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Maharashtra Board Class 12 Hindi परिशिष मुहावरे

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest परिशिष मुहावरे Notes, Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Hindi परिशिष मुहावरे

मुहावरा वह वाक्यांश जो सामान्य अर्थ को छोड़कर किसी विशेष अर्थ में प्रयुक्त होता है; मुहावरे में उसके लाक्षणिक और व्यंजनात्मक अर्थ को ही स्वीकार किया जाता है। वाक्य में प्रयुक्त किए जाने पर ही मुहावरा सार्थक प्रतीत होता है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi परिशिष मुहावरे

  • अपना उल्लू सीधा करना – अपना स्वार्थ सिद्ध करना।
  • दिन दूना रात चौगुना बढ़ना – दिन–प्रतिदिन अधिक उन्नति करना।
  • अक्ल पर पत्थर पड़ना – बुद्धि काम न करना।
  • आँखों में धूल झोंकना – धोखा देना।
  • आँखें बिछाना – अति उत्साह से स्वागत करना।
  • कान में कौड़ी डालना – गुलाम बनाना।
  • कंगाली में आटा गीला होना – विपत्ति में और अधिक विपत्ति आना।
  • कुएँ में बाँस डालना – जगह–जगह खोज करना।
  • गुड़ गोबर करना – बने काम को बिगाड़ देना।
  • गड़े मुर्दे उखाड़ना – पुरानी कटु बातों को याद करना।
  • कटे पर नमक छिड़कना – दुखी को और दुखी बनाना।
  • एक और एक ग्यारह – एकता में शक्ति होना
  • घर फूंक तमाशा देखना – अपनी ही हानि करके प्रसन्न होना।
  • घाट-घाट का पानी पिया होना – हर प्रकार के अनुभव से परिपूर्ण होना।
  • चाँदी काटना – बहुत लाभ कमाना। Maharashtra Board Class 12 Hindi परिशिष मुहावरे
  • जहर का चूंट पीना – अपमान को चुपचाप सह लेना।
  • जी-जान से काम करना – पूरी क्षमता के साथ काम करना।
  • तिल का ताड़ बनाना – छोटी बात को बढ़ा–चढ़ाकर कहना।
  • पत्थर की लकीर होना – पक्की बात।
  • पेट में दाढ़ी होना – छोटी आयु में बुद्धिमान होना।
  • फूंक-फूंककर पाँव रखना – अति सावधानी बरतना।
  • मुट्ठी गर्म करना – रिश्वत देना।
  • रंग में भंग होना – प्रसन्नता के वातावरण में विघ्न पड़ना।
  • शक्ल पर बारह बजना – बड़ा उदास रहना।
  • सितारा चमकना – भाग्योदय होना
  • आठ-आठ आँसू रोना – बहुत अधिक रोना।
  • आँखें चार होना – प्रेम होना।
  • अगर-मगर करना – टाल–मटोल करना।
  • अपना ही राग अलापना – अपनी ही बातें करते रहना।
  • आसमान पर थूकना – अशोभनीय कार्य करना।
  • उल्टी गंगा बहाना – उल्टा काम करना।
  • उगल देना – भेद बता देना।
  • ओखली में सिर देना – जान–बूझकर जोखिम उठाना।
  • एक लाठी से हाँकना – सबके साथ समान व्यवहार करना।
  • चार चाँद लगाना – शोभा बढ़ाना।
  • पापड़ बेलना – कड़ी मेहनत करना।
  • कान भरना – चुगली करना। Maharashtra Board Class 12 Hindi परिशिष मुहावरे
  • कोल्हू का बैल – लगातार काम में लगे रहने वाला। बहुत परिश्रम करने वाला।
  • कब्र में पैर लटकना – मरने के समीप होना।
  • कागजी घोड़े दौड़ाना – लिखा–पढ़ी करना।
  • कौड़ी-कौड़ी का मोहताज – अत्यंत निर्धन होना।
  • खाला का घर – आसान काम।
  • खाल मोटी होना – बेशर्म होना।
  • गिरगिट की तरह रंग बदलना – अवसरवादी होना।
  • घोड़े बेचकर सोना – गहरी नींद सोना।
  • हाथ खींचना – निश्चिंत होकर सोना।
  • चोली-दामन का साथ होना – साथ न देना।
  • चोर की दाढ़ी में तिनका – घनिष्ठ संबंध होना।
  • जली-कटी सुनाना – अपराधी का भयभीत और सशंकित रहना।
  • डकार तक न लेना – कटु–चुभती बातें करना।
  • डूबती नाव पार लगाना – सब कुछ हजम कर लेना।
  • तलवे चाटना – कष्टों से छुटकारा देना।
  • दाल न गलना – खुशामद करना।
  • पेट काटना – काम न बनना।
  • पाँचों उँगलियाँ घी में होना – चतुराई काम न आना।
  • पोंगा होना – भूखा रहना। Maharashtra Board Class 12 Hindi परिशिष मुहावरे
  • बात का धनी – चहुँ तरफ लाभ होना।
  • मरने की फुरसत न होना – नासमझ होना।
  • मूंछ उखाड़ना – वचन का पक्का कामों में बहुत व्यस्त होना।
  • रोटियाँ तोड़ना – घमंड चूर-चूर कर देना।
  • वीरगति को प्राप्त होना-मुफ्त में खाना।
  • स्वांग भरना – युद्ध में वीरतापूर्वक मृत्यु पाना।
  • हवा लगना – विचित्र वेश बनाना, किसी की नकल उतारना।
  • हवाई किले बनाना – असर पड़ना/होना।
  • दाई से पेट छिपाना – बहुत अधिक कल्पना करना।
  • सिर खपाना – भेद जानने वाले से सच्ची बात छिपाना।
  • खबर गरम होना – कठोर परिश्रम करना। चर्चा-ही-चर्चा होना।
  • चिराग तले अँधेरा – गुणवान व्यक्ति में भी दोष होना।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 18 प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 18 प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 18 प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव

12th Hindi Guide Chapter 18 प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

पाठ पर आधारित

प्रश्न 1.
प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों द्वारा प्रकाश उत्पन्न करने के उद्देश्यों की जानकारी दीजिए।
उत्तर :
हम कोई भी काम करते हैं, तो उसके पीछे हमारा कोई-न-कोई उद्देश्य होता है। उसी तरह प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों का भी प्रकाश उत्पन्न करने के पीछे सार्थक उद्देश्य होता है।

वातावरण में लाखों कीट-पतंगे उड़ते रहते हैं। प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों का अँधेरे में प्रकाश उत्पन्न करने का एक कारण उजाले में अपने साथी की खोज करना होता है। इसके अलावा प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव इससे संकेतों का आदान-प्रदान भी करते हैं।

जीवों द्वारा प्रकाश उत्पन्न करने का दूसरा उद्देश्य उजाले में अपने शिकार को खोजना होता है। वह उजाले में शिकार को स्पष्ट रूप से देखकर उसे अपना शिकार बना सकता है। कुछ जीव अपने प्रकाश से शिकार को आकर्षित करने का काम भी करते हैं। प्रकाश से आकर्षित होकर शिकार जब उसके पास आता है, तो वह आसानी से उसे अपना शिकार बना लेता है।

है कुछ जीव, विशेषकर मछलियाँ, कामाफ्लास के लिए प्रकाश उत्पन्न करते हैं। इस प्रकाश में वे अपने परिवेश से इतना घुल-मिल जाते हैं कि सरलता से वे दिखाई नहीं देते। इससे उन जीवों को शिकार करने और अपने आप को सुरक्षित रखने में सुविधा होती है।

जीवों द्वारा प्रकाश उत्पन्न करने का उद्देश्य आत्मरक्षा करना भी होता है। सागरों और महासागरों में पाए जाने वाले कुछ जीव अपने प्रकाश उत्पादक अंगों से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। ये स्क्विड के समान अपने शरीर से एक विशेष प्रकार का तरल रसायन छोड़ते हैं, जो पानी में मिलकर चमकीला प्रकाश-सा हो जाता हैं। इससे उनका शत्र उन्हें देख नहीं पाता है और वे वहाँ से भागने में सफल हो जाते हैं।

इस प्रकार प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों द्वारा प्रकाश उत्पन्न करने के कई सार्थक उद्देश्य होते हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 12 लोकगीत

प्रश्न 2.
प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों की वैज्ञानिक अध्ययन की दृष्टि से जानकारी लिखिए।
उत्तर :
प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों के बारे में किए गए विभिन्न अध्ययनों से वैज्ञानिकों को अनेक प्रकार की जानकारियाँ प्राप्त हुई हैं। प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव जमीन और जल दोनों स्थानों पर पाए जाते हैं। जल में पाए जाने वाले ये जीव तालाबों और नदियों के जल में नहीं पाए जाते। प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव खारे जल वाले गहरे समुद्रों में पाए जाते हैं। इनमें जेलीफिश, स्क्विड, क्रिल तथा विभिन्न जातियों वाले झींगे मुख्य हैं।

वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव दो प्रकार से प्रकाश उत्पन्न करते हैं – एक तो अपने शरीर पर पाए जाने वाले जीवाणुओं के माध्यम से, दूसरे रसायन के पदार्थों की पारस्परिक क्रिया के द्वारा। जीवाणुओं द्वारा प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों के पूरे शरीर पर प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवाणु रहते हैं। ये निरंतर प्रकाश उत्पन्न करते रहते हैं।

इन जीवों में इस प्रकाश को ढकने अथवा प्रकाश वाले भाग को अपने शरीर के अंदर खींचने की क्षमता होती है। अतः वे अपनी आवश्यकता के अनुसार इस प्रकाश का उपयोग करते हैं। रसायनों के द्वारा प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों के शरीर में ल्यूसीफेरिन (Luciferin) और ल्यूसीफेरैस (Luciferase) नामक रसायन होते हैं। इन दोनों रसायनों की सहायता से ये जीव प्रकाश उत्पन्न करते हैं।

अधिकांश जीव जीवाणुओं द्वारा अथवा रासायनिक क्रिया द्वारा प्रकाश उत्पन्न करते हैं। पर कुछ ऐसे भी जीव होते हैं, जिनके शरीर पर न तो प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवाणु रहते हैं और न ही उनके शरीर पर रसायन उत्पन्न करने वाले अंग ही होते हैं। फिर भी ये प्रकाश उत्पन्न करते हैं।

इन जीवों के शरीर में विशेष प्रकार के द्रव पदार्थ वाली ग्रंथि होती है। यह द्रव पदार्थ पानी के संपर्क में आते ही प्रकाश उत्पन्न करता है। समुद्र में पाए जाने वाले प्रकाश उत्पादक जीवों के लिए पानी आवश्यक होता है। ये जीव पानी के बाहर प्रकाश उत्पन्न नहीं कर सकते।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों की संख्या काफी है। जीव वैज्ञानिक अभी प्रकाश उत्पन्न करने वाले नए-नए जीवों की खोज कर रहे हैं तथा उनके द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले प्रकाश पर शोध कर रहे हैं।

व्यावहारिक प्रयोग

प्रश्न 1.
समुद्री जीवों पर शोधपूर्ण आलेख पढ़ें।
उत्तर :
पृथ्वी के तीन चौथाई हिस्से पर समुद्रों की विशाल जल राशि व्याप्त है। इस जल राशि में समुद्री जीवों की विचित्र दुनिया है। ऐसी दुनिया जिसके बारे में जानकर दाँतों तले ऊँगली दबा लेनी पड़ती है।

समुद्र बड़े-छोटे, रंगबिरंगे, खतरनाक विषैले जीवों तथा प्रकाश उत्पन्न करने वाले असंख्य जीवों से भरा पड़ा है।

एक ओर जहाँ समुद्र में पाए जाने वाले जीवों पर आधारित मत्स्य उद्योग, सजावटी सामानों तथा अन्य अनेक वस्तुओं के व्यवसाय फल-फूल रहे हैं, वहीं समुद्र में अभी भी ऐसे अनेक जीव हैं जिनके बारे में हम जानते तक नहीं।

समुद्र के अद्भुत संसार में पाया जाने वाला अद्भुत जीव है व्हेल। यह समुद्र का सबसे बड़ा जीव है। इसकी लंबाई 25 मीटर और वजन 150 से 180 टन तक होता है। गहरे पानी में पाया जाने वाला यह जीव साँस लेने के लिए जब अपने सिर में बने छेद से पानी फेंकता है तो लगता है, जैसे बादल फटकर बरसात हो रही हो। विशाल जीवों में खतरनाक शॉर्क मछली भी मशहूर है। यह इतनी खतरनाक होती है कि अन्य समुद्री जीव इससे दूरी बनाकर चलते हैं। समुद्र में बिजली की तरह करंट मारने वाली दो मीटर लंबी बामी मछली की शकल-सूरत वाली एक मछली पाई जाती है, जिसका नाम है ईल।

इसके शरीर में 860 वॉट का करंट प्रवाहित होता है। यह अपने इस करंट से मगर जैसे खतरनाक जीव को भी मार डालती है। समुद्र में पाई जाने वाली सॉर्ड फिश चपटे और बहुत बड़े आकार की होती है। उसका थूथना नुकीला होता है और वजन 600 किलो तक का होता है। स्टिंग रे फिश का आकार हवाई जहाज जैसा होता है और इसके जबड़ों के पास वाले दो बड़े-बड़े काँटे बहुत विषैले होते हैं। विषैली मछलियों में जेली फिश का भी समावेश हैं।

यह पारदर्शी होती है और इसके शरीर से लटकने वाले रेशे बहुत विषैले होते हैं। इसलिए इसे पकड़कर उठाते समय बहुत सावधानी बरतनी पड़ती हैं।

समुद्र में कुछ ऐसी मछलियाँ भी पाई जाती हैं, जो उड़ सकती हैं। इन्हें फ्लाइंग फिश के नाम से जाना जाता है। ये पानी की सतह के ऊपर तेज गति से उड़ती हुई जाती हैं। ये मछलियाँ आकार में छोटी होती हैं। समुद्र में तीक्ष्ण दाँतों वाली पॉफर नाम की एक विचित्र मछली पाई जाती है। वह सामान्य मछलियों की तरह लंबी होती है पर छूने पर यह गोल आकार धारण कर लेती है।

समुद्र सी-हार्स, शील, डाल्फिन, लायन फिश, शंख, सीपियों, धोंधों, केकड़ों, कछुओं तथा विभिन्न प्रकार के साँपों से भरा हुआ है। इसमें तरह-तरह की हजारों किस्म की रंगबिरंगी मछलियाँ पाई जाती हैं।

इसके अलावा समुद्र में प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों का विशाल संसार है। ये जीव अपने शिकार करने अथवा अपनी आत्मरक्षा के लिए प्रकाश उत्पन्न करते हैं। इन जीवों में ऑक्टोपस, एंगलर मछलियाँ, कटलफिश, कार्डिनल मछली, क्रिल, जेली फिश, टोड मछली, धनुर्धारी मछली, वाम्बेडक मछली, मूंगे, लालटेल मछली, वाइपर मछली, शंबुक, समुद्री कासनी, समुद्री स्लग, समुद्री स्क्विर्ट, स्क्विड तथा व्हेल मछली प्रमुख हैं। जीव वैज्ञानिक अभी भी समुद्र में प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों की खोज का कार्य कर रहे हैं।

जिस प्रकार समुद्र का आरपार नहीं है उसी प्रकार समुद्री जीवों का भी आरपार नहीं है।

प्रश्न 2.
प्रकाश उत्पन्न करने वाले किसी एक जीव की खोज कीजिए।
उत्तर :
संसार में प्रकाश उत्पन्न करने वाले अनेक जीव हैं। प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है। एक जमीन पर पाए जाने वाले जीव और दूसरे जल में पाए जाने वाले जीव। यहाँ हम जमीन पर पाए जाने वाले प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव जुगनू की जानकारी प्राप्त करेंगे।

जुगनू एक सामान्य कीड़ा है, जो रात के अंधेरे में आकाश में रुक-रुक कर प्रकाश करते हुए उड़ता है। यह ग्रामीण भागों में सर्वत्र पाया जाता है। गाँवों में अकसर बच्चे जुगनू को मुट्ठी में पकड़ कर खेलते हैं। दूसरे बच्चे यह देख कर ताज्जुब करते हैं कि आग को मुट्ठी में पकड़ने पर भी उसका हाथ जला क्यों नहीं। पर प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों के प्रकाश में ऊष्मा नहीं होती। यह प्रकाश ठंडा होता है। इसलिए हाथ जलने का सवालही नहीं उठता।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव दो प्रकार से प्रकाश उत्पन्न करते ई हैं। एक जीवाणुओं द्वारा और दूसरे रासायनिक, पदार्थों की पारस्परिक क्रिया द्वारा। जुगनू रासायनिक पदार्थों की पारस्परिक क्रिया द्वारा प्रकाश उत्पन्न करता है।

वह रात के अंधेरे में आकाश में उड़ते हुए रुक-रुक प्रकाश छोड़ता है। यह प्रकाश उसके शरीर के पिछले हिस्से में चमकता हुआ दिखाई देता है। जुगनू अपने छोटे-छोटे परों से उड़ता है। रात के अँधेरे में उड़ते हुए जुगनू के प्रकाश उत्पन्न करने के कई कारण है। दिन में जुगनू चिड़ियों आदि के खाए जाने के डर से झाड़ियों में छुपा रहता है। रात के समय उत्युक्त आकाश में उसे उड़ने का अवसर मिलता है।

उड़ते समय वह अपने साथी की प्रकाश के द्वारा खोज करता है। इस तरह के प्रकाश में उसका एक मकसद अपने शिकार करने की खोज करना भी होता है। लेकिन उसके शरीर से प्रकाश उत्पन्न करने से वह अपने बड़े शत्रु कीट-पतंगे की नजर में आ जाता है और आसानी से वह उनका शिकार भी बन जाता है।

जुगनू के प्रकाश उत्पन्न करने के पीछे वैज्ञानिक कारण जो भी हों, उसे प्रकाश उत्पन्न करते हुए उड़ते देखना सब को अच्छा लगता है।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Summary in Hindi

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव लेखक का परिचय

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव लेखक का नाम :
डॉ. परशुराम शुक्ल। (जन्म 6 जून, 1947.)

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव प्रमुख कृतियाँ :
‘जासूस परमचंद के कारनामे’ (बाल धारावाहिक), ‘नन्हा जासूस’ (बाल कहानी संग्रह), ‘सुनहरी परी और राजकुमार’ (बाल उपन्यास), ‘नंदनवन’, ‘आओ बच्चो, गाओ बच्चो’, ‘मंगल ग्रह जाएँगे’ (बाल कविता संग्रह) आदि।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव विशेषता :
बाल साहित्य लेखन और पशु जगत का विश्लेषण करने में सिद्धहस्त। आपकी अनेक कृतियों का अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी, सिंधी आदि भाषाओं में अनुवाद। राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कारों से सम्मानित।

विधा :
लेख। लेख लिखने की परंपरा बहुत पुरानी है। इसमें वस्तुनिष्ठता, ज्ञानपरकता तथा शोधपरकता जैसे तत्त्वों का समावेश होता है। लेख समाज विज्ञान, राजनीति, इतिहास जैसे विषयों का ज्ञानवर्धन करने के साथ-साथ जानकारी का नवीनीकरण भी करते हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव विषय प्रवेश :
हम प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों में केवल जुगनू से ही परिचित हैं। लेकिन जुगनू के अतिरिक्त ऐसे अनेक जीव हैं, जो प्रकाश उत्पन्न करते हैं। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों के बारे में विस्तार से बताया है। लेखक कहना चाहते हैं कि हमें विज्ञान की दृष्टि से संसार को देखने की आवश्यकता है।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव पाठ का सार

विश्व के समस्त जीवों के लिए प्रकाश का बहुत महत्त्व है। मनुष्य ने अपने लिए प्रकाश की कई तरह की कृत्रिम व्यवस्था की. है। इसी तरह संसार में ऐसे अनेक जीव पाए जाते हैं जिनके शरीर पर प्रकाश उत्पन्न करने वाले अंग होते हैं। मानव द्वारा तैयार किए गए प्रकाश में ऊष्मा होती है, पर जीवों द्वारा उत्पन्न प्रकाश में ऊष्मा नहीं होती। जीवों के प्रकाश उत्पन्न करने की क्रिया को ल्युमिनिसेंस (Luminiscence) कहते हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 18 प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव 1

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों में जुगनू (Firefly) प्रसिद्ध जीव है। यह कीट वर्ग का जीव है और पूरे वर्ष प्रकाश उत्पन्न करता है।

संसार में कवक (छत्रक) (Fungus) की कुछ जातियाँ रात में प्रकाश उत्पन्न करती हैं। इसी प्रकार मशरूम की कुछ जातियाँ भी रात में प्रकाश उत्पन्न करती हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव थल की अपेक्षा खारे पानी यानी सागरों-महासागरों में अधिक पाए जाते हैं। ये सागर के गहरे पानी में पाए जाते है। इनमें जेलीफिश, स्क्विड, क्रिल तथा विभिन्न जाति के झींगे मुख्य हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव दो प्रकार से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। एक जीवाणुओं द्वारा और दूसरे रासायनिक पदार्थों की पारस्परिक क्रिया द्वारा कुछ जीवों के शरीर पर ऐसे जीवाणु रहते हैं, जो प्रकाश उत्पन्न करते हैं। ये जीव प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं से सहजीवी संबंध बना लेते हैं और आवश्यकता के अनुसार इनके प्रकाश का उपयोग करते हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 18 प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव 2

