Class 12 Hindi Chapter 4 Adarsh Badla Question Answer Maharashtra Board

Std 12 Hindi Chapter 4 Adarsh Badla Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 4 आदर्श बदला Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 4 आदर्श बदला Questions And Answers

12th Hindi Guide Chapter 4 आदर्श बदला Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.

(अ) कृति पूर्ण कीजिए :
साधुओं की एक स्वाभाविक विशेषता – ………………………………
उत्तर :
एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहना और भजन तथा भक्तिगीत गाते-बजाते रहना।

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(आ) लिखिए :

(a) आगरा शहर का प्रभातकालीन वातावरण –
………………………………………………………………
………………………………………………………………
उत्तर :
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(b) साधुओं की मंडली आगरा शहर में यह गीत गा रही थी –
………………………………………………………………
………………………………………………………………
उत्तर :
सुमर-सुमर भगवान को,
मूरख मत खाली छोड़ इस मन को।

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
लिंग बदलिए:

(1) साधु
(2) नवयुवक
(3) महाराज
(4) दास
उत्तर :
(1) साधु – साध्वी
(2) नवयुवक – नवयुवती
(3) महाराज – महारानी
(4) दास – दासी।

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.

(अ) ‘मनुष्य जीवन में अहिंसा का महत्त्व’, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
हिंसा क्रूरता और निर्दयता की निशानी है। इससे किसी.। का भला नहीं हो सकता। इस संसार के सभी जीव ईश्वर की संतान हैं और समान हैं। सृष्टि में सबको जीने का अधिकार है। कोई कितना भी शक्तिमान क्यों न हो, किसी को उससे उसका जीवन छीनने का अधिकार नहीं है। जब कोई किसी को जीवन दे नहीं सकता तब वह किसी का जीवन ले भी नहीं सकता। बड़े-बड़े मनीषियों और महापुरुषों ने अहिंसा को ही धर्म कहा है – अहिंसा परमोधर्मः।

अहिंसा का अस्त्र सबसे बड़ा माना जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अहिंसा के बल पर शक्तिशाली अंग्रेज सरकार को झुका दिया था और अंग्रेज सरकार देश को आजाद करने पर विवश हो गई थी। जीवन का मूलमंत्र ‘जियो और जीने दो’ है। किसी के प्रति ईर्ष्या की भावना रखना या किसी का नुकसान करना भी एक प्रकार की हिंसा है। इससे हमें बचना चाहिए।

(आ) ‘सच्चा कलाकार वह होता है जो दूसरों की कला का सम्मान करता हैं, इस कथन पर अपना मत व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
कलाकार को कोई कला सीखने के लिए गुरु के सान्निध्य में रह कर वर्षों तक तपस्या करनी पड़ती है। कला की छोटीछोटी बारीक बातों की जानकारी करनी पड़ती है। इसके साथ ही निरंतर रियाज करना पड़ता है। गुरु से कला की जानकारियाँ प्राप्त करते-करते अपनी कला में वह प्रवीण होता है।

सच्चा कलाकार किसी कला को सीखने की प्रक्रिया में होने वाली कठिनाइयों से परिचित होता है। इसलिए उसके दिल में अन्य कलाकारों के लिए सदा सम्मान की भावना होती है। वह छोटे-बड़े हर कलाकार को समान समझता है और उनकी कला का सम्मान करता है। सच्चे कलाकार का यही धर्म है। इससे कला को प्रोत्साहन मिलता है और वह फूलती-फलती है।

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पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न –

प्रश्न 4.

(अ) ‘आदर्श बदला’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अपने पिता को मृत्युदंड दिए जाने पर बैजू विक्षिप्त हो गया था। और अपनी कुटिया में विलाप कर रहा था। उस समय बाबा हरिदास ने उसकी कुटिया में आकर उसे ढाढ़स बंधाया था। तब बालक बैजू ने बाबा को बताया था कि उसे अब बदले की भूख है। वे उसकी इस भूख को मिटा दें। बाबा हरिदास ने उसे वचन दिया था कि वे उसे ऐसा हथियार देंगे, जिससे वह अपने पिता की मौत का बदला ले सकेगा।

बाबा हरिदास ने बारह वर्षों तक बैजू को संगीत की हर प्रकार की बारीकियाँ सिखाकर उसे पूर्ण गंधर्व के रूप में तैयार कर दिया। मगर इसके साथ ही उन्होंने उससे यह वचन भी ले लिया कि वह इस राग विद्या से किसी को हानि न पहुँचाएगा।

इसके बाद वह दिन भी आया जब बैजू आगरा की सड़कों पर गाता हुआ निकला और उसके पीछे उसकी कला के प्रशंसकों की अपार भीड़ थी। आगरा में गाने के नियम के अनुसार उसे बादशाह के समक्ष पेश किया गया और शर्त के अनुसार तानसेन से उसकी संगीत प्रतियोगिता हुई, जिसमें उसने तानसेन को बुरी तरह परास्त कर दिया। तानसेन बैजू बावरा के पैरों पर गिरकर अपनी जान की भीख माँगने लगा। इस मौके पर बैजू बावरा उससे अपने पिता की मौत का बदला लेकर उसे प्राणदंड दिलवा सकता था। पर उसने ऐसा नहीं किया। बैजू ने तानसेन की जान बख्श दी।

उसने उससे केवल इस निष्ठुर नियम को उड़वा देने के लिए कहा, जिसके अनुसार किसी को आगरे की सीमाओं में गाने और तानसेन की जोड़ का न होने पर मरवा दिया जाता था। इस तरह बैजू बावरा ने तानसेन का गर्व नष्ट कर उसे मुँह की खिलाकर उससे अनोखा बदला लेकर उसे श्रीहीन कर दिया था। यह अपनी तरह का आदर्श बदला था। समूची कहानी इस बदले के आसपास घूमती है। इसलिए ‘आदर्श बदला’ शीर्षक इस कहानी के उपयुक्त है।

(आ) ‘बैजू बावरा संगीत का सच्चा पुजारी है’, इस विचार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
सच्चा कलाकार उसे कहते हैं, जिसे अपनी कला से सच्चा लगाव हो। वह अपने गुरु की कही हुई बातों पर अमल करे तथा गुरु से विवाद न करे। इसके अलावा उसे अपनी कला पर अहंकार न हो। बैजू बावरा ने बारह वर्ष तक बाबा हरिदास से संगीत सीखने की कठिन तपस्या की थी।

वह उनका एक आज्ञाकारी शिष्य था। उसकी संगीत शिक्षा पूरी हो जाने के बाद बाबा हरिदास ने जब उससे यह प्रतिज्ञा करवाई कि वह इस राग विद्या से किसी को हानि नहीं पहुँचाएगा, तो भी उसने रक्त का यूंट पी कर इस गुरु आदेश को स्वीकार कर लिया था, जबकि उसे मालूम था कि इससे उसके हाथ में आई हुई प्रतिहिंसा की छुरी कुंद कर दी गई थी। फिर भी गुरु के सामने उसके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला।

बैजू बावरा की संगीत कला की धाक दूर-दूर तक फैल गई थी। है उसके संगीत में जादू का असर था। बैजू बावरा को संगीत ज्ञान है पर तानसेन की तरह कोई अहंकार नही था। बल्कि इसके विपरीत उसके हृदय में दया की भावना थी। गानयुद्ध में तानसेन को पराजित करने पर भी वह अपनी जीत और संगीत का प्रदर्शन नहीं करता।

बल्कि वह तानसेन को जीवनदान दे देता है। वह उससे केवल यह माँग करता है कि वह इस नियम को खत्म करवा दे कि जो कोई आगरा की सीमा के अंदर गाए, वह अगर तानसेन की जोड़ का न हो, तो मरवा दिया जाए। उसकी इस माँग में भी गीत-संगीत की ५ रक्षा करने की भावना निहित है।

इस प्रकार इसमें कोई संदेह नहीं है कि बैजू बावरा संगीत का सच्चा पुजारी था।

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साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.

(अ) सुदर्शन जी का मूल नाम : ……………………………………
उत्तर :
सुदर्शन जी का मूल नाम बदरीनाथ है।

(आ) सुदर्शन ने इस लेखक की लेखन परंपरा को आगे बढ़ाया है : ……………………………………
उत्तर :
सुदर्शन ने मुंशी प्रेमचंद की लेखन परंपरा को आगे बढ़ाया है।

रस

अद्भुत रस : जहाँ किसी के अलौकिक क्रियाकलाप, अद्भुत, आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर हृदय में विस्मय अथवा आश्चर्य का भाव जाग्रत होता है; वहाँ अद्भुत रस की व्यंजना होती है।

उदा. –

(१) एक अचंभा देखा रे भाई।
ठाढ़ा सिंह चरावै गाई।
पहले पूत पाछे माई।
चेला के गुरु लागे पाई।।

(२) बिनु-पग चलै, सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म कर, विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु वाणी वक्ता, बड़ जोगी।।

शृंगार रस : जहाँ नायक और नायिका अथवा स्त्री-पुरुष की प्रेमपूर्ण चेष्टाओं, क्रियाकलापों का शृंगारिक वर्णन हो; वहाँ शृंगार रस की व्यंजना होती है।

उदा. –
(१) राम के रूप निहारति जानकी, कंकन के नग की परछाही,
यातै सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाही।

(२) कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन में करत हैं, नैननु ही सौं बात।।

शांत रस : (निर्वेद) जहाँ भक्ति, नीति, ज्ञान, वैराग्य, धर्म, दर्शन, तत्त्वज्ञान अथवा सांसारिक नश्वरता संबंधी प्रसंगों का वर्णन हो; वहाँ शांत रस उत्पन्न होता है।

उदा. –
(१) माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर।
कर का मनका डारि कै, मन का मनका फेर।।

(२) माटी कहै कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहे।।

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भक्ति रस : जहाँ ईश्वर अथवा अपने इष्ट देवता के प्रति श्रद्धा, अलौकिकता, स्नेह, विनयशीलता का भाव हृदय में उत्पन्न होता है; वहाँ भक्ति रस की व्यंजना होती है।

उदा. –
(१) तू दयालु दीन हौं, तू दानि हौं भिखारि।
हौं प्रसिद्ध पातकी, तू पाप पुंजहारि।

(२) समदरसी है नाम तिहारो, सोई पार करो,
एक नदिया इक नार कहावत, मैलो नीर भरो,
एक लोहा पूजा में राखत, एक घर बधिक परो,
सो दुविधा पारस नहीं जानत, कंचन करत खरो।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 4 आदर्श बदला Additional Important Questions and Answers

गद्यांश क्र. 1
कृतिपत्रिका के प्रश्न 1 (अ) तथा प्रश्न 1 (आ) के लिए।

प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :
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उत्तर :
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प्रश्न 2.
साधु इस तरह गाते थे गीत –
(1) ……………………………………..
(2) ……………………………………..
(3) ……………………………………..
(4) ……………………………………..
उत्तर :
(1) कोई ऊँचे स्वर में गाता था।
(2) कोई मुँह में गुनगुनाता था।
(3) सब अपने राग में मगन थे।
(4) उन्हें सुर-ताल की परवाह नहीं थी।

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प्रश्न 3.
तानसेन द्वारा बनवाया गया कानून –
(1) ……………………………………..
(2) ……………………………………..
उत्तर :
(1)जो आदमी राग-विद्या में तानसेन की बराबरी न कर सके, है वह आगरे की सीमा में गीत न गाए।
(2) ऐसा आदमी जो आगरे की सीमा में गीत गाए, उसे मौत की सजा दी जाए।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के लिंग बदलकर लिखिए :
(1) पत्ते – …………………………………..
(2) स्वामी – …………………………………..
(3) राग – …………………………………..
(4) आदमी – …………………………………..
उत्तर :
(1) पत्ते – पत्तियाँ
(2) स्वामी – स्वामिनी
(3) राग – रागिनी (4) आदमी – औरत

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
साधु-संतों को राग विद्या की जानकारी न होने के कारण मौत की सजा दिया जाना क्या उचित है? इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
साधु-संत दीन-दुनिया से विरक्त ईश्वर आराधना में लीन रहने वाले लोग होते हैं। वे अपने साथी साधु-संतों से सुने-सुनाए भजन-कीर्तन अपने ढंग से गाते हैं। उन्हें राग, छंद और संगीत का समुचित ज्ञान नहीं होता। भजन भी वे अपनी आत्म-संतुष्टि और ईश्वर आराधना के लिए गाते हैं।

उनका उद्देश्य उसे राग में गा कर किसी को प्रसन्न करना नहीं होता। आगरा शहर में बिना सुर-ताल की परवाह किए हुए और बादशाह के कानून से अनभिज्ञ ये साधु गाते हुए जा रहे थे। इन्हें इस जुर्म में पकड़ लिया गया था कि वे आगरा की सीमा में गाते हुए जा रहे हैं। अकबर के मशहूर रागी तानसेन ने यह नियम बनवा दिया था कि जो आदमी राग विद्या में उसकी बराबरी न कर सके वह आगरा की सीमा में न गाए। यदि गाए तो उसे मौत की सजा दी जाए।

अतः इन्हें मौत की सजा दे दी गई। इस तरह साधुओं को मौत की सजा देना उनके साथ बिलकुल अन्याय है। इस तरह के कानून से तानसेन के अभिमान की बू आती है।

गद्यांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
संजाल पूर्ण कीजिए :

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उत्तर :
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उत्तर :
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प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :

(1) बैजू ने हरिदास के चरणों में और ज्यादा लिपट कर यह कहा –
(i) ……………………………………
(ii) ……………………………………
(iii) ……………………………………
(iv) ……………………………………
उत्तर :
(i) महाराज (मेरी) शांति जा चुकी है।
(ii) अब मुझे बदले की भूख है।
(iii) अब मुझे प्रतिकार की प्यास है।
(iv) आप मेरी प्यास बुझाइए।

(2)
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उत्तर :
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(3)
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उत्तर :
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प्रश्न 3.
आकृति पूर्ण कीजिए:
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उत्तर :
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प्रश्न 4.
बैजू ने दिया बाबा हरिदास को यह वचन –
(i) ……………………………………
(ii) ……………………………………
(iii) ……………………………………
(iv) ……………………………………
उत्तर :
(i) मैं बारह जीवन देने को तैयार हूँ।
(ii) मैं तपस्या करूँगा।
(iii) मैं दुख झेलूँगा, मैं मुसीबतें उठाऊँगा।
(iv) मैं अपने जीवन का एक-एक क्षण आपको भेंट कर दूंगा।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के लिंग बदल कर लिखिए :
(1) बेटा – ……………………………………
(2) बच्चा – ……………………………………
(3) सेवक – ……………………………………
(4) सूना – ……………………………………
उत्तर :
(1) बेटा – बेटी
(2) बच्चा – बच्ची
(3) सेवक – सेविका
(4) आखिरी = अंतिम।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) संसार = ……………………………………
(2) तबाह = ……………………………………
(3) चरण = ……………………………………
(4) आखिरी = ……………………………………
उत्तर :
(1) संसार = दुनिया
(2) तबाह = बर्बाद
(3) चरण = पाँव
(4) सूना – सूनी।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘बिनु गुरु होय न ज्ञान’ इस कथन के बारे में 40 से 50 शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य को बचपन से लेकर अंतिम समय तक विभिन्न . कार्यों को पूर्ण करने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। यह ज्ञान विभिन्न रूपों में हमें किसी-न-किसी गुरु से मिलता है। बचपन में बच्चे का पालन-पोषण कर उसे बड़ा करके बोलने-चालने और बोली-भाषा सिखाने का काम माता करती है।

उस समय वह उसकी गुरु होती है। बड़े होने पर विद्यालय में शिक्षकों से बच्चे को ज्ञान की प्राप्ति होती है। तरह-तरह की कलाओं को सीखने के लिए गुरु से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। गुरु से ज्ञान प्राप्त करके ही कलाकार नाम कमाते हैं।

प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट के क्षेत्र में महारत हासिल करने में उनके क्रिकेट गुरु रमाकांत आचरेकर का विशेष योगदान रहा है।

इसी तरह छत्रपति शिवाजी महाराज की सफलता में उनके गुरु का काफी योगदान रहा है। गुरु ही हमें सही या गलत में भेद करना सिखाते हैं। वे ही भूले-भटके हओं को सही राह दिखाते हैं। इस तरह गुरु की महिमा अपरंपार है।

गद्यांश क्र. 3
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए :
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उत्तर :
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प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए : जवान बैजू के संगीत की विशेषताएँ –
(1) …………………………
(2) …………………………
(3) …………………………
(4) …………………………
उत्तर :
(1) उसके स्वर में जादू था और तान में आश्चर्यमयी मोहिनी थी।
(2) गाता था तो पत्थर तक पिघल जाते थे।
(3) पशु-पंछी तक मुग्ध हो जाते थे।
(4) लोग सुनते थे और झूमते थे तथा वाह-वाह करते थे।

प्रश्न 3.
बैजू की राग विद्या की शिक्षा पूरी होने पर हरिदासजी ने यह कहा –
(1) …………………………
(2) …………………………
उत्तर :
(1) वत्स! मेरे पास जो कुछ था, वह मैंने तुझे दे डाला।
(2) अब तू पूर्ण गंधर्व हो गया है।

प्रश्न 4.
संजाल पूर्ण कीजिए :
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उत्तर :
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कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :
(1) उजड़ना x ……………………………..
(2) बूढ़े x ……………………………..
(3) कृतज्ञता x ……………………………..
(4) उपकार x ……………………………..
उत्तर :
(1) उजड़ना – बसना
(3) कृतज्ञता – कृतघ्नता
(2) बूढ़े x जवान
(4) उपकार x अपकार।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘कृतज्ञता मनुष्य का उत्तम गुण है’ इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपना मत लिखिए।
उत्तर :
कृतज्ञता का अर्थ है अपने साथ किसी के द्वारा किए गए किसी अच्छे कार्य के लिए व्यक्ति का एहसान मानना। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कभी-न-कभी ऐसा समय आता है, जब उसे किसी रूप में किसी व्यक्ति से छोटी-बड़ी मदद लेनी पड़ती है अथवा किसी का एहसान लेना पड़ता है। उस समय इस प्रकार की मदद अथवा उपकार करने वाला व्यक्ति हमें किसी फरिश्ते से कम नहीं लगता।

ऐसे समय हमारे मन में उसके प्रति श्रद्धा और सम्मान की भावना जाग उठती है। इसे हम एहसान करने वाले के पैर छू करः अथवा उसे धन्यवाद दे कर प्रदर्शित करते हैं। इतना ही नहीं हम सदा उसके एहसान को याद रखते हैं। कृतज्ञता व्यक्त करने से एहसान करने वाले व्यक्ति को भी प्रसन्नता होती है।

गद्यांश क्र. 4
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए :

(1) सिपाहियों ने साधु को इस रूप में देखा –
(i) ………………………………..
(ii) ………………………………..
(iii) ………………………………..
(iv) ………………………………..
उत्तर :
(i) साधु के मुँह से तेज की किरणें फूट रही थीं। .
(ii) उन किरणों में जादू था, मोहिनी थी और मुग्ध करने की शक्ति थी।
(iii) उसके मुँह पर सरस्वती का वास था।
(iv) उसके मुँह से संगीत की मधुर ध्वनि की धारा बह रही थी।

(2)
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उत्तर :
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प्रश्न 2.
कृति पूर्ण कीजिए :
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उत्तर :
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प्रश्न 3.
लिखिए : तानसेन ने नवयुवक (साधु) से यह कहा –
(1) ………………………………..
(2) ………………………………..
(3) ………………………………..
(4) ………………………………..
उत्तर :
(1) शायद आपके सिर पर मौत सवार है।
(2) आप नियम जानते हैं न?
(3) नियम कड़ा है और मेरे दिल में दया नहीं है।
(4) मेरी आँखें दूसरों की मौत को देखने के लिए हर समय तैयार हैं।

प्रश्न 4.
आकृति पूर्ण कीजिए :
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उत्तर :
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कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के वचन बदल कर लिखिए :
(1) हथकड़ियाँ – ………………………………………
(2) आँखें – ………………………………………
(3) बाजारों – ………………………………………
(4) श्रोता – ………………………………………
उत्तर :
(1) हथकड़ियाँ – हथकड़ी
(2) आँखें – आँख
(3) बाजारों – बाजार
(4) श्रोताँ – श्रोतागण।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘घमंड मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है’ इस विषय पर अपने विचार 40 से 50 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य के अंदर सद् और असद् दो प्रवृत्तियाँ होती हैं। सद् का अर्थ है अच्छा और असद् का अर्थ है जो अच्छा न हो यानी बुरा। घमंड मनुष्य की बुरी वृत्ति है। घमंडी व्यक्ति को अच्छे और बुरे का विवेक नहीं होता। वह अपने घमंड के नशे में चूर रहता है और अपना भला-बुरा भी भूल जाता है।

घमंडी व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास तब होता है, जब उसकी की गई गलतियों का परिणाम उसके सामने आता है। घमंड का परिणाम बहुत बुरा होता है। इसके कारण बड़े-बड़े ज्ञानी पुरुषों को भी मुँह की खानी पड़ती है।

रावण जैसा महाज्ञानी पंडित भी अपने घमंड के कारण अपने कुल परिवार सहित नष्ट हो गया। घमंड मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उसकी मंजिल है दारुण दुख। इसलिए मनुष्य को घमंड का मार्ग त्याग कर प्रेम और सद्गुण का मार्ग अपनाना चाहिए।

गद्यांश क्र. 5
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
(a)
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उत्तर :
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(b)
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उत्तर :
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प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :
(1) बैजू बावरा ने अपने सितार के पदों को हिलाया, तो यह हुआ –
(i) …………………………….
(ii) …………………………….
(iii) …………………………….
(iv) …………………………….
उत्तर :
(i) जनता ब्रह्मानंद में लीन हो गई।
(ii) पेड़ों के पत्ते तक निःशब्द हो गए।
(iii) वायु रुक गई।
(iv) सुनने वाले मंत्रमुग्धवत सुधिहीन हुए सिर हिलाने लगे।

प्रश्न 3.
बैजू बावरा की उँगलियाँ जब सितार पर दौड़ी, तब –
(i) …………………………….
(ii) …………………………….
(iii) …………………………….
(iv) …………………………….
उत्तर :
(i) तारों पर राग विद्या निछावर हो रही थी।
(ii) लोगों के मन उछल रहे थे।
(iii) लोग झूम रहे थे, थिरक रहे थे।
(iv) जैसे सारे विश्व की मस्ती वहीं आ गई थी।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्द समूहों के लिए गद्यांश में से ढूँढकर एकएक शब्द लिखिए :
(1) ब्रह्म स्वरूप के साक्षात्कार का दर्शन।
(2) जहाँ किसी प्रकार का शब्द न होता हो।
(3) जो होश से रहित हो।
(4) किसी से भी न डरने की भावना।
उत्तर :
(1) ब्रह्मानंद
(2) निःशब्द
(3) सुधिहीन
(4) निर्भयता

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गद्यांश क्र. 6
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए : गानयुद्ध-स्थल पर दर्शक यह देखकर हैरान रह गए –
(1) …………………………………………
(2) …………………………………………
(3) …………………………………………
(4) …………………………………………
उत्तर :
(1) कुछ हरिण छलाँगें मारते हुए आए और बैजू बावरा के पास खड़े हो गए।
(2) हरिण संगीत सुनते रहे, सुनते रहे।
(3) हरिण मस्त और बेसुध थे।
(4) बैजू ने सितार रखकर उनके गले में फूलमालाएँ पहनाईं तब उन्हें सुध आई और भाग खड़े हुए।

प्रश्न 2.
कृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 29
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 31

प्रश्न 3.
लिखिए : तानसेन ने इस तरह बजाया सितार –
(1) …………………………………………
(2) …………………………………………
(3) …………………………………………
(4) …………………………………………
उत्तर :
(1) पूर्ण प्रवीणता के साथ।
(2) पूर्ण एकाग्रता के साथ।
(3) वह बजाया, जो कभी न बजाया था।
(4) वह बजाया, जो कभी न बजा सकता था।

प्रश्न 4.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला 30
उत्तर :
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Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित उपसर्ग जोड़कर शब्द बनाकर लिखिए :
(1) अ – …………………………….
(2) बे – …………………………….
(3) निर् – …………………………….
(4) परा – …………………………….
उत्तर
(1) अ – असाधारण
(2) बे – बेसुध
(3) निर् – निरादर
(4) परा – पराजय

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘संगीत का प्रभाव’ विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
संगीत ऐसी कला है, जो श्रोताओं को अपनी स्वर लहरियों से आह्लादित कर देती है। संगीत एक गूढ़ विद्या है। संगीत-साधक इसमें जितनी गहराई तक जाता है, उसे उतने ही मोती मिलते हैं। संगीत का आनंद संगीत विशेषज्ञ तो उठाते ही हैं, जिन लोगों में संगीत कला की समझ नहीं होती, वे भी संगीत की स्वर लहरियों को सुन कर झूमने लगते हैं। संगीत की मधुर ध्वनि से लोग अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं। संगीत सुनने से मन प्रसन्न होता है।

संगीत तनाव कम करने में सहायक होता है और उससे मानसिक शांति मिलती है।

संगीत का प्रभाव अद्भुत होता है। उससे केवल मनुष्य ही नहीं, वातावरण, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे सभी प्रभावित होते हैं। संगीत से पौधों की वृद्धि और दुधारू पशुओं के अधिक दूध देने तक की बातें कही जाती रही हैं। गुणी संगीतकार के संगीत-वादन से वर्षा होने लगती है।

मधुर संगीत से प्रभावित होकर लोगों के मन उछलने लगते हैं, उनके मन थिरकने लगते हैं। लोग मस्ती में डूब जाते हैं। संगीत में जादू-सा प्रभाव होता है। संसार में शायद ही ऐसा कोई प्राणी होगा, जो संगीत की मधुर ध्वनि की धारा में न बह जाता हो।

गद्यांश क्र. 7
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
लिखिए : हरिण बुला पाने में असमर्थ तानसेन की बौखलाहट –
(1) ………………………………..
(2) ………………………………..
(3) ………………………………..
(4) ………………………………..
उत्तर :
(1) उसकी आँखों के सामने मौत नाचने लगी।
(2) उसकी देह पसीना-पसीना हो गई।
(3) लज्जा से उसका मुँह लाल हो गया।
(4) वह खिसिया गया।

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प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :

(a) दुबारा बैजू बावरा ने सितार पकड़ा, तो यह हुआ –
(i) …………………………………
(ii) …………………………………
(iii) …………………………………
(iv) …………………………………
उत्तर :
(i) एक बार फिर संगीतलहरी वायुमंडल में लहराने लगी।
(ii) फिर सुनने वाले संगीत-सागर की तरंगों में डूबने लगे।
(iii) हरिण बैजू बावरा के पास फिर आए।
(iv) बैजू ने (उनके गले से) मालाएँ उतार लीं और हरिण छलाँग लगाते चले गए।

(b) अकबर का निर्णय सुन कर तानसेन ने यह किया –
(i) …………………………………
(ii) …………………………………
(iii) …………………………………
(iv) …………………………………
उत्तर :
(i) काँपता हुआ उठा।
(ii) काँपता हुआ आगे बढ़ा।
(iii) काँपता हुआ बैजू बावरा के पाँव में गिर पड़ा।
(iv) उससे गिड़गिड़ाया, ‘मेरे प्राण न लो।’

(c) बैजू बावरा ने तानसेन को यह जवाब दिया –
(i) …………………………………
(ii) …………………………………
उत्तर :
(i) मुझे तुम्हारे प्राण लेने की चाह नहीं।
(ii) तुम इस नियम को उड़वा दो कि यदि आगरे की सीमा में गाने वाला तानसेन की जोड़ का न हो, तो उसे मरवा दिया जाए।

(d) बैजू बावरा ने तानसेन को यह पुरानी बात बताई –
(i) …………………………………
(ii) …………………………………
उत्तर :
(i) बारह साल पहले आपने एक बच्चे की जान बचाई (बख्शी ) थी।
(ii) आज उस बच्चे ने आपकी जान बख्शी है।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
गद्यांश में प्रयुक्त प्रत्यययुक्त शब्द ढूँढ़कर लिखिए : .
(1) ………………………………
(2) ………………………………
(3) ………………………………
(4) ………………………………
उत्तर :
(1) संगीतलहरी – संगीतलहर + ई।
(2) मालाएँ – माला + एँ।
(3) होकर – हो + कर।
(4) दीनता – दीन + ता।

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1. मुहावरे :

निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए :

(1) अगर-मगर करना।
अर्थ : टाल-मटोल करना।
वाक्य : सिपाही ने आरोपी से कहा, अगर-मगर मत करो, सीधे-सीधे मेरे साथ थाने चलो।

(2) अपना राग अलापना।
अर्थ : अपनी ही बातें करते रहना।
वाक्य : श्यामसुंदर की तो आदत है, दूसरे की बात न सुनना और अपना ही राग अलापते रहना।

(3) चाँदी काटना।
अर्थ : बहुत लाभ कमाना।
वाक्य : आजकल जब लोग कोरोना के डर से घरों में दुबके हैं, कुछ सब्जी बेचने वाले चाँदी काट रहे हैं।

(4) कान भरना।
अर्थ : चुगली करना।
वाक्य : मुनीमजी का चपरासी आफिस के अन्य लोगों के बारे में उनके कान भरता रहता है।

(5) जली-कटी सुनाना।
अर्थ : कटु बात करना।
वाक्य : रघु की माँ अकारण अपनी बहू को जली-कटी सुनाती रहती है।

2. काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :
(1) प्रकाश की किरणें संसार पर नवीन जीवन की वर्षा कर रही थीं। (सामान्य वर्तमानकाल)
(2) जो जवान थे उनके बाल सफेद हो गए। (सामान्य भविष्यकाल)
(3) मेरी आँखें दूसरों की मौत को देखने के लिए हर समय तैयार हैं। (पूर्ण भूतकाल)
(4) बैजू बावरा की उँगलियाँ सितार पर दौड़ रही थीं। (अपूर्ण वर्तमानकाल)
(5) बहुत अच्छा! दोबारा बुलाकर दिखा देता हूँ। (सामान्य भविष्यकाल)
उत्तर :
(1) प्रकाश की किरणें संसार पर नवीन जीवन की वर्षा करती हैं।
(2) जो जवान होंगे उनके बाल सफेद हो जाएंगे।
(3) मेरी आँखें दूसरों की मौत को देखने के लिए हर समय तैयार थीं।
(4) बैजू बावरा की उँगलियाँ सितार पर दौड़ रही हैं।
(5) बहुत अच्छा! दोबारा बुलाकर दिखा दूंगा।

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3. वाक्य शुद्धिकरण :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए :
(1) मैं तेरे को वह हथियार दूँगा, जिससे तू तेरे पिता की मौत का बदला ले सकेगा।
(2) हरिदास की धीरज की दीवार आँसुओं के बौछार न सह सकी।
(3) बैजू हाथों बाँधकर खड़े हो गया।
(4) अब मेरी पास और कुछ नहीं, जो तुजे दूँ।
(5) साधु की प्रार्थना में सर्वसाधारण को भी उसकी जीवन और मृत्यु का तमाशा देखने की आज्ञा दे दी गई थी।
उत्तर :
(1) मैं तुझे वह हथियार दूँगा, जिससे तू अपने पिता की मौत का बदला ले सकेगा।
(2) हरिदास के धीरज की दीवार आँसुओं की बौछार न सह सकी।
(3) बैजू हाथ बाँधकर खड़ा हो गया।
(4) अब मेरे पास और कुछ नहीं जो तुझे दूँ।
(5) साधु की प्रार्थना पर सर्वसाधारण को भी उसके जीवन और मृत्यु का तमाशा देखने की आज्ञा दे दी गई थी।

आदर्श बदला Summary in Hindi

आदर्श बदला लेखक का परिचय

आदर्श बदला लेखक का नाम : सुदर्शन। (मूल नाम : बदरीनाथ) (जन्म 29 मई, 1895, सियालकोट ; निधन 9 मार्च, 1967.)

प्रमुख कृतियाँ : पुष्पलता, सुदर्शन सुधा, तीर्थयात्रा, पनघट (कहानी संग्रह)। सिकंदर, भाग्यचक्र (नाटक)। भागवती (उपन्यास)। आनररी मजिस्ट्रेट (प्रहसन)।

विशेषता : आपने प्रेमचंद की लेखन-परंपरा को आगे बढ़ाया है। आपकी रचनाएँ आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को रेखांकित करती हैं। साहित्य को लेकर आपका दृष्टिकोण सुधारवादी रहा है। आपने हिंदी फिल्मों की पटकथाएँ और गीत भी लिखे हैं। आपकी प्रथम कहानी ‘हार की जीत’ हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान रखती है।

विधा : कहानी। कहानी भारतीय साहित्य की प्राचीन विद्या है। आपकी कहानियों की भाषा सरल, पात्रानुकूल तथा प्रभावोत्पादक हैं। मुहावरों का सटीक प्रयोग, प्रवाहमान शैली कहानी की प्रभावोत्पादकता में वृद्धि करती है।

विषय प्रवेश : बदला लेने वाले व्यक्ति के मन में अकसर क्रोध अथवा हिंसा की भावना प्रमुख होती है। इतना ही नहीं, मौत का बदला मौत से लेने की अनेक घटनाएँ प्रसिद्ध हैं। पर प्रस्तुत कहानी में लेखक ने बदला लेने का अनूठा आदर्श प्रस्तुत किया है। ‘बचपन में बैजू अपने पिता को भजन गाने के अपराध में तानसेन की क्रूरता का शिकार होता हुआ देखता है। परंतु वही बैजू बावरा तानसेन को संगीत-प्रतियोगिता में हरा कर उसे जीवन-दान दे देता है। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से बैजू बावरा को आदर्श बदला लेते हुए दर्शाया है।

आदर्श बदला पाठ का सार

आगरा शहर में सुबह-सुबह साधुओं की एक मंडली अपने ढंग से भजन गाते-गुनगुनाते प्रवेश कर रही थी। इस मंडली में एक छोटा बच्चा भी था। साधु अपने राग में मगन थे, तभी राज्य के सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन्हें बादशाह अकबर के सामने पेश कर दिया गया।

अकबर के मशहूर संगीतकार तानसेन ने यह कानून बनवा दिया था कि जो आदमी राग विद्या में उसकी बराबरी न कर सके, वह आगरा की सीमा में गीत न गाए और जो गाए तो उसे मौत की सजा दी जाए। बेचारे साधुओं को इसकी जानकारी नहीं थी। साधु संगीत विद्या से अनभिज्ञ थे। अतः उन्हें मृत्युदंड की सजा हुई। पर उस बच्चे पर दया करके उसे छोड़ दिया गया।

वह बच्चा रोता-तड़पता आगरा की बाजारों से निकल कर जंगल में अपनी कुटिया में पहुँचा और विलाप करता रहा। तभी खड़ाऊँ पहने, हाथ में माला लिए हुए, राम नाम का जप करते हुए बाबा हरिदास कुटिया के अंदर आए और उन्होंने उसे शांत रहने के लिए कहा। पर उस बच्चे के मन में शांति कहाँ थी! उसका तो संसार उजड़ चुका था। तानसेन ने उसे तबाह कर दिया था।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

यह बच्चा बैजू बावरा था। उसने अपने साथ हुई सारी दुर्घटना बाबा हरिदास को बताई और अपने बदले की भूख और प्रतिकार की प्यास मिटाने की उनसे प्रार्थना की। E अंत में हरिदास ने उसे आश्वस्त किया कि वे उसे ऐसा हथियार देंगे, जिससे वह अपने पिता का बदला ले सके।

इसके लिए उन्होंने बैजू से बारह वर्ष तक (संगीत की) तपस्या E करने का वचन लिया। बाबा ने बारह वर्ष में बैजू बावरा को वह सब कुछ सिखा दिया, जो उनके पास था। अब बैजू पूर्ण गंधर्व हो गया था। उसके स्वर में जादू था।

लेकिन संगीत-तपस्या पूरी होने के साथ ही बैजू बावरा को बाबा हरिदास के सामने यह प्रतिज्ञा भी करनी पड़ी कि वह इस राग विद्या से किसी को हानि नहीं पहुँचाएगा। इस प्रतिज्ञा से उसे लगा कि प्रतिहिंसा की छुरी हाथ में आई भी तो गुरु ने प्रतिज्ञा लेकर उसे कुंद कर दी।

कुछ दिनों बाद यही सुंदर युवक साधु आगरा के बाजारों में गाता हुआ जा रहा था। लोगों ने सोचा कि इसकी भी मौत आ गई है। वे उसे नगर की रीति की सूचना देने निकले। पर उसके निकट पहुँचने के पहले ही वे उससे मुग्ध होकर अपनी सुधबुध खो बैठे। सिपाही उसे पकड़ने दौड़े तो उसका गीत सुन कर उन्हें अपनी हथकड़ियों की भी सुध न रही। लोग नवयुवक के गीत पर मुग्ध थे। चलते-चलते यह जन-समूह मौत के द्वार यानी तानसेन के महल के सामने था।

तानसेन बाहर निकला और उसने फब्ती कसी, ‘तो शायद आपके सिर पर मौत सवार है।’ यह सुन कर बैजू के होठों पर मुस्कराहट आ गई। उसने कहा, “मैं आपके साथ गान-विद्या पर चर्चा करना चाहता हूँ।” तानसेन ने कहा, “जानते हैं नियम कड़ा है। मेरे दिल में दया नहीं है। मेरी आँखें दूसरों की मौत देखने के लिए हर समय तैयार हैं।” इस पर बैजू बावरा ने कहा, “और मेरे दिल में जीवन का मोह नहीं है। मैं मरने के लिए हर समय तैयार हूँ।”

दरबार की ओर से शर्ते सुनाई गई। राग-युद्ध नगर के बाहर वन में आयोजित किया गया था। लगता था वन में नगर बस गया है। बैजू ने सितार उठाया। उसने पदों को हिलाया तो जनता ब्रह्मानंद में लीन हो गई। उसकी उँगलियाँ सितार पर दौड़ने लगीं। लगा, सारे विश्व की मस्ती वहीं आ गई हो। तभी संगीत से प्रभावित होकर कुंछ हरिण छलांगें मारते हुए वहाँ आ पहुँचे। वे संगीत सुनते रहे।

बैजू ने सितार बजाना बंद किया और अपने गले से फूलमालाएँ उतार कर हरिणों को पहना दीं। हरिण चौकड़ी भरते हुए गायब हो गए। बैजू ने तानसेन से कहा, “ तानसेन, मेरी फूलमालाएँ यहाँ मँगवा दें, तब जानूँ कि आप राग-विद्या जानते हैं।”

तानसेन सितार हाथ में लेकर बजाने लगा। इतनी एकाग्रता के साथ उसने अपने जीवन में कभी सितार नहीं बजाया था। आज वह अपनी पूरी कला दिखा देना चाहता था। आज वह किसी तरह जीतना चाहता था। आज वह किसी भी तरह जिंदा रहना चाहता था। सितार बजता रहा, पर आज लोगों ने उसे पसंद नहीं किया। तानसेन का शरीर पसीना-पसीना हो गया, पर हरिण न आए। वह खिसिया गया। बोला, “वे हरिण राग की तासीर से नहीं आए थे। हिम्मत है तो दुबारा बुला कर दिखाओ।”

यह सुन कर बैजू ने फिर सितार पकड़ लिया। सितार बजने लगा। वे हरिण फिर बैजू बावरा के पास आ गए। बैजू ने उनके गले से मालाएँ उतार लीं। अकबर ने अपना निर्णय सुना दिया, “बैजू बावरा जीत गया, तानसेन हार गया।’ यह सुन कर तानसेन बैजू बावरा के पाँव में गिर पड़ा और उससे अपने प्राणों की भीख माँगने लगा। बैजू बावरा ने कहा, “मुझे तुम्हारे प्राण लेने की चाह नहीं है। तुम इस निष्ठुर नियम को खत्म करवा दो कि यदि आगरा की सीमा में गाने वाला व्यक्ति तानसेन की जोड़ का न हो, तो उसे मरवा दिया जाए।”

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला

यह सुन कर अकबर ने उसी समय उस नियम को खत्म कर दिया। तानसेन ने बैजू बावरा के चरणों में गिर कर कहा, “मैं यह उपकार जीवन भर नहीं भूलूँगा।’ बैजू बावरा ने उसे याद दिलाया, ‘बारह बरस पहले उसने एक बच्चे की जान बख्शी थी। आज उस बच्चे ने उसकी जान बख्शी है।’

मुहावरे : अर्थ और वाक्य प्रयोग

(1) तूती बोलना।
अर्थ : अधिक प्रभाव होना।
वाक्य : आज उद्योग के क्षेत्र में देश के कुछ घरानों की ही तूती बोलती है।

(2) वाह वाह करना।
अर्थ : प्रशंसा करना।
वाक्य : सितारवादक रविशंकर का सितार वादन सुन कर। श्रोता वाह वाह कर उठते थे।

(3) लहू सूखना।
अर्थ : भयभीत हो जाना।
वाक्य : कोरोना वायरस का नाम सुनते ही लहू सूखने लगता है।

(4) कंठ भर आना।
अर्थ : भावुक हो जाना।
वाक्य : बेटी की बिदाई के समय पिता का कंठ भर आया।

(5) बिलख-बिलख कर रोना।
अर्थ : विलाप करना, जोर-जोर से रोना।
वाक्य : दुर्घटना में घायल पिता की मृत्यु का समाचार सुन कर बेटा बिलख-बिलख कर रोने लगा।

(6) समाँ बँधना।
अर्थ : रंग जमना, वातावरण निर्माण होना।
वाक्य : मदारी ने बंदरों से ऐसा नृत्य करवाया कि समाँ बँध गया।

(7) ब्रह्मानंद में लीन होना।
अर्थ : अलौकिक आनंद का अनुभव करना।
वाक्य : तबलावादक सामताप्रसाद का तबला वादन सुन कर श्रोता ब्रह्मानंद में लीन हो जाते थे।

(8) जान बख्शना।
अर्थ : जीवन दान देना।
वाक्य : डाकुओं ने सेठ की संपत्ति लूट ली, पर उनकी जान बख्श दी।

(9) संसार उजड़ जाना।
अर्थ : सब कुछ व्यर्थ हो जाना।
वाक्य : पति के असामयिक निधन से बेचारी राधा का संसार उजड़ गया।

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(10) खरीद लेना।
अर्थ : गुलाम बना लेना।
वाक्य : गाँवों में पहले कुछ लोग मजदूरों को थोड़ा-बहुत कर्ज देकर जैसे उन्हें खरीद ही लेते थे।

(11) रक्त का चूँट पी कर रह जाना।
अर्थ : अपना क्रोध या दुःख प्रकट न होने देना।
वाक्य : मुनीमजी ने बार-बार चपरासी को बुरा-भला कहा, पर वह रक्त का चूंट पी कर रह गया।

(12) पसीना-पसीना होना।
अर्थ : बहुत अधिक परेशान होना।
वाक्य : जंगल से जाते हुए किसान ने हिरन पर झपट्टा मारते हुए चीते को देखा तो वह पसीना-पसीना हो गया।

आदर्श बदला शब्दार्थ

  • सुमर = स्मरण करना
  • प्रतिकार = बदला, प्रतिशोध
  • अवहेलना = अनादर
  • चाँदनिया = शामियाना
  • नि:शब्द = मौन, चुप
  • तासीर = प्रभाव, परिणाम
  • खड़ाऊँ = लकड़ी की बनी खूटीदार पादुका
  • कुंद = भोथरा, बिना धार का
  • कनात = मोटे कपड़े की दीवार या परदा
  • उद्विग्नता = घबराहट, आकुलता
  • सुधिहीन = बेहोश
  • अगाध = अपार, अथाह

आदर्श बदला मुहावरे

  • तूती बोलना = अधिक प्रभाव होना
  • वाह-वाह करना = प्रशंसा करना
  • लहू सूखना = भयभीत हो जाना
  • कंठ भर आना = भावुक हो जाना
  • बिलख-बिलखकर रोना = विलाप करना/जोर-जोर से रोना
  • समाँ बँधना = रंग जमना, वातावरण निर्माण होना Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 4 आदर्श बदला
  • ब्रह्मानंद में लीन होना = अलौकिक आनंद का अनुभव करना
  • जान बख्शना = जीवन दान देना

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Maharashtra Board

Class 12 Hindi Chapter 3 Sach Ham Nahin ; Sach Tum Nahin Question Answer Maharashtra Board

Std 12 Hindi Chapter 3 Sach Ham Nahin ; Sach Tum Nahin Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं Questions And Answers

12th Hindi Guide Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.
(अ) कविता की पंक्ति पूर्ण कीजिए :
(1) अपने हृदय का सत्य, – ……………………….
(2) आदर्श हो सकती नहीं, – ……………………….
(3) बेकार है मुस्कान से ढकना, – ……………………….
(4) अपने नयन का नीर, – ……………………….
उत्तर :
(1) अपने हृदय का सत्य, अपने-आप हमको खोजना।
(2) आदर्श हो सकती नहीं, तन और मन की भिन्नता।
(3) बेकार है मुस्कान से ढकना, हृदय की खिन्नता।
(4) अपने नयन का नीर, अपने-आप हमको पोंछना।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

(आ) लिखिए :

(a) जीवन यही है
(1) जीवन यही है –
(i) …………………………….
(ii) …………………………….
(iii) …………………………….
(iv) …………………………….
उत्तर :
जीवन यही है –
(i) नत न होना।
(ii) पंथ भूलने पर भी न रुकना।
(iii) हार देखकर भी न झुकना।
(iv) मृत्यु को भी जीत लेना।

(b) मिलना वही है –
(1) मिलना वही है – ……………………….
(2) यह जिंदगी जिंदगी नहीं है – ……………………….
(3) हर राही को इससे दिशा मिलती है – ……………………….
(4) कवि तब तक इस राह को सही नहीं मानेगा – ……………………….
उत्तर :
(1) जो मँझधार को मोड़ दे।
(2) जो सिर्फ पानी-सी बहती रहे।
(3) भटकने के बाद।
(4) जब तक जीवन बँधा होगा और जब तक प्यार पर दुख की गहरी छाया होगी।

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
प्रत्येक शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए :
(1) पंथ – [ ] [ ]
(2) काँटा – [ ] [ ]
(3) कुसुम – [ ] [ ]
(4) हार – [ ] [ ]
उत्तर :
(1) पंथ – [ रास्ता ] [ डगर ]
(2) काँटा – [ शूल ] [ कंटक ]
(3) कुसुम – [ पुष्प ] [ प्रसून ]
(4) हार – [ पराजय ] [ पराभव ]

