाललेखनात स्वतःच्या मर्जीने लेखन करता येत नाही. मनोकाल्पित गोष्टी अहवाललेखनात असू नयेत.
  • वास्तवदर्शी लेखन हा अहवालाचा आत्मा असतो.
  • संस्थात्मक कार्य, समारंभ, सभा, संशोधन यांमधील सत्य माहिती, लेखकाचा खराखुरा, वास्तव अनुभव शब्दरूपात अहवालात येणे अपेक्षित असते.

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लक्षात ठेवावे :

  • अहवाललेखनात शीर्षक, उपशीर्षक यांच्या अनुषंगाने सर्व मुद्दे असावेत. अहवालाच्या आरंभापासून ते शेवटच्या वाक्यापर्यंत सुसंगत मांडणी असावी.
  • अहवाल ‘सादर’ केला जातो; त्यामुळे अहवाललेखन करणारा आणि अहवाल वाचणारा हे दोन्ही घटक अहवाल निर्मितीच्या प्रक्रियेत महत्त्वाचे असतात.

अहवाललेखनाची प्रमुख अंगे :
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अहवाललेखनाचा आराखडा समजून घेताना वरील चार अंगे विचारात घ्यावी लागतात.

  1. अहवालाचे प्रास्ताविक : अहवालाच्या प्रास्ताविकात अहवालाचा विषय, हेतू (कार्यक्रमाचा विषय) उदधृत केलेले असणे अपेक्षित असते. कार्यक्रम/समारंभ विषय, स्थळ, दिनांक, वार, वेळ, स्वरूप, अध्यक्षांचे नाव, पदनाम, उपस्थित मान्यवरांची नावे, हुद्दे, अन्य उपस्थितांचा उल्लेख या बाबींचा समावेश असणे आवश्यक असते. कार्यक्रमाचा आरंभ, स्वरूप, लक्षणीय कृती इत्यादी गोष्टींचा उल्लेख आवर्जून करणे आवश्यक असते.
  2. अहवालाचा मध्य : संस्थात्मक सभा/कार्यक्रम/समारंभ यांसाठी सहभागी व्यक्ती, त्यांचे विवेचन, उपक्रमांचे तपशील, उपक्रमांचे फलित, यासंदर्भातील भविष्यातील योजना, नियोजन यांबाबत क्रमवार, मुद्देसूद विवेचन अपेक्षित असते. संबंधित कार्यक्रमात अन्य सहभागी व्यक्तींचे नामोल्लेख तसेच त्यांचे वक्तव्य निवडक स्वरूपात या टप्प्यावर लिहिणे आवश्यक असते.
  3. अहवालाचा समारोप : कोणत्याही सभा/ कार्यक्रम/ समारंभ यांच्यातील उल्लेखनीय बाबी, त्रुटी आणि यशस्विता यासंबंधीच्या निष्कर्षाच्या स्वरूपातील अभिप्राय समारोपात नोंदवून अहवाल पूर्ण करणे आवश्यक असते.
  4. अहवालाची भाषा : अहवाललेखनाची भाषा सोपी सहज आकलन होईल अशी असावी. संस्थेचे कार्यक्षेत्र, कार्यक्रमाचे स्वरूप इत्यादींनुसार अहवालात विशिष्ट संज्ञा, पारिभाषिक शब्दयोजना करावी लागते. प्रत्येक क्षेत्रात अहवालाची ठरावीक भाषा विकसित झालेली असते. अशा भाषेचा अवलंब अहवाललेखनात केला जातो.

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एक नमुना म्हणून महाविदयालयात साजरी केलेली ‘सावित्रीबाई फुले जयंती’ अहवाललेखनाचा आराखडा नेमका कसा असू शकेल ते पुढील तक्त्याच्या साहाय्याने पाहू या –

विषय : ‘सावित्रीबाई फुले जयंती’ समारंभाचा अहवाल.
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शैक्षणिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमांच्या अहवाललेखनात कार्यक्रमाची निवडक छायाचित्रे जोडली जातात. अहवालाच्या विश्वसनीयतेत यामुळे निश्चितच भर पडते.

अहवाललेखनात महत्त्वाचे :

  • कोणत्याही अहवालाच्या पहिल्या पानावर अहवालाचे शीर्षक असावे. संस्थेचे नाव, पत्ता, संपर्क क्रमांक असावा.
  • अहवालाचा विषय लक्षात घेऊन अहवाललेखन करणे महत्त्वाचे असते.
  • शीर्षक, उपशीर्षक, संख्यात्मक माहिती, आलेख, संकलित माहिती, त्यावरून मांडलेले निष्कर्ष या सर्वांचा समावेश अहवालात मुद्देसूदपणे करणे अपेक्षित असते. अहवालात नमूद केलेले मुद्दे, उपमुद्दे, विविध प्रकरणे यांची अनुक्रमणिका जोडणे अपेक्षित असते.
  • अहवाल सादर करणाऱ्याचे नाव आणि हुद्दा नमूद करणे गरजेचे.