जीवाणुओं के प्रकाश का उपयोग करने वाले जीव इस प्रकाश का उपयोग दो तरह से करते हैं – एक शरीर के भाग को भीतर खींच कर और दूसरे प्रकाश उत्पन्न करने वाले भाग को ढककर। इससे वे उस स्थान का प्रकाश समाप्त कर देते हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले कुछ जीव रसायनों की सहायता से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। वे रसायन प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों के शरीर में रहते हैं तथा ल्यूसीफेरिन तथा ल्यूसीफेरैस नामक रसायनों की सहायता से प्रकाश उत्पन्न करते हैं।

अधिकांश जीव जीवाणुओं द्वारा अथवा रासायनिक क्रिया द्वारा प्रकाश उत्पन्न करते हैं। लेकिन कुछ जीव ऐसे होते हैं जिनके शरीर में विशेष प्रकार की ग्रंथि होती है, जिससे एक विशेष प्रकार का द्रव पदार्थ निकलता है। वह द्रव पदार्थ पानी के संपर्क में आते ही प्रकाश उत्पन्न करने लगता है।

समुद्र में पाए जाने वाले प्रकाश उत्पादक जीव पानी के बाहर प्रकाश उत्पन्न नहीं कर सकते हैं।

अध्ययनों से पता चला है कि जमीन और पानी के सभी जीव अपने अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपने-अपने ढंग से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। ये उद्देश्य इस प्रकार होते हैं – साथी की खोज और संकेतों का आदान-प्रदान, शिकार की खोज और शिकार को आकर्षित करना, कामाफ्लास उत्पन्न करना तथा आत्मरक्षा करना।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 18 प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव 3

गहरे समुद्रों में अनेक जीव शिकार की खोज के लिए अपने शरीर से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। एंगलर मछली उनमें से एक है। समुद्र में अनेक जीव, विशेषकर मछलियाँ शिकार करने अथवा सुरक्षा की दृष्टि से कामाफ्लास के लिए प्रकाश उत्पन्न करती हैं। इससे उन्हें शिकार करने और सुरक्षित रहने में सहायता मिलती है। समुद्र के कुछ अन्य जीव भी आत्मरक्षा के लिए अपने प्रकाश अंगों से तरल रसायन छोड़कर चमकीला प्रकाश उत्पन्न करते हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों के बारे में वैज्ञानिक अध्ययन सन 1600 के आसपास शुरू हुआ था। वैज्ञानिक यह जानना चाहते थे कि कुछ जीव प्रकाश क्यों उत्पन्न करते हैं। सन 1794 तक जीव वैज्ञानिक यह समझते रहे कि समुद्री जीव फासफोरस की सहायता से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। किंतु फासफोरस विषैला पदार्थ होता है यह जीवित कोशिका में नहीं रह सकता। इसलिए इस मत को मान्यता नहीं मिल सकी।

सन 1794 में इटली के वैज्ञानिक स्पैलेंजानी, सन 1887 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक थिबाइस तथा सन 1894 में प्रोफेसर अलिरक डाहलगैट ने जीवों के प्रकाश उत्पन्न करने के बारे में विभिन्न मत व्यक्त किए। इससे प्रकाश उत्पन्न करने वाले नए-नए जीवों के खोज के कार्य को प्रोत्साहन मिला।

सागर में प्रकाश उत्पन्न करने वाले तरह-तरह के जीव पाए गए हैं, जो अपनी किस्म के निराले हैं।

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धरती पर पाए जाने वाले प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों की संख्या बहुत है। इनमें ऑक्टोपस, एंगलर मछलियाँ, कटलफिश, कनखजूरा, कार्डिनल मछली, क्रिल, कोपपाड, क्लाम, जुगनू, जेलीफिश, टोड मछली, धनुर्धारी मछली, नलिका कृमि, पिडाक, वाम्बेडक मछली, ब्रिसलमाउथ, भंगुरतारा, मूंगा, लालटेल मछली, वाइपर मछली, शंबुक, शल्क कृमि, समुद्री कासनी, समुद्री स्लग, समुद्री स्क्विर्ट, स्क्विड तथा व्हेल मछली आदि प्रमुख हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव शब्दार्थ

कृत्रिम बनावटी।
आविष्कार ईजाद।
संरचना बनावट।
तंतु तागा, रेशा।
ऊष्मा गर्मी।
कवक छत्रक, कुकुरमुत्ता।
थल जमीन।
सहजीवी साथ रहने वाला।
जीवाणु क्षुद्रतम जीव।
नियंत्रित नियंत्रण में रखा हुआ।
रसायन पदार्थों का तत्त्वगत ज्ञान।
ग्रंथि शरीर का वह विशेष अंग जो शारीरिक क्रियाओं को जारी रखने के लिए आवश्यक रासायनिक यौगिका का निर्माण करके उसे शरीर में भेजता है।
रासायनिक रसायनशास्त्र या तत्त्व संबंधी।
अवयव अंग।
प्रयोगशाला वह स्थान जहाँ पदार्थ विज्ञान, रसायनशास्त्र आदि विषयक तथ्यों को समझने, जानने या नई बातों का पता लगाने की दृष्टि से विविध प्रयोग किए जाते हैं।
द्रव पदार्थ तरल पदार्थ।
विश्लेषण किसी चीज के अंगों को अलग करना।
कामाफ्लास किसी जीव की वह स्थिति, जिसमें वह अपने परिवेश में घुल मिल जाता है।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव शोधपरक लेखन के मुद्दे

  • विषय का उल्लेख
  • शोध की आवश्यकता
  • शोध को लेकर विविध पुस्तकों का अध्ययन
  • शोध विषय के पुष्ट्यार्थ विविध संदर्भ पुस्तकों का वाचन
  • शोध कार्य की सूची
  • शोधविषय की सिद्धता
  • सिद्धता का कॉपी में अंकन
  • शोधकार्य की साहित्यिक उपयोगिता

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 17 ब्लॉग लेखन

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 17 ब्लॉग लेखन Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 17 ब्लॉग लेखन

12th Hindi Guide Chapter 17 ब्लॉग लेखन Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

पाठ पर आधारित

प्रश्न 1.
ब्लॉग लेखन से तात्पर्य।
उत्तर :
ब्लॉग अपना विचार, अपना मत व्यक्त करने का एक डिजिटल माध्यम है। ब्लॉग के माध्यम से हम जो कुछ कहना चाहते हैं, उसके लिए किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती। ब्लॉग लेखन में शब्द संख्या का बंधन नहीं होता। हम अपनी बात को जितना विस्तार देना चाहें, दे सकते हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 17 ब्लॉग लेखन

डिजिटल माध्यम हैं। ब्लॉग, वेबसाइट, पोर्टल आदि अखबार, पत्रिका या पुस्तक हाथ में लेकर पढ़ने के स्थान पर उसे कंप्यूटर, टैब या सेलफोन पर पढ़ना डिजिटल माध्यम कहलाता है। इसके कारण लेखक और पत्रकार भी ग्लोबल हो गए हैं। इस माध्यम के द्वारा पूरी दुनिया की कोई भी जानकारी क्षण भर में ही परदे पर उपलब्ध हो जाती है। नवीन वाचकों की संख्या मुद्रित माध्यम के वाचकों से बहुत अधिक है। इस वर्ग में युवा वर्ग अधिक संख्या में हैं।

जस्टीन हॉल ने सन 1994 में सबसे पहले इस शब्द का प्रयोग किया। जॉन बर्गर ने इसके लिए वेब्लॉग शब्द का प्रयोग किया था। माना जाता है कि 1999 में पीटर मेरहोल्स ब्लॉग शब्द को प्रस्थापित कर उसे व्यवहार में लाए। भारत मे 2002 के बाद ब्लॉग लेखन आरंभ हुआ और देखते-देखते यह माध्यम लोकप्रिय हो गया। साथ ही इसे अभिव्यक्ति के नए माध्यम के रूप में मान्यता भी प्राप्त हुई।

प्रश्न 2.
ब्लॉग प्रारंभ करने की प्रक्रिया।
उत्तर :
यह एक टेक्निकल अर्थात तकनीकी प्रक्रिया है। इसके लिए डोमेन अर्थात ब्लॉग के शीर्षक को रजिस्टर्ड कराना होता है। इसके बाद उसे किसी सर्वर से जोड़ना पड़ता है। उसमें अपनी विषय सामग्री समाविष्ट करके हम इस माध्यम का प्रयोग कर सकते हैं। भारत में 2002 के बाद ब्लॉग लेखन आरंभ हुआ और देखतेदेखते यह माध्यम लोकप्रिय हो गया। साथ ही इसे अभिव्यक्ति के नए माध्यम के रूप में मान्यता भी प्राप्त हुई।

विज्ञापन, फेसबुक, वॉट्सऐप, एस एम एस आदि द्वारा इसका प्रचार होता है। आकर्षक चित्रों, छायाचित्रों के साथ विषय सामग्री यदि रोचक हो तो पाठक ब्लॉग की प्रतीक्षा करता है और उसका नियमित पाठक बन जाता है। ब्लॉग लेखक के पास लोगों से संवाद स्थापित करने के लिए बहुत-से विषय होने चाहिए। विपुल पठन, चिंतन तथा भाषा का समुचित ज्ञान होना आवश्यक है। भाषा सहज और प्रवाहमयी हो तो पाठक उसे पढ़ना चाहेगा।

साथ ही लेखक के पास विषय से संबंधित संदर्भ, घटनाएँ और यादें हों तो ब्लॉग पठनीय होगा। जिस क्षेत्र या जिस विख्यात व्यक्ति के संदर्भ में आप लिख रहे हैं, उस व्यक्ति से आपका संबंध कैसे बना? किसी विशेष भेंट के दौरान उस व्यक्ति ने आपको कैसे प्रभावित किया? यदि वह व्यक्ति आपके निकटस्थ परिचितों में है तो उसकी सहृदयता, मानवता आदि से संबंधित कौन-सा पहलू आपकी स्मृति में रहा। ऐसे अनेक विषय शब्दांकित किए जा सकते हैं।

प्रश्न 3.
ब्लॉग लेखन में बरतनी जाने वाली सावधानियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :

ब्लॉग लेखन के विषय का चुनाव करते समय सूझबूझ का होना आवश्यक है।

  1. ब्लॉग लेखन में इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि उसमें मानक भाषा का प्रयोग हो। व्याकरणिक अशुद्धियाँ न हों।
  2. ब्लॉग लेखन के लिए प्राप्त स्वतंत्रता का उचित उपयोग करना चाहिए। लेखन की स्वतंत्रता से हमें यह नहीं समझना चाहिए कि हम कुछ भी लिख सकते हैं।
  3. ब्लॉग लेखन में सामाजिक स्वास्थ्य का विचार हो। वह समाज विघातक न हो। ब्लॉग लेखक को किसी की निंदा करना, किसी पर गलत टिप्पणी करना, समाज में तनाव की स्थिति उत्पन्न करना आदि बातों से दूर रहना चाहिए।
  4. ब्लॉग लेखन में आक्रामकता से अर्थात गाली-गलौज अथवा अश्लील शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। कोई भी पाठक ऐसी भाषा को पसंद नहीं करता। …
  5. बिना सबूत के किसी पर आरोप लगाना गंभीर अपराध है।
  6. पाठक ऐसे लेखकों की बात गंभीरता से नहीं पढ़ते। परिणामस्वरूप ब्लॉग की आयु अल्प हो जाती है।
  7. ब्लॉग लेखन में सामाजिक संकेतों का पालन आवश्यक है।
  8. ब्लॉग लेखन करते समय छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए तो पाठक ही हमारे ब्लॉग के प्रचारक बन जाते हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 17 ब्लॉग लेखन

व्यावहारिक प्रयोग

प्रश्न 1.
अपने शहर की विशेषताओं पर ब्लॉग लेखन कीजिए।
उत्तर :
मैं महाराष्ट्र के नाशिक जिले में रहता हूँ। यह महाराष्ट्र का एक छोटा शहर है। यह नाशिक-पुणे राजमार्ग पर स्थित है। यह एक सुंदर व आदर्श शहर है। यहाँ की इमारतें भव्य और दर्शनीय हैं।

शहर की जनसंख्या :
यह एक घना बसा हुआ नगर है। इसमें लगभग एक लाख लोग रहते हैं। यह मुख्य रूप से हिंदू बहुल नगर है। हिंदुओं के अतिरिक्त इसमें मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि अन्य धर्मों के लोग भी रहते हैं। हमारे नगर के लोग बहुत अच्छे हैं। वे सदैव एक-दूसरे की मदद करने को तत्पर रहते है। यहाँ के लोगों में बहुत एकता है। सभी लोग बहुत ईमानदार और परिश्रमी हैं।

शहर का मुख्य व्यवसाय :
यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय व्यापार है। यहाँ एक बड़ी शुगर मिल है। कुछ अन्य फैक्टरियाँ भी हैं, जो बोगियों के लिए धुरे और पहिये बनाती हैं। यहाँ तीन मंडियाँ हैं, जहाँ माल के क्रय-विक्रय के लिए आस-पास से बहुत-से लोग आते हैं।

विद्यालय, कॉलेज व चिकित्सालय :
हमारा शहर शिक्षा का एक केंद्र है। यहाँ दो स्नाकतोत्तर विद्यालय और चार उच्च माध्यमिक कॉलेज हैं। हमारे जिले का एकमात्र राजकीय गर्ल्स उच्च माध्यमिक कॉलेज हमारे शहर में ही है। आस-पास के गाँवों से बहुत-से लड़केलड़कियाँ यहाँ शिक्षा प्राप्त करने आते हैं। हमारे शहर में अनेक चिकित्सालय हैं और सरकारी डिस्पेंसरी भी है।

अन्य आकर्षण :
मेरे शहर के निकट शरद पूर्णिमा को नदी के किनारे प्रत्येक वर्ष मेला लगता है। नदी के निकट एक बहुत विशाल परिसर में शिव, दुर्गा, राम, कृष्ण तथा हनुमान जी के मंदिर हैं। इस मेले में बहुत भीड़ होती है। आस-पास के गाँवों के सैंकड़ों दुकानदार कई दिन पहले से ही मेले में अपनी दुकानें सजाने लगते हैं। लोग दूर-दूर से इस मेले को देखने आते हैं। लोगों की इतनी भीड़ होती है कि तिल रखने की जगह नहीं होती। मुझे अपने शहर से बहुत प्यार है। मैं अपना संपूर्ण जीवन इसी शहर में व्यतीत करना चाहता हूँ। मुझे नहीं लगता कि किसी अन्य शहर में मैं इतनी सुख और शांति से जीवन बिता सकूँगा।

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प्रश्न 2.
ग्रामीण समस्याओं पर ब्लॉग लेखन कीजिए।
उत्तर :
भारत की 70 प्रतिशत आबादी आज भी गाँवों में रहती है। अतः ग्रामीण क्षेत्रों की हालत ही हमारे देश का वास्तविक प्रतिबिम्ब है। भारतवर्ष उस गति से तरक्की नहीं कर पा रहा, जिस गति से उसे करनी चाहिए।

भारत के गाँवों में विभिन्न समस्याए :
गरीबी : 130 करोड़ लोगों के देश में लगभग 40 करोड़ लोग आज भी गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं। और यह आबादी अधिकांश रूप से गाँवों में ही हैं। छोटे किसान हमेशा कर्ज से लदे रहते हैं। वे बड़े किसानों पर निर्भर रहते है। अंततः बड़ जमींदार छोटे किसानों की जमीनें हड़प लेते हैं। आबादी में वृद्धि के कारण जमीनों का बँटवारा होता जा रहा है। अतः जमीन-जायदाद के टुकड़े हो जाते हैं। छोटे टुकड़े फलदायी नहीं रहते और उनके मालिक कृषि करके घाटा उठाते हैं। जिसके कारण हालात दिनोंदिन बदतर होते जा रहे हैं।

बेरोजगारी :
ग्रामीण इलाकों में रोजगार का अभाव होने से युवाओं को चिंता में देखा जा सकता है। खेतों में अन्न और सब्जियाँ उगाने का एक निश्चित चक्र है। बीज बोकर, सिंचाई करके फसलों को उगने के लिए छोड़ दिया जाता है। ऐसे समय पर न तो किसान के पास कोई काम होता है, न ही वह अपनी फसलों को छोड़कर कहीं और काम करने जा सकता है। अतः आंशिक बेरोजगारी कृषक जीवन का अभिन्न अंग बन गई है।

सूखा और बाढ़ :
जो लोग गाँवों में रहकर खून पसीना एक करते हैं, उन पर प्राकृतिक आपदाएँ कहर ढाया करती हैं। बाढ़, सूखा, तूफानी हवाएँ ऐसी अनेक परेशानियाँ हैं, जिन पर मनुष्य का कोई वश नहीं है। कभी सूखे के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। ग्रामीण भारत में इन समस्याओं के कारण परेशानी बढ़ रही हैं।

शिक्षा का अभाव :
गाँवों में शिक्षा का नितांत अभाव है। गाँव के लोग आज भी शिक्षा को जरूरी नहीं समझते। स्त्री-पुरुष सभी अशिक्षित रह जाते हैं। परिणामस्वरूप वे गरीबी के कुचक्र को नहीं तोड़ पाते, क्योंकि वे शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ने के सभी अवसर खो देते हैं। अपने बच्चों को भी समुचित शिक्षा नहीं दिला पाते। शिक्षा के अभाव में ग्रामीण लोग मानसिक रूप से विकसित नहीं हो पाते।

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स्वास्थ्य सुविधाएँ :
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं की भी कमी है। कोई भी डॉक्टर ग्रामीण इलाकों में नहीं रहना चाहता। प्राइमरी हैल्थ सेंटर्स में दी जाने वाली दवाइयाँ और डॉक्टरी परामर्श आज भी मध्ययुग जैसी हैं। ग्रामीण अपनी चिकित्सा पर अधिक खर्च नहीं कर सकते। यही कारण है कि गाँवों में झोलाछाप डॉक्टरों और दाइयों का धंधा खूब पनपता है।

ब्लॉग निर्माण की प्रक्रिया
ब्लॉग तैयार करने के लिए google में Gmail account होना आवश्यक है।

  • Internet Explorer में www.blogger.com खोलिए/में जाइए।
  • CREATYOUR BLOG पर क्लिक कीजिए।
  • अपने Gmail : googlaccount पासवर्ड से लॉग इन कीजिए।
  • नये पेज पर titl(शीर्षक) दीजिए और अपना blogger address तैयार कीजिए।
  • उदा. vidya1234.blogspot.com थीम (theme) का चयन कीजिए I CREATBLOG पर क्लिक कीजिए आपका ब्लॉग तैयार होगा।

ब्लॉग लेखन : आवश्यक सावधानियाँ

  • ब्लॉग लेखन के विषय का चुनाव करते समय सूझ-बूझ का होना आवश्यक है।
  • ब्लॉग लेखन में सामाजिक संकेतों का पालन आवश्यक है।
  • ब्लॉग लेखन में सामाजिक स्वास्थ्य का विचार हो वह समाज विघातक न हो।
  • ब्लॉग लेखन के लिए प्राप्त स्वतंत्रता का उचित उपयोग करना चाहिए।

ब्लॉग लेखन Summary in Hindi

ब्लॉग लेखक का परिचय

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 17 ब्लॉग लेखन 1
ब्लॉग लेखन का नाम :
प्रवीण बर्दापूरकर। (जन्म : 3 सितम्बर, 1955.)