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) ‘जीवन निरंतर चलते रहने का नाम है’, इस विचार की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जीवन का उद्देश्य निरंतर आगे-ही-आगे बढ़ते रहना है। जीवन में ठहराव आने को मृत्यु की संज्ञा दी जाती है। अनेक महापुरुषों ने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए जीवनभर संघर्ष किया है और उनका नाम अमर हो गया है। जीवन का मार्ग आसान नहीं ३ है। उस पर पग-पग पर कठिनाइयाँ आती रहती हैं। इन कठिनाइयों 1 से उसे जूझना पड़ता है। उसमें हार भी होती है और जीत भी होती ३ है। असफलताओं से मनुष्य को घबराना नहीं चाहिए।

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बल्कि उनका ३ दृढ़तापूर्वक सामना करके उसमें से अपना मार्ग प्रशस्त करना और ३ निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। एक दिन मंजिल अवश्य मिलेगी। जीवन संघर्ष कभी न खत्म होने वाला संग्राम है। इसका सामना करने का एकमात्र मार्ग है निरंतर चलते रहना और हर स्थिति में संघर्ष जारी रखना।

(आ) ‘संघर्ष करने वाला ही जीवन का लक्ष्य प्राप्त करता है, इस विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर :
दुनिया में दो प्रकार के मनुष्य होते हैं। एक वे जो सामान्य रूप से चलनेवाली जिंदगी जीना पसंद करते हैं और आगे बढ़ने के लिए किए जानेवाले उठा-पटक को पसंद नहीं करते। दूसरे तरह के वे लोग होते हैं, जो अपना लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं और उसे प्राप्त करने के लिए संघर्ष का रास्ता चुनते हैं। ऐसे लोगों का जीवन आसान नहीं होता। इन्हें पग-पग पर विभिन्न रुकावटों का सामना करना पड़ता है।

पर ऐसे लोग इन रुकावटों से डरते नहीं, बल्कि हँसते-हँसते इनका सामना करते हैं। सामना करने में अनेक बार असफलता भी इनके हाथ लगती है। पर ये इससे हताश नहीं होते। ये फिर अपनी गलतियों को सुधारते हैं और नए सिरे से संघर्ष करने में जुट जाते हैं। परिस्थितियाँ कैसी भी हों, वे न झुकते हैं और न हताश होते हैं। उनके सामने सदा उनका लक्ष्य होता है। उसे प्राप्त करने के लिए वे निरंतर संघर्ष करते रहते हैं।

ऐसे लोग अपनी निष्ठा और लगन के बल पर एक-न-एक दिन अवश्य सफल हो जाते हैं। वे संघर्ष के बल पर अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त करके रहते हैं।

रसास्वादन

प्रश्न 4.
‘आँसुओं को पोंछकर अपनी क्षमताओं को पहचानना ही जीवन है’, इस सच्चाई को समझाते हुए कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
डॉ. जगदीश गुप्त द्वारा लिखित कविता ‘सच हम नहीं, सच तुम नहीं’ में जीवन में निरंतर संघर्ष करते रहने का आह्वान किया गया है।

कवि पानी-सी बहने वाली सीधी-सादी जिंदगी का विरोध करते हुए संघर्षपूर्ण जीवन जीने की बात करते हैं। वे कहते हैं, जो जहाँ भी हो, उसे संघर्ष करते रहना चाहिए।

संघर्ष में मिली असफलता से निराश होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी हालत में हमें किसी के सहयोग की आशा नहीं करनी। हमें अपने आप में खुद हिम्मत लानी होगी और अपनी क्षमता को पहचानकर नए सिरे से संघर्ष करना होगा। मन में यह विश्वास रखकर काम करना होगा कि हर राही को भटकने के बाद दिशा मिलती ही है और उसका प्रयास व्यर्थ नहीं जाएगा। उसे भी दिशा मिलकर रहेगी।

कवि ने सीधे-सादे शब्दों में प्रभावशाली ढंग से अपनी बात कही है। अपनी बात कहने के लिए उन्होंने ‘अपने नयन का नीर पोंछने’ शब्द समूह के द्वारा हताशा से अपने आपको उबार कर स्वयं में नई शक्ति पैदा करने तथा ‘आकाश सुख देगा नहीं, धरती पसीजी है नहीं’ से यह कहने का प्रयास किया है कि भगवान तुम्हारी सहायता के लिए नहीं आने वाले हैं और धरती के लोग तुम्हारे दुख से द्रवित नहीं होने वाले हैं। इसलिए तुम स्वयं अपने आप को सांत्वना दो और नए जोश के साथ आगे बढ़ो। तुम अपने लक्ष्य पर पहुँचने में अवश्य कामयाब होंगे।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
जानकारी दीजिए :
(अ) ‘नई कविता’ के अन्य कवियों के नाम –
(आ) कवि डॉक्टर जगदीश गुप्त की प्रमुख साहित्यिक कृतियों के नाम –
उत्तर :
(अ) ‘नई कविता’ के अन्य कवियों के नाम – [रामस्वरूप चतुर्वेदी, विजयदेव साही]
(आ) कवि डॉक्टर जगदीश गुप्त की प्रमुख साहित्यिक कृतियों के नाम – [‘नाँव के पाँव, शब्द दंश, हिम विद्ध, गोपा-गौतम’] (काव्य संग्रह), ‘शंबूक’ (खंडकाव्य), ‘भारतीय कला के पदचिहन, नयी कविता : स्वरूप और समस्याएँ, केशवदास’ (आलोचनाएँ) तथा ‘नयी कविता’ (पत्रिका)।]

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्यों में अधोरेखांकित शब्दों का लिंग परिवर्तन कर वाक्य फिर से लिखिए :

(1) बहुत चेष्टा करने पर भी हरिण न आया।
उत्तर :
बहुत चेष्टा करने पर भी हरिणी न आई।

(2) सिद्धहस्त लेखिका बनना ही उनका एकमात्र सपना था।
उत्तर :
सिद्धहस्त लेखक बनना ही उनका एकमात्र सपना था।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

(3) तुम एक समझदार लड़की हो।
उत्तर :
तुम एक समझदार लड़के हो।

(4) मैं पहली बार वृद्धाश्रम में मौसी से मिलने आया था।
उत्तर :
मैं पहली बार वृद्धाश्रम में मौसा से मिलने आया था।

(5) तुम्हारे जैसा पुत्र भगवान सब को दे।
उत्तर :
तुम्हारी जैसी पुत्री भगवान सब को दे।

(6) साधु की विद्वत्ता की धाक दूर-दूर तक फैल गई थी।
उत्तर :
साध्वी की विद्वत्ता की धाक दूर-दूर तक फैल गई थी।

(7) बूढ़े मर गए।
उत्तर :
बुढ़ियाँ मर गईं।

(8) वह एक दस वर्ष का बच्चा छोड़ा गया।
उत्तर :
वह एक दस वर्ष की बच्ची छोड़ी गई।

(9) तुम्हारा मौसेरा भाई माफी माँगने पहुंचा था।
उत्तर :
तुम्हारी मौसेरी बहन माफी माँगने पहुंची थी।

(10) एक अच्छी सहेली के नाते तुम उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करो।
उत्तर :
एक अच्छे मित्र के नाते तुम उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करो।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (अ) तथा प्रश्न 2 (आ) के लिए
पद्यांश क्र. 1

प्रश्न. निम्नलिखितपद्यांशपढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं 2

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प्रश्न 2.
जीवन का संदेश
(i) …………………………….
(ii) …………………………….
(iii) …………………………….
(iv) …………………………….
उत्तर :
जीवन का संदेश –
(i) जीवन में कहीं जड़ता नहीं होनी चाहिए।
(ii) अपनी-अपनी जगह पर खुद से लड़ाई जारी रखनी चाहिए।
(iii) हर तरह की परिस्थिति का सामना करने की तैयारी होनी चाहिए।
(iv) इन्सान को कभी टूटना-हारना नहीं चाहिए।

प्रश्न 3.
उत्तर लिखिए :
(1) नत होने से मृत जैसा होने की तुलना की गई है इससे – …………………………….
(2) काँटे चुभे, कलियाँ खिलें का अर्थ – …………………………….
उत्तर :
(1) नत होने से मृत जैसा होने की तुलना की गई है इससे – [डंठल से झरे फूल से।]
(2) काँटे चुभे, कलियाँ खिलें का अर्थ – [स्थिति चाहे प्रतिकूल हो अथवा अनुकूल।]

पदयांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखितपद्यांशपढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
पद्यांश पर आधारित दो ऐसे प्रश्न तैयार कीजिए जिनके उत्तर निम्नलिखित शब्द हों :
(1) आकाश
(2) धरती
उत्तर :
(1) कौन सुख नहीं देगा?
(2) कौन नहीं पसीजती है?

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
प्रत्येक शब्द के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए :
(1) फूल – [ ] [ ]
(2) नीर – [ ] [ ]
(3) नयन – [ ] [ ]
(4) धरती – [ ] [ ]
उत्तर :
(1) फूल – [ पुष्प ] [ कुसुम ]
(2) नीर – [ अंबु ] [ जल ]
(3) नयन – [ चक्षु ] [ आँख ]
(4) धरती – [ पथ्वी ] [ अवनि ]

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(2) निम्नलिखित शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :
(1) तोड़ना x …………………………
(2) सच x …………………………
(3) दुख x …………………………
(4) बेकार x …………………………
उत्तर :
(1) तोड़ना x जोड़ना
(3) दुख x सुख
(2) सच x झूठ
(4) बेकार x साकार।

रसास्वादन मुद्दों के आधार पर
कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (इ) के लिए

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर सच हम नहीं; सच तुम नहीं’ कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(1) रचना का शीर्षक : सच हम नहीं; सच तुम नहीं।
(2) रचनाकार : डॉ. जगदीश गुप्त।
(3) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में निरंतर आगे बढ़ते रहने, संघर्ष करते रहने और मार्ग में आनेवाली रुकावटों की परवाह न करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा दी गई है। यही इस कविता की केंद्रीय कल्पना है।
(4) रस-अलंकार : –
(5) प्रतीक विधान : इस कविता में संघर्ष का मार्ग त्याग कर नत हो जाने यानी किसी की अधीनता स्वीकार कर लेने वाले को मृतक के समान हो जाना कहा गया है। कवि ने इस तरह के मृत व्यक्ति के लिए ‘डाल से झड़े हुए फूल’ का प्रतीक के रूप में उपयोग किया है।
(6) कल्पना : जीवन में दृढ़तापूर्वक संघर्ष का मार्ग अपनाना और निराश हुए बिना उस पर अडिग रहना ही जीवन की एकमात्र सच्चाई है।
(7) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
अपने हृदय का सत्य,
अपने आप हम को खोजना।
अपने नयन का नीर,
अपने आप हम को पोंछना।.

इन पंक्तियों में अपनी समस्याओं को पहचानने और उनका समाधान ढूँढ़ने के लिए बिना किसी की सहायता की उम्मीद किए स्वयं कमर कस कर तैयार होने की प्रेरणा मिलती है।

(8) कविता पसंद आने का कारण : कवि ने इस पंक्ति में यह बताया है कि संघर्ष में असफलता हाथ लगे, तो भी निराश होने की जरूरत नहीं है। हमें अपने आप अपनी आँखों के आँसू पौंछकर फिर से हिम्मत के साथ संघर्ष में जुट जाना है।

व्याकरण

अलंकार :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर उनके नाम लिखिए :
(1) हरि पद कोमल कमल से।
(2) झूठे जानि न संग्रही मन मुँह निकसे बैन। यहि ते मानहुँ किए, बातनु को बिघि नैन।
(3) पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
(4) हनूमान की पूँछ में लग न पाई आग। लंका सिगरी जल गई, गए निशाचर भाग।
(5) एक म्यान में दो तलवारें कभी नहीं रह सकतीं। किसी और पर प्रेम पति का नारियाँ नहीं सह सकी।
उत्तर :
(1) उपमा अलंकार
(2) उत्प्रेक्षा अलंकार
(3) रूपक अलंकार
(4) अतिशयोक्ति अलंकार
(5) दृष्टांत अलंकार।

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रस:

प्रश्न 1.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त रस पहचान कर लिखिए :
(1) काहु न तखा सो चरित विसेरना। सो सरूप नृप कन्या देखा।
मर्कट वदन भयंकर देही। देखत हृदय क्रोध मा तेही।
जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि तेहि न विलोकी भूली।
पुनि-पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं। देखि दसा हर गन मुसुकाहीं।

(2) जो हौं तव अनुशासन पावौं
तौ चंद्रमहिं निचोरि चैल ज्यों आनि सुधा सिर नावौं।
कै पाताल दलौं व्यालावलि अमृत कुंड महि लावौ।
भेदि भुवन, करि भानु बाहियें तुरत राहु दै ताबौ।।
विबुध बैद बरबस आनौं धरि, तौ प्रभु अनुग कहावौं।
पटकौं मीच नीच मूषक ज्यों सबहिं को पाप कहावौं।

(3) कहुँ सुलगत कोउ चिता, कहुँ कोउ जात लगाई।
एक लगाई जात, एक की राख बुझाई।
विविध रंग की उठति ज्वाल दुर्गन्धिति महकति,
कहु चरबी सी चटचटाति कहुँ दह-दह दहकति।
उत्तर :
(1) हास्य रस
(2) वीर रस
(3) वीभत्स रस।

मुहावरे :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
(1) गुड़ गोबर करना।
अर्थ : बने काम को बिगाड़ देना।
वाक्य : चित्रकार का चित्र तैयार था तभी एक छोटे बच्चे ने आकर उस पर ऐसी कूँची फिराई की सारा गुड़ गोबर हो गया।

(2) जहर का चूंट पीना।
अर्थ : अपमान को चुपचाप सह लेना।
वाक्य : मुंशीजी अपने चपरासी से कभी-कभी जब पैर दबा देने की बात करते थे तब वह जहर का यूंट पीकर रह जाता था।

(3) तिल का ताड़ बनाना।
अर्थ : छोटी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहना।
वाक्य : रमेश की बात विश्वास करने लायक नहीं होती, उसकी तो तिल का ताड़ बनाने की आदत है।

(4) मुट्ठी गर्म करना।
अर्थ : रिश्वत देना।
वाक्य : गाँवों में छोटा-मोटा काम करवाने के लिए भी अधिकारियों की मुट्ठी गर्म करनी पड़ती है।

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(5) पत्थर की लकीर।
अर्थ : पक्की बात।
वाक्य : गाँव के लोग वकील साहब की बात को पत्थर की लकीर मानते थे।

काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
सूचनाओं के अनुसार काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :
(1) वह पंथ भूल कर नहीं रुकता है। (पूर्ण भूतकाल)
(2) वह हार देख कर नहीं झुका। (सामान्य भविष्यकाल)
(3) आकाश सुख नहीं देगा। (अपूर्ण वर्तमानकाल)
(4) धरती नहीं पसीजती है। (पूर्ण वर्तमानकाल)
(5) हर एक राही को भटक कर दिशा मिलती है। (अपूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
(1) वह पंथ भूल कर नहीं रुका था।
(2) वह हार देख कर नहीं झुकेगा।
(3) आकाश सुख नहीं दे रहा है।
(4) धरती नहीं पसीजी है।
(5) हर एक राही को भटक कर दिशा मिल रही थी।

वाक्य शुद्धिकरण :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके लिखिए :
(1) वह उसका काम कर रहा हैं।
(2) उस बगीचे में अनेकों फूले खिले हैं।
(3) पुस्तक की ढेर देख मैं दंग रह गया।
(4) उसे मात्र केवल दो दिन की छुट्टी चाहिएँ।
(5) मैं तुमको धन्यवाद करता हूँ।
उत्तर :
(1) वह अपना काम कर रहा है।
(2) उस बगीचे में अनेक फूल खिले हैं।
(3) पुस्तकों का ढेर देख में दंग रह गया।
(4) उसे केवल दो दिन की छुट्टी चाहिए।
(5) मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूँ।

सच हम नहीं; सच तुम नहीं Summary in Hindi

सच हम नहीं; सच तुम नहीं कवि का परिचय

सच हम नहीं; सच तुम नहीं कवि का नाम : डॉ. जगदीश गुप्त। (जन्म 1924; निधन 2001.)
प्रमुख कृतियाँ : नाँव के पाँव, शब्द दंश, हिम विद्ध, गोपा-गौतम (काव्य संग्रह), ‘शंबूक’ (खंडकाव्य), भारतीय कला के पदचिह्न,
नयी कविता : स्वरूप और समस्याएँ, केशवदास (आलोचनाएँ) तथा ‘नयी कविता’ (पत्रिका) आदि।
विशेषता : प्रयोगवाद के बाद जिस नयी कविता का प्रारंभ हुआ, उसके प्रवर्तकों में जगदीश गुप्त का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है।
विधा : नई कविता। नए भावबोधों की अभिव्यक्ति के साथ नए मूल्यों और नए शिल्प विधान का अन्वेषण नई कविता की विशेषता है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

विषय प्रवेश : प्रस्तुत नई कविता में कवि ने संघर्ष करने की प्रेरणा दी है। संघर्ष ही जीवन की सच्चाई है। जो मनुष्य कठिनाइयों और मुसीबतों का सामना करते हुए बिना झुके या रुके आगे बढ़ता रहता है, वही सच्चा मनुष्य है। जिंदगी लीक से हटकर चलने का नाम है। लीक से भटककर भी मंजिल अवश्य मिलती है। कवि का कहना है कि हमें अपनी समस्याएँ खुद सुलझानी होंगी। हमारी लड़ाई – कोई दूसरा लड़ने नहीं आएगा। हमें खुद योद्धा बनकर अपनी लड़ाई लड़नी है।

सच हम नहीं; सच तुम नहीं कविता का सरल अर्थ

सच हम नहीं …………………………………………….. है जीवन वही।
कवि कहते हैं कि न मेरी बात सच है और न तुम्हारी बात सच है। सच है तो निरंतर संघर्ष करना। संघर्ष ही जीवन है। हमें संघर्ष का रास्ता अपनाना चाहिए। कवि के अनुसार संघर्ष से हटकर जीने की बात ही नहीं करनी चाहिए। बिना संघर्ष का जीवन भी भला कोई जीवन है!

कवि कहते हैं कि जिसने अधीनता स्वीकार ली, वह मृतक के समान हो गया। उसकी हालत डाल से झड़े हुए फूल जैसी होती है। जो व्यक्ति संघर्ष के मार्ग पर चलता हआ भटक जाने पर भी अपनी मंजिल पर बढ़ने से नहीं रुका अथवा अपने प्रयास में असफल हो जाने पर भी जिसने हार नहीं मानी अथवा जिसने मृत्यु से भी मोर्चा लिया हो और उसको परास्त कर दिया हो, उसी का जीवन जीवन कहलाने के योग्य है। यही सच्चाई है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं 3

ऐसा करो जिससे …………………………………………….. यौवन का यही।
कवि कहते हैं कि मनुष्य में कहीं भी कोई ठहराव नहीं आना चाहिए। जो जहाँ है उसे वहीं चुपचाप अपना संघर्ष जारी रखना चाहिए। वे कहते हैं कि परिस्थितियाँ कैसी भी हों चाहे प्रतिकूल स्थिति हो अथवा अनुकूल स्थिति, मनुष्य को हताश होकर अपना संघर्ष कभी भी त्यागना नहीं चाहिए। जीवन का यही संदेश है।

हमने रचा जाओ …………………………………………….. पानी-सी बही।
कवि कहते हैं कि यथास्थिति में जीने का हमने जो नियम बनाया था, आओ, अब हम उसे तोड़ दें। यह भी कोई जीवन है। जीवन तो वह है, जो मँझधार को भी मोड़ने की शक्ति रखता हो। जिसने संघर्ष किया ही नहीं और यथास्थिति को ही सुखमय मानकर जीवन जीता आ रहा हो और दूसरों के इशारों पर चलता आ रहा हो, उसकी भला कोई जिंदगी है? वह जिंदगी तो यथास्थिति को स्वीकार लेने और लीक पर चलनेवाला जीवन है। (इसमें संघर्ष का नामोनिशान नहीं है।)

अपने हृदय का …………………………………………….. दिशा मिलती रही।

कवि कहते हैं कि हमें अपने दुखों को पहचानना होगा। उन्हें दूर करने के लिए हमें स्वयं प्रयास करना होगा। अपनी आँखों के आँसू हमें खुद पोंछने होंगे। हमें अपनी सहायता के लिए किसी अन्य से आशा नहीं करनी है। किसी अन्य की कृपा का भरोसा करना व्यर्थ है। हमें खुद योद्धा बनना होगा। हर संघर्ष करने वाले को कोई-नकोई मार्ग अवश्य मिलता है। मनुष्य मार्ग भटकने के बाद अपने लक्ष्य पर अवश्य पहुँचता है, इस बात को हमें गाँठ बाँध लेनी चाहिए।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 3 सच हम नहीं; सच तुम नहीं

बेकार है मुस्कान से …………………………………………….. राह को ही मैं सही।
कवि कहते हैं कि हृदय के कष्ट को बाह्य मुस्कान से दबाया नहीं जा सकता। इस तरह के प्रयास का कोई लाभ नहीं होता। इसे आदर्श नहीं माना जा सकता है। मनुष्य को भीतर और बाहर दोनों से एक-सा ही रहना चाहिए, यही आदर्श है। कवि कहते हैं कि जब तक विचारों पर अंकुश लगा रहेगा और जब तक प्यार पर दुख की गहरी छाया बनी रहेगी, तब तक इस मार्ग को किसी भी कीमत पर उचित नहीं माना जा सकता।

सच हम नहीं; सच तुम नहीं शब्दार्थ

  • नत = झुका हुआ
  • जड़ता = अचलता, ठहराव
  • पसीजना = मन में दया भाव आना
  • वृंत = डंठल
  • मँझधार = नदी की बीच की धारा
  • चेतना = जागृत अवस्था

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Balbharti Maharashtra State Board Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 2 निराला भाई Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

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12th Hindi Guide Chapter 2 निराला भाई Textbook Questions and Answers

कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

आकलन

प्रश्न 1.
लिखिए :

(अ) लेखिका के पास रखे तीन सौ रुपये इस प्रकार समाप्त हो गए :
(1) ……………………………………………
(2) …………………………………………..
(3) ……………………………………………
(4) ……………………………………………
उत्तर :
लेखिका के पास रखे तीन सौ रुपए इस प्रकार समाप्त हो गए –
(1) किसी विद्यार्थी का परीक्षा शुल्क देने के लिए 50 रुपए लिए।
(2) किसी साहित्यिक मित्र को देने के लिए 60 रुपए लिए।
(3) तांगेवाले की माँ को मनीआर्डर करने के लिए 40 रुपए लिए।
(4) दिवंगत मित्र की भतीजी के विवाह के लिए 100 रुपए लिए। तीसरे दिन जमा पैसे समाप्त।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

(आ) अतिथि की सुविधा हेतु निराला जी ये चीजें ले आए :
(1) ……………………………………………
(2) ……………………………………………
(3) ……………………………………………
(4) ……………………………………………
उत्तर :
अतिथि की सुविधा हेतु निराला जी ये चीजें ले आए –
(1) नया घड़ा खरीदकर लाए।
(2) उसमें गंगाजल भर लाए।
(3) धोती।
(4) चादर।

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
निम्न शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) प्रहरी – ……………………………………………
(2) अतिथि – ……………………………………………
(3) प्रयास – ……………………………………………
(4) स्मृति – ……………………………………………
उत्तर :
(1) प्रहरी = द्वारपाल
(2) अतिथि = मेहमान
(3) प्रयास = प्रयत्न
(4) स्मृति = याद

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) ‘भाई-बहन का रिश्ता अनूठा होता है, इस विषय पर अपना मत लिखिए।
उत्तर :
एक माता से उत्पन्न भाइयों अथवा भाई-बहनों का रिश्ता निराला होता है। यह रिश्ता अटूट होता है। बचपन में वे साथ-साथ खेलते, बढ़ते और पढ़ते हैं। जीवन में घटने वाली अनेक अच्छी बुरी घटनाओं के साक्षी होते हैं। बड़े होने पर बहन की शादी हो जाने पर उसका नया घर बस जाता है। फिर भी उसका लगाव अपने मायके के परिवार के साथ बना रहता है। जब भी पीहर आने का कोई मौका आता है, वह उसे कभी गँवाना नहीं चाहती।

पीहर में आकर उसे जो खुशी मिलती है, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। रक्षाबंधन के त्योहार पर वह कहीं भी हो, अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधने और उसकी आरती उतारने जरूर पहुँचती है। भाई-बहन का यह मिलन अनूठा होता है। भाई भी इस अवसर पर उसे अपनी क्षमता के अनुसार अच्छे-से-अच्छा उपहार देने से नहीं चूकता। यह उनके अटूट प्यार और अनूठे रिश्ते का ही प्रमाण है।

(आ) ‘सभी का आदरपात्र बनने के लिए व्यक्ति का सहृदयी और संस्कारशील होना आवश्यक है’, इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अपने परिवार और समाज में सबके साथ हिल-मिल कर रहना चाहता है। उसे सबके दुख-सुख में शामिल होना अच्छा लगता है। जीवों पर दया करना और मन में करुणा के भाव उत्पन्न होना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। ऐसे व्यक्ति संस्कारशील कहलाते हैं।

ऐसे व्यक्ति का सभी लोग आदर करते हैं और उसे अपना प्यार देते हैं। मगर सब लोग ऐसे नहीं होते। कुछ लोग विभिन्न कारणों से समाज से कटे-कटे रहते हैं और ‘अपनी डफली अपना राग’ विचार वाले होते हैं। वे अपने घमंड में चूर रहते हैं और किसी अन्य की परवाह नहीं करते।

ऐसे लोगों को समाज तो क्या कोई भी पसंद नहीं करता। ऐसे लोगों को समाज में सम्मान नहीं मिलता। इसलिए मनुष्य को सहृदयी और संस्कारशील होना जरूरी है।

पाठ पर आधारित लघूत्तरी प्रश्न –

प्रश्न 4.
(अ) निराला जी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
निराला जी मानवता के पुजारी थे। उनमें मानवीय गुण कूट-कूट कर भरे हुए थे। उन्हें स्वयं से अधिक दूसरों की अधिक चिंता होती थी। खुद निर्धनता में जीवन बिताते रहे, पर दूसरों के आर्थिक दुखों का भार उठाने के लिए सदा तत्पर रहते थे। आतिथ्य करने में उनका जवाब नहीं था।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

अतिथियों को सदा हाथ पर लिये रहते थे। उनके लिए खुद भोजन बनाने और बर्तन माँजने में उन्हें हर्ष होता था। घर में सामान न होने पर अतिथियों के लिए मित्रों से कुछ चीजें माँग लाने में शर्म नहीं करते थे। उदार इतने थे कि अपने उपयोग की वस्तुएँ भी दूसरों को दे देते थे और खुद कष्ट उठाते थे।

साथी साहित्यकारों के लिए उनके मन में बहुत लगाव था। एक बार कवि सुमित्रानंदन पंत के स्वर्गवास की झूठी खबर सुनकर वे व्यथित हो गए थे और उन्होंने पूरी रात जाग कर बिता दी थी।

निराला जी पुरस्कार में मिले धन का भी अपने लिए उपयोग नहीं करते थे। अपनी अपरिग्रही वृत्ति के कारण उन्हें मधुकरी खाने ३ तक की नौबत भी आई थी। इस बात को वे बड़े निश्छल भाव से बताते थे।

उनका विशाल डील-डौल देखने वालों के हृदय में आतंक पैदा कर देता था, पर उनके मुख की सरल आत्मीयता इसे दूर कर देती थी।

निराला जी से अन्याय सहन नहीं होता था। इसके विरोध में उनका हाथ और उनकी लेखनी दोनों चल जाते थे। निराला जी आचरण से क्रांतिकारी थे। वे किसी चीज का विरोध करते हुए कठिन चोट करते थे। पर उसमें द्वेष की भावना नहीं होती थी। निराला जी के प्रशंसक तथा आलोचक दोनों थे। कुछ लोग जहाँ उनकी नम्र उदारता की प्रशंसा करते थे, वहीं कुछ लोग उनके उद्धत व्यवहार की निंदा करते नहीं थकते थे।

निराला जी अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा रहे हैं। उनके सामने अनेक प्रतिकूल परिस्थितियाँ आईं पर वे कभी हार नहीं माने।

(आ) निराला जी का आतिथ्य भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निराला जी में आतिथ्य सत्कार का पुराना संस्कार था। वे अतिथि को देवता के समान मानते थे। अपने अतिथि की सुविधा में कोई कसर बाकी नहीं रखते थे। वे अतिथि को अपने कक्ष में ठहराते थे। उसके लिए स्वयं भोजन तैयार करते थे। बर्तन भी वे खुद माँजते थे। अतिथि सत्कार के लिए आवश्यक सामान घर में न होता तो वे अपने हित-मित्रों से माँगकर ले आते थे, पर अतिथि सेवा में कोई कमी नहीं रखते थे। कई बार तो वे कवयित्री महादेवी वर्मा के यहाँ से भोजन बनाने के लिए लकड़ियाँ तथा घी आदि माँगकर ले आए थे।

निराला जी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनका कक्ष भी सुविधाओं से रहित था, पर अतिथि के लिए उनके दिल में अपार श्रद्धा थी। एक बार प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त निराला जी का आतिथ्य ग्रहण करने आए थे। उस समय उन्होंने उनका जो सत्कार किया था वह देखते ही बनता था। निराला जी गुप्त जी के बिछौने का बंडल खुद बगल में दबाकर और दियासलाई की तीली के प्रकाश में तंग सीढ़ियों का मार्ग दिखाते हुए उन्हें अपने कक्ष में ले गए थे।

कक्ष प्रकाश और सुख सुविधा से रहित था, पर निराला जी की विशाल आत्मीयता से भरा हुआ था। वे गुप्त जी की सुविधा के लिए नया घड़ा खरीदकर उसमें गंगाजल ले आए। घर में धोती-चादर जो कुछ मिल सका सब तख्त पर बिछा कर गुप्त जी को प्रतिष्ठित किया था। निराला जी का आतिथ्य भाव अपनी किस्म का निराला था।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
(अ) ‘निराला’ जी का मूल नाम – [ ]
(आ) हिंदी के कुछ आलोचकों द्वारा महादेवी वर्मा को दी गई उपाधि – [ ]
उत्तर :
(अ) निराला जी का मूल नाम – सूर्यकांत त्रिपाठी।
(आ) कुछ हिंदी आलोचकों द्वारा महादेवी वर्मा को दी गई उपाधि – [आधुनिक मीरा]

रस

काव्यशास्त्र में आचार्यों ने रस को काव्य की आत्मा माना है। विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी (संचारी) भाव और स्थायी भाव रस के अंग हैं और इन अंगों अर्थात तत्त्वों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।

साहित्यशास्त्र में नौ प्रकार के रस माने गए हैं। कालांतर में अन्य दो रसों को सम्मिलित किया गया है।
रस – स्थायी भाव – रस – स्थायी भाव

  • शृंगार – प्रेम
  • शांत – शांति
  • करुण – शोक
  • हास्य – हास
  • भयानक – भय
  • रौद्र – क्रोध
  • बीभत्स – घृणा
  • वीर – उत्साह
  • अद्भुत – आश्चर्य
  • वात्सल्य – ममत्व
  • भक्ति – भक्ति

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

ग्यारहवीं कक्षा की युवकभारती पाठ्यपुस्तक में हमने करुण, हास्य, वीर, भयानक और वात्सल्य रस के लक्षण एवं उदाहरणों का अध्ययन किया है। इस वर्ष हम शेष रसों – रौद्र, बीभत्स, अद्भुत, शृंगार, शांत और भक्ति रस का अध्ययन करेंगे।

रौद्र रस : जहाँ पर किसी के असह्य वचन, अपमानजनक व्यवहार के फलस्वरूप हृदय में क्रोध का भाव उत्पन्न होता है; वहाँ रौद्र रस उत्पन्न होता है। इस रस की अभिव्यंजना अपने किसी प्रिय अथवा श्रद्धेय व्यक्ति के प्रति अपमानजनक, असह्य व्यवहार के प्रतिशोध के रूप में होती है।

उदा. –
(१) श्रीकृष्ण के वचन सुन, अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
सब शोक अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगे।

(२) कहा – कैकयी ने सक्रोध
दूर हट! दूर हट! निर्बोध!
द्विजिव्हे रस में, विष मत घोल।

बीभत्स रस : जहाँ किसी अप्रिय, अरुचिकर, घृणास्पद वस्तुओं, पदार्थों के प्रसंगों का वर्णन हो, वहाँ बीभत्स रस उत्पन्न होता है।

उदा. –
(१) सिर पर बैठो काग, आँखि दोऊ खात
खींचहि जीभहि सियार अतिहि आनंद उर धारत।
गिद्ध जाँघ के माँस खोदि-खोदि खात, उचारत हैं।
(२) सुडुक, सुडुक घाव से पिल्लू (मवाद) निकाल रहा है,
नासिका से श्वेत पदार्थ निकाल रहा है।

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 2 निराला भाई Additional Important Questions and Answers

कृतिपत्रिका के प्रश्न 1 (अ) तथा प्रश्न 1 (आ) के लिए)
गद्यांश क्र. 1
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :

(1)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 3

(2)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 4

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए : निराला जी ने
(1) यह रचा – ………………………………..
(2) यह किया – ………………………………..
उत्तर :
निराला जी ने
(1) यह रचा – दिव्य वर्ण-गंधवाले मधुर गीत।
(2) यह किया – बर्तन मांजने, पानी भरने जैसे कठिन काम।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विरुद्धार्थी शब्द लिखिए :
(1) कच्चे x ………………………………..
(2) प्रश्न x ………………………………..
(3) कठिन x ………………………………..
(4) जीवन x ………………………………..
उत्तर :
(1) कच्चे x पक्के
(2) प्रश्न – उत्तर
(3) कठिन x सरल
(4) जीवन x मरण।

प्रश्न 2.
गद्यांश में प्रयुक्त शब्द-युग्म ढूँढकर लिखिए :
(1) ………………………………..
(2) ………………………………..
उत्तर :
(1) वर्ण-गंध
(2) दिन-रात।

गद्यांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 5
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 6

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

प्रश्न 2.
किसी अन्य का कष्ट दूर करने के लिए लुप्त हो गई वस्तुएँ –
(1) …………………………..
(2) …………………………..
उत्तर :
किसी अन्य का कष्ट दूर करने के लिए लुप्त हो गई वस्तुएँ –
(1) रजाई
(2) कोट।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) आदेश = ……………………………….
(2) दुष्कर = ……………………………….
(3) अंतर्धान = ……………………………….
(4) दिवंगत = ……………………………….
उत्तर :
(1) आदेश = हुकम
(3) अंतर्धान = अदृश्य
(2) दुष्कर = कठिन
(4) दिवंगत = मृत।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘निर्बंध उदारता’ के बारे में अपना मत 40 से 50 शब्दों में व्यक्त किजिए।
उत्तर :
मनुष्य ही मनुष्य के काम आता है। किसी के दुखदर्द से सहानुभूति रखना अथवा उसकी आर्थिक मदद करना मनुष्य का धर्म है। इससे जरूरतमंद व्यक्ति को राहत और नैतिक सहयोग मिलता है। अनेक संपन्न व्यक्ति एवं बड़ी-बड़ी संस्थाएँ इस प्रकार का सहयोग देने का कार्य करती हैं। कई साधारण व्यक्ति भी अपनी क्षमता के अनुसार अपने जान-पहचान वाले लोगों की मदद करते हैं।

पर सामान्य लोगों के लिए किसी की आर्थिक सहायता करने की एक सीमा होती है। उसे सबसे पहले अपना घर-बार देखना पड़ता है। अगर कोई व्यक्ति अपनी क्षमता से अधिक उदारता बरतने लगता है, तो उसकी आर्थिक स्थिति अस्त-व्यस्त हो जाती है। ‘अति’ किसी की अच्छी नहीं होती। हर काम अपनी सीमा में ही फबता है। इसलिए निबंध उदारता अनुचित ही नहीं है, यह किसी की भी आर्थिक स्थिति को डाँवाडोल कर सकती है।

गद्यांश क्र. 3
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
लिखिए : निराला जी का कक्ष ऐसा था –
(1) ………………………….
(2) ………………………….
(3) सुख-सुविधाहीन।
(4) ………………………….
उत्तर :
(1) निराला जी का कक्ष ऐसा था –
(2) कक्ष में जाने का मार्ग तंग सीढ़ियों से होकर था।
(3) प्रकाश रहित था।
(4) सुख-सुविधाहीन।

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प्रश्न 2.
अतिथि के लिए निराला जी माँग लिया करते थे –
(1) ………………………….
(2) ………………………….
उत्तर :
अतिथि के लिए निराला जी माँग लिया करते थे
(1) लकड़ियाँ
(2) थोड़ा घी।

प्रश्न 3.
अतिथि देवता के लिए निराला जी शौक से ये करते थे-
(1) ………………………….
(2) ………………………….
उत्तर :
अतिथि देवता के लिए निराला जी शौक से ये करते थे –
(1) अतिथि के लिए भोजन बनाने का काम।
(2) उनके जूठे बर्तन माँजना।

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘अतिथि देवो भव’ के बारे में अपने विचार 40 से 50 शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
अतिथियों का स्वागत-सत्कार करना हमारे देश के लोगों के संस्कार का एक अंग रहा है। अतिथि के स्वागत में लोग कोई कसर बाकी नहीं रखते। घर में कोई सामान न हो, तो किसी के यहाँ से माँग-जाँच कर ले आने में भी लोग नहीं हिचकते। पर अतिथि की सेवा करने में कोई कसर नहीं रखते।

सुशील अतिथि मेजबान की क्षमता को ध्यान में रखते हैं और उसके साथ पूरा सहयोग करते हैं। मेजबान की तरफ से कहीं कोई कमी भी रह जाती है तो भी उसके साथ सहयोग करते हैं। ऐसे अतिथि मेजबान के लिए देव स्वरूप होते हैं। पर कुछ अतिथि ऐसे होते हैं, जो मेजबान की तरफ से आवभगत में कहीं कोई कमी रह जाने पर उसकी निंदा करने से भी नहीं चूकते।

कुछ अतिथि ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ की तरह मेजबान के घर आ धमकते हैं और जाने का नाम ही नहीं लेते। ऐसे अतिथि मेजबान के लिए भार स्वरूप होते हैं। जो अतिथि मेजबान की सुविधा-असुविधा का ध्यान रखते हैं, वही अतिथि देव स्वरूप होते हैं।

गद्यांश क्र. 4
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
(a)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 7
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 9

(b)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 8
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 10

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प्रश्न 2.
चौखट पूर्ण कीजिए :
(1) गेरू में रंगे हुए वस्त्र।
(2) शरीर पर इस वस्त्र का अभाव था। –
(3) गद्यांश में प्रयुक्त दो वृक्ष।
(4) कवि का गैरिक शरीर ऐसा लगता था। –
उत्तर :
(1) गेरू में रंगे हुए वस्त्र। – [दोनों अधोवस्त्र और उत्तरीय]
(2) शरीर पर इस वस्त्र का अभाव था। – [अंगोछा]
(3) गद्यांश में प्रयुक्त दो वृक्ष। – [नीम-पीपल]
(4) कवि का गैरिक शरीर ऐसा लगता था – [किसी शिखर जैसा।]

प्रश्न 3.
उत्तर लिखिए : कवि के संन्यास से लेखिका को –
(1) लाभ – ………………………….
(2) हानि – ………………………….
उत्तर :
कवि के संन्यास से लेखिका को
(1) लाभ – साबुन के पैसे बचेंगे।
(2) हानि – जाने कहाँ-कहाँ छप्पर डलवाने पड़ेंगे।

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के वचन बदल कर लिखिए :
(1) निधियाँ – ………………………..
(2) वस्त्रों – ………………………..
(3) रोटियाँ – ………………………..
(4) पुत्रौं – ………………………..
उत्तर :
(1) निधियाँ – निधि
(3) रोटियाँ – रोटी
(2) वस्त्रों – वस्त्र
(4) पुत्रौं – पुत्र

कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘साधु-संन्यासियों से जनता का मोहभंग’ इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपना मत व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
एक समय था जब लोग साधु-संतों और संन्यासियों का बड़ा सम्मान करते थे। वे समाज में बड़े सम्मान की दष्टि से देखे जाते थे। वे समाज-सुधार और जनता के हित के कार्य किया करते थे और बदले में जनता से कोई अपेक्षा नहीं करते थे। लेकिन हाल में जब से साधु-संन्यासियों के वेष में कुछ ढोंगी लोगों ने साधुसंन्यासियों की जमात को अपने समाज-विरोधी कार्यों से बदनाम कर दिया है, तब से लोगों को इनसे घृणा हो गई है।

ऐसा नहीं है कि सच्चे साधु-संन्यासी हैं ही नहीं। हैं, लेकिन इन ढोंगी साधु संन्यासियों ने उनकी छबि-धूमिल कर दी है। ढोंगी साधु-संन्यासियों के बीच सच्चे साधु-संन्यासियों को पहचानना मुश्किल हो गया है। साधु-संन्यासियों से जनता का मोहभंग ढोंगी साधु-संन्यासियों की जमात के कारण हुआ है। सच्चे साधु-संन्यासियों की जनता आज भी मुरीद है।

गद्यांश क्र. 5
प्रश्न. निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई। सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
लिखिए : निराला जी इस दृष्टि से निराले थे –
(1) ………………………..
(2) जीवन में ………………………..
(3) ………………………..
उत्तर :
निराला जी इस दृष्टि से निराले थे –
(1) अपने शरीर की दृष्टि से।
(2) जीवन में।
(3) अपने साहित्य की दृष्टि से।

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प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :
(1) देखने वालों के हृदय में इससे आतंक उत्पन्न होता था –
(2) सत्य दृष्टा ऐसे होते हैं –
(3) अन्याय के प्रतिकार का निराला जी का तरीका –
(4) निराला जी की लेखनी की विशेषता –
उत्तर :
(1) देखने वालों के हृदय में इससे आतंक उत्पन्न होता था – [निराला जी का विशाल डील-डौल देखकर।]
(2) सत्यदृष्टा ऐसे होते हैं – [बालकों जैसे सरल और विश्वासी।]
(3) अन्याय के प्रतिकार का निराला जी का तरीका – [लेखनी के पहले हाथ उठाना।]
(4) निराला जी की लेखनी की विशेषता – [उनकी लेखनी हाथ से अधिक कठोर प्रहार करती थी।]

प्रश्न 3.
संबंध निरूपित कीजिए :
(1) क्रूरता – ………………………..
(2) कायरता – ………………………..
उत्तर :
(1) क्रूरता – वृक्ष की जड़ के अव्यक्त रस में
(2) कायरता – वृक्ष के फल के व्यक्त स्वाद में।

प्रश्न 4.
आकृति पूर्ण कीजिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 11
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 12

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :
(1) शरीर = ………………………………………
(2) सत्य = ………………………………………
(3) प्रतिकार = ………………………………………
(3) कठोर = ………………………………………
उत्तर :
(1) शरीर = तन
(2) सत्य = सच्चाई
(3) प्रतिकार = विरोध
(4) कठोर = कड़ा

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कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘अन्याय सहन करना भी अन्याय है।’ इस विषय पर 40 से 50 . शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
सभी मनुष्य समान हैं। किसी को भी किसी के साथ अन्याय करने का अधिकार नहीं है। इसके बावजूद कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपने से कमजोर व्यक्तियों पर अत्याचार करने से नहीं चूकते। कभी किन्हीं कारणों से जिनके साथ अन्याय होता है, वे उसका विरोध भी नहीं कर पाते।

वे समझते हैं कि विरोध करने का परिणाम उल्टा होगा और अत्याचारी उसे और सताने की कोशिश करेगा। लेकिन यह सोच उचित नहीं है। अन्याय का विरोध न करने से अत्याचारी का मन और बढ़ जाता है। वह समझ जाता है कि उसके अत्याचार का विरोध करने की संबंधित व्यक्ति में शक्ति नहीं है।

इसलिए ऐसे लोगों पर अत्याचार करना अपना अधिकार मान लेता है और वह निडर होकर उन पर अत्याचार करता रहता है। इस तरह अत्याचार सहन करना अपने आप पर अन्याय हो जाता मुक्ति मिल सकती है।

गद्यांश क्र. 6 प्रश्न.
निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
उत्तर लिखिए : निराला जी के व्यवहार के बारे में जन-मत –
(1) – …………………………………..
(2) – …………………………………..
उत्तर :
(1) कोई उनकी उदारता की भूरि-भूरि प्रशंसा करता था।
(2) कोई उनके उद्धत व्यवहार की निंदा करते नहीं हारता था।

प्रश्न 2.
संजाल पूर्ण कीजिए :
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उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 15

प्रश्न 3.
कृति पूर्ण कीजिए :
(1) निराला अपने युग की यह हैं – …………………………………..
(2) उनके जीवन के चारों ओर यह नहीं है – …………………………………..
(3) उनके लिए परिवार के कोंपल यह बन गए – …………………………………..
(4) आर्थिक कारणों से उन्हें यह नहीं मिली – …………………………………..
उत्तर :
(1) विशिष्ट प्रतिमा
(2) परिवार का लौहसार घेरा।
(3) पत्नी वियोग के पतझड़।
(4) अपनी संतान के प्रति कर्तव्य-निर्वाह की सुविधा।

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प्रश्न 4.
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उत्तर :
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कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
गद्यांश में प्रयुक्त उपसर्गयुक्त शब्द ढूँढ़ कर लिखिए :
(1) …………………………………….
(2) …………………………………….
(3) …………………………………….
(4) …………………………………….
उत्तर :
(1) असफलता
(2) निष्फल
(3) सजातीय
(4) अभिशाप।

व्याकरण

1. मुहावरे :

• निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
(1) आँखों में धूल झोंकना।
अर्थ : धोखा देना।
वाक्य : साइबर क्राइम से अच्छे-अच्छे लोगों की आँखों में धूल झोंककर लाखों रुपए ऐंठ लिए जाते हैं।

(2) आँखें बिछाना।
अर्थ : अति उत्साह से स्वागत करना।
वाक्य : स्वामी जी के दर्शन के लिए श्रद्धालु आँखें बिछाए हुए थे।

(3) कान में कौड़ी डालना।
अर्थ : गुलाम बनाना।
वाक्य : अंग्रेजों ने भारी संख्या में भारतीय मजदूरों के कान में कौड़ी डाल रखा था।

2. काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :
(1) कौन बहिन हम जैसे भुक्खड़ को भाई बनाएगी। (सामान्य वर्तमानकाल)
(2) उनके अस्त-व्यस्त जीवन को व्यवस्थित करने के असफल प्रयासों का स्मरण कर मुझे आज भी हँसी आ जाती है। (अपूर्ण भूतकाल)
(3) उनकी व्यथा की सघनता जानने का मुझे एक अवसर मिला था। (पूर्ण वर्तमानकाल)
(4) पंत के साथ तो रास्ता कम अखरता था, पर अब सोचकर ही थकावट होती है। (सामान्य भविष्यकाल)
(5) निराला जी अपने शरीर, जीवन और साहित्य सभी में असाधारण हैं। (पूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
(1) कौन बहिन हम जैसे भुक्खड़ को भाई बनाती है।
(2) उनके अस्त-व्यस्त जीवन को व्यवस्थित करने के असफल प्रयासों का स्मरण कर मुझे आज भी हँसी आ रही थी।
(3) उनकी व्यथा की सघनता जानने का मुझे एक अवसर मिला है।
(4) पंत के साथ तो रास्ता कम अखरता था, पर अब सोचकर ही थकावट होगी।
(5) निराला जी अपने शरीर, जीवन और साहित्य सभी में असाधारण थे।

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3. वाक्य शुद्धिकरण :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके लिखिए :
(1) निराला जी अपनी युग के विशिष्ट प्रतिभा हैं।
(2) सत्य की मार्ग सरल हैं।
(3) मनुष्य जाती की नासमझी की इतिहास क्रूर और लंबा है।
(4) निराला जी अपना शरीर, जीवन और साहित्य सभी में असाधारण है।
(5) उनके जीवन पर संघर्श के जो आघात हैं, वे उनकी हार के नहीं शक्ती के प्रमाणपत्र हैं।
उत्तर :
(1) निराला जी अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा हैं।
(2) सत्य का मार्ग सरल है।
(3) मनुष्य जाति की नासमझी का इतिहास क्रूर और लंबा है।
(4) निराला जी अपने शरीर, जीवन और साहित्य सभी में असाधारण हैं।
(5) उनके जीवन पर संघर्ष के जो आघात हैं, वे उनकी हार के नहीं शक्ति के प्रमाणपत्र हैं।

निराला भाई Summary in Hindi

निराला भाई लेखक का परिचय

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 17

निराला भाई लेखक का नाम : श्रीमती महादेवी वर्मा। (जन्म 26 मार्च, 1907; निधन 1987.)