अहवाललेखन लालित्यपूर्ण लेखन प्रकारात येत नसले तरी अहवाललेखन ही कला आहे. शिक्षणाच्या संदर्भात सुप्रसिद्ध कोठारी कमिशनच्या अहवालातील पहिलेच वाक्य आहे – “The destiny of India is being shaped in her classrooms!” (भारताच्या भवितव्याची जडणघडण शाळांमधील वर्गखोल्यांमध्ये होत आहे!) असे आहे. अशा लालित्यपूर्ण शैलीत विचार प्रकटीकरणामुळे अहवाललेखन लालित्यपूर्ण होऊ शकते.

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अहवाललेखन करताना लक्षात घ्यावयाच्या बाबी :

  • अहवाललेखन करणाऱ्या व्यक्तीला अहवालाच्या विषयासंबंधी नेमकी जाण असली पाहिजे.
  • अहवाललेखन वास्तवदर्शी असायला हवे. जे घडले ते सुस्पष्टपणे लिहिणे अपेक्षित असते.
  • अहवाललेखनात विषयाला विसंगत असलेले स्वमत, विचार लिहू है नयेत. अहवाललेखनात अहवाल लिहिणाऱ्या व्यक्तीच्या विचारांचे प्रतिबिंब असू नये.
  • अहवाल विषयाचे स्वरूप, वेगळेपण, विशिष्ट बारकावे टिपता आले पाहिजेत. यासाठी अहवाललेखकाकडे सूक्ष्म आकलन निरीक्षणशक्ती असली पाहिजे.
  • कार्यक्रमाचे सारांश रूपाने संक्षिप्त लेखन करता आले पाहिजे.
  • अहवाललेखनात व्यक्तींची नावे, हुद्दा चुकीची लिहिली जाऊ नयेत. घटनाक्रम चुकवू नये.
  • न घडलेल्या घटनांचा उल्लेख करू नये.
  • अहवाललेखनात आवश्यक त्या तांत्रिक गोष्टी (मथळा, तारीख, वेळ, स्थळ, अध्यक्ष, प्रमुख पाहुणे, पारितोषिक/पुरस्कार प्राप्त व्यक्ती इत्यादी) नोंदवणे आवश्यक असते.
  • अहवाललेखनासाठी भाषेवर प्रभुत्व असायला हवे. विशेषतः साहित्यिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमांचे अहवाललेखन करताना बोलके व सजीव चित्र उभे करता आले पाहिजे. संशोधनात्मक स्वरूपाच्या अहवालात योग्य पारिभाषिक शब्दावली आणि वस्तुनिष्ठता महत्त्वाची असते.
  • अहवाललेखनाची भाषा सहज, सोपी स्वाभाविक असावी.
  • आलंकारिक, नाट्यपूर्ण, अतिशयोक्तीपूर्ण वर्णन करणारी असू नये.
  • अहवाललेखनात सुसूत्रता असावी. अहवाल मांडणीत विस्कळीतपणा असू नये.
  • अहवाललेखन आरंभापासून शेवटच्या वाक्यापर्यंत एकात्म स्वरूपाचा असावा. अर्धवट, अपुरा असू नये किंवा तसा वाटू नये.
  • अहवाल लिहून झाल्यावर त्याखाली संबंधित अध्यक्ष आणि सचिव यांच्या मान्यतेस्तव स्वाक्षऱ्या केलेल्या असाव्यात.

नोंद : अहवाललेखन नमुना समजून घेण्यासाठी पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र.१०३ वर दिलेला अहवाललेखनाचा नमुना अभ्यासा. तसेच अधिक अभ्यासासाठी पुढे दिलेला अहवाललेखनाचा नमुनाही अभ्यासा.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अहवाल 3
दरवर्षीप्रमाणे यावर्षीही महाविदयालयाच्या वतीने ‘मराठी भाषा E गौरव दिन’ अर्थात कविश्रेष्ठ कुसुमाग्रज यांचा जन्मदिवस २७ फेब्रुवारी २०२० रोजी गुरुवारी सकाळी महाविदयालयाच्या के. पी. रेगे सभागृहात मोठ्या जल्लोषात साजरा झाला.