ब्लॉग लेखन प्रमुख कृतियाँ :
‘डायरी’, ‘नोंदी डायरीनंतरच्या’, ‘दिवस असे की’, ‘आई’, ‘ग्रेस नावांच गारूड’ आदि।

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ब्लॉग लेखन विशेषता :
प्रवीण बर्दापूरकर राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों का गहराई से अध्ययन करने वाले तथा उन्हें समझने वाले निर्भीक पत्रकार के रूप में सुपरिचित हैं। आपने पत्रकारिता के क्षेत्र में ब्लॉग लेखन को बहुत ही लोकप्रिय बनाया है।

प्रवीण जी ने ब्लॉग द्वारा बदलते सामाजिक विषयों को परिभाषित करते हुए जनमानस की विचारधारा को नयी दिशा प्रदान की है। सीधी-सादी, रोचक और संप्रेषणीय मराठी और हिंदी भाषा में लिखे गए ब्लॉग आपके धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण की पुष्टि करते हैं।

ब्लॉग लेखन विषय प्रवेश :
आधुनिक समय में पत्रकारिता के क्षेत्र में ब्लॉग लेखन का प्रचलन लोकप्रिय बनता जा रहा है। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने ब्लॉग लिखने के नियम, ब्लॉग का स्वरूप और उसके वैज्ञानिक पक्ष की चर्चा करते हुए उसके महत्त्व को स्पष्ट किया है। ब्लॉग लेखन जहाँ एक ओर सामाजिक जागरण का माध्यम बन चुका है, वहीं पत्रकारिता के जीवित तत्त्व के रूप में भी स्वीकृत हुआ है तथा बड़ा ही लोकप्रिय माध्यम बन चुका है।

ब्लॉग लेखन पाठ का सार

ब्लॉग लेखन से तात्पर्य :
ब्लॉग अपना विचार, अपना मत व्यक्त करने का एक डिजिटल माध्यम है। ब्लॉग के माध्यम से हम जो कुछ कहना चाहते हैं, उसके लिए किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती। ब्लॉग लेखन में शब्द संख्या का बंधन नहीं होता। हम अपनी बात को जितना विस्तार देना चाहें, दे सकते हैं।

ब्लॉग, वेबसाइट, पोर्टल आदि डिजिटल माध्यम हैं। अखबार, पत्रिका या पुस्तक हाथ में लेकर पढ़ने के स्थान पर उसे कंप्यूटर, टैब या सेलफोन पर पढ़ना डिजिटल माध्यम कहलाता है। इस प्रकार का वाचन करने वाली

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पीढ़ी का निर्माण इंटरनेट के महजाल के कारण हुआ है। इसके कारण लेखक और पत्रकार भी ग्लोबल हो गए हैं। नवीन वाचकों की संख्या मुद्रित माध्यम के वाचकों से बहुत अधिक है। इस वर्ग में युवा वर्ग अधिक संख्या में है। इस माध्यम के द्वारा पूरी दुनिया की कोई भी जानकारी क्षण भर में ही परदे पर उपलब्ध हो जाती है।

ब्लॉग की खोज :
ब्लॉग की खोज के संबंध में निश्चित रूप से कोई डॉक्युमेंटेशन उपलब्ध नहीं है, पर जो जानकारी उपलब्ध है, उसके अनुसार जस्टीन है हॉल ने सन 1994 में सबसे पहले इस शब्द का प्रयोग किया। जॉन बर्गर ने इसके लिए वेब्लॉग शब्द का प्रयोग किया था। माना जाता है कि 1999 में पीटर मेरहोल्स ब्लॉग शब्द को प्रस्थापित कर उसे व्यवहार में लाए। भारत मे 2002 के बाद ब्लॉग लेखन आरंभ हुआ और देखते-देखते यह माध्यम लोकप्रिय हो गया।

साथ ही इसे अभिव्यक्ति के नए माध्यम के रूप में मान्यता भी प्राप्त हुई।

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ब्लॉग लेखन शुरू करने की प्रक्रिया :
यह एक टेक्निकल अर्थात तकनीकी प्रक्रिया है। इसके लिए है डोमेन अर्थात ब्लॉग के शीर्षक को रजिस्टर्ड कराना होता है। इसके बाद उसे किसी सर्वर से जोड़ना पड़ता है। उसमें अपनी विषय सामग्री समाविष्ट करके हम इस माध्यम का प्रयोग कर सकते हैं। इस संदर्भ में विस्तृत जानकारी ‘गूगल’ पर उपलब्ध है। कुछ विशेषज्ञ इस संदर्भ में सशुल्क सेवाएँ देते हैं।

ब्लॉग लेखक के लिए आवश्यक गुण :
ब्लॉग लेखक के पास लोगों से संवाद स्थापित करने के लिए बहुत-से विषय होने चाहिए। विपुल पठन, चिंतन तथा भाषा का समुचित ज्ञान होना आवश्यक है। भाषा सहज और प्रवाहमयी हो तो पाठक उसे पढ़ना चाहेगा। साथ ही लेखक के पास विषय से संबंधित संदर्भ, घटनाएँ और यादें हों तो ब्लॉग पठनीय होगा। जिस क्षेत्र या जिस विख्यात व्यक्ति के संदर्भ में आप लिख रहे हैं, उस व्यक्ति से आपका संबंध कैसे बना?

किसी विशेष भेंट के दौरान उस व्यक्ति ने आपको कैसे प्रभावित किया? यदि वह व्यक्ति आपके निकटस्थ परिचितों में है तो उसकी सहृदयता, मानवता आदि से संबंधित कौन-सा पहलू आपकी स्मृति में रहा। ऐसे अनेक विषय शब्दांकित किए जा सकते हैं।

ब्लॉग लेखन में विषय में आशय की गहराई आवश्यक है। प्रवाहमयी कथन शैली, सीधी-सादी और सहज भाषा का प्रयोग किया जाए, तो पाठक विषय सामग्री से शीघ्र ही एकरूप हो जाता है। ब्लॉग लेखन में क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। उचित विशेषणों का प्रयोग भाषा को सुंदरता प्रदान करता हैं और पाठक इसकी ओर आकर्षित होता है। भाषा केवल शब्दों का समूह ही नहीं होता, बल्कि प्रत्येक शब्द का एक विशिष्ट अर्थ होता है।

सहज-सरल होने के साथ-साथ भाषा का बाँकपन ब्लॉग लेखन की गरिमा को बढ़ाता है। किसी भी शैली का विकास एक दिन में नहीं हो जाता। सतत लेखन के द्वारा ही यह संभव है। जिस प्रकार एक गायक प्रतिदिन रियाज करके राग और बंदिश में निपुण हो पाता है, उसी प्रकार निरंतर लेखन से लेखक की एक शैली विकसित होती है और पाठक को प्रभावित करती है।

ब्लॉग लेखन में आवश्यक सावधानियाँ :
ब्लॉग लेखन में इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि उसमें मानक भाषा का प्रयोग हो। व्याकरणिक अशुद्धियाँ न हों। ब्लॉग लेखन के लिए प्राप्त स्वतंत्रता का उचित उपयोग करना चाहिए। लेखन की स्वतंत्रता से हमें यह नहीं समझना चाहिए कि हम कुछ भी लिख सकते हैं।

आक्रामकता का अर्थ गाली-गलौज अथवा अश्लील शब्दों का प्रयोग करना नहीं है। पाठक ऐसी भाषा को पसंद नहीं करते। ब्लॉग लेखक को किसी की निंदा करना, किसी पर गलत टिप्पणी करना, समाज में तनाव की स्थिति उत्पन्न करना है आदि बातों से दूर रहना चाहिए। बिना सबूत के किसी पर आरोप लगाना एक गंभीर अपराध है। पाठक ऐसे लेखकों की बात गंभीरता से नहीं पढ़ते। परिणामस्वरूप ब्लॉग की आयु अल्प हो जाती है।

ब्लॉग लेखन करते समय छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए तो पाठक ही हमारे ब्लॉग के प्रचारक बन जाते हैं। एक पाठक दूसरे से और दूसरा तीसरे से सिफारिश करता है और पाठकों की श्रृंखला बढ़ती चली जाती है।

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ब्लॉग लेखन का प्रसार :
ब्लॉग लेखक अपने ब्लॉग का प्रचार-प्रसार स्वयं कर सकता है। विज्ञापन, फेसबुक, वॉट्सऐप, एस एम एस आदि द्वारा इसका प्रचार होता है। आकर्षक चित्रों, छायाचित्रों के साथ विषय सामग्री यदि रोचक हो तो पाठक ब्लॉग की प्रतीक्षा करता है और उसका नियमित पाठक बन जाता है।

ब्लॉग लेखन से आर्थिक लाभ : ब्लॉग लेखन से आर्थिक लाभ भी होता है। विशेष रूप से हिंदी और अंग्रेजी ब्लॉग लेखन का पाठक वर्ग व्यापक होने के कारण इससे अच्छी आय होती हैं। विद्यार्थी अपने अनुभव तथा विचार ब्लॉग लेखन द्वारा साझे कर सकते हैं।

प्रत्येक विद्यार्थी अपनी जीवन शैली, अपना संघर्ष, अपनी सफलताएँ विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त कर सकता है। राजनीतिक विषयों के लिए अच्छा प्रतिसाद मिल सकता है। शिक्षा विषयक ब्लॉग पढ़ने वाला पाठक वर्ग बहुत बड़ा है। यात्रा वर्णन, आत्मकथात्मक तथा विश्व से जुड़े जीवन की प्रेरणा देने वाले विषय भी बड़े चाव से पढ़े जाते हैं।

ब्लॉग लेखन शब्दार्थ

वाचक पाठक।
मुद्रित छपा हुआ।
उपलब्ध प्राप्त।
प्रस्थापित स्थापित किया हुआ।
अभिव्यक्ति घोषणा।
मान्यता स्वीकृति।
समाविष्ट जिसका समावेश किया गया हो।
संदर्भ विषय।
संवाद बातचीत।
चिंतन मनन करना।
समुचित उचित।
प्रवाहमयी गतिशील। Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 17 ब्लॉग लेखन
विख्यात प्रसिद्ध।
निकटस्थ समीप का।
सहृदय दयालु।
शब्दांकित शब्दों द्वारा अंकित किया हुआ।
आशय अभिप्राय।
मापदंड वह कारक, जिसके द्वारा कोई निर्णय लेता है।
क्लिष्ट कठिन।
सटीक उचित।
सौष्ठव सुंदरता।
बाँकपन सजावट।
सतत निरंतर।
रियाज अभ्यास।
बंदिश रचना।
तात्पर्य अर्थ।
आक्रामकता प्रचंडता।
अश्लील लज्जाजनक।
टिप्पणी आलोचना।
अल्प छोटी।
सिफारिश किसी के गुणों का दूसरों के सामने बखान करना।
श्रृंखला कड़ी। Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 17 ब्लॉग लेखन
प्रचार-प्रसार फैलाव।
रोचक रुचि उत्पन्न करने वाला।
प्रतिसाद किसी कार्य के लिए मिलने वाली सकारात्मक प्रतिक्रिया।
आत्मकथात्मक आपबीती भरा।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 16 मैं उद्घोषक

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 16 मैं उद्घोषक Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 16 मैं उद्घोषक

12th Hindi Guide Chapter 16 मैं उद्घोषक Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

पाठ पर आधारित

प्रश्न 1.
‘सूत्र संचालक के कारण कार्यक्रम में चार चाँद लगते हैं’, इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
आज के जमाने में सूत्र संचालक का महत्त्व बहुत बढ़ गया है। कार्यक्रम छोटा हो या बड़ा, सूत्र संचालक अपनी प्रतिभा से उसमें चार चाँद लगा देता है। वह अपनी भाषा, आवाज में उतारचढ़ाव, अपनी हाजिरजवाबी, श्रोताओं से चुटीले संवादों, संचालन के बीच-बीच में सरसता लाने के लिए चुटकुलों, रोचक घटनाओं के प्रयोग, मंच पर उपस्थित महानुभावों के प्रति अपने सम्मान सूचक शब्दों के प्रयोग, कार्यक्रमों के अनुसार भाषा-शैली में परिवर्तन करने तथा अपनी गलती पर माफी माँग लेने आदि गुणों के कारण सूत्र संचालन में तो चार चाँद लगा ही देता हैं, उपस्थित जन-समुदाय की प्रशंसा का पात्र भी बन जाता हैं। सूत्र संचालक अपने मिलनसार व्यक्तित्व, अपने विविध विषयों के ज्ञान, कार्यक्रम के सुचारुसंचालन, अपनी अध्ययनशीलता, अपनी प्रभावशाली और मधुर आवाज के संतुलित प्रयोग आदि के बल पर कार्यक्रम में जान डाल देता है। सधे हुए सूत्र संचालक की प्रतिभा का लाभ कार्यक्रमों और उनके आयोजकों को मिलता है। इस तरह सधे हुए सूत्र संचालक के कारण कार्यक्रम में चार चाँद लग जाते हैं।

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प्रश्न 2.
उत्तम मंच संचालक बनने के लिए आवश्यक गुण विस्तार से लिखिए।
उत्तर :
मंच संचालन एक कला है। अच्छा मंच संचालक कार्यक्रम में जान डाल देता है। मंच संचालक श्रोता और वक्ता को जोड़ने वाली कड़ी होता है। वही सभा की शुरूआत करता है। उत्तम मंच संचालक बनने के लिए संचालक को अच्छी तैयारी करनी पड़ती है। जिस तरह का कार्यक्रम हो, उसी तरह की तैयारी भी होनी चाहिए। उसी के अनुरूप कार्यक्रम की संहिता लेखन करनी चाहिए। मंच संचालक के लिए प्रोटोकॉल का ज्ञान, प्रभावशाली व्यक्तित्व, हँसमुख, हाजिरजवाबी तथा विविध विषयों का ज्ञान होना चाहिए। इसके अतिरिक्त भाषा पर उसका प्रभुत्व होना आवश्यक है।

मंच संचालक को किसी कार्यक्रम में ऐन मौके पर परिवर्तन होने पर संहिता में परिवर्तन कर संचालन करते हुए कार्यक्रम को सफल बनाना पड़ता है। यह क्षमता उसमें होनी चाहिए। अच्छे मंच संचालक को हर प्रकार के साहित्य का अध्ययन करना आवश्यक है। मंच संचालक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कार्यक्रम कोई भी हो, मंच की गरिमा बनी रहनी चाहिए। सबसे पहले मंच संचालक श्रोताओं के सामने आता है।

इसलिए उसका परिधान, वेशभूषा आदि सहज और गरिमामय होनी चाहिए। मंच संचालक के अंदर आत्मविश्वास, सतर्कता, सहजता के साथ श्रोताओं का उत्साह बढ़ाने का गुण होना आवश्यक है। इसके अलावा मंच संचालक में समयानुकूल छोटेछोटे चुटकुलों तथा रोचक घटनाओं से श्रोताओं को बाँधे रखने की शक्ति भी जरूरी है। अच्छे मंच संचालक को भाषा का पर्याप्त ज्ञान होना आवश्यक है।

भाषा की शुद्धता, शब्दों का चयन, शब्दों का उचित प्रयोग तथा किसी प्रख्यात साहित्यकार के कथन का उल्लेख कार्यक्रम को प्रभावशाली एवं हृदयस्पर्शी बना देता है। यही उत्तम मंच संचालक की थाती होती है। उत्तम मंच संचालक बनने वाले व्यक्ति को उपर्युक्त गुणों को आत्मसात करना आवश्यक है।

प्रश्न 3.
सूत्र संचालन के विविध प्रकारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
आजकल संगीत संध्या तथा जन्मदिन की पार्टी का भी संचालन जरूरी हो गया है। सूत्र संचालक, मंच और श्रोताओं के बीच सेतु का कार्य करता है। कार्यक्रमों अथवा समारोहों में निखार लाने का कार्य सूत्र संचालक ही करता है। इसलिए सूत्र संचालक का बहुत महत्त्व होता है। सूत्र संचालन कई प्रकार के होते हैं। इसके मुख्यतः निम्न प्रकार होते हैं।

शासकीय कार्यक्रम का सूत्र संचालन, दूरदर्शन हेतु सूत्र संचालन, रेडियो हेतु सूत्र संचालन, राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का सूत्र संचालन। अलगअलग कार्यक्रमों का संचालन करने के लिए सूत्र संचालक को अलग-अलग प्रकार की सावधानियाँ बरतनी पड़ती हैं।

शासकीय एवं राजनीतिक समारोहों के सूत्र संचालन में प्रोटोकॉल का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। इसके लिए पदों के अनुसार नामों की सूची बनानी पड़ती है। दूरदर्शन तथा रेडियो कार्यक्रमों का सूत्र संचालन करने के पहले उन पर प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करनी जरूरी है। कार्यक्रम की संहिता लिखकर तैयारी करनी होती हैं। सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के सूत्र संचालन का कार्य हल्के-फुल्के ढंग का होता है। इनके लिए अलग संहिता लेखन की तैयारी करनी पड़ती है।

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व्यावहारिक प्रयोग।

प्रश्न 1.
अपने कनिष्ठ महाविद्यालय में मनाए जाने वाले ‘हिंदी दिवस समारोह’ का सूत्र संचालन कीजिए।
उत्तर :
सूत्र संचालक : दोस्तो! हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आज महात्मा गांधी स्मारक इंटर कालेज, नाशिक में आयोजित इस समारोह में आपका हार्दिक स्वागत है। इस अवसर पर मुझे अपनी भाषा हिंदी से संबंधित कुछ पंक्तियाँ याद आती हैं –

जो थी तुलसी, चंद्र, सूर, भूषण को प्यारी।
थे रहीम, रसखान आदि जिस पर बलिहारी।
छवि ने जिसको लुभा लिया, जिसकी मनहारी।
सचमुच भाषा सकल राष्ट्र की वही हमारी।।

तो दोस्तो! हिंदी दिवस के इस अवसर पर अब बारहवीं कक्षा की छात्राओं द्वारा तैयार किया गया यह सुंदर नृत्य गीत प्रस्तुत है। आपके सामने यह नृत्य गीत प्रस्तुत कर रही हैं – ऋचा, ऋधि, मधुरिमा, रोहा और अन्विता!

(कक्षा बारहवीं की लड़कियाँ –
जय माँ भारती जय, जय।
जय माँ भारती जय, जय।।
गीत गाते हुए नृत्य करती हैं।)
(तालियों की गड़गड़ाहट होती है।)

सूत्र संचालक : दोस्तो! तालियों की गड़गड़ाहट ही बता रही है कि यह नृत्य-गीत आप सबको कैसा लगा।

दोस्तो! अब हम आरंभ कर रहे हैं आज का मुख्य समारोह, यानी हिंदी दिवस का रंगारंग कार्यक्रम। मंच पर उपस्थित हैं हमारे कालेज के प्रिंसिपल श्री राजेंद्र पेंडसे जी, आज के प्रमुख अतिथि स्थानीय राणाप्रताप. कालेज के हिंदी विभाग के अध्यक्ष श्री लोकनाथ सिन्हाजी तथा कालेज के अन्य अध्यापकगण।

सूत्र संचालक : अब हम महात्मा गांधी स्मारक इंटर कालेज के हिंदी विभाग के प्रभारी श्री श्रीपत मिश्र जी से प्रार्थना करते है कि आप हमारे प्रमुख अतिथि श्री लोकनाथ सिन्हाजी को पुष्पगुच्छ देकर उनका स्वागत करें। श्री श्रीपत जी मिश्र…

(श्रीपत मिश्र प्रमुख अतिथि का पुष्पगुच्छ देकर स्वागत करते है। तालियों की गड़गड़ाहट होती है।)

दोस्तो! अब हम अपने महात्मा गांधी स्मारक इंटर कालेज के प्रिंसिपल श्री राजेंद्र पेंडसे जी की ओर से प्रमुख अतिथि श्री लोकनाथ सिन्हा जी से प्रार्थना करते हैं कि वे माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर उन्हें माल्यार्पण करें। श्रीमान लोकनाथ सिन्हा जी!

(लोकनाथ सिन्हा जी माँ सरस्वती के समक्ष रखे दीपदान के दीप प्रज्ज्वलित करते हैं। वे सरस्वती की मूर्ति को माला पहनाते हैं। तालियों की गड़गड़ाहट होती है।)

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सूत्र संचालक : अब कालेज की ग्यारहवीं कक्षा की छात्राएँ – सुनीता संघवी और जाह्नवी पांडेय देवी सरस्वती का वंदना गीत प्रस्तुत करेंगी…

(सुनीता और जाह्नवी माँ सरस्वती का वंदना गीत गाती हैं)
या कुन्देन्दुतुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा। या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वंदिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।
(सरस्वती वंदना समाप्त होती है।) (तालियों की गड़गड़ाहट होती है।)

सूत्र संचालक : अब कालेज के प्रिंसिपल श्री राजेंद्र पेंडसे जी । हमारे प्रमुख अतिथि श्री लोकनाथ सिन्हा जी का परिचय देंगे और कालेज की विभिन्न गतिविधियों से आप लोगों को परिचित कराएँगे। श्री राजेंद्र पेंडसे जी…

(श्री राजेंद्र पेंडसे प्रमुख अतिथि को समारोह का अतिथि पद स्वीकार करने के लिए बधाई देते हैं और संक्षेप में उनका परिचय देते हैं।)
(वे कालेज की गतिविधियों के बारे में बताते हैं।)

सूत्र संचालक : अब मैं प्रिंसिपल साहब राजेंद्र पेंडसेजी की ओर से प्रमुख अतिथि लोकनाथ सिन्हा जी से प्रार्थना करूँगा कि वे हिंदी वाद-विवाद प्रतियोगिता, हिंदी अंत्याक्षरी प्रतियोगिता तथा परीक्षाओं .. में प्रथम तथा द्वितीय स्थान पाने वाले विद्यार्थियों को अपने कर कमलों से पुरस्कार प्रदान करने की कृपा करें।

सूत्र संचालक : हिंदी वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता जनार्दन शर्मा मंच पर आ जाएँ।

(प्रमुख अतिथि के हाथों जनार्दन शर्मा पुरस्कार लेते हैं। तालियाँ बजती हैं।)

सूत्र संचालक : अब वाद-विवाद प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार पाने वाले जयंत साठे मंच पर आ जाएँ।

(जयंत साठे पुरस्कार लेते हैं। तालियाँ बजती हैं।)

सूत्र संचालक : अब हिंदी अंत्याक्षरी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाने वाली स्नेहा पाण्डेय मंच पर आकर अपना पुरस्कार ग्रहण करें। स्नेहा पाण्डेय।
(स्नेहा पाण्डेय प्रमुख अतिथि से पुरस्कार ग्रहण करती है। तालियाँ बजती हैं।)

सूत्र संचालक : अब मैं परीक्षाओं में प्रथम तथा द्वितीय स्थान पाने वाले विद्यार्थियों से आग्रह करता हूँ कि वे मंच पर आकर अपने-अपने पुरस्कार ग्रहण करें। मैं पुरस्कार विजेताओं को उनके नाम से बुलाऊँगा। सभी विजेता बारी-बारी से मंच पर आकर अपनाअपना पुरस्कार प्राप्त करें।

कक्षा नौवीं : प्रथम पुरस्कार – राकेश शिंदे।
द्वितीय पुरस्कार – स्मिता सिंह।

कक्षा दसवीं : प्रथम पुरस्कार – ओंकार शर्मा।
द्वितीय पुरस्कार – रोहिणी दवे।

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कक्षा ग्यारहवीं : प्रथम पुरस्कार – जतिन सेवक।
द्वितीय पुरस्कार – सचिन मेहरा।

(विजेता छात्र बारी-बारी से प्रमुख अतिथि से अपने-अपने पुरस्कार प्राप्त करते हैं। तालियाँ बजती हैं।)

सूत्र संचालक : अब कालेज के विज्ञान विभाग के प्रभारी श्री पवन राव ‘हिंदी भाषा की विशेषता’ के बारे में अपने विचार आपके सामने रखेंगे।