प्रमुख कृतियाँ : नीहार, रश्मि, नीरजा, दीपशिखा, सांध्यगीत, यामा (कविता संग्रह), अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार (रेखाचित्र), श्रृंखला की कड़ियाँ तथा साहित्यकार की आस्था (निबंध)।

विधा : संस्मरण।

विषय प्रवेश : प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला’ की गणना हिंदी के श्रेष्ठ कवियों में की जाती है। वे हिंदी साहित्य में छायावादी कवि एवं क्रांतिकारी व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं। प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा एवं निराला जी दोनों का कार्यक्षेत्र प्रयागराज रहा है। इसलिए भी कवयित्री निराला जी को नजदीक से जानती-समझती और उनके व्यक्तित्व से गहराई से परिचित रही हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

प्रस्तुत संस्मरण में उन्होंने निराला जी को जिन विभिन्न रूपों में देखा और परखा है, उसे उन्होंने बेबाकी से शब्दांकित किया है। – इस संस्मरण से हमें निराला जी के फक्कड़पन, उनके व्यक्तित्व, उनकी निर्धनता, उदारता, संवेदनशीलता, आतिथ्य सत्कार की भावना तथा पारिवारिक दशा आदि के बारे में अनेक अनछुई बातों की जानकारी मिलती है।

निराला भाई पाठ का सार

कवयित्री महादेवी वर्मा प्रसिद्ध कवि निराला जी के साथ घटित कई घटनाओं की साक्षी रही हैं। उन्होंने उन्हें नजदीक से देखा-समझा है। उन्होंने इस संस्मरण में उनके साथ घटी हुई अनेक घटनाओं और उनके स्वभाव एवं व्यवहार का चित्रण किया है।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई 18

निराला जी संवेदनशील उदार, आतिथ्यप्रेमी, सहृदय, फक्कड़ किस्म के और सदा निर्धनता में जीवन बिताने वाले कवि रहे हैं। वे स्पष्टवादी व्यक्ति थे और अपने बारे में सही बात कहने से नहीं चूकते थे। एक बार रक्षाबंधन त्योहार के अवसर पर कवयित्री ने उनकी सूनी कलाइयाँ देखकर इसके बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, “कौन बहन मुझ भुक्खड़ को भाई बनाएगी।”

कवि अपनी उदारता और दूसरों का दुख दूर करने की प्रवृत्ति के कारण सदा तंगी में रहे। वे खुद कष्ट सह लेते थे पर दूसरों का कष्ट दूर करके रहते थे। एक बार तो उन्होंने अपने लिए बनवाई गई रजाई और कोट भी किसी ठिठुरते हुए को दे दिया और खुद काँपते हुए मजे से सर्दियाँ काट दीं।

आर्थिक संकट सदा उनका साथी रहा। इसके कारण वे अपनी मातृविहीन संतान की भी उचित देखभाल न कर पाए। पुत्री के अंतिम क्षणों में असहाय बने रहे और पुत्र को उचित शिक्षा न दे पाए।

एक बार तो उन्होंने कवयित्री को 300 रुपए देकर अपने खर्च का बजट बनाने के लिए कहा था। पर बजट बनते-बनते तक सारे पैसे लेकर जरूरतमंद लोगों को दे डाले।

एक बार प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त ने उनका आतिथ्य ग्रहण किया था। जब वे आए तो वे दियासलाई के प्रकाश में उन्हें लेकर तंग सीढ़ियों से होकर अपने सुविधा रहित कक्ष में पहुँचे तो वहाँ ढंग का बिस्तर भी नहीं था। फिर उन्होंने घर में धोती, चादर जो कुछ मिला उसे तख्त पर बिछाकर बड़े प्यार से उन्हें प्रतिष्ठित किया था। अतिथि का सत्कार करने के लिए उन्होंने कवयित्री से एक बार जलावन लकड़ी और घी तक माँग लिया था।

समकालीन साहित्यकारों की व्यथा के बारे में सुनकर वे विचलित हो जाते थे। एक बार सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु की झूठी खबर पढ़कर वे बेचैन हो गए थे और सच्चाई जानने के लिए सारी रात जागते हुए इंतजार करते रहे।

एक बार तो उन्होंने अपने दोनों अधोवस्त्र और उत्तरीय गेरू में रंग डाले थे। कवयित्री उनका रूप देखती रह गई थीं। कहने लगे, “अब ठीक है। जहाँ पहुँचे, किसी नीम या पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए। दो रोटियाँ माँग कर खा लीं और गीत लिखने लगे।”

निराला जी के विशाल डील-डौल से देखने वाले के हृदय में आतंक उत्पन्न हो जाता था, पर उनकी आत्मीयता से यह भय तिरोहित हो जाता था।

निराला ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके बारे में अलग-अलग व्यक्तियों की अलग-अलग धारणाएँ थीं। कोई उनकी उदारता की प्रशंसा करते नहीं थकता तो कोई उनके उद्धत व्यवहार की निंदा करते नहीं हारता। पर उन्हें समझ पाना हर किसी के वश की बात नहीं थी।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 2 निराला भाई

निराला जी अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा थे। वे एक विद्रोही साहित्यकार थे। कवयित्री का मानना है कि निराला जी किसी दुर्लभ सीप में ढले सुडौल मोती नहीं थे, वे तो अनगढ़ पारस के भारी शिलाखंड थे। पारस की अमूल्यता दूसरों का मूल्य बढ़ाने में होती है। उसके मूल्य में तो न कोई कुछ जोड़ सकता है, न कुछ घटा सकता है।

निराला भाई शब्दार्थ

  • भुक्खड़ = जिसके पास कुछ न हो, कंगाल
  • औढरदानी = अत्यंत उदारतापूर्वक दान करने वाला
  • अक्षुण्ण = अखंडित
  • लौहसार = लोहे का कठघरा
  • अछोर = ओर-छोर रहित, असीम
  • महाघ = बहुमूल्य
  • कुहेलिका = कोहरा, धुंध
  • नापित = नाई
  • मधुकरी = भोजन की भिक्षा
  • डीलडौल = कदकाठी
  • कोंपल = नई पत्ती
  • अकूल = बिना किनारेवाला
  • अनगढ़ = जिसे व्यवस्थित गढ़ा न गया हो
  • संसृति = संसार, सृष्टि

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कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर

प्रश्न 1.
(अ) कृति पूर्ण कीजिए :

बल इसके लिए होता है ↓
(a) …………………………………….
(b) …………………………………….
उत्तर :
(a)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 11
(b)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 12

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण

(आ) जिसे मंजिल का पता रहता है वह :

(a) …………………………………….
(b) …………………………………….
उत्तर :
(a) सब के बल बनना – सब की मदद करना।
(b) पथ के संकट सहना – मंजिल पर पहुँचने की कोशिश में होने वाला कष्ट सहन करना।

शब्द संपदा

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों से उपसर्गयुक्त शब्द तैयार कर उनका अर्थपूर्ण वाक्य में प्रयोग कीजिए :

(a) नीति – …………………………………….
(b) बल – …………………………………….
उत्तर :
(a) उपसर्गयुक्त शब्द – अनीति।
वाक्य : अनीति के मार्ग पर नहीं चलना चाहिए।

(b) उपसर्गयुक्त शब्द – आजीवन।
वाक्य : कुछ पाठक पुस्तकालयों के आजीवन सदस्य होते हैं।

अभिव्यक्ति

प्रश्न 3.
(अ) ‘धरती से जुड़ा रहकर ही मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है’, इस विषय पर अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर :
लक्ष्य का अर्थ है निर्धारित उद्देश्य, जिसे प्राप्त करने के लिए गंभीरता पूर्वक नजर रखी जाए और उसे अर्जित करने के लिए यथासंभव प्रयास किया जाए। हर व्यक्ति का अपने-अपने है ढंग से लक्ष्य निर्धारण करने और उसे अर्जित करने का अपना तरीका होता है। कोई इसे हल्के-फुल्के ढंग से लेता है और बड़े से बड़ा लक्ष्य निर्धारित कर लेता है। ऐसे लक्ष्य क्षमता की कमी है और अपर्याप्त साधन के अभाव में कभी पूरे नहीं हो पाते। जो व्यक्ति अपनी क्षमता और अपने पास उपलब्ध साधनों के अनुसार लक्ष्य का निर्धारण और उसकी पूर्ति के लिए तन-मन-धन से प्रयास करता है, वह व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में अवश्य सफल होता है। ऐसे दूरदर्शी व्यक्ति जमीन से जुड़े हुए होते हैं और समझ-बूझ कर अपना लक्ष्य निर्धारित करते तथा उसके निरंतर प्रयासरत रहते हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण

(आ) ‘समाज का नवनिर्माण और विकास नर-नारी के सहयोग से ही संभव है’, इसपर अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
हमारा समाज विभिन्न प्रकार की कुरीतियों और समस्याओं से भरा हुआ है। अनेक समाज सुधारकों के कठिन परिश्रम के बावजूद आज भी हमारे समाज में अनेक प्रकार की विषमताएँ व्याप्त हैं। असमानता, जातीयता, सांप्रदायिकता, प्रांतीयता, अस्पृश्यता आदि समस्याओं के कारण समाज के नर-नारी दोनों समान रूप से व्यथित हैं। जब तक हमारे समाज से ये बुराइयाँ दूर नहीं होती, तब तक समाज का नव निर्माण और विकास होना असंभव है। नर-नारी दोनों रथ के दो पहियों के समान हैं। बिना दोनों के सहयोग से आगे बढ़ना मुश्किल है। समाज की अनेक समस्याएँ ऐसी हैं, जिनके बारे में नारी को नर से अधिक जानकारियाँ होती हैं। नर-नारी दोनों कंधे से कंधा मिलाकर समाज उत्थान के कार्य में जुटेंगे, तभी समाज का . नव निर्माण और विकास संभव हो सकता है।

रसास्वादन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर चतुष्पादियों का रसास्वादन कीजिए :
(1) रचनाकार का नाम – …………………………………….
(2) पसंद की पंक्तियाँ – …………………………………….
(3) पसंद आने के कारण – …………………………………….
(4) कविता का केंद्रीय भाव – …………………………………….
उत्तर :
(1) रचना का शीर्षक : नव निर्माण।
(2) रचनाकार : त्रिलोचन (मूलनाम – वासुदेव सिंह)
(3) कविता की केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में संघर्ष करने, अत्याचार, विषमता तथा निर्बलता पर विजय पाने का आवाहन किया गया है तथा समाज में समानता, स्वतंत्रता एवं मानवता की स्थापना की बात कही गई है।
(4) रस-अलंकार :
(5) प्रतीक विधान : कविता में विश्वास और प्रेरणा की मात्रा दर्शाने के लिए ‘आकाश’ तथा नर-नारी द्वारा नए समाज की रचना करने का कठिन कार्य करने के लिए ‘काँटों के ताज’ लेने जैसे प्रतीकों का सुंदर प्रयोग किया गया है।
(6) कल्पना : दबे-कुचले लोगों के प्रति आशावाद एवं उत्थान के स्वर बुलंद करना।

(7) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव : कविता की पसंद की । पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
जिसको मंजिल का पता रहता है,
पथ के संकट को वही सहता है,
एक दिन सिद्धि के शिखर पर बैठ
अपना इतिहास वही कहता है।

(8) कविता पसंद आने का कारण : प्रस्तुत पंक्तियों में यह बात कही गई है कि एक बार अपने लक्ष्य का निर्धारण कर लेने के बाद मनुष्य को हर समय उसको पूरा करने के काम में जी-जान से लग जाना चाहिए। फिर मार्ग में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, उन्हें सहते हुए निरंतर आगे ही बढ़ते रहना चाहिए। एक दिन ऐसे व्यक्ति को सफलता मिलकर ही रहती है। ऐसे ही व्यक्ति लोगों के आदर्श बन जाते हैं। लोग उनका गुणगान करते है और उनसे प्रेरणा लेते हैं।

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साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

प्रश्न 5.
(अ) चतुष्पदी के लक्षण लिखिए।
……………………………………………
……………………………………………
उत्तर :
चतुष्पदी चौपाई की भाँति चार चरणों वाला छंद होता है। इसके प्रथम, द्वितीय तथा चतुर्थ चरण में पंक्तियों के तुक मिलते हैं। तीसरे चरण का तुक नहीं मिलता। प्रत्येक चतुष्पदी भाव और विचार की दृष्टि से अपने आप में पूर्ण होती है और कोई चतुष्पदी किसी दूसरी से संबंधित नहीं होती।

(आ) त्रिलोचन जी के दो काव्य संग्रहों के नाम
……………………………………………
उत्तर :
त्रिलोचन जी के कुल पाँच काव्य संग्रह हैं –

  • धरती
  • दिगंत
  • गुलाब और बुलबुल
  • उस जनपद का कवि हूँ
  • सब का अपना आकाश।

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निम्नलिखित वाक्य शुद्ध करके फिर से लिखिए :

  1. अतिथि आए है, घर में सामान नहीं है।
    ……………………………………………
  2. परंतु अम्यान भी अपराध है।
    ……………………………………………
  3. उसके सत्य का पराजय हो जाता है।
    ……………………………………………
  4. प्रेरणा और ताकद बनकर परस्पर विकास मे सहभागी बनें।
    ……………………………………………
  5. दिलीप अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थी।
    ……………………………………………
  6. आप इस शेष लिफाफे को खोलकर पढ़ लीजिए।
    ……………………………………………
  7. उसमें फुल बिछा दें।
    ……………………………………………
  8. कहाँ खो गई है आप।
    ……………………………………………
  9. एक मैं सफल सूत्र संचालक के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
    ……………………………………………
  10. चलते-चलते हमारे बीच का अंतर कम हो गया था।
    ……………………………………………

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उत्तर :

  1. अतिथि आए हैं, घर में सामान नहीं है।
  2. परंतु अज्ञान भी अपराध है।
  3. उसका सत्य पराजित हो जाता है।
  4. प्रेरणा और ताकत बनकर परस्पर विकास में सहभागी बनें।
  5. दिलीप अपने माता-पिता की इकलौती संतान था।
  6. शेष आप इस लिफाफे को खोल कर पढ़ लीजिए।
  7. उसमें फूल बिछा दें।
  8. कहाँ खो गई हैं आप?
  9. मैं एक सफल सूत्र संचालक के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
  10. हमारे बीच का अंतर चलते-चलते कम हो गया था।

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कृति-स्वाध्याय एवं उत्तर
पद्यांश क्र. 1
कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (अ) तथा प्रश्न 2 (आ) के लिए
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़करदी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
कृति पूर्ण कीजिए :
(a)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 4

(b)
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 5

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प्रश्न 2.
ऐसे दो प्रश्न बनाकर लिखिए जिनके उत्तर निम्नलिखित शब्द हों :

(a) उत्तर लिखिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 6

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्द के अर्थ वाले दो शब्द पद्यांश से ढूँढ कर लिखिए :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 7
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 8

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के शब्द-युग्म बना कर लिखिए :
(1) तोड़ – ……………………………..
(2) काम – ……………………………..
(3) जाना – ……………………………..
(4) आकाश – ……………………………..
उत्तर :
(1) तोड़ – जोड़
(2) काम – काज
(3) जाना – आना
(4) आकाश – पाताल।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए :
(1) विश्वास x ……………………………..
(2) अँधेरा x ……………………………..
(3) सत्य x ……………………………..
(4) सामने x ……………………………..
उत्तर :
(1) विश्वास – अविश्वास
(2) अँधेरा x उजाला
(3) सत्य x असत्य
(4) सामने x पीछे।

पद्यांश क्र. 2
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़करदी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के उपसर्गयुक्त शब्द तैयार कर उनका अर्थपूर्ण वाक्यों में प्रयोग कीजिए :
*(1) बल
(2) न्याय।
उत्तर :
(1) शब्द : निर् + बल = निर्बल।
वाक्य : निर्बल को सताना नहीं चाहिए।

(2)शब्द : अ + न्याय = अन्याय।
वाक्य : किसी व्यक्ति का अपनी बात कहने का अधिकार छीनना उसके साथ अन्याय करना है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के लिंग पहचानकर लिखिए :
(1) सिद्धि – …………………….
(2) इतिहास – …………………….
(3) मंजिल – …………………….
(4) पथ – …………………….
उत्तर :
(1) सिद्धि – स्त्रीलिंग।
(2) इतिहास – पुल्लिंग।
(3) मंजिल – स्त्रीलिंग।
(4) पथ – पुल्लिंग।

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कृति 3 : (अभिव्यक्ति)

प्रश्न 1.
‘मानव सेवा ही सच्ची सेवा है’ इस विषय पर 40 से 50 शब्दों में अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
सेवा करने का अर्थ है किसी को प्रसन्न करने का प्रयत्न करना। दूसरों का दुख दूर करना सेवा का उद्देश्य है। दीनदुखी हमारे समाज के अंग हैं। अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए वे समाज से ही अपेक्षा रखते हैं। उनकी सेवा-सहायता करना समाज का कर्तव्य है। मानव सेवा विविध रूपों में की जा सकती है। पीड़ित व्यक्ति को बचाया जा सकता है। जिसके साथ अन्याय हो रहा है उसे न्याय दिलाया जा सकता है। निर्धन रोगियों को उनके इलाज का खर्च दिया जा सकता है। गरीब परिवार की कन्याओं के विवाह के लिए आर्थिक मदद की जा सकती है। अनेक संतों और समाज सेवियों ने अपना जीवन ही मानव सेवा को अर्पित कर दिया। दीनदुखियों की सेवा कर हम उनके चेहरों पर खुशी ला सकते हैं। इस तरह मानव सेवा ही सच्ची सेवा है।

पद्यांश क्र. 3
प्रश्न. निम्नलिखित पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :

कृति 1 : (आकलन)

प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए :
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उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 14

प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए :
(1) आज नर-नारी –
(i) इस तरह निकलेंगे – ………………………..
(ii) यह लेंगे – ………………………..
(iii) दोनों की विशेषताएँ – ………………………..
(iv) दोनों रचना करेंगे – ………………………..
उत्तर :
(i) इस तरह निकलेंगे – साथ-साथ।
(ii) यह लेंगे – काँटों का ताज।
(iii) दोनों की विशेषताएँ – संगी हैं, सहचर हैं।
(iv) दोनों रचना करेंगे – समाज की।

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प्रश्न 3.
लिखिए –
(i) काँटों का ताज लेंगे, यानी क्या?
(ii) ‘गीत मेरा भविष्य गाएगा’ से कवि का तात्पर्य?
उत्तर :
(i) महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सँभालेंगे।
(ii) भविष्य में (जब वर्तमान अतीत हो जाएगा तब) लोग वर्तमान की प्रशंसा करेंगे।

प्रश्न 4.
वर्तमान का कथन –
(i) ………………………..
(ii) ………………………..
(iii) ………………………..
(iv) ………………………..
उत्तर :
(i) अतीत अच्छा था।
(ii) प्राण के पथ का गीत अच्छा था।
(iii) मेरा गीत भविष्य गाएगा।
(iv) अतीत का भी गीत अच्छा था।

प्रश्न 5.
दो ऐसे प्रश्न बनाकर लिखिए जिनके उत्तर निम्नलिखित शब्द हों :
(1) समाज की
(2) भविष्य।
उत्तर :
(1) नर-नारी किसकी रचना करेंगे?
(2) वर्तमान के गीत कौन गाएगा?

कृति 2 : (शब्द संपदा)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के युग्म-शब्द बना कर लिखिए :
(1) ……………………………… मीत
(2) साथ – ………………………………
(3) संगी – ………………………………
(4) अच्छा – ………………………………
उत्तर :
(1) हित – मीत
(2) साथ – साथ
(3) संगी – साथी
(4) अच्छा – बुरा।

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रसास्वादन मुद्दों के आधार पर

कृतिपत्रिका के प्रश्न 2 (इ) के लिए

निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर ‘नव निर्माण’ कविता का रसास्वादन कीजिए।

रसास्वादन अर्थ के आधार पर

प्रश्न 1.
अन्याय, अत्याचार से दीन-दुखियों को मुक्ति दिलाने के लिए उनका बल बन जाना ही बलवान व्यक्तियों के बल का सही उपयोग हैं। इस कथन के आधार पर ‘नव निर्माण’ कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
कवि त्रिलोचन द्वारा चतुष्पदी छंद में रचित कविता ‘नव निर्माण’ का मूलतत्त्व जीवन में संघर्ष करना बताया गया है। हमारे समाज में व्याप्त अन्याय, अत्याचार, विषमता आदि का बोलबाला है। कवि इन बुराइयों पर काबू पाने के लिए लोगों को बल और साहस एकत्र करने का आवाहन करते हैं। यह सर्व विदित है कि ये सारी बुराइयाँ कुछ लोगों द्वारा अपने शारीरिक एवं आर्थिक बल का दुरुपयोग करने के कारण पनपती हैं। इसलिए इन पर विजय पाने का मार्ग भी बल का प्रयोग ही है। यहाँ बल प्रयोग से कवि का आशय किसी के विरुद्ध बल का अनावश्यक प्रयोग करने से न होकर सताए हुए, दबाए हुए बलहीन लोगों का बल बन कर दिखाने से है। बलहीन निरीह व्यक्तियों पर होने वाला अन्याय और अत्याचार तभी रुक सकता है और तभी उन्हें समाज में समानता का दर्जा मिल सकता है और वे निर्बलता पर विजय प्राप्त कर सकेंगे। इसी बात को कवि अपनी कविता में बिना किसी लाग-लपेट के सीधे-सादे सरल शब्दों में इस प्रकार कहते हैं –

बल नहीं होता सताने के लिए,
वह है पीड़ित को बचाने के लिए।
बल मिला है, तो बल बनो सबके,
उठ पड़ो न्याय दिलाने के लिए।

कवि ने इस कविता में अपनी बात कहने के लिए न कहीं रसअलंकार वाली शृंगारिक भाषा का प्रयोग किया है और न ही उन्हें अपनी बात कहने के लिए दुरुहता के मायाजाल में ही फँसना पड़ा है। कविता के शाब्दिक शरीर के रूप में सरल शब्दों की अमिघा शक्ति तथा कविता का प्रसाद गुण कविता में व्यक्त भावों को सरलतापूर्वक आत्मसात करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

व्याकरण

1. अलंकार :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में उद्धृत अलंकार पहचानकर उसका नाम लिखिए :
(1) हाय फूल-सी कोमल बच्ची। हुई राख की थी ढेरी।
(2) मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों।
(3) इस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा। मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।
उत्तर :
(1) उपमा अलंकार।
(2) रूपक अलंकार।
(3) उत्प्रेक्षा अलंकार।

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2. रस :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में उद्धृत रस पहचानकर उसका नाम लिखिए :
(1) उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।
उत्तर :
रौद्र रस

प्रश्न 2.
काहु न लखा सो चरित बिसेरवा। सो स्वरूप नृपकन्या देखा। मर्कट बदन भयंकर देही। देखत हृदय क्रोध भा तेही। जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि तेहिन विलोकी भूली। पुनि पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं। देखि दशा हर गान मुसुकाहीं।
उत्तर :
हास्य रस।

3. मुहावरे :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए :
(1) अपना उल्लू सीधा करना।
अर्थ : अपना स्वार्थ सिद्ध करना।
वाक्य : रमेश से समाज के हित की उम्मीद करना व्यर्थ है, वह हमेशा अपना उल्लू सीधा करने में लगा रहता है।

(2) दिन दूना रात चौगुना बढ़ना।
अर्थ : दिन प्रतिदिन अधिक उन्नति करना।
वाक्य : जब से मुनीम जी की सलाह से सेठ करोड़ीमल ने काम-काज शुरू किया है, तब से उनका धंधा दिन दूना रात चौगुना बढ़ता जा रहा है।

4. काल परिवर्तन :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों के साथ दी गई सूचना के अनुसार काल परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए :
(1) तुमने मुझे विश्वास दिया है। (अपूर्ण वर्तमानकाल)
(2) राह में अँधेरा है। (सामान्य भविष्यकाल)
(3) नर-नारी साथ निकलेंगे। (पूर्ण भूतकाल)
उत्तर :
(1) तुम मुझे विश्वास दे रहे हो।
(2) राह में अँधेरा होगा।
(3) नर-नारी साथ निकले थे।

नवनिर्माण Summary in Hindi

नवनिर्माण कवि का परिचय

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण 15

नवनिर्माण कवि का नाम : त्रिलोचन। वास्तविक नाम वासुदेव सिंह। (जन्म 20 अगस्त, 1917; निधन 2007.)

प्रमुख कृतियाँ : धरती, दिगंत, गुलाब और बुलबुल, उस जनपद का कवि हूँ, सब का अपना आकाश (कविता संग्रह); देशकाल (कहानी संग्रह) तथा दैनंदिनी (डायरी) आदि।

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विशेषता : काव्यक्षेत्र में प्रयोग धर्मिता के समर्थक। समाज के दबे-कुचले वर्ग को संबोधित करने वाले साहित्य के रचयिता।

विधा : चतुष्पदी। इस विधा में चार चरणों वाला छंद होता है। यह चौपाई की तरह होता है। इसके प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ चरण में तुकबंदी होती है। भाव और विचार की दृष्टि से प्रत्येक चतुष्पदी अपने आप में पूर्ण होती है।

विषय प्रवेश : प्रस्तुत पद्य पाठ में कुल आठ चतुष्पदियाँ दी गई हैं। ये सभी चतुष्पदियाँ भाव एवं विचार की दृष्टि से अपने आप में पूर्ण है। इन चतुष्पदियों में आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। कवि ने इनके माध्यम से संघर्ष करने तथा अन्याय, अत्याचार, विषमता और निर्बलता पर विजय पाने का आवाहन किया है।

नवनिर्माण चतुष्पदियों का सरल अर्थ

(1) तुमने विश्वास ……………………………….. आकाश दिया है मुझको।
मनुष्य के जीवन में किसी का विश्वास प्राप्त करने तथा किसी से प्रोत्साहन पाने का बड़ा महत्त्व होता है। इनके बल पर मनुष्य बड़े-बड़े काम कर डालता है।

कवि कहते हैं कि, तुमने मुझे जो विश्वास और प्रेरणा दी है वह मेरे लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इन्हें देकर तुमने मुझे असीम संसार दे दिया है। पर मैं इन्हें इस तरह सँभाल कर अपने पास रखूगा कि मैं आकाश में न उहूँ और मेरे पाँव हमेशा जमीन पर रहें। अर्थात मुझे अपनी मर्यादा का हमेशा ध्यान रहे।

(2) सूत्र यह तोड़ ……………………………….. छोड़ नहीं सकते।

कवि मनुष्य के बारे में कहते हैं कि वह चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए, आकाश में उड़ानें भरता हो या अन्य कहीं उड़ कर चला जाए, पर अंत में उसे अपनों के बीच यानी धरती पर तो आना ही पड़ता है। कवि कहते हैं कि, यह बात शाश्वत सत्य है। इस सच्चाई को कोई नियम तोड़-मरोड़ कर झूठा साबित नहीं कर सकता। अर्थात मनुष्य कितना भी आडंबर क्यों न कर ले, पर वह अपनी वास्तविकता को छोड़ नहीं सकता।

(3) सत्य है ……………………………….. सामने अँधेरा है।
कवि संघर्ष करने का आवाहन करते हुए कहते हैं कि आपकी राह अँधेरों से भरी हुई है; भले यह बात सच हो या आपकी प्रगति के द्वार को अवरुद्ध करने के लिए तरह-तरह की कठिनाइयाँ रास्ते में आ रही हों, तब भी आपको संघर्ष के मार्ग पर रुकना नहीं है।

अँधेरे में भी आगे ही आगे बढ़ते जाना है, क्योंकि इसके अलावा आपके सामने और कोई चारा भी तो नहीं है। कवि का कहने का तात्पर्य यह है कि संघर्ष करना जारी रखना चाहिए। संघर्ष से ही सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

(4) बल नहीं होता ……………………………….. “दिलाने के लिए।

कवि कहते हैं कि मनुष्य को निरर्थक कार्यों के लिए अपने बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उसका प्रयोग सार्थक कार्यों के लिए होना चाहिए। वे कहते हैं कि मनुष्य के पास बल किसी असहाय, पीड़ित व्यक्ति को सताने के लिए नहीं होता। बल्कि वह किसी असहाय या पीड़ित व्यक्ति की रक्षा करने के लिए होता है। कवि बलवान व्यक्तियों को संबोधित करते हुए कहते हैं, यदि ईश्वर ने तुम्हें शक्ति प्रदान की है, तो तुम सभी कमजोर लोगों के बल बन ३ कर उनको न्याय दिलाने के काम में लग जाओ। तभी तुम्हारे बल की सार्थकता है।

(5) जिसको मंजिल ……………………………….. वही कहता है।

कवि कहते हैं कि जिस व्यक्ति को अपनी सफलता की मंजिल की जानकारी हो जाती है, वह व्यक्ति अपने मार्ग में आने वाली परेशानियों से नहीं डरता। वह हँसते-हँसते इन परेशानियों को झेल लेता है। ऐसे व्यक्तियों को ही जीवन में सफलता मिलती है। इस तरह सफलता के शिखर पर पहुँचने वाले व्यक्ति समाज के लिए इतिहास बन जाते हैं और लोग उससे प्रेरणा लेते हैं।

Maharashtra Board Class 12 Hindi Yuvakbharati Solutions Chapter 1 नवनिर्माण

(6) प्रीति की राह ……………………………….. चले आओ।
कवि प्यार-मोहब्बत और अच्छे आचार-व्यवहार को अपनाने की बात करते हुए लोगों का आवाहन करते हैं कि वे सब के साथ प्यार-मोहब्बत से रहें और सब के साथ अच्छा व्यवहार करें। यही सब के लिए अपनाने वाला सही मार्ग है। वे कहते हैं कि सब को हँसते-गाते जीवन जीने का मार्ग अपनाना चाहिए।

(7) साथ निकलेंगे ……………………………….. “समाज नर-नारी।
कवि स्त्री-पुरुष समानता की बात करते हुए कहते हैं कि स्त्री पुरुष दोनों एक साथ मिल कर विकट समस्याओं को सुलझाने का कार्य करेंगे। दोनों इस दिशा में कंधे से कंधा मिलाकर काम करेंगे और नए समाज की रचना करेंगे, जिसमें सब को समानता का अधिकार मिले।

(8) वर्तमान बोला……………………………….. गीत अच्छा था।

कवि वर्तमान और अतीत की बात करते हुए कहते हैं कि वर्तमान के अनुसार बीता हुआ समय अच्छा था। उस समय जीवन पथ में साथ निभाने वाले अच्छे मित्र थे। वर्तमान कहता है कि भविष्य में (जब हम अतीत हो जाएँगे और) लोग हमारा भी गुणगान करेंगे। वैसे अतीत भी गुणगान करने लायक था।

नवनिर्माण शब्दार्थ

  • व्योम = आकाश
  • सहचर = साथ-साथ चलने वाला, मित्र
  • सिद्धि = सफलता
  • मीत = मित्र, दोस्त

Hindi Yuvakbharati 12th Digest Maharashtra Board

Vruttalekh Class 12 Marathi Bhag 4.4 Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 12th Digest Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग) Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

12th Marathi Bhag 4.4 Exercise Question Answer Maharashtra Board

वृत्तलेख (फिचर रायटिंग) 12 वी मराठी स्वाध्याय प्रश्नांची उत्तरे

12th Marathi Guide Chapter 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग) Textbook Questions and Answers

कृती

1. वृत्तलेख म्हणजे काय ते स्पष्ट करा.
उत्तर :
मानवी जीवन बातम्यांनी वेढलेले आहे. बातमी वाचली वा सांगितली, तरी वाचकांच्या मनातील उत्सुकता संपत नाही. बातमीत वस्तुनिष्ठ माहिती असते. घडलेली घटना जशीच्या तशी सांगितली जाते. परंतु घटनेच्या भोवताली असलेल्या अनेकविध कंगोऱ्यांचा वेध ज्या लेखनातून घेतला जातो, त्याला वृत्तलेख असे संबोधले जाते. बातमीत ज्या बाबी निदर्शनास येत नाहीत, त्या शोधून रंजक, नावीन्यपूर्ण पद्धतीने वृत्तलेखात मांडल्या जातात. वृत्तलेखाला इंग्रजीत फिचर असे म्हणतात. फिचर या शब्दाचा ऑक्सफर्डच्या शब्दकोशातील अर्थ आहे, ‘बातमीपलीकडचे खास असे काही, आकर्षक असे काही.’

म्हणजेच बातमी ज्या घटनेविषयी आहे, त्याचे तपशील वाचकांपर्यंत पोहोचवण्याचे काम वृत्तलेख करीत असतात. वाचकांच्या मनात बातमीविषयी उत्कंठा वाढवणे, माहिती देणे, ज्ञान देणे, वृत्तलेखाचे महत्त्वाचे कार्य असते. वृत्तलेखाचा आशय, विषय, मांडणी, शैली वाचकांच्या अभिरुचीला साजेशी असते. वृत्तलेख बातमीचे आस्वादनीय रूप असते.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)

2. बातमी आणि वृत्तलेख यातील फरक स्पष्ट करा.
उत्तर :
‘जे जे आपणासी ठावे, ते ते इतरांसी सांगावे’ या उक्तीनुसार मनुष्य जीवन जगत असतो. माहिती मिळवणे आणि ती इतरांना सांगणे मनुष्य स्वभावाचे महत्त्वाचे वैशिष्ट्य म्हणता येते. बातमी हा आपल्या आयुष्यातला अपरिहार्य घटक बनला आहे. बातमीत घडलेली घटना जशीच्या तशी सांगण्यावर विशेष लक्ष असते. वस्तुनिष्ठता हा बातमीचा विशेष मानला जातो. लोकजागृती, लोकशिक्षण हे बातमीत महत्त्वाचे असते. बातमीत ‘मी’ असत नाहीत. घटनेचे वास्तवदर्शी रूप बातमी दाखवत असते. बातमी एखादया घटना/प्रसंगाचे दर्शनी रूप नजरेसमोर उभे करू शकते.

वृत्तलेख बातमीच्या पलीकडे असणारी बातमी मांडण्याचा प्रयत्न करीत असतो. बातमीत न आलेली नावीन्यपूर्ण, रंजक माहिती वृत्तलेखात वाचावयास मिळते. बातमीतील घटनेमागे असणारे सूक्ष्म धागेदोरे शोधण्याचा प्रयत्न वृत्तलेखात केला जातो. वृत्तलेख बातमीच्या पायावर उभा असला, तरी वृत्तलेखाचे रूप लालित्यपूर्ण असते. काल्पनिकता नसली तरी बातमीतील अस्पर्शित नोंदी विस्तृतपणे चित्रित केल्या जातात.

3. वृत्तलेखाचे प्रकार लिहून, कोणत्याही एका प्रकाराविषयी सविस्तर माहिती लिहा.
उत्तर :
वृत्तलेखाचा विषय, मांडणी यानुसार वृत्तलेखाचे काही प्रकार पाहायला मिळतात. ते असे :
(१) बातमीवर आधारित वृत्तलेख (२) व्यक्तिचित्रणात्मक वृत्तलेख (३) मुलाखतीवर आधारित वृत्तलेख (४) ऐतिहासिक स्थळांविषयी वृत्तलेख (५) नवल, गूढ, विस्मय यांवर आधारित वृत्तलेख. या सर्व प्रकारांमधील व्यक्तिचित्रणात्मक वृत्तलेख हा एक महत्त्वाचा प्रकार आहे. या प्रकारात एखादया विशिष्ट क्षेत्रातील नामवंत, उल्लेखनीय कामगिरी केलेल्या व्यक्तीच्या कार्यप्रवासावर लिहिले जाते. एखादया क्षेत्रात काम करीत असताना त्या व्यक्तीच्या जीवनात आलेले अनुभव, यश, अडचणींचा केलेला सामना, संघर्ष, उपक्रम, विक्रम इत्यादींसंदर्भात विस्ताराने लिहिले जाते.

या प्रकारचे वृत्तलेख औचित्य साधून लिहिले जातात. पुरस्कार, जयंती, पुण्यतिथी, जन्मशताब्दी यांसारख्या प्रसंगी व्यक्तिचित्रणात्मक वृत्तलेख लिहिले जातात. काही वेळा त्या व्यक्तिसंबंधाने झालेले पूर्वीचे लेखन, त्या व्यक्तीने अन्य लोकांबद्दल केलेले लेखन, त्या व्यक्तीसोबत काम केलेल्या अन्य व्यक्तींचे अनुभव, त्या व्यक्तीच्या सहकाऱ्यांकडून मिळवलेली वैशिष्ट्यपूर्ण माहिती इत्यादींचाही वृत्तलेख लिहिताना उपयोग होतो. केवळ आकडेवारी, सनावळ्या यांना या लेखात फारसे महत्त्व नसते. त्या व्यक्तीची जीवनशैली, वेगळेपण, सवयी अशा व्यक्तिगत जीवनाला स्पर्श करणाऱ्या बाबी महत्त्वाच्या ठरतात.

या प्रकारच्या लेखात व्यक्तीच्या जीवनातील भावनिक गोष्टींना अधिक महत्त्व असते.

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4. ‘वृत्तलेख लिहिताना विचारात घ्यावयाच्या बाबी लिहा.
उत्तर :
वृत्तलेख वाचकांच्या जिज्ञासापूर्तीसाठी महत्त्वाची भूमिका बजावत असतो. बातमीत जे अस्पर्शित आहे, ते शोधून त्याचा सविस्तर आढावा वृत्तलेख घेत असतो. वाचक नेहमीच वर्तमानपत्रीय लेखनात मूलभूत घटक ठरला आहे. वृत्तलेखात वाचकाची अभिरुची प्राधान्याने लक्षात घेतली जाते. वृत्तलेखात तात्कालिकता हा मुद्दाही लक्षात घेतला जातो. वृत्तलेख नैमित्तिक असतो. वृत्तलेखाचे कारण लक्षात घेऊन वाचक वृत्तलेख वाचत असतो. वृत्तलेखाच्या आराखड्यातून वृत्तलेखाचे वेगळेपण अधोरेखित करता येते. यासाठी वृत्तलेखाची मांडणी करताना वेगळेपणाचा विचार करणे गरजेचे असते.

वृत्तलेखाच्या आरंभापासून ते शेवटच्या वाक्यापर्यंत वृत्तलेखाने वाचकाची उत्सुकता टिकवून ठेवणे आवश्यक असते. यासाठी वृत्तलेखाचा विषय, मध्यवर्ती कल्पना, शीर्षक, तक्ते, नकाशा, छायाचित्र या सर्वांचा विचार करावा लागतो. वृत्तलेखाचा मजकूर जेवढा उत्तम हवा असतो, त्यासोबतच समर्पक छायाचित्रांची यथोचित मांडणी महत्त्वाची असते. वाचकांचे लक्ष वेधण्यासाठी मांडणीचा वाटा महत्त्वाचा असतो.

वृत्तलेखात शैली या घटकावरही लक्ष दयावे लागते. वृत्तलेखाचा आरंभ, मध्य आणि समारोप यांतून वृत्तलेखनातून अपेक्षित हेतू साध्य होणे आवश्यक असते. वृत्तलेखाच्या भाषेचा विचारही अपेक्षित असतो. सरळ, साधी, मनाला भिडणारी भाषा असणे आवश्यक असते. उत्तम वृत्तलेखासाठी या महत्त्वपूर्ण बाबी विचारात घेणे आवश्यक असते.

5. थोडक्यात उत्तरे लिहा.

प्रश्न अ.
वृत्तलेखाची गरज
उत्तर :
बातमी वाचली तरी वाचकांच्या मनातील बातमीविषयीची उत्सुकता संपत नाही. बातमी घडलेल्या घटनेचे वास्तव चित्रण करीत असते. घटना समजून घ्यायची असेल, तर बातमीत न आलेल्या बाबींचा शोध घेणे आवश्यक असते. वृत्तलेख बातमीच्या आतील बातमी उलगडून दाखवण्याचे काम करीत असते. वृत्तलेखातून बातमीच्या मुळापर्यंत पोहोचणे शक्य होते. घडून गेलेल्या वा घडू पाहणाऱ्या घटनेशी वृत्तलेखाचा संबंध असतो. वृत्तलेख वाचकांना आनंद देणारा, माहिती देणारा असतो. वाचकांच्या विचारांना धक्का देण्याची ताकद वृत्तलेखात असते. बातमीचा आनंद घेण्यासाठी वृत्तलेखाची मदत होत असते. वृत्तलेख वाचकांच्या भावनांची दखल घेत असतो. वाचकांचे समाधानही वृत्तलेख वाचनातून होत असते.

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प्रश्न आ.
वृत्तलेखाचे स्रोत
उत्तर :
प्रसारमाध्यमांवर प्रकाशित, प्रसारित होणाऱ्या बातम्या पाहिल्यानंतर लेखकाच्या मनात वृत्तलेखाचे बीज तयार होत असते. बातमीच्या अनुषंगाने असणारे संदर्भ, गोष्टी, मुलाखती या बाबींचा पाठपुरावा केला की वृत्तलेखाला आवश्यक वातावरण निर्माण होत असते. बातमी हा वृत्तलेखाचा महत्त्वाचा स्रोत आहे. बातमीतल्या घटनेचे स्वरूप आणि परिणाम समजून घेण्यासाठी वृत्तलेख दिशादर्शक ठरू शकतो. पत्रकारितेच्या क्षेत्रात अनेक व्यक्तींशी संपर्क होत असतो. त्यांच्याशी होणाऱ्या संवादातून वृत्तलेखाचे विषय मिळू शकतात. पत्रकारितेत नेहमी बातमी सहज उपलब्ध होतेच असे नाही. बऱ्याचदा बातमी शोधावी लागते, त्यातील छुपे कंगोरे शोधावे लागतात. त्यासाठी बातमीशी निगडित अनेक लोकांशी संभाषण करावे लागते. यातून वृत्तलेखाला बीज सहज मिळू शकते. वृत्तलेखासाठी बारकाईने निरीक्षण अपेक्षित असते. सभोवताली घडणाऱ्या घटनांचे निरीक्षण करता येणे, त्यातील बातमी शोधून वृत्तलेखाचा विषय निर्माण करता येऊ शकतो.

प्रश्न इ.
वृत्तलेखाची भाषा
उत्तर :
वृत्तलेख बातमीवर आधारित असला, तरी बातमीपेक्षा अधिक सांगण्याचा प्रयत्न करीत असतो. वृत्तलेख लिहिताना वाचकांच्या अभिरुचीचा विचार वृत्तलेखात प्राधान्याने केला जातो. सर्वसाधारण वाचक वर्ग नजरेसमोर ठेवून वृत्तलेखाच्या विषयांची निवड केली जाते. वृत्तलेखाची भाषा देखील सहज, सोपी चटकन ५ विषय लक्षात येईल अशी असणे अपेक्षित असते. भाषेचे स्वरूप सरळ असले, तरी परिणामकारकता असणे गरजेचे असते. वृत्तलेख वाचकांची उत्सुकता वाढवत असल्याने भाषा मनाला भिडणारी असावी. वृत्तलेखातील मजकुरातील शब्दबंबाळपणा टाळणे आवश्यक असते. लहान लहान वाक्यरचना, बोलीभाषेतील शब्द असतील, तर विषय समजण्यास सोपे होते. विषयाचा हेतू लक्षात घेऊन वाचकांची जिज्ञासा शमली जावी, अशा भाषेत वृत्तलेखाची मांडणी असणे अभिप्रेत असते.

प्रश्न ई.
वृत्तलेखाची वैशिष्ट्ये
उत्तर :
अनेकदा एखादया बातमीच्या वाचनानंतर वाचकाच्या मनात त्या बातमीविषयी कुतूहल निर्माण होते. बातमीच्या स्वरूपानुसार घटनेमागील घटना बातमीत सांगितली जात नाही. अशा वेळी वाचकांच्या उत्सुकतेसाठी वृत्तलेख लिहिले जातात. वृत्तलेख तात्कालिक असतात. घटनेचे निमित्त वृत्तलेखाच्या पाठीशी असते. वृत्तलेख घडून गेलेल्या घटनेबद्दल बोलत असते. बातमीत घटनेचा तपशील देता येत नाही. वृत्तलेखात बातमीतील अदृश्य दुवे प्रकाशझोतात आणण्याचा प्रयत्न केला जातो. वृत्तलेखाचा विषय नेहमी ताजा असतो. वृत्तलेखाला ‘धावपळीतले साहित्य’ असेही म्हणतात. वाचकांना बातमीचा आस्वाद घेण्यासाठी वृत्तलेखाची निर्मिती होत असते.