अभिनव शिक्षण संस्थेचे संचालक आणि आदर्श शिक्षक पुरस्कार प्राप्त विदयार्थीप्रिय शिक्षक मा. श्री. हेमंत देवीदास यांनी कार्यक्रमाचे अध्यक्षस्थान भूषवले होते. सुप्रसिद्ध सुलेखनकार अच्युत पालव प्रमुख पाहुणे म्हणून उपस्थित होते. कार्यक्रमास महाविदयालयाच्या प्राचार्या डॉ. अरुणा जोशी उपस्थित होत्या. तसेच महाविद्यालयाचे सर्व अध्यापक, निमंत्रित आणि विदयार्थी मोठ्या संख्येने कार्यक्रमाला उपस्थित होते.

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कनिष्ठ महाविदयालय कला शाखेच्या विदयार्थ्यांनी कुसुमाग्रजांच्या ‘माझ्या मराठी मातीचा’ या गीतगायनाने कार्यक्रमाची सुरुवात केली. ‘मराठी भाषा गौरव दिना’चे प्रास्ताविक महाविदयालयाचे मराठी विभागप्रमुख प्रा. डॉ. आनंद राणे यांनी केले. ‘मराठी भाषा गौरव दिना’चे महत्त्व आणि कार्यक्रमाची रूपरेषा त्यांनी प्रास्ताविकात नमूद केली. इतिहास विभागाच्या प्रा. देविका कुलकर्णी यांनी कार्यक्रमाचे अध्यक्ष आणि प्रमुख पाहुणे यांचा परिचय करून दिला. महाविदयालयाच्या प्राचार्यांनी मान्यवरांचे स्वागत करावे अशी विनंती केली. महाविदयालयाच्या प्राचार्या डॉ. अरुणा जोशी यांनी मंचावर उपस्थित मान्यवरांचे शाल आणि सन्मानचिन्ह देऊन महाविदयालयाच्या वतीने स्वागत केले.

यानंतर कनिष्ठ महाविदयालयातील विदयार्थ्यांनी ‘मी मराठी’ या शीर्षकाची १५ मिनिटांची नाटिका सादर केली. नीलम काणे, दुर्गेश कर्वे आणि देविका भिडे या बारावीच्या विदयार्थ्यांचा यात सहभाग होता.

महाविदयालयाच्या प्राचार्या डॉ. अरुणा जोशी यांनी उपस्थित सर्वांना मराठी भाषा गौरव दिनाच्या सदिच्छा दिल्या. प्राचार्यांच्या सदिच्छापर भाषणानंतर कार्यक्रमाचे प्रमुख पाहुणे सुप्रसिद्ध सुलेखनकार अच्युत पालव यांनी विदयार्थ्यांशी संवाद साधला. मराठीतील अक्षरांच्या गमतीजमती सांगितल्या. अक्षरांचे व्यक्तिमत्त्व विविध उदाहरणातून उलगडून सांगितले. कवीश्रेष्ठ कुसुमाग्रजांच्या कवितेतील काही ओळींच्या सुलेखनाचे प्रात्यक्षिक विदयार्थ्यांना दाखवले. त्याक्षणी उपस्थित सर्वच भारावून गेले होते.

मराठी भाषा दिनानिमित्त आयोजित केलेल्या विविध स्पर्धांमध्ये आघाडीवर असणाऱ्या वर्गाला पारितोषिक देऊन गौरवण्यात आले. बारावी (ब) या वर्गाने हे पारितोषिक पटकावले. प्रमुख पाहुणे सुप्रसिद्ध सुलेखनकार अच्युत पालव यांच्या हस्ते पारितोषिक देण्यात आले. वर्गप्रतिनिधी कोमल जोंधळे या विदयार्थिनीने वर्गाच्या वतीने पारितोषिक स्वीकारले.

यानंतर संस्थेचे संचालक मा. श्री. हेमंत देवीदास यांनी अध्यक्षीय भाषण केले. मराठी भाषेचा गोडवा सांगत मातृभाषेतील शिक्षणाचे महत्त्वही सांगितले. विदयार्थी आणि सर्व प्राध्यापक वर्गाचे विविध उपक्रमांतील सक्रियतेसाठी कौतुक केले. हिंदी विभागप्रमुख अर्चना गुप्ता यांनी कार्यक्रमाचे अध्यक्ष, प्रमुख पाहुणे, उपस्थित प्राध्यापक वर्ग, निमंत्रित आणि विदयार्थी या सर्वांचे ऋण व्यक्त केले.

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दोन तास रंगलेल्या कार्यक्रमाची सांगता ज्ञानेश्वर माउलींच्या – पसायदानाने झाली.

प्रा. डॉ. आनंद राणे
मराठी विभागप्रमुख

दि. ……………                                                 सचिव                                                 अध्यक्ष

12 वी मराठी पुस्तक युवकभारती भाग-४ उपयोजित मराठी