(पवन राव हिंदी भाषा के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हैं। तालियाँ बजती हैं।)

सूत्र संचालक : अब हमारे कालेज के वाणिज्य विभाग के प्रभारी श्री अशोक शास्त्री जी ‘हिंदी में संभावनाएँ’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। आप लोग ध्यान से सुनिए।

(श्री अशोक शास्त्री अपने विचार व्यक्त करते हैं। तालियाँ बजती हैं।)

सूत्र संचालक : अब हमारे कालेज के हिंदी विभाग के प्रभारी श्रीपत मिश्र जी आपके समक्ष हिंदी भाषा में रोजगार की संभावनाओं के बारे में आपको बताएँगे। श्री श्रीपत मिश्र जी।

(श्री श्रीपत मिश्र अपना भाषण समाप्त करते हैं। तालियाँ बजती हैं।)

सूत्र संचालक : अब यहाँ उपस्थित सभी लोग उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा कर रहे होंगे कि हमारे प्रमुख अतिथि राणाप्रताप कालेज के हिंदी विभाग के अध्यक्ष श्री लोकनाथ सिन्हा जी हिंदी भाषा के बारे में अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ। अब वे आपके समक्ष हैं।

(श्री लोकनाथ सिन्हा अपने विचार बताते हैं। तालियाँ बचती हैं।)

सूत्र संचालक : दोस्तो! आज हमारी हिंदी भाषा के बारे में आप लोगों को काफी उपयोगी जानकारियाँ प्राप्त हुईं। और अब समय आ गया है कार्यक्रम की समाप्ति का।

अब कालेज के वाइस प्रिंसिपल श्री रंगनाथ दाते जी आज के हमारे प्रमुख अतिथि, अध्यापकों, विद्यार्थियों तथा उपस्थित जनसमुदाय के प्रति आभार व्यक्त करेंगे।

(वाइस प्रिंसिपल श्री रंगनाथ दाते जी आभार व्यक्त करते हैं।) (अंत में दोपहर 12.00 बजे राष्ट्रगान के साथ समारोह समाप्त हुआ।)

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प्रश्न 2.
शहर के प्रसिद्ध संगीत महोत्सव का मंच संचालन कीजिए।
उत्तर :
मंच संचालक : भाइयो और बहनो! आज हमारे शहर कोल्हापुर में आयोजित प्रसिद्ध संगीत महोत्सव में आप सबका स्वागत है। और स्वागत है इस महत्त्वपूर्ण संगीत महोत्सव में अपने मधुर गीत-संगीत से श्रोताओं को सराबोर करने के लिए पधारे हुए संगीतकारों, गायक-गायिकाओं तथा उपस्थित जन-समुदाय का।।

मंच संचालक : …तो दोस्तो! प्रतीक्षा की घड़ियाँ समाप्त हुईं। अब आपके समक्ष मंच पर विराजमान हैं अपने साज-ओ-सामान के साथ शहर के प्रसिद्ध तबलावादक पंडित राधेश्यामजी। पंडित जी अपने तबलावादन के लिए पूरे जिले में विख्यात हैं। उनका साथ दे रही हैं शास्त्रीय गायिका शारदादेवी जी। पंडित जी के स्वागत में जोरदार तालियाँ…

(गायिका शारदादेवी के स्वरों के साथ पंडित राधेश्याम की उँगलियाँ तबले पर थिरकने लगती हैं। लोग वाह-वाह करते हैं। तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूंज उठता है।)

मंच संचालक : वाह भाई वाह! वाह वाह। पंडित जी ने वाकई अपनी वाद्य कला से श्रोताओं का मन मोह लिया। सभागार में गूंजती हुई तालियों का शोर इसका सबूत है।

मंच संचालक : दोस्तो! अब आप सुनेंगे अपनी चहेती लोकगीत गायिका राधा वर्मा को। वे आपको सावन माह की वर्षा की फुहारों के बीच गाए जाने वाले मधुर गीत कजरी के रस से सराबोर करेंगी। उनके साथ हारमोनियम पर हैं रामनाथ शर्माजी और ढोलक पर हैं पंडित राधारमण त्रिपाठी जी।

(राधा वर्मा जी अपने कजरी गीत से समां बाँध देती हैं और लोग तालियाँ बजाकर ‘वन्स मोर… वन्स मोर…’ कहकर शोर मचाते हैं।)

मंच संचालक : दोस्तो! शांत रहिए… शांत! राधा जी आपके आग्रह का मान जरूर रखेंगी। राधा जी प्लीज! प्लीज!

(राधा वर्मा दूसरी बार कजरी गाना शुरू करती हैं। अब श्रोता भी उनके स्वर में स्वर मिलाकर गाना शुरू कर देते हैं।)

मंच संचालक : वाह! वाह! दोस्तो, कजरी गीत है ही ऐसा।

समूह में गाने पर इसका आनंद और ज्यादा, और ज्यादा बढ़ने लगता । है। वाह भाई वाह!

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मंच संचालक : अब मंच पर आपके समक्ष हैं प्रसिद्ध भजन गायक सुमित संत जी। संत जी की गायकी से तो आप सब परिचित ही हैं। अपने भजनों से संत जी आपको भक्ति रस से सराबोर कर देंगे। सुमित जी के साथ तबले पर हैं कामता प्रसाद जी। हारमोनियम 1 पर हैं रामदास और सारंगीवादन कर रहे हैं प्रभु नारायण जी।

(सुमित संत ‘पायोजी मैंने रामरतन धन पायो’ तथा ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ जैसे भजनों से श्रोताओं को भक्ति रस से सराबोर कर देते हैं। तालियों और वाह! वाह के स्वर गूंजते हैं।)

मंच संचालक : वाह भाई! मेरे तो गिरधर गोपाल… (गुनगुनाते । हैं) वाह! भक्ति रस का जवाब नहीं। आत्मा-परमात्मा का मिलन
कराने वाला रस है भक्ति रस। वाह! वाह! वाह!

मंच संचालक : दोस्तो! अब आपको हम गजल गायकी की दुनिया में ले चलते हैं। मंच पर आपके सामने हैं प्रसिद्ध गजल गायक राजेंद्र शर्मा जी। गजल संभ्रांत श्रोताओं का गीत है। गजल के कई गायकों को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। श्री राजेंद्र शर्मा जी…

(राजेंद्र शर्मा की गायकी पर श्रोता झूमते हैं। एक-एक शब्द पर दाद देते हैं। वाह-वाह के शब्द सुनाई देते हैं। राजेंद्र शर्मा अपना गायन समाप्त करते हैं। तालियों की गड़गड़ाहट होती हैं।)

मंच संचालक : दोस्तो! अब आप के समक्ष सितारवादक रमाशंकर जी तंत्रवाद्य सितार की मधुर ध्वनि से आपका मनोरंजन करने आ रहे है। सितारवादक रविशंकर का नाम तो आपने सुना ही होगा। अब सुनिए रमाशंकर जी को।

(सितारवादक रमाशंकर अपने सितार पर मधुर ध्वनि से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। तालियों की गडगडाहट होती है।)

मंच संचालक : दोस्तो! मृदंग के मधुर स्वर से तो आप परिचित ही होंगे। मृदंग मंदिरों में बजाया जाने वाला वाद्य हैं। इसके अलावा गाँवों में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना में मृदंग वाद्य का प्रयोग होता है। तो सुनिए अब मृदंग के मधुर स्वर पंडित कमलाकांत शर्मा जी से।

(पंडित कमलाकांत अपने मृदंग पर ऐसी थपकियाँ देते हैं कि श्रोता वाह-वाह करने लगते हैं।)

मंच संचालक : दोस्तो! अब हम एक ऐसे वाद्य और उसे बजाने वाले व्यक्ति से आपका परिचय कराते हैं, जो वाद्य पुराने जमाने में लड़ाई के समय सैनिकों में उत्साह पैदा करने के लिए बजाया जाता था। लेकिन आजकल इसका प्रयोग गाँवों में नौटंकियों में किया जाता है। इसका नाम है नगाड़ा। आज इसे मंच पर बजा रहे हैं पंडित श्यामनारायण जी। श्यामनारायण जी का पेशा ही है नौटंकियों में नगाड़ा बजाना। तो श्यामनारायण जी… कड़कड़… कड़कड़… धम्म!

(श्यामनारायण जी नौटंकी की तर्ज पर नगाड़ा बजाते हैं। श्रोता मस्ती से सिर हिलाते हैं। कुछ दर्शक अपने स्थान पर खड़े होकर नगाड़े की तर्ज पर अभिनय भी करने लगते हैं। श्यामनारायण जी नगाड़ा वादन बंद करते हैं। तालियों की गड़गड़ाहट होती हैं।)

मंच संचालक : दोस्तो! अब मैं आपके सामने आपका परिचित वाद्य यानी बाँसुरी बजाने वाले कलाकार को मंच पर अपने बाँसुरी वादन से आपका मनोरंजन करने के लिए बुलाता हूँ। दोस्तो! बाँसुरी की धून बहुत कर्णप्रिय होती है। भगवान श्री कृष्ण की बाँसुरी सुनकर गायें तक उनके पास दौड़ी चली आती थीं। तो शीतल यादव जी मंच पर अपनी बाँसुरी के साथ आपके सामने हैं।

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(शीतल यादव बाँसुरी बजाते हैं। उनकी बाँसुरी की धुन से पंडाल गूंजने लगता है। तालियाँ बजती हैं।)

मंच संचालक : दोस्तो! संगीत महोत्सव का कार्यक्रम हो और उसमें फिल्मी गीत-संगीत का समावेश न हो, ऐसा कैसे हो सकता है। दोस्तो! हम आज आपको फिल्मी गीतों के करावके संगीत की महफिल में ले चलते हैं। तो फिर देर किस बात की।…

(मंच पर करावके संगीत बजता है। इसमें सन 1960 से लेकर सन 1980 तक के मधुर गीतों के मुखड़ों संगीत बजते हैं और गायक मधुर स्वर में इन गीतों को गाते हैं।)

मंच संचालक : दोस्तो! आपको पॉप संगीत का मजा दिलाए बिना भला हम कैसे जाने देंगे। ऐसी कल्पना भी मत कीजिए। तो हो जाए धम… धमा… धम…।
(मंच पर दिल दहला देने वाला पॉप संगीत बजता है। लोग इस संगीत के साथ नाचने लगते हैं।)

मंच संचालक : अरे भाई, हम तो भूल ही गए। हमारे बीच एक १ बहुत ही उदीयमान कलाकार कब से अपनी बारी की प्रतीक्षा कर १ रहे हैं। ये हैं बैंजो वादक मास्टर देवांश पांडेय जी। तो पांडेय जी, शुरू हो जाइए।

(देवांश पांडेय जी अपने बैंजो वादन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। चारों ओर से वाह-वाह का शोर होता हैं।)

मंच संचालक : अरे भाई, हमें पता है कि आप हमारे चहेते कलाकार पुत्तूचेरी पिल्लई को सुने बिना नहीं जाने वाले हैं। भाइयो! आखिर में आपके सामने श्रीमान पिल्लई साहब ही आ रहे हैं। आप तो जानते ही हैं कि वे –
प्यारा भारत देश हमारा।
हमको प्राणों से है प्यारा।

गीत हिंदी, मराठी, गुजराती, तमिल और तेलुगु भाषाओं में सुनाते १ हैं। आप यह देशभक्तिपूर्ण मधुर गीत सुनिए।

(श्री पिल्लई पाँच भाषाओं में यह गीत गाते हैं। तालियाँ बजती है।) (गीत समाप्त होता हैं।)

मंच संचालक : दोस्तो! इस गीत के साथ ही हमारा आज का संगीत महोत्सव का यह समारोह समाप्त होता है।

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॥ जय हिंद ।।
(राष्ट्रगान बजता है, परदा गिरता है।)

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मैं उद्घोषक Summary in Hindi

मैं उद्घोषक लेखक का परिचय

मैं उद्घोषक लेखक का नाम :
आनंद प्रकाश सिंह। (जन्म : 21 जुलाई, 1958.)

मैं उद्घोषक प्रमुख कृतियाँ :
पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर लेख, समीक्षाएँ, कहानियाँ, कविताएँ आदि प्रकाशित।

मैं उद्घोषक विशेषता :
पंडित भीमसेन जोशी तथा कई अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा लेखक के सूत्र-संचालन की प्रशंसा। किंग ऑफ वॉईस, संस्कृति शिरोमणि तथा अखिल आकाशवाणी जैसे पुरस्कारों से सम्मानित।

मैं उद्घोषक विधा :
आत्मकथा। आत्मकथा लेखन हिंदी साहित्य में रोचक और पठनीय लेखन माना जाता है। अपने अनुभवों तथा व्यक्तिगत प्रसंगों को पूरी निष्ठा से बताना आत्मकथा की पहली शर्त है। आत्मकथा उत्तम पुरुष वाचक सर्वनाम ‘मैं’ में लिखी जाती है।

मैं उद्घोषक विषय प्रवेश :
आजकल मंच संचालन अथवा सूत्र संचालन बहुत लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण माना जाता है। लेखक एक सफल मंच संचालक और सूत्र संचालक रहे हैं। प्रस्तुत लेख में उन्होंने बताया है कि सफल उद्घोषक अथवा मंच संचालक बनने के लिए व्यक्ति में कौन-कौन से आवश्यक गुण होने चाहिए। लेखक के अनुसार कार्यक्रम की सफलता मंच संचालक अथवा सूत्र संचालक के आकर्षक एवं उत्तम संचालन तथा उसके अपने विशेष गुणों पर आधारित होती है।

मैं उद्घोषक पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ में यह बताया गया है कि एक सफल उद्घोषक बनने के लिए व्यक्ति में कौन-कौन से गुण होने चाहिए और इसमें रोजगार की क्या संभावनाएँ हैं। इस लेख के लेखक स्वयं लंबे अरसे तक एक प्रतिष्ठित उद्घोषक रहे हैं। इस आत्मकथात्मक लेख में उन्होंने अपने अनुभव से अर्जित अनेक गुणों से परिचित कराया है।

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Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 16 मैं उद्घोषक

उद्घोषक, मंच संचालक और एंकर अलग-अलग नाम हैं उद्घोषक के। यह श्रोता और वक्ता को जोड़ने वाली कड़ी का काम करता है। किसी भी कार्यक्रम में मंच संचालक की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। उद्घोषक ही आयोजकों तथा अतिथियों को मंच पर आमंत्रित करता है तथा पूरे कार्यक्रम का संचालन करता है।

उदघोषक बनने के लिए कठिन अभ्यास की आवश्यकता होती है। आरंभ में मंच पर बोलने में सबको झिझक होती है। पर हिम्मत जुटाकर अभ्यास करते रहने से यह झिझक दूर हो जाती है। अधिकांश मंच संचालकों के साथ ऐसी घटनाएँ अकसर होती हैं। धीरे-धीरे उनमें आत्मविश्वास आ जाता है।

सूत्र संचालन के कई प्रकार होते हैं। इसके मुख्य प्रकार हैं – शासकीय कार्यक्रम का सूत्र संचालन, दूरदर्शन हेतु सूत्र संचालन, रेडियो हेतु सूत्र संचालन, राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक
कार्यक्रमों का सूत्र संचालन।

शासकीय एवं राजनीतिक समारोहों के सूत्र संचालन में प्रोटोकॉल १ का ध्यान रखते हुए अधिकारियों के पदों के अनुसार नामों की सूची बनाकर किसका किसके हाथों स्वागत करना है, इसकी योजना बनानी पड़ती है। इसमें आलंकारिक भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

दूरदर्शन तथा रेडियो कार्यक्रम का सूत्र संचालन करने के लिए इन पर प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों की पूरी जानकारी होनी जरूरी है। इनके कार्यक्रमों की संहिता लिखकर तैयार करनी होती है।

सूत्र संचालन करते समय रोचकता, रंजकता तथा विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख कार्यक्रम में करने से उसमें जान आ जाती है। कार्यक्रम और श्रोताओं के अनुसार भाषा का प्रयोग जरूरी होता है।

सत्र संचालक को यह ध्यान रखना होता है कि जिस प्रकार का कार्यक्रम हो उसी तरह की उसकी तैयारी की जानी चाहिए और उसी तरह उसकी संहिता लेखन करना चाहिए। संचालक को चाहिए कि वह संचालन के लिए आवश्यक तत्त्वों का अध्ययन करे।

सूत्र संचालक में कुछ गुणों का होना आवश्यक है। उसे मिलनसार, हँसमुख, हाजिरजवाबी तथा विविध विषयों का जानकार होने के साथ भाषा पर उसका अधिकार होना चाहिए। इसके अलावा उसे आयोजकों की ओर से अचानक मिली सूचना के अनुसार संहिता में परिवर्तन कर संचालन करना आना चाहिए।

लेखक कहते हैं कि कार्यक्रम कोई भी हो, मंच संचालक को मंच की गरिमा बनाए रखनी चाहिए। मंच पर आने वाला पहला व्यक्ति मंच संचालक होता है। अतएव उसका परिधान, वेशभूषा, केश सज्जा आदि सहज और गरिमामय होना चाहिए। उसका व्यक्तित्व और आत्मविश्वास उसके शब्दों में उतरना चाहिए।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 16 मैं उद्घोषक

सतर्कता, सहजता और उत्साह वर्धन उद्घोषक के मुख्य गुण हैं। उद्घोषक को कार्यक्रम का आरंभ रोचक ढंग से करना चाहिए। बीच-बीच में प्रसंग के अनुसार चुटकुले, शेर-ओ-शायरी के अंश का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए उद्घोषक को निरंतर अध्ययन करते रहना होता है।

उपर्युक्त बातों पर ध्यान देने वाला व्यक्ति अच्छा उद्घोषक बन सकता है। मंच पर उद्घोषक श्रोता एवं दर्शकों के समक्ष होता है, पर रेडियो और कभी-कभी टीवी का सूत्रधार परदे के पीछे होता है। उसकी केवल आवाज सुनाई देती है। लेकिन उसका दायरा विस्तृत होता है। तब उसको अपनी आवाज का कमाल दिखाना होता है।

इस क्षेत्र में रोजगार की पर्याप्त संभावनाएँ हैं। विशेषकर भाषा का अध्ययन करने वाले विद्याथियों के लिए। सूत्र संचालन में तो भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

मैं उद्घोषक शब्दार्थ

वक्ता बोलने वाला।
नामचीन नामी, मशहूर।
भूरि-भूरि बहुत ज्यादा।
हस्ती व्यक्तित्व।
गौरवान्वित गौरवयुक्त।
अहम महत्त्वपूर्ण।
पापड़ बेलना घोर परिश्रम करना, बहुत कष्ट झेलना।
थरथराना काँपना।
हकलाना जिह्वा के दोष के कारण रुकरुककर बोलना।
शासकीय सरकारी। Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 16 मैं उद्घोषक
प्रोटोकॉल शिष्टाचारपूर्वक, विधिवत।
सत्कार सम्मान।
आलंकारिक अलंकारयुक्त।
संहिता सूची।
संकलन संग्रह।
सेतु पुल।
सटीक बिलकुल ठीक।
मुशायरा शायरों का इकट्ठा होकर शेर पढ़ना।
हाजिरजवाबी बात का तुरंत बढ़िया जवाब सोच लेने की शक्ति।
ज्ञाता जानकार।
परिधान पहनने का कपड़ा।
गरिमामयी गौरवमयी।
सतर्कता सावधानी।
जिज्ञासाभरा जानने की इच्छा से परिपूर्ण।
प्रेरणादायक प्रेरणा देने वाली।
रोजगार जीविका।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 15 फीचर लेखन

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 15 फीचर लेखन Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 15 फीचर लेखन

12th Hindi Guide Chapter 15 फीचर लेखन Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

पाठ पर आधारित

प्रश्न 1.
फीचर लेखन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
फीचर किसी विशेष घटना, व्यक्ति, जीव-जंतु, स्थान, प्रकृति-परिवेश से संबंधित व्यक्तिगत अनुभूतियों पर आधारित आलेख होता है। फीचर समाचारों को नया आयाम देता है, उनका परीक्षण करता है तथा उन पर नया प्रकाश डालता है। फीचर समाचारपत्र का प्राण तत्त्व होता है। पाठक की प्यास बुझाने, घटना की मनोरंजनात्मक अभिव्यक्ति की कला का नाम फीचर है। फीचर किसी गद्य गीत की तरह होता है जो बहुत लंबा, नीरस और गंभीर नहीं होना चाहिए। इससे पाठक बोर हो जाते हैं और ऐसे फीचर , कोई पढ़ना नहीं चाहता। फीचर किसी विषय का मनोरंजक शैली में विस्तृत विवेचन है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 15 फीचर लेखन

अच्छा फीचर नवीनतम जानकारी से परिपूर्ण होता है। किसी घटना की सत्यता, तथ्यता फीचर का मुख्य तत्त्व है। फीचर लेखन में शब्द चयन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। लेखन की भाषा सहज, संप्रेषणीयता से परिपूर्ण होनी चाहिए। प्रसिद्ध व्यक्तियों के कथनों, उद्धरणों, लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग फीचर में है चार चाँद लगा देता है। फीचर लेखन में भावप्रधानता होनी चाहिए, क्योंकि नीरस फीचर कोई भी नहीं पढ़ना चाहता।

फीचर से संबंधित तथ्यों का आधार दिया जाना चाहिए। विश्वसनीयता के लिए फीचर ३ में तार्किकता आवश्यक है। तार्किकता के बिना फीचर अविश्वसनीय ३ बन जाता है। फीचर में विषय की नवीनता होना आवश्यक है, क्योंकि उसके अभाव में फीचर अपठनीय हो जाता है। फीचर में किसी व्यक्ति अथवा घटना विशेष का उदाहरण दिया गया हो तो उसकी संक्षिप्त जानकारी भी देनी चाहिए।