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6. वर्तमानपत्रातील एखादा वृत्तलेख मिळवा आणि त्यात आढळलेली वैशिष्ट्ये लिहा.
उत्तर :
दि. ४ फेब्रुवारी २०१२ रोजी लोकसत्ता या वर्तमानपत्रातील चतुरंग पुरवणीत प्रकाशित झालेला वृत्तलेख वाचला. मीना वैशंपायन यांनी लेखिका दुर्गा भागवत यांच्या आठवणींना उजाळा देण्यासाठी सदर वृत्तलेख लिहिला आहे. दहा फेब्रुवारी हा दुर्गाबाई भागवतांचा जन्मदिवस. या निमित्ताने ‘मुक्ता’ या शीर्षकाने हा वृत्तलेख लिहिला आहे. दुर्गाबाई भागवतांची वैचारिक भूमिका, स्त्री सक्षमीकरणाचे विचार आणि दुर्गाबाई भागवत यांच्यातील स्त्री जाणिवांचा वेध घेणे हा वृत्तलेखाचा मध्यवर्ती विषय आहे. वृत्तलेखाचा आरंभ १९७५ च्या काळातील आणीबाणीचा संदर्भ आणि दुर्गाबाई भागवतांची परखड भूमिका या संदर्भांनी केला आहे.

१९७५ ची आणीबाणी, त्याच वर्षी दुर्गाबाई भागवत यांचे अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलनाचे अध्यक्षपद आणि १९७५ ला घोषित झालेले जागतिक महिला वर्ष यांचे संदर्भ वृत्तलेखाच्या पहिल्या टप्प्यात लेखिकेने नमूद केले आहेत. हे वाचत असताना वाचक म्हणून उत्सुकता हळूहळू वाढत जाते. स्त्रीस्वातंत्र्य, सबलीकरण, स्त्री-पुरुष समानता याबद्दल दुर्गाबाई भागवतांच्या विचारांचे विश्लेषण लेखिकेने विस्तृतपणे केले आहे. स्त्री मूलतः सक्षम आहे हे सांगताना दुर्गाबाई भागवत यांनी लिहिलेल्या ‘विदयेच्या वाटेवर’ या लेखाचा संदर्भ वृत्तलेखिकेने वृत्तलेखात सोदाहरण सांगितला आहे.

सदर लेखाचा व्यक्तिचित्रणात्मक या वृत्तलेख प्रकारात समावेश करता येतो. दुर्गाबाई भागवत यांच्यातील ‘मुक्त स्त्रीत्वाचा दृश्य आविष्कार’ संपूर्ण वृत्तलेखात लेखिकेने समर्थपणे शब्दरूपात उभा केला आहे. वृत्तलेखाचा आरंभ, मध्य आणि समारोप या तीन पातळ्यांवर वृत्तलेख यशस्वी होतो. वृत्तलेखाची भाषा प्रवाही आणि परिणामकारक आहे. दुर्गाबाई भागवतांचे संयत व्यक्तिमत्त्व वाचकांसमोर उलगडून दाखवण्यासाठी तेवढ्याच संयतपणे भाषेचा अवलंब केला आहे.

7. बातमीवर आधारित वृत्तलेख लिहिताना करावयाची तयारी तुमच्या शब्दांत लिहा.
उत्तर :
वृत्तलेखाची प्रकृती बातमीवर आधारलेली असते. बातमी वस्तुनिष्ठपणे घटना सांगते. परंतु घटनेपलीकडचे दृश्य वृत्तलेखात चित्रित करायचे कौशल्यपूर्ण काम वृत्तलेखकाचे असते. एखादया घटनेत वेगळेपण असले तरच बातमी बनत असते. अशा बातमीवर आधारित वृत्तलेख लिहिताना सर्वप्रथम बातमीचा विषय समजून घेणे अपेक्षित असते. बातमीतली घटना, तिचे अदृश्य दवे शोधण्यासाठी बातमीतील घटनेचा सूक्ष्मपातळीवर विचार करावा लागेल.

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घटनेमागचे कारण आणि परिणाम यांची यथोचित सांगड घालून तटस्थपणे घटनेचा वेध घ्यावा लागेल. बातमीत छुप्या असणाऱ्या घटकांचा शोध घेऊन त्यावर प्रकाश टाकणे, पूरक मुद्दे अधोरेखित करणे अशा बाबींवर प्राधान्याने काम करावे लागेल. बातमीतील मुद्दयांचे सुस्पष्ट भाषेत विश्लेषण करण्याचा प्रयत्न करणे आवश्यक असल्याने बातमीच्या परिघात येणाऱ्या महत्त्वाच्या घडामोडींसंदर्भात तज्ज्ञांशी सल्लामसलत करणे उचित ठरेल. बातमीतील तळ गाठून माहिती कागदावर आणली तर वाचकांची उत्सुकता शमवता येईल.

वृत्तलेख (फिचर रायटिंग) प्रस्तावना

‘जे जे आपणासी ठावे, ते ते इतरांसी सांगावे’ या उक्तीनुसार माणूस जीवन जगत असतो. माहिती मिळवणे आणि ती इतरांना सांगणे हे मानवी स्वभावाचं महत्त्वाचं वैशिष्ट्य म्हणता येते. जे ‘सांगणे’ केवळ स्व-रक्षणासाठी होते, त्याचा प्रवास हळूहळू व्यक्त होण्यापर्यंत येऊन पोहोचला. अभिव्यक्तीचे प्रभावी माध्यम म्हणून वृत्तपत्रांचा स्वीकार मोठ्या प्रमाणावर केला जाऊ लागला. मानवी जीवन बातम्यांनी व्यापले गेले. वर्तमानपत्र, आकाशवाणी, दूरदर्शन यांसारख्या प्रसारमाध्यमांसोबत नव्याने स्थिर झालेल्या समाजमाध्यमांत आपण बातम्या ऐकत आणि पाहत असतो.

बातमी औत्सुक्य निर्माण करते. बातमी वाचली तरी वाचकांच्या मनात बातमीतल्या घटनेबद्दल अधिकाधिक जिज्ञासा निर्माण होत असते. बातमीत वस्तुनिष्ठता महत्त्वाची असल्याने जे घडले तसेच बातमीत सांगितले जाते. बातमीत न सांगितली गेलेली नावीन्यपूर्ण, रंजक माहिती आणि सूक्ष्म धागेदोरे वाचण्यासाठी वाचकांना वृत्तलेखाचा (फिचर रायटिंगचा) उपयोग होतो.

वृत्तलेख (फिचर रायटिंग) वृत्तपत्र अर्थ आणि स्वरूप :

  • बातमीपत्रात जसे घडले तसे सांगितले जाते. बातमीपलीकडे असलेला तपशील वाचकांना देणे आवश्यक असते.
  • इंग्रजीत याला ‘फिचर’ असे म्हणतात. बातमी ज्या घटनेशी निगडित आहे तिचे तपशील वाचकांपर्यंत पोहोचवणे गरजेचे असते.
  • या गरजेतूनच वृत्तलेख या लेखनप्रकाराचा जन्म झाला आहे.
  • फिचर म्हणजे नॉन न्यूज असे रूढ असले, तरी वृत्तलेखाचा संबंध बातमीशी असतो.
  • घडून गेलेल्या घटनेशी अथवा घडू पाहणाऱ्या घटनेशी वृत्तलेखाचा घनिष्ठ संबंध असतो.
  • वृत्तलेखाला बातमीचा आधार असावा लागतो. निमित्त असावे लागते.
  • वृत्तलेखाला ‘धावपळीचे साहित्य’ असेही म्हणतात. वृत्तलेख तातडीचा असतो.
  • वृत्तलेख बातमीमागची बातमी सांगत असतो. वृत्तलेखात रंजकता असली, तरी कल्पकतेला फारसा वाव नसतो.
  • अचूकता वृत्तलेखात महत्त्वाची असते. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)
  • वृत्तलेख बातमीवर आधारित असला, तरी लेखनकृतीत स्वतंत्र असतो. मजकूर आकर्षक आणि वैशिष्ट्यपूर्ण असणे हे वृत्तलेखाचे वैशिष्ट्य असते.
  • बातमीचा आस्वाद घेण्यासाठी वृत्तलेखाचा उपयोग होतो. वृत्तलेखात वाचकांच्या भावनांचा विचार करून लेखन केलेले असते.
  • वृत्तलेखात वाचकांचे समाधान हा घटकही महत्त्वाचा मानला जातो.
  • वृत्तलेखाची भाषा सोपी, ओघवती असावी.
  • वाचकांना सहज समजणारी, आपलीशी वाटणारी, वाचकांना खिळवून ठेवणारी, परिणाम साधणारी भाषाशैली असावी.
  • वृत्तलेखाचा विषय, आशय, शैली वाचकांना आकृष्ट करणारी असते.
  • वाचकांच्या विचारांना धक्का देणारी ताकद वृत्तलेखात असते.
  • वृत्तलेखातील माहिती विश्वसनीय असते. मुद्द्यांच्या समर्थनार्थ वृत्तलेखात नकाशे, छायाचित्रे, व्यंगचित्रे, आकडेवारीचा तक्ता वापरला जाऊ शकतो.
  • वृत्तपत्रलेखन हे कौशल्यपूर्ण काम आहे. वृत्तलेखन करणास लेखक आपले अनुभव आणि विषयाच्या संदर्भाने असलेली तज्ज्ञता वापरत असतो.
  • वृत्तलेखक वाचकांना आनंद देणारा, माहिती, ज्ञान देणारा आणि सर्वांत महत्त्वाचे म्हणजे बातमीपलीकडची बातमी जिवंत करणारा असतो.
वर्तमानपत्रांचा जन्म पाश्चात्त्य देशात झाल्याने तेथील काही संकल्पना भारतात देखील रुजल्या. त्यापैकी एक म्हणजे फिचर, म्हणजेच वृत्तलेख. ऑक्सफर्डच्या शब्दकोशात ‘फिचर’चा अर्थ ‘It is a non news article in a news paper’ असा देण्यात आला आहे. म्हणजे ‘बातमीपलीकडचे खास असे काही, आकर्षक असे काही.’

वृत्तलेखांचे प्रकार :

बातम्यांचा विषय आणि लेखनप्रकारानुसार वृत्तपत्र लेखनाचे पुढील प्रकार –
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1. बातमीवर आधारित वृत्तलेख :

  • या वृत्तलेखाच्या नावावरूनच त्याचे स्वरूप लक्षात येते. एखादया बातमीच्या संदर्भाने हा वृत्तलेख लिहिलेला असतो.
  • वर्तमानपत्रात छापून आलेल्या बातमीचा या प्रकारात नव्याने विचार करणे प्रस्तुत ठरते.
  • वर्तमानपत्रातील घटनेत असणारी सर्व माहिती वृत्तलेखात नसते; परंतु बातमीमागची बातमी वाचकांना या प्रकारच्या वृत्तलेखात वाचायला मिळते.
  • बातमीवर आधारित वृत्तलेखन करताना बातमीतील घटनेचा सविस्तर आढावा घेणे अपेक्षित असते.
  • वर्तमानपत्रातील बातमीत ज्या नोंदी आल्या नसतील, अशा नोंदींवर प्रकाश टाकण्याचे काम या प्रकारच्या वृत्तलेखनात होणे आवश्यक असते. या
  • प्रकारच्या वृत्तलेखात बातमीतील मुद्द्यांचे विश्लेषण करणे गरजेचे असते. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)
  • कधी कधी वृत्तलेखकाला बातमी संदर्भातील विशेष तज्ज्ञ व्यक्तींशी बोलून घटनेचा तळ गाठावा लागतो.
  • वृत्तलेखकाकडे लेखनासाठी असणारी माहिती स्वतंत्र आणि विश्वसनीय असणे आवश्यक असते.
  • या प्रकारच्या वृत्तलेखासाठी विषयाच्या मर्यादा नसतात.
  • स्थानिक पातळीपासून ते आंतरराष्ट्रीय पातळीपर्यंत कोणत्याही बातमीवर या प्रकारचे वृत्तलेखन करता येऊ शकते.
  • बातमीपेक्षा अधिक काही मिळाल्याचा आनंद वृत्तलेख वाचकांना मिळणे हेही वृत्तलेखकाला ध्यानात घेणे आवश्यक असते.
  • उदा., पेट्रोल-डीझेलचा वाढत जाणारा तुटवडा – स्वरूप आणि कारणे, लोकल ट्रेनमधील वाढती गर्दी – कारणे आणि उपाय, ग्रामीण भागातील पशुधनाची घटलेली संख्या व त्याचा समाजजीवनावर होणारा परिणाम इत्यादी.

2. व्यक्तिचित्रणात्मक वृत्तलेख :

  • या प्रकारच्या वृत्तलेखात एखादया क्षेत्रात देदीप्यमान कार्य केलेल्या व्यक्तीच्या जीवनाचा आढावा घेतला जातो.
  • सामान्य असो की असामान्य कुठल्याही व्यक्तीच्या संघर्षाची दखल या वृत्तलेखात घेतली जाते.
  • एखादया क्षेत्रातील यश, त्यासाठी करावा लागलेला संघर्ष, प्रयत्नांची पराकाष्ठा, अडचणींचा केलेला सामना, महत्त्वपूर्ण कृती, उपक्रम, विक्रम या संदर्भातील लेखन या वृत्तलेखात करणे आवश्यक असते.
  • व्यक्तिचित्रणात्मक वृत्तलेख बहुतकरून औचित्य साधून लिहिलेले असतात.
  • पुरस्कार, गौरव, वाढदिवस, जयंती, पुण्यतिथी, अमृत महोत्सव इत्यादी प्रसंगी या प्रकारचे वृत्तलेख लिहिले जातात.
  • व्यक्तिचित्रणात्मक वृत्तलेखात वाचकांपुढे विशिष्ट व्यक्तीचा केवळ जीवनपट उभा करणे अपेक्षित नसते.
  • व्यक्तीच्या जीवनाचे अनेक पैलू उलगडून दाखवणे आवश्यक असते.
  • अशा वेळी त्या व्यक्तीसंबंधी पूर्वी झालेले लेखन, चरित्र, आत्मचरित्र, सोबत काम केलेल्या व्यक्ती, स्नेहीजन यांच्या मुलाखती अशी विस्तृत माहिती मिळवणे उपयुक्त ठरते. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)
  • या प्रकारच्या लेखनात व्यक्तीच्या आयुष्यातील महत्त्वाच्या तारखा, सनावळ्या, आकडेवारी एवढ्याचीच नोंद करून, परिचयात्मक माहिती लिहून चालत नाही. त्यासाठी त्या व्यक्तीचे विचार, भूमिका, दृष्टिकोन, खास शैली, सवयी इत्यादी बाबींचा सखोल परामर्श घेणे महत्त्वपूर्ण ठरते.
  • माहितीतील तांत्रिक बाबींत अधिक न अडकता व्यक्ती जीवनातील भावनिक स्पर्श हे या वृत्तलेखाचे वैशिष्ट्य म्हणता येते. उदा., सिंधुताई सकपाळ, बीजमाता राहीबाई पोपरे, डॉ. श्रीराम लागू इत्यादी.

3. मुलाखतीवर आधारित वृत्तलेख :

  1. वेगवेगळ्या क्षेत्रातील लोकांच्या प्रसार माध्यमांवर होणाऱ्या मुलाखती लेख स्वरूपात वृत्तपत्रात प्रकाशित केला जातो. त्याला मुलाखतीवर आधारित वृत्तलेख असे संबोधले जाते.
  2. या प्रकारच्या वृत्तलेखातून विशिष्ट क्षेत्रात कार्याने आपली नाममुद्रा उमटवणाऱ्या व्यक्ती, त्यांचा कार्यप्रवास, महत्त्वपूर्ण संशोधन, मतप्रणाली, त्यांचे कार्यक्षेत्र, यश, अडचणी, अनुभव यांसारख्या ५ मुद्दयांची गुंफण करणे आवश्यक असते.
  3. कार्यसिध्द व्यक्तींची स्वतःची भूमिका मांडण्याचा प्रयत्न या प्रकारच्या वृत्तलेखात करणे महत्त्वाचे असते. सर्वसामान्य लोक व्यक्तिजीवनातील ज्या गोष्टींपासून अनभिज्ञ आहेत, अशा गोष्टींचा परिचय करून देणे वृत्तलेखाचे प्रधान कार्य असते.
  4. विशिष्ट व्यक्तीच्या कर्तृत्वाची उंची आणि संबंधित क्षेत्रातील योगदान अधोरेखित करण्याचा प्रयत्न या वृत्तलेखात करणे गरजेचे ठरते. उदा., नामवंत लेखक, गिर्यारोहक, संशोधक इत्यादींच्या मुलाखतीवर आधारित लेख.

4. ऐतिहासिक स्थळांविषयी वृत्तलेख :

  • या प्रकारच्या वृत्तलेखात संशोधनात्मक लेखन असते. प्राचीन मंदिरे, लेण्या, स्थळे, गावे इत्यादी संदर्भातील उपलब्ध माहितीच्या आधारे नव्याने माहिती देणारा ऐतिहासिक स्वरूपाचा वृत्तलेख लिहिणे अपेक्षित असते.
  • गावे, स्थळे, प्राचीन मंदिरे, वस्तू यांना ऐतिहासिक संदर्भ असतात.
  • या वृत्तलेखात अशा ऐतिहासिक संदर्भांना केंद्रस्थानी ठेवून लेखन करणे आवश्यक असते.
  • शिलालेख, नाणी, भूर्जपत्रे, ताम्रपट यांच्या इतिहासकालीन रूपाचा बदलत्या काळात नव्याने अर्थ शोधला जात आहे. नवनवीन माहिती समोर येत आहे.
  • संशोधक जुन्या माहितीच्या संदर्भात संशोधनात्मक अभ्यासातून एखादया वस्तू किंवा स्थळावर प्रकाशझोत टाकत असतात. या नव्या माहितीच्या संदर्भात वृत्तलेख करणे महत्त्वाचे ठरते.
  • लोकसाहित्य, लोककला, लोकसंस्कृती यासंदर्भात वृत्तलेखक विविध क्षेत्रभेटीतून जे जे अनुभवास आले, त्याला अनुलक्षून वृत्तलेखन करू शकतो. ऐतिहासिक स्थळांविषयी वृत्तलेख लिहित असताना इतिहास तज्ज्ञ, त्यांच्याशी विषयानुरूप केलेल्या चर्चा, व्याख्यान, मुलाखती इत्यादीचे साहाय्य घेणे उपयुक्त ठरते.
  • या प्रकारच्या वृत्तलेखात आवश्यकतेनुसार नकाशा, चित्रे, छायाचित्रे यांचा वापर करता येऊ शकतो. उदा., शनिवारवाडा, हेमाडपंथीय मंदिराचे शिल्पकाम, अंबरनाथ येथील प्राचीन शिवमंदिर इत्यादी.

5. नवल, गूढ इत्यादींवर आधारित वृत्तलेख :

  • एखादी विस्मयकारक घटना, निसर्गातील नवलाई यासंबंधीच्या अनुभवांवर आधारित लेखन या प्रकारच्या वृत्तलेखात केले जाते.
  • एखादया परिसरातील निसर्गाच्या आश्चर्यजनक किमया, गूढ, अनाकलनीय गोष्ट, निसर्गातील एखादी लक्षवेधी परंतु चमत्कारिक गोष्टदेखील वृत्तलेखाचा विषय होऊ शकतो. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)
  • या प्रकारच्या वृत्तलेखात माहितीची विश्वासार्हता तपासणे फार महत्त्वाचे असते. उपलब्ध माहितीची शहानिशा करणे, माहितीची पारख करणे, चिकित्सा करणे यांसारख्या बाबी प्राधान्याने विचारात घेणे गरजेचे असते.
  • निसर्गातील अनाकलनीय गोष्टी सत्यतेच्या चाचणीतून लेखात मांडणे अतिशय कौशल्यपूर्ण काम असते. वृत्तलेखकाला जबाबदारीने या प्रकारच्या वृत्तलेखाचे लेखन करणे आवश्यक असते.
  • कोणत्याही प्रकारची चुकीची अथवा अफवा पसरवणारी माहिती, नोंदी, नकारात्मकता वृत्तलेखातून प्रकट होणार नाही याची काळजी कटाक्षाने या प्रकारच्या वृत्तलेखात घ्यावी लागते.
  • उदा., सांगलीत नदीच्या पाण्याची पातळी ५८ फूट, रांजणखळगे, गरम पाण्याचे कुंड इत्यादी. वृत्तलेखांच्या वरील प्रकारांशिवाय सांस्कृतिक कार्यक्रम, लोकरुचीचे कार्यक्रम, खादयसंस्कृती इत्यादी विषयांवरही वृत्तलेख लिहिले जाऊ शकतात.

वृत्तलेखाच्या विषयांचे स्रोत :

प्रसारमाध्यमातील व्यक्तींना सध्या घटनेतही बातमी दिसत असते. वर्तमानपत्रात काम करणाऱ्या व्यक्तींना येणारे अनुभव, प्रवास, भेटणाऱ्या व्यक्ती विविध वर्तमानपत्रातील बातम्या, पुस्तके, नियतकालिके, संकेतस्थळ यांसारख्या विविध साधनांच्या आधारे वृत्तलेखाचे विविध विषय मिळत असतात. वृत्तलेखाच्या विषयांचे काही महत्त्वाचे स्रोत पुढीलप्रमाणे –

1 बातमी :

  •  वृत्तलेखात बातमीपलीकडची बातमी चित्रित केलेली असते. वर्तमानपत्रात, नियतकालिकात छापील स्वरूपात आलेल्या बातम्या वृत्तलेखाला विषय पुरवत असतात.
  • दूरचित्रवाणीवर दाखवली जाणारी एखादी घटना लेखकाच्या मनात वृत्तलेखाचे बीज रुजवत असते.
  • बातमीपेक्षा अधिक काही जे बातमीत दडलेले असते, त्याचा शोध वृत्तलेखात घेणे आवश्यक असते.
  • बातमीसोबत जोडले असलेले संदर्भ, दुवे, महत्त्वाच्या गोष्टी, मुलाखती यांच्या साहाय्याने बातमीच्या आधारावर वृत्तलेखनाचा मजकूर फुलवता येऊ शकतो.
  • कुठल्याही बातमीकडे सूक्ष्मपणे पाहिले, त्यातील बारकावे लक्षात घेतले, तर वृत्तलेखासाठी भूमी तयार होऊ शकते.
  • बातमी, बातमीभोवती असणारे विविध कंगोरे, बातमीचे परिणाम यांचा सखोल अभ्यास केला, तर वृत्तलेखासाठी अनेक विषय मिळू शकतात.
  • उदा., ‘अभिनेते अमिताभ बच्चन यांना दादासाहेब फाळके हा सन्मानाचा पुरस्कार प्राप्त’ या बातमीच्या आधारे, दादासाहेब फाळके पुरस्काराचे महत्त्व, अभिनेते अमिताभ बच्चन यांचा ५ अभिनयाचा प्रवास, महत्त्वाचे चित्रपट, कौटुंबिक पार्श्वभूमी, अमिताभ बच्चन यांचा जीवनप्रवास इत्यादी मुद्द्यांच्या आधारे व्यक्तिचित्रणात्मक वृत्तलेख लिहिला जाऊ शकतो. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)

2. व्यक्तिगत अनुभव :

  • पत्रकारितेचे क्षेत्र म्हणजे नित्यनवा जिवंत अनुभव असणारे क्षेत्र मानले जाते.
  • पत्रकारितेच्या क्षेत्रात वावरणाऱ्या लोकांना रोज नव्या आव्हानात्मक घटना/प्रसंगांना सामोरे जावे लागते.
  • बातमी बघताना अनेक अनुभव मिळत असतात. या अनुभवांपैकी काही मूळ बातमीस पूरक ठरतात, तर काही अनुभव लेखकाच्या मनात साठवले जातात. या अनुभवांची शिदोरी लेखकाला वृत्तलेखात उपयोगी पडते.
  • या अनुभवांचा पुनरुच्चार एखादया वृत्तलेखात करता येऊ शकतो. गतकाळातील अनुभवात भविष्यातील एखादया वृत्तलेखाची बीजे रुजलेली असतात.
  • उदा., ‘आश्रमातील मुलांना शैक्षणिक वस्तूंचे वाटप’ अशा बातमीच्या भोवताली लहान मुलांचे भावविश्व, मुलांचे आश्रमातील जीवन, कुटुंबापासून दूर असल्याची भावना, लहान मुलांची शैक्षणिक, वैचारिक जडणघडण असे कितीतरी बातमीमागचे पैलू लेखकाला दिसू शकतात.
  • यासंदर्भाच्या आधारे ‘एकटेपणात अडकलेले बालविश्व’ अशा प्रकारचा वृत्तलेख निश्चितच आकाराला येऊ शकतो.

3. भेटीगाठी/संभाषण :

  • पत्रकारिता करणाऱ्या व्यक्तींना नेहमी लोकसंपर्कात राहणे गरजेचे असते. यासाठी व्यवसायाची गरज म्हणून संवादकौशल्य हवे असते. पत्रकारिता करणाऱ्या व्यक्तीला भाषेचे उत्तम ज्ञान असणे आवश्यक असते. लेखनकौशल्यावर प्रभुत्व असावे लागते.
  • पत्रकारितेत अनेकदा विविध क्षेत्रातील उच्चपदस्थ अधिकारी ते सामान्य व्यक्ती अशा प्रत्येक घटकातील व्यक्तींशी संवाद साधावा लागतो.
  • प्रशासकीय सेवेतील अधिकारी, लोकप्रतिनिधी, विविध कंपन्यांचे व्यवस्थापक, खेळाडू यांच्याशी संभाषण करीत असताना कितीतरी स्थानिक पातळीवरील विषयांपासून ते राष्ट्रीय, आंतरराष्ट्रीय पातळीवरील कितीतरी महत्त्वपूर्ण विषयांवर चर्चा करावी लागते.
  • कधी कधी व्यक्ती बोलत नाहीत; अशा वेळी बातमी जाणून घेण्यासाठी व्यक्तींना बोलते करण्याचे काम पत्रकारांना करावे लागते.
  • या गप्पांमधून वृत्तलेखासाठी आवश्यक बरेच विषय मिळू शकतात. व्यक्ती ते घटना/प्रसंग यामागील अनेक पैलूंचा वेध घेण्याचे काम वृत्तलेखक करीत असतो. या सर्वांतून वृत्तलेखाचा विषय सहज मिळू शकतो.

4 निरीक्षण :

  • पत्रकारिता क्षेत्रात वावरणाऱ्या व्यक्तीला सदैव चौकस राहावे लागते. बातमीचे धागेदोरे शोधावे लागतात.
  • अवतीभवती घडणाऱ्या घटनांचे निरीक्षण करून त्यातून बातमी शोधता येणे पत्रकारितेत आवश्यक असते.
  • अशा सजगतेतून वृत्तलेखाचे विषय मिळत असतात. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)
  • वृत्तलेखासाठी निरीक्षण आणि अनुभवातून विवेचन, संदर्भ, कारणमीमांसा, परिणाम यांसारख्या गोष्टी समोर आणल्या जातात.
  • उदा., ‘खानावळ चालवून मुलाला केले जिल्हाधिकारी’, ‘शेतीसाठी बैलांऐवजी माणसांचा वापर’ अशा कितीतरी गोष्टी भोवती घडत असतात.
  • यातूनच वृत्तलेखाचे विषय मिळू शकतात.

वृत्तलेखासाठी निरीक्षण आणि पडदयामागे घडणाऱ्या घडामोडींचा वेध घेणे महत्त्वाचे असते. तर्कबुद्धी या लेखनात गरजेची असते.

वृत्तलेख लिहिताना विचारात घ्यायच्या बाबी :

वर्तमानपत्रे सतत वाचकांची गरज शोधत असतात. वाचकांची बौद्धिक भूक कशी भागवली जाईल, याचा विचार वर्तमानपत्राच्या व्यवस्थापनाला करावा लागतो. वाचकांच्या संख्येवर वर्तमानपत्रांच्या विक्रीची आर्थिक गणिते अवलंबून असतात. त्यादृष्टीने वृत्तलेखासाठी देखील वाचकांची गरज आणि विषयांची निवड यांचा विचार करावा लागतो.

वृत्तलेखात पुढील बाबी महत्त्वपूर्ण भूमिका बजावत असतात –

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग) 2

(१) वाचकांची अभिरुची : वर्तमानपत्राला बातमीसोबत वाचक वर्ग कोणता आहे, याचा विचारही प्राधान्याने करावा लागतो. वाचकांची अभिरुची वर्तमानपत्रीय गणितात महत्त्वाची मानली जाते. वाचकांची गरज आणि आवड बघून वृत्तलेखाच्या विषय, आशय, भाषा यांची निवड करावी लागते. वाचकांना आवडतील, उत्सुकता निर्माण करतील, अशा वृत्तलेखांची मांडणी केली तर लोकांच्या पसंतीस पडू शकतात. वाचकांच्या अभिरुचीचा विचार करून लिहिलेले वृत्तलेख वाचकांच्या मनावर अधिराज्य करू शकतात. वृत्तलेखात वाचकांच्या अभिरुचीचा विचार प्राधान्याने करणे आवश्यक असते.

(२) तात्कालिकता : वृत्तलेख नैमित्तिक असतात. वृत्तलेखाचे नियोजन करताना तात्कालिकतेचा विचार करावा लागतो. तात्कालिक कारण असेल तर वाचक तो लेख वाचतात. त्यासाठी त्याचे ताजेपण, समयोचितता साधली जाणे महत्त्वाचे असते.

(३) वेगळेपण : वाचकांची उत्सुकता, जिज्ञासा, समजून घेऊन वृत्तलेखाचे वेगळेपण जपणे महत्त्वाचे असते. वृत्तलेखाच्या आराखड्याचा विचार करताना त्यामधील वेगळेपण लक्षात येण्याची गरज असते.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.4 वृत्तलेख (फिचर रायटिंग)

(४) वाचकांचे लक्ष वेधणे : वृत्तलेखात विषयाच्या आरंभापासून ते शेवटपर्यंत वाचकांची उत्सुकता टिकली पाहिजे. वृत्तलेखाचा आराखडा ठरवणे आवश्यक असते. वृत्तलेखाचा विषय, संदर्भ, शीर्षक, उपशीर्षके, चित्रे, तक्ता, नकाशा, छायाचित्र इत्यादी बाबींचा विचारही वृत्तलेखाच्या मांडणीत करणे गरजेचे असते. मजकुराला समर्पक चित्र/छायाचित्र कुठे उपलब्ध होईल, तसेच त्याचा नेमकेपणाने उपयोग मजकुराच्या कोणत्या भागात करता येईल, याचा विचार करावा लागतो. वृत्तलेखाच्या उत्तम मांडणीसाठी या सर्व बाबींचा सविस्तर विचार लेखकाला करावा लागतो. यासंबंधीचे नियोजन केले, टिपण काढले, चित्रांची मांडणी ठरवली, तर वृत्तलेख लिहिणे सोपे होते.

(५) वृत्तलेखाची शैली : वृत्तलेखात बातमीच्या पलीकडे असणारे कंगोरे शोधावे लागतात. साधारणपणे वृत्तलेखाच्या मांडणीत तीन टप्पे मानले जातात. पहिल्या टप्प्यात वृत्तलेखातील बातमीचा उलगडा केला जातो. बातमीतील ‘का’ या संदर्भातील वाचकांच्या जिज्ञासेची पूर्ती वृत्तलेखाच्या आरंभीच्या भागात होणे आवश्यक असते. वृत्तलेखाच्या मध्य भागात बातमीचे विवेचन अपेक्षित असते. वृत्तलेखाच्या समारोपात वृत्तलेखातून काय अपेक्षित आहे, काय बदल घडावा असे वाटते, याचा विचार मांडणे गरजेचे असते.

वृत्तलेख सर्वसामान्यांच्या पसंतीस उतरणे आवश्यक असेल, तर त्याची साधी, सोपी सहज आकलन करता येण्याजोगी असावी. बोजड शब्द, गुंतागुंतीची वाक्यरचना, शब्दबंबाळपणा वृत्तलेखात टाळावा. वृत्तलेखातील वाक्यरचना लहान वाक्यांची असल्यास वाचकांना विषय समजून घेणे सुलभ होते. मनावर पकड घेण्यास परिणामकारक भाषा असावी. ज्या विषयासंबंधी वृत्तलेखाचे औचित्य आहे, तो विषय लोकांच्या जिज्ञासेची पूर्तता करण्यात सफल झाला आहे, याचा विचार करणे आवश्यक असते.

वृत्तलेखातील व्यावसायिक संधी :

  • आज वेगवान माध्यमांच्या काळात लोकांपर्यंत बातमी पोहोचण्याचा वेग प्रचंड आहे. ब्रेकिंग न्यूजचा हा काळ आहे, असे म्हणता येते.
  • बातमीच्या मुळापर्यंत जाऊन समग्र घटना लोकांना वाचनास उपलब्ध करून देणे हे आव्हानात्मक आणि कौशल्याचे काम आहे.
  • अभ्यासू आणि लेखन क्षमता असणाऱ्या व्यक्ती वर्तमानपत्राला वृत्तलेख लिहिण्यासाठी आवश्यक असतात.
  • चौकस दृष्टी, लेखनकौशल्य बातमीचा शोध घेण्याची जिज्ञासा असणाऱ्या व्यक्तींना वर्तमानपत्रात नोकरीच्या संधी उपलब्ध असतात.
  • वृत्तपत्रांसाठी वृत्तलेखन करणाऱ्या लेखकांना विशिष्ट रकमेचे मानधनदेखील दिले जाते.
  • वृत्तलेखन बदलत्या माध्यमांच्या काळात युवावर्गाला आकर्षित करणारे क्षेत्र बनत आहे.

नोंद : वृत्तलेख समजून घेण्यासाठी पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र.११० व १११ वर दिलेला वृत्तलेख नमुना अभ्यासा.

12 वी मराठी पुस्तक युवकभारती भाग-४ उपयोजित मराठी

Ahwal Class 12 Marathi Bhag 4.3 Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 12th Digest Bhag 4.3 अहवाल Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

12th Marathi Bhag 4.3 Exercise Question Answer Maharashtra Board

अहवाल 12 वी मराठी स्वाध्याय प्रश्नांची उत्तरे

12th Marathi Guide Chapter 4.3 अहवाल Textbook Questions and Answers

कृती

1. अहवालाचे स्वरूप स्पष्ट करा.
उत्तर :
कोणत्याही संस्थेच्या कार्यक्रम/सभांची योग्य पद्धतीने सविस्तर नोंद करून ठेवणे म्हणजे अहवाललेखन होय. कार्यक्रम/ समारंभाच्या प्रत्यक्ष सुरुवातीपासून ते अखेरपर्यंत सर्व बाबींच्या नोंदी अहवालात केलेल्या असतात. अहवालात कार्यक्रमाचा हेतू, तारीख, वेळ, सहभागी व्यक्ती, विचार मांडणी, प्रतिसाद इत्यादी मुद्द्यांचा समावेश केलेला असतो. कोणत्याही संस्थेसाठी अहवाललेखन दस्तऐवज मानले जाते. संस्थेच्या भविष्यकालीन नोंदींसाठी अहवाललेखन महत्त्वाची भूमिका पार पाडत असते.

संस्थेचे कार्यक्षेत्र, विषय इत्यादींनुसार अहवाललेखनाचे स्वरूप वेगवेगळे असू शकते. तसेच संस्थेच्या कार्यक्षेत्रानुसार अहवाललेखनाचा आराखडा भिन्न असू शकतो. अहवालातील नोंदी अचूक आणि वस्तुनिष्ठ स्वरूपाच्या असतात. अहवालाचे महत्त्वाचे वैशिष्ट्य म्हणजे अहवालाची विश्वसनीयता होय. अनेक गुंतागुंतीच्या समस्येत अहवालाचा पुरावा म्हणूनही वापर करता येतो. अहवाल निःपक्षपातीपणे लिहिला जातो. वास्तवदर्शी वर्णन हा अहवालाचा आत्मा असतो.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अहवाल

2. अहवालाची आवश्यकता लिहा.
उत्तर :
अहवाल हा कोणत्याही कार्यक्रमाचा आरसा असतो. कार्यक्रमातील बारीकसारीक गोष्टींची नोंद अहवाललेखनात घेतली जाते. संस्थेच्या कामकाजात अहवाल विश्वसनीय घटक मानला जातो. संस्थेच्या कार्यक्रमाच्या/सभेच्या नोंदी ठेवणे आवश्यक असते. संस्थेच्या भविष्यकालीन योजना, उपक्रम यासाठी निश्चितच याचा उपयोग केला जातो. अहवालाच्या साहाय्याने भविष्यकाळात संस्थेचा विकास, परंपरा इत्यादींची माहिती मिळवणे शक्य होते. भविष्यातील नियोजनासाठी अहवालाचा उपयोग होऊ शकतो. विविध संस्था, लघुउदयोग ते मोठमोठे उदयोगधंदे आणि ग्रामपंचायत ते महानगरपालिका अशा सर्व ठिकाणी होणाऱ्या घडामोडींना अधिकृतता प्राप्त व्हावी यासाठी अहवालाची गरज असते. एखादया क्षेत्रात महत्त्वाकांक्षी उपक्रम सुरू करायचा असेल, तर आरंभी त्यासंदर्भात योग्य ती माहिती घेऊन अहवाल तयार करणे गरजेचे असते.

3. वास्तवदर्शी लेखन हा अहवालाचा आत्मा आहे, हे विधान स्पष्ट करा.
उत्तर :
अहवालात कार्यक्रमातील घटनांची विश्वसनीय नोंद असते. संस्थेच्या सभा/कार्यक्रमांचा हेतू, तारीख, वेळ, सहभागी मान्यवरांचे विवेचन, प्रतिसाद, समारोप इत्यादींचा तपशील क्रमाक्रमाने अहवालात सांगितलेला असतो. ‘जसे घडले तसे सांगितले’ असे अहवालाचे स्वरूप असते. काल्पनिक गोष्टी, लेखकाच्या मनातील विचार या बाबींचा अहवालात समावेश नसतो. वस्तुनिष्ठपणे घटनेचे वर्णन अहवालात केलेले असते. अहवाल कुठल्याही संस्थेचा असो वा कुठल्याही कार्यक्रमाचा सर्वांमध्ये एकसामायिक वैशिष्ट्य असते ते म्हणजे, निःपक्षपातीपणा.

अहवाललेखकाला स्वतःच्या मर्जीनुसार लेखन करता येत नाही. त्या त्या सभेमध्ये, संशोधनामध्ये अहवाल लेखकाने काय अनुभवले, पाहिले, ऐकले यांविषयीचे खरेखुरे लेखन अहवालात करणे आवश्यक असते. अहवालावर संस्थेच्या भविष्यातील नियोजनाचा आराखडा निश्चित होत असतो. सदय:स्थिती जाणून घेण्यासाठी अहवालाचा उपयोग होत असतो. वास्तवदर्शी लेखन हा अहवालाचा आत्मा आहे असे म्हटले तर अतिशयोक्ती होणार नाही.

4. अहवाल लेखनाची वैशिष्ट्ये खालील मुद्द्यांना अनुसरून स्पष्ट करा.

प्रश्न 1.
वस्तुनिष्ठता आणि सुस्पष्टता
उत्तर :
एखादया घटना/प्रसंगाची योग्य पद्धतीने नोंद करून ठेवणे म्हणजे अहवाल होय. अहवाललेखनात संस्थेच्या कामकाजाचे प्रतिबिंब उमटत असते. भविष्यातील निरनिराळ्या योजनांच्या नियोजनासाठी अहवाल आवश्यक असतो. अहवालाचे महत्त्वाचे वैशिष्ट्य वस्तुनिष्ठता आणि सुस्पष्टता आहे. अहवालाच्या स्वरूपानुसार कार्यक्रमाचा विषय, तारीख, वेळ, ठिकाण, सहभागी मान्यवर, लोकांचा सहभाग, प्रतिसाद, निष्कर्ष, सांख्यिकीय माहिती इत्यादी अनेक बाबींच्या नोंदी केलेल्या असतात. त्या नोंदी वस्तुनिष्ठ असणे आवश्यक असते. अहवालात नोंदवलेल्या माहितीच्या बाबतीत संदिग्धता असून चालत नाही. अहवालातील वाक्यरचना स्पष्ट असणे आवश्यक असते. सहज अर्थबोध होणे अभिप्रेत असते. माहितीचे स्वरूप सुस्पष्ट असावे. अहवाललेखकाला स्वतःच्या विचारांचा परामर्श अहवालात घेता येत नाही. कार्यक्रम प्रसंगी जे जे घडले आणि जे जे पाहिले, ऐकले त्याचे खरे रूप अहवालात येणे प्रधान असते.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अहवाल

प्रश्न 2.
शब्दमर्यादा
उत्तर :
अहवालाच्या विषयावर अहवालाची शब्दमर्यादा अवलंबून असते. स्थानिक पातळीवरील अहवाल आकाराने लहान असतात, शब्दमर्यादा आटोपशीर असते. सहकारी संस्था, वार्षिक सर्वसाधारण सभा यांचे अहवाल तुलनेने विस्तृत असतात. साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमांचे अहवालाची शब्दमर्यादा कमी असते. कार्यक्रमाचा संपूर्ण गाभा अहवालात मांडायचा असल्याने शब्दमर्यादा हा घटक महत्त्वाचा मानला जातो. अहवालात कार्यक्रमातील घटनांचे वर्णन पाल्हाळीक असू नये. एकाच मुद्द्याची पुनरावृत्ती असू नये.

एखादया समस्येच्या संदर्भात संशोधनात्मक अहवाल, सार्वजनिक क्षेत्रातील उदयोगव्यवसाय यांच्या संदर्भातील अहवाल खूपच विस्ताराने लिहिले जातात. अशा अहवालात भरपूर माहिती, आकडेवारी, निरीक्षणे, तपशील, निष्कर्ष नोंदवलेले असतात. एखादया समारंभाचा अहवाल तीन-चार पृष्ठांचा असू शकतो, तर एखादया आयोगाचा अहवाल सुमारे १००० किंवा अधिक पृष्ठांचा असू शकतो.

प्रश्न 3.
नि:पक्षपातीपणा
उत्तर :
कोणत्याही अहवालाचे महत्त्वाचे वैशिष्ट्य म्हणजे नि:पक्षपातीपणा होय. अहवाललेखन कुठल्याही एककल्ली विचारांचा अवलंब करीत नसते. अवास्तव व्यक्ती/घटना यांच्या वर्णनाला अहवालात स्थान नसते. अहवाल घडलेल्या कार्यक्रमाचा आरसा असतो. त्यामुळे अहवालात कुठल्याही अतार्किक, कल्पनारम्य गोष्टींना स्थान नसते. अहवाललेखकाला स्वतःच्या विचारांचे रोपण अहवालात करता येत नाही. वास्तवदर्शी लेखन हे अहवालाचे प्रमुख वैशिष्ट्य मानले जाते. निःपक्षपातीपणा अहवालात केंद्रस्थानी असतो.

5. अहवाल लेखन करताना लक्षात घ्यावयाच्या दोन बाबी सोदाहरण स्पष्ट करा.
उत्तर :
अहवाललेखन ही एक कला आहे. अहवाललेखन तांत्रिकपणे करणे आवश्यक असले, तरी अहवालाच्या भाषेत लालित्यपूर्णता आणता येऊ शकते. अहवाललेखनात दोन महत्त्वपूर्ण बाबींचा विचार विस्तृतपणे करता येऊ शकतो.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अहवाल

(१) अहवाललेखकाचे भाषेवरील प्रभुत्व : अहवाललेखकाचे भाषेवर प्रभुत्व असणे महत्त्वाचे असते. अहवालात घडून गेलेल्या घटनेचे शब्दरूपात सजीव आणि बोलके चित्र उभे करण्याची कला अहवाललेखकाकडे असणे आवश्यक असते. अहवाल सादर केला जातो; त्यामुळे वाचन करणाऱ्या व्यक्तीलाही तेवढेच महत्त्व आहे. वाचक लक्षात घेऊन अहवालाची भाषा सहज, सोपी चटकन आशय लक्षात येईल अशी असावी. अतिशयोक्तीपूर्ण वर्णन नसावे. अहवाललेखकाला विशिष्ट पारिभाषिक शब्द, संज्ञा इत्यादींची माहिती असली पाहिजे व योग्य ठिकाणी तिचा उपयोग करता आला पाहिजे.

उदा., अहवाललेखनात भाषेतील शब्दांचे संदर्भानुसार उपयोजन माहीत नसेल, तर मजकुराचा अर्थभेद होऊ शकतो. एखादया कार्यक्रमाच्या अहवालात ‘प्रमुख पाहुण्यांनी उपस्थित राहून शोभा वाढवली’ या वाक्यरचनेऐवजी ‘प्रमुख पाहुण्यांनी उपस्थित राहून शोभा केली’ अशी वाक्यरचना जर लिहिली गेली, तर अर्थाचा अनर्थ होऊ शकतो.

(२) सारांश रूप : अहवाल हा कार्यक्रमाचा गाभा असतो. कार्यक्रम झाल्यानंतर संपूर्ण कार्यक्रम संक्षिप्तपणे कागदावर अहवालाच्या माध्यमातून चित्रित केला जात असतो. सर्व घटना/प्रसंग शब्दांत मांडणे शक्य नसते. कार्यक्रम प्रसंगी घडलेल्या घटनांचा क्रमबद्धरीतीने सारांश रूपाने आढावा घेण्याचे काम अहवाल करीत असतो. अहवाललेखनात पाल्हाळ असता कामा नये. मोजक्या परंतु नेमक्या घटनांची समर्पक शब्दांत मांडणी करता येणे अपेक्षित असते.

उदा., महाविदयालयातील वक्तृत्व स्पर्धेच्या अहवाललेखनात पारितोषिक प्राप्त विदयार्थ्यांच्या भाषणातील काही महत्त्वाचे मुद्दे नावासहित उद्धृत करणे अपेक्षित असते. सर्व विदयार्थ्यांचे संपूर्ण भाषण नमूद करणे योग्य नाही. सारांश रूपाने विषय मांडणी करणे अभिप्रेत असते.

6. खालील विषयांवर अहवालाचे लेखन करा.

प्रश्न अ.
तुमच्या कनिष्ठ महाविदयालयातील स्नेहसंमेलन.
उत्तर :
चेतना कला आणि वाणिज्य कनिष्ठ महाविदयालय
नागपूर

वार्षिक स्नेहसंमेलन २०१९ – २०२०
अहवाल

शनिवार, दिनांक ४ जानेवारी २०२० रोजी सायंकाळी ५ वाजता महाविदयालयाच्या भव्य प्रांगणात सन २०१९ – २०२० या शैक्षणिक वर्षाचे वार्षिक स्नेहसंमेलन विदयार्थ्यांच्या उपस्थितीत मोठ्या जल्लोषात संपन्न झाले.

समारंभाचे अध्यक्षस्थान संस्थेचे अध्यक्ष आणि सामाजिक कार्यकर्ते मा. श्री. गणेश दिघे यांनी भूषवले होते. सुप्रसिद्ध डबिंग कलाकार श्रीमती कार्तिकी दाते या प्रमुख पाहुण्या म्हणून उपस्थित होत्या. स्नेहसंमेलनास शिक्षण संस्थेचे अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कार्याध्यक्ष व इतर सर्व पदाधिकारी उपस्थित होते. कनिष्ठ महाविदयालयाचे सर्व अध्यापक, विदयार्थी मोठ्या संख्येने उपस्थित होते.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.3 अहवाल

कार्यक्रमाचा आरंभ ‘तू बुद्धी दे, तू तेज दे’ या प्रार्थनेने करण्यात आला. कनिष्ठ महाविदयालयाच्या बारावी विज्ञान शाखेतील मोहिनी काळे या विदयार्थिनीच्या सुमधुर गीताने सर्वांची मने जिंकली. उपस्थित मान्यवरांच्या हस्ते दीपप्रज्वलन करण्यात आले. त्यानंतर प्रा. कुमार दाढे यांनी कार्यक्रमाचे प्रास्ताविक केले. समारंभात सादर होणाऱ्या कार्यक्रमाची रूपरेषा त्यांनी सांगितली. प्रा. दीप्ती राणे यांनी उपस्थित मान्यवरांचे शाल आणि सन्मानचिन्ह देऊन स्वागत केले.

सर्वांच्या सत्कारानंतर कनिष्ठ महाविदयालयाचे प्राचार्य डॉ. महेश देशपांडे यांनी सन २०१९ – २०२० या शैक्षणिक वर्षातील कनिष्ठ महाविदयालयात झालेल्या शैक्षणिक, सांस्कृतिक, कला क्रीडाविषयक घडामोडींचा थोडक्यात आढावा घेतला. सर्व अध्यापकांच्या कामाचे आणि विदयार्थ्यांच्या उत्साहाचे कौतुक केले.

कनिष्ठ महाविद्यालयाच्या अकरावी (अ) मधील विदयार्थांनी नृत्य सादर केले. कनिष्ठ महाविदयालयाच्या सर्व शाखांमधील निवडक विदयार्थ्यांनी मिळून राष्ट्रीय एकात्मतेवर आधारित नाटिका सादर केली. लागोपाठ समूह नृत्य आणि एकल गीत गायन मिळून चार सांस्कृतिक कार्यक्रम सादर करण्यात आले होते.

कार्यक्रमाच्या प्रमुख पाहुण्या सुप्रसिद्ध डबिंग कलाकार श्रीमती कार्तिकी दाते यांनी विदयार्थ्यांशी संवाद साधला. डबिंग क्षेत्रातील संधी समजावून सांगितल्या. संभाषण कौशल्यासोबत वाचनाचे महत्त्वही सांगितले. प्रात्यक्षिकांच्या साहाय्याने आवाजातील वैविध्य विदयार्थ्यांना दाखवले.

यानंतर उच्च माध्यमिक परीक्षेत सर्वांत अधिक गुण मिळवून यशस्वी होणाऱ्या विदयार्थ्यांचा प्रमुख पाहुण्यांच्या हस्ते सत्कार करण्यात आला. आंतरमहाविदयालयीन स्पर्धांमध्ये महाविदयालयाची नाममुद्रा उमटवणाऱ्या विदयार्थ्यांचे महाविदयालयाच्या वतीने सन्मान चिन्ह देऊन कौतुक करण्यात आले होते. वादविवाद, कवितावाचन, वक्तृत्व, निबंध, टी-शर्ट पेंटिंग या स्पर्धांची पारितोषिके अनुक्रमे वितरीत करण्यात आली. दरवर्षी स्नेहसंमेलनात सर्वांच्या उत्सुकतेचा विषय म्हणजे कनिष्ठ महाविदयालयाचा ‘आदर्श विद्यार्थी पुरस्कार’. बारावी (अ) कला शाखेच्या कपिल बोरसे या विदयार्थ्याने २०१९ – २०२० या वर्षातील ‘आदर्श विदयार्थी पुरस्कार’ देण्यात आला. सर्वांनी टाळ्यांच्या गजरात अभिनंदन केले.

अध्यक्षीय भाषणात मा. श्री. गणेश दिघे यांनी अध्यक्षीय भाषणात आपल्या महाविदयालयीन जीवनातील विविध प्रसंगांना उजाळा दिला. शिक्षकांची विदयार्थ्यांप्रती असणारी मायेची भावना सांगितली. सामाजिक कार्यातील अनेक उदाहरणे सांगून विदयार्थ्यांना सदय सामाजिक प्रश्नांची जाणीव करून दिली. पारितोषिक प्राप्त करणाऱ्या सर्व विदयार्थांचे अभिनंदन केले.

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कार्यक्रमाचे सूत्रसंचालन व पारितोषिक प्राप्त विदयार्थ्यांच्या यादीचे वाचन विदयार्थी प्रतिनिधी मंदार भावे आणि अश्विनी भोसले यांनी केले. प्रा. माणिक कढे यांनी सर्वांचे आभार मानले. तीन तास रंगलेल्या कार्यक्रमाची सांगता राष्ट्रगीताने झाली.

प्रा. दीप्ती राणे
अर्थशास्त्र विभागप्रमुख

दि. ……………                                                 सचिव                                                 अध्यक्ष

प्रश्न आ.
तुमच्या कनिष्ठ महाविद्यालयातील वृक्षारोपण कार्यक्रम.
उत्तर :
नालंदा शिक्षण संस्थेचे, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर माध्यमिक विद्यालय आणि कला, विज्ञान उच्च माध्यमिक विद्यालय
नांदेड

जागतिक पर्यावरण दिन : वृक्षारोपण कार्यक्रम
अहवाल

दरवर्षीप्रमाणे यंदाही ‘जागतिक पर्यावरण दिन’ बुधवार दि. ५ जून २०२० रोजी सकाळी आठ वाजता महाविदयालयात साजरा करण्यात आला. यावर्षी जागतिक पर्यावरण दिनाच्या निमित्ताने कनिष्ठ महाविदयालयात वृक्षारोपण कार्यक्रमाचे आयोजन करण्यात आले होते. महाविदयालयाच्या मागच्या बाजूस असणाऱ्या पटांगणात वृक्षारोपणाचा कार्यक्रम संपन्न झाला.

वृक्षारोपण कार्यक्रमास महाविदयालयाच्या प्राचार्या डॉ. शीतल देवस्थळी यांनी अध्यक्षस्थान भूषवले. शहरातील पर्यावरण प्रेमी आणि निवृत्त प्रशासकीय अधिकारी मा. श्री. अर्जुन नवले प्रमुख पाहुणे म्हणून उपस्थित होते. कनिष्ठ महाविदयालयातील अध्यापक, शहरातील निमंत्रित नागरिक आणि विदयार्थी मोठ्या संख्येने उपस्थित होते.

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महाविदयालयाच्या प्रांगणात असलेल्या ‘गुलाब’ फुलाच्या रोपाला पाणी देऊन कार्यक्रमाला आरंभ करण्यात आला. महाविदयालयाचे जीवशास्त्र विभागाचे प्रा. डॉ. अनिल राऊत यांनी कार्यक्रमाचे प्रास्ताविक केले. जागतिक पर्यावरण दिनाचे महत्त्व प्रास्ताविकात नमूद केले. महाविदयालयाचे उपप्राचार्य डॉ. आकाश परांजपे यांनी प्रमुख पाहुण्यांना शाल आणि तुळसीचे रोप देऊन स्वागत केले. बारावी कला शाखेची विदयार्थिनी मृण्मयी बडे हीने प्रमुख पाहुण्यांचा परिचय करून दिला.

यानंतर प्रमुख पाहुणे मा. श्री. अर्जुन नवले यांनी विदयार्थ्यांशी संवाद साधला. सर्वप्रथम त्यांनी उपस्थितांना पर्यावरण दिनाची माहिती सांगितली. वेगवेगळ्या वृक्षांची नावे, उपयोग सांगितले. वृक्षांचे पर्यावरणातील महत्त्व ऐकताना उपस्थित श्रोते भारावून गेले होते. अर्जुन नवले यांनी गोष्टीच्या माध्यमातून वृक्षांची उपयुक्तता अधोरेखित केली. औषधी वनस्पतींची महत्त्वाची माहिती त्यांनी भाषणातून सांगितली.

महाविदयालयाच्या प्राचार्या डॉ. शीतल देवस्थळी यांनी अध्यक्षीय भाषणात पर्यावरणाविषयी तज्ज्ञ व्यक्तींचे विचार सांगितले.

यानंतर उपस्थित सर्वजण वृक्षारोपणात सहभागी झाले. प्रथमतः प्रमुख पाहुण्यांच्या हस्ते आंबा आणि चिंच यांचे रोपण करण्यात आले. प्राचार्यांच्या हस्ते निलगिरीच्या रोपाचे रोपण करण्यात आले. यावर्षीच्या वृक्षारोपण सोहळ्यात कनिष्ठ महाविदयालयातील वर्ग प्रतिनिधींनी देखील वृक्षारोपण केले. गुलाब, मोगरा, तुळस, जास्वंदी अशा फुलांच्या रोपांचे रोपण चार वर्ग प्रतिनिधींनी अनुक्रमे केले.

वृक्षारोपण कार्यक्रमाचे सूत्रसंचालन राहुल गोखले या बारावीतील विदयार्थ्याने केले होते. भूगोल विभागातील प्रा. गीता नाईक यांनी उपस्थित सर्वांचे ऋण व्यक्त केले.

दोन तास सुरू असणाऱ्या कार्यक्रमाची सांगता ‘वृक्षवल्ली आम्हा सोयरी वनचरे’ या संत तुकाराम महाराजांच्या अभंग गायनाने करण्यात आली.

डॉ. अनिल राऊत
जीवशास्त्र विभाग

दि. ……………                                                 सचिव                                                 अध्यक्ष

अहवाल प्रस्तावना

सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षणिक क्षेत्रांमध्ये लोकोपयोगी नवनवीन उपक्रम राबवले जात असतात. या उपक्रमांच्या कार्यवाहीसाठी शासकीय/खाजगी संस्थेला समिती स्थापन करावी लागते. या समितीच्या माध्यमातून वेळोवेळी राबवल्या गेलेल्या कार्यक्रमाचा लेखी स्वरूपात सविस्तर आढावा तयार केला जातो. हा आढावा म्हणजे अहवाल होय. कोणत्याही संस्था कार्यकारिणीतील सदस्यांसाठी अहवाल महत्त्वाचा घटक मानला जातो.

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शाळामहाविदयालयांमध्ये आयोजित केल्या जाणाऱ्या विविध स्पर्धा, स्नेहसंमेलने यांचे अहवाल आवर्जून लिहिले जातात. संस्थात्मक पातळीवर अहवाललेखन अपरिहार्य असते. कार्यक्रम/समारंभाची तपशील माहिती अहवालातून मिळत असते.

अहवाललेखनाचे स्वरूप :

  • एखादया कार्यालयात, संस्थेत कार्यक्रमांची, समारंभांची योग्य पद्धतीने नोंद ठेवणे म्हणजे ‘अहवाललेखन’ होय.
  • अहवालाचे स्वरूप लेखी असते. अहवाललेखन संस्थेच्या कामकाजात महत्त्वाची भूमिका बजावत असते.
  • संस्थेच्या कार्यक्रमाच्या आरंभापासून ते संपन्नतेपर्यंत कार्यक्रमाची सविस्तर परंतु मुद्देसूद नोंद अहवालात केली जाते.
  • संस्थात्मक कामांच्या निर्णय प्रक्रियेतील लहानात लहान घटकापासून ते संचालकांपर्यंत अहवालाचे महत्त्व अनन्यसाधारण असते.
  • अहवाललेखनात सत्यता आणि वस्तुनिष्ठपणा फार महत्त्वाचा असतो.
  • अहवाल मुद्देसूद आणि नेमका असणे आवश्यक असते.
  • कार्यक्रमाच्या अहवालाच्या आधारे संस्थेच्या पुढील योजनांचे नियोजन करणे, प्रगती साधणे शक्य होते. प्रगती अहवाल, तपासणी अहवाल, चौकशी अहवाल, आढावा अहवाल, मासिक अहवाल, वार्षिक अहवाल अशा स्वरूपाचे अनेकविध अहवाल असतात.

अहवाललेखनाची उपयुक्तता :

  • कार्यक्रम/समारंभाच्या नोंदी ठेवण्यासाठी अहवाललेखनाचा उपयोग होतो.
  • संस्थेचा विकास, गती, उणिवा अहवालाद्वारे संस्थाचालकांपर्यंत पोहोचण्यास साहाय्य होते.
  • संस्थेच्या कामकाजातील, कार्यक्रमातील विविध अडचणी जाणून घेण्यासाठी तसेच त्यावर उपाययोजना करण्यासाठी अहवाल महत्त्वाचा धागा मानला जातो.
  • विविध संस्था, लघुउद्योग ते मोठमोठे उद्योग आणि ग्रामपंचायत ते महानगरपालिका अशा सर्व ठिकाणी होणाऱ्या घडामोडींना अधिकृतता प्राप्त व्हावी यासाठी अहवालाची गरज असते.
  • संस्था, शासकीय कार्यालयांतील कामकाजाचा दस्तऐवज म्हणून अहवाललेखनाकडे पाहिले जाते. वर्षानुवर्षे संस्था अहवालाचे जतन करीत असतात.
  • कार्यक्रमाचा हेतू, तारीख, वेळ, सहभागी व्यक्ती, मांडलेले विचार, प्रतिसाद, समारोप अशा विविध मुद्द्यांचा अहवालात समावेश केलेला असतो.
  • अहवालात माहितीची सत्यता, सविस्तर परंतु नेमक्या नोंदी, वस्तुनिष्ठता इत्यादी बाबींचा अवलंब करताना लेखनकौशल्यावरील प्रभुत्व सिद्ध होत असते. सरावाने अहवाललेखनात मुद्देसूदपणा प्राप्त करता येतो.
  • अहवालाच्या साहाय्याने संस्थेला भविष्यकालीन योजनांचा कृतिआराखडा ठरवणे शक्य होते.

अहवालाचा आराखडा :

  • कार्यक्रमाच्या स्वरूपावर अहवालाचे स्वरूप अवलंबून असते.
  • संस्थेच्या कार्यक्षेत्र विषयानुसार अहवालाच्या आराखड्यांचे मुद्दे बदलत असतात.
  • एकाच महाविदयालयातील वक्तृत्व स्पर्धा, स्नेहसंमेलन आणि क्रीडास्पर्धा यांच्या अहवालाचे स्वरूप भिन्न असू शकते.
  • स्पर्धेचे, कार्यक्रमाचे स्वरूप बदलले की अहवाललेखनातील मुद्दे बदलतात.
  • विषयाच्या स्वरूपानुसार अहवाललेखन, त्यांची रचना, घटक, मुद्दे, क्रम म्हणजे एकूणच आराखडा काही प्रमाणात वेगळा असतो.

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अहवाललेखनाची वैशिष्ट्ये :

  • कोणत्याही संस्थेच्या कार्यालयीन कामात अहवाललेखन अत्यंत विश्वासार्ह दस्तऐवज मानले जाते. कार्यक्रमाची संपूर्ण माहिती अहवालातून मिळत असते. अहवाललेखनाची काही वैशिष्ट्ये समजून घेऊ.

वस्तुनिष्ठता आणि सुस्पष्टता :

  • अहवाललेखनात कार्यक्रमाचा हेतू, तारीख, वार, वेळ, स्थळ, सहभागी व्यक्ती, पदे, विवेचन, महत्त्वपूर्ण घटना, संख्यात्मक माहिती, निष्कर्ष इत्यादी अनेक महत्त्वाच्या बाबींची नोंद असते. यात वस्तुनिष्ठता असणे गरजेचे असते.
  • अहवाललेखनात घटना-प्रसंग वर्णनात संदिग्धता असता कामा नये. अहवाललेखनातील नोंदी अचूक आणि सुस्पष्ट असाव्यात.
  • अहवाललेखनातील सर्व मुद्दे पारदर्शी असणे आवश्यक असते.
  • अहवालातील मांडणी तार्किक असावी. अहवालाच्या शेवटी आवश्यक संदर्भ तसेच शिफारसी जोडाव्यात.

विश्वसनीयता :

  • संस्थेच्या प्रमुख दस्तऐवजांमध्ये अहवालाचा समावेश केला जातो. अहवाललेखनात विश्वसनीयता महत्त्वाची मानली जाते.
  • अहवाललेखनातील घटक सत्य असावे.
  • अहवाललेखनात लेखनकर्त्याचे मत अथवा निष्कर्ष असू नये.
  • कार्यक्रमातील नोंदी, माहितीस्रोत, संदर्भ, शिफारसी यांचा अहवालात समावेश केल्याने अहवालाची विश्वसनीयता निश्चितच वाढते.
  • संस्थात्मक कामात कधी गुंतागुंतीची, संभ्रमाची परिस्थिती उद्भवली तर पुरावा म्हणूनही अहवालाचा वापर केला जाऊ शकतो.

भाषेचा सोपेपणा :

  • अहवालाची भाषा सहज, सोपी असावी. सर्वसामान्य व्यक्तीलाही अहवालाचा आशय कळेल असा सोपेपणा अहवालात असावा.
  • वस्तुनिष्ठता हे अहवालाचे एक वैशिष्ट्य असल्याने अहवालात अतिशयोक्ती, आलंकारिकता टाळली जाते.
  • तांत्रिकता, बोजड शब्दप्रयोग, व्याकरणदृष्ट्या सदोष भाषा अहवालात असणार नाही, याची काळजी घेणे अपरिहार्य असते.
  • अहवालातील मजकूर सविस्तर मांडत असताना आशयाचा नेमकेपणा कायम ठेवणे हे आव्हानात्मक काम असते.
  • प्रत्येक क्षेत्राशी निगडित संज्ञा, प्रक्रिया, पारिभाषिक शब्द यांचा यथोचित वापर करणे अहवाललेखनात गरजेचे असते.

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शब्दमर्यादा :

  • संस्थेच्या कार्यस्वरूपावर अहवालाची शब्दमर्यादा किंवा पृष्ठसंख्या अवलंबून असते.
  • सर्वसाधारणपणे अहवाल संक्षिप्त स्वरूपात असणे आवश्यक असते; परंतु यासाठी अहवाल अर्धवट राहणार नाही याची काळजी घेणे गरजेचे असते.
  • सांस्कृतिक, साहित्यिक, क्रीडाविषयक यांसारखे अहवाल आटोपशीर असतात. सहकारी संस्था, वार्षिक सर्वसाधारण सभा इत्यादींचे अहवाल विस्तृत असतात. अशा अहवालांचे स्वरूप निश्चित असते.
  • एखादया समस्येच्या संदर्भात संशोधनात्मक अहवाल, सार्वजनिक क्षेत्रातील उदयोगव्यवसाय, सार्वजनिक सेवा (बस वाहतूक) यांसारख्या विषयाशी संबंधित अहवाल आकाराने मोठे असतात. विस्तृतपणे लिहिले जातात.
  • निरीक्षणे, तपशील, आकडेवारी, संख्यात्मक आलेख, निष्कर्ष अशा माहितीचा समावेश अहवालात असल्याने संशोधनात्मक, चौकशी अहवालांची शब्दमर्यादा अधिक असल्याचे दिसते.
  • एखादया समारंभाचा अहवाल तीन-चार पृष्ठांचा असतो, तर एखादया आयोगाचा अहवाल सुमारे १००० किंवा अधिक पृष्ठांचा असू शकतो.

नि:पक्षपातीपणा :

  • अहवाललेखन दस्तऐवजाच्या स्वरूपात असल्याने त्याचे सर्वांत महत्त्वाचे वैशिष्ट्य म्हणजे पारदर्शीपणा.
  • प्रकार आणि स्वरूप कुठलेही असो, अहवालाचा नि:पक्षपातीपणा हे त्याचे महत्त्वाचे वैशिष्ट्य होय.
  • अहवाललेखनात व्यक्तिसापेक्षता असू नये.
  • अहवाललेखकाच्या विचारांचे प्रतिबिंब अहवालात असू नये. उलट संबंधित विषयाला बाधा आणणारी स्वतःची एकांगी मते, एककल्ली विचार अहवालात उमटणार नाहीत, याची काळजी घेणे आवश्यक असते.
  • अहवाललेखनात स्वतःच्या मर्जीने लेखन करता येत नाही. मनोकाल्पित गोष्टी अहवाललेखनात असू नयेत.
  • वास्तवदर्शी लेखन हा अहवालाचा आत्मा असतो.
  • संस्थात्मक कार्य, समारंभ, सभा, संशोधन यांमधील सत्य माहिती, लेखकाचा खराखुरा, वास्तव अनुभव शब्दरूपात अहवालात येणे अपेक्षित असते.

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लक्षात ठेवावे :

  • अहवाललेखनात शीर्षक, उपशीर्षक यांच्या अनुषंगाने सर्व मुद्दे असावेत. अहवालाच्या आरंभापासून ते शेवटच्या वाक्यापर्यंत सुसंगत मांडणी असावी.
  • अहवाल ‘सादर’ केला जातो; त्यामुळे अहवाललेखन करणारा आणि अहवाल वाचणारा हे दोन्ही घटक अहवाल निर्मितीच्या प्रक्रियेत महत्त्वाचे असतात.

अहवाललेखनाची प्रमुख अंगे :
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अहवाललेखनाचा आराखडा समजून घेताना वरील चार अंगे विचारात घ्यावी लागतात.

  1. अहवालाचे प्रास्ताविक : अहवालाच्या प्रास्ताविकात अहवालाचा विषय, हेतू (कार्यक्रमाचा विषय) उदधृत केलेले असणे अपेक्षित असते. कार्यक्रम/समारंभ विषय, स्थळ, दिनांक, वार, वेळ, स्वरूप, अध्यक्षांचे नाव, पदनाम, उपस्थित मान्यवरांची नावे, हुद्दे, अन्य उपस्थितांचा उल्लेख या बाबींचा समावेश असणे आवश्यक असते. कार्यक्रमाचा आरंभ, स्वरूप, लक्षणीय कृती इत्यादी गोष्टींचा उल्लेख आवर्जून करणे आवश्यक असते.
  2. अहवालाचा मध्य : संस्थात्मक सभा/कार्यक्रम/समारंभ यांसाठी सहभागी व्यक्ती, त्यांचे विवेचन, उपक्रमांचे तपशील, उपक्रमांचे फलित, यासंदर्भातील भविष्यातील योजना, नियोजन यांबाबत क्रमवार, मुद्देसूद विवेचन अपेक्षित असते. संबंधित कार्यक्रमात अन्य सहभागी व्यक्तींचे नामोल्लेख तसेच त्यांचे वक्तव्य निवडक स्वरूपात या टप्प्यावर लिहिणे आवश्यक असते.
  3. अहवालाचा समारोप : कोणत्याही सभा/ कार्यक्रम/ समारंभ यांच्यातील उल्लेखनीय बाबी, त्रुटी आणि यशस्विता यासंबंधीच्या निष्कर्षाच्या स्वरूपातील अभिप्राय समारोपात नोंदवून अहवाल पूर्ण करणे आवश्यक असते.
  4. अहवालाची भाषा : अहवाललेखनाची भाषा सोपी सहज आकलन होईल अशी असावी. संस्थेचे कार्यक्षेत्र, कार्यक्रमाचे स्वरूप इत्यादींनुसार अहवालात विशिष्ट संज्ञा, पारिभाषिक शब्दयोजना करावी लागते. प्रत्येक क्षेत्रात अहवालाची ठरावीक भाषा विकसित झालेली असते. अशा भाषेचा अवलंब अहवाललेखनात केला जातो.

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एक नमुना म्हणून महाविदयालयात साजरी केलेली ‘सावित्रीबाई फुले जयंती’ अहवाललेखनाचा आराखडा नेमका कसा असू शकेल ते पुढील तक्त्याच्या साहाय्याने पाहू या –

विषय : ‘सावित्रीबाई फुले जयंती’ समारंभाचा अहवाल.
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शैक्षणिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमांच्या अहवाललेखनात कार्यक्रमाची निवडक छायाचित्रे जोडली जातात. अहवालाच्या विश्वसनीयतेत यामुळे निश्चितच भर पडते.

अहवाललेखनात महत्त्वाचे :

  • कोणत्याही अहवालाच्या पहिल्या पानावर अहवालाचे शीर्षक असावे. संस्थेचे नाव, पत्ता, संपर्क क्रमांक असावा.
  • अहवालाचा विषय लक्षात घेऊन अहवाललेखन करणे महत्त्वाचे असते.
  • शीर्षक, उपशीर्षक, संख्यात्मक माहिती, आलेख, संकलित माहिती, त्यावरून मांडलेले निष्कर्ष या सर्वांचा समावेश अहवालात मुद्देसूदपणे करणे अपेक्षित असते. अहवालात नमूद केलेले मुद्दे, उपमुद्दे, विविध प्रकरणे यांची अनुक्रमणिका जोडणे अपेक्षित असते.
  • अहवाल सादर करणाऱ्याचे नाव आणि हुद्दा नमूद करणे गरजेचे.

अहवाललेखन लालित्यपूर्ण लेखन प्रकारात येत नसले तरी अहवाललेखन ही कला आहे. शिक्षणाच्या संदर्भात सुप्रसिद्ध कोठारी कमिशनच्या अहवालातील पहिलेच वाक्य आहे – “The destiny of India is being shaped in her classrooms!” (भारताच्या भवितव्याची जडणघडण शाळांमधील वर्गखोल्यांमध्ये होत आहे!) असे आहे. अशा लालित्यपूर्ण शैलीत विचार प्रकटीकरणामुळे अहवाललेखन लालित्यपूर्ण होऊ शकते.

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अहवाललेखन करताना लक्षात घ्यावयाच्या बाबी :

  • अहवाललेखन करणाऱ्या व्यक्तीला अहवालाच्या विषयासंबंधी नेमकी जाण असली पाहिजे.
  • अहवाललेखन वास्तवदर्शी असायला हवे. जे घडले ते सुस्पष्टपणे लिहिणे अपेक्षित असते.
  • अहवाललेखनात विषयाला विसंगत असलेले स्वमत, विचार लिहू है नयेत. अहवाललेखनात अहवाल लिहिणाऱ्या व्यक्तीच्या विचारांचे प्रतिबिंब असू नये.
  • अहवाल विषयाचे स्वरूप, वेगळेपण, विशिष्ट बारकावे टिपता आले पाहिजेत. यासाठी अहवाललेखकाकडे सूक्ष्म आकलन निरीक्षणशक्ती असली पाहिजे.
  • कार्यक्रमाचे सारांश रूपाने संक्षिप्त लेखन करता आले पाहिजे.
  • अहवाललेखनात व्यक्तींची नावे, हुद्दा चुकीची लिहिली जाऊ नयेत. घटनाक्रम चुकवू नये.
  • न घडलेल्या घटनांचा उल्लेख करू नये.
  • अहवाललेखनात आवश्यक त्या तांत्रिक गोष्टी (मथळा, तारीख, वेळ, स्थळ, अध्यक्ष, प्रमुख पाहुणे, पारितोषिक/पुरस्कार प्राप्त व्यक्ती इत्यादी) नोंदवणे आवश्यक असते.
  • अहवाललेखनासाठी भाषेवर प्रभुत्व असायला हवे. विशेषतः साहित्यिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमांचे अहवाललेखन करताना बोलके व सजीव चित्र उभे करता आले पाहिजे. संशोधनात्मक स्वरूपाच्या अहवालात योग्य पारिभाषिक शब्दावली आणि वस्तुनिष्ठता महत्त्वाची असते.
  • अहवाललेखनाची भाषा सहज, सोपी स्वाभाविक असावी.
  • आलंकारिक, नाट्यपूर्ण, अतिशयोक्तीपूर्ण वर्णन करणारी असू नये.
  • अहवाललेखनात सुसूत्रता असावी. अहवाल मांडणीत विस्कळीतपणा असू नये.
  • अहवाललेखन आरंभापासून शेवटच्या वाक्यापर्यंत एकात्म स्वरूपाचा असावा. अर्धवट, अपुरा असू नये किंवा तसा वाटू नये.
  • अहवाल लिहून झाल्यावर त्याखाली संबंधित अध्यक्ष आणि सचिव यांच्या मान्यतेस्तव स्वाक्षऱ्या केलेल्या असाव्यात.

नोंद : अहवाललेखन नमुना समजून घेण्यासाठी पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र.१०३ वर दिलेला अहवाललेखनाचा नमुना अभ्यासा. तसेच अधिक अभ्यासासाठी पुढे दिलेला अहवाललेखनाचा नमुनाही अभ्यासा.
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दरवर्षीप्रमाणे यावर्षीही महाविदयालयाच्या वतीने ‘मराठी भाषा E गौरव दिन’ अर्थात कविश्रेष्ठ कुसुमाग्रज यांचा जन्मदिवस २७ फेब्रुवारी २०२० रोजी गुरुवारी सकाळी महाविदयालयाच्या के. पी. रेगे सभागृहात मोठ्या जल्लोषात साजरा झाला.

अभिनव शिक्षण संस्थेचे संचालक आणि आदर्श शिक्षक पुरस्कार प्राप्त विदयार्थीप्रिय शिक्षक मा. श्री. हेमंत देवीदास यांनी कार्यक्रमाचे अध्यक्षस्थान भूषवले होते. सुप्रसिद्ध सुलेखनकार अच्युत पालव प्रमुख पाहुणे म्हणून उपस्थित होते. कार्यक्रमास महाविदयालयाच्या प्राचार्या डॉ. अरुणा जोशी उपस्थित होत्या. तसेच महाविद्यालयाचे सर्व अध्यापक, निमंत्रित आणि विदयार्थी मोठ्या संख्येने कार्यक्रमाला उपस्थित होते.

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कनिष्ठ महाविदयालय कला शाखेच्या विदयार्थ्यांनी कुसुमाग्रजांच्या ‘माझ्या मराठी मातीचा’ या गीतगायनाने कार्यक्रमाची सुरुवात केली. ‘मराठी भाषा गौरव दिना’चे प्रास्ताविक महाविदयालयाचे मराठी विभागप्रमुख प्रा. डॉ. आनंद राणे यांनी केले. ‘मराठी भाषा गौरव दिना’चे महत्त्व आणि कार्यक्रमाची रूपरेषा त्यांनी प्रास्ताविकात नमूद केली. इतिहास विभागाच्या प्रा. देविका कुलकर्णी यांनी कार्यक्रमाचे अध्यक्ष आणि प्रमुख पाहुणे यांचा परिचय करून दिला. महाविदयालयाच्या प्राचार्यांनी मान्यवरांचे स्वागत करावे अशी विनंती केली. महाविदयालयाच्या प्राचार्या डॉ. अरुणा जोशी यांनी मंचावर उपस्थित मान्यवरांचे शाल आणि सन्मानचिन्ह देऊन महाविदयालयाच्या वतीने स्वागत केले.

यानंतर कनिष्ठ महाविदयालयातील विदयार्थ्यांनी ‘मी मराठी’ या शीर्षकाची १५ मिनिटांची नाटिका सादर केली. नीलम काणे, दुर्गेश कर्वे आणि देविका भिडे या बारावीच्या विदयार्थ्यांचा यात सहभाग होता.

महाविदयालयाच्या प्राचार्या डॉ. अरुणा जोशी यांनी उपस्थित सर्वांना मराठी भाषा गौरव दिनाच्या सदिच्छा दिल्या. प्राचार्यांच्या सदिच्छापर भाषणानंतर कार्यक्रमाचे प्रमुख पाहुणे सुप्रसिद्ध सुलेखनकार अच्युत पालव यांनी विदयार्थ्यांशी संवाद साधला. मराठीतील अक्षरांच्या गमतीजमती सांगितल्या. अक्षरांचे व्यक्तिमत्त्व विविध उदाहरणातून उलगडून सांगितले. कवीश्रेष्ठ कुसुमाग्रजांच्या कवितेतील काही ओळींच्या सुलेखनाचे प्रात्यक्षिक विदयार्थ्यांना दाखवले. त्याक्षणी उपस्थित सर्वच भारावून गेले होते.

मराठी भाषा दिनानिमित्त आयोजित केलेल्या विविध स्पर्धांमध्ये आघाडीवर असणाऱ्या वर्गाला पारितोषिक देऊन गौरवण्यात आले. बारावी (ब) या वर्गाने हे पारितोषिक पटकावले. प्रमुख पाहुणे सुप्रसिद्ध सुलेखनकार अच्युत पालव यांच्या हस्ते पारितोषिक देण्यात आले. वर्गप्रतिनिधी कोमल जोंधळे या विदयार्थिनीने वर्गाच्या वतीने पारितोषिक स्वीकारले.

यानंतर संस्थेचे संचालक मा. श्री. हेमंत देवीदास यांनी अध्यक्षीय भाषण केले. मराठी भाषेचा गोडवा सांगत मातृभाषेतील शिक्षणाचे महत्त्वही सांगितले. विदयार्थी आणि सर्व प्राध्यापक वर्गाचे विविध उपक्रमांतील सक्रियतेसाठी कौतुक केले. हिंदी विभागप्रमुख अर्चना गुप्ता यांनी कार्यक्रमाचे अध्यक्ष, प्रमुख पाहुणे, उपस्थित प्राध्यापक वर्ग, निमंत्रित आणि विदयार्थी या सर्वांचे ऋण व्यक्त केले.

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दोन तास रंगलेल्या कार्यक्रमाची सांगता ज्ञानेश्वर माउलींच्या – पसायदानाने झाली.

प्रा. डॉ. आनंद राणे
मराठी विभागप्रमुख

दि. ……………                                                 सचिव                                                 अध्यक्ष

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Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 12th Digest Bhag 4.2 माहितीपत्रक Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

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12th Marathi Guide Chapter 4.2 माहितीपत्रक Textbook Questions and Answers

कृती

1. माहितीपत्रक म्हणजे काय ते सोदाहरण सांगा.
उत्तर :
बदलत्या काळात उत्पादनांची संख्या दिवसेंदिवस वाढत आहे. संस्था/उत्पादन/सेवा यांमध्ये कमालीची स्पर्धा निर्माण झाली आहे. अशा वेळी ग्राहकांपर्यंत आपले उत्पादन पोहोचवण्यासाठी उत्पादकांकडून माहितीपत्रकाचा वापर वाढला आहे. माहितीपत्रक कुठल्याही संस्थेचा/उत्पादनाचा/सेवेचा वैशिष्ट्यपूर्णरीत्या परिचय करून देत असते. जनमत आकर्षित करण्यासाठी एकप्रकारचे लिखित स्वरूपाचे जाहीर आवाहन आहे. माहितीपत्रकामुळे उत्पादकाला नवीन बाजारपेठेत सहज प्रवेश करता येतो. कमी वेळात, कमी खर्चात विश्वासार्ह माहिती ग्राहकाकडे माहितीपत्रकाच्या माध्यमातून पोहोचवता येते. सामान्य भाजी विक्रेत्यापासून ते करोडोंची उलाढाल करणाऱ्या व्यापाऱ्यापर्यंत सर्वांना माहितीपत्रकाची आवश्यकता भासते.

पुस्तके, खेळणी, किराणामाल, दिवाळीअंक, फर्निचर, स्टेशनरी, घरगुती वापराची उपकरणे, वाहने, कारखाने, औषधे, विविध खादयपदार्थ, रेडीमेड साड्या अशा सर्वच बाजारात उपलब्ध होणाऱ्या वस्तूंची माहितीपत्रके पाहावयास मिळतात. यासोबतच सिनेमागृहे, सांस्कृतिक संस्था, शैक्षणिक संस्था, बँका, पतपेढ्या, पर्यटनसंस्था इत्यादींमध्येही समुदाय आकर्षित करण्यासाठी माहितीपत्रकाची आवश्यकता असते. तसेच, कला, संगीत, विविध अभ्यासक्रम, विविध बांधकामे, गृहसंकुल इत्यादी क्षेत्रांतही माहितीपत्रक महत्त्वाची भूमिका निभावत असते. ज्या ज्या क्षेत्रात लोकआकर्षणाची गरज असते तिथे माहितीपत्रक आवश्यक ठरते. माहितीपत्रक हे विशिष्ट संस्था/उत्पादन/सेवा यांचा चेहरा असते, असे म्हटल्यास वावगे ठरणार नाही.

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2. माहितीपत्रकाची वैशिष्ट्ये खालील मुद्द्यांना धरून स्पष्ट करा.

(अ) आकर्षक मांडणी
उत्तर :
माहितीपत्रक हे उत्पादनाचे परिचयपत्रक असते. संस्था/ उत्पादन/सेवा यांची सविस्तर माहिती माहितीपत्रकातून मिळत असते. माहितीपत्रकातील छापील मजकूर जेवढा महत्त्वाचा असतो, तेवढीच त्या मजकुराची पानावरची मांडणीही महत्त्वाची असते. माहितीपत्रक दिसताच क्षणी ते ‘वाचावे’से वाटले पाहिजे. पानांवर मजकुराची ठेवण, कागदाचा आकार, रंगीत छपाई, अक्षरांचा आकार, सुलेखन, समर्पक चित्रे इत्यादी गोष्टींचा बारकाईने विचार माहितीपत्रकात करणे आवश्यक असते. माहितीपत्रकावरील शीर्षक, बोधचिन्ह, बोधवाक्य यांचे स्थान नेमके असावे. तंत्रज्ञानाच्या युगात रंगीत छपाई अधिक पसंत केली जात आहे. कागदाचा आकार मजकूर मांडणीला उठाव देण्यास साहाय्य करीत असतो. माहितीपत्रकातील अक्षरे ठळक दिसतील अशी असावीत. माहितीपत्रकाची मांडणी वेधक करण्यासाठी चित्रकार, कौशल्यपूर्ण कलाकार, संगणक तज्ज्ञ मदतीला असल्यास माहितीपत्रकाची मांडणी आकर्षक होण्यास दिशा मिळते.

(आ) भाषाशैली
उत्तर :
आपल्या उत्पादनाची सविस्तर व विश्वासार्ह माहिती ग्राहकांपर्यंत पोहोचवण्याचे माहितीपत्रक हे उत्तम साधन आहे. माहितीपत्रकाच्या दृश्यमांडणीत मजकुराला विशेष महत्त्व आहे. दर्शनी रूपासोबत माहितीपत्रकाच्या मजकुरालाही फार महत्त्व आहे. माहितीपत्रक वाचले जाण्यासाठी त्यातील भाषाशैली ग्राहकाला आकर्षित करणारी असावी. सोपी परंतु परिणामकारक असावी. माहितीपत्रकाची भाषा पाल्हाळीक नसावी. मनाची पकड घेणारी आणि आशय सहज ध्वनित करणारी असावी. माहितीपत्रकाची भाषा उत्पादनाची स्तुती करणारी असावी. परंतु ती अवास्तव असणार नाही याची काळजी घेणे आवश्यक ठरते.

उदा., ‘आमच्या घरगुती पोळीभाजी केंद्रात पोटभर जेवण मिळेल, घरच्या जेवणाचा अनुभव येईल, कमी किमतीत चवदार अन्न मिळेल.’ एवढ्या माहितीसाठी ‘पोटभर जेवण; घरच्या चवीचा स्वाद, किंमतही कमी, दयाल तुम्हीही दाद’ अशा एकाच वाक्यात सांगताना मनाला स्पर्श करणारी भाषाशैली माहितीपत्रकात असणे साहाय्यक ठरते. वाचकमनावर ठसा उमटवणारी भाषाशैली माहितीपत्रकात असणे आवश्यक असते.

3. थोडक्यात माहिती लिहा.

(अ) माहितीपत्रकाची गरज असणारी क्षेत्रे.
उत्तर :
आज स्पर्धेच्या युगात व्यापाराच्या बाबतीत उत्पादक आणि ग्राहक फार चौकस झाले आहेत. उत्पादकांना आपले उत्पादन/सेवा अधिकाधिक लोकांपर्यंत पोहोचवणे अगत्याचे असते; तर घरबसल्या सर्व उत्पादनांची सविस्तर माहिती मिळवणे हे ग्राहकांसाठी महत्त्वाचे असते. अशा वेळी ‘माहितीपत्रक’ या दोहोंत समन्वय साधत असते. आज असे कुठलेच क्षेत्र नाही जिथे माहितीपत्रकाची आवश्यकता नाही. फळे-भाजी विकणाऱ्या सर्वसाधारण विक्रेत्यापासून करोडोंचे आर्थिक व्यवहार करणाऱ्या संस्था, व्यापारी सर्वांनाच माहितीपत्रक आवश्यक असते. शैक्षणिक, सांस्कृतिक संस्था, विविध अभ्यासक्रम चालवणाऱ्या शैक्षणिक संस्था, प्रवासी कंपन्या, शेती अवजारे निर्माण करणाऱ्या कंपन्या, संगीत, कला यांसारख्या क्षेत्रांत माहितीपत्रक महत्त्वाचे ठरते.

उदा., एखादया शैक्षणिक संस्थेच्या नवीन अभ्यासक्रमाची माहिती विदयार्थी आणि पालकांपर्यंत पोहोचवण्यासाठी माहितीपत्रक गरजेचे असते. कारखाने, नाट्यगृहे, सिनेमागृहे, बँका, बचतगट, तसेच, औषधे, विद्युत उपकरणे, वाहने, वगैरेंची निर्मिती करणारे उदयोग, यांसारख्या क्षेत्रांतही माहितीपत्रक महत्त्वाचे असते. उदा., विद्युत उपकरणे खरेदी केल्यावर त्यांच्या जोडणीपासून उपयुक्ततेपर्यंत सर्व बाबी सविस्तर माहितीपत्रकात नमूद केलेल्या असतात.

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(आ) माहितीपत्रक म्हणजे अप्रत्यक्षपणे जाहिरातच.
उत्तर :
माहितीपत्रक म्हणजे वैशिष्ट्यपूर्ण माहिती देणारे परिचयात्मक पत्रक होय. वेगवेगळ्या संस्था/कंपन्या आपले उत्पादन लोकांपर्यंत पोहोचवण्यासाठी माहितीपत्रके काढत असतात. माहितीपत्रकामुळे एकावेळी मोठ्या जनसमुदायापर्यंत सविस्तर माहिती पोहोचवता येते. कमी खर्चात, कमी वेळेत अधिकाधिक ग्राहकांपर्यंत पोहोचणे शक्य होते. माहितीपत्रकाचे नीटनेटके स्वरूप ग्राहकाला आकर्षित करीत असते. माहितीपत्रकात ‘माहिती’ला अधिक महत्त्व असते. त्यामुळे माहितीपत्रकाच्या हेतूशी सुसंगत माहिती ग्राहकांपर्यंत पोहोचवली जाते.

जनमत आकर्षित करण्यासाठी माहितीपत्रक म्हणजे पहिली पायरी असते. व्यापारी आणि ग्राहक यांच्यात सुसंवाद माहितीपत्रकाने साधला जातो. माहितीपत्रकामुळे उत्पादकाला नवीन बाजारपेठ उपलब्ध होण्यास मदत होते, तर ग्राहकाला उत्पादनाचा विश्वासार्ह आढावा घेता येतो. माहितीपत्रक उत्पादनाविषयी औत्सुक्य निर्माण करून ग्राहकाला आपलेसे करीत असते. त्यामुळे माहितीपत्रक म्हणजे अप्रत्यक्षपणे जाहिरात असते, असे म्हटल्यास अतिशयोक्ती वाटणार नाही.

4. माहितीपत्रकाची उपयुक्तता तुमच्या शब्दांत स्पष्ट करा.
उत्तर :
माहितीपत्रक वाचून झाल्यावरही लोकांनी ते जपून ठेवणे ही उत्तम माहितीपत्रकाची ओळख असते. माहितीपत्रक नवनवीन योजना/सेवा/उत्पादने यांची सविस्तर माहिती ग्राहकांना देत असते. फळफळावळ आणि भाजीपाला विक्रेते यांपासून करोडो रुपयांचा व्यवसाय करणाऱ्या व्यापाऱ्यांपर्यंत सर्वांना माहितीपत्रकाची आवश्यकता असते. पुस्तके, स्टेशनरी, किराणामाल, दिवाळीअंक, घरगुती वापराची उपकरणे, अलिशान गाड्या अशा सर्वच उत्पादनाची माहिती माहितीपत्रकातून मिळत असते. उत्पादनाच्या सोयी संदर्भातील शंकांचे निरसन माहितीपत्रक करीत असते. माहितीपत्रक योजना/सेवा/उत्पादन यांचा आरसा असते. माहितीपत्रकातील माहिती आकर्षक परंतु विश्वासार्ह असल्यास वाचक असे माहितीपत्रक जपून ठेवतात. त्याचा प्रचार करतात. उत्पादनाचे वैशिष्ट्य, वेगळेपण, ग्राहकाला होणारा फायदा या गोष्टी जिथे अधोरेखित करायच्या असतील, तिथे माहितीपत्रकाची भूमिका महत्त्वाची असते.