फीचर के विषयानुकूल चित्रों, कार्टूनों अथवा फोटो का उपयोग किया जाए तो फीचर अधिक प्रभावशाली बन जाता है। फीचर लेखन में राष्ट्रीय स्तर के तथा अन्य महत्त्वपूर्ण तथा समसामयिक विषयों का समावेश होना है चाहिए। फीचर पाठक की मानसिक योग्यता और शैक्षिक पृष्ठभूमि के अनुसार होना चाहिए।

प्रश्न 2.
फीचर लेखन के सोपानों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
फीचर लेखन की प्रक्रिया के निम्नलिखित सोपान हैं :

  1. प्रस्तावना : प्रस्तावना में फीचर के विषय का संक्षिप्त परिचय दिया जाता है। यह परिचय आकर्षक और विषयानुकूल होना चाहिए। परिचय पढ़कर पाठकों के मन में फीचर पढ़ने की जिज्ञासा जाग्रत होती है और पाठक अंत तक फीचर से जुड़ा रहता है।
  2. विवरण अथवा मुख्य कलेवर : फीचर में विवरण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। फीचर में लेखक स्वयं के अनुभव, लोगों से प्राप्त जानकारी और विषय की क्रमबद्धता, रोचकता के साथ-साथ संतुलित तथा आकर्षक शब्दों में पिरोकर उसे पाठकों के सम्मुख रखता है जिससे फीचर पढ़ने वाले को ज्ञान और अनुभव से संपन्न कर दे।
  3. उपसंहार : यह अनुच्छेद संपूर्ण फीचर का सार अथवा निचोड़ होता है। इसमें फीचर लेखक फीचर का निष्कर्ष भी प्रस्तुत कर सकता है अथवा कुछ अनुत्तरित प्रश्न पाठकों के ऊपर भी छोड़ सकता है। उपसंहार ऐसा होना चाहिए जिससे पाठक को विषय से संबंधित ज्ञान भी मिल जाए और उसकी जिज्ञासा भी बनी रहे।
  4. शीर्षक : विषय का ओचित्यपूर्ण शीर्षक फीचर की आत्मा है। शीर्षक संक्षिप्तं रोचक और जिज्ञासावर्धक होना चाहिए। नवीनता, आकर्षकता और ज्ञानवृद्धि उत्तम शीर्षक के गुण हैं।

प्रश्न 3.
फीचर लेखन करते समय बरती जाने वाली सावधानियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
फीचर लेखन करते समय बरती जाने वाली सावधानियाँ :

  • फीचर लेखन में आरोप-प्रत्यारोप करने से बचना चाहिए।
  • फीचर लेखन में आलंकारिक और अति क्लिष्ट भाषा का है प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • फीचर लेखन में अति नाटकीयता से बचना चाहिए।
  • झूठा तथ्यात्मक आँकड़े, प्रसंग अथवा घटनाओं का उल्लेख है करना उचित नहीं।
  • फीचर लेखन में अति कल्पनाओं और हवाई बातों के प्रयोग है से बचना चाहिए।
  • फीचर लेखन में भावप्रधानता होनी चाहिए, क्योंकि नीरस फीचर कोई भी नहीं पढ़ना चाहता।
  • फीचर बहुत लंबा, ऊबाऊ और गंभीर नहीं होना चाहिए। फीचर में विषय की नवीनता होना आवश्यक है।
  • फीचर लेखन की भाषा सहज, संप्रेषणीयता से परिपूर्ण होनी चाहिए।
  • फीचर से संबंधित तथ्यों का आधार दिया जाना चाहिए। विश्वसनीयता के लिए फीचर में तार्किकता आवश्यक है।
  • फीचर लेखन पाठक की मानसिक योग्यता और शैक्षिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
  • फीचर में किसी व्यक्ति अथवा घटना विशेष का उदाहरण दिया गया हो तो उसकी संक्षिप्त जानकारी भी देनी चाहिए।
  • फीचर के विषयानुकूल चित्रों, कार्टूनों अथवा फोटो का उपयोग किया जाए तो फीचर अधिक प्रभावशाली बन है जाता है।
  • फीचर लेखन में राष्ट्रीय स्तर के तथा अन्य महत्त्वपूर्ण तथा समसामयिक विषयों का समावेश होना चाहिए।

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व्यावहारिक प्रयोग

प्रश्न 4.
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर फीचर लेखन कीजिए।
उत्तर :
भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम डॉ विक्रम साराभाई की संकल्पना है। उन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। वर्तमान में इस कार्यक्रम की कमान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के हाथों में है। इसरो की स्थापना 1969 में डॉ. विक्रम साराभाई की अध्यक्षता में की गई। इसका मुख्यालय बंगलौर में है। भारत ने अपने पहले अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत बेहद सीमित संसाधनों के साथ की थी।

जब पहले उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा गया तब शायद ही किसी ने सोचा हो कि भारत का अंतरिक्ष यान किसी दिन मंगल ग्रह के लिए जा सकेगा। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से कई बड़े वैज्ञानिक जुड़े रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम भी भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में योगदान दे चुके हैं।

स्थापना के बाद से ही भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम अच्छी तरह से ऑर्केस्ट्रेटेड किया गया है और इसमें संचार और रिमोट सेंसिंग के लिए उपग्रह, अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली और अनुप्रयोग कार्यक्रम जैसे तीन अलग-अलग तत्त्व थे। प्राकृतिक संसाधनों और आपदा प्रबंधन सहायता की निगरानी और प्रबंधन के लिए दूरसंचार, टेलिविजन प्रसारण और मौसम संबंधी सेवाओं और रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट के लिए दो प्रमुख परिपालन प्रणालियों को भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह स्थापित किया गया है।

1960 और 1970 के दशक के दौरान भारत ने भू राजनीतिक और आर्थिक विचारों के कारण अपना स्वयं का लॉन्च वाहन कार्यक्रम प्रारंभ किया। देश ने एक साउंडिंग रॉकेट प्रोग्राम विकसित किया और 1980 के दशक तक सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल – 3 और अधिक उन्नत, संवर्धित सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (ए एस एल वी) को परिचालन सहायक बुनियादी ढाँचे के साथ पूरा किया।

सबसे पहले धुंबा को रॉकेट लॉन्चिग सेंटर के तौर पर चुना गया था। धरती की भू चुंबकीय भूमध्य रेखा धुंबा से गुजरती है। भारत ने पहला रॉकेट 21 नवंबर 1963 को लॉन्च किया था यानी मंगल यान से करीब 50 साल पहले। ये एक नाइक-अपाचे रॉकेट था। 1975 में भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च किया और इस तरह अंतरिक्ष युग में प्रवेश किया। इसका वजन सिर्फ 360 किलोग्राम था और इसका नाम प्राचीन भारत के प्रसिद्ध खगोलविद आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 15 फीचर लेखन

भास्कर – 1 भारत का पहला रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट था, इस उपग्रह का कैमरा जो तस्वीरें भेजता था, उन्हें वन, पानी और सागरों के अध्ययन में इस्तेमाल किया जाता था। चंद्रयान का भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान है। चंद्रयान ने चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज की थी।

इसरो ने प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी की उन्नति के लिए अपनी ऊर्जा को आगे बढ़ाया, जिसके परिणामस्वरूप पी एस एल वी और जी एस एल वी प्रौद्योगिकियों का निर्माण हुआ। पिछले साढ़े चार दशकों में भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम ने एक सुसंगठित, आत्मनिर्भर कार्यक्रम के माध्यम से प्रभावशाली प्रगति की है।

प्रश्न 5.
लता मंगेशकर पर फीचर लेखन कीजिए।
उत्तर :
भारतरत्न लता मंगेशकर भारत की अप्रतिम गायिका हैं। उनकी मधुर आवाज की पूरी दुनिया दीवानी है। पिछले छह-सात दशकों से भारतीय सिनेमा को अपनी आवाज के जादू से सराबोर करने वाली लता का जन्म 28 सितंबर, 1929 को इंदौर के मराठी परिवार में पंडित दीनदयाल के घर में हुआ। लता के पिता रंगमंच के कलाकार और गायक भी थे। अतः संगीत लता को विरासत में मिला। लता के जन्म के कुछ दिन बाद ही इनका परिवार महाराष्ट्र चला गया।

लता मंगेशकर ने अपनी संगीत यात्रा का प्रारंभ मराठी फिल्मों से किया। इन्होंने ‘हिंदुस्तान क्लासिकल म्यूजिक’ के उस्ताद अमानत अली खान से क्लासिकल संगीत सीखना शुरु किया। भारत बँटवारे के बाद उस्ताद अमानत अली खान के पाकिस्तान चले जाने के बाद लता ने बड़े गुलाम अली खान, पंडित तुलसीदास शर्मा तथा उस्ताद अमानत खान देवसल्ले से संगीत सीखा।

गुलाम हैदर ने 1948 में लता को ‘मजबूर’ फिल्म में पहला ब्रेक दिया। तब से लेकर 1989 तक लता मंगेशकर ने 30000 से भी अधिक गाने गाए हैं, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इस दौर में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का शायद ही कोई ऐसा फिल्म निर्देशक और संगीत निर्देशक होगा, जिसके साथ लता जी ने काम न किया हो। लता मंगेशकर अत्यंत शांत स्वभाव और प्रतिभा की धनी हैं।

उन्होंने रागों पर आधारित अनेक गाने गाए, तो दूसरी ओर ‘अल्लाह. तेरो नाम’ और ‘प्रभु तेरो नाम’ जैसे भजन भी गाए, वहीं 1963 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में देश का सबसे जीवंत गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाया। इस गाने को सुनते समय नेहरू जी की आँखों से आँसू बह निकले थे।

लता मंगेशकर भारतीय संगीत में महत्त्वपूर्ण योगदान देने के लिए पद्मभूषण, पद्मविभूषण, दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड, महाराष्ट्र भूषण अवॉर्ड, भारतरत्न, 3 बार राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड, बंगाल फिल्म पत्रकार संगठन अवॉर्ड, फिल्म फेअर लाइफटाइम अचीवमंट अवॉर्ड सहित अनेक अवॉर्ड जीत चुकी हैं। आज पूरी संगीत दुनिया उनके आगे नतमस्तक है।

फीचर के प्रकार

  • समाचार फीचर
  • खोजपरक फीचर
  • मानवीय रुचिपरक फीचर
  • सांस्कृतिक कार्यक्रमों से संबंधित फीचर
  • व्याख्यात्मक फीचर
  • ऐतिहासिक फीचर
  • जन रुचि के विषयों पर आधारित फीचर
  • विज्ञान फीचर
  • खेल-कूद फीचर
  • फोटो फीचर
  • पर्वोत्सवी फीचर
  • इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर आधारित फीचर
  • विशेष घटनाओं पर आधारित फीचर
  • व्यक्तिगत फीचर
  • रेडियो फीचर

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 15 फीचर लेखन

फीचर लेखन Summary in Hindi

फीचर लेखन का परिचय

फीचर लेखन लेखक का नाम :
डॉ. बीना शर्मा। (जन्म 20 अक्तूबर 1959.)

फीचर लेखन प्रमुख कृतियाँ :
‘हिंदी शिक्षण – अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य’, ‘भारतीय सांस्कृतिक प्रतीक’ आदि।

फीचर लेखन विशेषता :
डॉ. बीना का लेखन शिक्षा क्षेत्र और भारतीय संस्कृति से प्रेरित है। स्त्री विमर्श और समसामयिक विषयों पर आपका विशेष लेखन। आपका साहित्य भारतीय संस्कारों और जीवन मूल्यों के प्रति आग्रही है।

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फीचर लेखन विषय प्रवेश :
आज के दौर में फीचर लेखन पत्रकारिता क्षेत्र का आधार स्तंभ बन गया है। फीचर का मुख्य कार्य पाठक के सम्मुख किसी विषय का सजीव वर्णन करना होता है। प्रस्तुत पाठ में लेखिका फीचर लेखन का स्वरूप, उसकी विशेषताएँ, प्रकार आदि पर प्रकाश डालते हुए इस तथ्य को उद्भासित कर रही है कि फीचर लेखन जहाँ एक ओर समाज के दर्पण के रूप में कार्य कर सकता है, वहीं यह आजीविका का स्रोत भी बन सकता है।

फीचर लेखन पाठ का सार

स्नेहा एक पत्रकार है। आज वह और उसका पूरा परिवार आनंद और गर्व की भावना से भरा है। पत्रकारिता के क्षेत्र में फीचर लेखन के लिए दिए जाने वाले ‘सर्वश्रेष्ठ फीचर लेखन’ के लिए स्नेहा को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। आज उसके परिवार द्वारा एक पार्टी का आयोजन किया गया है। स्नेहा के पति, उसके सास-ससुर, पुत्री प्रिया और पुत्र नैतिक उसे बधाई दे रहे हैं। स्नेहा की आँखों में खुशी के आँसू हैं।

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स्नेहा अतीत में खो जाती है। बी. ए. कर लेने के बाद पिता द्वारा भविष्य के बारे में पूछने पर वह पत्रकारिता का कोर्स करने है की इच्छा प्रकट करती है, जिसे माता द्वारा भी समर्थन मिलता है। स्नेहा पत्रकारिता का कोर्स ज्वाइन कर लेती है। पत्रकारिता की कक्षा का प्रथम दिवस – पहले लेक्चर में प्रोफेसर ने पत्रकारिता पाठ्यक्रम का पहला पेपर पढ़ाना शुरु किया। विषय था – फीचर लेखन। उन्होंने फीचर लेखन की विभिन्न परिभाषाओं को समझाते हुए कहा – फीचर लेखन के क्षेत्र में चर्चित जेम्स डेविस कहते हैं – ‘फीचर समाचारों को नया आयाम देता है, उनका परीक्षण करता है तथा उन पर नया प्रकाश डालता है।’

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स्नेहा की फीचर लेखन में विशेष रुचि थी। उसके द्वारा प्रसिद्ध फीचर लेखक पी. डी. टंडन का उल्लेख करने पर प्रोफेसर ने बताया कि पी. डी. टंडन के अनुसार ‘फीचर किसी गद्य गीत की तरह होता है, जो बहुत लंबा, नीरस और गंभीर नहीं होना चाहिए। इससे पाठक बोर हो जाते हैं और ऐसे फीचर कोई पढ़ना नहीं चाहता। फीचर किसी विषय का मनोरंजक शैली में विस्तृत विवेचन है।’

इन परिभाषाओं के द्वारा स्नेहा अच्छी तरह समझ गई कि फीचर समाचारपत्र का प्राण तत्त्व होता है। पाठक की प्यास बुझाने, घटना की मनोरंजनात्मक अभिव्यक्ति की कला का नाम फीचर है। पत्रकारिता कोर्स के बीतते दिन-महीने, फीचर लेखन के संबंध में सुने हुए लेक्चर्स, प्रोफेसरों के साथ की गई चर्चाएँ, अध्ययन, परीक्षा, फीचर लेखन का प्रारंभ फीचर लेखन और आज का दिन। फीचर लेखन की सिद्धहस्त लेखिका बनना ही स्नेहा का एकमात्र सपना था।

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स्नेहा को याद आ रहा है वह दिन जब उसे पत्रकारिता कोर्स में फीचर लेखन पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया गया था। आज उसे अपना परिश्रम सार्थक होता नजर आ रहा था। रोचक प्रसंगों के साथ स्नेहा फीचर लेखन की विशेषताएँ बताने लगी – अच्छा फीचर नवीनतम जानकारी से परिपूर्ण होता है।

किसी घटना की सत्यता, तथ्यता फीचर का मुख्य तत्त्व है। फीचर लेखन में राष्ट्रीय स्तर के तथा अन्य महत्त्वपूर्ण विषयों का समावेश होना चाहिए क्योंकि समाचारपत्र दूर-दूर तक जाते हैं। साथ ही फीचर का विषय समसामयिक होना चाहिए।

फीचर लेखन में भावप्रधानता होनी चाहिए, क्योंकि नीरस फीचर कोई भी नहीं पढ़ना चाहता। फीचर से संबंधित तथ्यों का आधार दिया जाना चाहिए। विश्वसनीयता के लिए फीचर में तार्किकता आवश्यक है। तार्किकता के बिना फीचर अविश्वसनीय बन जाता है। फीचर में विषय की नवीनता होना आवश्यक है क्योंकि उसके अभाव में फीचर अपठनीय हो जाता है। फीचर में किसी व्यक्ति अथवा घटना विशेष का उदाहरण दिया गया हो तो उसकी संक्षिप्त जानकारी भी देनी चाहिए।

फीचर लेखन करते समय लेखक को पाठक की मानसिक योग्यता और शैक्षिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखना चाहिए। प्रसिद्ध व्यक्तियों के कथनों, उद्धरणों, लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग फीचर में चार चाँद लगा देता है। फीचर लेखक को निष्पक्ष रूप से अपना मत व्यक्त करना चाहिए तभी पाठक उसके विचारों से सहमत हो सकेगा। फीचर लेखन में शब्द चयन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। लेखन की भाषा सहज, संप्रेषणीयता से परिपूर्ण होनी चाहिए। फीचर के विषयानुकूल चित्रों, कार्टूनों अथवा फोटो का उपयोग किया जाए तो फीचर अधिक प्रभावशाली बन जाता है।

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एक विद्यार्थी के पूछने पर स्नेहा बताती है कि फीचर किसी विशेष घटना, व्यक्ति, जीव-जंतु, तीज-त्योहार, दिन, स्थान, प्रकृतिपरिवेश से संबंधित व्यक्तिगत अनुभूतियों पर आधारित आलेख होता है। इस आलेख को कल्पनाशीलता, सृजनात्मक कौशल के साथ मनोरंजक और आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया जाता है। फीचर अनेक प्रकार के हो सकते हैं।

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फीचर लेखन मुख्य रूप से –

  • व्यक्तिपरक फीचर
  • सूचनात्मक फीचर
  • विवरणात्मक फीचर
  • विश्लेषणात्मक फीचर
  • साक्षात्कार
  • विज्ञापन फीचर

स्नेहा ने आगे फीचर लेखन करते समय बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में बताया :

  • फीचर लेखन में आरोप-प्रत्यारोप करने से बचना चाहिए।
  • फीचर लेखन में क्लिष्ट और आलंकारिक भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • फीचर लेखन में झूठे तथ्यात्मक आँकड़े, प्रसंग अथवा घटनाओं का उल्लेख करना उचित नहीं है।
  • फीचर अति नाटकीयता से परिपूर्ण नहीं होना चाहिए।
  • फीचर लेखन में लेखक को अति कल्पनाओं और हवाई बातं के प्रयोग से बचना चाहिए।

इन सभी सावधानियों को ध्यान रखेंगे तो फीचर लेखन अधिकाधिक विश्वसनीय और प्रभावी बन सकता है।

फीचर लेखन की प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए स्नेहा ने बताया कि फीचर लेखन के मुख्य तीन अंग हैं :

  1. विषय का चयन : फीचर लेखन में विषय का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विषय रोचक, ज्ञानवर्धक और उत्प्रेरित करने वाला हो। अतः फीचर का विषय समयानुकूल और समसामयिक होना चाहिए। विषय जिज्ञासा उत्पन्न करने वाला हो।
  2. सामग्री का संकलन : फीचर लेखन में विषय संबंधी सामग्री का संकलन करना महत्त्वपूर्ण अंग है। उचित जानकारी और अनुभव के अभाव में लिखा गया फीचर नीरस सिद्ध हो सकता है। विषय से संबंधित उपलब्ध पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं से सामग्री जुटाने के अलावा बहुत-सी सामग्री लोगों से मिलकर, कई स्थानों पर जाकर जुटानी पड़ती है।
  3. फीचर योजना : फीचर लिखने से पहले फीचर का एक योजनाबद्ध ढाँचा बनाना चाहिए।

एक अन्य विद्यार्थी की जिज्ञासा शांत करते हुए स्नेहा ने बताया – निम्न चार सोपानों अथवा चरणों के आधार पर फीचर लिखा जाता है :

  1. प्रस्तावना : प्रस्तावना में फीचर के विषय का संक्षिप्त परिचय होता है। यह परिचय आकर्षक और विषयानुकूल होना चाहिए। इससे पाठकों के मन में फीचर पढ़ने की जिज्ञासा जाग्रत होती है और पाठक अंत तक फीचर से जुड़ा रहता है।
  2. विवरण अथवा मुख्य कलेवर : फीचर में विवरण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। फीचर में लेखक स्वयं के अनुभव, लोगों से प्राप्त जानकारी और विषय की क्रमबद्धता, रोचकता के साथसाथ संतुलित तथा आकर्षक शब्दों में पिरोकर उसे पाठकों के सम्मुख रखता है जिससे फीचर पढ़ने वाले को ज्ञान और अनुभव से संपन्न कर दे।
  3. उपसंहार : यह अनुच्छेद संपूर्ण फीचर का सार अथवा निचोड़ होता है। इसमें फीचर लेखक फीचर का निष्कर्ष भी प्रस्तुत कर सकता है अथवा कुछ अनुत्तरित प्रश्न पाठकों के ऊपर भी छोड़ सकता है। उपसंहार ऐसा होना चाहिए जिससे पाठक को विषय से संबंधित ज्ञान भी मिल जाए और उसकी जिज्ञासा भी बनी रहे।
  4. शीर्षक : विषय का औचित्यपूर्ण शीर्षक फीचर की आत्मा है। शीर्षक संक्षिप्त, रोचक और जिज्ञासावर्धक होना चाहिए। नवीनता, आकर्षकता और ज्ञानवृद्धि उत्तम शीर्षक के गुण हैं।