5. महाराष्ट्रीय पदधतीचे सुग्रास भोजन उपलब्ध करून देणाऱ्या भोजनगृहाचे माहितीपत्रक तयार करण्यासाठी कोणकोणते मुददे आवश्यक राहतील ते लिहा.
उत्तर :

  • भोजनगृह चालवणाऱ्या संस्थेचे अथवा सदर भोजनगृहाचे नाव, बोधवाक्य, बोधचिन्ह.
  • भोजनगृहाचा पत्ता/ स्थापना वर्ष/ नोंदणीक्रमांक/ दूरध्वनी/मोबाइल क्रमांक/ ई-मेल/ वेबसाईट इत्यादी.
  • भोजनगृह चालवणाऱ्या व्यक्तीचे/सेवा देणाऱ्या व्यक्तीचे नाव/ संपर्क क्रमांक/ ई-मेल इत्यादी.
  • भोजनगृहासंबंधी प्राथमिक माहिती. (महाराष्ट्रीयन पद्धतीचे सुग्रास जेवण, शाकाहारी आणि मांसाहारी जेवण, खादयपदार्थांचे वैशिष्ट्य.)
  • भोजनगृहातील सुविधा. (बैठक व्यवस्था, बैठक संख्या, स्वच्छतागृह, लहान मुलांसाठी बगीचा, खेळणी इत्यादी.)
  • भोजनगृहाची वैशिष्ट्ये. (शाकाहारी आणि मांसाहारी स्वतंत्र शेगडी; मालवणी, वैदर्भीय, मराठवाडी, खानदेशी, कोल्हापुरी, पुणेरी खादयपदार्थ यांचे वैविध्य.)
  • भोजनगृहाची माहिती. (उदा., खादयपदार्थांची यादी, किंमत, भोजनगृहाची वेळ, सुट्टीचा दिवस, घरपोच सेवा.)
  • भोजनगृहाची अन्य वैशिष्ट्ये. (विविध मसाले, लोणची, पापड, सांडगे, कोकम, आवळा सरबत इत्यादी पदार्थ विक्रीसाठी उपलब्ध.)
  • भोजनगृहाची पूरक छायाचित्रे.
  • भोजनगृहापर्यंत जाणाऱ्या रस्त्याची माहिती/जवळील नावाजलेले ठिकाण इत्यादी.

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6. एका वस्त्रदालनाचे आकर्षक माहितीपत्रक तयार करा.
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 माहितीपत्रक 1

माहितीपत्रक प्रस्तावना

आजचे युग हे स्पर्धेचे आहे. रोज नवनव्या संस्था, उदयोग उदयाला येत आहेत. नव्या तंत्रज्ञानाच्या सोबतीने नवनव्या योजना जागतिक बाजारात सर्रास वावरत आहेत. एखादया संस्थेची, योजनांची, उत्पादनाची तपशीलवार माहिती सर्वसामान्य लोकांपर्यंत पोहोचवण्याचे काम माहितीपत्रक करीत असते. जागतिकीकरण आणि व्यापारीकरणामुळे ग्राहकही दिवसेंदिवस जागरूक आणि चौकस होऊ लागला आहे. ग्राहकाला घरबसल्या लिखित स्वरूपात हे तपशील माहितीपत्रकाच्या माध्यमातून उत्पादक उपलब्ध करून देऊ लागले आहेत. माहितीपत्रक हे एकाअर्थी उत्पादनाचे, संस्थेचे प्रसिद्धीपत्रकच असते. माहितीपत्रकास उत्पादक आणि ग्राहक यांतील अप्रत्यक्ष दुवा म्हणता येऊ शकते.

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माहितीपत्रकाचे स्वरूप :

  • एखादी संस्था, उद्योग, गृहोदयोग यांत दिवसेंदिवस नवनवीन योजनांची भर पडत असते. जागतिकीकरणाच्या युगात नवनवीन संस्था, बँका, विविध सेवा पुरवणाऱ्या संस्था यांची निर्मिती व वाढ होत आहे.
  • माहितीपत्रकातून विशिष्ट उत्पादन, सेवा यांची तपशीलवार माहिती मिळत असते.
  • माहितीपत्रक म्हणजे वैशिष्ट्यपूर्ण माहिती देणारे लिखित स्वरूपातील परिचयात्मक पत्रक होय.
  • माहितीपत्रक हे एक प्रकारे सेवा, संस्था लोकांपर्यंत पोहोचवण्याचे साधन आहे.
  • माहितीपत्रकामुळे उत्पादक आणि ग्राहक यांच्यात संवाद निर्माण होतो.
  • उत्पादनाला नवीन बाजारपेठ मिळवण्यासाठी माहितीपत्रक पहिली पायरी असते.
  • माहितीपत्रक कमी वेळात, कमी खर्चात सविस्तर माहिती लोकांपर्यंत पोहोचवत असते.
  • माहितीपत्रक उत्पादनाविषयी जनसामान्यांच्या मनात कुतूहल, उत्कंठा निर्माण करण्यात महत्त्वाची भूमिका बजावत असते.

माहितीपत्रकाची आवश्यकता :

  • माहितीपत्रक म्हणजे सर्वसाधारणपणे प्रसिद्धीपत्रक असते.
  • निरनिराळ्या संस्था, व्यापारी कंपन्या, उत्पादक आपल्या योजनांची तसेच उत्पादनांची माहिती लोकांपर्यंत पोहोचवण्यासाठी लिखित स्वरूपाच्या माहितीपत्रकांची निर्मिती करीत असतात.
  • फळे, भाजीपाला विक्रेत्यांपासून ते लक्षावधींची उलाढाल करणाऱ्या व्यापाऱ्यांपर्यंत सर्वांना माहितीपत्रकाची आवश्यकता असते. उदा., पुस्तके, खेळणी, किराणामाल, दिवाळीअंक, फर्निचर, स्टेशनरी, घरगुती वापराची उपकरणे, वाहने, कारखाने, औषधे, विविध खादयपदार्थ, रेडीमेड साड्या अशा बाजारात उपलब्ध होणाऱ्या सर्वच वस्तूंची माहितीपत्रके पाहावयास मिळतात. यासोबतच सिनेमागृहे, सांस्कृतिक संस्था, बँका, शैक्षणिक संस्था, पतपेढ्या, पर्यटनसंस्था इत्यादींमध्येही समुदायाला आकर्षित करण्यासाठी माहितीपत्रकाची आवश्यकता असते.
  • आपली वैशिष्ट्ये, वेगळेपण आणि ग्राहकाला होणारे फायदे अधोरेखित करण्यासाठी माहितीपत्रक उत्तम साधन असते.

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माहितीपत्रकाचे वर्गीकरण :

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 माहितीपत्रक 2

लक्षात घ्यावे असे :

बऱ्याचदा ‘माहितीपत्रक’ आणि ‘परिपत्रक’ यांतील भेद समजून घेण्यात चूक होऊ शकते. माहितीपत्रक आणि परिपत्रक यांत पुसटशी सीमारेषा आहे. माहितीपत्रक मोठ्या जनसमुदायासाठी असते, तर परिपत्रक शासकीय कर्मचाऱ्यांसाठी काढले जाते. परिपत्रकात कायदेशीर बाबींचा अवलंब केलेला असतो, माहितीपत्रकाचे स्वरूप मात्र सामान्यजनांना आकलन होण्याजोगे असते. माहितीपत्रकात विश्वासार्ह माहिती असणे अपेक्षित असते. माहितीपत्रक हे विशिष्ट संस्थेचा/ उत्पादनाचा/सेवेचा चेहरा असते.

माहितीपत्रकाची रचना :

1. ‘माहिती’ला प्राधान्य :

  • माहितीपत्रकाच्या शीर्षकावरूनच त्याची प्रकृती लक्षात येते.
  • माहितीपत्रकाचा ‘माहिती’ देणे हा मुख्य हेतू आहे.
  • ज्या विषयाचे माहितीपत्रक आहे, त्याची सुसंगत, सविस्तर आणि अचूक माहिती त्यात असणे आवश्यक असते.
  • संस्थेबद्दल विश्वासार्ह माहिती गरजेची असते. उदा., संस्थेचे कार्यालय, पत्ता, नोंदणीक्रमांक, बोधचिन्ह, संस्थेचे संचालक, अध्यक्ष यांचे संपर्क, ई-मेल, वेबसाईट इत्यादी माहिती अचूक असावी.
  • माहितीपत्रकातील माहिती वस्तुनिष्ठ व सत्य असावी. अतिशयोक्ती तसेच चुकीची माहिती माहितीपत्रकात असू नये. माहितीपत्रकाची भाषा साधी, सोपी असावी. सामान्य लोकांना सहज आकलन होईल अशी भाषिकरचना असणे आवश्यक असते.
  • माहितीचे स्वरूप सुटसुटीत असावे. माहितीचा अतिरेक असता कामा नये.
  • परीक्षेत माहितीपत्रक तयार करताना त्यात चित्रे काढणे अपेक्षित नाही.
  • फक्त भाषिक मजकूर पुरेसा असतो.

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2. माहितीपत्रकाची उपयुक्तता :

  • माहितीपत्रक हे उपयुक्त असावे. वाचून झाल्यावर चुरगळून फेकून न देता लोकांनी संग्रही ठेवावे अशा स्वरूपाचे असावे.
  • माहितीपत्रकात ग्राहकाच्या उपयोगाची, जिव्हाळ्याची माहिती असल्यास माहितीपत्रकाची उपयुक्तता नक्कीच वाढते.
  • माहितीपत्रकातील माहिती आकर्षक परंतु विश्वासार्ह असल्यास वाचक असे माहितीपत्रक जपून ठेवतात. त्याचा प्रचार करतात.
  • माहितीपत्रकांची काही क्षेत्रे : ग्राहकाचे दैनंदिन प्रश्न, आरोग्य, शेती, तांत्रिक किंवा वैज्ञानिक स्वरूपाची माहिती देणारे माहितीपत्रक.
  • ग्राहक अशा माहितीपत्रकांकडे लगेच वळतात. उदा., ‘कोरोनावर मात करताना अशी वाढवावी प्रतिकार शक्ती’, ‘फळांची खरी ओळख पटवताना…’, ‘कशी असते अन्नधान्यातील भेसळ?’

3. माहितीपत्रकाचे वेगळेपण :

  • बाजारात रोज नवनवी उत्पादने येत असतात. या स्पर्धेत आपल्या उत्पादनाच्या माहितीपत्रकाचेही वेगळेपण टिकवणे आवश्यक असते. त्यासाठी माहितीची मांडणी वेगळेपणाने केली जाते.
  • अन्य माहितीपत्रकांपेक्षा आपले माहितीपत्रक वेगळे ठरण्यासाठी मजकुराची आकर्षक मांडणी, माहितीची उपयुक्तता सांगणारा आकर्षक मजकूर, आकार, पानांची मांडणी, सुलेखन, अक्षरांची ठेवण इत्यादींद्वारे वेगळेपण आणले जाते.

4. आकर्षक मांडणी (ले-आऊट) :

  • माहितीपत्रक दिसताक्षणी वाचावेसे वाटले पाहिजे. यासाठी माहितीपत्रकाची मांडणी आकर्षक असायला हवी.
  • माहितीपत्रकाचा आकार योग्य असावा. खूप मोठा व लहान असता कामा नये.
  • मध्यम आकारात माहितीच्या मजकुराची मांडणी नीटनेटकी करणे शक्य असते.
  • माहितीपत्रकाचे पहिले पृष्ठ लक्षवेधी असावे. शीर्षक, बोधचिन्ह, बोधवाक्य ठसठशीत असावे.
  • माहितीपत्रकाच्या कागदाची निवडही महत्त्वाची असते.
  • कागद अगदी हलका तसेच अगदी जाड असणेही योग्य नाही.
  • बदलत्या काळात रंगीत माहितीपत्रक ग्राहकाला आकर्षित करीत असतात. त्यांमुळे छपाई रंगीत असल्यास साहाय्य होते.
  • माहितीपत्रकाची मांडणी दर्जेदार करण्यासाठी वेळोवेळी संगणक तज्ज्ञ, कुशल कलाकार, चित्रकार इत्यादींची मदत घेणे आवश्यक ठरते.

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भाषाशैली :

  • आपल्या उत्पादनाची सविस्तर व विश्वासार्ह माहिती ग्राहकांपर्यंत पोहोचवण्याचे माहितीपत्रक हे उत्तम साधन आहे. दर्शनी रूपासोबत माहितीपत्रकाच्या मजकुरालाही फार महत्त्व आहे.
  • वाचकांना आकर्षित करण्यासाठी मजकुराची भाषा वेधक असणे आवश्यक आहे.
  • माहितीपत्रकाची भाषा सोपी परंतु परिणामकारक असावी.
  • माहितीपत्रकाची भाषा पाल्हाळीक नसावी. मनाची पकड घेणारी आणि आशय सहज ध्वनित करणारी असावी. उदा., गाण्याच्या नव्या वर्गांची माहिती देताना; ‘सूरांची बैठक पक्की केली जाईल, तज्ज्ञांचे मार्गदर्शन आणि गाण्याच्या सरावाकडे विशेष लक्ष दिले जाईल.’ एवढा आशय एका वाक्यातून सांगण्याऐवजी पुढील मुद्दयांत तो मांडता येईल :

ठळक वैशिष्ट्ये :

  • सुरांची पक्की बैठक.
  • तज्ज्ञांचे मार्गदर्शन.
  • सरावावर खास भर.

व्यावसायिक संधी :

  1. आजच्या स्पर्धेच्या काळात आकर्षक आणि नेमकी माहिती पुरवणारे माहितीपत्रक तयार करणे ही व्यावसायिकांची गरज आहे आणि ती. वेळेवर उपलब्ध होणे ही ग्राहकांसाठी आवश्यक बाब आहे.
  2. आज बहुतांश माहितीपत्रके इंग्रजीतून निर्माण होत असल्याचे दिसते. अशा वेळी मराठीतून परिणामकारक माहितीपत्रके निर्माण करणाऱ्यांचे महत्त्व विशेष वाढताना दिसत आहे.
  3. तंत्रज्ञान, सौंदर्यदृष्टी आणि भाषेचे प्रभुत्व असणाऱ्या युवावर्गाला हे क्षेत्र खुणावत आहे.
  4. माहितीपत्रक तयार करणे या गोष्टीला व्यावसायिक मूल्य प्राप्त होत आहे.
  5. माहितीपत्रक संस्थेचा/उत्पादनाचा/सेवेचा चेहरा असल्याने माहितीपत्रकावरून संबंधित विषयाच्या कामाचा दर्जा लक्षात येत असतो. त्यामुळे व्यावसायिक दृष्टीतून दर्जेदार माहितीपत्रक निर्मात्याला प्रतिष्ठा आणि पैसा मिळू लागला आहे.

नोंद : माहितीपत्रकासाठी आवश्यक मुद्दे समजून घेण्यासाठी पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. ९६ वर दिलेला माहितीपत्रकासाठी आवश्यक मुद्द्यांचा नमुना अभ्यासा. तसेच अधिक अभ्यासासाठी पुढील नमुनाही अभ्यासा.

माहितीपत्रकासाठी आवश्यक मुद्द्यांचा नमुना :
महाविद्यालयीन विद्यार्थ्यांसाठी सुलेखनाचे वर्ग नव्याने सुरू करायचे आहेत. अधिकाधिक विद्यार्थी आणि पालकांपर्यंत ही माहिती पोहोचवायची आहे. त्यासाठी –

  • ज्या संस्थेमार्फत सुलेखनाचे वर्ग चालवले जाणार आहेत त्या संस्थेचे बोधचिन्ह/बोधवाक्य, तसेच संस्थेच्या महत्त्वाच्या पदाधिकाऱ्यांची नावे, पदनाम.
  • संस्थेचे नाव/पत्ता/स्थापना वर्ष/नोंदणीक्रमांक/दूरध्वनी/मोबाइल क्रमांक/ई-मेल/वेबसाईट इत्यादी.
  • संस्थेची थोडक्यात माहिती. (संस्थेची स्थापना, स्थापनेचा हेतू, संस्थापक, अन्य उपक्रम इत्यादी.)
  • सुलेखन वर्गाविषयी सविस्तर माहिती. (वर्ग सुरू करण्यामागचा हेतू, वयोगट, कालावधी इत्यादी.)
  • सुलेखन वर्गासाठी असणाऱ्या सुविधा. (पेन, पेन्सिल, कागद, शाई इत्यादी साधनांची उपलब्धी, आवश्यक पुस्तके.)
  • सुलेखन वर्गाची वैशिष्ट्ये. (मर्यादित विदयार्थी संख्या, वैयक्तिक मार्गदर्शन, तज्ज्ञ मार्गदर्शक, सुलेखनाचे प्रदर्शन, सुलेखनाची संधी इत्यादी.)
  • सुलेखन वर्गाचे भविष्यातील महत्त्व. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 मुलाखत
  • आधीच्या सुलेखन वर्गाची पूरक छायाचित्रे. (निवडक माजी विदयार्थ्यांच्या सुलेखनाची छायाचित्रे.)
  • सुलेखन वर्गाच्या इमारतीपर्यंत जाणाऱ्या रस्त्यांची माहिती.
  • प्रवेश प्रक्रिया, प्रवेशासाठी आवश्यक कागदपत्रे, शैक्षणिक पात्रता, फी स्वरूप, फी भरण्याचे टप्पे, सुलेखन वर्गाचा एकूण कालावधी, वेळ, सुट्ट्यांचे नियोजन, संबंधित अधिकाऱ्याचे नाव, संपर्क क्रमांक, सुलेखन वर्ग सुरू होण्याची तारीख इत्यादी.

नोंद : माहितीपत्रक समजून घेण्यासाठी पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र.९८ व ९९ वर दिलेला माहितीपत्रकाचा नमुना अभ्यासा. तसेच अधिक अभ्यासासाठी पुढे दिलेला माहितीपत्रकाचा नमुनाही अभ्यासा.

माहितीपत्रकाचा नमुना
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Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.2 माहितीपत्रक 3

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 मुलाखत

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12 वी मराठी पुस्तक युवकभारती भाग-४ उपयोजित मराठी

Mulakhat Class 12 Marathi Bhag 4.1 Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 12th Digest Bhag 4.1 मुलाखत Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

12th Marathi Bhag 4.1 Exercise Question Answer Maharashtra Board

मुलाखत 12 वी मराठी स्वाध्याय प्रश्नांची उत्तरे

12th Marathi Guide Chapter 4.1 मुलाखत Textbook Questions and Answers

कृती

1. खालील मुद्द्यांविषयी माहिती लिहा.

प्रश्न अ.
मुलाखतीची पूर्वतयारी.
उत्तर :
मुलाखत यशस्वी होण्यासाठी मुलाखतीच्या पूर्वतयारीची आवश्यकता असते. पूर्वतयारीमुळे मुलाखतकाराचा आत्मविश्वास ते रसिक-श्रोत्यांची कौतुकाची थाप इथपर्यंतचा मुलाखतीचा प्रवास सुकर होतो. मुलाखतदात्याचे संपूर्ण नाव, जन्मस्थळ, आवडीनिवडी, शिक्षण, कौटुंबिक माहिती, कार्यकर्तृत्व, पुरस्कार, लेखन, वैचारिक भूमिका इत्यादी आवश्यक ती सर्व माहिती मुलाखतकाराला आधीच तयार ठेवावी लागते. मुलाखतीचा विषय, उद्दिष्ट, मुलाखत ऐकणारा, बघणारा, वाचणारा वर्ग आणि मुलाखतीचा कालावधी यांचाही अभ्यास मुलाखत घेणाऱ्या व्यक्तीला करावा लागतो. मुलाखतीतील सर्वांत महत्त्वाची गोष्ट म्हणजे मुलाखतीतील प्रश्नावली. पूर्वतयारीत विषयाला समर्पक अशी प्रश्नावली करणे आवश्यक असते. मुलाखतीचे माध्यम कोणते आहे याचाही मुलाखतीपूर्वी विचार करणे आवश्यक असते. मुलाखतकार आणि मुलाखतदाता यांची मुलाखतीपूर्वीची भेट निश्चितच मुलाखत यशस्वी करण्यात साहाय्यभूत ठरते.

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प्रश्न आ.
मुलाखतीचा समारोप.
उत्तर :
बदलत्या काळात व्याख्यानाऐवजी मुलाखतीच्या माध्यमातून व्यक्तीचे विचार ऐकण्यास रसिकांची पसंती मिळू लागली आहे. मुलाखत क्षेत्राला प्रतिष्ठा प्राप्त झाली आहे. मुलाखतकाराला मुलाखतदात्याचे संपूर्ण कार्यकर्तृत्व रसिकांसमोर प्रश्नांच्या आधारे उलगडून दाखवायचे असते. मुलाखतकारासमोर हे मोठे आव्हानच असते असे म्हणता येते. मुलाखतीच्या यशस्वितेसाठी मुलाखतकाराला तीन टप्प्यांवर मुलाखतीचे विभाजन करणे आवश्यक असते. ते असे : मुलाखतीचा आरंभ, मध्य आणि समारोप. हे टप्पे रसिकांना प्रत्यक्ष जाणवू न देणे हे मुलाखतकाराच्या संभाषण कौशल्यावर अवलंबून असते. मुलाखतीचा आरंभ जेवढा आकर्षक अपेक्षित असतो, तेवढाच समारोप परिणामकारक असणे गरजेचे असते.

मुलाखतीच्या समारोपाच्या टप्प्यावर प्रश्नांऐवजी ठळक वक्तव्य अपेक्षित असते. समारोपात मुलाखतकाराने मुलाखतीचा अर्क रसिकांसमोर मांडणे आवश्यक असते. हे करताना समारोपात मुलाखतीचा कालावधी लक्षात घेऊन मुलाखतकाराने मुलाखत सकारात्मक सूत्रावर सादर करणे योग्य ठरते. या टप्प्यावर मुलाखत रेंगाळू न देण्याची खबरदारी मुलाखतकाराला घ्यावी लागते. मुलाखतीच्या उद्दिष्टाचे साफल्य या टप्प्यावर दिसून येते. मुलाखतकाराने या समारोपादरम्यान निवेदनासाठी थोडासा वेळ घेतला तरी चालू शकते. मुलाखतकाराचे रसिकांसोबत अविस्मरणीय संवाद या टप्प्यावर होणे आवश्यक असते. ‘गोडी अपूर्णतेची’ या सूत्रावर मुलाखत संपणे हे मुलाखतीच्या यशाचे श्रेय मानले जाते. ‘या हृदयीचे त्या हृदयी’ पोहोचले ना, हे तपासण्यासाठी मुलाखतीत समारोपाचा टप्पा वैशिष्ट्यपूर्ण असतो.

2. थोडक्यात उत्तरे लिहा.

प्रश्न अ.
मुलाखतीचे प्रमुख हेतू तुमच्या शब्दांत स्पष्ट करा.
उत्तर :
आजचे युग संवादाचे आहे. संवादाची अनेक उद्दिष्टे बघायला मिळतात. मुलाखत हेदेखील असेच विचारविनिमयाचे एक संवादी रूप आहे. विविध क्षेत्रांत आपल्या कार्याचा स्वतंत्र ठसा उमटवणाऱ्या व्यक्तींचा परिचय सर्वांना व्हावा, या हेतूने मुख्यत्वे मुलाखत घेतली जाते. मुलाखतीच्या माध्यमातून अशा व्यक्तींच्या कार्यावर प्रकाश टाकणे हे प्रधान असते. सामान्यांचा असामान्य प्रवास मुलाखतीतून उलगडणे शक्य असते. कितीतरी व्यक्तींचे आयुष्य म्हणजे एक संघर्षपट असतो. हा पट जाणून घेण्याची अनेकांना इच्छा असते.

यासाठी मुलाखत महत्त्वाचा मंच असतो. विचारवंतांची विविध मते, तज्ज्ञांचे विषयज्ञान जाणून घेण्यासाठी विशेषतः मुलाखतीचे आयोजन केले जाते. मुलाखतीतून विशिष्ट व्यक्तीची जडणघडण जाणून घेता येते; यासोबतच काळ, परिसर यांवरही प्रकाश टाकणे शक्य असते. मुलाखतीच्या माध्यमातून कलास्वाद घेता येतो. समाजाचे प्रबोधन करणे, जनजागृती करणे, एखादी घटना सविस्तर समजून घेणे, विविध कलांविषयी जाणून घेणे अशा अनेक हेतुपूर्ततेसाठी मुलाखत घेतली जाऊ शकते.

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प्रश्न आ.
व्यक्तीमधील ‘माणूस’ समजून घेण्यासाठी मुलाखत असते, हे स्पष्ट करा.
उत्तर :
मुलाखतीच्या माध्यमातून मुलाखतदात्याचे अंतरंग रसिकश्रोत्यांसमोर उलगडत असते. मुलाखतीत मुलाखतदाता संघर्षमय जीवनाचा कथापट उत्तरांतून मांडत असतो. विशिष्ट ध्येय गाठत असताना वाटेत आलेल्या खाचखळग्यांचा केलेला सामना, त्या त्या वेळी दाखवलेली जिद्द अशा विविध प्रसंगांचे जणू स्मरणच मुलाखतदाता सर्वांसमक्ष करीत असतो. मुलाखतीत आपले अनुभव सांगत असताना आनंद आणि वेदना यांचे मिश्रण शब्दरूपातून अवतरत असते. मुलाखतदाता आपल्या आयुष्यातील महत्त्वाच्या घटना, व्यक्ती, कार्य यांचा आढावा उत्तरांतून घेत असतो. थोडक्यात, व्यक्तीच्या आयुष्याचा काळपट जाणून घेणे म्हणजे व्यक्तीमधील माणूस समजून घेणे होय. मुलाखतीतून हे शक्य होते.

प्रश्न इ.
मुलाखत म्हणजे पूर्वनियोजित संवाद हे स्पष्ट करा.
उत्तर :
मुलाखत म्हणजे संवाद. हा संवाद पूर्वनियोजित असतो. मुलाखतीतील संवाद हेतुपूर्वक घडवून आणला जातो. मुलाखतकार, मुलाखतदाता आणि मुलाखत ऐकणारे, पाहणारे वा वाचणारे रसिकश्रोते यांच्या सहभागातून मुलाखत आकाराला येत असते. स्वतःच्या क्षेत्रात महत्त्वाचा ठसा उमटवणाऱ्या व्यक्तींचा कार्यप्रवास लोकांपर्यंत पोहोचावा हा मुलाखतीचा हेतू असतो. मुलाखतदात्याचा कार्यसंघर्ष आणि जीवनसंघर्ष उलगडून दाखवण्याचे कार्य मुलाखतीत होत असते. मुलाखतकाराला प्रश्नोत्तरांच्या माध्यमातून व्यक्तिमत्त्वाचे पैलू उलगडून दाखवण्याचे कौशल्यपूर्ण काम करायचे असते.

मुलाखतकार आणि मुलाखतदाता या दोन व्यक्तींना ठरवून नियोजनपूर्वक वैचारिक, भावनिक संवाद साधावा लागतो. मुलाखतीसाठी विषय, व्यक्ती, व्यक्तींमधील संवादासाठी प्रश्नावली याचे पूर्वनियोजन करणे आवश्यक असते. यासोबतच मुलाखतीचे औचित्य, दिवस, वेळ, स्थळ, कालावधी, उपस्थित असणारा रसिक वर्ग यांचाही विचार पूर्वनियोजनात महत्त्वाचा असतो. उत्तम पूर्वनियोजन हे मुलाखतीचे अर्धे यश असते.

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प्रश्न ई.
मुलाखत घेताना घ्यावयाची काळजी लिहा.
उत्तर :
मुलाखतीच्या माध्यमातून व्यक्तीचा जीवनप्रवास जाणून घेता येतो. दोन व्यक्तींच्या संवादाने मुलाखत फुलत असते. मुलाखतकार मुलाखतीत महत्त्वाची भूमिका पार पाडत असतो. मुलाखतीत रसिकांना गुंगवून ठेवण्याचे कौशल्य मुलाखतकाराकडे असणे अपरिहार्य असते. मुलाखत घेताना काही गोष्टींचा अवलंब करणे आवश्यक असते. मुलाखतदात्याला सहज, सोपे प्रश्न विचारणे गरजेचे असते. मुलाखतदात्याला अधिकाधिक बोलते करण्याचा प्रयत्न मुलाखतकाराने करणे अपेक्षित असते. मुलाखतदात्याचा अवमान होईल, उत्तर देताना संभ्रमाची स्थिती निर्माण होईल असे प्रश्न टाळावेत.

मुलाखतीचा हेतू लक्षात घेऊन प्रश्नावली बनवणे केव्हाही उचित ठरते. अपेक्षित उत्तर सूचित होईल असेच प्रश्नांचे स्वरूप असावे. वेळेची मर्यादा लक्षात घेऊन मुलाखत घेताना प्रश्नांची निवडही तितकीच महत्त्वाची असते. प्रश्नांची पुनरावृत्ती टाळावी. प्रश्नांची निवड करताना उपस्थित श्रोतृवर्ग लक्षात घेणे गरजेचे असते. मूळ विषय सोडून असंबद्ध प्रश्न टाळावे. ज्याद्वारे तणाव, संघर्ष निर्माण होईल असे मुद्दे उपस्थित करू नये. मुलाखत प्रवाही होईल अशा पद्धतीने संवाद साधत राहावे. मुलाखतीदरम्यान मुलाखतकाराने अनावश्यक हातवारे, हालचाली टाळाव्यात. मुलाखत नियोजित वेळेत पूर्ण करणे आवश्यक असते.

प्रश्न उ.
उमेदवार ‘आतून’ जाणून घेणे अत्यंत गरजेचे असते, हे सोदाहरण स्पष्ट करा.
उत्तर :
आधुनिक काळात दिवसेंदिवस स्पर्धा वाढत आहे. स्पर्धा जशी तंत्रज्ञानाची आहे, तशीच ती दोन व्यक्तींमध्येसुद्धा आहे. आज नोकरीसाठी तसेच विशिष्ट अभ्यासक्रमाच्या प्रवेशासाठी मुलाखत हा महत्त्वाचा घटक मानला जातो. बदलत्या काळात मुलाखतीचे स्वरूप बदलू लागले आहे. उमेदवाराची पदवी, विषयज्ञान, भाषिक कौशल्ये यासोबतच उमेदवाराचे व्यक्तिमत्त्व आज केंद्रस्थानी आले आहे. उमेदवार बोलतो कसा, पोशाख कसा आहे यापेक्षा स्पर्धेच्या युगात टिकून राहण्यासाठी आवश्यक कौशल्ये उमेदवाराजवळ आहेत का याची चाचपणी केली जाते.

विविध कंपन्यांमध्ये मुलाखतीदरम्यान उमेदवाराच्या व्यक्तिमत्त्वाचे विविध पैलू जाणून घेण्याचा प्रयत्न प्रथमतः केला जातो. कंपनीचे अपेक्षित उद्दिष्ट, कामाचे तास, सहकाऱ्यांशी असणारे मैत्रीपूर्ण संबंध, गटप्रमुख वा गटकार्याची क्षमता, कामाची विभागणी, वेळेचे बंधन, नियोजित बैठका, समूह सदस्यांचे प्रश्न, प्रसंगी करावे लागणारे समुपदेशन इत्यादी अनेक बाबी नजरेसमोर ठेवून उमेदवाराची मुलाखत घेतली जाते. सहकाऱ्यांच्या भावना, विचार, सूचना, समस्या याबद्दल उमेदवाराकडे असलेली स्वीकारार्हता आणि मार्ग काढण्याची तत्परता, विवेकबुद्धी, प्रसंगावधान अशा गोष्टींना मुलाखतीत महत्त्व दिले जाते.

मुलाखतीला आलेला उमेदवार दिसतो कसा, बोलतो कसा यापेक्षा ‘विचार कसा करतो’ याकडे अधिक लक्ष दिले जाते. उमेदवार भावनिक, वैचारिक, मानसिक पातळीवर जाणून घेण्याचा प्रयत्न केला जातो. उमेदवाराच्या ‘बाह्यरंगा’पेक्षा ‘अंतरंग’ जाणून घेणे आवश्यक असते.

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प्रश्न ऊ.
मुलाखत ही व्यक्तीच्या कार्यकर्तृत्वाची ओळख असते, हे स्पष्ट करा.
उत्तर :
सामान्यांत असामान्य कामगिरी करणाऱ्या व्यक्तीचे आयुष्य जाणून घेण्याची इच्छा सर्वांनाच असते. विशिष्ट क्षेत्रात उल्लेखनीय कामगिरी करणाऱ्या व्यक्तींची मुलाखत घेतली जाते. प्रश्नांच्या माध्यमातून अशा व्यक्तिमत्त्वांना बोलते करण्याची जबाबदारी मुलाखतकारावर असते. गृहिणी, विदयार्थ्यांपासून ते डॉक्टर, वकील, सामाजिक कार्यकर्ते, शिक्षक, संपादक, पत्रकार, कवी, लेखक, गिर्यारोहक, समुपदेशक, खेळाडू, तंत्रज्ञ, शेतमजूर, कामगार अशा कोणत्याही क्षेत्रातील व्यक्तीच्या कार्याचा प्रवास मुलाखतीतून जाणून घेता येतो. मुलाखतीत अशा कार्यसिद्ध व्यक्तिमत्त्वांचा जीवनप्रवास त्यांच्याच तोंडून ऐकता येतो.

यशाच्या शिखरावर जाण्यासाठी भोगाव्या लागणाऱ्या यातना, संघर्ष, जिद्द, परिस्थितीशी झुंज, सोबतीचे स्नेहीजन अशा कितीतरी गोष्टींवर मुलाखतीच्या माध्यमातून प्रकाश टाकता येतो. ‘जया अंगी मोठेपण तया यातना कठीण’ ही ओळ काही व्यक्तींच्या बाबतीत तंतोतंत लागू पडते. अशा व्यक्तींचा जीवनप्रवास संघर्षमय असतो. हे जाणून घेण्याची इच्छा जनसामान्यांच्या मनात असते. मुलाखतीतून असा खडतर जीवनप्रवास जाणून घेता येतो. जगावेगळी आव्हाने पेलून स्वतःच्या कार्याने ‘स्व’ सिद्ध केलेल्या व्यक्ती मुलाखतीतून समोर येतात.

3. मुलाखतीची पूर्वतयारी कशी करावी ते खालील मुद्द्यांच्या आधारे लिहा.

प्रश्न अ.
मुलाखतदात्याची वैयक्तिक माहिती
उत्तर :
मुलाखतीत मुलाखतकार आणि मुलाखतदाता यांच्यात संवाद होत असतो. प्रश्नांच्या साहाय्याने मुलाखतदात्याला बोलते करण्याचे कार्य मुलाखतकार करीत असतो. मुलाखतदात्याची वैयक्तिक माहिती मुलाखतकाराला मिळवावी लागते. मुलाखतदात्याचे संपूर्ण नाव, पत्ता, जन्मतारीख, शिक्षण, आवडीनिवडी, कौटुंबिक माहिती, कर्तृत्व, हुद्दा, लेखनकार्य, पुरस्कार, वैचारिक पार्श्वभूमी, वैचारिक भूमिका इत्यादींची सविस्तर माहिती मुलाखतकाराकडे असणे आवश्यक असते. या माहितीमुळे मुलाखतीतील संवाद सहज होऊ शकतो.

प्रश्न आ.
मुलाखतदात्याचे कार्य
उत्तर :
ज्या व्यक्तींनी आपल्या क्षेत्रात अमूल्य ठसा उमटवला आहे अशा व्यक्तींची मुलाखत घेतली जाते. ज्यांच्याजवळ काहीतरी ‘सांगण्यासारखे’ आहे आणि ज्यांच्याकडून ‘ऐकण्यासारखे’ काहीतरी आहे अशा व्यक्तींची मुलाखत ऐकणे लोकांनाही आवडते. मुलाखतदात्याचे कार्य हे मुलाखतीत केंद्रस्थानी असते. मुलाखतीच्या पूर्वतयारीत मुलाखतकाराला मुलाखतदात्याचे कार्यकर्तृत्व पूर्णपणे जाणून घ्यावे लागते. मुलाखतदात्याचे कार्यक्षेत्र, स्वरूप, संघर्ष, कार्यसिद्धीसाठी जिद्द अशा कितीतरी गोष्टींची सखोल माहिती मुलाखतकाराला मिळवावी लागते. संदर्भ लक्षात घेऊन, चिंतन करणे गरजेचे असते. रसिक श्रोत्यांना, प्रेक्षकांना किंवा वाचकांना मुलाखतदात्याचा कार्यप्रवास उलगडून दाखवणे हे मुलाखतीचे प्रमुख कार्य असते. मुलाखतीच्या पूर्वतयारीत ही महत्त्वाची बाब मानली जाते.

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प्रश्न इ.
मुलाखतीच्या अनुषंगाने वाचन
उत्तर :
मुलाखत संवाद कौशल्य आहे. मुलाखतकाराचे संभाषण कौशल्यावर प्रभुत्व असणे आवश्यक असते. मुलाखतदात्याच्या लेखनकृती मुलाखतकाराने वाचणे गरजेचे असते. अशा वाचनातून मुलाखतदात्याची वैचारिक भूमिका स्पष्ट होते. मुलाखतकाराला या वाचनाधारे प्रश्नांची तयारी करता येणे सहज शक्य होते. केवळ मुलाखत विषयाच्या अनुषंगाने वाचन न करता मुलाखतकाराचे वाचन चौफेर असावे. साहित्यिक, सामाजिक घडामोडींचे वाचन मुलाखतकाराने सातत्याने करणे गरजेचे असते. मुलाखतीचा उद्देश लक्षात घेऊन मुलाखतकाराने वाचन करणे अपेक्षित असते. मराठी, हिंदी, इंग्रजी साहित्यातील मैलाचा दगड ठरलेल्या साहित्यकृतींचा परिचय मुलाखतकाराला असणे आवश्यक आहे. मुलाखतीच्या पूर्वतयारीत मुलाखतकारासाठी वाचन हा घटक अदृश्य परंतु महत्त्वाचा आहे.

प्रश्न ई.
प्रश्नांची निर्मिती
उत्तर :
मुलाखतीत प्रश्नांचे स्वरूप फार महत्त्वाचे असते. मुलाखतीची पूर्वतयारी हा एकप्रकारे मुलाखतीचा गृहपाठ असतो. त्यामुळे मुलाखतदात्याची सर्व आवश्यक माहिती मुलाखतकाराला मिळवावी लागते. प्रश्नांच्या साहाय्याने मुलाखतकाराकडून कार्यप्रवास अधिकाधिक जाणून घेता येईल, अशी प्रश्नांची तयारी करणे महत्त्वाचे असते. प्रश्नांची निर्मिती उपलब्ध माहितीच्या आधारे करणे गरजेचे असते. मुलाखतीत विचारायचे प्रश्न पूर्वतयारीत मुलाखतकाराला क्रमवार लिहून काढावे लागतात. प्रश्नांच्या ओघावर मुलाखतीतील संवादाचे प्रवाहीपण अवलंबून असते.

मुलाखतीचे हे प्रवाहीपण लक्षात घेऊन प्रश्नांची निर्मिती करणे आवश्यक असते. प्रश्नांचे स्वरूप सहज आकलन होईल असे असावे. चुकीचे, अप्रस्तुत, भावना दुखावणारे, तणाव निर्माण करणारे, विषयाशी असंबद्ध, प्रभावहीन प्रश्न मुलाखतीत नसतील, याची काळजी पूर्वतयारीत घेणे गरजेचे असते. मुलाखतीत प्रश्नांची संख्या लक्षात घ्यावी लागते. प्रश्नांमध्ये वैविध्य असावे. कधीकधी एका प्रश्नातून दुसऱ्या प्रश्नाचे उत्तर मुलाखतदात्याकडून येऊ शकते. अशा प्रसंगी पर्यायी प्रश्नांची तयारी पूर्वतयारीत ठेवणे महत्त्वाचे असते. पूर्वतयारीत तयार केलेल्या प्रश्नावलीतील प्रश्नांची निवड मुलाखतीत महत्त्वाची असते.

4. खालील व्यक्तींची मुलाखत घेण्यासाठी प्रश्नावली तयार करा.

प्रश्न अ.
भाजीवाला
उत्तर :
प्रश्नावली :

  1. भाजीविक्रीचा व्यवसाय किती वर्षांपासून करता?
  2. नोकरीऐवजी भाजीविक्रीचा व्यवसाय करावा, असे तुम्हांला का वाटले?
  3. तुम्ही कोणकोणत्या प्रकारच्या भाज्यांची विक्री करता?
  4. दिवसाचे किती तास या व्यवसायात तुम्ही खर्च करता?
  5. भाजीविक्रीच्या व्यवसायात कुटुंबातील सदस्यांचे कशा प्रकारे सहकार्य मिळते?
  6. लोकांची वर्तणूक कशी असते?
  7. नैसर्गिक आपत्तीच्या प्रसंगी (अतिवृष्टी, दुष्काळ, रोगराई इत्यादी) भाजीविक्रीवर काय परिणाम होतो?
  8. भाजीविक्रीच्या व्यवसायातून दिवसभरात साधारण किती नफा मिळतो?
  9. तुमच्या आयुष्यातील आनंदाचे क्षण कोणते?
  10. भाजीविक्रीदरम्यान स्मरणात राहिलेला अनुभव कोणता?

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प्रश्न आ.
पोस्टमन
उत्तर :
प्रश्नावली :

  1. स्थिर जागेऐवजी सतत फिरत राहाव्या लागणाऱ्या नोकरीचा स्वीकार का केलात?
  2. लोकांच्या भावना, सुख-दुःखे बंदिस्त पाकिटातून घेऊन जाताना काय वाटते?
  3. लोक तुमची आतुरतेने वाट बघत असतात अशा वेळी तुमची काय प्रतिक्रिया असते?
  4. कामाचे स्वरूप म्हणून सतत फिरावे लागते तेव्हा शारीरिक, मानसिक थकवा जाणवतो का?
  5. आधुनिक काळात तंत्रज्ञानाने पत्राचे स्वरूप डिजिटल केले आहे, याबद्दल तुम्हांला काय वाटते?
  6. पत्र ही संकल्पना बदलत्या काळात कालबाह्य होऊ लागली आहे, तुम्हांला याचे वाईट वाटते का?
  7. तुम्ही स्वतः ई-मेल, एसएमएस यांसारख्या डिजिटल संवादाच्या साधनांचा वापर करता का?
  8. डिजिटल माध्यमाने तुमच्या कामाचा भार कमी केला असे तुम्हांला वाटते का?
  9. तुम्हांला कामाचे समाधान वाटते का?
  10. या व्यवसायातील तुमचे कटू व सुखावणारे अनुभव कोणते आहेत?

प्रश्न इ.
परिचारिका
उत्तर :
प्रश्नावली :

  1. व्यवसायाचे विविध पर्याय असताना परिचारिकेचा व्यवसाय का निवडला?
  2. परिचारिकेचा व्यवसाय केवळ नोकरी म्हणून स्वीकारला की सेवावृत्ती म्हणून?
  3. या व्यवसायात कार्यरत आहात त्याला किती वर्ष झाली? कामाप्रमाणे मोबदला मिळतो का?
  4. कामाच्या ठिकाणच्या सोयी कशा आहेत?
  5. काम केल्याचे समाधान मिळते का?
  6. लोकांचे सहकार्य मिळते का?
  7. लोक सन्मानाने वागवतात का?
  8. रुग्ण व नातेवाईक यांची वर्तणूक कशी असते?
  9. तुमच्या आयुष्यातील एखादा कटू तसेच आनंददायी प्रसंग कोणता?
  10. या व्यवसायात असलेल्यांना किंवा नव्याने येऊ इच्छिणाऱ्यांना काय सल्ला देऊ इच्छिता?

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मुलाखत प्रस्तावना

माणूस हा संवादप्रिय आहे. कुठेही बाहेर असताना अथवा प्रवास करीत असताना आपण एकमेकांशी संवाद साधत असतो. विचारपूस करीतं असतो. नावापासून ते गावापर्यंत, आवडीनिवडीपासून ते व्यवसायापर्यंत कितीतरी विषयांवर आपण बोलत असतो. अशा संभाषणात कधी आपण सहप्रवाशाला प्रश्न विचारून माहिती जाणून घेत असतो, तर कधी आपण स्वतः माहिती देत असतो. म्हणजेच, दैनंदिन जीवनात नकळतपणे का होईना आपण संवादाच्या माध्यमातून मुलाखत या कौशल्याचा अवलंब करीत असतो. मुलाखत या संज्ञेचा हा पारंपरिक अर्थ असला, तरी बदलत्या काळात मुलाखत ही संज्ञा व्यापक अर्थ सांगणारी आहे.

आधुनिक काळात मानवी जीवनाची अनेक क्षेत्रे विकसित झाली आहेत. काही नव्याने निर्माण झाली आहेत. मानवी जीवन अधिक गुंतागुंतीचे बनू लागले आहे. जीवनाचे प्रत्येक क्षेत्र विशेषज्ञाचे बनून गेले आहे. प्रत्येक क्षेत्रात कर्तबगार माणसे होऊ लागली. आजच्या काळात केवळ स्वतःच्या क्षेत्रापुरते मर्यादित राहून विचार करता येत नाही. स्वतःचे क्षेत्र धुंडाळत असताना अन्य क्षेत्रांमध्ये संचार करणेही अपरिहार्य बनले आहे. त्यासाठी सर्वप्रथम त्या क्षेत्राच्या तज्ज्ञांकडून विविक्षित क्षेत्र जाणून घेणे, परिचित करून घेणे अपरिहार्य ठरते. या क्षेत्र माहितीसाठी संबंधित तज्ज्ञ व्यक्तींशी संवाद साधणे म्हणजेच मुलाखत होय.

मुलाखतीचे स्वरूप :

  • मुलाखत म्हणजे संवाद. मात्र हा संवाद पूर्वनियोजित असतो. या संवादात संवाद साधणारी व्यक्ती, संवादाला उत्तर देणारी व्यक्ती आणि संवाद ऐकणारे, पाहणारे वा वाचणारे लोक अशा तीन पातळ्यांवर ‘मुलाखत’ हे भाषिक कौशल्य साकार होत असते.
  • एखादी व्यक्ती, संस्था यांच्या महत्त्वपूर्ण कामाचा आढावा क्रमबद्ध प्रश्नोत्तरांच्या माध्यमातून घेतला जातो. थोडक्यात, दोन व्यक्तींमध्ये नियोजनपूर्वक, हेतुपुरस्सर केलेला भावनिक, वैचारिक संवाद म्हणजे मुलाखत होय.
  • मुलाखत अनेकांगी असू शकते. एकावेळी एक व्यक्ती एका व्यक्तीची वा अनेक व्यक्तींची मुलाखत घेऊ शकते.
  • मुलाखतीसाठी व्यक्ती, विषय, दिवस, वेळ, ठिकाण, कालावधी, मुलाखतीचे उद्दिष्ट, मुलाखत ऐकणारा, पाहणारा रसिक वर्ग इत्यादी गोष्टी पूर्वनियोजनात विचारात घेतल्या जातात. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 मुलाखत
  • लिखित, मौखिक, ध्वनिमुद्रित, प्रकट अशा विविध स्वरूपात मुलाखत घेतली जाऊ शकते.
  • सांगण्यासारखे आणि ऐकण्यासारखे ज्या व्यक्तींजवळ काहीतरी आहे, अशा व्यक्तींना बोलते करण्याचे काम मुलाखतीत असते. लोकप्रतिनिधी, लेखक, कवी, सामाजिक कार्यकर्ते, खेळाडू, शास्त्रज्ञ, गायक, वकील, उदयोजक, शिक्षक, डॉक्टर, संपादक, गिर्यारोहक, कामगार, शेतकरी, सैनिक, पुरस्कार विजेते, अगदी गृहिणी, विदयार्थी असे कोणीही आपल्या क्षेत्रात महत्त्वाची कामगिरी बजावणारे असामान्य लोक मुलाखतीच्या केंद्रभागी येऊ शकतात.

मुलाखत हा शब्द मुलाकात या अरबी शब्दावरून मराठीत आलेला शब्द आहे.

भेट, गाठ, बोलचाली, विचारपूस हे ‘मुलाखत’ या शब्दाचे अर्थ आहेत.

मुलाखतीचे तीन प्रमुख घटक पुढीलप्रमाणे :

  • मुलाखतदाता (Interviewer) असामान्य कर्तृत्वाने ठसा उमटवणारी, प्रश्नांना उत्तरे देणारी म्हणजेच मुलाखत देणारी व्यक्ती
  • मुलाखतकार (Interviewee) प्रश्न विचारणारी म्हणजेच मुलाखत घेणारी व्यक्ती
  • मुलाखतीचे वाचक, श्रोते व प्रेक्षक (Audience)

मुलाखत प्रक्रियेत मुलाखतदाता हे शिखर वाचक, प्रेक्षक पाया तर मुलाखतकार हा या प्रक्रियेचा सुवर्णमध्य मानला जातो.

मुलाखतीचा हेतू :

  • सामान्यांचा असामान्यपर्यंतचा प्रवास जाणून घेणे, हे मुलाखतीचे मुख्य कार्य असते.
  • मुलाखतदात्याच्या व्यक्तिमत्त्वाचे निरनिराळे पैलू मुलाखतीच्या माध्यमातून जाणून घेता येतात.
  • एखादी व्यक्ती अनेक व्यक्तींसाठी किंवा समूहासाठी आदर्श असते. अशा व्यक्तींचा कार्यप्रवास उलगडण्यासाठी मुलाखत साहाय्यभूत ठरते.
  • ‘जया अंगी मोठेपण तया यातना कठीण’ ही ओळ काही व्यक्तींच्या बाबतीत तंतोतंत लागू पडते. अशा व्यक्तींचा जीवनप्रवास संघर्षमय असतो.
  • तो जाणून घेण्याची इच्छा जनसामान्यांच्या मनात असते. त्यांचा असा खडतर जीवनप्रवास मुलाखतीतून जाणून घेता येतो. मुलाखतीच्या माध्यमातून जनसामान्यांची ही जिज्ञासा पूर्ण होते.
  • एखादया घटनेवरील विचारवंतांची मते, अनुभव, दिशा जाणून घेण्यासाठी तज्ज्ञ व्यक्तींशी मुलाखतीच्या माध्यमातून केलेला संवाद , निश्चितच समाज प्रबोधनासाठी, जनजागृतीसाठी उपयुक्त ठरू शकतो.
  • कोणताही विषय, घटना, त्याची सांगोपांग उकल करून समजून घेण्यासाठी मुलाखतीचे आयोजन केले जाते.

मुलाखतीचे प्रकार :

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 मुलाखत 1

मुलाखतीची पूर्वतयारी :

  • मुलाखत प्रभावी होण्यासाठी पूर्वतयारी आवश्यक असते. अभ्यासपूर्ण पूर्वतयारी हा यशस्वी मुलाखतीचा पाया असतो.
  • ज्यांची मुलाखत घ्यायची त्यांची संपूर्ण माहिती मुलाखतकाराकडे असावी लागते.
  • मुलाखतदात्याचे नाव, वय, जन्मदिनांक, जन्मस्थळ, शिक्षण, कौटुंबिक माहिती इत्यादी प्राथमिक माहिती मुलाखतकाराकडे असणे आवश्यक आहे. तसेच मुलाखतदात्याचा हुद्दा, कर्तृत्व, मानसन्मान, पुरस्कार, लेखनकार्य, वैचारिक पार्श्वभूमी इत्यादींची विस्तृत माहितीही मुलाखतकाराकडे असणे महत्त्वाचे असते.
  • मुलाखतीचा विषय, उद्दिष्ट, मुलाखत ऐकणारा, बघणारा, वाचणारा वर्ग आणि मुलाखतीचा कालावधी यांचाही अभ्यास मुलाखत घेणाऱ्या व्यक्तीला करावा लागतो. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 मुलाखत
  • मुलाखतीतील सर्वांत महत्त्वाची गोष्ट म्हणजे मुलाखतीच्या विषयाच्या अनुषंगाने बनवलेली प्रश्नावली. मुलाखतीचा उद्देश लक्षात घेऊन मुलाखतकाराला अपेक्षित आणि समर्पक प्रश्नावली बनवावी लागते.
  • मुलाखतीचा अवधी लक्षात घेऊन प्रश्नांची निवड व क्रम यांचेही नियोजन पूर्वतयारीत गरजेचे असते.
  • मुलाखतकाराचे वाचन चौफेर असावे. केवळ मुलाखतीच्या विषयानुरूप केलेले वाचन पुरेसे नसते, तर व्यापक वाचनाचा व्यासंग असला पाहिजे.
  • मुलाखतीचे माध्यम कोणते आहे याचाही विचार मुलाखतकाराने करणे अगत्याचे ठरते. उदा., मुलाखत वर्तमानपत्रासाठी, नियतकालिकासाठी
  • म्हणजेच लिखित स्वरूपाची आहे की आकाशवाणी, दूरदर्शनसारख्या दृक-श्राव्य माध्यमांसाठी याची माहिती घेणे आवश्यक असते.
  • लिखित मुलाखतीसाठी मुलाखतकाराला लेखनकौशल्य अवगत असणे आवश्यक आहे. आकाशवाणी, दूरदर्शन आणि प्रकट मुलाखतींसाठी मुलाखतकाराला भाषण-संभाषण कौशल्याचा अभ्यास असावा लागतो.
  • मुलाखतीसाठी असलेली बैठक व्यवस्था, ध्वनिक्षेपण व्यवस्था, संदर्भ ग्रंथ, चित्रे, वादये इत्यादी गोष्टीही मुलाखतीच्या पूर्वनियोजनात तपासून घेणे योग्य असते.
  • मुलाखतदाता आणि मुलाखतकार यांची मुलाखतीपूर्वी भेट झाल्यास मुलाखत अतिशय मनमोकळी, सुकर व सुलभ होण्यास मदत होते.

मुलाखतीची विविध माध्यमे :

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 मुलाखत 2

प्रत्यक्ष मुलाखत घेताना :

अलीकडच्या काळात ‘मुलाखत’ हे क्षेत्र वलयांकित क्षेत्र मानले जाते. प्रथितयश व्यक्तीचा कार्यप्रवास व्याख्यान रूपाऐवजी मुलाखतीच्या माध्यमातून संवादरूपाने ऐकायला अधिक पसंती मिळू लागली आहे. आयोजकही बऱ्याचदा अशाच प्रयत्नात असतात. मुलाखतकाराला योग्य मानधन, प्रतिष्ठा आणि प्रसिद्धी मिळते. त्यामुळे ‘मुलाखत घेणे’ या गोष्टीला मोठ्या प्रमाणात व्यावसायिक महत्त्व प्राप्त होत आहे. मुलाखतकाराला मुलाखतीदरम्यान मुलाखतदात्याच्या कर्तृत्वाचा परिचय करून देण्यासोबतच लोकांच्या मनातील प्रश्नांची, कुतूहलाची पूर्तता करणे गरजेचे असते. अशा कौशल्यपूर्ण कामाचे तीन टप्पे लक्षात घेणे आवश्यक आहे.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 मुलाखत

प्रत्यक्ष मुलाखतीतील तीन टप्पे पुढीलप्रमाणे :
प्रत्यक्ष मुलाखतMaharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 मुलाखत 3
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 मुलाखत 4

मुलाखतीसाठी महत्त्वाचे :

  • मुलाखतकाराने मुलाखतीसाठी प्रश्नावली तयार करावी. प्रश्नावलीचे स्वरूप लिखित असावे.
  • मुलाखतकाराने मर्यादांची जाणीव ठेवून प्रश्न विचारावेत.
  • प्रश्नांबाबत मुलाखतदात्याचे स्वातंत्र्य अबाधित राहील याची काळजी मुलाखतकाराने घ्यावी.
  • मुलाखतीतील प्रश्नांची पुनरावृत्ती टाळावी.
  • मुलाखतीचे सादरीकरण ओघवते, श्रवणीय, उत्स्फूर्त असावे.
  • मुलाखतीदरम्यान सकारात्मक वातावरण निर्माण करावे.
  • ‘हो’, ‘नाही’, ‘माहीत नाही’ अशी उत्तरे येणारे प्रश्न विचारू नयेत.
  • प्रत्येक मुलाखतदाता भरभरून बोलेलच असे नाही. अशा वेळी मुलाखतकाराला उत्स्फूर्तपणे काही किस्से, आठवणी सांगून विषय रंगवता यावा, यासाठी संधी निर्माण करणे.
  • कधी कधी मुलाखतकार प्रश्नाच्या अनुषंगाने बराच वेळ अनुभवकथन करीत असतात. अशा वेळी मुलाखतदात्याला योग्य वेळी नव्या मुद्द्यावर वळवणे हे कौशल्याचे काम मुलाखतकाराने करणे अपेक्षित असते. प्रसंगावधान मुलाखतकाराकडे असावे.
  • संयम, विवेक आणि नैतिकतेचे पालन यांना खुसखुशीतपणाची जोड देऊन मुलाखतीत रंग भरावेत.

मुलाखत घेताना लक्षात ठेवायच्या बाबी :

  • प्रश्नावली मुलाखतीच्या विषयाला अनुसरून असावी.
  • अप्रस्तुत, विषयबाह्य प्रश्न टाळावेत.
  • मुलाखतदात्याचा अवमान होईल असे प्रश्न विचारू नयेत.
  • ताणतणाव, संघर्ष निर्माण होईल असे प्रश्न मुलाखतीत विचारू नयेत.
  • भावना दुखावतील असे प्रश्न मुलाखतीत नसावेत.
  • मुलाखत घेताना पूर्वतयारी आणि पूर्वाभ्यास आवश्यक आहे.
  • मुलाखतकाराचा आत्मविश्वास मुलाखतीत महत्त्वाची भूमिका बजावत असतो.
  • मुलाखतीदरम्यान असणारे मुलाखतकाराचे निवेदन प्रभावी आणि प्रवाही असावे.
  • मुलाखतीदरम्यान अनावश्यक हालचाल, हातवारे टाळावेत.
  • मुलाखतदात्यापेक्षा मुलाखतकाराने अनावश्यक बोलणे टाळावे.
  • मुलाखत नियोजित वेळेत पूर्ण करावी.
  • मुलाखतीदरम्यान रसिकांचा प्रतिसाद लक्षात घेऊन मुलाखतीची दिशा मुलाखतकाराने ठरवणे आवश्यक असते.
  • प्रश्नांतून प्रश्न निर्माण करीत जास्तीतजास्त मुद्द्यांना स्पर्श करावा.

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नोकरी, प्रवेशासाठीची मुलाखत :

  • आज स्पर्धेच्या युगात नोकरीसाठी तसेच अभ्यासक्रमाच्या प्रवेशासाठी मुलाखत हा घटक अनिवार्य मानला जातो.
  • उमेदवाराची बुद्धिमत्ता, गुणवत्ता, ज्ञानपातळी, कौशल्ये, कल यांचे मापन या मुलाखतीत केले जाते.
  • उमेदवाराच्या व्यक्तिमत्त्व मूल्यमापनावर अशा मुलाखतीत अधिक भर दिला जातो.
  • नोकरीसाठी मुलाखत घेताना उमेदवाराचे विषयज्ञान, पदवी, सामान्यज्ञान, आकलन क्षमता, तांत्रिक हशारी, भाषेवरील प्रभूत्व हे आजपर्यंत प्राधान्याने विचारात घेतले जात असे. बदलत्या काळात याचे स्वरूप बदलू लागले आहे.
  • उमेदवार बोलतो कसा, पोशाख कसा आहे यापेक्षा स्पर्धेच्या युगात टिकून राहण्यासाठी आवश्यक कौशल्ये उमेदवाराजवळ आहेत का याची चाचपणी केली जाते.
  • आज विविध क्षेत्रातील कंपन्यांमध्ये अपेक्षित उद्दिष्ट साध्य करणे, गटप्रमुख म्हणून गटकार्य करून घेणे, कमी वेळेत कामांची विभागणी करून पूर्तता करणे, अडचणींना तोंड देणे, कामाचे श्रेय वाटून घेणे, नियोजित वेळेत गटबैठकांचे आयोजन करून कामाचा आढावा घेणे, गटसदस्यांच्या समस्यांचे निवारण करून मार्गदर्शन करणे, प्रसंगी समुपदेशन करणे अशा प्रकारच्या कामांचे स्वरूप नजरेसमोर ठेवून उमेदवाराची मुलाखत घेतली जाते.
  • सहकाऱ्यांच्या भावना, विचार, सूचना, समस्या यांबद्दल उमेदवाराकडे असलेली स्वीकारार्हता आणि मार्ग काढण्याची तत्परता, विवेकबुद्धी, प्रसंगावधान अशा गोष्टींना मुलाखतीत महत्त्व दिले जाते.
  • माहिती आणि ज्ञान यांतील भेद उमेदवार जाणू शकतो का, याचे मूल्यमापन आज मुलाखतीत सर्वप्रथम केले जाते. त्यामुळे केवळ पदवी हा निकष आज मागे पडला असून, यासोबत जीवनकौशल्ये मुलाखतीत तपासली जातात.
  • मुलाखतीत पाल्हाळ, थापा, भपकेबाजपणा टाळावा.
  • उमेदवाराचे ‘बाह्यरंग’ कसे आहेत, यापेक्षा ‘अंतरंग’ कितपत विकसित झाले आहेत, हे जाणून घेणे अशा मुलाखतीचे महत्त्वपूर्ण वैशिष्ट्य झाले आहे.

नोंद : मुलाखत समजून घेण्यासाठी पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र.९२ व ९३ वर दिलेला मुलाखत नमुना अभ्यासा. तसेच अधिक अभ्यासासाठी पुढे दिलेला मुलाखत नमुनाही अभ्यासा.

मुलाखत नमुना

कोरोना या भीषण आजारात रुग्णालयात काम करणाऱ्या डॉक्टरांची मुलाखत घ्या.
मुलाखतकार : नमस्कार डॉक्टर साहेब.
मुलाखतदाता : नमस्कार.

मुलाखतकार : कोरोना या जागतिक पातळीवरील भीषण आजारात तुम्ही अहोरात्र लोकांची सेवा केली, याबद्दल सर्वप्रथम सर्वांच्या वतीने, डॉक्टर, तुम्हांला खूप खूप धन्यवाद!
मुलाखतदाता : धन्यवाद.

मुलाखतकार : कोरोना हा आजार ओळखायचा कसा?
मुलाखतदाता : कोरोना या आजाराची लक्षणे साधारण सर्दी खोकल्याची असल्याने आजाराचे गांभीर्य प्रथमदर्शनी लक्षात येत नाही. परंतु दवाखान्यात चाचणी केल्यावर या आजाराचे निदान करता येते. रोगप्रतिकारकशक्ती आणि औषधे यांच्या साहाय्याने रुग्ण बरा होऊ शकतो.

मुलाखतकार : कोरोना या आजारादरम्यान लोकांनी कोणती सतर्कता बाळगली पाहिजे, असे आपणास वाटते?
मुलाखतदाता : कोरोना हा संसर्गजन्य आजार आहे. शिंकणे, खोकणे याद्वारे कोरोनाबाधित रुग्णाच्या नाकातून-तोंडातून बाहेर पडणाऱ्या शितोंड्यांमार्फत हा आजार पसरतो. त्यामुळे खोकताना, शिंकताना रुमालाचा वापर केला पाहिजे. तसेच कुठल्याही वस्तूला स्पर्श केल्यास हात स्वच्छ धुणे महत्त्वाचे आहे. बाधित रुग्णांनी लोकांशी संपर्क टाळणे हे अत्यंत गरजेचे आहे.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 4.1 मुलाखत

मुलाखतकार : कोरोना या आजारात उपचार करताना तुम्हांला ठळकपणे कोणत्या बाबी जाणवल्या?
मुलाखतदाता : या आजाराचे गांभीर्य सुरुवातीला लोकांमध्ये दिसले नाही; परंतु जसजशी बाधितांची संख्या वाढू लागली तसतसे लोक सतर्क होऊ लागले. दवाखान्यात येणारे कोरोनाबाधित रुग्ण डॉक्टरांच्या आणि नर्सच्या उपचारांना योग्य प्रतिसाद देत होते. त्यामुळे रुग्णाची प्रकृती सुधारण्यास निश्चितच मदत झाली.

मुलाखतकार : मानवी जीवनावर ओढवलेल्या या भीषण आरोग्य समस्येत दवाखान्यात येणाऱ्या रुग्णांचे मनोधैर्य वाढवण्यासाठी काय करता येऊ शकते?
मुलाखतदाता : फार चांगला प्रश्न आहे. दवाखान्यात येणाऱ्या लोकांना औषधे, योग्य आहार दिला पाहिजे. तसेच, मानसिक दृष्टीने सबळ करणे फार आवश्यक असते. आजारात रुग्ण शारीरिकदृष्ट्या खचलेला असतो. अशा वेळी मानसिक आधार देऊन रुग्णांना आजाराशी लढण्याचे बळ नक्कीच देता येते.

मुलाखतकार : दवाखान्यात दिवसरात्र मेहनत करीत असताना स्वतःच्या आरोग्याकडे दुर्लक्ष झाले का?
मुलाखतदाता : दवाखान्यात मेहनत करीत होतो; परंतु थकवा कधी जाणवला नाही. याचे कारण असे की, लोकांना आम्हां डॉक्टरांची नितांत आवश्यकता होती. रुग्ण फार आशेने डॉक्टरांकडे येत असतात. आमच्या व्यवसायात सेवावृत्ती फार महत्त्वाची आहे. स्वत:च्या आरोग्याकडे दुर्लक्ष करून चालणार नव्हते. अशा कठीण प्रसंगी जमेल तसे स्वतःची काळजी घेत होतो.

मुलाखतकार : या व्यवसायात येऊ इच्छिणाऱ्या नव्या पिढीला काय मार्गदर्शन कराल?
मुलाखतदाता : आरोग्यक्षेत्र हे फार आव्हानात्मक क्षेत्र आहे. रोज नवनवीन संकटे समोर असतात. परंतु लोक अंतिमतः विश्वास डॉक्टरांवर ठेवतात. या एका विश्वासाने संकटांना सामोरे जाण्याची ताकद मिळते. उपचार करीत असताना आम्ही प्राण वाचवत असतो, यापेक्षा मोठे मानवतेचे कार्य कुठले असेल! सेवाभावीवृत्ती आणि सकारात्मक विचार घेऊन नव्या पिढीने या क्षेत्रात पदार्पण करावे.

मुलाखतकार : मुलाखतीच्या समारोपात आपल्याप्रती कृतज्ञता व्यक्त करतो. नमस्कार.
मुलाखतदाता : नमस्कार.

12 वी मराठी पुस्तक युवकभारती भाग-४ उपयोजित मराठी

Gadhi Class 12 Marathi Bhag 3.2 Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 12th Digest Bhag 3.2 गढी Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

12th Marathi Bhag 3.2 Exercise Question Answer Maharashtra Board

गढी 12 वी मराठी स्वाध्याय प्रश्नांची उत्तरे

12th Marathi Guide Chapter 3.2 गढी Textbook Questions and Answers

कृती 

1. (अ) चौकटी पूर्ण करा.

प्रश्न 1.
गावाचं भरभरून कौतुक पाहणारी
उत्तर :
गावाचे भरभरून कौतुक पाहणारी : वाननदी

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी

प्रश्न 2.
लहानुलं गावाच्या भोवताल झालर असलेला पर्वत
उत्तर :
लहानुलं गावाच्या भोवताल झालर असलेला पर्वत : सातपुडा पर्वत

प्रश्न 3.
बापू गुरुजींना शाळेत पाठवण्याचा आग्रह करणारे
उत्तर :
बापू गुरुजींना शाळेत पाठवण्याचा आग्रह करणारे : पाटील

प्रश्न 4.
गुरुजींच्या समाजकार्याविरुद्ध फळी तयार करणारे
उत्तर :
गुरुजींच्या समाजकार्याविरुद्ध फळी तयार करणारे : उचापती माणसे

(आ) खालील व्यक्तींतील नातेसंबंध स्पष्ट करा.

(a) बापू गुरुजी आणि परबतराव
(b) बापू गुरुजी आणि संपती
(c) लक्ष्मी आणि बापू गुरुजी
(d) बापू गुरुजी आणि पाटील
उत्तर :
(a) बापू गुरुजी आणि परबतराव – बापू गुरुजी हे परबतरावांचे सुपुत्र.
(b) बापू गुरुजी आणि संपती – संपती हा बापू गुरुजींचा मानलेला मुलगा.
(c) लक्ष्मी आणि बापू गुरुजी – लक्ष्मी ही बापू गुरुजींची पत्नी.
(d) बापू गुरुजी आणि पाटील – पाटील हे बापू गुरुजींना मुलाप्रमाणे मानणारे.

2. कृती करा.

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 19
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 9

प्रश्न 2.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 20
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 10

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी

3. (अ) खालील शब्दसमूहांचा तुम्हाला समजलेला अर्थ लिहा.

(a) दान्याचा पूर.
(b) मानसानं पयले पानी पावावं आन् मंग पोवावं.
(c) पाखरानं पयले पख पारखावं आन् मंग उळावं.
(d) मले पा आन् फुलं वहा.
उत्तर :
(a) दान्याचा पूर : खूप धान्य पिकत असे.
(b) माणसानं पयले पानी पावावं आन् मंग पोवावं : परिस्थिती समजून घ्यावी, आपला आवाका लक्षात घ्यावा आणि कामाला हात घालावा.
(c) पाखरानं पयले पख पारखावं आन् मंग उळावं : स्वत:ची कुवत पाहून कार्य करायला पुढे व्हावे.
(d) मले पा आन् फुलं वहा : फक्त मलाच चांगले म्हणा.

(आ) वैदर्भी बोलीत वापरलेल्या खालील वाक्प्रचारांचे अर्थ लक्षात घ्या. यासाठी तुमच्या बोलीत किंवा मराठीत वापरले जाणारे वाक्प्रचार लिहा.

(a) मन तिळतिळ दुखने
(b) ठान मांडून उबी रायने
उत्तर :
(a) मन तिळतिळ दुखने : (i) मन तिळतिळ तुटणे., (ii) दुःखाने व्याकूळ होणे.
(b) ठान मांडून उबी रायने : (i) ठाण मांडून बसणे, पाय रोवून उभे राहणे., (ii) कृतीत ठामपणा असणे.

(इ) खालील म्हणींचा अर्थ तुमच्या शब्दांत लिहा.

प्रश्न 1.
हळ्याच्या सरपानं मानसं मरत नसतात.
उत्तर :
हळ्याच्या सरपानं मानसं मरत नसतात.
अर्थ : क्षुद्र व्यक्ती चांगल्या व्यक्तींचे काहीही वाईट करू शकत नाही.

प्रश्न 2.
गायीचे शिंगं गायीले भारी नसतात.
उत्तर :
गायीची शिंगं गायीला भारी नसतात.
अर्थ : आपल्या माणसासाठी खस्ता खाताना कोणालाही त्रास होत नाही.

प्रश्न 3.
चाल व्हयरे पोरा आन् वयरे ढोरा.
उत्तर :
चाल व्हय रे पोरा आन् वय रे ढोरा.
अर्थ : पोरा, चल, पुढे हो आणि ढोरांना ओढून घेऊन जा.

4. कारणे लिहा.

प्रश्न अ.
गावातला जो तो आनंदात होता, कारण…
उत्तर :
गावतला जो तो आनंदात होता; कारण त्या दिवशी गावाला ‘साजरे गाव’ हे पारितोषिक मिळाले होते.

प्रश्न आ.
शिक्षण आटोपल्यावर बापूंना गावाची ओढ लागली, कारण…
उत्तर :
शिक्षण आटोपल्यावर बापूना गावाची ओढ लागली; कारण त्यांना गावात शिक्षणाचा प्रसार करून गाव सुधारायचे होते.

प्रश्न इ.
गाववाले गढी खचण्याची वाट पाहत होते, कारण…
उत्तर :
गाववाले गढी खचण्याची वाट पाहत होते; कारण गढी खचल्यावर गाववाल्यांना पांढरी माती मिळणार होती.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी

5. थोडक्यात उत्तरे लिहा.

प्रश्न अ.
‘पाखरानं पयले पख पारखावं आन् मंग उळावं’, असे बापू गुरुजी का म्हणत असतील ते स्पष्ट करा.
उत्तर :
आकाशात भरारी मारायची असेल, तर पंख मजबूत असावे लागतात. पंख मजबूत नसतील, तर अर्ध्यावरच पक्षी खाली पडेल, त्या दमलेल्या अवस्थेत त्याला पळताही येणार नाही. उडताही येणार नाही. मग कोणीही त्याला मारतील, खातील. म्हणजेच त्याला स्वत:चे रक्षण करता येणार नाही. स्वत:चे अन्न आणण्यासाठी दूरपर्यंत जाता येणार नाही. हा एक दाखला झाला. हाच सर्वत्र लागू पडतो.

आपण जीवन जगत असताना अनेक गोष्टी करू पाहतो. अशा वेळी आपण कोणती कृती करायची ठरवली आहे; त्या कृतीसाठी कोणते गुण, कोणती कौशल्ये आवश्यक आहेत, ते प्रथम समजून घेतले पाहिजेच. ते गुण, ती कौशल्ये आपल्याजवळ आहेत का, ते तपासून पाहिले पाहिजे. ते गुण कौशल्ये नसतील, तर आपण यशस्वी होणार नाही आणि आपल्याला नैराश्य येण्याचा धोका असतो. म्हणून गुरुजींनी दिलेला दाखला नीट समजून घेतला पाहिजे.

प्रश्न आ.
बोडींगमधला ‘संपती’ नावाचा मुलगा गेल्यानंतर बापू गुरुजींच्या भावना तुमच्या शब्दांत लिहा.
उत्तर :
बोर्डिंगमधल्या संपतीला गुरुजींनी आपला मुलगाच मानले होते. त्याला वडील नव्हते. त्याचे वडील तो लहान असतानाच हे जग सोडून गेले होते. गुरुजींनी त्याला आईबापाची माया दिली होती. पण एक प्रसंग आभाळ कोसळल्यासारखा आला. तालुक्याला शिक्षण समितीची बैठक होती. गुरुजींना बैठकीसाठी जाणे भागच होते. गुरुजी तालुक्याला गेले आणि इकडे संपती पटकीच्या रोगाने त्याच रात्री मरण पावला. या घटनेने गुरुजी व्याकुळले, विव्हळले. याला आपण मुलगा मानला; पण आपण त्याचे रक्षण करू शकलो नाही. गावात दवाखाना असता, तर तो वाचला असता. ते धाय मोकलून रडले. गावात दवाखाना नाही याला जणू आपणच जबाबदार, असे त्यांना वाटू लागले. म्हणून गावातली एक एक उणीव दूर करण्याचा त्यांनी निश्चय केला.

प्रश्न इ.
गुरुजींचा मुलगा वारल्यानंतर बोर्डिंगातल्या मुलांच्या झालेल्या अवस्थेचे वर्णन करा.
उत्तर :
गुरुजी शाळेमध्ये पूर्ण गुंतून पडले होते. त्यांचे त्यांच्या घराकडे, पत्नीकडे, मुलाकडे अजिबात लक्ष नव्हते. एकदा त्यांचा मुलगा खूप आजारी पडला. तापाने फणफणला. पत्नी येऊन रागावून गेली, तेव्हा ते मुलाला घेऊन अकोल्याला डॉक्टरकडे गेले. आपल्या कनवाळू गुरुजींवर फार मोठे संकट आल्याचे मुलांना जाणवले. हे संकट दूर झाले नाही, तर गुरुजी पूर्णपणे कोलमडून पडतील, या भीतीने संपूर्ण बोर्डिंग भकास झाले होते. त्यातले चैतन्यच नष्ट झाले होते. बोर्डिंगातल्या मुलांची जेवणावरची वासना उडाली. कोणीही जेवले नाहीत. सर्वजण निपचीत पडून राहिले होते. तिकडे अकोल्याला डॉक्टरांच्या उपचारांचा काही उपयोग झाला नाही. गुरुजींच्या मुलाने शेवटचा श्वास घेतला. गुरुजी पुरते हादरून गेले. मुले तर त्यांच्यापेक्षाही भेदरून गेले. एकमेकांच्या गळ्यात पडून रडले, गढीसारखे खंबीर गुरुजी सर्व बाजूंनी खचत चाललेले मुलांना पाहवत नव्हते. मुले हादरून गेली होती. अगतिकता, असहायता यांचे दर्शन घडत होते.

6. स्वमत.

प्रश्न अ.
बोर्डिंगात शिकत असलेल्या व शिकून गेलेल्या विदयार्थ्यांचे बापू गुरुजींबद्दल असलेले प्रेम तुमच्या शब्दांत लिहा.
उत्तर :
बोर्डिंगातल्या मुलांवर गुरुजींची खूप माया होती. त्याप्रमाणेच मुलांचेही ते खूप लाडके होते. त्यांच्या शब्दाला विदयार्थ्यांच्या मनात खूप मान होता. त्यांचा शब्द ते कधी खाली पडू देत नसत. गुरुजींच्या मताप्रमाणे वागण्यासाठी सगळेजण धडपडत होते. गुरुजींचाही त्यांच्यावर जीव होता. रोज रात्री मुलांना कंदिलाच्या प्रकाशात घेऊन बसत. त्यांचा अभ्यास घेत; पहाटे उठूनही अभ्यास घेत. गुरुजींचा मुलगा वारला, तेव्हा मुले दुःखाच्या सागरात बुडून गेले.

सातवी पास झाल्यावर विद्यार्थी साहजिकच शाळा सोडत. काही शिकलेल्यांना बापूंनी अन्य गावच्या शाळांत शिक्षक पदावरची नोकरी मिळवून दिली होती. आपली उदरनिर्वाहाची सोय झाली, तरी विद्यार्थी गुरुजींना विसरले नाहीत. गुरुपौर्णिमेच्या दिवशी ते आठवणीने गुरुजींना भेटत. श्रीफळ देऊन त्यांच्या पाया पड़त, त्यांचा आशीर्वाद घेत. आपापल्या गावी जात. त्यांच्या गावी गुरुजींनी यावे, असा ते आग्रहही करीत. अशा प्रकारे आजीमाजी सर्व विदयार्थ्यांचा गुरुजींवर जीव होता.

प्रश्न आ.
गावातल्या उचापती करणाऱ्या लोकांबद्दल तुमचे मत स्पष्ट करा.
उत्तर :
उचापती करणारे लोक सर्वत्र असतात, असे आता माझे मत झालेले आहे. ‘गढी’ या कथेत वर्णन केलेली घटना ग्रामीण भागात घडलेली आहे. शिवाय जुन्या काळात घडलेली आहे. पण असे लोक आताही दिसतात आणि शहरांतसुद्धा आढळतात. हे लोक नेहमी चांगल्या कामात अडथळे आणतात. काही चांगले घडावे, लोक समर्थ व्हावेत, त्यांचे जीवनमान सुधारावे, सर्वांना शिक्षण मिळावे असे त्यांना वाटतच नाही. सर्व समाज उत्तम जीवन जगू लागला, तर त्यांची किंमत नाहीशी होईल, अशी त्यांना भीती वाटते. सगळीकडे सतत काहीतरी वाईट घडत राहिले की, उचापती लोक दांडगाई करून प्रसंगात घुसतात आणि स्वत:चा फायदा करून घेतात. प्रामाणिक कष्ट करून त्यांना जगायचेच नसते. फुकटात पैसा लाटायचा असतो. राजकारणात सध्या अशा लोकांचीच चलती आहे. आपणच या लोकांना ओळखून त्यांना दूर ठेवले पाहिजे. तरच आपला देश सुधारेल.

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प्रश्न इ.
‘वान नदीले कदीमधी येनारा पूर आता पटावरल्या आकळ्याइले आला व्हता.’ यातून तुम्हांला समजणारा अर्थ स्पष्ट करा.
उत्तर :
या विधानाचा शब्दशः अर्थ आधी आपण समजून घेऊ, वान नदीला पूर्वी भरपूर पाणी असे. पूर्वी ती भरभरून वाहत होती. अधूनमधून पूरही येई. या नदीच्या पाण्यात जशी वाढ होई, तशी वाढ आता शाळेच्या पटसंख्येत होऊ लागली होती. म्हणजे गुरुजींचे कष्ट फळाला आले होते. ज्या गावात पूर्वी शाळाच नव्हती, त्या गावात आता शाळा आली. इतकेच नव्हे, तर चौथीपर्यंत असलेली शाळा गुरुजींच्या प्रयत्नांमुळे सातवीपर्यंत झाली. मॅट्रिकपर्यंतचे शिक्षण गावातच मिळावे; म्हणून गुरुजींनी गावात हायस्कूल सुरू करण्याचाही प्रयत्न केला. पण उचापती लोकांनी हायस्कूल होऊ दिले नाही. पण नदीला जसा पूर येई, तसा गावातल्या शाळेच्या विद्यार्थी संख्येला पूर येऊ लागला होता. हे मात्र एक सुचिन्ह होते.

7. अभिव्यक्ती.

प्रश्न अ.
‘गढी’, ‘वान नदी’ आणि ‘वटवृक्ष’ या तीन प्रतीकांतून गावातील स्थित्यंतराचे दर्शन कशाप्रकारे घडवले आहे, ते प्रत्येकी एकेका उदाहरणाद्वारे स्पष्ट करा.
उत्तर :
‘गढी’ हे गुरुजींचे प्रतीक आहे. गढी पूर्वी भक्कम होती. गावाला आधार होती. माणुसकीच्या भावनेतून मदत करण्याची गढीची वृत्ती होती. म्हणून गढीच्या पाटलांनी अभ्यासात हुशार असलेल्या बापूंच्या शिक्षणाचा सर्व भार उचलला. तेच गुरुजींनी केले. त्यांनी आपले सर्व आयुष्यच गावाला अर्पण केले. काही काळ गावाला प्रगतीची फळे मिळालीच. ‘साजरे गाव’ हे पारितोषिकही मिळाले. पण कालांतराने गावावर अवकळा आली. प्रगती खुंटली. गढी खचत गेली. बापू गुरुजीही खचत गेले.

‘वाननदी’ हे गावातील जीवनप्रवाहाचे प्रतीक आहे. पूर्वी गरिबी होती, पण गावात निर्मळपणा होता, गावाच्या विकासाची स्वप्नेच जणू काही वाननदी वाहून आणत होती. हळूहळू वाननदीचा प्रवाह आटत गेला, पाणी कमी झाले. शेवटी शेवटी तर नदीने पात्रच बदलले. गावानेही आपला जीवनप्रवाहच बदलून टाकला.

‘वटवृक्ष’ म्हणजे गावच होय. वाननदीच्या काठावर वटवृक्ष अंकुरला, हळूहळू वाढत गेला. मुलांना, वाटसरूंना तो आधार बनला. पण हळूहळू तोही सुकत गेला. गावही बापू गुरुजींच्या प्रयत्नांमुळे अंकुरला, त्याने विकासाची स्वप्ने पाहिली. चांगले दिवस आलेही, पण उचापत्यांमुळे गाव उलट्या दिशेने प्रवास करू लागला. वटवृक्ष सुकत गेला. तसा गावही सुकत गेला.

एकंदरीत, गावाची पडझड झाली. हळूहळू निराशामय गर्तेत गाव अडकत चालला. याचे दर्शन या तिन्ही प्रतीकांमधून घडते.

प्रश्न आ.
पाठाच्या शीर्षकाची समर्पकता पटवून दया.
उत्तर :
‘गढी’ हे गावातील सत्तास्थानाचे प्रतीक आहे. गढीच्या गावावर प्रभाव असायचा. त्याचबरोबर गावाला गढीचा आधारही असायचा, ती गढी स्वातंत्र्यानंतर आपले सत्तास्थान गमावून बसली. तरीही तिचा आधार होता. उन्हापावसाला तोंड देत, त्यांच्याशी झगडत गढी ताठ उभी होती. हळूहळू ती खंगत गेली. चारही बाजूंनी ती कणाकणाने कोसळत होती. उचापती लोकही गढी पडण्याची वाटच बघत होते. गाववाल्यांना गढी कोसळली तर हवीच होती. गढीखालची पांढरी माती त्यांना हवी होती. ते विळ्याने हळूहळू जमीन उकरत होतेच, गाव खरे तर चांगल्या दिशेने चालले होते. पण उचापत्यांनी गावाला वाईट दिशेला ढकलले. गावाची विकासाची दिशा ढळली. जे गढीचे झाले तेच गावाचे झाले. गढी ही कथा त्या लहानशा गावाच्या स्थित्यंतराचे, पडझडीचे चित्रण करते. गावाची जशी पडझड झाली, तशी गढीचीही झाली. तीच गत बापू गुरुजींची झालेली आहे. गाव, बापू गुरुजी यांच्या पतनाची, कोसळण्याची कथा म्हणजे ही गढी होय. म्हणून ‘गढी’ हे शीर्षक अत्यंत समर्पक आहे.

प्रश्न इ.
या कथेतील वैदर्भी बोलीचे तुम्हाला जाणवलेले वेगळेपण लिहा.
उत्तर :
वैदर्भी बोली खरोखरच रसाळ भाषा आहे. ऐकताना मन प्रसन्न होते. कथेतील वर्णने कोरड्या तपशिलाने केली जात नाहीत. हृदय भाषेत ही वर्णने येतात. त्यामुळे भाषा वाचकांच्या मनाची पकड , घेते. कथेत वाक्प्रचार व म्हणींचा मुबलक उपयोग केलेला आहे. किंबहुना बोलीभाषेचे हे वैशिष्ट्यच असते. यामुळे भाषा रसाळ झाली आहे.

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भाषा रसाळ होण्याला आणखी एक कारण आहे. ते म्हणजे ध्वनिमाधुर्य हे होय. नामांना, क्रियापदांना लागलेले प्रत्यय पाहा. उदा., गावाले, त्याइच्या, त्याइने, त्याइले हे उदाहरणादाखल दिलेले प्रत्यय लक्षणीय आहेत. त्यांचा उच्चार मृदू, मुलायम आहे. या प्रत्ययांचे प्राबल्य आहे. भाषा वाचताना, ऐकताना मन मृदूमुलायम होऊन जाते.

भाषेची आणखी वैशिष्ट्ये पाहा. ‘वाडा’ हा शब्द वैदर्भीमध्ये ‘वाळा’ होतो. ‘पडल्याने’ या प्रमाण मराठीतील शब्दाचे वैदर्भातील – रूप आहे पळल्याने, याच पाठातील असे खूप शब्द दाखवता येतील. मुद्दा असा की या भाषेची प्रकृतीच मुळी मृदूमुलायम असावी. वैदर्भी भाषेकडून प्रमाण मराठीकडे होणारा प्रवास रसाळतेकडून कोरडेपणाकडे जास्त होतो. प्रमाण भाषेत आखीव-रेखीवपणा जास्त असतो. त्यामुळे औपचारिकपणा जास्त येतो. थोडक्यात, हे आहे वैदर्भी भाषेचे मला जाणवलेले वेगळेपण.

Marathi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 3.2 गढी Additional Important Questions and Answers

कृति

1. चौकटी पूर्ण करा :

प्रश्न 1.
काळीशार, लोण्याहूनही मऊ असलेली
उत्तर :
काळीशार, लोण्याहूनही मऊ असलेली : गावची जमीन

प्रश्न 2.
नदीच्या काठी वाढत गेलेले झाड
उत्तर :
नदीच्या काठी वाढत गेलेले झाड : वडाचे झाड

प्रश्न 3.
वाडा पडल्याने उघडी – पडलेली
उत्तर :
वाडा पडल्याने उघडी पडलेली : गढी

प्रश्न 4.
गावाला मिळालेला मान :
उत्तर :
गावाला मिळालेला मान : साजरे गाव

प्रश्न 5.
उभा जन्म गाववाल्यांची सेवा करणारे
उत्तर :
उभा जन्म गाववाल्यांची सेवा करणारे : बापू गुरुजी

प्रश्न 6.
गावात काही सोयी नाहीत म्हणत शहरात जाणारी :
उत्तर :
गावात काही सोयी नाहीत म्हणत शहरात जाणारी : नवी पिढी

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प्रश्न 7.
कार्यक्रमापासून दूर जाऊ पाहणारे
उत्तर :
कार्यक्रमापासून दूर जाऊ पाहणारे : बापू गुरुजी

2. कृती करा :

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 1
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 11

प्रश्न 2.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 2
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 12

प्रश्न 3.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 3
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 13

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी

प्रश्न 4.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 4
उत्तर :

प्रश्न 5.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 5
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 15

प्रश्न 6.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 6
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 16

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प्रश्न 7.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 7
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 17

प्रश्न 8.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 8
उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी 21

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3. वैदर्भी बोलीत वापरलेल्या पुढील वाक्प्रचारांचे अर्थ लक्षात घ्या आणि त्यांसाठी तुमच्या बोलीत किंवा मराठीत वापरले जाणारे वाक्प्रचार लिहा :

(a) रगत आटवने : ……………………..
(b) ऊर भरभरून येते : ……………………..
(c) लाळ करने : ……………………..
(d) चटनीवर तेल न सापळणे : ……………………..
(e) सपन डोयात फुलने : ……………………..
(f) जीव वतने : ……………………..
(g) शाननं उबं व्हने : ……………………..
(h) मायेची वाकय घालने : ……………………..
(i) हिंमत बांदून उटने : ……………………..
(j) लोये तोळने : ……………………..
(k) पोटापान्याला लागने : ……………………..
(l) पदरात पळने : ……………………..
उत्तर :
(a) रगत आटवने : (i) रक्त आटवणे., (ii) खूप कष्ट घेणे.
(b) ऊर भरभरून येणे : (i) ऊर भरून येणे., (ii) मनात अभिमान किंवा कौतुक किंवा आनंद दाटणे.
(c) लाळ करने : (i) लाड करणे., (ii) खूप प्रेमाने वागवणे.
(d) चटनीवर तेल न सापळणे : (i) नेहमी कमतरता असणे., (ii) खूप गरिबी असणे.
(e) सपन डोयात फुलने : (i) मनात स्वप्न फुलणे., (ii) भविष्याविषयी खूप आशावादी चित्र निर्माण होणे.
(f) जीव वतने : (i) जीव ओतणे., (ii) खूप मन:पूर्वक, कष्टपूर्वक काम करणे.
(g) शाननं उबं व्हने : (i) डौलात उभे राहणे., (ii) आनंदाने व आत्मविश्वासाने वागणे.
(h) मायेची वाकय घालने : (i) मायेचे पांघरूण घालणे., मायेची पाखर घालणे.
(i) खूप माया करणे. (११) हिंमत बांदून उटने : (i) धीर एकवटून उठणे., (ii) हिमतीने तोंड देणे. हिमतीने लढायला सिद्ध होणे,
(j) लोये तोळने : (i) लचके तोडणे., (ii) एक एक तुकडा तोडावा तशा वेदना देणे.
(k) पोटापान्याला लागने : (i) पोटापाण्याला लागणे., (ii) कामधंदा मिळणे.
(l) पदरात पळने : (i) पदरात पडणे., (ii) न मागता, फार हवीशी नसताना मिळणे.

4. पुढील म्हणींचा अर्थ तुमच्या शब्दांत लिहा :

प्रश्न 1.
घरी तेल हाये तं मीठ नायी; आन् मीठ हाये त चटनी नायी.
उत्तर :
घरी तेल हाये तं मीठ नायी; आन मीठ हाये त चटणी नायी.
अर्थ : अत्यंत गरिबी असणे.

प्रश्न 2.
नासकुला हळयाई पिंडाला झोम्बते.
उत्तर :
नासकुला हळयाई पिंडाला झोम्बते.
अर्थ : क्षुद्र जीवसुद्धा पोटासाठी धडपडतो.

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प्रश्न 3.
खुटे गाळ खुटे उपळ.
उत्तर :
खुटे गाळ खुटे उपळ.
अर्थ : खुंट जमिनीत गाडायचा आणि उपटायचा, अशी निरर्थक रिकामपणची कामे करीत बसणे.

गढी लेखिकांचा परिचय

लेखिकांचे नाव :
डॉ. प्रतिमा इंगोले

साहित्यिक व्यक्तिमत्त्व :
सुप्रसिद्ध ग्रामीण कथाकार, कवयित्री, कथाकथनकार म्हणूनही चांगली ओळख. ललित, विनोदी व वैचारिक स्वरूपाचे लेखनही प्रसिद्ध आहे. बालसाहित्य लेखिका म्हणूनही त्या प्रसिद्ध आहेत. त्यांनी विविध विषय आपल्या साहित्यातून हाताळले आहेत. लोकसाहित्याच्या प्रख्यात अभ्यासक आहेत. ८० हून अधिक पुस्तके प्रसिद्ध. आपल्या काव्यांमधून ग्रामीण जीवनातील जीवघेणा संघर्ष प्राधान्याने चित्रित केला आहे. सामाजिक विषयांवर प्रत्यक्ष संशोधन करून विपुल लेखन केले आहे.

ग्रंथसंपदा :
अकसिदीचे दाने’, ‘अंधारपर्व’, ‘अन् मृगधारा बरसल्या’, ‘अमंगल युग’ वगैरे अनेक कथासंग्रह प्रसिद्ध. ‘आजही स्त्रीचे स्थान दुय्यमच’, ‘आत्मघाताचे दशक’ वगैरे वैचारिक स्वरूपाची पुस्तके. ‘करारी आजी’, ‘उजळ आजोबा’ वगैरे बालसाहित्य क्षेत्रातील पुस्तके प्रसिद्ध. ‘बोडखी’, ‘पार्ट टाईम’ यांसारख्या अनेक कादंबऱ्या प्रसिद्ध

पुरस्कार पारितोषिके :
महाराष्ट्र साहित्य पुरस्कार, संत गोरोबा सामाजिक पुरस्कार, महाराष्ट्र शासनाचा पुरस्कार, जनसंवाद पुरस्कार, करवीर साहित्य परिषदेतर्फे ‘दत्ता डावजेकर स्मृती पुरस्कार’ असे अनेक पुरस्कार प्राप्त.