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फीचर लेखन शब्दार्थ

आनंदित  प्रसन्न।
सम्मानित  आदर किया हुआ।
उपलक्ष्य  उद्देश्य।
छलछलाना  आँसू भर आना।
समर्थन  किसी मत की पुष्टि।
पत्रकारिता  पत्रकार का काम।
चर्चित  जिसकी चर्चा की जाती हो।
आयाम  विस्तार।
परीक्षण  परीक्षा।
विश्लेषण  अलग करना।
परिभाषित  जिसकी परिभाषा की गई हो।
नीरस Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 15 फीचर लेखन  जिसमें रस न हो।
मनोरंजक  मन को प्रसन्न करने वाला।
विस्तृत  विस्तार वाला।
विवेचन  व्याख्या।
प्राण तत्त्व  आत्मा।
प्रविष्ट  अंदर आना।
आँखें फटी-की-फटी रह जाना बहुत अधिक आश्चर्य होना।
विख्यात  प्रसिद्ध।
बरबस  अचानक।
शीर्ष  सर्वोच्च।
सिद्धहस्त  जिसका हाथ कोई काम करने में मँजा हो।
व्याख्यान  भाषण।
सार्थक  सफल।
रोचक  रुचि उत्पन्न करने वाला।
परिपूर्ण  संपूर्ण।
तथ्यता  यथार्थता।
समावेश  शामिल होना।
समसामयिक  समकालीन, एक ही समय में होने वाला।
विश्वसनीयता  विश्वास के योग्य होने का गुण।
तार्किकता  तर्क करने की योग्यता।
अविश्वसनीय  विश्वास न करने योग्य। Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 15 फीचर लेखन
अपठनीय  जो पढ़ने योग्य न हो।
उद्धरण  किसी लेख के अंश को दूसरे लेख में प्रयोग करना।
लोकोक्ति  लोगों द्वारा कही गई उक्ति अर्थात कथन।
निष्पक्ष  जो किसी तरह का पक्षपात न करता हो।
विषयानुकूल  विषय के अनुकूल।
आश्वस्त  जिसे आश्वासन दिया गया हो।
परिवेश  वातावरण।
अनुभूति अनुभव।
आलेख  लेख।
व्यक्तिपरक  व्यक्तिगत।
सूचनात्मक  सूचना संबंधी।
विवरणात्मक  सविस्तार वर्णन वाला।
साक्षात्कार  भेंट।
सटीक  उचित।
तर्कसंगत  जो तर्क पर आधारित हो।
क्लिष्ट  कठिनाई से समझ में आने वाला।
चयन Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 15 फीचर लेखन  चुनाव।
ज्ञानवर्धक  ज्ञान बढ़ाने वाला।
उत्प्रेरित  उत्साहित।
समयानुकूल  समय के अनुकूल।
संकलन  संग्रह।
मंतव्य  विचार।
सोपान  सीढ़ी।
कलेवर  ऊपरी ढाँचा।
क्रमबद्धता  क्रम के अनुसार।
अनुच्छेद  पैराग्राफ।
अनुत्तरित  जिसका उत्तर न दिया गया हो।
औचित्यपूर्ण  उपयुक्त।
जिज्ञासावर्धक  जानने की इच्छा बढ़ाने वाला।
शंका  प्रश्न।
समाधान  किसी प्रश्न का संतोषजनक उत्तर।
विख्यात  प्रसिद्ध। Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 15 फीचर लेखन
योगदान  सहायता देना।
कुतूहल  अचरज।
कृतज्ञता  उपकार मानना।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 14 पल्लवन

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 14 पल्लवन Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 14 पल्लवन

12th Hindi Guide Chapter 14 पल्लवन Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

पल्लवन पाठ पर आधारित

(१) पल्लवन की प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
पल्लवन की प्रक्रिया के निम्नलिखित सोपान हैं :

  1. सर्वप्रथम मूल विषय के वाक्य, सूक्ति, काव्यांश अथवा कहावत को भली-भाँति पढ़ा जाता है। उनके भाव को समझने का प्रयास किया जाता है। उन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। अर्थ स्पष्ट होने पर एक बार पुनः विचार किया जाता है।
  2. पल्लवन करने से पूर्व मूल तथा गौण विचारों को समझ लेने के बाद विषय की संक्षिप्त रूपरेखा बनाई जाती है। मूल तथा गौण विचारों के पक्ष-विपक्ष में भली प्रकार सोचा जाता है। फिर विपक्षी तर्कों को काटने के लिए तर्कसंगत विचारों को एकत्रित किया जाता है।
  3. इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कोई भी भाव अथवा विचार छूटने न पाए। उसके बाद असंगत विचारों को हटाकर तर्कसंगत विचारों को संयोजित किया जाता है।
  4. शब्द सीमा को ध्यान में रखते हुए सरल और स्पष्ट भाषा में पल्लवन किया जाता है। पल्लवन लेखन में वाक्य छोटे होते हैं। लिखित रूप को पुनः ध्यानपूर्वक पढ़ा जाता है। पल्लवन विस्तार में लिखा जाता है।
  5. पल्लवन लेखन में परोक्ष कथन, भूतकालिक क्रिया के माध्यम से सदैव अन्य पुरुष में लिखा जाता है। पल्लवन में लेखक के मनोभावों का ही विस्तार और विश्लेषण किया जाता है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 14 पल्लवन

(२) पल्लवन की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
पल्लवन का अर्थ है विस्तार अथवा फैलाव। यह संक्षेपण का विरुद्धार्थी है। पल्लवन की विशेषताओं को इस प्रकार लिखा जा सकता है :

  1. कल्पनाशीलता – पल्लवन करते समय लेखक कल्पनाशीलता का सहारा लेता है। कल्पना के सहारे सूक्ति अथवा उद्धरण का भाव विस्तार करता है। परंतु पल्लवन में विषय का विस्तार एक निश्चित सीमा के अंतर्गत किया जाता है।
  2. मौलिकता – पल्लवन में मौलिकता का ध्यान रखा जाता है।
  3. सर्जनात्मकता – पल्लवन में लेखक को सर्जनात्मकता का अवसर व संतोष दोनों मिलते हैं।
  4. प्रवाहमयता – पल्लवन लेखन में प्रवाहमयता होना आवश्यक है। लेखक इस बात का ध्यान रखता है कि पाठक को पढ़ते समय बीच-बीच में किसी प्रकार का अवरोध अनुभव न हो।
  5. भाषा-शैली – पल्लवन करते समय लेखक को भाषा ज्ञान व भाषा का विस्तार जानना आवश्यक है। साथ ही विश्लेषण, संश्लेषण, तार्किक क्षमता के साथ-साथ अभिव्यक्तिगत कौशल की आवश्यकता होती है।
  6. शब्द चयन – पल्लवन में शब्द चयन का बहुत अधिक महत्त्व है। तर्कसंगत और सम्मत शब्दों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। लेखक को शृंखलाबद्ध, रोचक एवं उत्सुकता से परिपूर्ण वाक्य लिखने चाहिए। छोटे-छोटे वाक्यों या वाक्य खंडों में बंद विचारों को खोल देना, फैला देना, विस्तृत कर देना ही पल्लवन है।
  7. क्रमबद्धता – पल्लवन में विचारों में, अभिव्यक्ति में क्रमबद्धता का बहुत अधिक ध्यान रखा जाता है।
  8. सहजता – पल्लवन का सहज रूप सभी को आकर्षित करता है।
  9. स्पष्टता – पल्लवन में स्पष्टता का होना अत्यावश्यक है। जिस भी विचार, अंश, लोकोक्ति आदि का पल्लवन किया जा रहा है, केंद्र में वही रहना चाहिए। पाठक को पल्लवन पढ़ते समय ऐसा प्रतीत न हो कि मूल विचार कुछ और है, जबकि पल्लवन का प्रवाह किसी अन्य दिशा में जा रहा है।

व्यावहारिक प्रयोग।

(१) “ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होइ’, इस पंक्ति का भाव पल्लवन कीजिए।
उत्तर :
संत कबीरदास जी का बड़ा प्रसिद्ध दोहा है –
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोइ।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होइ।।

इस छोटे-से दोहे में जीवन का ज्ञान है। कबीर जी का कहना है कि पुस्तकें पढ़कर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। परंतु केवल पुस्तकें पढ़कर प्रभु का साक्षात्कार नहीं किया जा सकता। जब तक ईश्वर का साक्षात्कार न हो जाए, किसी को पंडित या ज्ञानी नहीं माना जा सकता। अनगिनत लोग जीवन भर ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करते हुए संसार से विदा हो गए परंतु कोई पंडित या ज्ञानी नहीं हो पाया। क्योंकि वे कोरे ज्ञान प्राप्ति के लोभ में ही पड़े रहे। बड़े-बड़े ग्रंथ पढ़कर भी जो प्रेम करना नहीं सीखा, वह अज्ञानी है।

प्रेम शब्द केवल ढाई अक्षर का है, जिसने उसे पढ़ लिया, अर्थात जिसने प्रभु से, जीवमात्र से प्रेम कर लिया, उसने ईश्वर का साक्षात्कार कर लिया। वास्तव में वही पंडित है। जिस व्यक्ति ने प्रेम को चखा, उसे कुछ और जानना शेष नहीं रहता, क्योंकि उसने परम ज्ञान को पा लिया। प्रेम ही ज्ञान है, प्रेमी ही असली ज्ञानी है। जिसने प्यार को पढ़ लिया, उसके लिए संसार में कुछ भी शेष नहीं रहता। जिसने प्रेम रस पी लिया, उसकी हर प्रकार की क्षुधा शांत हो गई।

प्राणिमात्र को प्रेम करने वाला व्यक्ति जब दूसरों के कष्ट, दुख और पीड़ाएँ देखता है, तो उसके नेत्र छलछला उठते हैं। वह जहाँ भी स्नेह का अभाव देखता है, वहीं जा पहुँचता है और कहता है – लो मैं आ गया। मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। ऐसे प्रेमी अंतःकरण वाले मनुष्य के चरणों में संसार अपना सब कुछ न्योछावर कर देता है। प्रेम संसार की ज्योति है। जीवन के सुंदरतम रूप की यदि कुछ अभिव्यक्ति होती है, तो वह प्रेम ही है।

प्रेम वह रचनात्मक भाव है, जो आत्मा की अनंत शक्तियों को जाग्रत कर उसे पूर्णता के लक्ष्य तक पहुँचा देता है। इसीलिए विश्व प्रेम को ही भगवान की सर्वश्रेष्ठ उपासना के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। परमेश्वर की सच्ची अभिव्यक्ति ही प्रेम है। प्रेम की भावना का विकास करके मनुष्य परमात्मा को प्राप्त कर सकता है।

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(२) ‘लालच का फल बुरा होता है, इस उक्ति का विचार पल्लवन कीजिए।
उत्तर :
लालच का फल सदैव बुरा होता है। लालच दूसरों का हक मारने की प्रवृत्ति है। लालच का अर्थ ही है अपनी आवश्यकता से अधिक पाने का प्रयास करना। और जब हम अपनी आवश्यकता से अधिक हासिल करने का प्रयास करते हैं तो कहीं न कहीं किसी का हक मार रहे होते हैं। लालच हमारे चरित्र का हनन भी करता है। लालच करने से भले ही हमें त्वरित लाभ होता दिखे लेकिन अंत में लालच से नुकसान ही होता है।

जीवन में अनेक अवसरों पर हमारे साथ ऐसा होता है जब हम किसी बात पर लालच कर बैठते हैं। और अधिक पाने की लालसा में हम ऐसा कुछ कर बैठते हैं कि हमारे पास जो कुछ होता है हम उसे भी गँवा बैठते हैं। लालच ऐसी बुरी चीज है कि उसके फेर में पड़कर मानव कई बार मानवता तक को ताक पर रख देता है। मानव जीवन में कामनाओं और लालसाओं का एक अटूट सिलसिला चलता ही रहता है।

सब कुछ प्राप्त होने के बावजूद कुछ और भी प्राप्त करने की लालसा से मनुष्य जीवनपर्यंत मुक्त नहीं हो पाता। जो स्वभाव से ही लालची होता है, उसे तो कुबेर का कोष भी संतुष्ट नहीं कर सकता। दुनिया में अगर किसी भी रिश्ते में लालच है तो वह रिश्ता अधिक समय तक नहीं चल पाता। लालच के कारण हमारे सभी रिश्ते-नाते भी बिगड़ जाते हैं। जब हम लालच करते हैं तो अपने परिवार, यार-दोस्तों सभी की नजर में गिर जाते हैं।

लोग हम पर भरोसा करना बंद कर देते हैं। लालची व्यक्ति को कोई पसंद नहीं करता। परिणामस्वरूप कभी किसी तरह की सहायता की आवश्यकता हो तो भी लालची मनुष्य की सहायता के लिए कोई खड़ा नहीं होता।

यदि जीवन में आगे बढ़ना है, सफल होना है तो एक अच्छा इन्सान बनना होगा। दूसरों के बारे में सोचना होगा। जो व्यक्ति लालच करता है, वह कामयाबी से कोसों दूर रहता है। एक-न-एक दिन लालच का दुष्परिणाम सामने आता ही है। अगर समय रहते लालच की प्रवृत्ति को त्याग देंगे तो लालच के दुष्परिणाम से बच भी सकते हैं। इसके लिए हमें सदैव लालच करने से बचना चाहिए। अगर किसी लालच के जाल में फँस भी गए, तो समय रहते उससे बाहर निकलने का प्रयास करना चाहिए। हमें लालच को त्याग देना चाहिए।

पल्लवन के बिंदु

  • पल्लवन में सूक्ति, उक्ति, पंक्ति या काव्यांश का विस्तार किया जाता है।
  • पल्लवन के लिए दिए वाक्य सामान्य अर्थवाले नहीं होते।
  • पल्लवन में अन्य उक्ति का विस्तार नहीं जोड़ना चाहिए।
  • क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग न करें।
  • पल्लवन करते समय अर्थों, भावों को एकसूत्र में बाँधना आवश्यक है।
  • विस्तार प्रक्रिया अलग-अलग दृष्टिकोण से प्रस्तुत करनी चाहिए।
  • पल्लवन में भावों-विचारों को अभिव्यक्त करने का उचित क्रम हो।
  • वाक्य छोटे-छोटे हों जो अर्थ स्पष्ट करें।
  • भाषा का सरल, स्पष्ट और मौलिक होना अनिवार्य है।
  • पल्लवन में आलोचना तथा टीका-टिप्पणी के लिए स्थान नहीं होता।

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पल्लवन Summary in Hindi

पल्लवन लेखक का परिचय

पल्लवन लेखक का नाम :
डॉ. दयानंद तिवारी। (जन्म 1 अक्तूबर 1962.)

पल्लवन प्रमुख कृतियाँ :
‘साहित्य का समाजशास्त्र’, ‘समकालीन हिंदी कहानी – विविध विमर्श’, ‘चित्रा मुद्गल के कथासाहित्य का समाजशास्त्र’, ‘हिंदी व्याकरण’, “हिंदी कहानी के विविध आयाम’ आदि। विशेषता समाजशास्त्री तथा प्रतिबद्ध साहित्यकार। महाविद्यालयीन समस्याओं के प्रति जागरूक। संप्रेषणीय एवं प्रभावोत्पादक भाषा। विधा : एकांकी। यह नाटक का एक प्रकार है।

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पल्लवन विषय प्रवेश :
साहित्य शास्त्र में पल्लवन लेखन उत्तम साहित्यकार का लक्षण माना जाता है। पल्लवन अर्थात किसी लोकोक्ति, उद्धरण, सूक्ति आदि का विस्तृत वर्णन। प्रस्तुत पाठ में पल्लवन लेखन के विविध अंगों और नियमों को स्पष्ट करते हुए व्यावहारिक हिंदी के विभिन्न क्षेत्रों में उसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है।

पल्लवन पाठ का सार

बारहवीं कक्षा की फाइनल परीक्षाएँ निकट हैं। हिंदी के अध्यापक विद्यार्थियों को पाठ्यक्रम का पुनरावलोकन करा रहे हैं। एक विद्यार्थिनी के पूछने पर वह पल्लवन के विषय में विस्तार से समझाते हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 14 पल्लवन

पल्लवन का अर्थ है फैलाव या विस्तार। जब किसी शब्द, सूक्ति, उद्धरण, लोकोक्ति गद्य, काव्य पंक्ति आदि का अर्थ स्पष्ट करते हुए दृष्टांतों, उदाहरणों द्वारा उसका विस्तार किया जाता है, तो उसे पल्लवन कहा जाता है। विस्तार शब्द के कारण पल्लवन को निबंध नहीं समझा जाना चाहिए।

निबंध और पल्लवन में अंतर होता है। जहाँ निबंध में किसी विचार को विस्तार से लिखने के लिए कल्पना, प्रतिभा और मौलिकता का सहारा लिया जाता है, वहीं पल्लवन में विषय का विस्तार एक निश्चित सीमा के अंतर्गत ही किया जाता है। पल्लवन की कुछ विशेषताएँ और नियम होते हैं।

पल्लवन के लिए भाषा के ज्ञान के साथ-साथ विश्लेषण, संश्लेषण, तार्किक क्षमता, अभिव्यक्तिगत कौशल की आवश्यकता भी होती है। पल्लवन में भाव विस्तार के साथ चिंतन का भी स्थान होता है। प्रथम दृष्टि में किसी सूक्ति आदि का सामान्य अर्थ ही समझ आता है। परंतु जैसे-जैसे उस सूक्ति विशेष को ध्यानपूर्वक और बार-बार पढ़ते हैं, तो उसमें निहित गूढ अर्थ स्पष्ट होने लगता है।

पल्लवन की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए अध्यापक स्पष्ट करते हैं कि वैज्ञानिक युग में पलने-बढ़ने के कारण आज की पीढ़ी लेखकों, कवियों, विचारकों आदि के मौलिक विचारों को समझने में अक्षम रहती है। ऐसे समय में पल्लवन हमारी सहायता करता है।

पल्लवन व्यक्तित्त्व निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शारीरिक विकास के साथ-साथ मनुष्य का बौद्धिक विकास भी आवश्यक होता है। पल्लवन का महत्त्व केवल शिक्षा तथा साहित्य में ही नहीं है, बल्कि उत्कृष्ट वक्ता, पत्रकार, प्रोफेसर, नेता, वकील आदि को भी इस कला का ज्ञान होना चाहिए।

इतना ही नहीं, कहानी लेखन, संवाद लेखन, विज्ञापन, समाचार, राजनीति के साथ-साथ अन्य अनेक व्यवसायों में भी पल्लवन का प्रयोग होता है।

पल्लवन की विशेषताओं को इस प्रकार लिखा जा सकता है:

  • कल्पनाशीलता
  • मौलिकता
  • सर्जनात्मकता
  • प्रवाहमयता
  • भाषा-शैली
  • शब्द चयन
  • सहजता
  • स्पष्टता
  • क्रमबद्धता।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 14 पल्लवन

पल्लवन की दो शैलियाँ प्रचलित हैं –

  1. इसमें प्रथम वाक्य से ही लेखक विषय पर आ जाता है। इसमें लंबी-चौड़ी भूमिका बनाने की आवश्यकता नहीं होती। प्रारंभ से ही रोचक, उत्सुकतापूर्ण शृंखला में बँधे वाक्य लिखे जाते हैं।
  2. कुछ विद्वान मानते हैं कि प्रारंभ के दो-तीन वाक्यों में भूमिका बनानी चाहिए। फिर दस-बारह वाक्यों में विषय का विस्तार करे तथा अंत में दोतीन वाक्यों में समाप्ति करें।

पल्लवन की प्रक्रिया के निम्नलिखित सोपान हैं :

  1. विषय को भली-भाँति पढ़ना, उसके भाव को समझना, उस पर ध्यान केंद्रित करना, अर्थ स्पष्ट होने पर एक बार पुनः विचार करना।
  2. विषय की संक्षिप्त रूपरेखा बनाना, उसके पक्ष-विपक्ष में सोचना, फिर विपक्षी तर्कों को काटने के लिए तर्कसंगत विचार एकत्रित करना। उसके बाद असंगत विचारों को हटाकर तर्कसंगत विचारों को संयोजित करना।
  3. शब्द सीमा के अनुसार सरल और स्पष्ट भाषा में पल्लवन करना। लिखित रूप को पुनः ध्यानपूर्वक पढ़ना। पल्लवन विस्तार में और सदैव अन्य पुरुष में लिखा जाता है। पल्लवन में लेखक के मनोभावों का ही विस्तार और विश्लेषण किया जाता है।

पल्लवन के बिंदु (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 84)

  • पल्लवन में सूक्ति, उक्ति, पंक्ति या काव्यांश का विस्तार किया जाता है।
  • पल्लवन के लिए दिए गए वाक्य सामान्य अर्थ वाले नहीं होते।
  • पल्लवन में अन्य उक्ति का विस्तार नहीं जोड़ना चाहिए।
  • क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग न करें।
  • पल्लवन करते समय अर्थों, भावों को एकसूत्र में बाँधना आवश्यक है।
  • विस्तार प्रक्रिया अलग-अलग दृष्टिकोण से प्रस्तुत करनी चाहिए।
  • पल्लवन में भावों-विचारों को अभिव्यक्त करने का उचित क्रम हो।
  • वाक्य छोटे-छोटे हों जो अर्थ स्पष्ट करें।
  • भाषा का सरल, स्पष्ट और मौलिक होना अनिवार्य है।
  • पल्लवन में आलोचना तथा टीका-टिप्पणी के लिए स्थान नहीं होता।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 14 पल्लवन