गढी  कथेचा गोषवारा

  1. सातपुड्याच्या कुशीत वसलेल्या एका लहानशा गावाची ही कथा आहे. गाव तसे खाऊनपिऊन सुखी होते. गावाला निसर्गाची साथ होती.
  2. फ्लॅशबॅक पद्धतीने ही कथा आकार घेते. आज त्या गावात धामधुम होती. गावाला शासनाचा ‘साजरे गाव’ हा पुरस्कार जाहीर झालेला आहे. बापू गुरुजी या आदर्श शिक्षकाचाही त्या समारंभात सत्कार होणार आहे. साजरे गाव या पारितोषिकापर्यंत गावाचा प्रवास होण्यात बापू गुरुजींचा फार मोठा वाटा आहे. मात्र बापू खूप उदासवाणे झालेले आहेत. त्यांना समारंभात व त्यांच्या सत्कारात गोडी वाटत नाही.
  3. गुरुजींच्या लहानपणी गावात शाळा नव्हती. मुले तालुक्याला शिकायला जात. गुरुजींची घरची गरिबी होती. पण गढीवरच्या पाटलांनी त्यांच्या शिक्षणाचा खर्च केला. गुरुजी शिकले आणि त्यांनी गावाच्या विकासाला वाहून घेतले. गुरुजींच्या बरोबर शिकलेल्यांनी शहरांची वाट धरली.
  4. देश नुकताच स्वतंत्र झाला होता. नव्या प्रेरणांचे वारे सर्वत्र वाहत होते. गुरुजींना गावाच्या विकासाची स्वप्ने पडू लागली. गुरुजींना निवडणुकीच्या राजकारणात रस नव्हता. गुरुजींनी गावाच्या विकासाला वाहून घेतले. पण स्वत:च्या घराकडे दुर्लक्ष केले.
  5. गुरुजी सकाळ–संध्याकाळ, रात्री–बेरात्री शाळेतच दिसू लागले. त्यांनी शाळा नावारूपाला आणली. चौथीपर्यंतची शाळा सातवीपर्यंत झाली. गुरुजींनी शाळेत तालीमखाना सुरू केला.
  6. गावातल्या उचापती लोकांना हे सर्व पाहावले नाही. त्यांनी गुरुजींच्या कार्यात खोडे घालायला सुरुवात केली. दरम्यान गुरुजींना ‘आदर्श शिक्षका’चे पारितोषिक मिळाले. त्यांनी पारितोषिकाच्या रकमेतून वाचनालय सुरू केले. लहानसे बोर्डिंग चालू केले.
  7. बोर्डिंगातील मुलांचे ते लाडके गुरुजी झाले. बोर्डिंगाची पूर्ण काळजी गुरुजी घेत होते. मुलांना ते स्वतःची लेकरेच समजत. बोर्डिंगातला संपती तर त्यांचा मानलेला मुलगा बनला. गावात दवाखाना नव्हता. संपती पटकीच्या रोगाला बळी पडला.
  8. गुरुजींना गावात दवाखाना आणण्याची स्वप्ने पडू लागली. त्यांनी गावात पोस्ट आणले. पण उचापत्या लोकांमुळे पोस्ट गावातून गेले. सडक येऊ घातली, पण त्याच लोकांनी सडक होऊ दिली नाही. या गोष्टीचे गुरुजींना खूप दुःख झाले, त्यांची उमेद खचू लागली. दरम्यान वाननदी सुकत गेली. तिने पात्र बदलले.
  9. गुरुजींचा मुलगा आजारी पडला. तापाने फणफणला, पण गुरुजींनी तिकडे लक्ष दिले नाही. मुलगा आजाराला बळी पडला. गुरुजी गळून गेले. पण बोर्डिंगचे, शाळेतले आजीमाजी विदयार्थी गुरुजींचा खूप आदर करीत.
  10. गाव खचत गेला. गुरुजीसुद्धा खचत गेले. आजच्या कार्यक्रमाचे म्हणूनच त्यांना कौतुक नव्हते. त्यांच्या अंगातले त्राण संपत चालले. पाय लटलट कापत होते. पाय उचलला की भोवळ येई. आपण काय करू पाहत होतो आणि काय घडले? गुरुजींना याचा विषाद वाटला.

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गढी शब्दार्थ :

  • दुपटा – दोन रस्ते मिळतात ती जागा; जेथे पारावर गावकरी जमतात,
  • वसेल – वसलेले. व्हतं – होते.
  • गावासेजून – गावाजवळून.
  • झुममूय – झुळुझुळु,
  • वायता वायता – वाहता वाहता.
  • वान नाही – वानवा नाही, कमतरता नाही.
  • कायीशार – काळीशार,
  • लोन्यावानी – लोण्याप्रमाणे,
  • भरूभरू – भरभरून.
  • कवतीक – कौतुक.
  • कराळी – काठावर,
  • झाळ – झाड.
  • पायत – पाहत.
  • उनाये-पावसाये – उन्हाळेपावसाळे,
  • वाळा पळल्यानं – वाडा पडल्यानं.
  • पांढ्ढी पांढ्ढी – पांढरी पांढरी.
  • उघळी पळली – उघडी पडली.
  • कारुन – का म्हणून.
  • गावाले – गावाला,
  • गोठ – गोष्ट.
  • बयठकीतल्या – बैठकीतल्या.
  • त्याइच्या – त्यांच्या.
  • आवतन – आमंत्रण.
  • गाववाल्याइनं – गाववाल्यांनी.
  • कऱ्याचं – करायचे.
  • ठरोल – ठरवले.
  • काइच – काहीच.
  • नोतं – नव्हतं.
  • रावूरावू – राहून राहून.
  • रगत आटोलं – रक्त आटवले.
  • मातर – मात्र.
  • लानपनी – लहानपणी.
  • शाया – शाळा.
  • गळीवरला – गढीवरील.
  • शेजीच – शेजारीच.
  • लाळ – लाड.
  • सापळत – सापडत,
  • गरिबाले – गरिबाला,
  • कोळलंच – कोरडेच.
  • फकत – फक्त. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी
  • इतले – इतके.
  • शिकेल – शिकलेला.
  • गळी – गढी.
  • शयरात – शहरात.
  • नवकरीले – नोकरीला.
  • नासकुल्या – क्षुल्लक, सामान्य.
  • पायनं – पाहणे, हू
  • लागलं – होऊ लागले.
  • डोयात – डोळ्यात.
  • पोयता पोयता – पोहता पोहता.
  • वान देल्लं – वाण दिले.
  • वावटयीत – वावटळीत.
  • सवतंतर – स्वतंत्र.
  • झकास – विकास.
  • पेरमानं – प्रेमाने.
  • व्हयेल गळी – झालेला गडी.
  • पानी पावावं – पाणी पाहावे (किती खोल सुरक्षित आहे, वगैरे).
  • पख पारखावं – पंख पारखावेत,
  • उळावं – उडावं.
  • हे बी तं – हीसुद्धा तर.
  • आंदी – आधी.
  • वतून – ओतून.
  • कई पा – कधीही बघा.
  • लकषुमीच – लक्ष्मीच.
  • पावू पावू – पाहून पाहून,
  • सेल्यासेवटी – सरतेशेवटी.
  • धाळून – धाडून, पाठवून,
  • जियाले – जेवायला.
  • आकळ्याइले – आकड्याला (आकड्याइतका).
  • तसीई – तशीही.
  • पोट्याइची – मुलांची.
  • नोती – नव्हती,
  • जीतून – जिंकून. Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी
  • उचापती मानसाइले – उपद्व्यापी.
  • नायी कोई सादलं – काही साधले नाही, जमले नाही.
  • जयताळेपना – जळफळाट.
  • हळ्याच्या सरपानं – गवताच्या सापानं,
  • पयस्याचं – पैशाचे.
  • लानसक – लहानसे.
  • खळकूई – कवडीही.
  • लळले – रडले.
  • धुवारी – धार (पाण्याची).
  • पयलमसुट्ट्या – पहिल्या फटक्यात.
  • गढीलोग – गढीपर्यंत.
  • तपेल फफूटातून – तापलेल्या फुफाटातून.
  • सईन व्हईन – सहन होईल?
  • मऱ्याच्या – मरणाच्या.
  • आताई – आताही, आतासुद्धा.
  • लेकराची गुळी – लेकराचा गोडवा, बाळ जन्मल्याची गोड बातमी.
  • लोये तोळत – गोळे तोडत.
  • काऊन कयत नसीन – का बरे कळत नसेल?
  • इरल्यावानी – विरून गेल्यासारखे.
  • उजिळात – उजेडात.
  • झाकुल्यात – पहाटेला.
  • आखीन – आणखी.
  • इस्त्यावानी – विस्तवासारखा.
  • पालट पळना नाही – फरक पडला नाही.
  • अवकानी – अवकाळी,
  • गढीलेई झोळलं – गढीलाही झोडले.
  • चवूभवताल – चारही बाजूंनी.
  • अखाळीला – आषाढीला (आषाढ पौर्णिमा म्हणजे गुरुपौर्णिमा),
  • सळक – सडक.
  • पळीत – पडीत, पडीक,
  • कायले – कशाला,
  • अथी – इथे.
  • दुकळीत – गंजिफाच्या खेळातील दुक्कलीत.
  • भळकोनारा – भडकवणारा,
  • सवतंतरानई – स्वातंत्र्याने, स्वातंत्र्यात.
  • गाटापान्याचं – चिखल–पाण्याचे.
  • जीव सोळत होते – जीव सोडत होते, मरण पावत होते.
  • इव्यानं – विळ्याने.
  • सारोयाले – सारवायला.
  • पातरच – पात्रच.
  • कोळली पळत – कोरडी पडत.

Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.2 गढी

गढी  वाक्प्रचार व त्यांचे अर्थ

  • मन तिळतिळ दुखने – दु:खाने व्याकूळ होणे.
  • ठान मांडून उबी रायने – पाय रोवून उभे राहणे.
  • रगत आखणे – खूप कष्ट घेणे.
  • ऊर भरभरून येणे – अभिमान/कौतुक/आनंद मनात दाटणे.
  • लाळ करने – खूप प्रेमाने वागवणे.
  • चटणीवर तेल न सापळणे – खूप गरिबी असणे.
  • सपन डोळ्यात फुलने – भविष्याविषयी मनात आशावादी चित्र निर्माण होणे.
  • जीव वतने – खूप मनापासून कष्टपूर्वक काम करणे.
  • शाननं उबं व्हने – आनंदाने व आत्मविश्वासाने वागणे.
  • मायेची वाकय घालने – खूप माया करणे.
  • हिंमत बांदून उटने – हिमतीने लढायला सिद्ध होणे.
  • लोये तोळणे – एक एक तुकडा तोडावा तशा वेदना देणे.
  • पोटापान्याला लागणे – कामधंदा मिळणे.
  • पदरात पळने – (एखादी गोष्ट) न मागता, फार हवीशी नसताना मिळणे.

Marathi 12th Textbook Guide Pdf Download भाग-३ साहित्यप्रकार

Shodh Class 12 Marathi Bhag 3.1 Question Answer Maharashtra Board

Balbharti Maharashtra State Board Marathi Yuvakbharati 12th Digest Bhag 3.1 शोध Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers.

12th Marathi Bhag 3.1 Exercise Question Answer Maharashtra Board

शोध 12 वी मराठी स्वाध्याय प्रश्नांची उत्तरे

12th Marathi Guide Chapter 3.1 शोध Textbook Questions and Answers

कृती 

1. (अ) कारणे लिहा.

प्रश्न 1.
अनुनं घर सोडलं, कारण…
उत्तर :
अनूने घर सोडले; कारण पाच वर्षे तरी तिला स्वत:ची म्हणून जगायची होती.

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प्रश्न 2.
‘जगाकडं पाहताना मला माझा चष्मा हवा’, असं अन् म्हणाली. कारण…
उत्तर :
“जगाकडे पाहताना मला माझा चष्मा हवा,” असे अनू म्हणाली; कारण प्रत्येक वस्तूचे, घटनेचे, व्यक्तीचे मूल्यमापन करण्यासाठी तिला तिची स्वतंत्र नजर तयार करायची होती.

प्रश्न 3.
अनुने डॉक्टर व्हावे असे आबांना वाटत होते, कारण…
उत्तर :
अनूने डॉक्टर व्हावे, असे कथानिवेदकाला वाटले; कारण तिची कॅलिबर डॉक्टर होण्याची होती.

(आ) खालील नातेसंबंध लिहा.

(a) अनु आणि आबा ………………………….
(b) भिडे दाम्पत्य आणि टॅक्सी ड्रायव्हर ………………………….
(c) अनु आणि सुनीता ………………………….
उत्तर :
(a) अनू आणि आबा – मुलगी व वडील.
(b) भिडे दाम्पत्य आणि टॅक्सी ड्रायव्हर – प्रवासी व टॅक्सीवाला.
(c) अनू आणि सुनीता – नर्स व रुग्ण,

2. कृती करा.

प्रश्न 1.
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उत्तर :
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प्रश्न 2.
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उत्तर :
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3. अनुने आबांजवळ व्यक्त केलेल्या विचारांतून डॉक्टरचा पेशा आणि नर्सचा पेशा यांतील फरक स्पष्ट करा.Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.1 शोध 3
उत्तर :
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4. थोडक्यात उत्तरे लिहा.

प्रश्न अ.
घर सोडण्यामागचा अनुचा विचार तुमच्या शब्दांत स्पष्ट करा.
उत्तर :
अनूच्या मते, माणसे परंपरेने कुणाच्या ना कुणाच्या कलाने चालण्याची सवय लावून घेतात. जन्मल्यापासून आईवडिलांच्या प्रभावाखाली वागतात. प्रत्येकाला स्वतंत्र मेंदू मिळालेला असतो. पण माणसे दुसऱ्याच्या मताने वागतात. यामुळे माणसे स्वत:चे स्वतंत्र अस्तित्व, जगाकडे पाहण्याची स्वतंत्र नजर गमावून बसतात. अनूला हे अजिबात मान्य नव्हते. तिच्या मते, प्रत्येकाला जगाकडे स्वत:च्या स्वतंत्र नजरेने बघता आले पाहिजे. स्वत:च्या स्वतंत्र नजरेने जगाचे मूल्यमापन करता आले पाहिजे. त्यासाठी तिला स्वत:ची स्वतंत्र नजर घडवायची होती. हे सगळे कमावण्यासाठी तिला पाच वर्षे स्वतंत्रपणे राहण्याचा प्रयोग करायचा होता. त्या अनुभवातून ती नवे काहीतरी घडवू पाहत होती. घर सोडण्यामागे तिच्या मनात हा सगळा विचार होता.

प्रश्न आ.
अनुला समाज कसा समजून घ्यायचा आहे, ते थोडक्यात स्पष्ट करा.
उत्तर :
अनूला स्वत:ला प्रत्यक्ष अनुभव घ्यायचे होते. तिला समाज समजून घ्यायचा होता. त्यासाठी ती स्वत:च समाजाच्या व्यवहारांत उतरू पाहत होती. हे तिला स्वत:च्या स्वतंत्र बुद्धीने करण्याची संधी हवी होती. आपल्या बुद्धीवर तिला कोणाचाही प्रभाव नको होता, कोणाच्याही विचारांचे प्रतिबिंब नको होते. तिला समाजाचे खरेखुरे रूप जाणून घ्यायचे होते. नोकरी करणे हा समाजात मिसळण्याचा एक मार्ग तिला दिसत होता. नोकरीचा निर्णय घेतल्यावर तिने विचारपूर्वक नर्सचा पेशा स्वीकारला. इस्पितळ व रुग्ण यांच्या जगात सुख आणि दु:ख खऱ्या स्वरूपात भेटतात; जीवनाचे खरेखुरे दर्शन तिथे घडते, माणूस कळतो, असे तिचे मत होते. नर्स रुग्णांच्या भावजीवनापर्यंत पोहोचते. ती त्यांचा ताप व मनस्ताप या दोन्हींचे निवारण करते. म्हणूनच तिच्या मते, समाज समजून घेण्यासाठी नर्सची नोकरी करणे हा योग्य मार्ग होता.

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प्रश्न इ.
कुतूहल, जिज्ञासा निर्माण करणाऱ्या कथेतील एका प्रसंगाचे वर्णन करा.
उत्तर :
या कथेतील सर्वच प्रसंग मोठ्या कुशलतेने रचलेले आहेत. प्रत्येक प्रसंग उत्सुकता ताणत ताणत वाचकाला पुढे घेऊन जातो. त्यांतल्या पहिल्या प्रसंगात तर उत्कंठा शिगोशीग भरलेली आहे. पहिलेच वाक्य मुळी वाचकांची पकड घेते. कथानिवेदक स्वत:च्या व पत्नीच्या वतीने अनूची शरणागती पत्करून माफी मागावी तशी माफी मागतो. त्याच्या मनाची अत्यंत अगतिक अवस्था त्यातून दिसून येते. येथे वाचकाच्या मनात नाना प्रकारचे प्रश्न उभे राहतात. काय केले असेल या दोघांनी? इतकी मिनतवारी करून माफी मागावी, असे काय घडले असेल? या तिघांचे एकमेकांशी नाते तरी कोणते असावे? सुरुवातीला अनू त्या दोघांची मुलगी तर नाही ना, अशी शंका वाचकाला वाटू लागते. तिचे जेवण आटपले होते. पण ती पानावर दिङ्मूढ, स्तंभित अवस्थेत बसली होती. एवढी कोणती मोठी आपत्ती कोसळली असेल? तिचे उद्गार त्या दोघांनाही जिव्हारी लागतात. पुढे थोडे वाचल्यावर अनू त्यांची मुलगी नाहीच, हे लक्षात येते. साधारणपणे त्रयस्थांशी आपण टोकाचे वागत नाही, अशा प्रकारे वाचकाची उत्कंठा सतत टिकवून ठेवण्याचे फार मोठे कौशल्य दिसून येते.

प्रश्न ई.
कथेला कलाटणी देणारा एक प्रसंग शब्दबद्ध करा.
उत्तर :
या कथेत पावलापावलावर कलाटणी मिळत जाते. त्या प्रसंगांमधला एक प्रसंग मला खूप महत्त्वाचा वाटतो, तो संपूर्ण कथेलाच कलाटणी देतो. भर मध्यरात्री कथानिवेदक, मुक्ता व अनू भिड्यांना भेटण्यासाठी निघाले. वाचकाला वाटू लागते की आता काय तो सोक्षमोक्ष लागेल. ती नोट भिड्यांकडे असेल, तर मिळेलच, मग सर्व प्रश्न मिटतील आणि टॅक्सीवाल्याकडे असेल, तर शोधच खुंटेल, मात्र घडते ते विलक्षणच. वाचकाच्या कल्पनेतही नसलेले घडते. भिड्यांना घेऊन येणाऱ्या टॅक्सीखाली एक म्हातारा माणूस येतो. या अपघाताने अकल्पित घटना घडतात. नोट मिळते, टॅक्सी ड्रायव्हरचे या सर्वांशी भावनिक नाते निर्माण होते. नोट मिळाल्यामुळे नोटेचा इतिहास कळतो. त्या मुलीच्या आजारपणाचे हृदयद्रावक दर्शन घडते. अनू त्या मुलीच्या कुटुंबीयांशी मनाने जोडली जाते. अखेरीस हेही स्पष्ट होते की त्या मुलीचे वडील तो टॅक्सी ड्रायव्हरच होता. कथेचे वर्तुळ पूर्ण होते. त्या एका अपघाताच्या प्रसंगाने कथेला खूप उंचीवर नेऊन ठेवलेले दिसून येते.

5. तुमच्या शब्दांत माहिती लिहा.

प्रश्न अ.
भिडे दाम्पत्याची सामाजिक बांधिलकी.
उत्तर :
भिडे दाम्पत्य हे सरळ, साध्या वृत्तीचे. पूर्णपणे चांगुलपणा असलेले. लपवाछपवी, लबाड्या न करणारे. हातचे राखून न वागणारे. निष्कपट, सच्छील वृत्तीचे. ते परळहून लॅमिंग्टन पोलीस स्टेशनजवळ टॅक्सीने यायला निघाले. रात्री १२–१२.३० वाजण्याची वेळ, दुर्दैवाने त्या टॅक्सीखाली एक म्हातारा माणूस आला. तो जगणे अशक्य होते. या प्रसंगात टॅक्सीवाल्याला जबर शिक्षा झाली असती, तो आयुष्यातूनच उठला असता. टॅक्सीवाल्याचा सालसपणा, सज्जनपणा भिड्यांना खूप भावला होता, तशात त्या टॅक्सीवाल्याची काडीचीही चूक नव्हती. साधारणपणे टॅक्सीवाल्यावर कोणीही विश्वास ठेवला नसता आणि कोणीही त्याला मदत केली नसती. टॅक्सीवाल्यांकडे तुच्छतेनेच पाहिले जाते. त्यांना क्षुद्र समजले जाते. अशा वातावरणात भिडे दाम्पत्यांची कृती खूपच उठून दिसते. मध्यरात्र उलटून गेलेली होती, मृत्यूसंबंधातील केसमध्ये कोणीही जवळपास जायलाही तयार होत नाहीत. भिडे स्वत:हून तयार झाले. पोलीस स्टेशनला हेलपाटे घालावे लागण्याची शक्यता असते. आपण अकारण अडचणीत येण्याचीही शक्यता असते. तरीही भिडे दाम्पत्याने मनापासून टॅक्सीवाल्याला मदत केली. त्यांच्या साक्षीमुळे तो प्रचंड मोठ्या संकटातून वाचला होता. गरिबांना, सज्जनांना मदत करण्याची भिड्यांची ही वृत्ती त्यांच्या सामाजिक बांधिलकीचे दर्शन घडवते.

प्रश्न आ.
टॅक्सी ड्रायव्हरचा स्वभावविशेष.
उत्तर :
टॅक्सी ड्रायव्हर हा साधा, सालस व प्रामाणिक वृत्तीचा माणूस होता. दिवसभर टॅक्सी चालवीत असे. प्रसंगी रात्रीही चालवीत असे. तो नुकताच या पेशात आला होता. दिवसा जेवायला मिळाले नव्हते. मध्यरात्री त्याने उसळपाव खाल्ला. अशा त–हेने तो कष्टपूर्वक व्यवसाय करण्याचा प्रयत्न करीत होता. आपल्या पेशाला सामाजिक प्रतिष्ठा नाही, मानमरातब नाही याची पूर्ण जाणीव त्याला होती; म्हणून अपघातात त्याच्या बाजूने साक्ष दयायला ५ आल्याबद्दल त्याला भिड्यांविषयी प्रचंड कृतज्ञता वाटते. जर भिडे साक्ष दयायला गेले नसते, तर तो आयुष्यातून उठला असता. भिड्यांना त्याचा सालसपणा, प्रामाणिकपणा भावला, म्हणून ते स्वत:हून त्याला मदत करायला गेले. अनू स्वत:ची हकिगत सांगत होती. ती ऐकून तो आतून पूर्णपणे हलून गेला. अनू त्या मुलीशी भावनिकदृष्ट्या बांधली गेलेली पाहून त्याला भरून येते, तो अप्रत्यक्ष रितीने तिच्या मनाच्या मोठेपणाचे कौतुकच करतो. पण स्वत: पार गलबलून जातो. कारण ती मुलगी त्याची स्वत:ची मुलगी होती. अनूशी बोलताना टॅक्सीवाल्याची वैचारिक व. भावनिक प्रगल्भता दिसून येते. गरीब कष्टकरी वर्गातला असूनही त्याची प्रगल्भ वैचारिक बैठक लक्षात येते.

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6. स्वमत.

प्रश्न अ.
कथेच्या नायिकेचे स्वभावचित्र तुमच्या शब्दांत रेखाटा.
उत्तर :
अनू ही कथेची नायिका आहे. ती चारचौघींसारखी एक तरुणी नाही. तिच्या व्यक्तिमत्त्वाचे रसायन वेगळे आहे. वरवर पाहता ती त–हेवाईक, विक्षिप्त वाटेल. पण तशी ती नाही. ती स्वतंत्र बुद्धीची तरुणी आहे. ती स्वतंत्र विचाराने वागू पाहते. कोणाच्याही प्रभावाखाली तिला राहायचे नाही. आपले विचार स्वतंत्र हवेत, मते स्वतंत्र हवीत यावर ती ठाम आहे. स्वत:चे स्वतंत्र विचार, स्वतंत्र व्यक्तिमत्त्व घडवण्यासाठी ती पाच वर्षे स्वतंत्रपणे जगण्याचे ठरवते. स्वतंत्र बुद्धीने समाज समजून घेण्यासाठी, माणूस समजून घेण्यासाठी ती स्वतंत्र राहायचे ठरवते. आपण घरी राहतो, तेव्हा आपण आईवडिलांच्या, भावंडांच्या, नातेवाईकांच्या, मित्रांच्या आधाराने जगतो. अशा वेळी आपले विचार स्वतंत्र राहत नाहीत. दृष्टी स्वतंत्र नसते. कोणतेही निर्णय आपण स्वत:च्या मनाने घेत नाही. हे बौद्धिक पारतंत्र्य होय. याला अनू नाकारते. समाज समजून घ्यायचा तर समाजात वावरले पाहिजे, म्हणून ती नोकरी करायचे ठरवते. नर्सच्या पेशात सेवाधर्म असतो. म्हणून ती नर्स होते. रुग्णाच्या भावजीवनात स्वत:ला स्थान मिळवते. इतकी ती झोकून देऊन काम करते. असे आगळेवेगळे व्यक्तिमत्त्व अनू स्वत:साठी घडवत होती.

प्रश्न आ.
एका रुपयाच्या नोटेव्यतिरिक्त कथेतील आणखी कोणकोणते शोध तुम्हांला महत्त्वाचे वाटतात, ते स्पष्ट करा.
उत्तर :
अनूच्या व्यक्तिमत्त्वामुळे एक वेगळाच शोध मला लागला आहे. कोणाच्याही प्रभावाखाली न येता, स्वतः स्वतंत्रपणे विचार केला पाहिजे, स्वतंत्रपणे जगण्याचा प्रयत्न केला पाहिजे, असा एखादयाचा दृष्टिकोन असू शकतो, अनू असा दृष्टिकोन फक्त बाळगते असे नाही; तर ती तसे जगायचे ठरवते. डॉक्टर होण्याची पात्रता असूनही ती नर्स होते. स्वत:च्या इच्छेने, स्वत:च्या बुद्धीने ती नर्सचा पेशा स्वीकारते. सामाजिक व आर्थिक दृष्टीने डॉक्टरपेक्षा खालच्या पातळीवरचा पेशा स्वीकारते. विशेष म्हणजे खालच्या पातळीवरचा पेशा असूनही ती खुशीत, आनंदात राहते. संपूर्ण हॉस्पिटलचे मन ती जिंकते. थोडक्यात ती प्रतिष्ठा मिळवते. आपल्या आवडीचा पेशा पत्करल्यावर प्रतिष्ठितपणे जगता येते, हे अनूवरून कळते. हा माझ्या दृष्टीने खूप महत्त्वाचा शोध आहे. माझा पेशा आता मीच ठरवणार.

प्रश्न इ.
कथेच्या ‘शोध’ या शीर्षकाची समर्पकता तुमच्या शब्दांत पटवून दया.
उत्तर :
या कथेतील एक रुपयाच्या नोटेचा शोध ही प्रक्रियाच मुळी मध्यवर्तीगाहे. त्या शोधाभोवतीच संपूर्ण कथा फिरत राहते. कथेच्या सुरुवातीलाच उत्कंठावर्धक प्रसंग उभा राहिलेला आहे. त्यात फार मोठा संघर्ष निर्माण झालेला आहे. त्याचे कारण आहे एक रुपयाची नोट. मग त्या नोटेचा शोध घेण्याचे कार्य सुरू होते. तो शोध घेण्यासाठी अपरात्री साडेबारा–एक नंतर कथानिवेदक, मुक्ता व अनू बाहेर पडतात. भिड्यांच्या घरी पोहोचतात. भिडे परळहून निघाले तेव्हा वाटेत त्यांच्या टॅक्सीखाली एक म्हातारा माणूस आला. तो जिवंत राहणे अशक्य इतका गंभीर जखमी झाला होता. मग तिथून हॉस्पिटल, पोलीस स्टेशन अशी वळणे घेत भिडेदांपत्य घरी पोहोचते. कोणत्या ना कोणत्या प्रकारे ही सर्व माणसे त्या एक रुपयाच्या नोटेशी भावनिक दृष्टीने जोडलेली आहेत. रुपयाच्या नोटेच्या शोधाच्या प्रयत्नाला अखेरीस यश येते. नोट मिळते आणि पुन्हा वेगळीच कलाटणी मिळते. अनूने सर्व हकिगत सांगितल्यावर एका नऊ–दहा वर्षांच्या लहानग्या मुलीच्या मृत्यूशी ती नोट भावनेने जोडलेली होती, हे स्पष्ट होते. मरण पावलेली मुलगी ही त्या टॅक्सीवाल्याचीच मुलगी होती हे लक्षात येते. कथेचे वर्तुळ पूर्ण होते. हरवलेली नोट मिळते. तो शोध घेता घेता अनू टॅक्सीवाल्याच्या निमित्ताने त्या मरण पावलेल्या चिमुरड्या मुलीशी आणखी जोडली जाते, म्हणून ‘शोध’ हे शीर्षक खूप समर्पक शीर्षक आहे.

प्रश्न ई.
कथेतील टॅक्सी ड्रायव्हरने ‘जीवनातील वास्तवाचा घेतलेला शोध’, तुमच्या शब्दांत लिहा.
उत्तर :
टॅक्सी ड्रायव्हरची मुलगी मरण पावली होती. त्या दु:खात तो बुडालेला होता, अनूला नोट मिळाली. त्या टॅक्सीवाल्याच्या मुलीनेच दिलेली ती नोट होती. ती नोट निर्जीव होती म्हणून सापडू शकली, नोटेचा शोध संपला; पण टॅक्सीवाल्याची मुलगी गेलेलीच आहे. ती पुन्हा मिळणे केवळ अशक्य आहे. हातातून निसटलेल्या सर्वच गोष्टी मिळत नाहीत, हे वास्तव टॅक्सीवाल्याला जाणवते आणि है तो ते बोलूनही दाखवतो. यातून सुचवायचे आहे की माणसे एका अतयं गोष्टीच्या शोधाला जुंपलेली असतात. सर्वजण काहीतरी शोधण्याच्या प्रयत्नात असतात. आयुष्य म्हणजे एक शोधयात्राच असते. काहीजणांच्या हाती काहीतरी कधीतरी लागते. तर काहीजणांचे हात कायम रिकामेच राहतात. बहुधा सामान्य, निर्जीव, जड वस्तू आपल्या हाती लागते. पण त्या टॅक्सीवाल्याने मुलगी गमावली होती. त्यात टॅक्सीवाल्याचा दोष नव्हता. त्या मुलीचा दोष नव्हता की तिला वाचवण्याचा प्रयत्न करणाऱ्यांचाही दोष नव्हता. ती मुलगी कधीच भेटणार नव्हती, आयुष्य हे असेच आहे. अत्युच्च, चिरंतन असे आपल्या हाती कधीच लागत नाही. माणसाला हा शापच आहे.

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7. अभिव्यक्ती.

प्रश्न अ.
‘स्वत:चा स्वतंत्र मेंदू घेऊन जन्माला आलेला जीव दुसऱ्याचं ऐकतो त्याच क्षणी तो स्वत:चं अस्तित्व, निसर्गानं जगाकडं पाहण्याची दिलेली स्वतंत्र नजर हरवून बसतो’, या विधानाबाबत तुमचे विचार लिहा.
उत्तर :
निसर्गाने प्रत्येक माणसाला स्वतंत्र देह दिला आहे. त्याबरोबर स्वतंत्र मेंदूही दिला आहे. आपल्या मनात दोन पावले चालण्याची इच्छा निर्माण झाली की, आपला मेंदू कामाला लागतो. तो पायांना आज्ञा देतो. पाय दोन पावले पुढे सरकतात. याचा साधा अर्थ असा की, आपला मेंदू आपल्या इच्छेप्रमाणे, आपल्या विचारांप्रमाणे वागतो. मेंदू आपल्या ताब्यात आहे. आपण सांगू तसे तो काम करणार, पण इथेच खरा मुद्दा आहे. आपण जो विचार करतो, तो विचार आपला स्वत:चा असतो काय? आपण काय करतो? आपला मित्र ‘अमूक एका पद्धतीने वागतो, म्हणून आपण वागतो. शेजारी जे काही करतात, तसे करण्याचा आपण प्रयत्न करतो. कधी रूढीप्रमाणे वागतो, परंपरेप्रमाणे वागतो. म्हणजे आपण आपल्या बुद्धीप्रमाणे वागत नाही. आपल्याला मिळालेल्या स्वतंत्र मेंदूचा आपण वापर करीत नाही. स्वतंत्र मेंदूबरोबर जगाकडे स्वतंत्रपणे पाहण्याची मिळालेली नजर आपण गमावून बसतो. एक प्रकारे आपण बौद्धिक गुलामगिरी स्वीकारतो, स्वत:हून दुसऱ्याचे गुलाम बनतो. हे बदलले पाहिजे. स्वतंत्रपणे विचार केला पाहिजे.

प्रश्न आ.
कथेतील ‘टॅक्सी ड्रायव्हर’ हे पात्र तुम्हांला आवडण्याचे वा न आवडण्याचे कारण स्पष्ट करा.
उत्तर :
‘शोध’ या कथेतील टॅक्सी ड्रायव्हर हे पात्र मला आवडले आहे. तो साधा, सरळ मनाचा, सालस वृत्तीचा माणूस आहे. लबाड्या करणे, दाखवेगिरी करणे हा त्याचा स्वभाव नाही. मनाचा सरळपणा हा त्याचा स्थायिभाव आहे. तो दिवसरात्र टॅक्सी चालवतो. त्याला दुपारी जेवायलाही मिळाले नाही. मध्यरात्री तो उसळपाव खातो. असा माणूस पैशासाठी हपापलेला असला, तरी समजून घेता येईल. पण तो स्वभावाने सालस आहे. हे त्याच्या वागण्यावरून दिसून येते. समाजात टॅक्सीवाल्यांना प्रतिष्ठा नाही, मानसन्मान नाही, हे त्याला ठाऊक आहे. म्हणून भिड्यांनी आपणहून केलेल्या मदतीबद्दल तो त्यांचा अपार कृतज्ञ आहे.

अनूची हकिगत ऐकल्यानंतर तो ज्या त–हेने व्यक्त झाला, त्यावरून त्याची वैचारिक प्रगल्भता दिसते. सर्वसाधारण नर्स रुग्णामध्ये मानसिकदृष्ट्या गुंतत नाही. अनू तशी नाही. अनूचे हे मोठेपण तो ओळखतो.

या टॅक्सी ड्रायव्हरसारखी व्यक्ती विरळाच असते. म्हणून टॅक्सी ड्रायव्हर ही व्यक्तिरेखा मला आवडली आहे.

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Marathi Yuvakbharati 12th Digest Chapter 3.1 शोध Additional Important Questions and Answers

कृति

1. कारणे लिहा :

प्रश्न 1.
मुंबईत कुठे उतरायचे, हा कथानिवेदकाचा प्रश्न सुटला होता; कारण –
उत्तर :
मुंबईत कुणाकडे उतरायचे, हा कथानिवेदकाचा प्रश्न सुटला होता; कारण अनूने मुंबईत स्वत:चे बि–हाड थाटले होते.

प्रश्न 2.
दिवसभराच्या हकिगतींविषयी गप्पा मारता मारता अनूचा नूर बदलला; कारण –
उत्तर :
दिवसभराच्या हकिगर्तीविषयी गप्पा मारता मारता अनूचा नूर बदलला; कारण काचेखालची तिची नोट भिड्यांना दिल्याचे मुक्ताने तिला सांगितले.

प्रश्न 3.
अपरात्री भिड्यांकडे जाण्याच्या अनूच्या वेडात कथा निवेदकाला सामील होणे भाग होते; कारण –
उत्तर :
अपरात्री भिड्यांकडे जाण्याच्या अनूच्या वेडात कथानिवेदकाला सामील होणे भागच होते; कारण त्यानेच अनूची नोट भिड्यांना देण्याचा गुन्हा केला होता.

प्रश्न 4.
लॅमिंग्टन रोड पोलीस स्टेशन दिसताच कथानिवेदकाने टॅक्सी थांबवली; कारण –
उत्तर :
लॅमिंग्टन रोड पोलीस स्टेशन दिसताच कथानिवेदकाने टॅक्सी थांबवली; कारण त्याला पोलीस स्टेशनसमोरच्या इमारतीत चौथ्या मजल्यावर जायचे होते.

प्रश्न 5.
अपरात्री भिड्यांच्या दाराची कडी वाजवताना कथानिवेदकाला संकोच कमी वाटला; कारण –
उत्तर :
अपरात्री भिड्यांच्या दाराची कडी वाजवताना कथानिवेदकाला संकोच कमी वाटला; कारण दाराच्या वरच्या व्हेंटिलेटरमधून दिव्याचा प्रकाश त्याला दिसला.

प्रश्न 6.
टॅक्सीवाल्याच्या बाजूने भिडे पतिपत्नी पोलीस स्टेशनला गेली; कारण –
उत्तर :
टॅक्सीवाल्याच्या बाजूने जबानी दयायला भिडे पतिपत्नी पोलीस स्टेशनला गेली; कारण टॅक्सीवाल्याची एक टक्काही चूक नसल्याने त्याला वाचवणे आवश्यक आहे, असे भिड्यांना वाटले.

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2. कृती करा :

प्रश्न 1.
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उत्तर :
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.1 शोध 9

प्रश्न 2.
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उत्तर :
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3. टॅक्सी ड्रायव्हरने सांगितलेले पुढील पेशांतील साम्य लिहा :

प्रश्न 1.
Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.1 शोध 6
उत्तर :
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Maharashtra Board Class 12 Marathi Yuvakbharati Solutions Bhag 3.1 शोध

शोध लेखकांचा परिचय

लेखकांचे नाव :
व. पु. काळे

साहित्यिक व्यक्तिमत्त्व :
खूप लोकप्रिय कथालेखक, निबंधकार, नाटककार, कादंबरीकार, कथा–पटकथा लेखक, कथाकथनाचे शेकडो कार्यक्रम. कथा आकर्षकपणे सांगण्याची विलक्षण हातोटी, उत्कंठावर्धक कथालेखनाचे कौशल्य, ओघवती निवेदनशैली. ‘व. पु.चे विचार’ या शीर्षकाखाली त्यांच्या वाक्यांच्या संकलनांची निर्मिती. त्यांच्या कथेवरून चित्रपटाची निर्मिती.

ग्रंथसंपदा :
“ही वाट एकटीची’, ‘ठिकरी’, ‘लोंबकळणारी माणसं’, ‘पण माझ्या हातांनी’, ‘पेन सलामत तो’, ‘ब्रह्मदेवाचा बाप’ वगैरे अनेक कथासंग्रह प्रसिद्ध, ६० पेक्षा अधिक पुस्तके प्रसिद्ध. कादंबऱ्या, नभोनाटये प्रसिद्ध,

पुरस्कार–पारितोषिके :
महाराष्ट्र शासनाचा पुरस्कार, पु. भा. भावे पुरस्कार, फाय फाउंडेशनचा पुरस्कार.

शोध कथेचा गोषवारा

(१) पहिल्याच दृश्यात तीन पात्रे आहेत. ‘मी’ हा निवेदक, त्याची पत्नी मुक्ता आणि अनू. ‘मी’ हाच कथानिवेदक आहे. तोच कथा सांगत आहे, तो नायक आहे. पण केंद्रस्थानी अनू आहे. कथा तिच्याभोवती फिरते.

पहिलेच वाक्य उत्कंठावर्धक आहे, रहस्यमय आहे. पहिल्या वाक्यातच वाचक कथेत ओढला जातो आणि कथानकासोबत पुढे पुढे चालत राहतो. ही पात्रे कोण, त्यांचा एकमेकांशी संबंध काय? त्या तिघांमध्ये कोणता ताण निर्माण झाला? प्रसंग तरी कोणता? यांचा उलगडा होत नाही. त्यामुळे वाचकाच्या मनात उत्कंठा निर्माण होते.

(२) पुढच्या भागात अनू या पात्राची अधिक ओळख होते. मी हा निवेदक आबासाहेबांना भेटला. अन आबासाहेबांची मुलगी. त्या वेळी अनूची अधिक माहिती मिळाली. अनू ही स्वातंत्र्यप्रेमी. तिला स्वतंत्रपणे जगून पाहायचे होते. तिने आबासाहेबांकडून पाच वर्षे मागून घेतली. त्या पाच वर्षांत कोणीही तिला कशाहीबद्दल कोणताही जाब विचारायचा नाही. ती मुक्तपणे पाच वर्षे जगायला घराबाहेर पडली. तिने नर्सची नोकरी स्वीकारली. हॉस्पिटलच्या जवळच्या एका इमारतीत तिने भाड्याने घर घेतले.

(३) कथानिवेदक अनूला भेटण्यासाठी पत्नी मुक्तासोबत पुण्याहून मुंबईला आला, अनूच्या घरात उतरला तिथे त्याचे मित्र भिडे व भिडेवहिनी त्याला भेटायला आले. गप्पांत वेळ कसा गेला समजलेच नाही. रात्र झाली. भिडे टॅक्सीने घरी जाण्यासाठी उठले. निवेदकाने टॅक्सीवाल्याला देण्यासाठी पुरेसे सुटे पैसे देऊ केले. एक रुपया कमी पडला. टेबलावरच्या काचेखाली अनूने ठेवलेली एक रुपयाची नोट काढून ती भिड्यांना दिली. भिडे निघून गेले. इथेच खरा घोटाळा झाला.

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(४) अनू घरी आल्यावर तिला हा प्रकार कळला. ती प्रचंड नाराज झाली, तिला संताप आला. एक रुपयाची नोट देऊन टाकल्यामुळे काहीएक नुकसान झाले, असे निवेदकाला मुळीच वाटत नव्हते. अनूला राग आला, हे त्याला मुळीच योग्य वाटत नव्हते. पण अनू हट्टाला पेटली होती. तिने खूप रात्र झाली होती तरी भिड्यांकडे जाण्याचा निर्णय घेतला. त्या दोघांना याचा धक्काच बसला.

(५) भिड्यांकडे गेल्यावर समजले की भिड्यांनी ती नोट टॅक्सी ड्रायव्हरला दिली. नंतर आढळले की टॅक्सी ड्रायव्हरने ती नोट हॉटेलवाल्याला दिली. अखेरीस ती नोट मिळाली, तेव्हा अनूने त्या नोटेमागचे रहस्य सांगितले.

(६) एके दिवशी अनूची ड्युटी लहान मुलांच्या वॉर्डमध्ये होती. त्या दिवशी आठनऊ वर्षांची मुलगी दाखल झाली. सगळ्यांनी तिची आशा सोडली होती. ब्लड ट्रॅन्स्फ्यूजनसाठी व सलायनसाठी तिच्या हातापायाला नळ्या लावल्या. ऑक्सिजनच्याही नळ्या लावल्या. तिला वाचवण्याची सगळ्यांची प्रचंड धडपड चालू होती. पण तिला मात्र सर्वत्र सुया टोचल्यामुळे वेदना होत होत्या. ती दिवसभर त्या नळ्या काढा असे विनवत होती. शेवटी अनूने पुढाकार घेतला. डॉक्टरांच्या परवानगीने तिने नळ्या काढल्या. त्या मुलीच्या वेदना थांबल्या. ती आनंदाने विसावली. थोड्याच अवधीत तिने अखेरचा श्वास घेतला. ती सुखाने मृत्यूच्या कुशीत शिरली. जाण्यापूर्वी तिने स्वत:च्या खाऊच्या पैशातला एक रुपया नर्सताईला – अनूला – भेट म्हणून दिला. त्याच रुपयाच्या नोटेचा शोध घेण्यासाठी धडपड चालू होती.

(७) इकडे टॅक्सी ड्रायव्हरचे उपकथानक चालू झाले होते. भिड्यांना घेऊन येणाऱ्या टॅक्सीखाली एक म्हातारा मनुष्य आला. टॅक्सी ड्रायव्हरची काहीही चूक नव्हती. त्याला विनाकारण शिक्षा होऊ नये म्हणून भिडे स्वतः हॉस्पिटल, पोलीस स्टेशन या ठिकाणी साक्षीसाठी धावले. शेवटी तो रुपया परत मिळवण्यासाठी टॅक्सी ड्रायव्हरने मदत केली. अनू आपली हकिगत सांगत होती, तेव्हा तो टॅक्सी ड्रायव्हर तिथे होताच. ती हकिगत ऐकून तो व्याकूळ झाला. अनूला नोट मिळाली. तिची समस्या संपली. तिचा शोध संपला, पण ड्रायव्हरचा शोध कधीच संपणार नव्हता. कारण त्याची मुलगी मरण पावली होती. अनूच्या वॉर्डमध्ये आलेली मुलगी तीच त्या ड्रायव्हरची मुलगी होती!

शोध शब्दार्थ

  • विक्षिप्त – त–हेवाईक, विचित्र, लहरी.
  • व्हेंटिलेटर – घरात हवा येण्याजाण्यासाठी दाराच्या वर तिरप्या पातळ पट्ट्या बसवलेली चौकट,
  • अपरात्र – रात्रीचा खूप उशिराचा वेळ, रात्रीचा शेवट, उत्तररात्र.

शोध वाक्प्रचार व त्यांचे अर्थ

  • पळ काढणे – पळून जाणे.
  • जिव्हारी लागणे – खूप दुःख होणे, मन खूप व्यथित होणे.
  • पगडा असणे – प्रभाव असणे.
  • छाया पडलेली असणे – प्रतिबिंब भासणे, प्रभाव जाणवणे.
  • निवारण करणे – (अडचणी, शंका इत्यादी) दूर करणे.
  • चोरट्यासारखे होणे – अपराधी वाटणे.
  • गळ घालणे – खूप विनवणी करणे.
  • पाचारण करणे – बोलावून घेणे, हजर राहण्यास सांगणे.
  • आवाज भरून येणे – दु:खाने किंवा खूप आनंदाने व्याकूळ होणे.
  • बाराच्या भावात जाणे – नुकसान होणे, खूप अडचणी निर्माण होणे.
  • (एखादयासाठी) प्रार्थना करणे/चालू असणे – (एखादयाचे) भले व्हावे अशी इच्छा व्यक्त करणे/भले व्हावे अशी विनवणी चालू असणे.
  • धावाधाव करणे – चपळाईने प्रयत्न करणे.

Marathi 12th Textbook Guide Pdf Download भाग-३ साहित्यप्रकार