पल्लवन

(1) नर हो, न निराश करो मन को।

मनुष्य संसार का सबसे अधिक गुणवान तथा बुद्धिशील प्राणी है। वह अपने बुद्धि कौशल तथा कल्पनाशीलता के बल पर एक से एक महान कार्य करता रहा है। शांति, सद्भाव, समानता की स्थापना के लिए मनुष्य सदैव प्रयासरत रहा, क्योंकि मनुष्य विधाता की सर्वोत्कृष्ट और सर्वाधिक गुणसंपन्न कृति है।

अतः उसे अपने जीवन में किसी भी परिस्थिति में निराश नहीं होना चाहिए। जीवन में सुख और दुख, लाभ और हानि, सफलता और असफलता उसी प्रकार हैं, जैसे सिक्के के दो पहलू। संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है, जिसने अपने पूरे जीवन में कभी असफलता का मुँह न देखा हो।

हमें असफलताओं से घबराकर, हताश होकर नहीं बैठ जाना चाहिए। अगर मन ही पराजित हो गया तो वह इस धरा को स्वर्ग समान कैसे बना पाएगा। मनुष्य का विवेक, उसका मनोबल ही तो है, जो उसे हर समय कर्मरत रहने की, श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर करने की प्रेरणा दिया करता है।

(2) अविवेक आपदाओं का घर है।

विवेक, बुद्धि और ज्ञान मानव की बौद्धिक संपदा है। मनुष्य जब कोई निर्णय लेता है तो उसे ऐसी विवेक शक्ति की आवश्यकता होती है, जो उसे उचित और अनुचित के बीच का भेद बता सके। बिना अच्छी तरह विचारे किए गए कार्य कष्टदायक होते हैं।

किसी भी मनुष्य की सफलता का श्रेय उसके विवेक को ही जाता है। किस समय कौन-सा निर्णय लिया गया, इस पर हमारा भविष्य बहुत कुछ निर्भर करता है। हमें सोच-विचारकर ही कोई कार्य करना चाहिए। बिना विचार किया गया कार्य पश्चाताप का कारण बनता है।

इसलिए हमें जो भी कहना है, उस पर मनन करें, चिंतन करें। जो कुछ भी कहें, उसे सोच-समझकर विवेक की कसौटी पर कसकर ही कहें। अविवेकी मनुष्य मूर्खतापूर्ण कार्य करता है और अपने जीवन को आपत्तियों से भर लेता है। अगर कोई हितैषी उसे आपत्तियों से बचाते हुए उचित मार्ग पर चलने की परामर्श भी देता है, तो वह हितैषी उसे परम शत्रु प्रतीत होता है।

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(3) सेवा तीर्थयात्रा से बढ़कर है।

सेवा से बढ़कर कोई दूसरा धर्म नहीं है। इस तथ्य को सभी जानते हैं। लेकिन लोग सेवा को भूलकर तीर्थयात्रा के लिए यह सोचकर निकल पड़ते हैं कि उन्हें मोक्ष मिलेगा। लोग भूल जाते हैं कि सेवा का भाव ही संपूर्ण मानवता को चिरकाल तक सुरक्षित कर सकेगा।

सेवा समाज के प्रति कृतज्ञ लोगों का आभूषण है। मानव सेवा एवं प्राणिमात्र की सेवा संपूर्ण तीर्थयात्राओं का फल देने वाली होती है। ऐसे व्यक्ति हमारे आस-पास ही मिल जाते हैं, जिन्हें सेवा की आवश्यकता होती है। तीर्थयात्रा करने का फल कब मिलेगा, कैसा होगा? कोई नहीं जानता।

परंतु सेवा सदा शुभ फल ही देती है। ‘सेवा करे सो मेवा पाए।’ अतः हमें सेवा धर्म अपनाना चाहिए।

(4) जो तोको काँटा बुवै, ताहि बोइ तू फूल।

संसार का यह चलन है कि आपके शुभचिंतक कम मिलेंगे, अहित करने वाले या बुरा सोचने वाले अधिक। ऐसे लोगों के प्रति क्रोध की भावना होना स्वाभाविक है। साधारण मनुष्य यही करते भी हैं, परंतु अहित करने वाले का हित सोचना, काँटे बिछाने वाले के लिए फूल बिछाना, मारने वाले को क्षमा करना महान मानवीय गुण है। हमारी संस्कृति प्रारंभ से ही अहिंसा प्रधान रही है। सबके प्रति सद्भावना रखना एक प्रकार की साधना है।

प्रकृति भी हमें यही शिक्षा प्रदान करती है। वृक्ष पत्थर मारने वाले को फल देते हैं। सरसों निष्पीड़न करने वालों को तेल देती है। पत्थर पर घिसा जाने के बाद चंदन सुगंध और शीतलता देता है। जब ये पदार्थ निर्जीव होते हुए भी अपकार करने वालों का उपकार करते हैं तो मनुष्य को तो विधाता ने स्वभाव से ही परोपकारी बनाया है।

शत्रु को मित्र बनाने, विरोधियों का हृदय परिवर्तन करके उन्हें अनुकूल बनाने का यही सर्वोत्तम और स्थायी उपचार है कि हम उत्पीड़क को क्षमा करें। जो हमारा बुरा करता है, उसका भला करें। उसके मार्ग के कँटक दूर करके वहाँ फूल बिछा दें। भला करने वाला, फूल बिछाने वाला सदा लाभ में ही रहता है। काँटा बिछाने वाला स्वयं ही उसमें उलझकर घायल हो सकता है। अतः हमें अपकार करने वाले का भला करना चाहिए।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 14 पल्लवन

पल्लवन शब्दार्थ

आकलन  समझना।
अवलोकन  दर्शन।
शंका  भय।
व्याख्या  विवरण।
तात्पर्य  मतलब।
सहज  सरल।
आत्मसात  अपने अधीन करना।
प्रतिशब्द  पर्याय।
संक्षेपण  संक्षेप करने की क्रिया।
सूक्ति  सुंदर वाक्य।
उद्धरण  किसी लेख के अंश को दूसरे लेख में प्रयोग करना।
लोकोक्ति  लोगों द्वारा कही गयी उक्ति अर्थात कथन।
दृष्टांत  उदाहरण।
काल्पनिक  कल्पना से उत्पन्न।
सूक्ष्म  बहुत छोटा।
प्रतिभा  बुद्धि।
विश्लेषण  अलग करना।
संश्लेषण  मिलाना।
तार्किक क्षमता  तर्क करने की योग्यता।
अभिव्यक्तिगत कौशल  प्रकाशन की कला।
आख्याता  उपदेशक।
गरिमा  गौरव।
चिंतक  मनन करने वाला।
अनुभूति  अनुभव।
सम्यक  उचित।
मर्मस्पर्शी  हृदय को छूने वाला।
संदर्भ  विषय।
जिज्ञासा  उत्सुकता।
सराहनीय  प्रशंसा करने योग्य।
मौलिक  मूल संबंधी।
उत्कृष्ट  उत्तम।
उपयुक्त  उचित।
प्रवाहमयता  गति।
क्रमबद्धता  क्रम के अनुसार।
प्रवर्तन  कार्य आरंभ करना।
रोचकतापूर्ण  मनोहरता से पूर्ण।
प्रतिपादन  निश्चित किया हुआ।
उपसंहार  समाप्ति।
संक्षिप्त  थोड़ा।
सम्मत  उचित।
संयोजन  मिलाना, जोड़ना।
असंगत  अनुचित।
परोक्ष  जो सामने न हो।
अद्भुत  अनोखा।
सामर्थ्य  क्षमता।
सद्भाव  अच्छे भाव।
प्रयासरत  श्रम में लगा हुआ।
आंतरिक  भीतरी।
सर्वोत्कृष्ट  सबसे उत्तम।
सर्वाधिक  सबसे अधिक।
कृति  कार्य।
संकल्प  दृढ़ निश्चय, विकल्प।
मनोबल  मानसिक बल।
अविवेक  अज्ञान।
संपदा  संपत्ति।
कष्टदायक  कष्ट देने वाले।
कसौटी  जाँच।
परमो धर्म  सबसे बड़ा धर्म।
अवहेलना  तिरस्कार।
चिरकाल  दीर्घ काल।
सद्यफल  जिसका फल तुरंत मिल जाए।
दायिनी  देने वाली।
शुभचिंतक  हितैषी।
स्वाभाविक  प्राकृतिक।
प्रतिक्रिया  किसी क्रिया के परिणाम में क्रिया।
मैत्री भाव  मित्रता का भाव।
निष्पीड़न  निचोड़ना।
सर्वोत्तम  सबसे उत्तम।
उत्पीड़क  पीड़ा देने वाला।
अपकार  अहित।
निष्कंटक  बाधारहित।
रोचक  रुचि उत्पन्न करने वाला।
सविस्तार  विस्तार के साथ।
पुनरावलोकन  फिर से अच्छी तरह देखना।
आशंका  भय।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 13 कनुप्रिया Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Maharashtra State Board 12th Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया

12th Hindi Guide Chapter 13 कनुप्रिया Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.
(अ) कृति पूर्ण कीजिए :

(a) कनुप्रिया की तन्मयता के गहरे क्षण सिर्फ – ………………………………………………
उत्तर :
कनुप्रिया की तन्मयता के गहरे क्षण सिर्फ –

  • भावावेश थे।
  • सुकोमल कल्पनाएँ थीं।
  • रँगे हुए अर्थहीन शब्द थे।
  • आकर्षक शब्द थे।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया

(b) कनुप्रिया के अनुसार यही युद्ध का सत्य स्वरूप है – ………………………………………………
उत्तर :

  • टूटे रथ, जर्जर पताकाएँ।
  • हारी हुई सेनाएँ, जीती हुई सेनाएँ।
  • नभ को कँपाते हुए युद्ध घोष, क्रंदन-स्वर।
  • भागे हुए सैनिकों से सुनी हुई अकल्पनीय, अमानुषिक घटनाएँ।

प्रश्न 2.
कनुप्रिया के लिए वे अर्थहीन शब्द जो गली-गली सुनाई देते हैं – ………………………………………………
उत्तर :
कनुप्रिया के लिए वे अर्थहीन शब्द जो गली-गली सुनाई देते हैं – कर्म, स्वधर्म, निर्णय, दायित्व।

(आ) कारण लिखिए :

(a) कनुप्रिया के मन में मोह उत्पन्न हो गया है।
उत्तर :
कनुप्रिया के मन में मोह उत्पन्न हो गया है – (कनुप्रिया कल्पना करती है कि वह अर्जुन की जगह है।) क्योंकि कनु के द्वारा समझाया जाना उसे बहुत अच्छा लगता है।

(b) आम की डाल सदा-सदा के लिए काट दी जाएगी।
उत्तर :
आम्रवृक्ष की डाल सदा-सदा के लिए काट दी जाएगी – क्योंकि कृष्ण के सेनापतियों के वायुवेग से दौड़ने वाले रथों की ऊँची-ऊँची गगनचुंबी ध्वजाओं में यह नीची डाल अटकती हैं।

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) ‘व्यक्ति को कर्मप्रधान होना चाहिए’, इस विषय पर अपना मत लिखिए।
उत्तर :
संसार में दो तरह के लोग होते हैं। एक कर्म करने वाले लोग और दूसरे भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाले लोग। बड़े-बड़े महापुरुष, वैज्ञानिक, उद्योगपति, शिक्षाविद, देश के कर्णधार तथा बड़े-बड़े अधिकारी अपने कार्यों के बल पर ही महान कहलाए। कर्म करने वाले व्यक्ति ही अपने परिश्रम के फल की उम्मीद कर सकते हैं। हाथ पर हाथ रखकर भगवान के भरोसे बैठे रहने वालों का कोई काम पूरा नहीं होता।

निष्क्रिय बैठे रहने वाले लोग भूल जाते हैं कि भाग्य भी संचित कर्मों का फल ही होता है। किसान को अपने खेत में काम करने के बाद ही अन्न की प्राप्ति होती है। व्यापारी को बौद्धिक श्रम करने के बाद ही व्यवसाय में लाभ होता है। कहा भी गया है कि ‘कर्म प्रधान विश्व करि राखा। जो जस करे सो तस फल चाखा।’ इस प्रकार कर्म सफलता की ओर ले जाने वाला मार्ग है।

(आ) ‘वृक्ष की उपयोगिता’, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
वृक्ष मनुष्यों के पुराने साथी रहे हैं। प्राचीन काल में जब मनुष्य जंगलों में रहा करता था, तब वह अपनी सुरक्षा के लिए पेड़ों पर अपना घर बनाता था। पेड़ों से प्राप्त फल-फूल और जड़ों पर उसका जीवन आधारित था। पेड़ों की छाया धूप और वर्षा से उसकी मदद करती है। पेड़ों की हरियाली मनुष्य का मन प्रसन्न करती है। अब भी मनुष्य जहाँ रहता है, अपने आसपास फलदार और छायादार वृक्ष लगाता है।

वृक्ष मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। अनेक औषधीय वृक्षों से मनुष्यों को औषधियाँ मिलती हैं। वृक्ष वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड सोखते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जिससे हमें साँस लेने के लिए शुद्ध वायु मिलती है। पेड़ों का सबसे बड़ा फायदा वर्षा कराने में होता है। जहाँ पेड़ों की बहुतायत होती है, वहाँ अच्छी वर्षा होती है। पेड़ों से ही फर्नीचर बनाने वाली तथा इमारती लकड़ियाँ मिलती हैं। इस तरह पेड़ हमारे लिए हर दृष्टि से उपयोगी होते हैं।

पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न

प्रश्न 4.
(अ) ‘कवि ने राधा के माध्यम से आधुनिक मानव की व्यथा को शब्दबद्ध किया है, इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘कनुप्रिया’ काव्य में राधा अपने प्रियतम कृष्ण के ‘महाभारत’ युद्ध के महानायक के रूप में अपने से दूर चले जाने से व्यथित है। वह इस बात को लेकर तरह-तरह की कल्पनाएँ करती है। कभी अपनी व्यथा व्यक्त करती है, तो कभी अपने प्रिय की उपलब्धि पर गर्व करके संतोष कर लेती है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया

यह व्यथा केवल राधा की ही नहीं है। उन परिवारों के मातापिता की भी है, जिनके बेटे अपने परिवारों के साथ नौकरी व्यवसाय के सिलसिले में अपनी गृहस्थी के प्रति अपना दायित्व निभाने के लिए अपने माता-पिता से दूर रहते हैं। उनसे विछोह की व्यथा उन्हें भोगनी पड़ती है। भोले माता-पिता को लाख माथापच्ची करने पर भी समझ में यह नहीं आता कि सालों-साल तक उनके बेटे माता-पिता को आखिर दर्शन क्यों नहीं देते हैं।

पर वहीं उनको यह संतोष और गर्व भी होता है कि उनका बेटा वहाँ बड़े पद पर है, जो उसे उनके साथ रहने पर नसीब नहीं होता। इसी तरह किसी एहसान फरामोश के प्रति एहसान करने वाले व्यक्ति के मन में उत्पन्न होने वाली भावनाओं में भी राधा के माध्यम से आधुनिक मानव की व्यथा व्यक्त होती है।

(आ) राधा की दृष्टि से जीवन की सार्थकता बताइए।
उत्तर :
राधा के लिए जीवन में प्यार सर्वोपरि है। वह वैरभाव अथवा युद्ध को निरर्थक मानती है। कृष्ण के प्रति राधा का प्यार निश्छल और निर्मल है। राधा ने सहज जीवन जीया है और उसने चरम तन्मयता के क्षणों में डूबकर जीवन की सार्थकता पाई है। अतः वह जीवन की समस्त घटनाओं और व्यक्तियों को केवल प्यार की कसौटी पर ही कसती है। वह तन्मयता के क्षणों में अपने सखा कृष्ण की सभी लीलाओं का अनुमान करती है।

वह केवल प्यार को सार्थक तथा अन्य सभी बातों को निरर्थक मानती है। महाभारत के युद्ध के महानायक कृष्ण को संबोधित करते हुए वह कहती है कि मैं तो तुम्हारी वही बावरी सखी हूँ, तुम्हारी मित्र हूँ। मैंने तुमसे सदा स्नेह ही पाया है और मैं स्नेह की ही भाषा समझती हूँ।

राधा कृष्ण के कर्म, स्वधर्म, निर्णय तथा दायित्व जैसे शब्दों को । सुनकर कुछ नहीं समझ पाती। वह राह में रुक कर कृष्ण के अधरों की कल्पना करती है… जिन अधरों से उन्होंने प्रणय के शब्द पहली बार उससे कहे थे। उसे इन शब्दों में केवल अपना ही राधन्… राधन्… राधन्… नाम सुनाई देता है।

इस प्रकार राधा की दृष्टि से जीवन की सार्थकता प्रेम की पराकाष्ठा में है। उसके लिए इसे त्याग कर किसी अन्य का अवलंबन करना नितांत निरर्थक है।

रसास्वादन

प्रश्न 5.
‘कनुप्रिया’ काव्य का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(1) रचना का शीर्षक : कनुप्रिया। (विशेष अध्ययन के लिए)
(2) रचनाकार : डॉ. धर्मवीर भारती।
(3) कविता की केंद्रीय कल्पना : इस कविता में राधा और कृष्ण के तन्मयता के क्षणों के परिप्रेक्ष्य में कृष्ण को महाभारत युद्ध के महानायक के रूप में तौला गया है। राधा कृष्ण के वर्तमान रूप से चकित है। वह उनके नायकत्व रूप से अपरिचित है। उसे तो कृष्ण अपनी तन्मयता के क्षणों में केवल प्रणय की बातें करते दिखाई देते हैं।
(4) रस-अलंकार :
(5) प्रतीक विधान : राधा कनु को संबोधित करते हुए कहती है कि मेरे प्रेम को तुमने साध्य न मानकर साधन माना है। इस लीला क्षेत्र से युद्ध क्षेत्र तक की दूरी तटा करने के लिए तुमने मुझे ही सेतु बना दिया। यहाँ लीला क्षेत्र और युद्ध क्षेत्र को जोड़ने के लिए सेतु जैसे प्रतीक का प्रयोग किया गया है।
(6) कल्पना : प्रस्तुत काव्य-रचना में राधा और कृष्ण के प्रेम
और महाभारत के युद्ध में कृष्ण की भूमिका को अवचेतन मन वाली राधा के दृष्टिकोण से चित्रित किया गया है।
(7) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : दुख क्यों करती है पगली, क्या हुआ जो/कनु के वर्तमान अपने/तेरे उन तन्मय क्षणों की कथा से/ अनभिज्ञ हैं/उदास क्यों होती है नासमझ/कि इस भीड़भाड़ में/ है तू और तेरा प्यार नितांत अपरिवर्तित/छूट गए हैं। गर्व कर बावरी/कौन है जिसके महान प्रिय की/अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ हों? इन पंक्तियों में राधा को अवचेतन मन वाली राधा सांत्वना है देती है।

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(8) कविता पसंद आने का कारण : कवि ने इन पंक्तियों में राधा के अवचेतन मन में बैठी राधा के द्वारा चेतनावस्था में स्थित राधा को यह सांत्वना दिलाई है कि यदि कृष्ण युद्ध की हड़बड़ाहट में तुमसे और तुम्हारे प्यार से अपरिचित होकर तुमसे दूर चले गए हैं तो तुम्हें उदास नहीं होना चाहिए।

तुम्हें तो इस बात पर गर्व होना चाहिए। क्योंकि किसके महान है प्रेमी के पास अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ हैं। केवल तुम्हारे प्रेमी के पास ही न।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 13 कनुप्रिया Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका के प्रश्न 3 (अ) के लिए
पद्यांश क्र. 1
प्रश्न. निम्नलिखितपद्यांशपढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया 2
प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :
ऐसा है राधा का सेतु जिस्म –
(1) …………………………………….
(2) …………………………………….
(3) …………………………………….
(4) …………………………………….
उत्तर :
ऐसा है राधा का सेतु जिस्म –
(1) सोने के पतले गुंथे तारों वाले पुल-सा
(2) निर्जन
(3) निरर्थक
(4) काँपता-सा।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया

कृति 2 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर : लिखिए :
(1) पद्यांश में प्रयुक्त एक सुंदर वृक्ष का नाम – …………………………………….
(2) सैनिकों की गणना करने के काम आने वाला शब्द – …………………………………….
(3) इन्हें पथ से अलग हटकर खड़ी होने की सलाह – …………………………………….
(4) आकाश ऐसा था – …………………………………….
उत्तर :
(1) कदंब।
(2) अक्षौहिणी।
(3) राधा को।
(4) धूल भरा।

प्रश्न 2.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया 4

पद्यांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखितपद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कारण लिखिए :
आज राधा उस पथ से दूर हट जाए – ……………………………………………
उत्तर :
आज राधा उस पथ से दूर हट जाए – क्योंकि आज उस पथ से द्वारिका की युद्धोन्मत्त सेनाएँ गुजर रही हैं।

प्रश्न 2.
आकृति पूर्ण कीजिए:
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया 5
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया 6

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया

कृति 2 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए :
(1) कनु सबसे ज्यादा इसका है – …………………………………………
(2) राधा इसके रोम-रोम से परिचित है – …………………………………………
(3) अगणित सैनिक इसके हैं – …………………………………………
(4) राधा को ये बिलकुल नहीं पहचानते – …………………………………………
उत्तर :
(1) राधा का।
(2) कनु (कृष्ण) के।
(3) कनु (कृष्ण) के।
(4) कनु (कृष्ण) के सैनिक।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘धार्मिक दृष्टि से पवित्र माने जाने वाले वृक्ष’ विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
यों तो हर प्रकार के वृक्ष मनुष्य के काम आते हैं, पर कुछ वृक्ष ऐसे होते है, जिन्हें धार्मिक दृष्टि से पवित्र माना जाता है। उनमें से कुछ वृक्षों की पूजा-अर्चना की जाती है और कुछ वृक्षों की पत्तियों का उपयोग धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता है। पीपल और नीम के वृक्षों में क्रमशः भगवान शंकर और देवी जी का बास मानकर इन वृक्षों में श्रद्धालु जल छोड़ते हैं। वट पूर्णिमा को सुहागन स्त्रियाँ पति के दीर्घायु के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं।

अशोक की पत्तियों का शुभ अवसर पर तोरण बनाकर मंडपों आदि को सजाया जाता है। आम का वृक्ष तो शुभ माना ही जाता है। पूजा में कलश पर रखने के लिए आम की पल्लव अनिवार्य होती है। आम की पत्तियाँ तोरण बनाने के काम में आती हैं। इसके अलावा आम की लकड़ी हवन के काम भी आती है।

छोटे पौधों में तुलसी पवित्र मानी जाती है। पूजा में तुलसी- पत्र और पान की पत्तियों का उपयोग भी आवश्यक होता है।

इसी तरह नारियल के वृक्ष को भी पवित्र माना जाता है। नारियल और सुपारी के बिना कोई महत्त्वपूर्ण धार्मिक कार्य संपन्न नहीं होता। इस तरह धार्मिक दृष्टि से पवित्र माने जाने वाले वृक्षों का बहुत महत्त्व है।

पद्यांश क्र. 3
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांशपढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर : लिखिए :
(1) कनुप्रिया (राधा) को उदास नहीं होना चाहिए – ……………………………………..
(2) कनुप्रिया (राधा) को गर्व करना चाहिए – ……………………………………..
उत्तर :
(1) कनुप्रिया (राधा) को उदास नहीं होना चाहिए – कि भीड़भाड़ में वह और उसका प्यार नितांत अपरिचित छूट गए हैं।
(2) कनुप्रिया (राधा) को गर्व करना चाहिए – कि उसके प्रिय के अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ हैं।

कृति 2 : (आकलन)

प्रश्न 2.
कनु (कृष्ण) के अनुसार युद्ध सत्य –
उत्तर :
कनु (कृष्ण) के अनुसार युद्ध सत्य –

  • पाप-पुण्य
  • धर्म-अधर्म
  • न्याय-दंड
  • क्षमाशीलता।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘प्राचीन काल एवं आधुनिक काल की सेनाओं के बारे में 40 से 50 शब्दों में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
प्राचीन काल में आज की तरह तकनीकी विकास नहीं हुआ था। इसलिए सेनाओं के पास आज की तरह द्रुत गति से मारक और विनाशक अस्त्र-शस्त्र नहीं थे। प्राचीन काल की सेनाएँ पैदल सैनिकों पर आधारित होती थीं। उनमें पैदल सेना, अश्व सेना, गज सेना आदि प्रमुख थीं। राजा और सामंत लड़ाई के समय रथों का प्रयोग करते थे। सेनाओं के पास धनुष-बाण, भाले, तलवारें, कटार-बी तथा गदा जैसे हथियार होते थे।

लड़ाइयाँ अधिकतर आमने-सामने होती थीं। इसलिए सैनिकों की संख्या बहुत अधिक होती थी। आज की सेनाएँ आधुनिक हथियारों से लैस होती हैं। ये थल सेना, जल सेना तथा वायु सेना में बँटी होती हैं। इनके पास अत्यधिक तेज गति से मार करने वाले हथियार होते हैं। थल सेना के पास आधुनिक राइफलें, विकसित तकनीक वाले दूर-दूर तक मार करने वाले टैंक, गोला-बारूद, हजारों मील दूर तक मार करने वाली मिसाइलें होती हैं।

वायु सेना के पास आवाज की गति से तेज चलने वाले फाइटर विमान, तरह-तरह के संहारक बम तथा जल सेना के पास अनेक युद्धक जहाजें तथा पनडुब्बियाँ होती हैं, जो क्षण भर में भारी विनाश कर सकती हैं। इस तरह प्राचीन काल की सेनाओं और आधुनिक काल की सेनाओं में जमीन-आसमान का अंतर हैं।

पढ्यांश क्र. 4
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया 7
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया 8

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कृति 2 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए :
(1) कनुप्रिया कनु से इनकी तरह सब कुछ समझना चाहती है सार्थकता – ………………………………
(2) कनुप्रिया की तन्मयता के गहरे क्षण – ………………………………
(3) कनुप्रिया के लिए वे सारे शब्द तब अर्थहीन हैं – ………………………………
उत्तर :
(1) कनुप्रिया कनु से इनकी तरह सब कुछ समझना चाहती है सार्थकता – अर्जुन की तरह।
(2) कनुप्रिया की तन्मयता के गहरे क्षण – रँगे हुए अर्थहीन आकर्षक शब्द।
(3) कनुप्रिया के लिए वे सारे शब्द तब अर्थहीन हैं – जब वे कनु के काँपते अधरों से नहीं निकलते।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘युद्ध विनाश एवं शांति विकास का कारण होता है’ इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
युद्ध कोई नहीं चाहता, क्योंकि युद्ध का परिणाम बहुत भयानक होता है। लेकिन कभी-कभी स्थितियाँ ऐसी हो जाती हैं कि न चाहकर भी युद्ध करना पड़ता है। युद्ध में दोनों पक्षों की भारी क्षति होती है। अनेक सैनिक मारे जाते हैं, जिनके कारण अनेक और अस्त्र-शस्त्रों की व्यवस्था करने में भारी आर्थिक क्षति होती है। विकास कार्यों में लगने वाला धन युद्ध के खर्च में लग जाता है। इससे देश का आर्थिक ढाँचा चरमरा जाता है।

युद्ध का परिणाम आने वाली पीढ़ियों को वर्षों तक भोगना पड़ता है। किसी देश के लिए शांति का समय विकास का समय होता है। इससे युद्ध पर होने वाले अनावश्यक खर्च से बचत होती है। देश का धन विकास कार्यों पर खर्च होता है। इसका लाभ देश की जनता को मिलता है।

इससे शासक वर्ग और शासित जनता दोनों खुशहाल होते हैं। रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं और लोग संपन्न बनते हैं। युद्ध और शांति एक-दूसरे के विरोधी हैं। इस तरह युद्ध से विनाश और शांति से विकास होता है।

पद्यांश क्र. 5
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कारण लिखिए :
कन का तेज कनुप्रिया के मूर्च्छित संवेदन को धधका रहा है – ………………………………………..
उत्तर :
कनु का तेज कनुप्रिया के मूर्च्छित संवेदन को धधका रहा है – क्योंकि वह कनु को अपलक देख रही है और उनके हर शब्द को वह अँजुरी बनाकर बूंद-बूंद उन्हें पी रही है।

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प्रश्न 2.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया 9
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 13 कनुप्रिया 10

कृति 2 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए :
(1) कनु के फूलों की तरह झरते हुए शब्द कनुप्रिया को इस तरह सुनाई पड़ते हैं – ………………………………………..
(2) कनुप्रिया के लिए कनु के सभी शब्दों के केवल एक अर्थ – ………………………………………..
उत्तर :
(1) राधन्, राधन्, राधन्।
(2) मैं … मैं … मैं …।

प्रश्न 2.
कृति पूर्ण कीजिए : जब कनु राधा को समझाते हैं, तो उसे यह लगता है –
(1) ………………………………………..
(2) ………………………………………..
(3) ………………………………………..
(4) ………………………………………..
उत्तर :
(1) जैसे युद्ध रुक गया है।
(2) जैसे सेनाएँ स्तब्ध खड़ी रह गई हैं।
(3) जैसे इतिहास की गति रुक गई है।
(4) समझाया जाना उसे (राधा को) अच्छा लगता है।

रसास्वादन अर्थ के आधार पर

प्रश्न 1.
‘कनुप्रिया में लेखक ने राधा के मन की व्यथा का सुंदर चित्रण किया है’ इस कथन के आधार पर कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
डॉ. धर्मवीर भारती लिखित काव्य ‘कनुप्रिया’ आधुनिक मूल्यों वाला नया काव्य है। महाभारत की पृष्ठभूमि पर लिखी गई इस कृति में कनुप्रिया यानी राधा के मानसिक संघर्ष के प्रसंग व्यक्त हुए हैं। कवि ने राधा के माध्यम से कृष्ण को संबोधित करते हुए उनसे कई प्रश्न पुछवाए और उनके जवाब भी राधा से दिलवाए हैं। इस काव्य में कई प्रसंग बहुत सुंदर ढंग से पिरोए गए हैं।

अवचेतन मन में बैठी राधा चेतनास्थित राधा से कहती है कि ‘वह आम्र की डाल जिसका सहारा लेकर कृष्ण वंशी बजाया करते थे अब काट डाली जाएगी, क्योंकि वह कृष्ण के सेनापतियों के रथों की ध्वजाओं में अटकती है।’ या ‘चारों दिशाओं से, उत्तर को उड़-उड़ कर जाते हुए, गिद्धों को क्या तुम बुलाते हो (जैसे बुलाते थे भटकी हुई गायों को)’। इन पंक्तियों में कवि ने राधा के अपने मन की व्यथा व्यक्त की है।

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कवि ने नई कविता के मुक्त छंदों में सीधे-सादे सरल शब्दों में राधा के मन की बात कही है। प्रस्तुत कविता में प्रसाद गुण की प्रमुखता है और समूचे काव्य में अतुकांत छंदों का प्रयोग किया गया है, जो नई कविता की अपनी विशेषता है।

कनुप्रिया Summary in Hindi

कनुप्रिया कवि का परिचय

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कनुप्रिया कवि का नाम :
डॉ. धर्मवीर भारती। (जन्म 25 दिसंबर, 1926; निधन 4 सितंबर, 1997.)

कनुप्रिया प्रमुख कृतियाँ :
गुनाहों का देवता, सूरज का सातवाँ घोड़ा (उपन्यास); सात गीत वर्ष, ठंडा लोहा, कनुप्रिया (कविता संग्रह), मुर्दो का गाँव, चाँद और टूटे हुए लोग, ऑस्कर वाइल्ड की कहानियाँ, बंद गली का आखिरी मकान (कहानी संग्रह), नदी प्यासी थी (एकांकी), अंधा युग, सृष्टि का आखिरी आदमी (काव्य नाटक), सिद्ध साहित्य (साहित्यिक समीक्षा), एक समीक्षा, मानव मूल्य और साहित्य, कहानी अकहानी, पश्यंती (निबंध) आदि।

कनुप्रिया विशेषता :
आधुनिक काल के रचनाकारों में डॉ. धर्मवीर भारती मूर्धन्य साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। ‘कनुप्रिया’ आपकी अनोखी और अद्भुत कृति है। डॉ. धीरेंद्र वर्मा के निर्देशन में सिद्ध साहित्य’ पर शोध प्रबंध, जिसका हिंदी साहित्य अनुसंधान के इतिहास में विशेष स्थान है। टाइम्स ऑफ इंडिया पब्लिकेशन के प्रकाशन ‘धर्मयुग’ के वर्षों तक संपादक। आपको पद्मश्री, व्यास सम्मान तथा कई अन्य राष्ट्रीय पुरस्कारों से अलंकृत किया गया है।

कनुप्रिया विधा :
पद्य (नई कविता)।

कनुप्रिया विषय प्रवेश :
‘कनुप्रिया’ राधा और कृष्ण के प्रेम और महाभारत की कथा से संबंधित कृति है। कृति में बताया गया है कि प्रेम सर्वोपरि है और युद्ध का अवलंब करना निरर्थक है। राधा कृष्ण से महाभारत युद्ध को लेकर कई प्रश्न पूछती है। महाभारत युद्ध में हुई जीत-हार, कृष्ण की भूमिका, युद्ध का उद्देश्य, युद्ध की भयावहता, सैन्य संहार आदि बातों से संबंधित राधा का कृष्ण से हुआ तर्कसंगत संवाद इस काव्य में चार चाँद लगा देता है।

कनुप्रिया कविता का सरल अर्थ

सेतु : मैं

राधा कहती है, “हे कनु (कृष्ण) नीचे की घाटी से ऊपर के शिखरों पर जिसे जाना था, वह चला गया। (लेकिन बलि मेरी ही चढ़ी) मेरे ही सिर पर पैर रख मेरी बाहों से इतिहास तुम्हें ले गया।” हे कनु, इस लीला क्षेत्र से उठकर युद्ध क्षेत्र तक की अलंघ्य दूरी तय करने के लिए क्या तुमने मुझे ही सेतु बना दिया?

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अब इन शिखरों और मृत्यु-घाटियों के बीच बने इस सोने के पतले और गुंथे हुए तारों से बने पुल की तरह मेरा यह सेतु-रूपी शरीर काँपता हुआ निर्जन और निरर्थक रह गया है। जिसे जाना था वह चला गया।

अमंगल छाया

अवचेतन मन में बैठी हुई राधा अपने चेतन मन वाली राधा को संबोधित करते हुए कहती है, हे राधा! यमुना के घाट से ऊपर आते समय कदंब के पेड़ के नीचे खड़े कनु को देवता समझकर प्रणाम करने के लिए तुम जिस मार्ग से लौटती थी, हे बावरी! आज तुम उस मार्ग से होकर मत लौटना।

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ये उजड़े हुए कुंज, रौंदी हुई लताएँ, आकाश में छाई हुई धूल, क्या तुम्हें यह आभास नहीं दे रहे हैं कि आज उस मार्ग से कृष्ण की अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ युद्ध में भाग लेने जा रही हैं!

हे बावरी! आज तू उस मार्ग से दूर हटकर खड़ी हो जा। लताकुंज की ओट में अपने घायल प्यार को छुपा ले। क्योंकि आज इस गाँव से द्वारिका की उन्मत्त सेनाएँ युद्ध के लिए जा रही हैं।

हे राधा! मैं मानती हूँ कि कन्हैया सबसे अधिक तुम्हारा अपना है। मैं मानती हूँ कि तुम कृष्ण के रोम-रोम से परिचित हो। मैं मानती हूँ कि ये असंख्य सैनिक तुम्हारे उसके (कन्हैया के) हैं, पर तू यह जान ले कि ये सैनिक तुझे बिलकुल नहीं पहचानते हैं। इसलिए हे बावरी! इस मार्ग से दूर हट जा।

यह आम की डाल तुम्हारे कन्हैया की अत्यंत प्रिय थी। जब तक तू (यहाँ) नहीं आती थी, सारी शाम कन्हैया इस डाल पर टिककर बंशी में तेरा नाम भर-भरकर तुम्हें टेरा करता था।

आज यह आम की डाल सदा-सदा के लिए काट दी जाएगी। इसका कारण यह है कि कृष्ण के सेनापतियों के तेज गति वाले रथों की ऊँची-ऊँची पताकाओं में यह डाल उलझती है… अटकती है। इतना ही नहीं, रास्ते के किनारे यह छायादार पवित्र अशोक का पेड़ भी आज टुकड़े-टुकड़े कर दिया जा सकता है। अगर इस गाँव के लोग सेनाओं के स्वागत में (इस वृक्ष की पत्तियों के) तोरण नहीं बनाएँगे, तो शायद यह गाँव उजाड़ दिया जाएगा।

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अरे पगली! दुखी क्यों होती है। क्या हुआ, यदि आज के कृष्ण तुम्हारे साथ पहले बिताए हुए तन्मयता के गहरे क्षणों को भूल चुक हैं।

हे राधे! तू उदास क्यों होती है कि इस भीड़भाड़ में तुम्हें और तुम्हारे प्यार को पहचानने वाला कोई नहीं है।

राधे, तुम्हें तो गर्व होना चाहिए। क्योंकि किसके महान प्रेमी के पास अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ हैं। (केवल तुम्हारे ही प्रेमी के पास न!)

एक प्रश्न

राधा अपने कनु (कृष्ण) को संबोधित करते हुए कहती है कि मेरे महान कनु, मान लो… क्षणभर के लिए मैं इस बात को स्वीकार कर लूँ कि मेरे वे तन्मयता वाले सारे गहरे क्षण केवल मेरे भावावेश थे… मेरी कोमल कल्पनाएँ थीं… केवल बनावटी, निरर्थक और आकर्षक शब्द थे।

मान लो, एक क्षण के लिए मैं यह स्वीकार कर लूँ कि तुम्हारा महाभारत का यह युद्ध पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म, न्याय-दंड तथा क्षमा-शील वाला है। इसलिए इस युद्ध का होना इस युग की सच्चाई है। फिर भी कनु, मैं क्या करूँ? मैं तो वही तुम्हारी बावरी मित्र हूँ।

मुझे तो केवल उतना ही ज्ञान मिला है, जितना तुमने मुझे दिया है। तुम्हारे दिए हुए समस्त ज्ञान को समेट कर भी मैं तुम्हारे इतिहास, तुम्हारे उदात्त और महान कार्यों को समझ नहीं पाई हूँ।

कनु, अपनी यमुना नदी, जिसमें मैं अपने आप को घंटों निहारा करती थी, अब उसमें हथियारों से लदी हुई असंख्य नौकाएँ रोज-रोज न जाने कहाँ जाती हैं? नदी की धारा में बह-बह कर आने वाले टूटे हुए रथ और फटी हुई पताकाएँ किसकी हैं?

हे कनु, युद्ध क्षेत्र से हारी हुई सेनाएँ, जीती हुई सेनाएँ, गगनभेदी युद्ध घोष, विलाप के स्वर और युद्ध क्षेत्र से भागे हुए सैनिकों के मुँह से सुनी हुई युद्ध की अकल्पनीय और अमानवीय घटनाएँ, … क्या यह सब सार्थक है? गिद्ध जो चारों दिशाओं से उड़-उड़ कर उत्तर : दिशा की ओर जा रहे हैं, हे कनु, क्या इन्हें तुम बुलाते हो? (जैसे तुम भटकी हुई गायों को बुलाते थे।)

हे कनु, मैंने अब तक तुमसे जितनी समझ पाई है, उस समझ को बटोर कर भी मैं यह जान पाई हूँ कि और भी बहुत कुछ है तुम्हारे पास, जिसका कोई भी अर्थ मेरी समझ में नहीं आता।

हे कनु, जिस तरह तुमने युद्ध क्षेत्र में अर्जुन को युद्ध का प्रयोजन और उसकी सार्थकता समझाई थी, वैसे मुझे भी समझा दो कि सार्थकता क्या है? राधा कहती है कि मान लो कि मेरी तन्मयता के गहरे क्षण रंगे हुए, अर्थहीन परंतु आकर्षक शब्द थे, तो तुम्हारी दृष्टि से सार्थक क्या है? इस सार्थकता को तुम मुझे कैसे समझाओगे?

शब्द – अर्थहीन

…शब्द, शब्द, शब्द! राधा कहती है, मेरे लिए इन शब्दों की कोई कीमत नहीं है। हे कनु, जो शब्द मेरे पास बैठकर तुम्हारे काँपते हुए होठों से नहीं निकलते वे सभी शब्द मेरे लिए अर्थहीन हैं, निरर्थक हैं। वह कहती हैं कि कर्म, स्वधर्म, निर्णय और दायित्व जैसे शब्द मैंने भी गली-गली में सुने हैं। अर्जुन ने इन शब्दों में भले ही कुछ पाया हो, हे कनु! इन शब्दों को सुनकर मैं कुछ भी नहीं पायी। मैं रास्ते में ठहरकर तुम्हारे उन होठों की कल्पना करती हूँ । जिन होठों से तुमने प्रणय के शब्द पहली बार कहे होंगे।

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मैं कल्पना करती हूँ कि अर्जुन की जगह मैं हूँ और मेरे मन में मोह उत्पन्न हो गया है। मुझे कुछ पता नहीं है, युद्ध कौन-सा है और मैं किसके पक्ष में हूँ। मुझे कुछ पता नहीं कि समस्या क्या है और लड़ाई किस बात की है। लेकिन मेरे मन में मोह उत्पन्न हो गया है। क्योंकि तुम्हारा समझाना मुझे बहुत अच्छा लगता है। जब तुम मुझे समझा रहे हो तो सेनाएँ स्तब्ध खड़ी रह गई हैं और इतिहास की गति रुक गई है। और तुम मुझे समझा रहे हो।

तुम कर्म, स्वधर्म, निर्णय, दायित्व जैसे जिन शब्दों को कहते हो, ये मेरे लिए बिलकुल अर्थहीन हैं। कनु, मैं इन सबसे हट करके एकटक तुम्हें देख रही हूँ। तुम्हारे प्रत्येक शब्द को अँजुरी बनाकर मैं बूंद-बूंद तुम्हें पी रही हूँ। तुम्हारा तेज, तुम्हारा व्यक्तित्व जैसे मेरे शरीर के एक-एक मूर्छित संवेदन को दहका रहा है। लगता है तुम्हारे जादू भरे होठों से शब्द रजनीगंधा के फूलों की तरह झर रहे हैं – एक के बाद एक।

कनु कनु, स्वधर्म, निर्णय और दायित्व आदि जो शब्द तुम्हारे मुँह से निकलते हैं, वे शब्द मुझ तक आते-आते बदल जाते हैं। मुझे ये शब्द राधन्, राधन्, राधन् के रूप में सुनाई देते हैं। तुम्हारे द्वारा कहे जाने वाले शब्द असंख्य हैं, उनकी गणना नहीं की जा सकती। पर मेरे लिए उनका अर्थ केवल एक ही है – मैं … मैं … केवल मैं। है फिर बताओ कनु, इन शब्दों से तुम मुझे इतिहास कैसे समझाओगे!